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कम पानी की खेती: बूंद बूंद सिंचाई योजना

देशभर में अलगअलग जगहों पर मौसम का मिजाज भी अलगअलग देखा गया है. कहीं बहुत ज्यादा गरमी है, तो कहीं बहुत ज्यादा सर्दी. कहीं सूखा पड़ा है, तो कहीं बहुत ज्यादा बरसात. ऐसे में किसानों को बड़ा भारी नुकसान भी उठाना पड़ जाता है. किसान को होने वाले नुकसान की कुछ भरपाई की जा सके, इस के लिए केंद्र और राज्य सरकार की ओर से किसानों के लिए कई तरह की लाभकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिस का लाभ किसानों को मिल रहा है.

इसी क्रम में बिहार सरकार की किसानों के लिए एक खास योजना है. इस के तहत किसानों को सूखी खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, मतलब कम पानी में होने वाली खेती. इस के तहत किसानों को 50 फीसदी तक की सब्सिडी का फायदा दिया जाएगा. इस योजना की खास बात यह है कि इस में बूंदबूंद सिंचाई योजना को मुख्य रूप से शामिल किया गया है, ताकि कम से कम पानी में अधिक फसलें उगाई जा सकें. इस के लिए ड्रिप सिंचाई, सूक्ष्म सिंचाई आधारित शुष्क बागबानी योजना के तहत कम पानी में होने वाले शुष्क फलों के उत्पादन के लिए 0.60 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर तीन वार्षिक किस्तों में लागत और रोपण सामग्री के मद में होने वाले खर्च को पूरा करने के लिए लिए दिया जाएगा.

जो अधिकतम 0.30 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर अथवा लागत का 50 फीसदी अनुदान, जो भी कम हो, दिए जाने का प्रावधान योजना के तहत किया गया है. सिंचाई के लिए सिस्टम लगाने के लिए सरकार की ओर से सौ फीसदी तक अनुदान दिया जाएगा. सूखी खेती अपना कर किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं और पानी की बचत भी कर सकते हैं. सूखी खेती पर कितना अनुदान यह अनुदान उन्हीं किसानों को दिया जाएगा, जो सूखी खेती के लिए सरकार की ओर से दिए जाने वाले बूंदबूंद सिंचाई संयंत्र से खेती करेंगे. जिन्होंने अपने खेत में ड्रिप सिंचाई सिस्टम लगा रखा है या उन के खेतों में ड्रिप सिंचाई संयंत्र स्थापित किया जा रहा हो, वे इस के लिए आवेदन कर सकते हैं.

इस योजना के तहत किसान फलदार पौधे के लिए अधिकतम 4 हेक्टेयर और न्यूनतम 0.1 हेक्टेयर के लिए आवेदन कर सकते हैं. योजना का कार्यान्वयन किसान अपने खेतों की मेंड़ पर भी करवा सकते हैं. सूखी खेती के तहत फलदार पौधों की खेती के साथ ही किसान सब्जियों की खेती कर के भी अच्छाखासा लाभ कमा सकते हैं. फलदार पौधों के बीच की जगह पर किसान सब्जियां उगा सकते हैं. इस से किसानों को अतिरिक्त आमदनी होगी. इस के लिए सरकार 7,500 सब्जी पौधा प्रति हेक्टेयर एकीकृत उद्यान विकास योजना से किसानों की मांग के अनुरूप उपलब्ध कराएगी.

किसानों को प्रशिक्षण प्रदेश के किसानों को बिहार सरकार द्वारा सूखी खेती का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा, ताकि किसान उन्नत तरीके से खेती कर के अच्छा लाभ कमा सकें. योजना के तहत जिलेवार योजना संचालन के लिए 2,400 किसानों को सैंटर औफ ऐक्सीलैंस द्वारा प्रशिक्षण भी दिया जाएगा. फलों की खेती पर अनुदान इस योजना का संचालन बिहार के सभी राज्यों में किया जाएगा. इस योजना के तहत किसानों को आंवला, बेर, जामुन, कटहल, बेल, अनार, नीबू व मीठा नीबू आदि के फलदार पौधे किसान लगा सकते हैं.

किसानों को खेत में लगाने के लिए सैंटर औफ ऐक्सीलैंस, देसरी, वैशाली से पौध उपलब्ध कराई जाएगी. किसान अपनी मनपसंद पौध का चयन कर उस के पौधे ले सकते हैं. इस में फल पौध के अनुदान की राशि योजना की राशि से काट कर सैंटर औफ ऐक्सीलैंस, देसरी, वैशाली को उपलब्ध करा दी जाएगी. शुष्क बागबानी योजना के तहत सूखी खेती पर अनुदान लेने के लिए राज्य के किसान बिहार कृषि विभाग की आधिकारिक वैबसाइट द्धह्लह्लश्चर्//द्धशह्म्ह्लद्बष्ह्वद्यह्लह्वह्म्द्ग.ड्ढद्बद्धड्डह्म्.द्दश1.द्बठ्ठ पर आवेदन कर सकते हैं.

पवित्र बंधन : जीजासाली का अनोखा रिश्ता- भाग 3

जीजासाली का रिश्ता बड़ा ही पवित्र होता हैलेकिन इन में लड़ाईझगड़ा और नोकझोंक भी चलती रहती है. ठीक उसी तरह महिमा और विवेक का रिश्ता था. अकसर दोनों में नोकझोंक और शरारतें होती रहती थीं. लेकिन उन के बीच एकदूसरे के लिए प्रेम और सम्मान भी बहुत था. दोनों अकसर एकदूसरे की टांगखिंचाई करतेजिस से घर में मनोरंजन बना रहता था.

महिमा के बचपने पर कभीकभार मुक्ता उसे डांट देतीतो आगे बढ़ कर विवेक उस का बचाव करता और कहता कि खबरदारकोई उस की प्यारी साली को डांट नहीं सकता.

कभी अपने पापा को याद कर महिमा उदास हो जातीतो विवेक उसे बातों में बहलाता. जब कोई फैमिली मीटिंग या पार्टी वगैरह में महिमा बोर होने लगतीतो विवेक उसे बोर नहीं होने देता था. कितना भी व्यस्त क्यों न हो अपने काम मेंमहिमा के मैसेज का रिप्लाई वह जरूर करता था. महिमा को कालेज से आने में जरा भी देर हो जातीवह फोन पर फोन करने लगता. उस के ऐसे व्यवहार से मुक्ता खीज भी उठती कि क्या वह बच्ची हैजो गुम हो जाएगीऔर यह बिहार नहीं गुजरात है. इतना डरने की जरूरत नहीं है. लेकिनफिर भी विवेक को महिमा की चिंता लगी रहती थीजब तक कि वह घर वापस नहीं आ जाती. महिमा को वह अपनी जिम्मेदारी समझता था.

 

महिमा भी अपने बहनबहनोई का बहुत खयाल रखती थी. उन की गृहस्थी में खुशियां बनी रहेयही उस की कामना होती थी. कभी किसी बात पर विवेक और मुक्ता में कहासुनी हो जाती और दोनों एकदूसरे से बात करना बंद कर देतेतब महिमा ही दोनों के बीच सुलह कराती थीवरना तो इन के बीच कईकई दिनों तक बातचीत बंद रहती थी. जानती थी महिमा कि गलती उस की बहन की ही होती है ज्यादातरफिर भी वह झुकने को तैयार नहीं होती. जिद्दी है एक नंबर की शुरू से ही.

मुक्ता जितनी गुस्सैल स्वभाव की हैविवेक उतना ही सरल और शांत स्वभाव का. तभी तो महिमा अपना कोई भी सीक्रेट बहन को न बता कर विवेक को बताती थी. अपने दोस्तों के साथ फिल्म देखने जाना हो या कहीं घूमनेवह विवेक को बता कर जाती और विवेक भी उस के सीक्रेट को सीक्रेट ही रखतालेकिन चेताता जरूर कि वह अपना खयाल रखे. जमाना ठीक नहीं हैइसलिए किसी पर ज्यादा भरोसा न करे. वक्त पर घर आ जाया करे.  वह हमेशा महिमा का हौसला बढ़ाता और उस की पढ़ाई की तारीफ करते हुए उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देता.

महिमा विवेक से अपने दिल की बात खुल कर कह पाती थीकोई संकोच नहीं होता था उसे. लेकिन बहन से कुछ कहते उस की रूह कांपती थी.दरअसलमहिमा ग्रेजुएशन के बाद एमबीए‘ करना चाहती थीमगर उस के पापा इस बात के लिए राजी नहीं थे. वह तो अब महिमा की शादी करने की सोच रहे थे.

महिमा की मां नहीं थीइसलिए उस के पापा अपने जीतेजी महिमा का ब्याह कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते थे. मगर महिमा अभी आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती थी और इस बात के लिए अकसर बापबेटी में टंटा होता रहता था.

महिमा के पापा का कहना था कि शादी के बाद जो करना है करे. वह तो अपनी बड़ी बेटी मुक्ता के बारे में भी ऐसी ही राय रखते थे कि लड़कियां नौकरी नहीं कर सकतीं. उन का काम तो घर और बच्चे संभालना होता है. लेकिन शादी के बाद विवेक ने मुक्ता को आजादी दी कि वह जो चाहे कर सकती है. चलोमुक्ता को विवेक जैसा सुलझा हुआ पति मिल गया. लेकिन महिमा के साथ ऐसा नहीं हो पाया तो…और अब पहले जैसा जमाना नहीं रहा. आज औरत और मर्द कंधे से कंधा मिला कर चल रहे हैं. दोनों मिल कर अपनी गृहस्थी की गाड़ी चला रहे हैं.

इसी बात को जब विवेक ने महिमा के पापा यानी अपने ससुर को समझाया तो वह मान गए और आगे की पढ़ाई करने की अनुमति दे दी.विवेक ने यह भी कहा कि वे चिंता न करेंक्योंकि अब महिमा उन की भी जिम्मेदारी है.यहां आने के कुछ वक्त बाद ही महिमा का एडमिशन अहमदाबाद के एक अच्छे से कालेज में हो गया. सुबह तो वह अपनी बहन मुक्ता के साथ ही कालेज के लिए निकल जाती और शाम को उधर से आटो या कैब से घर आ जाती थी. लेकिन फिर रास्ता समझ आने के बाद खुद ही वह स्कूटी से कालेज जानेआने लगी थी.

मुक्ता को तो सुबह उठने की आदत नहीं थीइसलिए विवेक को अकेले ही वाक पर जाना पड़ता था. लेकिन महिमा जब से यहां आई हैविवेक को एक कंपनी मिल गई. दोनों सुबह वाक पर निकल जाते और गप्पें मारते हुए उधर से दूधसब्जी वगैरह ले कर वापस आ जाते. आने के बाद दोनों मिल कर चायनाश्ता बनातेतब जा कर मुक्ता उठती थी.

तू तो और भी फिट हो गई है वाक करकर के,” चाय का घूंट भरते हुए मुक्ता बोली, “अच्छा हैविवेक को भी कंपनी मिल गई.”“मैं तो कहती हूं दी कि आप भी वाक पर चला करोअच्छा लगेगा,” ब्रेड का टुकड़ा मुंह में डालते हुए महिमा बोलीतो हंसते हुए विवेक बोला, “यह कभी नहीं हो सकताक्योंकि उस की दीदी को नींद ज्यादा प्यारी है.”

ऐसी बात नहीं हैकल से दी हमारे साथ चलेंगीक्यों दी चलोगी न?”मगरमुक्ता ने यह बोल कर दोनों को चुप करा दिया कि बकवास मत करो ज्यादा. उसे वाक की कोई जरूरत नहीं हैवह ऐसे ही फिट है.

वाहक्या कौन्फिडेंस है,” हवा में हाथ लहराते हुए महिमा बोलीलेकिन मुक्ता का भाव देख सकपका कर चुप हो गई.इसी तरह महिमा को यहां आए एक साल पूरा हो गया और अब वह पढ़ाई के दूसरे साल में चली गई थी. उस का तो मन था कि पढ़ाई पूरी होने के बाद यहीं अहमदाबाद में ही उसे नौकरी मिल जाएक्योंकि यहां का रहनसहन उसे बहुत भाने लगा था. मगर उस के पापा इस बात के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे.

आज सुबह से ही विवेक की तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थीइसलिए वह औफिस से घर जल्दी आ गया.जीजूआप ठीक तो हैं न?” विवेक को सिर पर हाथ रखे देख महिमा ने पूछातो वह कहने लगा कि कुछ नहींबस जरा सिर भारी सा लग रहा थाइसलिए घर आ गया. आराम करूंगा तो ठीक हो जाएगा.मैं आप के लिए अदरक वाली चाय ले कर आती हूं,” कह कर वह तुरंत विवेक के लिए चाय बना लाई और उस के सिर में तेल की मालिश कीतो उसे जरा अच्छा लगा.

