बहुमुखी प्रतिभा की धनी बंगाली और हिंदी फिल्मों की अदाकारा,गायक,लेखक तथा पष्चिम बंगाल की सबसे कम उम्र की फिल्म निर्माता रिताभरी चक्रवर्ती ने महज पंद्रह साल की उम्र और दसवीं की बोर्ड परीक्षा देने के बाद बंगला सीरियल ‘‘ओगो बोधी संुदर’’ में अभिनय कर जबरदस्त षोहरत हासिल की थी.यही सीरियल बाद में ‘ससुराल गेंदा फूल’ नाम से हिंदी में भी बना और सफल रहा.इस सीरियल के सफल होने के बावजूद रिताभरी को अपने नाना के कहने पर अभिनय पर विराम लगाते हुए पढ़ाई पर ध्यान देना पड़ा था.
जबकि रिताभरी की मां सतरूपा सान्याल स्थापित व इंटरनेशनल ख्याति प्राप्त फिल्म सर्जक हैं.खैर, रिताभरी ने पढ़ाई में भी गोल्ड मैडल हासिल किया.पर इतिहास विशय के साथ स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होेने अपने नाना से आज्ञा लेकर अभिनय में पुनः कदम रखा.इस बार उन्हें काफी संघर्ष करना पडा.
पर रिताभरी ने बंगला फिल्मों में काफी सफलता हासिल की.मगर मन माफिक काम करने के लिए वह स्वयं निर्माता भी बनी.फिल्म की पटकथा भी लिखी. कुछ हिंदी म्यूजिक वीडियो के अलावा लघु फिल्म ‘नेकेड’ में कल्की के साथ अभिनय किया, जिसका निर्माण स्वयं रिताभरी चक्रवर्ती ने ही किया था. इस फिल्म ने अपने बोल्ड विशय के कारण जबरदस्त हंगामा मचाया और रिताभरी को अनुष्का शर्मा के साथ हिंदी फिल्म ‘‘परी’’ में अभिनय करने का अवसर मिला.
इन दिनों वह अपनी ही लिखी कहानी पर एक हिंदी फिल्म में अभिनय कर रही हैं,तो दूसरी तरफ वह अपनी नई बंगाली फिल्म ‘‘फटाफटी’’ को लेकर सुर्खियों में हैं.
इस फिल्म में उन्होेने किसी भी लड़की के शरीर का वजन बढ़ने पर ट्ोल करने वालों को जवाब देने के साथ ही यह संदेश दिया है कि हर लड़की को अपने शरीर को अपने तरीके से रखने का हक है.उस पर किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए.
रिताभरी ऐसी अदाकारा हैं जिन्हे एक अंग्रेजी अखबार द्वारा 2018 में ‘मोस्ट डिजायरेबल ओमन आफ इंडिया’ चुना गया था.इस सूची का हिस्स बनते हुए रिताभरी चक्रवर्ती ने कई बौलीवुड अदाकाराआंे को पीछे छोड़ दिया था.सोयाल मीडिया पर तीन मिलियन फालोवअर्स के साथ वह सामाजिक कार्यो से भी जुड़ी हुई हैं. वह सोशल मीडिया का उपयोग युवा पीढ़ी को सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने का संदेश ेदेने के लिए करती रहती हैं.
रिताभरी चक्रवर्ती बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी राय ‘टेडएक्स’,‘जोश टॉक्स’ व ‘इंक टॉक’जैसे कार्यक्रमों में देती रहती हैं.
प्रस्तुत है रिताभरी चक्रवर्ती से हुई बातचीत के अंश..
2012 से 2022 के अपने दस वर्षीय कैरियर को किस तरह से देखती हैं?
-मेरे अब तक के जीवन में फिल्म इंडस्ट्ी मंे दस वर्ष ही सबसे बड़ी युनिवर्सिटी रही है.मैने बहुत कुछ सीखा.मेरी समझ मंे आया कि अच्छी व यादगार फिल्में ही करनी है.जब हम नए नए होते हैं,उस वक्त हमें फिल्म करनी होती है.उस वक्त हमारी नजर में फिल्म से इतर कुछ नजर नहीं आता.मेरी नजर मे निर्माता, निर्देशक, लेखक,कैमरामैन व कलाकार हम सब मिलकर फिल्म बनाते हैं.लोग मुझे भूल जाएं,मैं इसकी परवाह नही करती.लोगो को राजाओं के नाम कहंा याद रहते हैं? लोग षाहजहां को याद नहीं करते,पर ताजमहल याद रहता है.तो लोग
मुझे याद रखें या न रखें,मगर मेरी फिल्मों को याद रखंे.इसलिए मुझे यादगार फिल्में करनी है.वैसे मेरे अभिनय कैरियर की षुरूआत 15 वर्ष की उम्र में सीरियल ‘‘ओगो बोधी संुदरी’’ से हुई थी.
