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जीजा पर भारी ब्लैकमेलर साली: भाग 2

भाग 2

रविवार या अन्य छुट्टियों में वह अपना दिन बिताने अकसर बहन शोभा के घर उज्जैन आ जाती थी. जितेंद्र के साथ उस का हंसीमजाक का रिश्ता था, सो खुले विचारों वाली अपनी इस साली से जितेंद्र की जल्द ही काफी अच्छी बनने लगी.

अदिति शर्मा के बयानों को सच मानें तो जितेंद्र मौका मिलने पर उस के साथ छेड़छाड़ कर लेता था. अदिति शर्मा उस की इस छेड़छाड़ का बुरा नहीं मानती थी, इसलिए जितेंद्र की हिम्मत बढ़ने लगी थी. अदिति शर्मा ने बताया कि 2018 में जीजू एक रोज उस के घर देवास आ धमके. उन्हें देवास में कुछ काम था. उस रोज जीजू ने जानबूझ कर देर कर दी और फिर लेट हो जाने का बहाना बना कर रात में मेरे घर पर रुक गए.

अदिति शर्मा के अनुसार, ‘देर रात तक हम दोनों बात करते रहे, उस के बाद मुझे नींद आने लगी और मैं सो गई. कुछ देर बाद मुझे अपने शरीर पर किसी के हाथों का स्पर्श महसूस हुआ. मैं ने आंखें खोल कर देखा तो जितेंद्र मेरे शरीर से छेड़खानी कर रहे थे.

‘मैं उठ कर बैठ गई और उन की इस हरकत के लिए नाराजगी व्यक्त की. लेकिन वह नहीं माने और उस रात उन्होंने जबरन मेरे साथ संबंध बना लिए. इस के बाद वह अकसर देवास आ कर मेरे साथ मौजमस्ती करते थे और लौट जाते थे.’

अदिति शर्मा ने माना कि कुछ समय पहले उस की नौकरी छूट गई थी, जिस से वह आर्थिक परेशानी में आ गई थी. इस के चलते उस ने जितेंद्र जीजू से कुछ पैसा उधार लिया था लेकिन बाद में वापस लौटा दिया था.

जबकि जितेंद्र के सुसाइड नोट के अनुसार अदिति शर्मा अकसर उसे खुला आमंत्रण देती रहती थी. लेकिन उस ने कभी गौर नहीं किया. बाद में एक दिन देवास में देर हो जाने के कारण उसे रात में अदिति शर्मा के घर पर रुकना पड़ा.

घर में दोनों अकेले थे, सो ऐसे में अदिति शर्मा रात में खुद चल कर उस के बिस्तर में घुस आई और उस से बुरी तरह लिपट कर प्यार करने लगी. अदिति शर्मा की पहल पर उस रात उस के और अदिति शर्मा के बीच शारीरिक संबंध बन गए थे.

इस घटना के बाद जितेंद्र अपराधबोध से ग्रस्त हो गया था. उस ने अदिति शर्मा से फिर कभी अकेले में न मिलने की कसम भी खा ली थी. लेकिन अदिति शर्मा ने खुद आगे बढ़ कर उसे अपने साथ फिजिकल होने को उकसाया था, इस का खुलासा कुछ दिन बाद तब हुआ, जब अदिति शर्मा ने जरूरत बता कर उस के सामने कुछ पैसों की मांग की. जितेंद्र ने उसे पैसे दे दिए तो वह आए दिन कभी 2 हजार तो कभी 5 हजार तो कभी 10 हजार रुपयों की मांग करने लगी.

वह बिना सोचेसमझे उस की मदद करता रहा, लेकिन जब अदिति शर्मा लगातार उस से ज्यादा रकम मांगने लगी तो उस ने पैसे न होने का बहाना बनाना शुरू कर दिया. जिस पर एकदो बार तो अदिति शर्मा ने कुछ नहीं कहा लेकिन एक दिन जब जितेंद्र ने उसे पैसे देने से मना किया तो वह धमकी देने लगी. उस ने कहा कि अगर उस की बात नहीं मानी तो वह सारी बात शोभा दीदी को बता देगी.

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उस दिन के बाद तो अदिति शर्मा जितेंद्र को सीधेसीधे धमका कर पैसों की मांग करने लगी. अदिति शर्मा को लगातार पैसा देने के कारण जितेंद्र की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ने लगी थी, जिस से वह परेशान रहता था. जितेंद्र सोचता था कि कुछ दिनों बाद अदिति शर्मा की शादी हो जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा.

लेकिन अदिति शर्मा शादी करने को तैयार नहीं थी. बताते हैं कि एक बार जितेंद्र ने उसे शादी कर लेने की सलाह दी तो अदिति शर्मा ने उस से कहा, ‘‘लड़की 2 जरूरतों के लिए शादी करती है. पहली जरूरत तन की भूख मिटाने की और दूसरी पेट की भूख मिटाने की. इन दोनों जरूरतों के लिए तुम हो तो मैं शादी की बेड़ी पहन कर किसी की गुलाम क्यों बनूं.’’

इस से जितेंद्र समझ गया कि अदिति शर्मा से आसानी से छुटकारा नहीं मिलेगा.

जितेंद्र काफी परेशान रहने लगा था. यह देख कर जब उस की पत्नी ने उस से बारबार पूछा तो घटना से एक दिन पहले उस ने अदिति शर्मा के साथ भूलवश शारीरिक संबंध बन जाने और उस के ब्लैकमेल करने की बात पत्नी और पिता को बता दी थी. दोनों ने ही उसे पुरानी बातें भूल कर नए सिरे से जीवन शुरू करने की सलाह दी थी.

जितेंद्र के पिता और पत्नी को इस बात का जरा भी अहसास नहीं था कि वह यह बात अपना मन हलका करने के लिए नहीं बल्कि आत्महत्या करने से पहले अपनी गलती स्वीकार करने की गरज से बता रहा था.

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उस की पत्नी और पिता दोनों का आरोप है कि उन्हें कहानी सुनाने के बाद जितेंद्र का मन हलका हो गया था. संभवत: इस के बाद उस ने अदिति शर्मा की बात मानने से इनकार किया होगा, जिस के बाद अदिति शर्मा ने उसे बदनाम करने की धमकी दी होगी, जिस से डर कर उस ने आत्महत्या कर ली.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

जीजा पर भारी ब्लैकमेलर साली: भाग 1

शर्मा आटो गैराज में काम करने वाला उत्तम कृष्ण करीब 11 बजे जब गैराज पर पहुंचा तो शटर गिरा हुआ मिला. उसे आश्चर्य हुआ, क्योंकि गैराज के मालिक जितेंद्र शर्मा रोजाना 9 बजे ही गैराज खोल देते थे. उत्तम कृष्ण इस गेराज में एक साल से काम कर रहा था, लेकिन उसे सुबह को कभी भी गैराज बंद नहीं मिला था.

जितेंद्र को कभी आने में देर हो जाती तो वह उत्तम को फोन पर सूचना दे कर गैराज खोलने के लिए बोल देते थे. उत्तम सोच रहा था कि जितेंद्र अभी तक क्यों नहीं आए. वह गैराज के बाहर ही उन के आने का इंतजार करने लगा. तभी उत्तम का ध्यान दुकान पर लगने वाले तालों पर गया तो वह चौंका शटर के दोनों ताले खुले थे.

उत्तम ने आगे बढ़ कर शटर ऊपर उठा दिया. उस की नजर गैराज के अंदर गई तो उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. जितेंद्र शर्मा का शव दुकान के अंदर लगे लोहे के पिलर पर रस्सी के फंदे से झूल रहा था.

अपने मालिक की लाश लटकते देख कर उत्तम के मुंह से चीख निकल गई. उस के चीखने की आवाज सुन कर आसपास के दुकानदार जमा हो गए. घटना की सूचना थाना नीलगंगा के टीआई संजय मंडलोई को दे दी गई.

धन्नालाल की जिस चाल में शर्मा गैराज था, वह इलाका थाना नीलगंगा में आता था. कुछ ही देर में टीआई संजय मंडलोई एसआई जयंत सिंह डामोर, प्रवीण पाठक आदि के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने जरूरी जांच के बाद शव को फंदे से उतारा और प्राथमिक काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने गैराज की तलाशी ली तो वहां 5 पेज का एक सुसाइड नोट मिला. सुसाइड नोट के 3 पेजों पर जितेंद्र ने देवास में रहने वाली अपनी चचेरी साली का जिक्र किया था. सुसाइड नोट के हिसाब से जितेंद्र शर्मा ने चचेरी साली की ब्लैकमेलिंग से तंग आ कर आत्महत्या की थी.

जितेंद्र ने अपने सुसाइड नोट के एक पेज पर पत्नी शोभा को मायके जा कर रहने व दूसरी शादी करने की सलाह दी थी. पुलिस ने सुसाइड नोट हैंडराइटिंग की जांच के लिए एक्सपर्ट के पास भेज दिया. सुसाइड नोट में साली का जिक्र आया था, इसलिए पुलिस ने पूछताछ के लिए देवास में रहने वाली जितेंद्र की साली के बारे में पता किया तो वह घर से लापता मिली.

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उज्जैन के एसपी सचिन अतुलकर के निर्देश पर टीआई संजय मंडलोई ने जांच की जिम्मेदारी एसआई जयंत सिंह डामोर को सौंप दी. मृतक का क्रियाकर्म हो जाने के बाद जांच शुरू करते हुए एसआई डामोर ने मृतक की पत्नी शोभा से पूछताछ की. उस ने अपने पति द्वारा चचेरी बहन पर लगाए आरोपों को सच बताया.

शोभा ने पुलिस को यह भी बताया कि घटना से एक दिन पहले जितेंद्र ने अदिति शर्मा के साथ अपने संबंध और उस के द्वारा ब्लैकमेल करने की बात उसे तथा अपने पिता को बताई थी. जिस पर हम ने उन्हें काफी समझाया था, लेकिन इस के बावजूद उन्होंने ऐसा कदम उठा लिया.

मृतक के पिता ने भी माना कि जितेंद्र अदिति शर्मा द्वारा ब्लैकमेल किए जाने से परेशान था. उन्होंने उसे समझाया था कि सब ठीक हो जाएगा.

पुलिस ने अदिति शर्मा की तलाश में अपने मुखबिर सक्रिय कर दिए थे. घटना के लगभग 10 दिन बाद अदिति शर्मा के देवास में होने की जानकारी मिली तो पुलिस की एक टीम ने वहां जा कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

लेकिन तब तक अदिति शर्मा ने इस मामले में हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले ली थी, इसलिए थाने में उस के बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने उसे जाने दिया. जिस के बाद पूरी कहानी इस प्रकार से सामने आई—

उज्जैन निवासी लक्ष्मण शर्मा कारों के पुराने मैकेनिक हैं. पिता के साथ काम सीखने के बाद जितेंद्र उर्फ जीतू ने महापौर निवास के सामने अपना अलग गैराज खोल लिया था. 26 नवंबर, 2015 को जितेंद्र की शादी देवास की रहने वाली शोभा से हुई थी. शादी के कुछ समय बाद जितेंद्र सेठी नगर में किराए का मकान ले कर अपने परिवार से अलग रहने लगा था.

कुछ साल पहले जितेंद्र की पत्नी का परिवार देवास छोड़ कर गुजरात वापस चला गया. जितेंद्र की चचेरी साली अदिति शर्मा (24) देवास की एक निजी कंपनी में नौकरी करती थी, इसलिए परिवार के साथ न रह कर वह देवास में ही किराए के मकान में रहने लगी थी.