अरे विवेकक्या हुआ तुम्हें?” उसे सोता देख मुक्ता बोली, “अच्छा छोड़ोसुनो मेरी बात. एक खुशखबरी है कि मेरा ट्रांसफर मुंबई हो गया है. मैं ने बताया था न कि मेरे ट्रांसफर की बात चल रही है. मैं ने तो हां बोल दिया है.परमुक्ता मेरी तो तबीयत…” बोलतेबोलते विवेक को जोर से खांसी आ गई.

विवेक को खांसते देख दौड़ कर महिमा पानी ले आई और पिलाया. फिर सहारा दे कर उसे लिटायातब जा कर उस की खांसी कम हुई.क्या बोलना चाह रहे होबोलो न…” मुक्ता बोलीतो महिमा ने उसे इशारों से चुप रहने को कहा कि ये बातें बाद में हो जाएंगीपहले विवेक को आराम करने दोक्योंकि जब से वह औफिस से आए हैंतबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है उन की.

परहुआ क्या हैबताओ तो…?” अपनी आंखें अजीब सी घुमाती हुई मुक्ता बड़बड़ करने लगी कि जरूर  बाहर में कुछ उलटापुलटा खा लिया होगाइसलिए ऐसा हो रहा है. जरूरत क्या है बाहर का खाने कीलेकिन क्या अभी यह सब बातें करने का वक्त था?

महिमा जितना उसे इशारों से चुप रहने को बोल रही थीउतना ही वह बड़बड़ाती जा रही थी. हैरान थी महिमा कि कैसी औरत है येइसे अपने पति की तबीयत की जरा भी परवाह नहीं है?

जीजूअब कैसा लग रहा है आप को?“ विवेक के सिर पर हाथ फेरते हुए महिमा बोली. सच में बहुत गुस्सा आ रहा था उसे अपनी बहन पर कि जरा पूछती तो हुआ क्या हैनहींबस अपनी ही पड़ी है.

जीजूकुछ लाऊं आप के लिए चायकौफी या कुछ खाने के लिए. क्योंकि औफिस में भी आप ने लंच नहीं किया.लेकिनइशारों से विवेक ने यह कह कर मना कर दिया कि अभी वह आराम करना चाहता है.

ठीक है,” कह कर महिमा ने एक चादर ओढ़ा दिया. देखा तो मुक्ता जाने किस से बातें कर रही थी. महिमा को देखते ही फोन रख कर पूछने लगी कि अब विवेक कैसा है.

ठीक है दीआराम कर रहे हैं,” रात में भी वह उस बारे में विवेक से बात करना चाहती थीलेकिन वह सोया था तो बोल नहीं पाई. सोचा कि अब सुबह ही बात कर लेगी.लेकिनसुबह तो उस की आंखें ही नहीं खुल रही थीं. शरीर आग की तरह तप रहा था.

विवेक उठोक्या हुआ तुम्हेंमहिमा… इधर तो आओ. देखोविवेक को तेज बुखार है,” मुक्ता ने आवाज लगाई.क्या हुआ दीजीजू को बुखार है?” विवेक के सिर को छूते हुए महिमा घबरा गई, “ओहसिर तो आग की तरह तप रहा है. मैं… मैं अभी थर्मामीटर ले कर आती हूं. देखातो 1.4 डिगरी बुखार था.

दीबुखार तो बहुत ज्यादा है. आ… आप जल्दी से डाक्टर को फोन करोतब तक मैं ठंडे पानी की पट्टियां रखती हूं इन के सिर पर,” कह कर वह फ्रिज से बर्फ वाला पानी ले आई. लेकिनबुखार अभी भी कम नहीं हो रहा था.

दीडाक्टर को फिर से फोन लगाओ नकब आएंगे,” महिमा विवेक के बढ़ते बुखार से परेशान थी. मगर मुक्ता इस बात से ज्यादा परेशान थी कि कहीं उस की खराब तबीयत की वजह से उस का मुंबई जाना कैंसिल न हो जाए. फिर क्या कहेगी वह अपने बास सेकब से वह अपने तबादले के लिए कोशिश में थी और आज जब हुआ तो जाने यह लफड़ा कहां से आ गया. सोच कर ही उस का मन क्षुब्ध हो उठा. देखने के बाद डाक्टर ने दवाई दी और कहा कि अगर कल तक बुखार नहीं उतरता हैतो कुछ टैस्ट करवाने होंगे.

लेकिन आज दो दिन हो चुके थे और विवेक का बुखार जस का तस था.महिमा को इस बात का डर सता रहा था कि कहीं विवेक को डेंगू या मलेरिया न हो गया होक्योंकि बारिश के मौसम में इन सब बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. जांच से पता चला कि विवेक को चिकनगुनिया हुआ है और प्लेटलेट काउंट भी बहुत कम है.

दीअब क्या होगाजीजू ठीक तो हो जाएंगे न दी,” बोलते हुए महिमा का गला रुंध गया. हमेशा  हंसनेबोलने वाला और सब को खुश रखने वाला विवेक को बेड पर बीमार पड़े देख महिमा को जरा भी अच्छा नहीं लग रहा था.

ज्यादा भावुक होने की जरूरत नहीं है. तुम्हारे जीजू कोई बच्चे नहीं हैं. तबीयत खराब है तो ठीक भी हो जाएगी. इस में क्या है,” मुक्ता ने कहातो महिमा चुप हो गई. लेकिन उस का दिल अंदर से विवेक को देखदेख कर रो रहा था.चिंता तो मुझे इस बात की हो रही है महू कि अब मैं अपने बास से क्या कहूंगीलेकिन जाना तो पड़ेगा मुझेदेखतू संभाल लेना,” एकदम दृढ़ता से मुक्ता बोली.

तो तुम्हें जीजू की सेहत से ज्यादा अपनी नौकरी की पड़ी है दी,” कभी महिमा ने अपनी बहन से मुंह उठा कर बात नहीं की थीलेकिन आज उस से रहा नहीं गया.कैसी हो आप…यहां जीजू का बुखार उतरा नहीं है और आप को मुंबई जाने की पड़ी है 

विवेक तो कुछ बोल नहीं पा रहा थापर वह स्तब्ध था मुक्ता के ऐसे व्यवहार से. लेकिन यह कौन सी नई बात है. कभी मुक्ता ने अपने पति की फिक्र की हैजो आज करेगी. चाहे उस की तबीयत कितनी भी खराब क्यों न हो या वह बुखार से तड़प ही क्यों न रहा होमुक्ता को उस की जरा भी परवाह नहीं होती थी. बहुत होता तो औफिस जाने के पहले उस के सिरहाने दवा और पानी रख जाती और कहती, “खा लोठीक हो जाएगा. लेकिन यही विवेकमुक्ता की जरा सी भी तबीयत खराब होने पर अपना सारा कामकाज छोड़छाड़ कर उस के सिरहाने बैठा रहता थाजब तक कि वह ठीक नहीं हो जाती थी.

अपने मन में ही सोच विवेक अंदर ही अंदर कुहक उठा. लेकिन क्या फायदा बोलने काजब सामने वाले को बात समझ ही न आए तोइसलिए इशारों से उस ने महिमा को चुप रहने को कहाक्योंकि वह बेवजह घर में क्लेश नहीं चाहता था. जानता हैइस बात को ले कर मुक्ता बाद में उस का जीना हराम कर देगी.

देखो विवेकतबीयत तुम्हारी ऐसी ही नहीं रहने वाली. 2-3 दिन में ठीक हो जाओगे तुम और फिर महिमा तो है न तुम्हारी देखभाल करने के लिए. लेकिनअगर मैं मुंबई नहीं गई नतो इतना बड़ा मौका मेरे हाथ से चला जाएगा. जानते तो हो अगले साल मेरा प्रमोशन ड्यू है.

दीपागल हो गई हो आप?” गुस्से से महिमा बोली, “यहां आप का पति बीमार है और आप को अपने प्रमोशन की पड़ी हैजीजू से बढ़ कर आप की नौकरी है क्या दीनहीं जा पाओगी मुंबई तो क्या हो गयानहीं दीऐसा मत करोप्लीज,” मगरमुक्ता ने किसी की एक नहीं सुनी और मुंबई चली गई.

मन ही मन विवेक रो पड़ा. उस के दिल की हालत महिमा भी समझ रही थीपर क्या कहतीवह भी तो उस की बहन थी. लेकिन कोई इनसान इतना पत्थरदिल कैसे हो सकता हैसोच कर वह हैरान थी. कितना रोका उस नेहाथपैर भी जोड़ेपर मुक्ता नहीं मानी और चली गई.

5 दिन के बाद भी विवेक की तबीयत में कोई खास फर्क नहीं आया था. अब भी बुखार कभी 102 डिगरी तो कभी 105 डिगरी पर चला जाता था. ऊपर से हाथपैर की हड्डियों में भयंकर दर्द के कारण वह कराह उठता. सुबह के समय दर्द ज्यादा महसूस होता था. लेकिन महिमा दिनरात एक कर विवेक की सेवा में लगी रही. दवा और महिमा की सेवा के कारण धीरेधीरे विवेक की तबीयत में सुधार होने लगा. लेकिन शरीर की कमजोरी अभी भी बनी हुई थी. ज्यादा चलताफिरता तो थक जाता था. लेकिन महिमा के वक्तवक्त पर जूसफल वगैरह देते रहने से उस की वह कमजोरी भी गायब हो गई और अब वह पूरी तरह से स्वस्थ हो चुका था.

विवेक की तबीयत खराब होने की वजह से उस का कालेज जाना भी रुक गया था और इस बात का विवेक को भी बुरा लग रहा था.बसबसमेरी प्यारी साली साहेबाअब मैं बिलकुल ठीक हूं और तंदुरुस्त भी. अब मैं अपना खयाल खुद रख सकता हूंइसलिए प्लीजअब आप अपने कालेज के लिए रवाना हो जाएं. नहींनहींकोई बहाना नहीं. मैं ने कहा न कि अब मैं बिलकुल ठीक हूं और कल से मैं भी अपना औफिस ज्वाइन कर रहा हूं,” किचन का काम अपने हाथों में लेते हुए विवेक बोला. कहती रही महिमा कि अभी वह कमजोर हैं तो उन्हें अभी आराम की जरूरत हैमगर विवेक ने उस की एक न सुनी और घर के कामों में लग गया.

वैसेतुम्हारी वो दोस्त बड़ी प्यारी है. क्या नाम है उस का… सब्जियां काटतेकाटते विवेक रुक गया, “हांयाद आया पूर्णिमा नाम है न उस का?”

 

हू… पूर्णिमा ही नाम है उस का. क्यों जीजूबड़ा नाम जाना जा रहा है उस लड़की काइरादा क्या है जनाब कावकील हैं मैडमलगा देगी आईपीसी 354’, फिर पता चलेगा. समझेमेरे प्यारे जीजू?” झूठमूठ का गुस्सा दिखाते हुए महिमा बोलीतो विवेक कहने लगा कि वह तो बस यों ही पूछ रहा था.

 

अच्छा… यों ही पूछ रहे थेदी को फोन लगाऊं क्या?”

 

अरे नहींमाफ कर दो,” अपना कान पकड़ते हुए विवेक बोलातो महिमा को हंसी आ गई. तभी कालबेल की आवाज से दोनों उस बातों से हट कर उधर देखने लगे.

 

अभी कौन आ गया…?” लेकिन जब दरवाजे पर मुक्ता को खड़ा देखातो वह खुशी से उछल पड़ी.

 

महिमा कौन आया है…पेपर वाला आया हैतो कहना कल आए,” विवेक बोल ही रहा था कि सामने मुक्ता आ कर खड़ी हो गई. सामान सहित मुक्ता को देखातो विवेक भी हैरान रह गया, “मु… मु… मुक्ता तुम…”

 

विवेकमुझे माफ कर दो. मैं अपने स्वार्थ में यह भी भूल गई कि तुम बीमार हो. मैं ने बोल दिया कि मुझे मुंबई नहीं जाना. यहां पर ही फिर से मेरा तबादला करवा देवरना मैं नौकरी छोड़ दूंगी,” बोल कर वह सिसक पड़ी.

 

अब रोनाधोना बंद करो. और सुनोमैं जा रही हूं कालेजअंदर से दरवाजा बंद कर लो,” चुटकी लेते हुए महिमा बोल कर कालेज के लिए निकल गई. वह बहुत खुश थी कि उस की दी वापस आ गई है और फिर सबकुछ पहले की तरह हो गया है. पहले की तरह तीनों हर छुट्टी की शाम रंगीनियों का मजा लेने लगे. मौजमस्ती होने लगी.