मतलब?
-मेरी बड़ी बहन भी अभिनेत्री है.मैं दसवीं की पढ़ाई कर रही थी,तभी एक दिन जब मेरी बहन आॅडीशन देने जा रही थी,तो मैं भी यंू ही उसके साथ चली गयी.कास्टिंग डायरेक्टर को मेरा चेहरा पसंद आ गया और उन्होने मेरा भी आॅडीशन ले लिया,जबकि मेरी समझ में नहीं आया था कि उन्होने मेरा आॅडीशन लिया है.उन दिनो मैं बहुत ही ज्यादा स्पोर्टिंग पर्सन थी.
इसलिए कास्टिंग डायरेक्टर ने मुझसे कुछ करने व कुछ कहने के लिए कहा,तो मैने वैसा कर दिया.फिर मेरी मां के पास निर्माता रवि ओझा का फोन आया कि वह मुझे अपने अगले प्रोजेक्ट में लेना चाहते हैं.मेरी मां ने साफ साफ मना कर दिया कि रिताभरी के कुछ माह में ही दसवी के बोर्ड की परीक्षाएं हैं,इसलिए वहअभिनय नही करेगी.मगर रवि ओझा मुझे भूले नही.तीन माह बाद फिर से रवि ओझा जी ने मेरी मम्मी को फोन करके कहा कि अब बोर्ड की परीक्षाएं खत्म हो गयी हैं.अब आप उसे मेरे अगले प्रोजेक्ट के लिए काम करने की इजाजत दे दें.
पर मेरी मां को लग ही नही रहा था कि मुझे अभिनेत्री बनना है और मैने भी कुछ नही सोचा था.जब रवि ओझा जी ने काफी दबाव डाला तब मम्मी ने कहा कि कहानी सुन लो तुम्हे अच्छी लगे तो कर लेना.मैने सीरियल ‘ओगो बोधी संुदरी’ की कहानी सुनी,अच्छी लगी.मैने 15 वर्ष की उम्र में इसमें अभिनय किया और मजा आया.लेकिन उसके बाद मैं फिर से पढ़ाई में व्यस्त हो
गयी.क्योंकि मेरे नाना जी चाहते थे कि मैं इतिहास विशय के ेसाथ स्नातक तक की पढ़ाई पूरी करुं. कालेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद मैने अपने नाना जी से कहा कि मुझे तो अभिनय ही करना है और मैं अभिनय के मैदान में कूद पड़ी.
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15 वर्ष की उम्र में बिना किसी प्रयास के आपको टीवी सीरियल में अभिनय करने का अवसर मिल गया था,मगर जब आपने कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद फिल्मों में अभिनय करना चाहा,तब किस तरह का संघर्ष रहा?
-मेरी समझ में आया कि यह प्रोफेशन इतना आसान नही है,जितना मुझे लग रहा था.मेरी समझ में आ गया कि इस इंडस्ट्ी में सफल होना, अपनी जगह बनाना,एक मुकाम पाना मुष्किल ही नहीं बहुत मुष्किल है.बहुत मेहनत का काम है.पर मैं मेहनत करने को तैयार थी.इसलिए मेहनत करनी षुरू की.मेेरे कैरियर की पहली दो फिल्में प्रदर्षित नहीं हुई और आज मैं उसके लिए ईष्वर की आभारी हॅूं.उन फिल्मों का मैं जिक्र भी नहीं करना चाहती.दोनो फिल्में देखने नायक नही है.उस वक्त मुझे इतनी समझ नही थी.जबकि मेरी मां फिल्म मेकर हैं.मेरी मम्मी इंडीपेंडेट सिनेमा बनाती है.मैं उनकी फिल्मों की प्रषंसक हॅूं,पर बतौर अभिनेत्री मुझे वैसी फिल्में नहीं करनी थी.वैसे मैने फेस्टिवल प्रधान फिल्में भी की हैं.मेरी पिछली बंगला फिल्म ने कम से कम 15 इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में षोहरत बटोरी थी.मैने राष्ट्ीय पुरस्कार प्राप्त निर्देशक के साथ भी काम किया है.मैने महसूस किया कि कुछ फिल्मकार अपनी फिल्म के साथ कई देषों की यात्रा करने के लिए फिल्म बनाते हैं.वह अपनी फिल्म थिएटर में रिलीज नहीं करना चाहते.इस तरह के काम करने का भी अपना आनंद व प्यार है.मगर मुझे वह फिल्में करने में आनंद मिलता है,जिन्हे ज्यादा से ज्यादा दर्षक देखकर अपनी प्रतिक्रिया दे.कालेज की पढ़ाई करने के बाद मेरी नासमझी यह थी कि फिल्में करती रहो, और स्टार अभिनेत्री बन जाओगी.इसी गलत समझ के चलते मंैने दो फिल्में कर ली थीं.इन फिल्मों की कहानी व निर्माण यात्रा भी बहुत खराब थी.लेकिन फिर समझ आयी.षुरूआत मंे मुझे लीड हीरोईन के रूप में फिल्में पाने में काफी दिक्कतें हुई.
