क्यों आज घरों में छिप कर बैठने को
मजबूर की जा रही हैं हौवा की बेटियां?
क्यों उन पर लगे हैं पहरे पड़ोसी देश में
क्यों कसी जा रही हैं जंजीरों में बेटियां?
फतवे जारी करते हैं वीर पुरुष पड़ोस के
क्यों बंदिशों को फिर ढोती हैं बेटियां?
मिटा रहे धरती को जन्नतों की चाह में
क्यों बंदी बनती हैं इस चाह में बेटियां?
बन रहे हो तुम फरिश्ते धर्म और ईमान के
फिर पंख अपने क्यों कतरवा रही हैं बेटियां?
चाहत है तुम्हारी राज करने की जहान पर
पर बनेंगी बांदियां क्यों ये निरक्षर बेटियां?
तुम तो मरोगे और मारोगे इनसान को
क्यों सब से पहले कहर झेलती हैं बेटियां?
हसरतें पूरी करोगे तुम जन्नत की हूर की
पर यहां हवस बुझाने को हैं ये बेटियां?
क्यों जुर्म करते हो तुम दिनरात और
जुर्म सहने को पैदा होती हैं ये ?बेटियां?
हों अत्याचार यहां या वहां
किसी भी देश में
क्यों सहती हैं सब से पहले
हौवा की बेटियां?

- घुघूती बासूती

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