 

लेकिनएक दिन फिर एक मुसीबत विवेक के सिर पर आ पड़ी. विवेक की गाड़ी से एक आदमी का एक्सीडेंट हो गया और उस ने इस के खिलाफ पुलिस में केस कर दिया.

 

अब क्या होगा महूमेरा तो दिल घबरा रहा है,” कांपते स्वर में मुक्ता बोली. अपने पति को लौकअप में देख उस की तो जान ही निकली जा रही थी.

 

कुछ नहीं होगा. आप शांत रहो. कोई बड़ा एक्सीडेंट नहीं हुआ है उस का. बस उस के सिर पर थोड़ी चोटें आई हैं और उस का एक हाथ फ्रैक्चर हुआ हैतो बंदा ठीक है. और सब से बड़ी बात यह कि गलती उस बंदे की थीजीजू की नहीं. गलत साइट से वह अपनी गाड़ी हांक रहा था जीजू नहीं. लेकिनयह बात वह मानने को तैयार नहीं है.  जिद पर अड़ा है कि जीजू को सजा दिलवा कर रहेगा. लेकिनमैं भी कोई कम नहीं हूं,” कह कर महिमा ने अपनी दोस्त पूर्णिमाजो कि वकील हैउसे फोन लगाया और सारी बात बताईतो वह कहने लगीअगर ऐसी बात है तो डरने की कोई जरूरत नहीं है.  वह आदमी रोंग साइड से आ रहा था. बसयह बात उस के मुंह से निकलवानी हैफिर वह खुदबखुद अपना केस वापस ले लेगा.

 

महिमा ने जब उस आदमी से बात की और प्यार से समझाया कि कुछ पैसे लेदे कर मामला यहीं खत्म कर देंतो वह अकड़ कर कहने लगा कि नहींवह अपना केस वापस नहीं लेगाबल्कि इन गाड़ी वाले लोगों को सबक सिखाएगाजो अपनेआप को सेठ समझने हैं. बताएगा कि हम गरीब भी कोई कीड़ेमकोड़े नहीं हैंजो कोई भी कुचल कर चला जाए.

 

बहुत बोल चुके समझे. प्यार से समझा रही हूंतो बात समझ में नहीं आ रही है तुम्हारे?” उस की फालतू की बकवास सुन कर महिमा ने दहाड़ातो वह एकदम से सकपका गया.

 

तुम्हें क्या लगता है कि हमें कुछ पता नहीं हैसब जानती हूं. गलती उस इनसान की नहींबल्कि तुम्हारी थी. गलत तरीके से तुम साइकिल चला रहे थे और हाईवे कोई साइकिल चलाने की जगह हैदेखोसही से समझा रही हूं कि अपना केस वापस ले लोनहीं तो अगर यह साबित हो गया न कि तुम गलत साइड से साइकिल चला कर आ रहे थेतो सजा उसे नहीं तुम्हें होगी और जुर्माना भरना पड़ेगासो अलग. पता है नहर जगह सीसी टीवी कैमरा’ लगा होता हैतो पता तो चल ही जाएगा कि गलत कौन हैफिर समझते रहना,” महिमा के इतना कहते ही उस के तो पसीने छूट गएक्योंकि गलत तो वही थावही रोंग साइड से अपनी साइकिल चला कर आ रहा था. तुरंत जा कर उस ने अपनी शिकायत वापस ले ली यह बोल कर कि उसे कोई केस नहीं करना. उसे कुछ नहीं हुआ हैवह ठीक है.

 

ओह दीपता है आप को उस इनसान को समझाने में मुझे कितनी एनर्जी वेस्ट करनी पड़ीऔर यह सब हुआ मेरी दोस्त पूर्णिमा की वजह से,” बोलते हुए उस ने विवेक की तरफ देखातो मुसकरा कर वह पीछे मुड़ गया.

 

मुक्ता मन ही मन अपनी बहन की शुक्रगुजार हो रही थी कि उस के कारण ही विवेक बच पायाएक बार नहींबल्कि 2-2 बार उस ने विवेक की जान बचाई है.

 

जीजूअब कंजूसी से काम नहीं चलेगाआप को हमें एक बड़ी पार्टी देनी होगी,“ महिमा ने कहातो विवेक ने उस की बात मान ली.

 

अहमदाबाद के रैडिसन ब्लू होटल में विवेक ने एक पार्टी रखीजिस में उस का दोस्त निहाल भी आया था.

 

जीजूपार्टी तो बहुत मजेदार रहीपर वह लड़का कौन था…?” घर लौटते समय जब महिमा ने पूछातो मुक्ता और विवेक दोनों एकदूसरे को देख कर हंस पड़े, “ अरेहंस क्यों रहे हो आप दोनोंबताओ तोकौन था वो स्मार्ट सा लड़काआप के साथ काम करता है क्या?”

 

महिमा यह जानने को बेताब थी कि आखिर वह लड़का था कौनऔर मिलने पर क्यों वह उसे ही निहारे जा रहा था?

 

क्योंक्या पसंद आ गया तुझेबोल तो बात चलाऊं…?” मुक्ता ने प्यार की झिड़की देते हुए पूछातो वह शरमा गई.

 

उस संडे सुबहसुबह मुक्ता और विवेक के कमरे से बातें करने की आवाज सुन कर महिमा भी वहां पहुंच गई और कहने लगी कि क्या बातें हो रही हैं?

 

“यही कि इस मुसीबत को अब इस घर से निकालना होगा,” विवेक बोला.

 

मुसीबत कौन…मैं..ओहअब मैं मुसीबत हो गई आप दोनों के लिएजाओ जीजूमैं आप से बात नहीं करती. और दीदीआप भी बहुत बुरी हो,” रूठने का नाटक करते हुए महिमा ने अपना चेहरा दूसरी तरफ फेर लिया.

 

अरे पगलीविवेक के कहने का मतलब था कि अब तुम्हारी शादी कर दी जाए. लेकिनपहले यह बता कि वह लड़का तुझे कैसा लगा?” मुक्ता बोलीतो महिमा शरमा कर उधर देखने लगी.

 

शरमाने से काम नहीं चलेगाबताओ कि वह लड़का तुम्हें कैसा लगापापा और भैया को लड़के की फोटो भेज दी गई है. बसअब तुम्हारे हां की देर है.

 

लेकिनशरमाते हुए महिमा यह बोल कर वहां से भाग गई कि उसे नहीं पता.

 

इस का मतलब इसे भी वह लड़का पसंद है,” हंसते हुए विवेक कहने लगा, “जानती हो मुक्ताजब निहाल ने पहली बार महिमा को देखा थातभी उसे उस से प्यार हो गया था. लड़का अच्छा है. नौकरी भी हाईक्लास है और सब से बड़ी बात कि निहाल की नौकरी भी यहीं अहमदाबाद में ही हैतो दोनों बहनें आसपास रह सकती हो,” उस की बात पर मुक्ता ने भी हंसते हुए सहमति जताई.

 

उस रोज राजपथ क्लब में जब पहली बार निहाल ने महिमा को देखा थातभी उसे वह पसंद आ गई थी. महिमा का छरहरा बदनसोने जैसा दमकता रंगबड़ीबड़ी घनी पलकों से ढकी गहरी काली आंखेंघने काले बाल और गुलाबी अधरों पर छलकती मोहक मुसकान  देख वह महिमा का दीवाना हो गया था और सोच लिया था कि अब वही उस की दुलहन बनेगी.

 

निहाल विवेक के साथ उस के ही औफिस में काम करता है और दोनों पहले से ही दोस्त हैं. कई बार वह महिमा को देख चुका हैपार्टी वगैरह मेंपर महिमा उस से पहली बार मिली थी. उसे भी निहाल पहली नजर में ही भा गया था.

 

विवेक ने तो पहले ही सोच लिया था कि महिमा के लिए वह सिर्फ लड़का ही नहीं ढूंढेगाबल्कि एक भाई की तरह उसे विदा भी करेगा.

 

लोग अकसर जीजासाली के रिश्तों को गलत नजरों से देखते हैंलेकिन महिमा और विवेक का रिश्ता एक पवित्र बंधन में बंधा थाजिसे हर कोई नहीं समझ सकता.

पवित्र बंधन : जीजासाली का अनोखा रिश्ता- भाग 1

मुक्ताउठो. 7 बज गए हैं और अभी तक तुम सोई हुई हो?” अपनी पत्नी मुक्ता को उठाते हुए विवेक बोला.ऊं… सोने दो न विवेकआज संडे है,” नींद में ही मुक्ता बोली.

पता हैमुझे आज संडे हैपर तुम भूल गई हो कि आज महिमा आने वाली है. उसे लाने नहीं चलना है?” विवेक बोला.लेकिन मुक्ता कहने लगी कि वह चला जाएउसे बहुत नींद आ रही है.

अरेये क्या बात हुईबुरा लग जाएगा उसे. चलो उठोतब तक मैं चाय बना लाता हूं,” कह कर विवेक किचन की तरफ चला गया.

ये महिमा की बच्ची भी न… नींद पर पानी फेर दिया मेरे. एक दिन तो छुट्टी मिलती है आराम से सोने के लिएवो भी इस मैडम ने बिगाड़ दिया,’ मन ही मन बुदबुदाते हुए मुक्ता बाथरूम में घुस गई और जब तक वह फ्रेश हो कर निकलीविवेक चाय के साथ बिसकुट ले कर हाजिर हो गया.

महिमा की ट्रेन सुबह 9 बज कर 45 मिनट पर थी. लेकिन गाड़ी का कोई ठिकाना नहीं होता कि कभीकभी वह वक्त से पहले भी आ जाती है. यह सोच कर विवेक घर से एक घंटा पहले ही निकल गयाक्योंकि करीब 20-25 मिनट तो उसे स्टेशन पहुंचने में ही लग जाएगा.

विवेक…” लंबी सी जम्हाई लेते हुए मुक्ता बोली, “क्यों इतनी जल्दी निकल आए हम घर सेगाड़ी आने में तो अभी डेढ़ घंटा बाकी है. इतनी देर कहां बैठेंगे हम बताओतुम भी न बहुत हड़बड़ाते हो,“ झुंझलाते हुए मुक्ता बोलीक्योंकि उसे सच में बहुत नींद आ रही थी. छुट्टी के दिन वह 12-1 बजे से पहले कभी नहीं उठती है. लेकिन आज उसे सुबह 7 बजे ही उठना पड़ गया तो भन्ना उठी.

मुक्ता को गुस्साते देख विवेक कहने लगा कि वह चाहे तो जा कर पीछे वाली सीट पर सो सकती हैपर उस ने नहीं चलेगा” कह कर मना कर दिया और बाहर खिड़की से झांक कर देखने लगी.सुबह की ठंडीठंडी हवा के झोंके से उस की नींद कहां फुर्र हो गईपता ही नहीं चला. महिमा के आने से मुक्ता भी बहुत खुश थी और हो भी क्यों नआखिर वह उस की छोटी बहन है.

पिछली बार जब वह यहां आई थीतब एक हफ्ते बाद ही अपने पापा के साथ चली गई थी. लेकिन इस बार वह यहां रहने का लंबा प्रोग्राम बना कर आ रही है.देखोसही कहा था न मैं ने,  ट्रेन अपने वक्त से पहले आ रही है,” ट्रेन आने की घोषणा सुन विवेक बोला.

स्टेशन पर मुक्ता और विवेक को खड़े देख महिमा का चेहरा खिल उठा. बहन से मिलते ही भींच कर उसे गले लगा लिया और फिर विवेक से हाथ मिला कर उस का हालचाल पूछातो हंसते हुए उस ने जबाव दिया कि वह ठीक है.

क्या बात है महूतू तो पहले से भी ज्यादा सुंदर और स्मार्ट दिखने लगी है,” बहन के गालों को प्यार से थपथपाते हुए मुक्ता बोली, “क्यों विवेकदेखो तो महू पहले से भी ज्यादा सुंदर दिखने लगी है नरूप निखर रहा है इस का. क्या लगाती है फेयर एंड लवली’ या देशी नुसखा?” मुक्ता प्यार से अपनी बहन को महू बुलाती थी.

देशी नुसखा दी,” हंसते हुए महिमा ने कहा, “वह सब छोड़ोपहले ये बताओ जीजू इतने दुबले क्यों हो गए हैंक्या आप इन्हें ठीक से खिलातीपिलाती नहीं हो?”महिमा ने बहन को उलाहना दियातो विवेक को भी मौका मिल गया.