दो वर्ष तो बहुत दिक्कत हुई.इसकी एक वजह यह भी रही कि बंगाल फिल्म इंडस्ट्ी जरुरत से ज्यादा पितृसत्तात्मक सोच यानी कि पुरूश प्रधान है.कुछ ऐसे फिल्मों के आफर आए थे,जिन्हे स्वीकार करना मेरे लिए संभव नहीं था.तो वह फिल्में दूसरी हीरोइनों को चली गयी.मुझे यकीन था कि ‘अपना भी समय आएगा’.
जब आपका बंगला फिल्मों में कैरियर अच्छा चल रहा था,तो फिर आपने निर्माता बनने की क्यों सोची?
-जी हाॅ! यही सच है.जब मुझे लगा कि मुझे यादागर फिल्मों में अभिनय करने का अवसर नही मिल रहा है,क्योंकि यादगार फिल्में बनाने वाले निर्देशकों को नहीं लग रहा है कि मैं बाक्स आफिस पर सफल होने वाली फिल्म दे सकती हॅूं.या उन निर्देशकों को सीधे तौर पर मुझसे कोई फायदा नहीं मिल रहा है.तब मैने सोचा कि मुझे ख्ुाद ही अपनी प्रतिभा से लोगों को परिचित
कराने के लिए ख्ुाद ही कदम उठाना चाहिए.मैने सोचा कि मैं अपने निर्माण मंे खुद को इस तरह से पेश करुं कि मेरी बिरादरी व बंगला फिल्मकारांे को अहसास हो कि मैं फिल्म का हिस्सा बनने योग्य हॅूं.और ऐसा ही हुआ.वैसे भी टीवी से फिल्म की यात्रा काफी तकलीफ देह होती है.दूसरी बात मेरा सीरियल सुपर डुपर हिट था.इसी पर ंिहदी में ं‘ससुराल गेंदा फूल’ नामक सफल सीरियल बनाया गया.
उसके बाद निर्माता ने बंगला की बजाय हिंदी सीरियल बनाने षुरू कर दिए.मुझे समझ में आया कि बतौर निर्माता मैं अपनी प्रतिभा की रंेज से लोगों को अवगत करा सकती हॅूं.इसलिए मैने निर्माण के क्षेत्र मंे भी कदम रखा.मैं पूरे विष्व को अपनी प्रतिभा दिखाना चाहती थी.मैने आयुष्मान खुराना के साथ म्यूजिक वीडियो ‘‘अरे मन’’ किया, जिसका निर्माण मंैने ख्ुाद ही किया था.इस म्यूजिक वीडियो का काॅंसेप्ट,आर्ट डायरेक्षन भी मेरा ही था.मैने आयुष्मान ख्ुाराना के अलावा अनुराग कष्यप,रजत कपूर व कुणाल करन कपूर के साथ भी म्यूजिक वीडियो बनाया.मंैने ंिहंदी में लघु फिल्म ‘‘नेकेड’’ का निर्माण किया,जिसमें मैंने कलकी कोचलीन के साथ अभिनय किया.इसे काफी सराहना मिली.
