पक्षियों सा भरता उड़ान
यह मन का द्वार
खिड़की के उस पार
जब देखता है अनंत आकाश
अभिलाषाएं लेती हैं उफान
जैसे सागर में कोई तूफान
पर खिड़की के अंदर
धूमिल सा प्रकाश
भावनाएं तरसती हैं हरपल
पाने को एक अलौकिक प्रकाश
जब देखता है मन
खिड़की के आरपार
भीतरबाहर की कशमकश से
मानो पाना चाहता है निजात
लालायित रहता है हर क्षण
छूने को नीला आकाश
यह मन का द्वार
जब देखता है खिड़की के उस पार.
सुशीला श्रीवास्तव
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