हांसच कह रही हो महूतुम्हारी दीदी बिलकुल मुझ पर ध्यान नहीं देती है. तभी तो देखो कितना दुबलापतलाबेचारा सा हो गया हूं मैं,” महिमा का सामान गाड़ी की डिक्की में रखते हुए अजीब सा मुंह बना कर विवेक बोला.

हूंहूंमैं कुछ खिलातीपिलाती नहींपर अब तू आ गई है नतो खिलापिला खूब बनाबना कर अपने जीजू को,” हंसते हुए मुक्ता बोली. फिर पूरे रास्ते वह पटना और वहां के लोगों के बारे में बताती रही. यह भी कि उस के भैया का प्रमोशन हो गया है और अब वह वहीं पटना आ गए हैं.

यह तो बड़ी अच्छी बात है. पापा की देखभाल अच्छे से हो पाएगी अब. वैसेपापा की तबीयत तो ठीक रहती है न?” मुक्ता ने पूछा.

 

धार्मिक होते न्यायालय

लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है कि एक अकेले व्यक्ति की भी सुनी जाए और उसे अल्पमत में होने के कारण कोई नुकसान न हो. संविधान बहुमत या शक्तिशाली की रक्षा नहीं करता. वह अकेले व कमजोरों की रक्षा करता है और यह रक्षा उसे सर्वोच्च न्यायालय से मिलती है. अफसोस कि भारत और अमेरिका दोनों बड़े लोकतांत्रिक देशों में अब सर्वोच्च न्यायालयों पर इकलौते नागरिकों का भरोसा कम होता जा रहा है, खासतौर पर अगर वे अकेले ही नहीं, आर्थिक रूप से कमजोर भी हों.

अमेरिका में डौब्स बनाम जैक्सन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अकेली औरतों को चर्च समर्थित बहुमत के शेरों के सामने असुरक्षित पटक दिया है. रो बनाम वेड के 1973 के मामले में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि औरतों को गर्भपात का संवैधानिक अधिकार है और फैडरल या केंद्र सरकार यह अधिकार छीन नहीं सकती. अब धार्मिक दबाव में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अमेरिकी संविधान में ऐसा कोई अधिकार नहीं और राज्य सरकारें अपनी मरजी से अपने बहुमत के आधार पर फैसला कर सकती हैं कि औरतें गर्भपात करा सकती हैं या नहीं.

भारत में मंदिरों, वैचारित स्वतंत्रताओं, हेट स्पीच, पुलिस की तानाशाही, आकारण रात के 8 बजे पकड़ ले जाने के मामले हर रोज सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक पहुंच रहे है और साफ है कि बहुमत का धर्म बहुत से मामलों में काफी प्रभावित कर रहा है. हिंदू आरोपियों को तुरंत राहत मिल जाती है अगर उन पर सत्ता का हाथ हो, जबकि, राहत टाली जाती रहती है अगर आरोपी सत्ताविरोधी हो. केंद्र सरकार के वकील निजी शिकायतों पर सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट ही नहीं, निचली अदालतों में भी खड़े हो कर स्पष्ट करते रहते हैं कि सरकार की मंशा क्या है. एनफ़ोर्समैंट डिपार्टमैंट का कार्य विपक्षी नेताओं को परेशान करने का रह गया है, वहीं अदालतों ने एकतरफा कारवाईयों के प्रति आंख मूंद रखी है.

अकेले नागरिकों का तो कहना ही क्या जब उन लोगों को अकारण पकड़े जाने पर पीने के स्ट्रा जैसी साधारण सुविधाएं दिलाने में अदालतें महीनों लगा देती हैं और सत्ता में बैठे लोगों को रातोंरात राहत मिल जाती है.

अमेरिकी में जब भी कोई मामला अदालत में पहुंचता है, वकील यह देखते हैं कि फैडरल कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट ने किस जज को किस पार्टी के राष्ट्रपति या गवर्नर ने नियुक्त किया था. अगर नियुक्ति रिपब्लिकन ने की थी तो फैसला कट्टरपंथी होगा, अगर डैमोक्रेट ने की थी तो एक अकेले की भी रक्षा होगी.

भारत में भी ऐसा ही हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट के जजों का मंतव्य क्या है, पहले ही पता किया जाता है. अब अधिकांश जज 2014 के बाद के हैं तो आशा कम होती है कि सरकार या सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ फैसला होगा.

यह शक लोकतंत्र के लिए बेहद हानिकारक है कि हम किसी संवैधानिक अदालत में नहीं, पार्टी प्रभावित अदालत में खड़े हैं. यह संवैधानिक लोकतंत्र की जड़ में तेजाब डाल रहा है. लोगों का अदालतों पर से विश्वास उठना खतरनाक प्रकृति है. किसानों ने सही किया जब उन्होंने कृषि कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गुहार न लगा कर सडक़ों पर डेरा जमाया और सरकार को आखिर में झुका दिया. किसान एक तरह से बहुमत में नहीं हैं, वे अल्पमत में हैं क्योंकि इस देश में बहुमत में तो केवल पूजापाठी और उन से प्रभावित अंधभक्त ही हैं.

अदालतों से उम्मीद होती है कि वे किसी भी सरकारी अफसर की न सुन कर अकेले नागरिक की सुनेंगीं पर कितने ही फैसले दिख रहे है जिन में अकेला तो सरकारी आतंक का शिकार बना रहता है, जेल में जाता है, उस के घर पर बुलडोजर चल जाता है, लाखों का फाइन हो जाता है.

उस का हक एक अफसर के छोटे से कागज के आधार पर छीन लिया जाता है. अमेरिका में भारत के मामलों में एकरूपता यह साफ करती है कि अदालतें अब संविधान से नहीं, धार्मिक ग्रंथों से चलने लगी हैं.

दीवाली स्पेशल – भाग 1 : खोखली रस्में

ओह…यह एक साल, लमहेलमहे की कसक ताजा हो उठती है. आसपड़ोस, घरखानदान कोई तो ऐसा नहीं रहा जिस ने मुझे बुराभला न कहा हो. मैं ने आधुनिकता के आवेश में अपनी बेटी का जीवन खतरे के गर्त में धकेल दिया था. रुपए का मुंह देख कर मैं ने अपनी बेटी की जिंदगी से खिलवाड़ किया था और गौने की परंपरा को तोड़ कर खानदान की मर्यादा तोड़ डाली थी. इस अपराधिनी की सब आलोचना कर रहे थे. परंतु अंधविश्वास की अंधेरी खाइयों को पाट कर आज मेरी बेटी जिंदा लौट रही है. अपराधिनी को सजा के बदले पुरस्कार मिला है- अपने नवासे के रूप में. खोखली रस्मों का अस्तित्व नगण्य बन कर रह गया.

कशमकश के वे क्षण मुझे अच्छी तरह याद हैं जब मैं ने प्रताड़नाओं के बावजूद खोखली रस्मों के दायरे को खंडित किया था. मैं रसोई में थी. ये पंडितजी का संदेश लाए थे. सुनते ही मेरे अंदर का क्रोध चेहरे पर छलक पड़ा था. दाल को बघार लगाते हुए तनिक घूम कर मैं बोली थी, ‘देखो जी, गौने आदि का झमेला मैं नहीं होने दूंगी. जोजो करना हो, शादी के समय ही कर डालिए. लड़की की विदाई शादी के समय ही होगी.’

‘अजीब बेवकूफी है,’ ये तमतमा उठे, ‘जो परंपरा वर्षों से चली आ रही है, तुम उसे क्यों नहीं मानोगी? हमारे यहां शादी में विदाई करना फलता नहीं है.’

‘सब फलेगा. कर के तो देखिए,’ मैं ने पतीली का पानी गैस पर रख दिया था और जल्दीजल्दी चावल निकाल रही थी. जरूर फलेगा, क्योंकि तुम्हारा कहा झूठ हो ही नहीं सकता.’

‘जी हां, इसीलिए,’ व्यंग्य का जवाब व्यंग्यात्मक लहजे में ही मैं ने दिया.

‘क्योंकि अब हमारी ऐसी औकात नहीं है कि गौने के पचअड़े में पड़ कर 80-90 हजार रुपए का खून करें. सीधे से ब्याह कीजिए और जो लेनादेना हो, एक ही बार लेदे कर छुट्टी कीजिए.’ मैं ने अपनी नजरें थाली पर टिका दीं और उंगलियां तेजी से चावल साफ करने लगीं, कुछ ऐसे ही जैसे मैं परंपरा के नाम पर कुरीतियों को साफ कर हटाने पर तुली हुई थी. एक ही विषय को ले कर सालभर तक हम दोनों में द्वंद्व युद्ध छिड़ा रहा. ये परंपरा और मर्यादा के नाम पर झूठी वाहवाही लूटना चाहते थे. विवाह के सालभर बाद गौने की रस्म होती है, और यह रस्म किसी बरात पर होने वाले खर्च से कम में अदा नहीं हो सकती. मैं इस थोथी रस्म को जड़ से काट डालने को दृढ़संकल्प थी. क्षणिक स्थिरता के बाद ये बेचारगी से बोले, ‘विमला की मां, तुम समझती क्यों नहीं हो?’

‘क्या समझूं मैं?’ बात काटते हुए मैं बिफर उठी, ‘कहां से लाओगे इतने पैसे? 1 लाख रुपए लोन ले लिए, कुछ पैसे जोड़जोड़ कर रखे थे, वे भी निकाल लिए, और अब गौने के लिए 80-90 हजार रुपए का लटका अलग से रहेगा.’

 

दीवाली स्पेशल – भाग 3 : खोखली रस्में

‘हां, कारण भी है, तुम्हारे ससुर के चचेरे चाचा की सौतेली बहन हुआ करती थीं. विवाह के समय ही उन का गौना कर दिया गया था. बेचारी दोबारा मायके का मुंह नहीं देख पाईं. साल की कौन कहे, महीनेभर में ही मृत्यु हो गई.’’

अब क्या कहूं, सास का खयाल न होता तो ठठा कर हंस पड़ती. तर्कशास्त्र की अवैज्ञानिक परिभाषा याद हो आई. किसी घटना की पूर्ववर्ती घटना को उस कार्य का कारण कहते हैं. आज वैज्ञानिक धरातल पर भी यह परिभाषा किसी न किसी रूप में जिंदा है. परंतु मुंहजोरी से कौन छेड़े मधुमक्खियों के छत्ते को. मैं सहज स्वर में बोली, ‘लेकिन मौसीजी, उन से पहले जो विवाह के समय ही ससुराल जाती थीं क्या उन की भी मृत्यु हो जाया करती थी?’

‘अरे, नहीं,’ अपने दाहिने हाथ को हवा में लहराती हुई मौसीजी बोलीं, ‘उन के तो नातीपोते भी अब नानादादा बने हुए हैं.’ प्रसन्नता का उद्वेग मुझ से संभल न सका, ‘फिर तो कोई बात ही नहीं है, सब ठीक हो जाएगा.’

‘कैसे नहीं है कोई बात?’ मौसीजी गुर्राईं, ‘गांवभर में हमारे खानदान का नाम इसीलिए लिया जाता है…दूरदूर के लोग जानते हैं कि हमारे यहां शादी से भी बढ़चढ़ कर गौना होता है. देखने वाले दीदा फाड़े रह जाते हैं. तेरी फूफी सास के गौने में परिवार की हर लड़की को 2-2 तोले की सोने की जंजीर दी गई थी और ससुराल वाली लड़कियों को जरी की साड़ी पहना कर भेजा गया था.’ तब की बात कुछ और थी, मौसीजी. तब हमारी जमींदारी थी. आज तो 2 रोटियों के पीछे खूनपसीना एक हो जाता है. महीनेभर नौकरी से बैठ जाओ तो खाने के लाले पड़ जाएं. फिर गौना का खर्च हम कहां से जुटा पाएंगे?’

इसे अपना अपमान समझ कर मौसीजी तमतमा कर उठ खड़ी हुईं, ‘ठीक है, कर अपनी बेटी का ब्याह, न हो तो किसी ऐरेगैरे का हाथ पकड़ा कर विदा कर दे, सारा खर्च बच जाएगा. आने दे सुधीर को, अब मैं यहां एक पल भी नहीं रह सकती. जहां बहूबेटियों का कानून चले वहां ठहरना दूभर है.’ मौसीजी के नेत्रों से अंगार बरस रहे थे. वे बड़बड़ाती हुईं अपने कमरे की ओर बढ़ीं तो मैं एकबारगी सकते में आ गई. मैं लपक कर उन के कमरे में पहुंची. वे अपनी साड़ी तह कर रही थीं. साड़ी उन के हाथ से खींच कर याचनाभरे स्वर में मैं बोली, ‘मौसीजी, आप तो यों ही राई का पर्वत बनाने लगीं. मेरी क्या बिसात कि मैं कानून चलाऊं?’