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इश्क की फरियाद: भाग 2

इश्क की फरियाद: भाग 1

आखिरी भाग

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22 अप्रैल, 2019 की रात को गांव में सन्नाटा पसरा हआ था. लोग गरमी से बेहाल थे. कुछ तो घर के आंगन में तो कुछ अपनी छतों पर सोने का प्रयास कर रहे थे. निरूपमा भी घर के आंगन में पड़ी चारपाई पर अपने छोटे बेटे के साथ लेटी थी.

गरमी की वजह से उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी और बेचैनी से वह इधरउधर करवटें बदल रही थी. तभी उसे अचानक घर में किसी के कूदने की आहट सुनाई दी. धीरेधीरे वह काला साया उस की ओर बढ़ने लगा तो निरूपमा ने पहचानने की कोशिश करते हुए पूछा, ‘‘कौन?’’

निरूपमा की आवाज सुन कर काला साया कुछ क्षणों के लिए ठिठक गया. उस की खामोशी देख कर निरूपमा का माथा ठनका. उस ने सोचा कि वह मोहित ही होगा. उस ने पास आ कर देखा तो वह मोहित ही निकला.

उस रात मोहित काफी देर तक निरूपमा से मिन्नतें करता रहा कि वह एक बार उस की बात मान ले. किंतु निरूपमा ने उसे बुरी तरह डपट दिया. शोरशराबे से उस का पति आशाराम भी जाग गया. आशाराम ने भी मोहित को बहुत फटकारा. उस दिन मोहित को अत्यधिक विरोध सहना पड़ा, जिस से वह अपमानित हो कर तिलमिला गया.

मोहित अपनी बेइज्जती पर भलाबुरा कहता हुआ उलटे पैरों वापस लौट गया. लेकिन मोहित ने तय कर लिया था कि वह इस अपमान का बदला जरूर लेगा.

अगले दिन शाम के समय उस ने अपने भाई अंजनी, दोस्त अतुल रैदास और अब्दुल हसन को पूरी बात बताई और कहा कि वह आशाराम को रास्ते से हटाना चाहता है. भाई और दोनों दोस्तों ने उस का साथ देने की हामी भर दी.

इश्क के जुनून में अंधे मोहित ने निरूपमा का प्यार पाने के लिए अब कुचक्र रचना शुरू कर दिया. 24 अप्रैल, 2019 को शाम के वक्त आशाराम घर डलोना जाने वाली सवारियों का इंतजार कर रहा था. उसी समय मोहित अपने भाई अंजनी के साथ उस के टैंपो में आ कर बैठ गया. मोहित ने ड्राइविंग सीट पर बैठे आशाराम से पीछे वाली सीट पर आ कर बैठने को कहा.

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आशाराम मोहित साहू के पास बैठ कर बोला, ‘‘जरा सवारी ढूंढ लूं. तब तक तुम लोग बैठो, मैं अभी आता हूं.’’

‘‘नहीं यार, आज गाड़ी में कोई और नहीं चलेगा, हम तीनों ही चलेंगे. लो, पहले यह जाम पियो.’’ मोहित ने उस की तरफ शराब से भरा डिस्पोजेबल ग्लास बढ़ाते हुए कहा.

‘‘नहीं, मैं दिन में शराब नहीं पीता, सवारियों को ऐतराज होता है.’’ आशाराम टैंपो की पिछली सीट से उतरते हुए बोला.

‘‘नहीं, तुम्हें आज मेरे साथ बैठ कर तो पीनी ही पड़ेगी.’’ मोहित ने जोर देते हुए कहा.

कोई बखेड़ा खड़ा न हो जाए, यह सोच कर वह फिर पिछली सीट पर आ कर बैठ गया. पिछले दिनों हुई कहासुनी को नजरअंदाज कर के मोहित से गिलास ले कर एक ही सांस में पी गया.

इस के बाद मोहित ने उसे 2 पैग और पिलाए. मोहित आशाराम को देख कर भौचक्का रह गया. फिर उस ने अंजनी को पैसे देते हुए कहा, ‘‘ले भाई, अंगरेजी की एक बोतल और ले आ. अब हम लोग अतुल रैदास के कमरे पर चलेंगे, फिर वहीं बैठ कर पीएंगे.’’

अंजनी थोड़ी देर में दारू की बोतल ले आया. तब मोहित ने आशाराम से कहा, ‘‘अब तुम हम लोगों को अतुल रैदास के यहां छोड़ आओ, फिर अपने घर को चले जाना.’’

आशाराम उन से विवाद मोल नहीं लेना चाहता था. यही सोच कर वह उन दोनों के साथ गांव की ओर रवाना हो गया.

उस समय शाम के लगभग 7 बज चुके थे. जब वह घर नहीं पहुंचा तो उस के बडे़ बेटे सौरभ ने काल की. उस समय आशाराम ने उस से कहा था कि वह थोड़ी देर में घर आ जाएगा.

मोहित और उस के भाई अंजनी को अतुल रैदास के कमरे पर पहुंचाने के बाद जब आशाराम घर लौटने लगा तो मोहित ने आशाराम को रोक लिया और कहा कि अब हम लोग जम कर पिएंगे.

आशाराम मना नहीं कर सका. उन्होंने आशाराम को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में धुत हो गया तब मोहित, अंजनी और अतुल ने आशाराम के गमछे से हाथपैर बांधने के बाद उस का गला घोंट कर हत्या कर दी.

इस के बाद उन्होंने चाकू से उस का गला रेत दिया. अब्दुल हसन भी वहां आ चुका था. अब्दुल हसन उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर का रहने वाला था. वहां रह कर वह मजदूरी करता था.

इन लोगों ने मिल कर आशाराम के शव को उसी के टैंपो में लाद कर कोराना गांव के पास बाकनाला पुल के नीचे जा कर फेंक दिया. तब तक काफी रात हो चुकी थी, जिस से लाश ठिकाने लगाते समय उन्हें किसी ने नहीं देखा.

उस का टैंपो उन्होंने अवस्थी फार्महाउस के पास खड़ा कर दिया था, जो बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया था. सुबह होने पर लोगों ने आशाराम की लाश देखी तो पुलिस को सूचना दी गई.

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उन की निशानदेही पर पुलिस ने अतुल रैदास के कमरे से वह चाकू भी बरामद कर लिया, जिस से आशाराम का गला काटा गया था. मोहित साहू और अंजनी साहू से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

इस के बाद पुलिस अन्य आरोपियों की तलाश में जुट गई. इस के 3 दिन बाद ही अब्दुल हसन व अतुल रैदास को 30 अप्रैल, 2019 को गिरफ्तार कर लिया गया. इन्होंने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इन दोनों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इन्हें भी जेल भेज दिया.

इश्क की फरियाद: भाग 1

लेखक-अलंकृत कश्यप

25अप्रैल, 2019 को कोराना गांव के लोगों ने बाकनाला पुल के नीचे एक युवक का शव पड़ा देखा. कोराना गांव लखनऊ के थाना मोहनलालगंज के अंतर्गत आता है, जो  लखनऊ मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर है. ग्रामीणों ने जब नजदीक जा कर देखा तो उन्होंने मृतक को पहचान लिया.

वह 45 वर्षीय आशाराम रावत का शव था, जो डलोना गांव का रहने वाला था. वह मोहनलालगंज में राजकुमार का सवारी टैंपो किराए पर चलाता था. उसी समय किसी ने इस की सूचना थाना मोनहलालगंज पुलिस को दे दी.

सूचना मिलने के बाद कुछ ही देर में थानाप्रभारी गऊदीन शुक्ल एसआई अनिल कुमार और हैडकांस्टेबल राजकुमार व लाखन सिंह को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. एसएसपी कमलनिधि नैथानी के आदेश पर क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर रफी आलम भी मौके पर पहुंच गए.

पुलिस दल जब घटनास्थल पर पहुंचा तो उन्होंने शव देखते ही पहचान लिया क्योंकि वह टैंपो चालक आशाराम रावत का था. उस के हाथपैर लाल रंग के अंगौछे से बंधे थे और गला कटा हुआ था. मोहनलालगंज क्षेत्र में सवारी टैंपो चलाने के कारण पुलिस वाले भी उस से परिचित थे.

पुलिस को वहां से एक किलोमीटर दूरी पर स्थित अवस्थी फार्महाउस के पास एक टैंपो लावारिस हालत में मिला. टैंपो की तलाशी लेने पर जो कागज बरामद हुए, उस से पता चला कि वह टैंपो इंद्रजीत खेड़ा के रहने वाले राजकुमार का है. लोगों ने बताया कि यह वही टैंपो है, जिसे आशाराम चलाता था.

मामला हत्या का था. यह भी लग रहा था कि आशाराम की हत्या किसी अन्य स्थान पर कर के उस का शव यहां फेंका गया है. क्योंकि वहां पर खून भी नहीं था.

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पुलिस ने मृतक के घर सूचना भिजवाई तो उस की पत्नी रामदुलारी उर्फ निरूपमा रोतीबिलखती मौके पर आ गई. उस ने लाश की पहचान अपने पति आशाराम रावत के रूप में की. उस ने बताया कि वह रोजाना की तरह कल सुबह करीब 8 बजे घर से टैंपो ले कर निकले थे.

देर रात तक जब वह घर न ही लौटे तो बड़े बेटे 16 वर्षीय सौरभ ने उन्हें फोन कया. आशाराम ने कुछ देर बाद लौटने को कहा था. काफी देर बाद भी जब वह घर नहीं लौटा तो निरूपमा ने भी पति को फोन कर के जानना चाहा कि वह कहां हैं. किंतु फोन बंद होने के कारण बात नहीं हो सकी.

तब रात में ही मोहनलालगंज और निकटतम पीजीआई थाने जा कर निरूपमा ने पति के बारे में मालूमात की लेकिन कुछ पता न चलने पर वह निराश हो कर घर लौट आई थी.

शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने लाश वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. निरूपमा की तरफ से पुलिस ने गांव के दबंग मोहित साहू, उस के भाई अंजनी साहू, दोस्त अतुल रैदास निवासी जिला कटनी, मध्य प्रदेश और अब्दुल हसन निवासी सीतापुर के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 506 और 3(2)(5) एससी/एसटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

मामला एससी/एसटी उत्पीड़न का था, इसलिए इस की जांच एसपी ने सीओ राजकुमार शुक्ला को सौंपी दी. रिपोर्ट नामजद थी इसलिए पुलिस ने आरोपियों के ठिकानों पर दबिश डाली. लेकिन वे पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े. तब पुलिस ने मुखबिरों को सतर्क कर दिया.

पुलिस ने आरोपियों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया. इस से उन सब के 24-25 अप्रैल की रात को एक साथ होने की पुष्टि हुई. इसी बीच 26 अप्रैल को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर मोहित साहू और उस के भाई अंजनी साहू को गिरफ्तार कर लिया.

दोनों भाइयों से आशाराम रावत की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने उस की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

लखनऊ-रायबरेली राजमार्ग पर शहर की व्यस्ततम कालोनी के बाहर लखनऊ एवं उन्नाव की सीमा पर थाना पीजीआई है. इसी थाने के अंतर्गत गांव डलोना आता है. आशाराम रावत का परिवार इसी गांव में रहता था. आशाराम का विवाह करीब 9 साल पहले डलोना गांव के ही प्रीतमलाल की सब से बड़ी बेटी रामदुलारी उर्फ निरूपमा के साथ हुआ था.