इन म्यूजिक वीडियो व लघु फिल्मांे में मैने अपने अभिनय की उस रेंज को दिखाया,जो कि मैं बंगला फिल्म करते हुए नहीं दिखा पा रही थी.मैने डीग्लैमरस किरदार निभाकर सभी को चकित कर दिया.उसके बाद बंगला फिल्म इंडस्ट्ी में मुझे मनपसंद काम मिलना षुरू हुआ.उसी के बाद मैने बंगला फिल्म के सुपर स्टार जीत के साथ ‘‘षेश थेके षुरू’ की.धीरे धीरे मेरी अभिनय की प्रषंसा होने लगी,षोहरत मिली और फिर मुझे सोलो हीरो के रूप में फिल्म ‘‘ब्रम्हा जानेन गोपों कोम्मोटी ’’ मिली.मतलब इस फिल्म में पुरूश कलाकार नही मैं प्रोटोगाॅनिस्ट हॅूं.इसके अलावा मैने अनुष्का शर्मा के साथ हिंदी फिल्म ‘परी’ की. राम कमल मुखर्जी के निर्देशन में ‘ब्रोकेन
ुफ्रेम’ किया.बंगला में ‘टिकी टका’ व ‘एफ आई आर’ की,जिसमें मुख्य प्रोटोगाॅनिस्ट मेरा ही किरदार है.मैं आखिरी संास तक काम करना चाहती हॅूं.मैं किसी भी मुकाम पर अवकाश नहीं लेना चाहती.मुझे इतना पता है कि मैं जिंदगी के अंतिम समय तक फिल्म बिजनेस व क्रिएिटिब बिजनेस में ही रहूंगी.मै निर्माण के साथ ही लेखन व निर्देशन भी करना चाहॅूंगी.मैने महज 21
वर्ष की उम्र में ‘अरे मन’ में एक साथ कई जिम्मेदारियंा उठायी थीं. मुझे लगता है कि हम जैसे जैसे उम्र में बड़े होते जाते हैं,अनुभवांे के आधार पर हम अपने आप से सवाल करने लगते हैं.अब मंुबई व कलकत्ता में मेरी टीम है.जो सारे काम को अंजाम देती रहती है.पर जब मैंने आयुष्मान ख्ुाराना व अनुराग कष्यप के साथ काम किया था,तब मुझे प्रोटोकाल की समझ ही नही थी. मैने अपनी अब तक की यात्रा अपने हिसाब से ही तय की है.
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बतौर अभिनेत्री आपने बंगला फिल्मों मंें सफलता पायी,मगर निर्माता के तौर पर आपने म्यूजिक वीडियो और लघु फिल्म हिंदी में बनायी.इसके पीछे क्या सोच रही?
-इसकी दे वजहें रही.पहली वजह तो यही रही कि मुझे ‘पैन इंडिया’ दर्षक चाहिए थे.कोई कुछ भी कहे पर हिंदी फिल्म इंडस्ट्ी ही सबसे बड़ी इंडस्ट्ी है.मैं अच्छी हिंदी बोल लेती हॅूं.समझ लेती हॅूं.मुझे पूरे भारत देश में काम करना है.इसी वजह से मैने डाॅ. बिरजू के निर्देशन में मलयालम
व अंग्रेजी भाषा की फिल्म ‘‘पेंटिंग लाइफ’ में भी अभिनय किया.यदि मैने आयुष्मान के साथ म्यूजिक वीडियो हिंदी में नहीं किया होता,तो मुझे अनुष्का शर्मा के साथ हिंदी फिल्म ‘परी’ करने का अवसर न मिलता. अपनी बंगलाइंडस्ट्ी में नाम होना,षोहरत मिलना अलग बात है.पर हिंदी में काम करके मैं विषाल दर्षक वर्ग तक पहुॅच सकी.इसी के साथ मेरी समझ में आया कि किसी भी बंगला फिल्म में कठपुतली की तरह काम करने से मैं इंकार कर सकती हॅूं.
अगर आज मैं एक बड़ी ज्वेलरी कंपनी का चेहरा हॅूं और कटरीना कैफ के साथ होर्डिंग्स पर मेरा चेहरा है,तो इसका कारण हिंदी फिल्मों व म्यूजिक वीडियो में मेरा नजर आना ही है.मैने राष्ट्ीय स्तर पर अपनी एक जगह बनाने के प्रयास कर दिए हैं.दूसरी बात जब आप हिंदी फिल्में करते हैं,बाॅलीवुड कलाकारो साथ अभिनय करते है,तो बंगाल में आपकी कद्र बढ़ जाती है.
हिंदी लघु फिल्म ‘‘नेकेड’’ में क्या खास बात थी कि आपने इसका निर्माण भी किया था?