‘अरे, तेरी क्या बिसात नहीं है? न सास है, न ननद है, खूब मौज कर, मैं कौन होती हूं रोकने वाली?’ उन की आवाज में दुनियाजहान की विवशता सिमट आई. उन की आंखों में आंसू आ गए थे. लगा किसी ने मेरा सारा खून निचोड़ लिया हो. मैं विनम्र स्वर में बोली, ‘मौसीजी, आज तक कभी हम लोगों ने आप की बात नहीं टाली है. मैं हमेशा आप को अपनी सास समझ कर आप से सलाहमशविरा करती आई हूं. फिर भी आप…’

परंतु मौसीजी का गुस्सा शांत नहीं हुआ. मैं उन का हाथ पकड़ कर उन्हें आंगन में ले आई और उन्हें आश्वस्त करने का प्रयत्न करने लगी. ये शाम को आए. मौसीजी बैठी हुई थीं. दोपहर का सारा किस्सा मैं ने सुना डाला. मौसीजी का क्रोध सर्वविदित था. ये हारे हुए जुआरी के स्वर में बोले, ‘तब?’

‘तब क्या?’ मैं बोली, ‘50 हजार रुपए मौसीजी से बतौर कर्ज ले लीजिए. 60-70 हजार रुपए चाचाजी से ले लेना. मिलाजुला कर किसी तरह कर दो गौना. मैं और क्या कहूं अब?’

‘बेटी मेरी है, उन्हें क्या पड़ी है?’

‘क्यों नहीं पड़ी है?’ मेरा रोष उमड़ आया, ‘जब बेटी के ब्याह की हर रस्म उन लोगों की इच्छानुसार होगी तो खर्च में भी सहयोग करना उन का फर्ज बनता है.’ संभवतया मेरे व्यंग्य को इन्होंने ताड़ लिया था. बिना उत्तर दिए तौलिया उठा कर बाथरूम में घुस गए. रात में भोजन करने के बाद ये और मौसीजी बैठक में चले गए. बच्चे अपने कमरे में जा चुके थे. पप्पू को सुलाने के बहाने मैं भी अपने कमरे में आ कर पड़ी रही. दिमाग की नसों में भीषण तनाव था. सहसा मैं चौंक पड़ी. मौसीजी का स्वर वातावरण में गूंजा, ‘अरे सुधीर, तेरी बहू कह रही थी कि गौना नहीं होगा. अब बता भला, जब विवाह में विदाई करना हमारे यहां फलता ही नहीं है तब भला गौना कैसे नहीं होगा?’

‘अब तुम से क्या छिपाना, मौसी?’ यह स्वर इन का था, ‘मैं सरकारी नौकर जरूर हूं, लेकिन खर्च इतना ज्यादा है कि पहले ही शादी में 1 लाख रुपए का कर्ज लेना पड़ गया. 2 और बेटियां ब्याहनी हैं सो अलग. 20-30 हजार रुपए से गौने में काम चलना नहीं है, और इतने पैसों का बंदोबस्त मैं कर नहीं पा रहा हूं.’ मौसीजी के मीठे स्वर में कड़वाहट घुल गई, ‘अरे, तो क्या बेटी को दफनाने पर ही तुले हो तुम दोनों? इस से तो अच्छा है उस का गला ही घोंट डालो. शादी का भी खर्च बच जाएगा.’

‘अरे नहीं, मौसीजी, तुम समझीं नहीं. गौना तो मैं करूंगा ही. देखो न, विवाह से पहले ही मैं ने गौने का मुहूर्त निकलवा लिया है. अगले साल बैसाख में दिन पड़ता है.’

‘सच?’ मौसीजी चहक पड़ीं.

‘और नहीं तो क्या? 50 हजार रुपए तुम दे दो, 60-70 हजार रुपए चाचाजी से ले लूंगा. कुछ यारदोस्तों से मिल जाएगा, ठाठ से गौना हो जाएगा.’

‘क्या, 50 हजार रुपए मैं दे दूं?’ मौसीजी इस तरह उछलीं मानो चलतेचलते पैरों के नीचे सांप आ गया हो.

‘अरे, मौसी, खैरात थोड़े ही मांग रहा हूं. पाईपाई चुका दूंगा.’

‘वह तो ठीक है, लेकिन इतने रुपए मैं लाऊंगी कहां से? मेरे पास रुपए धरे हैं क्या?’ मेरी आंखें उल्लास से चमकने लगीं. भला मौसी को क्या पता था कि परंपरा की दुहाई उन की भी परेशानी का कारण बनेगी? मैं दम साधे सुन रही थी. इन का स्वर था, ‘अरे, मौसी, दाई से कहीं पेट छिपा है? तुम हाथ झाड़ दो तो जमीन पर नोटों की बौछार हो जाए. हर कमरे में चांदी के रुपए गाड़ रखे हैं तुम ने, मुझे सब मालूम है.’ ‘अरे बेटा, मौत के कगार पर खड़ी हो कर मैं झूठ बोलूंगी? लोग पराई लड़कियों का विवाह करवाते हैं, और मैं अपनी ही पोती के ब्याह पर कंजूसी करूंगी? लौटाने की क्या बात है, जैसे मेरा श्याम है वैसे तू भी मेरा बेटा है.’ मेरी हंसी फूट पड़ी. लच्छेदार शब्दों के आवरण में मन की बात छिपाना कोई मौसीजी से सीखे. भला उन की कंजूसी से कौन नावाकिफ था.

क्षणिक निस्तब्धता के बाद इन की थकी सी आवाज फिर उभरी, ‘तब तो मौसी, अब इस परंपरा का गला घोंटना ही होगा. न मैं इतने रुपए का जुगाड़ कर पाऊंगा और न ही गौने का झंझट रखूंगा. बोलो, तुम्हारी क्या राय है?’ ‘जो तुम अच्छा समझो,’ जाने किस आघात से मौसीजी की आवाज को लकवा मार गया और वह गोष्ठी समाप्त हो गई. दूसरे दिन चाचाजी का भी सदलबल पदार्पण हुआ. परंपरा और रस्मों के खंडन की बात उन तक पहुंची तो वे भी आगबबूला हो उठे, ‘सुधीर, यह क्या सुन रहा हूं? मैं भी शहर में रहता हूं. मेरी सोसाइटी तुम से भी ऊंची है. लेकिन हम ने कभी अपने पूर्वजों की भावना को ठेस नहीं पहुंचाई. तुम लोग लड़की की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हो.’

‘चाचाजी, आप गलत समझ रहे हैं,’ ये बोले थे, ‘गौने के लिए तो मैं खूब परेशान हूं. लेकिन करूं क्या? आप लोगों की मदद से ही कुछ हो सकता है.’

चाचाजी के चेहरे पर प्रश्नचिह्न लटक गया. उन की परेशानी पर मन ही मन आनंदित होते हुए ये बोले, ‘मैं चाहता था, यदि आप 80 हजार रुपए भी बतौर कर्ज दे देते तो शेष इंतजाम मैं खुद कर लेता और किसी तरह गौना कर ही देता. आप ही के भरोसे मैं बैठा था. मैं जानता हूं कि आप पूर्वजों की मर्यादा को खंडित नहीं होने देंगे.’ चाचाजी का तेजस्वी चेहरा सफेद पड़ गया. उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. थूक निगलते हुए बोले, ‘तुम तो जानते ही हो कि मैं रिटायर हो चुका हूं.

फंड का जो रुपया मिला था उस से मकान बनवा लिया. मेरे पास अब कहां से रुपए आएंगे?’ सुनते ही ये अपना संतुलन खो बैठे. क्रोधावेश में इन की मुट्ठियां भिंच गईं. परंतु तत्काल अपने को संभालते हुए सहज स्वर में बोले, ‘चाचाजी, जब आप लोग एक कौड़ी की सहायता नहीं कर सकते, फिर सामाजिक मर्यादा और परंपरा के निर्वाह के लिए हमें परेशान क्यों करते हैं? यह कहां का न्याय है कि इन खोखली रस्मों के पीछे घर जला कर तमाशा दिखाया जाए? मुझ में गौना करने की सामर्थ्य ही नहीं है.’ इतना कह कर ये चुप हो गए. चाचाजी निरुत्तर खड़े रहे. उन के होंठों पर मानो ताला पड़ गया था. थोड़ी देर पहले तक जो विमला के परम शुभचिंतक बने हुए थे, अब अपनीअपनी बगले झांक रहे थे. अब कोई व्यक्ति मेरी बेटी के प्रति सहानुभूति प्रकट करने वाला नहीं था. आज विमला भरीगोद लिए सहीसलामत अपने मायके लौट रही है. अंधविश्वास और खोखली रस्मों की निरर्थकता पाखंडप्रेमियों को मुंह चिढ़ा रही है. शायद वे भी कुछ ऐसा ही निर्णय लेने वाले हैं.

फिल्म इंडस्ट्री में सफलता पाना आसान नहीं- रिताभरी चक्रवर्ती

बहुमुखी प्रतिभा की धनी बंगाली और हिंदी फिल्मों की अदाकारा,गायक,लेखक तथा पष्चिम बंगाल की सबसे कम उम्र की फिल्म निर्माता रिताभरी चक्रवर्ती ने महज पंद्रह साल की उम्र और दसवीं की बोर्ड परीक्षा देने के बाद बंगला सीरियल ‘‘ओगो बोधी संुदर’’ में अभिनय कर जबरदस्त षोहरत हासिल की थी.यही सीरियल बाद में ‘ससुराल गेंदा फूल’ नाम से हिंदी में भी बना और सफल रहा.इस सीरियल के सफल होने के बावजूद रिताभरी को अपने नाना के कहने पर अभिनय पर विराम लगाते हुए पढ़ाई पर ध्यान देना पड़ा था.

जबकि रिताभरी की मां सतरूपा सान्याल स्थापित व इंटरनेशनल ख्याति प्राप्त फिल्म सर्जक हैं.खैर, रिताभरी ने पढ़ाई में भी गोल्ड मैडल हासिल किया.पर इतिहास विशय के साथ स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होेने अपने नाना से आज्ञा लेकर अभिनय में पुनः कदम रखा.इस बार उन्हें काफी संघर्ष करना पडा.

पर रिताभरी ने बंगला फिल्मों में काफी सफलता हासिल की.मगर मन माफिक काम करने के लिए वह स्वयं निर्माता भी बनी.फिल्म की पटकथा भी लिखी. कुछ हिंदी म्यूजिक वीडियो के अलावा लघु फिल्म ‘नेकेड’ में कल्की के साथ अभिनय किया, जिसका निर्माण स्वयं रिताभरी चक्रवर्ती ने ही किया था. इस फिल्म ने अपने बोल्ड विशय के कारण जबरदस्त हंगामा मचाया और रिताभरी को अनुष्का शर्मा के साथ हिंदी फिल्म ‘‘परी’’ में अभिनय करने का अवसर मिला.

इन दिनों वह अपनी ही लिखी कहानी पर एक हिंदी फिल्म में अभिनय कर रही हैं,तो दूसरी तरफ वह अपनी नई बंगाली फिल्म ‘‘फटाफटी’’ को लेकर सुर्खियों में हैं.

इस फिल्म में उन्होेने किसी भी लड़की के शरीर का वजन बढ़ने पर ट्ोल करने वालों को जवाब देने के साथ ही यह संदेश दिया है कि हर लड़की को अपने शरीर को अपने तरीके से रखने का हक है.उस पर किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए.

रिताभरी ऐसी अदाकारा हैं जिन्हे एक अंग्रेजी अखबार द्वारा 2018 में ‘मोस्ट डिजायरेबल ओमन आफ इंडिया’ चुना गया था.इस सूची का हिस्स बनते हुए रिताभरी चक्रवर्ती ने कई बौलीवुड अदाकाराआंे को पीछे छोड़ दिया था.सोयाल मीडिया पर तीन मिलियन फालोवअर्स के साथ वह सामाजिक कार्यो से भी जुड़ी हुई हैं. वह सोशल मीडिया का उपयोग युवा पीढ़ी को सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने का संदेश ेदेने के लिए करती रहती हैं.

रिताभरी चक्रवर्ती बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी राय ‘टेडएक्स’,‘जोश टॉक्स’ व ‘इंक टॉक’जैसे कार्यक्रमों में देती रहती हैं.

प्रस्तुत है रिताभरी चक्रवर्ती से हुई बातचीत के अंश..

2012 से 2022 के अपने दस वर्षीय कैरियर को किस तरह से देखती हैं?