रामदुलारी का जीवन ससुराल में हंसीखुशी के साथ बीत रहा था. धीरेधीरे वह 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई. इस समय बड़े बेटे सौरभ की उम्र लगभग 16 साल है.

हालांकि आशाराम मूलरूप से लखनऊ के थाना गोसाईगंज के गांव कमालपुर का रहने वाला था, किंतु कामधंधे की तलाश में वह डलोना आ कर रहने लगा. यहां वह सवारी टैंपो चलाने लगा.

निरूपमा गोरे रंग की स्लिम शरीर वाली युवती थी. उस के चेहरे पर आकर्षण था. आशाराम टैंपो चालक होने के कारण व्यस्त रहता था. इसलिए घर के सारे काम वह ही करती थी, जिस की वजह से उसे घर से बाहर आनाजाना पड़ता था. गांव के कुछ लड़कों की नजरें निरूपमा को चुभती हुई महसूस होती थीं. लेकिन वह उन की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देती थी.

उन्हीं लड़कों में से एक मोहित साहू तो जैसे उस के पीछे ही पड़ गया था. मोहित की दूध डेयरी थी. दूध देने के बहाने वह निरूपमा के पास जाया करता था. इस से पहले निरूपमा ने उस की डेयरी पर करीब डेढ़ साल तक काम भी किया था. उसी दौरान वह निरूपमा को मन ही मन प्यार करने लगा था. फिर एक दिन उस ने अपने मन की बात निरूपमा से कह भी दी.

निरूपमा ने उसे झिड़कते हुए कहा कि तुम ने मुझे समझ क्या रखा है. आइंदा मेरे रास्ते में आने की कोशिश मत करना वरना अंजाम बुरा होगा. निरूपमा की इस बेरुखी से वह काफी आहत हुआ. लेकिन इस के बावजूद मोहित ने उस का पीछा करना नहीं छोड़ा. उसे देख कर निरूपमा आगबबूला हो उठती थी.

अकसर मोहित के द्वारा फब्तियां कसने पर निरूपमा ने कई बार उस की पिटाई कर दी थी किंतु इश्क में अंधे मोहित पर इस का कोई असर नहीं हुआ.

निरूपमा उस से तंग आ चुकी थी. एक दिन उस ने अपने पति आशाराम को मोहित की हरकतों से अवगत कराया तो आशाराम ने निरूपमा को चुप रहने की सलाह दी. उस ने कहा कि वह आतेजाते मोहित को समझा देगा कि गांवघर की बहूबेटियों की इज्जत करना सीखे.

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एक दिन आशाराम ने मोहित से बात की और अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए कहा कि आइंदा ऐसा न करे.

कुछ दिन तक तो मोहित शांत रहा किंतु वह अपनी आदतों से मजबूर था. उस का बस एक ही मकसद था कि किसी भी तरह निरूपमा को पाना. कामधंधा छोड़ कर वह दीवानगी में इधरउधर निरूपमा की तलाश में लगा रहता था. अंतत: उस ने एक भयानक निर्णय ले लिया.

क्रमश:

सौजन्य: मनोहर कहानियां

हैवान ही नहीं दरिंदा बाप: भाग 2

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पिता की घिनौनी हरकतों से प्रिया बहुत दुखी थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि अपनी पीड़ा किस से कहे. जयप्रकाश ने उस पर इतना कड़ा पहरा बैठा दिया था कि वह किसी से बात तक नहीं कर सकती थी. पिता के अत्याचार से बचने के लिए उस ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया.

इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रिया गोरखपुर में अपने एक रिश्तेदार के पास रहने लगी. वहां रहते हुए वह एक मौल में सेल्सगर्ल की नौकरी करने लगी ताकि  किसी पर बोझ न बन सके और उस की जरूरतें भी पूरी होती रहें.

बेटी तो बेटी होती है. भले ही वह कुकर्मी पिता से दूर रह रही थी लेकिन उसे पिता की यादें बराबर सताती रहती थीं इसलिए वह बीचबीच में घर आ जाती थी. वह जब भी घर आती थी, पिता उसे अपनी हवस का शिकार बनाता था.

26 जुलाई, 2019 को प्रिया घर गई थी. इस से अगली रात 27 जुलाई को जयप्रकाश ने उस से संबंध बनाने की कोशिश की. प्रिया ने इस बार पिता की मनमानी नहीं चलने दी और विरोध करने लगी. कामाग्नि में जलते पिता जयप्रकाश ने आव देखा न ताव, उस का गला घोंट कर हत्या कर दी.

पिता से हैवान और हैवान से दरिंदा बना जयप्रकाश पूरी नीचता पर उतर आया था. उस ने बेटी की मौत के बाद उस की लाश के साथ अपना मुंह काला किया. जब उस की कामाग्नि शांत हुई तो उसे होश आया. उस की आंखों के सामने फांसी का फंदा झूल रहा था. वह सोचने लगा कि प्रिया की लाश से कैसे छुटकारा पाए.

काफी देर सोचने के बाद उस के दिमाग में एक योजना ने जन्म लिया. वह कमरे में गया और वहां से तेजधार वाला चाकू ले आया. चाकू से प्रिया का उस ने सिर और धड़ अलग कर दिया. सिर उस की इस करतूत से फर्श पर खून ही खून फैल गया.

फिर उस ने बेटी के शरीर से उस के सारे कपड़े उतार दिए और उन्हीं कपड़ों से फर्श पर फैले खून को साफ किया ताकि पुलिस को उस के खिलाफ कोई सबूत न मिल सके. इस के बाद वह कमरे के अंदर से प्लास्टिक के सफेद रंग के 3 बोरे ले आया. उस ने एक बोरे में सिर, दूसरे में धड़ और तीसरे में प्रिया के खून से सने कपड़े रखे.

रात 2 बजे के करीब जयप्रकाश ने अपनी मोपेड पर तीनों बोरे लाद दिए और उन्हें ठिकाने लगाने के लिए निकल गया. सिर को उस ने उरुवा थाने के अंतर्गत आने वाली एक जगह की झाड़ी में फेंक दिया.

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फिर धड़ और कपड़े वाले बोरों को ले कर वह वहां से गोला के चेनवा नाला पहुंचा. नाले में उस ने दोनों बोरे ठिकाने लगा दिए. इस के बाद वह घर लौट आया और हाथमुंह धो कर इत्मीनान से सो गया.

पते की बात यह रही कि प्रिया के अकसर गोरखपुर में रहने की वजह से उस के अचानक गायब होने पर किसी को शक नहीं हुआ.

अब जयप्रकाश को एक बात की चिंता खाए जा रही थी कि भले ही लोग यह समझते हों कि प्रिया गोरखपुर में नौकरी कर रही है, लेकिन यह बात ज्यादा दिनों तक राज नहीं रह सकेगी. एक न एक दिन पुलिस इस हत्या से परदा हटा ही देगी तो वह उम्र भर जेल की चक्की पीसेगा. उस ने सोचा कि क्यों न ऐसी चाल चली जाए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

काफी सोचविचार करने के बाद उस ने अपने दामाद पर ही साली यानी प्रिया के अपहरण का आरोप लगाने की योजना बनाई. इस से जयप्रकाश का फायदा ही फायदा था. भविष्य में वह न तो कभी प्रिया की तलाश कर सकता था और न ही उस की हत्या का राज खुल सकता था. वक्त जयप्रकाश का बराबर साथ दे रहा था.

कुछ दिन बाद जयप्रकाश ने दामाद सुनील के पिता को फोन कर प्रिया के गायब होने की सूचना दी. बातचीत में उस ने बेटी के गायब होने के पीछे सुनील का हाथ होने का आरोप लगाया. सुनील के पिता समधी का आरोप सुन कर चौंके.

उन्होंने इस बारे में बेटे सुनील से बात की तो साली के अपहरण का आरोप खुद पर लगने से सुनील सन्न रह गया. उस ने यह बात पत्नी राधा को बताई. राधा भी पति की बात सुन कर हैरान थी.

राधा ने उसी समय पिता को फोन किया तो जयप्रकाश ने सुनील पर बेटी के अपहरण का आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराने की धमकी देनी शुरू कर दी. पिता की बात सुन कर राधा और सुनील एकदम परेशान हो गए. जबकि वे खुद भी कई दिनों से प्रिया के मोबाइल पर संपर्क करना चाहते थे. लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था.

फिर 17 अगस्त, 2019 को जयप्रकाश ने खुद ही बेटी राधा को फोन कर के प्रिया की हत्या करने की जानकारी दे दी.

बहरहाल, घटना की जानकारी होने पर राधा पति सुनील के साथ 17 अगस्त को ही गांव पहुंच गई. पूछताछ में उन्होेंने पुलिस को बताया कि पहले प्रिया उन से फोन पर बातें करती रहती थी, लेकिन बाद में पिता के दबाव में उस ने उन से बात करनी बंद कर दी थी.

बीते 29 मई को एक रिश्तेदार के यहां शादी समारोह में राधा और सुनील भी गए थे. उस समारोह में प्रिया भी आई थी. राधा ने वहीं पर प्रिया से मुलाकात के दौरान उस से पूछा कि वह उसे फोन क्यों नहीं करती, तो प्रिया ने पिता के दबाव की वजह से फोन न करने की बात कही थी.

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जब उस ने वह वजह पूछी तो उस ने कुछ नहीं बताया. इस के बाद से वह कभीकभार बहन और जीजा को फोन कर लेती थी लेकिन पिता की हरकत के बारे में उस ने उन से कभी कोई चर्चा नहीं की थी.

अगर प्रिया ने थोड़ी हिम्मत दिखाई होती तो उसे असमय मौत के आगोश में यूं ही नहीं समाना पड़ता. वह भी जिंदा होती और खुशहाल जीवन जीती.

यही नहीं, मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ चुके कलयुगी पिता को भी सलाखों के पीछे पहुंचवा सकती थी, लेकिन सामाजिक लोकलाज और डर के चलते उस ने ऐसा नहीं किया, जिस की कीमत उसे अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी.

पुलिस ने जयप्रकाश गुप्ता से पूछताछ के बाद उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक जयप्रकाश जेल की सलाखों के पीछे कैद था. उस की निशानदेही पर पुलिस हत्या में इस्तेमाल मोपेड, चाकू आदि बरामद कर चुकी थी.

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—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

   सौजन्य: मनोहर कहानियां     

हैैवान ही नहीं दरिंदा बाप: भाग 1

25वर्षीय राधा गुप्ता पता नहीं क्यों सुबह से बेचैन सी थी. घर के किसी काम में उस का मन नहीं लग रहा था. रहरह कर वह कभी कमरे से किचन में जाती और कभी किचन से कमरे में. उस ने यह क्रिया कई बार दोहराई तो कमरे में बैठे पति सुनील से रहा नहीं गया. उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है राधा, मैं काफी देर से देख रहा हूं कि तुम किचन और कमरे के बारबार चक्कर लगा रही हो. आखिर बात क्या है?’’

‘‘आप को क्या बताऊं. मैं खुद भी नहीं समझ पा रही हूं कि मैं ऐसा क्यों कर रही हूं.’’ राधा ने झिझकते हुए उत्तर दिया, ‘‘पता नहीं सुबह से ही मेरा मन किसी काम में नहीं लग रहा. जी भी बहुत घबरा रहा है.’’

‘‘तबीयत तो ठीक है न तुम्हारी?’’ पति ने पूछा.

‘‘हां, तबीयत ठीक है.’’