-यह फिल्म सोशल मीडिया ट्ोलिंग को लेकर थी.जिसका सामना लगभग हर इंसान को करना पड़ रहा है,खासकर लड़कियों को.मेरा एक बिकनी का फोटो एक पत्रिका के एडीटोरियल में छपा था,उसी से मेरी ट्ोलिंग षुरू हुई थी.जबकि मैने सपने में भी नही सोचा था कि मैंने स्वीमिंग कास्ट्यूम पहना है,इसलिए लोग मुझे ट्ोल करना षुरू कर देंगे.लोगों ने मेरे चरित्र,मेरे इंसान होेने पर सवाल करने षुरू कर दिए थे.मैने महसूस किया कि यह तो बहुत गलत है.मैं अकेली ऐसी लड़की नही हॅूं,जिसने बिकनी या स्वीमिंग कास्ट्यूम पहनी हो.स्वीमिंग करते समय या समुद्री बीच पर लगभग सभी इसी तरह की पोषाकें पहनती हैं.मैने पाया कि राष्ट्ीय स्तर पर काम कर रहे कलाकार लगभग हर दिन इसी तरह से ट्ोलिंग के षिकार होते हैं.मैने इस फिल्म में अपने साथ कलकी को जोड़ा,क्योंकि उसकी एक फिल्म ‘‘दैट गर्ल इन एलो बूट्स’’ आयी थी,इस फिल्म की एक क्लिप को कुछ लोगों ने बहुत गलत ढंग से प्रसारित कर दिया था और उसे ट्ोल किया था.यदि आप ट्ोल करने वालांे से सीधे लड़ाई करते हैं,तो उसमें लोगांे से संवाद नहीं होता.मैने महसूस किया कि ट्ोल करने वाले लोगों को अपने काम से जवाब दो या उन्हे इग्नोर कर अपना काम करते रहो.इसी सोच के साथ मैने ‘नेकेड’ की कहानी ,पटकथा व संवाद लिखे और इसका निर्माण किया.जबकि इसका निर्देशन राकेश कुमार ने किया.मुझे खुषी
है कि कलकी को यह आइडिया पसंद आयी और उसने मेरी फिल्म में मेरे साथ अभिनय किया.इस फिल्म के लिए कलकी को ‘फिल्मफेअर अवार्ड’ का नोमीनेशन भी मिला था.इस फिल्म से लोगो के बीच कनवर्सेशन षुरू हुआ.फिल्म की काफी चर्चा हुई.इसी के चलते मुझे अनुष्का शर्मा के साथ फिल्म ‘‘परी’’ में अभिनय करने का अवसर मिला था?
अनुष्का शर्मा के साथ आपने फिल्म ‘‘परी’’ की थी,जिसे काफी षोहरत मिली थी,पर बौलीवुड में आपका कैरियर कुछ खास नही रहा?
-फिल्म ‘परी’ 2018 में प्रदर्षित हुई थी.उसके बाद मुझे जो फिल्में मिली,उनमें से दो तीन फिल्में मैने ख्ुाद ठुकरा दी.क्योकि मेरे कुछ दोस्तो ने कहा कि,‘बंगला में आप चाहे जो करती रहें,मगर बाॅलीवुड में ‘बी’ ग्रेड फिल्में मत करना.एक बार ‘बी;ग्रेड फिल्म कर लोगी,तो फिर ‘ए’ ग्रेड काम नही मिलेगा.मुझे एक फिल्म मिली, जिसे मैं करना चाहती थी.यह लड़की स्लम से आगे बढ़ती है.इसके लिए मैने दस किलो वजन घटाया था.लेकिन अंतिम समय में फिल्म का निर्देशक बदल गया.नए निर्देशक ने मेरी जगह दूसरी अभिनेत्री को चुना.मैं उस फिल्म का नाम नही लेना चाहती.वैसे वह फिल्म सफल हुई थी.