-मेरे अब तक के जीवन में फिल्म इंडस्ट्ी मंे दस वर्ष ही सबसे बड़ी युनिवर्सिटी रही है.मैने बहुत कुछ सीखा.मेरी समझ मंे आया कि अच्छी व यादगार फिल्में ही करनी है.जब हम नए नए होते हैं,उस वक्त हमें फिल्म करनी होती है.उस वक्त हमारी नजर में फिल्म से इतर कुछ नजर नहीं आता.मेरी नजर मे निर्माता, निर्देशक, लेखक,कैमरामैन व कलाकार हम सब मिलकर फिल्म बनाते हैं.लोग मुझे भूल जाएं,मैं इसकी परवाह नही करती.लोगो को राजाओं के नाम कहंा याद रहते हैं? लोग षाहजहां को याद नहीं करते,पर ताजमहल याद रहता है.तो लोग

मुझे याद रखें या न रखें,मगर मेरी फिल्मों को याद रखंे.इसलिए मुझे यादगार फिल्में करनी है.वैसे मेरे अभिनय कैरियर की षुरूआत 15 वर्ष की उम्र में सीरियल ‘‘ओगो बोधी संुदरी’’ से हुई थी.

मतलब?

-मेरी बड़ी बहन भी अभिनेत्री है.मैं दसवीं की पढ़ाई कर रही थी,तभी एक दिन जब मेरी बहन आॅडीशन देने जा रही थी,तो मैं भी यंू ही उसके साथ चली गयी.कास्टिंग डायरेक्टर को मेरा चेहरा पसंद आ गया और उन्होने मेरा भी आॅडीशन ले लिया,जबकि मेरी समझ में नहीं आया था कि उन्होने मेरा आॅडीशन लिया है.उन दिनो मैं बहुत ही ज्यादा स्पोर्टिंग पर्सन थी.

इसलिए कास्टिंग डायरेक्टर ने मुझसे कुछ करने व कुछ कहने के लिए कहा,तो मैने वैसा कर दिया.फिर मेरी मां के पास निर्माता रवि ओझा का फोन आया कि वह मुझे अपने अगले प्रोजेक्ट में लेना चाहते हैं.मेरी मां ने साफ साफ मना कर दिया कि रिताभरी के कुछ माह में ही दसवी के बोर्ड की परीक्षाएं हैं,इसलिए वहअभिनय नही करेगी.मगर रवि ओझा मुझे भूले नही.तीन माह बाद फिर से रवि ओझा जी ने मेरी मम्मी को फोन करके कहा कि अब बोर्ड की परीक्षाएं खत्म हो गयी हैं.अब आप उसे मेरे अगले प्रोजेक्ट के लिए काम करने की इजाजत दे दें.

पर मेरी मां को लग ही नही रहा था कि मुझे अभिनेत्री बनना है और मैने भी कुछ नही सोचा था.जब रवि ओझा जी ने काफी दबाव डाला तब मम्मी ने कहा कि कहानी सुन लो तुम्हे अच्छी लगे तो कर लेना.मैने सीरियल ‘ओगो बोधी संुदरी’ की कहानी सुनी,अच्छी लगी.मैने 15 वर्ष की उम्र में इसमें अभिनय किया और मजा आया.लेकिन उसके बाद मैं फिर से पढ़ाई में व्यस्त हो

गयी.क्योंकि मेरे नाना जी चाहते थे कि मैं इतिहास विशय के ेसाथ स्नातक तक की पढ़ाई पूरी करुं. कालेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद मैने अपने नाना जी से कहा कि मुझे तो अभिनय ही करना है और मैं अभिनय के मैदान में कूद पड़ी.

15 वर्ष की उम्र में बिना किसी प्रयास के आपको टीवी सीरियल में अभिनय करने का अवसर मिल गया था,मगर जब आपने कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद फिल्मों में अभिनय करना चाहा,तब किस तरह का संघर्ष रहा?

-मेरी समझ में आया कि यह प्रोफेशन इतना आसान नही है,जितना मुझे लग रहा था.मेरी समझ में आ गया कि इस इंडस्ट्ी में सफल होना, अपनी जगह बनाना,एक मुकाम पाना मुष्किल ही नहीं बहुत मुष्किल है.बहुत मेहनत का काम है.पर मैं मेहनत करने को तैयार थी.इसलिए मेहनत करनी षुरू की.मेेरे कैरियर की पहली दो फिल्में प्रदर्षित नहीं हुई और आज मैं उसके लिए ईष्वर की आभारी हॅूं.उन फिल्मों का मैं जिक्र भी नहीं करना चाहती.दोनो फिल्में देखने नायक नही है.उस वक्त मुझे इतनी समझ नही थी.जबकि मेरी मां फिल्म मेकर हैं.मेरी मम्मी इंडीपेंडेट सिनेमा बनाती है.मैं उनकी फिल्मों की प्रषंसक हॅूं,पर बतौर अभिनेत्री मुझे वैसी फिल्में नहीं करनी थी.वैसे मैने फेस्टिवल प्रधान फिल्में भी की हैं.मेरी पिछली बंगला फिल्म ने कम से कम 15 इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में षोहरत बटोरी थी.मैने राष्ट्ीय पुरस्कार प्राप्त निर्देशक के साथ भी काम किया है.मैने महसूस किया कि कुछ फिल्मकार अपनी फिल्म के साथ कई देषों की यात्रा करने के लिए फिल्म बनाते हैं.वह अपनी फिल्म थिएटर में रिलीज नहीं करना चाहते.इस तरह के काम करने का भी अपना आनंद व प्यार है.मगर मुझे वह फिल्में करने में आनंद मिलता है,जिन्हे ज्यादा से ज्यादा दर्षक देखकर अपनी प्रतिक्रिया दे.कालेज की पढ़ाई करने के बाद मेरी नासमझी यह थी कि फिल्में करती रहो, और स्टार अभिनेत्री बन जाओगी.इसी गलत समझ के चलते मंैने दो फिल्में कर ली थीं.इन फिल्मों की कहानी व निर्माण यात्रा भी बहुत खराब थी.लेकिन फिर समझ आयी.षुरूआत मंे मुझे लीड हीरोईन के रूप में फिल्में पाने में काफी दिक्कतें हुई.

दो वर्ष तो बहुत दिक्कत हुई.इसकी एक वजह यह भी रही कि बंगाल फिल्म इंडस्ट्ी जरुरत से ज्यादा पितृसत्तात्मक सोच यानी कि पुरूश प्रधान है.कुछ ऐसे फिल्मों के आफर आए थे,जिन्हे स्वीकार करना मेरे लिए संभव नहीं था.तो वह फिल्में दूसरी हीरोइनों को चली गयी.मुझे यकीन था कि ‘अपना भी समय आएगा’.

जब आपका बंगला फिल्मों में कैरियर अच्छा चल रहा था,तो फिर आपने निर्माता बनने की क्यों सोची?

-जी हाॅ! यही सच है.जब मुझे लगा कि मुझे यादागर फिल्मों में अभिनय करने का अवसर नही मिल रहा है,क्योंकि यादगार फिल्में बनाने वाले निर्देशकों को नहीं लग रहा है कि मैं बाक्स आफिस पर सफल होने वाली फिल्म दे सकती हॅूं.या उन निर्देशकों को सीधे तौर पर मुझसे कोई फायदा नहीं मिल रहा है.तब मैने सोचा कि मुझे ख्ुाद ही अपनी प्रतिभा से लोगों को परिचित

कराने के लिए ख्ुाद ही कदम उठाना चाहिए.मैने सोचा कि मैं अपने निर्माण मंे खुद को इस तरह से पेश करुं कि मेरी बिरादरी व बंगला फिल्मकारांे को अहसास हो कि मैं फिल्म का हिस्सा बनने योग्य हॅूं.और ऐसा ही हुआ.वैसे भी टीवी से फिल्म की यात्रा काफी तकलीफ देह होती है.दूसरी बात मेरा सीरियल सुपर डुपर हिट था.इसी पर ंिहदी में ं‘ससुराल गेंदा फूल’ नामक सफल सीरियल बनाया गया.

उसके बाद निर्माता ने बंगला की बजाय हिंदी सीरियल बनाने षुरू कर दिए.मुझे समझ में आया कि बतौर निर्माता मैं अपनी प्रतिभा की रंेज से लोगों को अवगत करा सकती हॅूं.इसलिए मैने निर्माण के क्षेत्र मंे भी कदम रखा.मैं पूरे विष्व को अपनी प्रतिभा दिखाना चाहती थी.मैने आयुष्मान खुराना के साथ म्यूजिक वीडियो ‘‘अरे मन’’ किया, जिसका निर्माण मंैने ख्ुाद ही किया था.इस म्यूजिक वीडियो का काॅंसेप्ट,आर्ट डायरेक्षन भी मेरा ही था.मैने आयुष्मान ख्ुाराना के अलावा अनुराग कष्यप,रजत कपूर व कुणाल करन कपूर के साथ भी म्यूजिक वीडियो बनाया.मंैने ंिहंदी में लघु फिल्म ‘‘नेकेड’’ का निर्माण किया,जिसमें मैंने कलकी कोचलीन के साथ अभिनय किया.इसे काफी सराहना मिली.

इन म्यूजिक वीडियो व लघु फिल्मांे में मैने अपने अभिनय की उस रेंज को दिखाया,जो कि मैं बंगला फिल्म करते हुए नहीं दिखा पा रही थी.मैने डीग्लैमरस किरदार निभाकर सभी को चकित कर दिया.उसके बाद बंगला फिल्म इंडस्ट्ी में मुझे मनपसंद काम मिलना षुरू हुआ.उसी के बाद मैने बंगला फिल्म के सुपर स्टार जीत के साथ ‘‘षेश थेके षुरू’ की.धीरे धीरे मेरी अभिनय की प्रषंसा होने लगी,षोहरत मिली और फिर मुझे सोलो हीरो के रूप में फिल्म ‘‘ब्रम्हा जानेन गोपों कोम्मोटी ’’ मिली.मतलब इस फिल्म में पुरूश कलाकार नही मैं प्रोटोगाॅनिस्ट हॅूं.इसके अलावा मैने अनुष्का शर्मा के साथ हिंदी फिल्म ‘परी’ की. राम कमल मुखर्जी के निर्देशन में ‘ब्रोकेन

ुफ्रेम’ किया.बंगला में ‘टिकी टका’ व ‘एफ आई आर’ की,जिसमें मुख्य प्रोटोगाॅनिस्ट मेरा ही किरदार है.मैं आखिरी संास तक काम करना चाहती हॅूं.मैं किसी भी मुकाम पर अवकाश नहीं लेना चाहती.मुझे इतना पता है कि मैं जिंदगी के अंतिम समय तक फिल्म बिजनेस व क्रिएिटिब बिजनेस में ही रहूंगी.मै निर्माण के साथ ही लेखन व निर्देशन भी करना चाहॅूंगी.मैने महज 21

वर्ष की उम्र में ‘अरे मन’ में एक साथ कई जिम्मेदारियंा उठायी थीं. मुझे लगता है कि हम जैसे जैसे उम्र में बड़े होते जाते हैं,अनुभवांे के आधार पर हम अपने आप से सवाल करने लगते हैं.अब मंुबई व कलकत्ता में मेरी टीम है.जो सारे काम को अंजाम देती रहती है.पर जब मैंने आयुष्मान ख्ुाराना व अनुराग कष्यप के साथ काम किया था,तब मुझे प्रोटोकाल की समझ ही नही थी. मैने अपनी अब तक की यात्रा अपने हिसाब से ही तय की है.

बतौर अभिनेत्री आपने बंगला फिल्मों मंें सफलता पायी,मगर निर्माता के तौर पर आपने म्यूजिक वीडियो और लघु फिल्म हिंदी में बनायी.इसके पीछे क्या सोच रही?

-इसकी दे वजहें रही.पहली वजह तो यही रही कि मुझे ‘पैन इंडिया’ दर्षक चाहिए थे.कोई कुछ भी कहे पर हिंदी फिल्म इंडस्ट्ी ही सबसे बड़ी इंडस्ट्ी है.मैं अच्छी हिंदी बोल लेती हॅूं.समझ लेती हॅूं.मुझे पूरे भारत देश में काम करना है.इसी वजह से मैने डाॅ. बिरजू के निर्देशन में मलयालम

व अंग्रेजी भाषा की फिल्म ‘‘पेंटिंग लाइफ’ में भी अभिनय किया.यदि मैने आयुष्मान के साथ म्यूजिक वीडियो हिंदी में नहीं किया होता,तो मुझे अनुष्का शर्मा के साथ हिंदी फिल्म ‘परी’ करने का अवसर न मिलता. अपनी बंगलाइंडस्ट्ी में नाम होना,षोहरत मिलना अलग बात है.पर हिंदी में काम करके मैं विषाल दर्षक वर्ग तक पहुॅच सकी.इसी के साथ मेरी समझ में आया कि किसी भी बंगला फिल्म में कठपुतली की तरह काम करने से मैं इंकार कर सकती हॅूं.