‘‘तो फिर क्या बात है, मन क्यों घबरा रहा है? कहो तो तुम्हें किसी डाक्टर को दिखा दूं?’’

‘‘अरे नहीं, आप परेशान मत होइए, डाक्टर की कोई जरूरत नहीं है. अभी थोड़ी देर में भलीचंगी हो जाऊंगी.’’

‘‘मैं तो इसलिए कह रहा था कि मैं ड्यूटी पर चला जाऊंगा, फिर रात में ही घर लौटूंगा. इस बीच कुछ हो गया तो…’’

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‘‘अरे बाबा, मैं कहती हूं मुझे कुछ नहीं होने वाला. मेरी फिक्र मत करिए, आप आराम से ड्यूटी जाइए. वैसे भी कोई बात होती है तो घर वाले हैं न मुझे संभालने के लिए.’’ कह कर राधा कमरे से किचन की ओर चली गई.

इस बार किचन से वह पूरा काम निपटा कर निकली थी. पति को खाना खिला कर ड्यूटी भी भेज दिया.

काम निपटा कर वह बिस्तर पर लेटी ही थी कि तभी उस के फोन की घंटी बज उठी. फोन उठा कर उस ने देखा तो स्क्रीन पर उस के पापा जयप्रकाश गुप्ता का नंबर था. राधा ने झट से चहकते हुए काल रिसीव की.

उस दिन राधा को अपने पिता की बातों से मायूसी महसूस हुई तो उस ने उन से इस की वजह जाननी चाही. जयप्रकाश ने कहा, ‘‘क्या बताऊं बेटी, मुझ से एक अनर्थ हो गया.’’

‘‘अनर्थ? कैसा अनर्थ?’’ राधा ने पूछा.

‘‘बेटी, आवेश में आ कर मैं ने अपने ही हाथों फूल सी छोटी बेटी प्रिया को मौत के घाट उतार दिया.’’

‘‘क्याऽऽ! प्रिया को आप ने मार डाला?’’ राधा चीखती हुई बोली.

‘‘हां बेटी, उस की चरित्रहीनता ने मुझे हत्यारा बना दिया. मैं ने उसे सुधरने के कई मौके दिए लेकिन वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रही थी और मेरे हाथों यह अनर्थ हो गया.’’

‘‘ये क्या किया आप ने पापा? मेरी बहन को मार डाला.’’ इतना कह कर राधा ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया और निढाल हो कर दहाड़ मारने लगी.

अचानक बहू के रोने की आवाज सुन कर उस के सासससुर घबरा गए कि अभी तो भलीचंगी किचन से अपने कमरे में गई है, फिर अचानक उसे हो क्या गया कि दहाड़ मार कर रोने लगी. वे दौड़ेभागे बहू के कमरे में पहुंचे तो देखा कि बहू बिस्तर पर लेटी सिसकियां ले रही थी.

उस के ससुर ने जब बहू से रोने की वजह पूछी तो उस ने पूरी बात उन्हें बता दी. बहू की बात सुन कर ससुर भी चौंक गए कि समधी ने ये क्या कर दिया.

थोड़ी देर बाद जब राधा थोड़ी सामान्य हुई तो उस ने पति को फोन कर के सारी बातें बता दीं. सुनील भी आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने पत्नी के तहेरे भाई विनोद को फोन कर के यह बात बता कर उस से पूछा कि ऐसे हालात में क्या करना चाहिए.

काफी सोचविचार के बाद विनोद इस नतीजे पर पहुंचे कि बात पुलिस को बता देनी चाहिए क्योंकि यह मामला हत्या से जुड़ा है. आज नहीं तो कल यह राज खुल ही जाएगा.

विनोद ने सुनील से कहा कि वह एसएसपी को फोन कर के इस की सूचना दे रहा है. उस के बाद गोला थाना जा कर वहां के एसओ से मिल लेंगे.

विनोद ने उसी समय एसएसपी डा. सुनील गुप्ता को अपना परिचय देते हुए पूरी घटना की जानकारी दे दी. मामला हत्या का था, इसलिए उन्होंने थाना गोला के एसओ संजय कुमार को तुरंत मौके पर पहुंच कर काररवाई करने के आदेश दिए.

कप्तान के आदेश पर एसओ संजय कुमार 17 अगस्त को ही जयप्रकाश गुप्ता के विशुनपुर स्थित घर पहुंचे. जयप्रकाश उस समय घर पर ही था. सुबहसुबह दरवाजे पर पुलिस को देख कर जयप्रकाश की जान हलक में फंस गई. उसे हिरासत में ले कर पुलिस थाने लौट आई.

एसओ संजय कुमार ने जयप्रकाश से उस की बेटी प्रिया के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने 27 जुलाई, 2019 को बेटी की गला घोंट कर हत्या कर दी, फिर उस की गरदन धड़ से अलग कर दी थी. बाद में सिर को प्लास्टिक के एक बोरे में भर कर उरुवा थाना क्षेत्र में फेंक दिया और धड़ वाले हिस्से और उस के पहने कपड़े दूसरे प्लास्टिक बोरे में भर कर गोला थाना क्षेत्र के चेनवा नाले में फेंक दिए थे.

प्रिया का सिर और धड़ बरामद करने के लिए पुलिस उसे मौके पर ले गई. उस की निशानदेही पर चेनवा नाले से धड़ बरामद कर लिया. 22 दिनों से धड़ पानी में पड़े रहने की वजह से सड़ कर कंकाल में तब्दील हो चुका था. पुलिस ने कंकाल को अपने कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. लेकिन उस के सिर का कहीं पता नहीं चला.

एसओ संजय ने जब उस से पूछा कि तुम ने अपनी ही बेटी की हत्या क्यों की, तो दबी जुबान में जयप्रकाश गुप्ता ने जो जवाब दिया, उसे सुन कर वही नहीं, वहां मौजूद सभी ने अपने दांतों तले अंगुलियां दबा लीं. कलयुगी पिता जयप्रकाश ने रिश्तों की मर्यादा का खून किया था.

कंकाल बरामद होने से करीब 22 दिनों से रहस्य बनी प्रिया के राज से परदा उठ चुका था. बहन की हत्या से राधा बहुत दुखी थी. उसे पिता की घिनौनी करतूत पर गुस्सा आ रहा था. राधा ने साहस का परिचय देते हुए पिता जयप्रकाश के खिलाफ धारा 302, 201, 120बी भादंसं के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी.

जयप्रकाश गुप्ता से पूछताछ के बाद इस मामले की जो घिनौनी कहानी सामने आई, उसे सुन कर सभी हैरान रह गए.

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करीब 55 वर्षीय जयप्रकाश गुप्ता मूलरूप से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के गोला थाना क्षेत्र के विशुनपुर राजा बुजुर्ग गांव का रहने वाला था. वह गल्ले का कारोबार करता था. करीब 15 साल पहले उस ने विशुनपुर राजा बुजुर्ग गांव में मकान बनवा लिया और परिवार के साथ रहने लगा था.

उस के परिवार में पत्नी और 2 बेटियां राधा और प्रिया थीं. जयप्रकाश को बेटे की चाहत थी लेकिन बेटा नहीं हुआ. तब उस ने बेटियों की परवरिश बेटों की तरह की. वह छोटे से खुशहाल परिवार के साथ जीवनयापन कर रहा था. दुकान से भी उसे अच्छी कमाई हो जाया करती थी.

जयप्रकाश गुप्ता की गृहस्थी की गाड़ी बड़े खुशहाल तरीके से चल रही थी. पता नहीं उस की गृहस्थी को किस की नजर लगी कि सब कुछ छिन्नभिन्न हो गया. बात साल 2009 की है. अचानक उस की पत्नी की मौत हो गई.

उस समय उस की दोनों बेटियां 10-12 साल के बीच की थीं. बेटियों की परवरिश की जिम्मेदारी जयप्रकाश पर आ गई थी. जयप्रकाश के बड़े भाई राधा और प्रिया को दिल से अपनी बेटी मानते थे और उन्हें उसी तरह दुलारते भी थे. प्रिया को तो वह बहुत ज्यादा लाड़प्यार करते थे. इसी तरह दोनों बेटियों की परवरिश होती रही.

बड़ी बेटी राधा शादी योग्य हो चुकी थी. राधा के सयानी होते ही जयप्रकाश के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. वह बेटी की जल्द से जल्द शादी कर देना चाहता था. उस के लिए वह लड़का देखने लगा. गोला इलाके में ही उसे एक लड़का पसंद आ गया तो जयप्रकाश ने साथ सन 2015 उस के में राधा की शादी कर दी.

राधा की विदाई के बाद घर में जयप्रकाश और उस की छोटी बेटी प्रिया ही रह गए. धीरेधीरे प्रिया भी सयानी हो चुकी थी.

बात 2 साल पहले की है. प्रिया बाथरूम से नहा कर बाहर निकल रही थी. गीले बदन से उस के कपड़े चिपक गए थे. इत्तफाक से उसी समय जयप्रकाश किसी काम से घर में आया.

उस की नजर बेटी प्रिया पर पड़ी तो उस की आंखों में एक अजीब सी चमक जाग उठी और उस के शरीर में वासना के कीड़े कुलबुलाने लगे. उस वक्त उसे प्रिया बेटी नहीं, एक औरत लगी. वह उस के तन को नोचने की सोचने लगा.

इस के बाद जयप्रकाश यही सोचता रहा कि प्रिया को कब और कैसे अपनी हवस का शिकार बनाए. इसी तरह एक सप्ताह बीत गया. एक रात प्रिया जब अपने कमरे में गहरी नींद में सो रही थी, तभी जयप्रकाश दबेपांव उस के कमरे में पहुंचा और सो रही बेटी को अपनी हवस का शिकार बना लिया. पिता के कुकृत्य से प्रिया बिलबिला उठी.

हवस पूरी कर के जयप्रकाश ने प्रिया को धमकाया कि अगर उस ने किसी से कुछ भी कहा तो अपनी जान से हाथ धो बैठेगी. पिता की धमकियों से वह बुरी तरह डर गई और अपना मुंह बंद कर लिया. उस दिन के बाद से जयप्रकाश प्रिया को अपना शिकार बनाता रहा.

क्रमश:

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

   सौजन्य: मनोहर कहानियां           

हत्यारी मां

शनिवार, 18 मई की आधी रात से ज्यादा बीत चुकी थी. कोटा के बोरखेड़ा इलाके की सरस्वती कालोनी में निस्तब्धता छाई थी जिसे रहरह कर भौंकते कुत्तों की आवाज भयावह बना रही थी. कालोनी की गली नंबर 4 गहरे अंधेरे में डूबी हुई थी. गली में स्ट्रीट लाइट्स थीं, लेकिन एक भी लाइट रोशन नहीं थी. गली के मोड़ पर स्थित मकान नंबर 17 पर लिखा था, शुभम कुंज. बरामदे से आ रही मैली रोशनी में नाम पढ़ पाना मुश्किल था.

इस दोमंजिले मकान में सामने प्रथम तल के हिस्से में पहले बरामदा था, जिस में मद्धिम सी लाइट जल रही थी. उस के बाद बेडरूम था, जिस में गहरा अंधेरा था.

बेडरूम में अलगअलग पलंग पर कैलाबाई, सीताराम और दीपिका सोए थे. दीपिका के पास उस का 5 महीने का बेटा शिवाय भी सोया था.

लगभग 3 बजे टौयलेट जाने के लिए उठे सीताराम ने लाइट जलाई तो उस का दिमाग झनझना कर रह गया. दीपिका की बगल में लेटा 5 महीने का बेटा शिवाय गायब था. जबकि दीपिका गहरी नींद में सो रही थी.

