तुम पास नहीं हो मेरे, मगर
हर सू है तेरी ही खुशबू.
मैं ने खुशबू में किया स्नान.
इक महक लिपट गई देही से
जब मन में तेरा किया ध्यान.
ये पवन कहां से आई है
चंदन सी खुशबू लाई है
मनमृग की मद कस्तूरी ने
अनुलोम विलोम महकाई है.
पंकज स्मृतियों के जवां हुए
कुछ दृश्य पटल पर उग आए
जब झीने परदों के भीतर
जो कुछ हम ने तुम ने मिल कर
किया उन लमहों के दरम्यान
मैं ने खुशबू में किया स्नान.
है बूंद बड़ी, समंदर कमतर
है प्रेम रसायन बड़ा विचित्तर
ढूंढ़ रहे सब भोट भिड़ाते
इस खुशबू के जंतरमंतर
सदियों से सारे धन्वन्तर
इस कतरे में डूबा उस के
तैर गए दोनों जहान
मैं ने खुशबू में किया स्नान.
- कन्हैयालाल वक्र
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