अगर आज मैं एक बड़ी ज्वेलरी कंपनी का चेहरा हॅूं और कटरीना कैफ के साथ होर्डिंग्स पर मेरा चेहरा है,तो इसका कारण हिंदी फिल्मों व म्यूजिक वीडियो में मेरा नजर आना ही है.मैने राष्ट्ीय स्तर पर अपनी एक जगह बनाने के प्रयास कर दिए हैं.दूसरी बात जब आप हिंदी फिल्में करते हैं,बाॅलीवुड कलाकारो साथ अभिनय करते है,तो बंगाल में आपकी कद्र बढ़ जाती है.

हिंदी लघु फिल्म ‘‘नेकेड’’ में क्या खास बात थी कि आपने इसका निर्माण भी किया था?

-यह फिल्म सोशल मीडिया ट्ोलिंग को लेकर थी.जिसका सामना लगभग हर इंसान को करना पड़ रहा है,खासकर लड़कियों को.मेरा एक बिकनी का फोटो एक पत्रिका के एडीटोरियल में छपा था,उसी से मेरी ट्ोलिंग षुरू हुई थी.जबकि मैने सपने में भी नही सोचा था कि मैंने स्वीमिंग कास्ट्यूम पहना है,इसलिए लोग मुझे ट्ोल करना षुरू कर देंगे.लोगों ने मेरे चरित्र,मेरे इंसान होेने पर सवाल करने षुरू कर दिए थे.मैने महसूस किया कि यह तो बहुत गलत है.मैं अकेली ऐसी लड़की नही हॅूं,जिसने बिकनी या स्वीमिंग कास्ट्यूम पहनी हो.स्वीमिंग करते समय या समुद्री बीच पर लगभग सभी इसी तरह की पोषाकें पहनती हैं.मैने पाया कि राष्ट्ीय स्तर पर काम कर रहे कलाकार लगभग हर दिन इसी तरह से ट्ोलिंग के षिकार होते हैं.मैने इस फिल्म में अपने साथ कलकी को जोड़ा,क्योंकि उसकी एक फिल्म ‘‘दैट गर्ल इन एलो बूट्स’’ आयी थी,इस फिल्म की एक क्लिप को कुछ लोगों ने बहुत गलत ढंग से प्रसारित कर दिया था और उसे ट्ोल किया था.यदि आप ट्ोल करने वालांे से सीधे लड़ाई करते हैं,तो उसमें लोगांे से संवाद नहीं होता.मैने महसूस किया कि ट्ोल करने वाले लोगों को अपने काम से जवाब दो या उन्हे इग्नोर कर अपना काम करते रहो.इसी सोच के साथ मैने ‘नेकेड’ की कहानी ,पटकथा व संवाद लिखे और इसका निर्माण किया.जबकि इसका निर्देशन राकेश कुमार ने किया.मुझे खुषी

है कि कलकी को यह आइडिया पसंद आयी और उसने मेरी फिल्म में मेरे साथ अभिनय किया.इस फिल्म के लिए कलकी को ‘फिल्मफेअर अवार्ड’ का नोमीनेशन भी मिला था.इस फिल्म से लोगो के बीच कनवर्सेशन षुरू हुआ.फिल्म की काफी चर्चा हुई.इसी के चलते मुझे अनुष्का शर्मा के साथ फिल्म ‘‘परी’’ में अभिनय करने का अवसर मिला था?

अनुष्का शर्मा के साथ आपने फिल्म ‘‘परी’’ की थी,जिसे काफी षोहरत मिली थी,पर बौलीवुड में आपका कैरियर कुछ खास नही रहा?

-फिल्म ‘परी’ 2018 में प्रदर्षित हुई थी.उसके बाद मुझे जो फिल्में मिली,उनमें से दो तीन फिल्में मैने ख्ुाद ठुकरा दी.क्योकि मेरे कुछ दोस्तो ने कहा कि,‘बंगला में आप चाहे जो करती रहें,मगर बाॅलीवुड में ‘बी’ ग्रेड फिल्में मत करना.एक बार ‘बी;ग्रेड फिल्म कर लोगी,तो फिर ‘ए’ ग्रेड काम नही मिलेगा.मुझे एक फिल्म मिली, जिसे मैं करना चाहती थी.यह लड़की स्लम से आगे बढ़ती है.इसके लिए मैने दस किलो वजन घटाया था.लेकिन अंतिम समय में फिल्म का निर्देशक बदल गया.नए निर्देशक ने मेरी जगह दूसरी अभिनेत्री को चुना.मैं उस फिल्म का नाम नही लेना चाहती.वैसे वह फिल्म सफल हुई थी.

अब इसे ‘लक’ ही कहा जाएगा.फिर एक बहुत बड़े निर्देशक के साथ मुझे दूसरी हिंदी फिल्म मिली थी.निर्देशक ने मेरे साथ कुछ दृष्यों को लेकर बात की थी.मैने कह दिया था कि जहंा तक आप इसे कलात्मक ढंग से फिल्माएंगे, मुझे करने में कोई एतराज नही है.सब कुछ तय था,पर अचानक इसमें भी मेरी जगह कोई अन्य हीरोइन आ गयी थी.कुछ वेब सीरीज के भी आफर थे.पर तब मैं वेब सीरीज करने को लेकर असमंजस में थी.मैने सोचा कि कुछ लोगो को कर

लेने देते हैं.क्या परिणाम आते हैं,उसके बाद सोचेंगें.अब देख रही हॅूं कि वेब सीरीज पसंद की जा रही हैं.अच्छा काम हो रहा है.कुछ वेब सीरीज तो फिल्म से भी ज्यादा पसंद की जा रही हैं.अब नई फिल्म की कहानी मैंने ही लिखी है.बहुत बेहतरीन कहानी है.इसकी पटकथा एक नामचीन लेखक ने लिखी है.

आपने एक हिंदी फिल्म के लिए दस किलो वजन घटाया था,जिसे आप कर नही पायी.अब बंगला फिल्म फटाफटीके लिए 25 किलो वजन बढ़ाया है?

-मैं मानती हॅूं कि मेरी बौडी मेरा इंस्ट्यूमेंट है.मैं किसी भी किरदार को निभाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हॅूं.‘फटाफटी’ का सब्जेक्ट ग्लोबल सब्जेक्ट है.मुझे लगता है कि कम से कम षो बिजनेस में हर लड़की,फिर चाहे वह सोनाक्षी सिन्हा हो या मसाबा गुप्ता हो या कोई अन्य,जिनका वजन बढ़ा हो और फिर उनकी ट्ोलिंग न हुई हो.हमेषा होती है.सिर्फ हीरोईन ही नही आम जीवन मंे भी हर लड़की की बौडी को एक खास षेप में ही लोग देखना चाहते है.मैं इस फिल्म के माध्यम से लोगों की सोच को पूरी तरह से बदल तो नहीं सकती,मगर मुझे उम्मीद है कि इस फिल्म से लोगांे के बीच कंवर्सेशन जरुर षुरू होगा.जोग विचार विमर्ष करेंगे.और लोग अहसास करेंगे कि किसी भी इंसान को उसकी षारीरिक बनावट के आधार पर

‘जज’ करना कितना गलत है.इसी संदेश को लोगों तक पहुॅचाने के लिए मैने 25 किलो वजन बढ़ाया और फिर घटाया है.इसके लिए मैने न्यूट्ीषियन व डायटीषियन की मदद ली.मुझे ख्ुाषी है कि मैने यह सब किया.जब मैने डबिंग करते समय फिल्म देखी,तो मैं ख्ुाद को पहचान न सकी.इतना ही नहीं फिल्म के क्लायमेक्स को देखकर मेरी आॅंखों मंे आंसू आ गए थे.हकीकत यह है कि इस फिल्म को करते समय मेरे अंदर बहुत डर बैठा हुआ था.

फिल्म ‘‘फटाफटी’’ को लेकर क्या कहना चाहेंगी?

-यह फिल्म डबल एक्सल माॅडल वाली महिला की कहानी है.जो कि सीधी सादी महिला है.उसका अपना घर है.पति है.पर वह खुद गोल मटोल है.स्वस्थ है. कोई बीमारी नही है.इसमें स्वास्थ्य की भी बात की गयी है.फिल्म की नायिका को डिजाइनिंग,टेलरिंग आदि काम भी बहुत पसंद हैं.लेकिन उसे लगता है कि उसकी अपनी सीमाएं हैं.क्योंकि उसका फिगर माॅडल वाला नही है.वह सोचती है कि हमारे जैसे फिगर वालों के लिए कोई कुछ क्यों नही करता.तो वह सब

काम छोड़कर खुद ही ब्लाॅग लिखना षुरू करती है.पर यह बात उसके परिवार में किसी को नहीं पता.एक दिन उसका ब्लाॅग ‘फटाफटी’ काफी लोकप्रिय हो जाता है.

आपकी राय में इस फिल्म का लोगों पर खासकर ट्ोलिंग करने वालों पर क्या असर होगा?

-मजा आएगा.लोग फिल्म देखते हुए इंज्वाॅय करेंगे.मैने या दूसरे लोगांे ने जो भी अनुभव किए हैं,वह सब इस फिल्म का हिस्सा है.वजन बढ़ने पर ट्ोलिंग से लेकर क्या क्या लड़के या लड़की झेलते हंै,वह सब है.इसके कई दृष्यों के साथ हर कोई रिलेट कर पाएगा.इसमें एक दृष्य है,जहां जींस का बटननही अटक/बंद हो रहा है.यह बहुत ही संजीदा व इमोशनल सब्जेक्ट है.

वजन को एक तय सीमा के अंदर घटाने या बढ़ाने का शरीर पर क्या असर पड़ता है?

-इसका शरीर को काफी नुकसान होता है.इसीलिए मैंने न्यूट्ीषियन की मदद ली.मैं किसी को भी वजन घटाने या बढ़ाने की सलाह नहीं देती.यह तभी करना चाहिए जब आपके पास एक ज्ञानी न्यूट्ीषियन हो.जिनके शरीर का वजन ज्यादा होता है,वह नेच्युरली होता है.जब मैने वजन बढ़ाया तब मुझे बहुत ब्लीडिंग हो रही थी.सीढ़ियंा चढ़ने में तकलीफ होती थी.

आपका अपना एनजीओ भी है?

-जी हाॅ!मैं अपनी माँ के साथ मिलकर एक गैर सरकारी संगठन “स्कॉड सोसाइटी फॉर सोशल कम्युनिकेशन” चलाती हॅूं.इस एनजीओ के तहत हम मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के विकास पर काम करते हैं.इसके अलावा मैं आइडियल स्कूल फॉर डेफ से जुड़ी हुई हॅूं.मैं 2016 तक डॉग ओनर्स एंड लवर्स एसोसिएशन (डोला) की राजदूत थीं.मैं सोशल मीडिया पर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भी काफी बातें करती रहती हॅंू.

टूटती बेड़िया : संगीता अनीता साथ में कहां जा रही थी

नया अध्याय – भाग 1: अडिग फैसला साक्षी का

बाजार में सब्जी का रेट जान कर साक्षी के होश उड़ गए. अरेपागल हो गए हो क्यासब्जी बेच रहे हो या सोना120 रुपए किलो गोभी कहां मिलता है70 रुपए से एक रुपया भी ज्यादा नहीं दूंगी. समझ लो,” खुद से गोभी चुन कर तराजू पर चढ़ाते हुए साक्षी बोली.

नहीं मैडमजीभाव तो एक रुपए भी कम नहीं होगा,” तराजू पर से गोभी नीचे रखते हुए सब्जी वाला बोला, “आप कहीं से भी जा कर पूछ लो. सब्जियां इस से कम में मिल जाएं तो… और अभी तो सब्जियों के भाव और ऊपर भागेंगे,“ सब्जियों पर पानी का छिड़काव करते हुए सब्जी वाला दूसरे ग्राहकों से बात करने लगातो साक्षी खीज उठी. एक तो मन किया कि उस की सब्जी ही न ले. मगर घर से हुक्म मिला है कि गोभी तो ले कर ही आनातो ले कर जाना पड़ेगा न.