सीताराम को हैरानी हुई कि बच्चा गायब है और नींद में गाफिल दीपिका को पता तक नहीं कि बच्चा कहां है. सीताराम की समझ में नहीं आया कि 5 महीने का बच्चा कहां गया. उस ने चीखते हुए दीपिका और अपनी सास कैलाबाई को जगाया. दीपिका अलसाई सी उठी तो उस ने उसे झिंझोड़ते हुए पूछा, ‘‘शिवाय कहां है?’’

‘‘कहां है शिवाय?’’ दीपिका ने आंखें मलते हुए उसी का सवाल दोहराया तो सीताराम गुस्से से उबल पड़ा.

‘‘यही तो मैं तुम से पूछ रहा हूं. कहां है शिवाय?’’ सीताराम पत्नी पर बुरी तरह झल्लाया, ‘‘तुम उलटा मुझ से सवाल कर रही हो.’’

इधरउधर ताकती निरुत्तर दीपिका को सीताराम ने झिंझोड़ दिया, ‘‘अभी तक तुम्हारी खुमारी नहीं उतरी? मैं पूछ रहा हूं शिवाय कहां है? कहां है हमारा बच्चा?’’ इस के साथ ही सीताराम बिलख उठा.

इस के बाद दीपिका समझ गई कि बच्चा गायब है. उस ने रोतेरोते बिस्तर खंगाल लिया. जब शिवाय कहीं नजर नहीं आया तो उस की रुलाई फूट पड़ी, ‘‘मेरा लाल?’’

रात में चीखपुकार मची तो मकान में हड़कंप मच गया. मकान के पिछवाड़े रहने वाले किराएदार और निचले हिस्से में रहने वाले घर वाले भी ऊपर आ गए. जब उन लोगों को बात समझ में आई तो सभी हैरान रह गए कि 5 माह के बच्चे को कौन ले गया.

लोगों ने घर का कोनाकोना छान मारा तभी सीताराम को सास कैलाबाई की चीख सुनाई दी, ‘‘अरे बेटा, गजब हो गया.’’ आवाज छत से आई थी. सीताराम घर वालों के साथ छत पर गया. कैलाबाई बिलखती हुई पानी की टंकी तरफ इशारा कर रही थी, ‘‘अरे मुन्ना तो यहां पड़ा है.’’

बदहवास सीताराम पानी की टंकी की तरफ दौड़ा. टंकी का ढक्कन खुला हुआ था और शिवाय पानी में डूबा हुआ था. बच्चे को पानी में डूबा देख कर सीताराम के रोंगटे खड़े हो गए. गुस्से से पूरा बदन सुलग उठा.

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सीताराम ने जल्दी से बच्चे को टंकी से निकाला और अपने घर वालों के साथ जेके लान अस्पताल की तरफ दौड़ा. डाक्टरों ने बच्चे का इलाज शुरू किया भी. लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका. नि:संदेह मामला हत्या का था. मैडिको लीगल केस होने की वजह से डाक्टरों ने इस की इत्तला पुलिस को दे दी.

बोरखेड़ा के थानाप्रभारी हरेंद्र सोढ़ा सूचना मिलते ही छानबीन के लिए अस्पताल पहुंच गए. डाक्टरों ने संदेह व्यक्त किया कि बच्चे को संभवत: गला दबाने के बाद पानी की टंकी में डाला गया होगा.

इंसपेक्टर सोढ़ा बच्चे के शव को देख कर हैरान रह गए. 5 माह के बच्चे के साथ यह क्रूरतम अपराध था. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजना चाहा तो घर वाले अड़ गए. लेकिन सीआई सोढ़ा ने उन्हें समझाया कि मामला हत्या का है, इसलिए पोस्टमार्टम जरूरी है.

आखिरकार परिजन मान गए. पुलिस ने मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने के बाद शव घर वालों को सौंप दिया. पुलिस ने बच्चे के पिता सीताराम की रिपोर्ट पर हत्या का केस दर्ज कर लिया.

थानाप्रभारी सोढ़ा ने वारदात की सूचना उच्च अधिकारियों को दे दी और सुबह 6 बजे अस्पताल से सरस्वती कालोनी पहुंच गए. तब तक एडिशनल एसपी राजेश मील और सीओ अमृता दुहन भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे.

सूचना मिलने पर एसपी दीपक भार्गव भी घटनाक्रम पर आ गए. क्राइम टीम और डौग स्क्वायड को भी बुला लिया गया था. टीम के साथ आए फोटोग्राफर ने मृत बच्चे के विभिन्न कोणों से फोटो लिए.

प्रशिक्षित कुत्ते को शिवाय के कपड़े सुंघा कर छोड़ा गया तो वह ट्रेनर के साथ एक पलंग के चारों तरफ घूमा और कमरे से सीधा निकल कर छत पर जाने वाली सीढि़यों की तरफ दौड़ा. सीढि़यां चढ़ कर वह पानी की टंकी के पास पहुंच कर रुक गया.

फोरैंसिक टीम ने 11 जगह से फिंगरप्रिंट उठाए. सीताराम के पलंग के अलावा छत पर रखी टंकियों से भी फिंगर प्रिंट उठाए गए. मकान की छत पर 4 टंकियां थीं.

उन में 3 काले रंग की और एक सफेद रंग की थी. शिवाय को कमरे के ठीक ऊपर रखी सफेद रंग की टंकी में डुबोया गया था. साढ़े 5 सौ लीटर की यह टंकी 80 प्रतिशत भरी हुई थी.

पुलिस अधिकारियों ने मकान के बाहर और बरामदे में लगे 2 सीसीटीवी  कैमरों को भी देखा. लेकिन उस में कोई भी बाहरी शख्स दिखाई नहीं दिया. पुलिस इस मुददे पर संशय में ही रही कि कमरे की कुंडी भीतर से बंद थी या नहीं. बैडरूम का दरवाजा गैलरी की तरफ खुलता था. लगभग 4 फीट की गैलरी में बाथरूम और टौयलेट था.

पुलिस अधिकारियों ने झांक कर देखा, लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, जिस से यह आभास होता कि हत्यारा कहीं छिप कर बैठा रहा होगा. गैलरी से सीढि़यां नीचे भी जाती थीं और छत पर भी.

नीचे जाने वाली सीढि़यों पर उतरने के लिए दरवाजा खोलना पड़ता था. चूंकि कैमरों में कुछ नहीं मिला था, इस दरवाजे पर संदेह करना व्यर्थ था. छानबीन के दौरान पुलिस एक ही नतीजे पर पहुंची कि बैडरूम में दीपिका, सीताराम और कैलाबाई ही थे. यानी बाहर का कोई व्यक्ति नहीं आया था.

पुलिस ने मृत शिवाय की मौसी रत्ना गौड़ से पूछताछ की, जो ग्राउंड फ्लोर पर रहती थी. रत्ना गौड़ की बातों से कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं. मसलन, शिवाय सीताराम दंपति का पहला बेटा नहीं था. उन के यहां शिवाय से पहले भी 2 संतानें हुई थीं, वह भी बेटे. रत्ना का कहना था पहले बेटे की मौत श्वास नली में दूध चले जाने से हुई और दूसरे बेटे के दिल में छेद था.

यही उस की मौत का कारण बना. रत्ना ने बताया कि 2 बच्चों की मौत के बाद दीपिका गुमसुम सी रहने लगी थी. रत्ना ने यह भी बताया कि उस का किसी से मिलनाजुलना भी नहीं के बराबर था.

सीताराम ने बताया कि उस की सास कैलाबाई गांव में रहती थीं. नाती को देखने और संभालने के लिए वह अकसर आती जाती रहती थीं. फिलहाल भी कैलाबाई इसीलिए आई हुई थीं. कैलाबाई भी उन के कमरे में भी सोई हुई थीं.

बातचीत करने के बाद पूरा परिवार 10 बजे सो गया था. रात 11 बजे उस की नींद खुली तो दीपिका बच्चे को दूध पिला रही थी. पत्नी को यह कह कर मैं फिर सो गया कि मुन्ने को डकार दिला कर सुलाना. लेकिन रात 3 बजे नींद खुली तो कहतेकहते… सीताराम की हिचकियां बंध गईं.

घटना के बाद से दीपिका रोरो कर बेहाल थी. ऐसी स्थिति में उस पर शक करना बेमानी था. ऐसे गमगीन माहौल में एडिशनल एसपी राजेश मील को पूछताछ करना उचित नहीं लगा.

कोटा के बोरखेड़ा थानांतर्गत एक कालोनी है- सरस्वती कालोनी. इस कालोनी की गली नंबर 4 में स्थित 17 नंबर का मकान ‘शुभम कुंज’ रविरत्न गौड़ का है. रविरत्न गौड़ अपनी पत्नी कैलाबाई के साथ अंता कस्बे में रहते हैं.

उन के इस मकान में 2 बेटियों के परिवार और 2 किराएदार यानी 4 परिवार रह रहे थे. रविरत्न गौड़ की छोटी बेटी दीपिका अपने पति सीताराम के साथ इस मकान की पहली मंजिल पर सामने के हिस्से में रहती थी. सीताराम शिक्षक था. उस की तैनाती ग्रामीण क्षेत्र में थी.

दीपिका कोटा के महाराव भीमसिंह अस्पताल में टेक्नीशियन के पद पर काम कर रही थी. मकान के ग्राउंड फ्लोर पर दीपिका की बहन रत्ना गौड़ अकेली रहती थी. रविरत्न गौड़ और उन की पत्नी कैलाबाई जब कोटा आते थे तो रत्ना वाले हिस्से में ठहरते थे.

यह संयोग ही था कि घटना वाली रात को कैलाबाई कोटा आई हुई थीं. रात में दीपिका और दामाद के साथ बातचीत करते हुए 10 बज गए तो वह उन्हीं के कमरे में सो गईं.

सीताराम और दीपिका का विवाह 16 साल पहले 2003 में हुआ था. इस बीच उन के 2 बच्चे हुए और काल कवलित हो गए. इस घटना के दौरान दीपिका मातृत्व अवकाश पर थी जो अब खत्म होने को था. उसे सोमवार 20 अगस्त को ड्यूटी जौइन करनी थी. दीपिका ने जिस तरह सोशल मीडिया पर बेटे शिवाय के फोटो शेयर किए थे, उस ने पुलिस को काफी प्रभावित किया.

पुलिस के लिए हैरानी की बात यह थी कि रविवार 19 मई को 5 माह के मासूम की हत्या की खबर सोशल मीडिया पर तो तेजी से फैली लेकिन कालोनी की गली नंबर 4 में किसी को इस बात की भनक तक नहीं लगी थी.

पुलिस के संदेह के दायरे में 3 व्यक्ति थे- सीताराम, दीपिका और कैलाबाई. तीनों के मृतक शिवाय से रक्त संबंध थे. लेकिन तफ्तीश  के दौरान पुलिस को एक के बाद एक मिली जानकारियां दीपिका की तरफ इशारा कर रही थीं.

पूछताछ के दौरान थानाप्रभारी सोढ़ा को सीताराम की एक बात कील की तरह चुभ रही थी कि पिछले एक महीने से दीपिका का व्यवहार अचानक बदल गया था.

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पता नहीं क्यों वह इस बात की रट लगाए हुए थी कि मेरी छुट्टियां खत्म हो रही है. ड्यूटी पर जाऊंगी तो शिवाय को कैसे संभालूंगी. सीताराम के आश्वस्त करने के बाद भी वह फिर उसी ढर्रे पर आ जाती थी.

सीताराम के इस बयान से पुलिस के संदेह को बल तो मिला, लेकिन इस की पुष्टि एक निजी अस्पताल के रिकौर्ड से हुई. रिकौर्ड के मुताबिक करीब 20 दिन पहले भी दीपिका ने शिवाय का गला घोंटने का प्रयास किया था.

तब शिवाय निजी अस्पताल में करीब एक सप्ताह तक भरती रहा था. इस बीच पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. मैडिकल बोर्ड में शामिल डाक्टरों के मुताबिक दुपट्टे से बच्चे का गला घोंटने का प्रयास किया गया था. लेकिन इस से उस की मौत नहीं हुई थी.

बाद में उसे पानी की टंकी में डाला गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शिवाय के गले पर नीले निशान पाए गए थे.

पुलिस अधिकारियों ने दीपिका के व्यवहार को ले कर महाराव भीम सिंह अस्पताल में उस के साथ काम करने वाले सहकर्मियों से भी बातचीत की. लगभग सभी की एक ही प्रतिक्रिया थी कि दीपिका न केवल व्यवहार कुशल थी बल्कि अपने काम के प्रति भी पूरी तरह समर्पित थी.

सहकर्मियों का यह भी कहना था कि उस के व्यवहार से ऐसा कभी नहीं लगा कि वह मानसिक रूप से परेशान थी. अलबत्ता उसे अस्पताल से घर ले जाने  और लाने वाले आटो चालक ने इतना जरूर कहा कि यह बेहद गुस्सैल थी.

गुस्सा आने पर वह कुछ भी भला बुरा कहने से नहीं चूकती थी. अलबत्ता कुल मिला कर वह ठीकठाक थी. सहकर्मियों से ले कर आटो चालक के उत्तर से पुलिस अधिकारी उलझन में पड़ गए. तभी एसपी दीपक भार्गव ने अपनी पैनी निगाहों से समस्या के समाधान के लिए जांच को नई दिशा दी.

भार्गव साहब ने जांचकर्ताओं से कहा कि दीपिका का मोबाइल खंगालो. मोबाइल में पता चलेगा कि वो क्या देखती थी, उस का रुझान किस तरफ था. एसपी भार्गव का कहना था कि किसी की मानसिक  स्थिति की जानकारी लेने के लिए मोबाइल सब से अच्छा साधन हो सकता है.

इस का नतीजा काम का साबित हुआ. दीपिका के मोबाइल से एक चौंकाने वाला रहस्योदघाटन हुआ. पता चला कि फुरसत के वक्त वह हौरर फिल्में देखती थीं. रात को सब के सो जाने के बाद हौरर फिल्म देखने के लिए उस की आंखें मोबाइल की स्क्रीन पर गड़ी रहती थीं. घटना की रात भी वह हौरर फिल्म देखने के बाद सोई थी.

एडिशनल एसपी राजेश मील ने जब यह बात एसपी साहब को बताई तो उन का कहना था यह भी एक तरह का नशा है. नशे की झोंक में अपराध का जुनून सवार होता है. तब आदमी वैसा ही कुछ करने को उतारू हो जाता है, जैसा देखता है. एसपी साहब ने कहा कि दीपिका से मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ करने की कोशिश करो.

एडिशनल एसपी राजेश मील की देखरेख में पुलिस अधिकारियों अमृता दुलहन और हरेंद्र सोढ़ा ने दीपिका, उस के पति सीताराम और कैलाबाई को सामने बिठा कर दीपिका से पूछताछ शुरू की तो वह पहले ही सवाल पर उबल पड़ी. उस ने सवाल के बदले सवाल किया कि कोई मां अपने बेटे को कैसे मार सकती है?

गुस्से से उफनती हुई दीपिका पुलिस पर आरोप लगाने पर तुल गई, ‘‘आप मुझे बेवजह फंसाने की कोशिश कर रहे हैं.’’

उस का गुस्सा यही नहीं थमा, उस ने पति सीताराम को भी लपेटे में ले कर कहा, ‘‘यह सब तुम्हारी करनी है. याद रखना मुझे फंसाओगे तो तुम भी नहीं बचोगे.’’ सीताराम दीपिका के तानों से स्तब्ध रह गया. उस के मुंह से बोल तक नहीं फूटे.

सीओ अमृता दुहन जैसा चाहती थीं वैसा ही हुआ. दीपिका का गुस्सा बुरी तरह उफान पर था. अमृता दुहन ने मौका देख सवाल किया तो तीर निशाने पर लगा. उन्होंने पूछा, ‘‘20 दिन पहले शिवाय को क्या हुआ था, जो तुम ने उसे एक निजी अस्पताल में दाखिल कराया था?’’

गुस्से में उफनती दीपिका की जैसे घिग्घी बंध गई. लोहा गरम था, अमृता दुहन ने उसे फिर निशाने पर लिया, ‘‘तुम हौरर फिल्में देखती हो? घटना की रात तुम ने जो फिल्म देखी, उस में क्या बताया गया था.’’

गुस्से के मारे दीपिका का चेहरा सुर्ख हो गया. वह तड़प कर पुलिस अधिकारियों की तरफ मुड़ी और जहरीले लहजे में चिल्ला कर बोली, ‘‘हां, मैं ने ही मार दिया शिवाय को, नहीं है मुझे बच्चे पसंद… बच्चा चाहे किसी का भी हो मुझे किसी का बच्चा नहीं सुहाता…?’’

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सीताराम और कैलाबाई के चेहरे सफेद पड़ चुके थे. जबकि पुलिस अधिकारियों के चेहरों पर मुसकराहट थी. पुलिस ने शनिवार एक जून को दीपिका को अदालत में पेश किया जहां से उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

पुलिस के अनुसार इस वारदात के बाद पहले 2 बच्चों की मौतें भी संदेह के दायरे में आ गई हैं. उन की जांच की जा रही है.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

फेसबुक की दोस्ती का जंजाल: भाग 2

फेसबुक की दोस्ती का जंजाल: भाग 1

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आखिरी भाग

पति की बात सुन कर वह बहुत खुश हुई. इस के 5-6 दिन बाद सुनीता के मोबाइल पर अंजान नंबर से काल आई. उस ने काल रिसीव की तो एक शख्स ने कहा, ‘‘क्या आप सुनीता आर्य बोल रही हैं?’’

सुनीता ने ‘हां’ कहा तो वह बोला, ‘‘फिनलैंड में आप के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है, गंभीर आपराधिक धारा लगी है. अब आप को कई साल जेल में गुजारने होंगे.’’

यह सुन कर सुनीता कांपने लगी, डरतेडरते उस ने कहा, ‘‘मगर मेरा कुसूर क्या है?’’

‘‘आप ने डेविड सूर्ययन द्वारा स्मलिंग का सोना भारत मंगवाने का षड्यंत्र रचा, उसे जब्त कर किया गया है. डेविड ने आप का नाम बताया है. जल्द ही कस्टम विभाग की टीम आप की गिरफ्तारी के लिए आ रही है.’’

यह सुन कर सुनीता के हाथपांव फूल गए वह घबराते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ करो. मैं ने कोई गलती नहीं की है. मेरा कोई कसूर नहीं है.’’

उधर से आवाज आई, ‘‘मैडम, आप लोग सच्चे हो या झूठे यह तो यहां की अदालत ही तय करेगी. मगर, मुझे आप एक भली महिला जान पड़ती हैं. इसलिए यदि आप चाहें तो आप की कुछ मदद कर सकता हूं.’’

‘‘हां भैया, मदद करो.’’ सुनीता गिड़गिड़ाई.

‘‘तो सुनो, मैं तुम्हारा नाम आरोपियों की सूची से हटा दूंगा. लेकिन इस के एवज में 5 लाख रुपए देने होंगे, वह भी आज ही.’’

डरीसहमी सुनीता ने स्वीकार कर लिया और उसी दिन बताए गए बैंक अकाउंट में 5 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए. इस के बाद उस की जान में जान आई. वह सोचने लगी कि दोस्ती कर के वह कहां, किस जाल में फंस गई. यह फेसबुक की दोस्ती तो उसे बहुत महंगी पड़ गई.

इस बीच सुनीता को फिर फोन आया. उसे डरायाधमकाया गया और कहा गया कि ऊपर के अफसरों का मुंह भी बंद करना है इसलिए और पैसे भेजो. इस तरह सुनीता ने बताए गए बैंक खातों में धीरेधीरे 44 लाख रुपए जमा करा दिए.

अब वह डरीसहमी सी रहती, जाने क्या होगा, मामला खत्म हो जाएगा या फिर उसे जेल हो जाएगी. यह सोचसोच कर उस का स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा. आखिरकार एक दिन उस ने पति चैतूराम को सारी बातें बता दीं और सुबकसुबक कर रोने लगी.

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पत्नी के कारनामे सुन चैतूराम की आंखें फटी की फटी रह गईं. उन्होंने पत्नी को आश्वासन दिया और कहा कि तुम ने इतने पैसे ट्रांसफर कर दिए और मुझे बताया तक नहीं.

चैतूराम पढ़ेलिखे शख्स थे. उन्होंने पत्नी को भरोसा देते हुए कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो. मैं कल ही एसपी साहब से मिलूंगा.’’

‘‘इस से तो मैं खुद ही फंस जाऊंगी, मेरा क्या होगा?’’ सुनीता घबराते हुए बोली.

‘‘तुम बिलकुल चिंता न करो, तुम्हें कुछ नहीं होगा.’’ पति ने समझाया.

दूसरे दिन चैतूराम राजनांदगांव के एसपी कमल लोचन कश्यप के पास पहुंचे और उन्हें पत्नी के साथ घटी घटना की सारी जानकारी बता दी. चैतूराम की बात सुन कर एसपी समझ गए कि उन के साथ साजिशन ठगी हुई है. उन्होंने चैतूराम से कहा कि तुम लोगों को ठगा गया है. इसलिए तुम अभी कोतवाली जाओ और मामले की रिपोर्ट लिखाओ.

एसपी साहब के निर्देश पर चैतूराम पत्नी सुनीता को ले कर पहली दिसंबर, 2018 को लालबाग पहुंचे और कोतवाली प्रभारी एलेक्जेंडर कीरो से मिल कर उन्हें पूरी वस्तुस्थिति से अवगत कराया. कोतवाली प्रभारी ने सुनीता की तरफ से अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 66 , 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर उन का बयान दर्ज किया.

उन्होंने चैतूराम को बताया कि यह मामला किसी कस्टम पुलिस का कतई नहीं है. अगर कोई कस्टम फ्रौड होता तो पहले हमारे पास जानकारी आती.

कोतवाल एलेक्जेंडर कीरो ने एसपी कमल लोचन कश्यप के निर्देश पर एक टीम बना कर इस केस की जांच शुरू कर दी. जांच टीम ने सबसे पहले उन फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई, जिन नंबरों से सुनीता के पास काल आई थी.

जांच टीम ने जांच आगे बढ़ते ही चौंकाने वाले तथ्य सामने आते चले गए. जिस फोन नंबर से सुनीता को ठगा गया था, पुलिस ने उस पर काल की तो वह बंद मिला.

जांच में पता चला कि वह सिम दिल्ली से अपडेट होता रहा है. इस से यह बात सामने आ चुकी थी कि इस अपराध के तार दिल्ली से जुड़े हुए हैं. जिस अकाउंट में सुनीता आर्य ने पैसे ट्रांसफर किए थे, पुलिस उन लोगों तक पहुंच गई. इस के बाद तो मामला खुली किताब की तरह उजागर होता चला गया.