लेकिनयह तो बहुत ज्यादा है भैया. कुछ तो कम करो,” साक्षी ने पैसा कम कराने की गरज से बोला. लेकिन सब्जी वाला टस से मस न हुआ. अच्छा भईठीक हैचलोतौल दो आधाआधा किलो गोभीटमाटरमटर. और हांएक गड्डी पालक भी देना और साथ में धनियामिर्ची भी डाल देना.

एकदम लूट मची है सच में. हर चीज महंगी होती जा रही है. पैट्रोलडीजल के दामों में भी आग लगी हुई है. आखिर आदमी जिए तो कैसेइस सरकार ने तो लोगों की कमर ही तोड़ रखी है. पहले नोटबंदीफिर जीएसटीउस के बाद कोरोना ने क्या कम मुसीबत ढाए हैं लोगों के ऊपरजो दिनप्रतिदिन महंगाई भी डंक मार रही है,’ अपनेआप में ही भुनभुनाते हुए साक्षी पर्स से पैसे निकालने लगी कि देखासब्जी वाला उसे छोड़ दूसरेतीसरे ग्राहकों को सब्जियां तौल रहा है.

क्या है भईपहले मैं आई हूं नतो प्लीजपहले मेरी सब्जी तौलिए न. वैसे भीमुझे जल्दी है.““हांहां भईमैडमजी को जरा जल्दी है. जानते नहीं कि ये कितनी बिजी पर्सन हैं,” पीछे से जानीपहचानी आवाज सुन कर साक्षी ने जब मुड़ कर देखातो चौंक पड़ी. नरेश बेशर्मों की तरह खड़ा हंस रहा था. एक मटर उठा कर उसे छील कर खाते हुए छिलका साक्षी की तरफ उछाल कर बोला, “ओ सब्जी वालेतुम्हें पता नहीं है कि क्या मैडमजी टीचर हैंये अपने घर पर छोटेछोटे बच्चों को ट्यूशन पढाती हैं और जिस के लिए इन्हें पैसे मिलते हैं और उन्हीं पैसों से तो बेचारी की जिंदगी चलती है,” बोल कर नरेश ठहाके लगा कर हंसातो साक्षी ने उसे घूर कर देखा.

प्रतीक्षा-3 : नंदिता के बीमारी के दौरान राजेंद्र ने क्या सहयोग दिया

राजेंद्र भी कुछ देर मौन खड़ा रहा, फिर चला गया. नंदिता के शब्दों ने न जाने क्यों मु?ो यह सोचने को मजबूर कर दिया कि हो न हो नंदिता और राजेंद्र एकदूसरे का होना चाहते रहे हों, लेकिन परिस्थितियों ने मु?ो नंदिता का पति बना दिया. रात हुई. हम दोनों की आंखों में नींद नहीं. आधी रात बाद नंदिता ने सिरदर्द की शिकायत की. दर्द बढ़ता ही गया. मैं ने डाक्टर को फोन किया. उस ने अगले दिन अस्पताल आने को कहा और तब तक नींद की दवा देने की सलाह दी. दवा लेने के कुछ देर बाद नंदिता सो गई लेकिन मेरी आंखों में नींद कहां, मैं चुपचाप उस के चेहरे की तरफ देखता रहा.

20 वर्ष पहले की युवा नंदिता, उस से वादविवाद प्रतियोगिता में भेंट, पहचान, घनिष्ठता, मेरा विवाह का प्रस्ताव, उस की अस्वीकृति, कुछ ही महीनों बाद स्वयं उस की तरफ से सहमति, विवाह, फिर संतानहीन वैवाहिक जीवन, नंदिता की बीमारी, राजेंद्र का प्रवेश, उन के संबंधों पर मेरा संदेह यह सब चलचित्र की तरह मेरी आंखों के सामने क्षणभर में घूम गया. न जाने क्यों, मु?ो बारबार लगता कि नंदिता और राजेंद्र के साथ कुछ अनहोनी जरूर हुई है. अगले दिन अस्पताल जाने के समय तक राजेंद्र भी आ गया. उस ने किसी से कोई बात नहीं की. बस, साथसाथ लगा रहा. डाक्टर ने दोबारा एमआरआई जांच की सलाह दी. मैं सम?ाता था, यह सब अंत समय की तैयारी थी, फिर भी सहमति दे दी. नंदिता जांच के लिए चली गई. मैं और राजेंद्र प्रतीक्षा करने लगे. दोनों मौन. मैं ने सोचा, क्यों न एक ?ाठ बोल कर सारा सच जान लूं तो पूछ ही बैठा, ‘‘राजेंद्र, क्या अब भी तुम मु?ा से छिपाओगे कि तुम और नंदिता एकदूसरे से पहले से परिचित नहीं हो?’’ मेरे इस प्रश्न से राजेंद्र कुछ घबरा सा गया था, कहने लगा, ‘‘तो फिर सच जान ही लीजिए.

मैं और नंदिता एकदूसरे को चाहते थे. यह चाहत शारीरिक नहीं, बल्कि मन से मन की थी. हम दोनों के परिवारों की आर्थिक स्थिति दयनीय थी. कालेज के दिनों में भी नंदिता सिरदर्द की शिकायत करती थी. घर वाले कामचलाऊ इलाज कराते रहे लेकिन एक दिन पता चल ही गया कि बीमारी आगे चल कर खतरनाक हो सकती है और उपचार भी काफी महंगा हो सकता है.’’ ‘‘लेकिन तुम दोनों ने विवाह क्यों नहीं किया?’’ ‘‘भाईसाहब, प्रेम मानव जीवन के लिए सर्वस्व है पर प्रेम से भूख नहीं मिटती. निर्धनता नहीं मिटती और न ही बीमारी मिटती है. नंदिता के घरवाले इतने समर्थ नहीं थे और न ही मैं कि नंदिता का उपचार करा पाता.’’ ‘‘फिर क्या सोचा तुम ने?’’ यही मेरा मुख्य प्रश्न था.

‘‘मैं नंदिता को खोना नहीं चाहता था, न ही वह मु?ो खोना चाहती थी. इसी बीच आप की भेंट नंदिता से एक वादविवाद प्रतियोगिता में हुई. आप ने विवाह का प्रस्ताव भी रखा.’’ ‘‘लेकिन नंदिता ने तो इनकार कर दिया था. कुछ ही दिनों बाद उस का निर्णय कैसे मेरे पक्ष में हो गया?’’ ‘‘यह निर्णय हृदय का नहीं, जबान का था. मैं नहीं चाहता था कि नंदिता उपचार के अभाव में असमय ही इस दुनिया से चली जाए, इसीलिए मैं ने अपने जीवन की सौंगध दे कर उसे एक तरह से विवश किया कि वह आप से विवाह कर ले. कम से कम जीवित तो रहेगी,’’ कह कर राजेंद्र कुछ देर रुका. ‘‘ओह, इसीलिए उस दिन नंदिता कह रही थी कि अब तक का मेरा पूरा जीवन विवशताओं में बीता है,’’ मैं ने बात दोहराते हुए कहा. ‘‘हां, यही सच है. नंदिता ने मेरी भावनाओं को सम्मान देते हुए आप से विवाह किया. विश्वास मानिए. विवाह के बाद हम दोनों एकदूसरे को लगभग भूल ही गए केवल इस इक आशा के साथ कि हम दोनों हैं.

हमारा प्रेम है,’’ कह कर राजेंद्र चुप हो गया. ‘‘तो क्या नंदिता ने मेरे साथ छल नहीं किया?’’ मैं ने पूछा. ‘‘क्या कभी आप को इस बात का रंचमात्र भी आभास हुआ कि पिछले 20 वर्षों से आप की ब्याहता नंदिता के किसी भी आचरण और चरित्र ने आप को अपमानित किया हो?’’ राजेंद्र के इस प्रश्न में एक यथार्थ था. शतप्रतिशत सचाई थी. नंदिता ने ऐसा कभी आभास नहीं होने दिया. मु?ो हमेशा लगा कि वह मन, वचन व कर्म से मेरी पत्नी है. ‘‘लेकिन इतने बड़े त्याग के बाद और वह भी इतने वर्षों बाद तुम अकस्मात ही प्रकट हो गए? तुम्हारा परिवार कहां है?’’ ‘‘मैं ने कहा था न कि मैं नंदिता को सुखी देखना चाहता था, उसे खोना नहीं. यह संयोग ही था कि मेरा भी रक्त समूह नंदिता से मिलता था.

उस का जीवन बचाने और एक बार देख लेने की सुप्त इच्छा एकाएक जाग उठी और मैं रक्तदान को माध्यम बना कर चला आया.’’ ‘‘जहां तक परिवार का प्रश्न है, मैं अभी भी अविवाहित हूं. अब जब जान गया हूं कि नंदिता को कैंसर है और वह कुछ ही दिनों की मेहमान है, मन कहता है जितना ज्यादा से ज्यादा उस के पास रह सकूं, रहूं. यही विवशता बारबार मु?ो उस के पास खींच लाती है, भाईसाहब,’’ कहते हुए राजेंद्र के स्वर में जो कंपन था वह मैं स्पष्ट अनुभव कर रहा था. ‘‘त्याग और प्रेम की पराकाष्ठा का ऐसा दुर्लभ दृष्टांत मैं ने न कभी सुना और न ही देखा, राजेंद्र. मैं तुम्हारी भावनाओं एवं मानसिकता को सम?ा सकता हूं. कैसा दुखद दुर्योग कि वर्षों पहले जिस प्रेमयज्ञ को तुम दोनों ने मिल कर प्रज्ज्वलित किया, उस के हवनकुंड में आज तुम ही दोनों को अपनाअपना जीवन होम करना पड़ा.’’ मैं कुछ कहता, तभी नंदिता जांच करा कर वापस लौट आई. मैं ने राजेंद्र के साथ नंदिता को घर भेज दिया.

मैं चाहता था अब हर क्षण वे दोनों साथ रहें. 2 घंटे बाद जब डाक्टर ने रिपोर्ट दी तो स्पष्ट कर दिया कि ‘ट्यूमर’ फिर बढ़ गया है और नंदिता का जीवन 3-4 महीने से ज्यादा का नहीं है. यह वज्रपात था मेरे ऊपर. नंदिता ने अब तक एक सच्चे जीवनसाथी सा साथ दिया लेकिन मैं क्या दे सका उसे, कुछ नहीं. जिस रोगमुक्त जीवन की आशा में नंदिता और राजेंद्र ने अपना सर्वस्व त्याग दिया, वह जीवन भी तो मैं नंदिता को नहीं दे सका. यही सब सोचतेसोचते घर आ गया. ‘‘क्या निकला रिपोर्ट में?’’ नंदिता और राजेंद्र ने लगभग साथ ही पूछा. ‘‘अभी तक तो सब ठीक ही है,’’ मैं ने ?ाठ बोल कर नंदिता को मृत्यु के भय से दूर रखना चाहा. ‘‘देखें, कब तक ठीक हो पाती हूं?’’ नंदिता बोली. उस के कथन से जीवन के प्रति मोह और मृत्यु के प्रति भय स्पष्ट ?ालक रहा था. अवसर देख कर राजेंद्र ने एकांत में मु?ा से पूछा, ‘‘कम से कम मु?ो तो अंधेरे में न रखिए.’’

‘‘अब आगे अंधेरा ही अंधेरा है, राजेंद्र, हम तीनों की नियति में घोर अंधकार ही शेष है,’’ क्षीण स्वरों में मैं बोला. ‘‘क्या कह रहे हैं आप?’’ ‘‘वही जो डाक्टर ने कहा. 3-4 महीने से ज्यादा का साथ नहीं है हमारा और नंदिता का,’’ न चाहते हुए भी मु?ो यह कठोर सच कहना पड़ा. ‘‘ओह, इतना कठिन जीवन रहा नंदिता का. क्या होगा अब? क्या करूं मैं? कुछ सू?ाता ही नहीं अब तो,’’ राजेंद्र बड़बड़ाने लगा. मैं भी बहुत असहज हो उठा था पर फिर भी राजेंद्र को सम?ाया. ‘‘होगा क्या, वही जो होना है. नंदिता के लिए एक पीड़ाविहीन और शांतिमय मृत्यु की प्रार्थना के अलावा हम कुछ भी नहीं कर सकते. राजेंद्र, उठो, चलो, अब नंदिता के शेष जीवन को हम दोनों अपने प्रेम और स्नेह से सींचें. मैं एक पति के रूप में, तुम एक प्रिय के रूप में.’’ हम दोनों साथ ही उठे और बढ़ चले उस कक्ष की ओर जिस में नंदिता प्रतीक्षा कर रही थी, न जाने किस की? मेरी, राजेंद्र की, हम दोनों की या अपने नश्वर नारीदेह के अनंत में मिल जाने की.

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