ठगों का जो मोबाइल फोन बंद चल रहा था, वह चालू हो गया. पुलिस ने जब उस नंबर पर बात की तो पता चला कि वह फोन नंबर झारखंड के रांची में रमन्ना नाम के व्यक्ति के पास है. पुलिस टीम रमन्ना के पास पहुंच गई. उस ने बताया कि इस नंबर का सिम कार्ड उसे दिल्ली में रहने वाले नाइजीरियन युवक स्टेनली ने बेचा था.

रमन्ना की निशानदेही पर पुलिस टीम दिल्ली स्थित 25 फुटा रोड चाणक्य पैलेस, नाइजीरियन कालोनी पहुंच गई. दिल्ली पुलिस के सहयोग से किबी स्टेनली ओकवो और नवाकोर एमानुएल को हिरासत में ले लिया. दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर पुलिस टीम राजनांद गांव लौट आई.

एसपी कमललोचन कश्यप भी ठगों की गिरफ्तारी की सूचना पर कोतवाली पहुंच गए. उन की मौजूदगी में दोनों आरोपियों से सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उन्होंने बताया कि ठगी की घटना को अंजाम देने के बाद वह उस फोन नंबर को किसी को बेच दिया करते थे.

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वे लोग पहले लोगों से फेसबुक पर दोस्ती करते थे, इस के बाद ज्वैलरी, मोबाइल फोन, महंगे गिफ्ट भेजने का झांसा दे कर उन से मोटी ठगी करते थे. पुलिस ने दोनों आरोपियों से लगभग 5 लाख रुपए भी बरामद करने में सफलता प्राप्त की. उन दोनों ने काफी रकम बीते 7 माह में अय्याशी में उड़ा दी थी.

इस के अलावा पुलिस ने भारतीय स्टेट बैंक से पत्र व्यवहार कर के संपूर्ण राशि जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी. पुलिस ने दोनों आरोपियों से पूछताछ कर उन्हें 19 अगस्त, 2019 को स्थानीय न्यायालय में पेश किया जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

कथा संकलन तक ये शातिर ठग जेल में बंद थे.

फेसबुक की दोस्ती का जंजाल: भाग 1

भाग 1

छत्तीसगढ़ राज्य के जिला राजनांदगांव में एक कस्बा है पारा. इसी कस्बे की रहने वाली सुनीता आर्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में स्टाफ नर्स थी. उस ने हाल ही में सोशल मीडिया के फेसबुक की रंगीन दुनिया  में कदम रखा था. नएनए लोगों को फ्रैंड बनाना, उसे कल्पनालोक के सुनहरे संसार में पहुंचा देता था.

फेसबुक के अनोखे संसार ने उस की रगरग में रूमानियत भर दी थी. नित्य नएनए फेसबुक फ्रैंड बनते जा रहे थे. उस के फेसबुक फ्रैंड की संख्या बढ़ती जा रही थी. इसी दौरान उस के पास डेविड सूर्ययन नाम के एक युवक की फ्रैंड रिक्वेस्ट आई. सुनीता आर्य ने उस की प्रोफाइल देखी तो पता चला वह युवक लंदन का रहने वाला है.

सुनीता मन ही मन खुश हुई कि वह कितनी भाग्यशाली है जो उस के पास लंदन से फ्रैंड रिक्वेस्ट आई है. उस ने खुशीखुशी उस की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

सुनीता आर्य के पति चैतूराम सरकारी नौकरी में थे. शाम को जब वह घर आए तो सुनीता ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आज तो कमाल हो गया.’’

चैतूराम ने उस की ओर देख कर पूछा, ‘‘क्या कमाल हो गया भई?’’

सुनीता बोली, ‘‘लंदन चलना है क्या?’’

पति ने आश्चर्य से सुनीता की ओर देख कर कहा, ‘‘लंदन? बात क्या है, बताओ तो?’’

सुनीता खिलखिला कर हंसती हुई बोली, ‘‘मेरी फेसबुक पर लंदन से फ्रैंड रिक्वेस्ट आई है. क्या नाम है उस का. हां, डेविड, मैं ने उसे अपना फ्रैंड बना लिया है.’’

‘‘तो क्या हो गया?’’ भौचक चैतूराम ने उस की ओर देखा.

‘‘तुम समझे नहीं, अब जब मैं ने लंदन के डेविड से दोस्ती कर ली है तो अगर वह भारत आया तो क्या हम से नहीं मिलेगा. क्या हम उस की खातिरदारी नहीं करेंगे. ऐसे ही अगर हम लंदन जाएं तो वहां कम से कम कोई एक पहचान वाला तो होगा. जो हमें सैरसपाटे करवाएगा है. तभी तो कह रही हूं कि लंदन चलना है क्या?’’

चैतूराम के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. उन्होंने कहा, ‘‘चलो ठीक है, लंदन जाएं या न जाएं कम से कम, कोई तो है जो तुम्हें जानता है, लेकिन यह तो बताओ उस ने तुम्हें खोजा कैसे?’’

‘‘देखो जी फेसबुक का संसार बहुत बड़ा है, सारी दुनिया समाई है. इस में डेविड को भारत में कोई फ्रैंड चाहिए होगा. उसे हमारी प्रोफाइल अच्छी लगी होगी. उस ने मुझे फ्रैंड रिक्वेस्ट भेज दी और मैं ने भी उस की रिक्वेस्ट को सहर्ष स्वीकार कर लिया.’’

उस दिन के बाद सुनीता और डेविड सूर्ययन के बीच फेसबुक के माध्यम से बातें होने लगीं. डेविड सुनीता को बहनजी कहता था और उसे बड़े सम्मान के साथ अपनी भावनाओं से अवगत कराता था.

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डेविड सुनीता से कभी ताजमहल, कभी लाल किला और कभी चारमीनार के बारे में जानकारी लेता था. इस के अलावा वह स्वयं भी लंदन में घूमने लायक जगहों की जानकारी देता था. इस तरह से उन के बीच दोस्ती बढ़ती गई.

बाद में कभीकभी डेविड सुनीता को फोन भी कर लेता था. सुनीता आर्य फेसबुक की दुनिया में खोई हुई थी, तभी एक दिन अचानक उस के मोबाइल पर डेविड सूर्ययन का फोन आया,  ‘‘बहनजी, मैं डेविड सूर्ययन बोल रहा हूं.’’

‘‘हां बताइए कैसे हैं आप?’’ सुनीता बोली.

यह सुन कर डेविड ने कहा, ‘‘बहनजी, मैं ठीक हूं और इस वक्त फिनलैंड में हूं. यह बहुत खूबसूरत देश है. मैं यहां आया हूं तो सोचा, अपनी बहन के लिए कुछ गिफ्ट ले लूं.’’

‘‘अरे भैया, इस सब की क्या जरूरत है. तकल्लुफ मत करो.’’ सुनीता बोली.

‘‘मैं यहां परिवार के साथ घूमने आया हूं. बाजार में घूमते हुए मुझे आप की याद आई तो आप के लिए भी गिफ्ट खरीद रहा हूं. बस आप इस के लिए मना मत करना.’’ डेविड ने कहा.

उस की इस तरह अनुनयविनय पर सुनीता को मन ही मन खुशी हुई. बाद में उस ने पति को बताया, ‘‘सुनो जी, आज डेविड का फोन आया था. सोचो तो क्या कहा होगा, उस ने?’’

‘‘बताओ, क्या कहा है तुम्हारे लंदन वाले भैया ने.’’ चैतूराम बोले.

सुनीता ने खुशीखुशी बताया, ‘‘डेविड ने मेरे लिए बहुत सारे गिफ्ट खरीदे हैं वह सपरिवार फिनलैंड में है. हमें तो यह भी पता नहीं कि फिनलैंड है कहां?’’

‘‘फिनलैंड भी एक छोटा सा देश है. यह जो नोकिया मोबाइल है, वहीं का है. मगर मैं यह नहीं समझा कि गिफ्ट का क्या चक्कर है. भई. तुम्हें साफसाफ मना कर देना चाहिए था. वैसे भी किसी अजनबी दोस्त से गिफ्ट लेना, क्या अच्छी बात है.’’

‘‘मैं ने  मना किया, मगर उस ने कुछ ऐसा कहा कि मैं मना नहीं कर पाई, सोचा कहीं उस का दिल न टूट जाए.’’

पत्नी की बातें सुन और उस के हंसते मुसकराते चेहरे को देख कर चैतूराम अपने काम में व्यस्त हो गए.

दूसरे दिन मोबाइल की घंटी बजी तो सुनीता ने खुशीखुशी मोबाइल उठा कर देखा किस की काल है. नंबर अंजान था उस ने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘क्या आप मैडम सुनीता बोल रही हैं.’’

‘‘हां, मैं सुनीता आर्य ही बोल रहा हूं.’’

‘‘जी नमस्कार, मैं फिनलैंड से कस्टम औफिसर स्टेनली बोल रहा हूं.’’

‘‘हां कहिए… क्या बात है?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘यहां से आप के नाम पर भारत भेजे जा रहे सोने के गहने कस्टम ने जब्त किए हैं. हम ने काररवाई को रोक रखा है. अगर आप को सोने के गहने छुड़ाने हों तो कस्टम चार्ज चुकाना होगा.’’ उस ने बताया.

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‘‘कितना चार्ज है.’’ सुनीता ने पूछा. वह सोचने लगी कि डेविड सूर्ययन ने उस के लिए  सोने के महंगे गहने ले लिए होंगे और बेचारा कस्टम में फंस गया होगा.

‘‘मैडम, आप को 61,500 रुपए चुकाने होंगे. फिर यह गोल्ड ज्वैलरी आप को भेज दी जाएगी.’’ उस ने बताया. सुनीता बड़ी खुश हुई और तुरंत बैंक जा पहुंची. उस ने बताए गए बैंक अकाउंट में तुरंत 61,500 रुपए भिजवा दिए. सुनीता ने फोन कर के उसे अकाउंट में पैसे जमा कराने की जानकारी भी दे दी. तभी उस व्यक्ति ने सुनीता को धन्यवाद देते हुए ज्वैलरी कस्टम फ्री हो जाने का आश्वासन दिया.

लेकिन कई दिन बीत जाने के बावजूद जब उस के पास वह ज्वैलरी नहीं पहुंची तो उस ने आखिरकार एक दिन पति चैतूराम को बताया कि उस ने डेविड द्वारा भेजी गई ज्वैलरी कस्टम में पकडे़ जाने पर 61,500 रुपए का कस्टम चार्ज भेज दिया था. मगर अभी तक उस के पास वह ज्वैलरी नहीं पहुंची.

पत्नी की बातें सुन कर चैतूराम बोले, ‘‘विदेश से गिफ्ट आने में समय तो लगेगा. थोड़ा इंतजार करो. जब तुम ने इतनी कस्टम ड्यूटी दी है तो जरूर वह 4-5 लाख रुपए का गिफ्ट होगा.’’

क्रमश:

वाचाल औरत की फितरत

लेखक: जगदीश शर्मा ‘देशप्रेमी’  

पहली अगस्त, 2019 का दिन था. उस वक्त सुबह के लगभग 11 बज रहे थे. उत्तराखंड के जिला हरिद्वार की प्रसिद्ध दरगाह पीरान कलियर के थानाप्रभारी अजय सिंह उस वक्त थाने में ही थे. तभी उन के पास एक व्यक्ति आया.

उस व्यक्ति ने अपना नाम भरत सिंह, निवासी हबीबपुर नवादा बताते हुए कहा कि उस का छोटा भाई रोजी सिंह कल से लापता है. उसे सभी जगहों पर ढूंढ लिया है लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल रही. उस का मोबाइल फोन भी कल से बंद आ रहा है.

‘‘उस की उम्र कितनी है और कैसे गायब हुआ?’’ थानाप्रभारी अजय सिंह ने पूछा.

‘‘सर, उस की उम्र यही कोई 20-22 साल है. वह हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र में स्थित एक फैक्ट्री में काम करता है. कल दोपहर बाद 3 बजे वह अपनी मोटरसाइकिल ले कर ड्यूटी पर जाने के लिए निकला था. उस ने जाते समय घर पर बताया था कि रात 11 बजे तक घर लौट आएगा. जब वह रात 12 बजे तक भी नहीं लौटा तो हम ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद मिला.’’

‘‘तुम्हारा भाई शादीशुदा था? उस की किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं सर, रोजी अविवाहित था. अभी कुछ दिन पहले ही इमलीखेड़ा की एक लड़की के साथ उस की मंगनी हुई थी और रही बात दुश्मनी की तो सर, उस की ही नहीं बल्कि हमारे परिवार में किसी की भी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है.’’ भरत सिंह ने बताया.

‘‘आप अपने भाई का फोटो दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दीजिए, हम अपने स्तर से उसे ढूंढने की कोशिश करेंगे.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

भाई की गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद भरत सिंह घर लौट आया.

चूंकि मामला जवान युवक की गुमशुदगी का था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर को दे दी. उन्होंने थानाप्रभारी को इस मामले की जांच के निर्देश दिए. लेकिन 2 दिन बाद भी थानाप्रभारी लापता रोजी सिंह के बारे में कोई जानकारी नहीं जुटा पाए तो एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर ने सीओ चंदन सिंह बिष्ट के निर्देशन में एक टीम गठित कर दी.

टीम में थानाप्रभारी अजय सिंह, महिला थानेदार शिवानी नेगी व भवानीशंकर पंत, एएसआई अहसान अली सैफ आदि को शामिल किया गया.

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पुलिस टीम ने सब से पहले रोजी सिंह के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. जांच में पता चला कि उस के फोन की आखिरी लोकेशन उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के बरला कस्बे में थी. इस के अलावा उस के मोबाइल से जिस नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी, वह मोबाइल नंबर शिक्षा नाम की युवती का था, जो गांव हबीबपुर नवादा की ही रहने वाली थी.

शिक्षा से पूछताछ करनी जरूरी थी, इसलिए थानाप्रभारी ने शिक्षा को थाने बुलवा लिया. उस से एसआई शिवानी नेगी ने पूछताछ की तो वह कहती रही कि रोजी के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है और न ही उस का रोजी से कोई ताल्लुक है.

‘‘तुम झूठ बोल रही हो, रोजी से तुम्हारी कल भी बात हुई थी. इतना ही नहीं, तुम्हारी इस से पहले भी काफी देरदेर तक बातें होती थीं. अब तुम इतना और बता दो कि 30 जुलाई को रोजी के गायब होने के बाद तुम मुजफ्फरनगर जिले के बरला कस्बे में क्या करने गई थीं?’’

शिवानी नेगी के मुंह से बरला कस्बे का नाम सुनते ही शिक्षा सहम गई और अपना सिर नीचे कर के रोने लगी. एसआई शिवानी नेगी ने उसे सांत्वना दे कर चुप कराया. तभी शिक्षा सुबकते हुए बोली, ‘‘मैडम, रोजी इस दुनिया में नहीं है. उस की हत्या कर दी गई है. हत्या में उस के भाई रोहित, आदेश और उन का दोस्त रजत भी शामिल थे.’’

हत्या की बात सुन कर पुलिस अधिकारी चौंक गए. थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘रोजी की लाश कहां है?’’

‘‘उस की हत्या बरला के गन्ने के एक खेत में ले जा कर की गई थी. लाश भी वहीं पड़ी होगी.’’ शिक्षा ने बताया.

पुलिस ने शिक्षा की निशानदेही पर उस के भाइयों आदेश, रोहित और इन के साथी रजत को गिरफ्तार कर लिया.

सीओ चंदन सिंह ने यह जानकारी एसपी (देहात) नवनीत सिंह को दी तो उन्होंने लाश बरामद करने के लिए एक पुलिस टीम घटनास्थल के लिए रवाना कर दी.

इस के बाद थानाप्रभारी के नेतृत्व में एक टीम चारों अभियुक्तों को ले कर बरला पहुंच गई. उन्होंने वहां की पुलिस से संपर्क किया, फिर थानाप्रभारी आरोपियों को साथ ले कर बरला पैट्रोल पंप के पीछे गन्ने के खेत में पहुंचे.

चारों आरोपियों ने पुलिस को वह जगह दिखा दी, जहां पर उन्होंने रोजी सिंह को घेर कर उस की हत्या की थी. इस के बाद पुलिस ने उन चारों की निशानदेही पर गन्ने के खेत से रोजी का शव बरामद कर लिया.

रोजी के सिर का कुछ हिस्सा किसी जानवर ने खा लिया था, दूसरे गरमी की वजह से उस का शव काफी गल गया था. प्राथमिक काररवाई में बरला पुलिस द्वारा रोजी के शव का पंचनामा भरा गया.

घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने रोजी सिंह का शव पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल मुजफ्फरनगर भेज दिया.

अगले दिन हरिद्वार के एसएसपी सेंथिल अवूदई कृष्णराज एस. ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर चारों आरोपियों को मीडिया के सामने पेश किया और रोजी की हत्या का खुलासा कर दिया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद रोजी सिंह की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

शिक्षा रुड़की क्षेत्र के गांव नगला इमरती की रहने वाली थी. करीब 7 साल पहले उस की शादी हबीबपुर नवादा निवासी जोगेंद्र से हुई थी. 3 बच्चे होने के बाद भी उस का रूपयौवन बरकरार था. करीब 2 साल पहले पड़ोस के रहने वाले रोजी सिंह से उस का चक्कर चल गया था. रोजी सिंह अविवाहित था, जिस पर शिक्षा पूरी तरह से फिदा थी. दोनों अकसर खेतों में जा कर रंगरलियां मनाते थे.

जब उन दोनों के अवैध संबंधों की जानकारी शिक्षा के पति जोगेंद्र को हुई तो उस ने पत्नी को परिवार की इज्जत की दुहाई देते हुए बहुत समझाया, मगर वह नहीं मानी. उस के ऊपर तो रोजी सिंह के इश्क का जबरदस्त भूत सवार था. वह उस के साथ जीनेमरने की कसमें खा चुकी थी.

अंत में जोगेंद्र ने समाज में हो रही बदनामी के कारण शिक्षा को 25 मई, 2019 को घर से निकाल दिया. इस के बाद जोगेंद्र ने इस मामले की सूचना स्थानीय इमलीखेड़ा पुलिस चौकी को भी दे दी थी, मगर पुलिस ने मामले को पतिपत्नी विवाद बता कर जोगेंद्र को महिला हेल्पलाइन केंद्र रुड़की जाने की सलाह दी.

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पति द्वारा घर से निकाल देने के बाद शिक्षा अपने मायके में जा कर रहने लगी. लेकिन उस का अपने प्रेमी रोजी सिंह से संपर्क बराबर बना रहा. फोन पर दोनों बात करते रहते थे और समय निकाल कर मिल भी लेते थे.

रोजी के कारण शिक्षा को पति से तो अलग होना ही पड़ा, साथ ही मायके में भी उसे काफी अपमान झेलना पड़ रहा था. मगर रोजी के प्रेम के कारण वह सब सहन कर रही थी. कुछ दिनों पहले शिक्षा को पता चला कि रोजी की मंगनी तय हो गई है. इस बारे में शिक्षा ने रोजी से बात की तो उस ने बताया कि घर वालों के दबाव में उसे शादी करनी पड़ रही है.

प्रेमी का यह जवाब सुन कर वह तिलमिला गई. उस के मन में रोजी के प्रति नफरत पैदा हो गई. क्योंकि जिस रोजी के कारण वह ससुराल से निकाली गई थी, वही रोजी उसे छोड़ कर किसी और लड़की का होने जा रहा था.

रोजी से नफरत होने के कारण शिक्षा ने एक भयानक निर्णय ले लिया. वह निर्णय था रोजी की हत्या का. इस योजना में उस ने अपने 2 भाइयों रोहित व आदेश और उन के दोस्त रजत को भी शामिल कर लिया.

फिर शिक्षा ने एक योजना के तहत 30 जुलाई, 2019 को रोजी को शाम के समय रुड़की में दिल्ली रोड पर स्थित सैनिक अस्पताल तिराहे पर पहुंचने को कहा. शिक्षा ने कहा कि हमें बरला कस्बे में एक तांत्रिक के पास चलना है. रोजी निर्धारित समय पर मोटरसाइकिल से सैनिक अस्पताल तिराहे पर पहुंच गया. वहीं पर शिक्षा उस का इंतजार कर रही थी. वह रोजी के पीछे बाइक पर बैठ कर बरला की ओर चल दी.

योजना के अनुसार, उस के दोनों भाई रोहित व आदेश और उन का दोस्त रजत दूसरी बाइक से रोजी का पीछा करते हुए चलने लगे. शिक्षा प्रेमी के साथ बरला के पैट्रोल पंप के पास पहुंच गई.

तब तक अंधेरा घिर चुका था. वहां पहुंचने पर शिक्षा ने रोजी से कहा कि हमें जिस तांत्रिक के पास जाना है, वह पैट्रोल पंप के पीछे जंगल में मिलेगा. रोजी ने अपनी बाइक जंगल की तरफ मोड़ दी. तभी पीछा करते हुए रोहित, आदेश व रजत भी वहां पहुंच गए. उन्हें देख कर रोजी समझ गया कि मामला गड़बड़ है. वह घबरा कर वहां से भागने की कोशिश करने लगा. मगर रोहित व आदेश ने रोजी को दबोच लिया. उन्होंने उस पर डंडे से हमला कर दिया.

रोजी के सिर पर डंडा लगने से वह लहूलुहान हो गया. इस के बाद रोहित व आदेश ने तुरंत रोजी के गले में गमछा डाल कर खींच दिया, जिस से रोजी की मौके पर ही मौत हो गई.

रोजी की मौत के बाद शिक्षा के दोनों भाइयों ने रोजी के शव को खींच कर पास के गन्ने के खेत में डाल दिया. इस के बाद वे लोग रोजी की बाइक, मोबाइल व गमछे को दिल्ली रोड स्थित मंगलौर के निकट फेंक कर घर आ गए.

पुलिस ने शिक्षा, रोहित, आदेश व रजत से पूछताछ के बाद उन के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 302, 201, 34 के तहत केस दर्ज कर लिया. आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से 3 अगस्त, 2019 को उन्हें जेल भेज दिया गया.

रोजी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी पुलिस को मिल गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रोजी का शरीर ज्यादा गल जाने के कारण मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया. इस मामले में डाक्टरों ने उस का विसरा व डीएनए सुरक्षित रख लिया था.

कथा लिखे जाने तक आरोपी शिक्षा, रोहित, आदेश व रजत जेल में थे. केस की आगे की जांच थानाप्रभारी अजय सिंह कर रहे थे.

   —पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य:   मनोहर कहानियां  

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