अब इसे ‘लक’ ही कहा जाएगा.फिर एक बहुत बड़े निर्देशक के साथ मुझे दूसरी हिंदी फिल्म मिली थी.निर्देशक ने मेरे साथ कुछ दृष्यों को लेकर बात की थी.मैने कह दिया था कि जहंा तक आप इसे कलात्मक ढंग से फिल्माएंगे, मुझे करने में कोई एतराज नही है.सब कुछ तय था,पर अचानक इसमें भी मेरी जगह कोई अन्य हीरोइन आ गयी थी.कुछ वेब सीरीज के भी आफर थे.पर तब मैं वेब सीरीज करने को लेकर असमंजस में थी.मैने सोचा कि कुछ लोगो को कर
लेने देते हैं.क्या परिणाम आते हैं,उसके बाद सोचेंगें.अब देख रही हॅूं कि वेब सीरीज पसंद की जा रही हैं.अच्छा काम हो रहा है.कुछ वेब सीरीज तो फिल्म से भी ज्यादा पसंद की जा रही हैं.अब नई फिल्म की कहानी मैंने ही लिखी है.बहुत बेहतरीन कहानी है.इसकी पटकथा एक नामचीन लेखक ने लिखी है.
आपने एक हिंदी फिल्म के लिए दस किलो वजन घटाया था,जिसे आप कर नही पायी.अब बंगला फिल्म ‘फटाफटी’ के लिए 25 किलो वजन बढ़ाया है?
-मैं मानती हॅूं कि मेरी बौडी मेरा इंस्ट्यूमेंट है.मैं किसी भी किरदार को निभाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हॅूं.‘फटाफटी’ का सब्जेक्ट ग्लोबल सब्जेक्ट है.मुझे लगता है कि कम से कम षो बिजनेस में हर लड़की,फिर चाहे वह सोनाक्षी सिन्हा हो या मसाबा गुप्ता हो या कोई अन्य,जिनका वजन बढ़ा हो और फिर उनकी ट्ोलिंग न हुई हो.हमेषा होती है.सिर्फ हीरोईन ही नही आम जीवन मंे भी हर लड़की की बौडी को एक खास षेप में ही लोग देखना चाहते है.मैं इस फिल्म के माध्यम से लोगों की सोच को पूरी तरह से बदल तो नहीं सकती,मगर मुझे उम्मीद है कि इस फिल्म से लोगांे के बीच कंवर्सेशन जरुर षुरू होगा.जोग विचार विमर्ष करेंगे.और लोग अहसास करेंगे कि किसी भी इंसान को उसकी षारीरिक बनावट के आधार पर
‘जज’ करना कितना गलत है.इसी संदेश को लोगों तक पहुॅचाने के लिए मैने 25 किलो वजन बढ़ाया और फिर घटाया है.इसके लिए मैने न्यूट्ीषियन व डायटीषियन की मदद ली.मुझे ख्ुाषी है कि मैने यह सब किया.जब मैने डबिंग करते समय फिल्म देखी,तो मैं ख्ुाद को पहचान न सकी.इतना ही नहीं फिल्म के क्लायमेक्स को देखकर मेरी आॅंखों मंे आंसू आ गए थे.हकीकत यह है कि इस फिल्म को करते समय मेरे अंदर बहुत डर बैठा हुआ था.
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फिल्म ‘‘फटाफटी’’ को लेकर क्या कहना चाहेंगी?
-यह फिल्म डबल एक्सल माॅडल वाली महिला की कहानी है.जो कि सीधी सादी महिला है.उसका अपना घर है.पति है.पर वह खुद गोल मटोल है.स्वस्थ है. कोई बीमारी नही है.इसमें स्वास्थ्य की भी बात की गयी है.फिल्म की नायिका को डिजाइनिंग,टेलरिंग आदि काम भी बहुत पसंद हैं.लेकिन उसे लगता है कि उसकी अपनी सीमाएं हैं.क्योंकि उसका फिगर माॅडल वाला नही है.वह सोचती है कि हमारे जैसे फिगर वालों के लिए कोई कुछ क्यों नही करता.तो वह सब
काम छोड़कर खुद ही ब्लाॅग लिखना षुरू करती है.पर यह बात उसके परिवार में किसी को नहीं पता.एक दिन उसका ब्लाॅग ‘फटाफटी’ काफी लोकप्रिय हो जाता है.
आपकी राय में इस फिल्म का लोगों पर खासकर ट्ोलिंग करने वालों पर क्या असर होगा?
-मजा आएगा.लोग फिल्म देखते हुए इंज्वाॅय करेंगे.मैने या दूसरे लोगांे ने जो भी अनुभव किए हैं,वह सब इस फिल्म का हिस्सा है.वजन बढ़ने पर ट्ोलिंग से लेकर क्या क्या लड़के या लड़की झेलते हंै,वह सब है.इसके कई दृष्यों के साथ हर कोई रिलेट कर पाएगा.इसमें एक दृष्य है,जहां जींस का बटननही अटक/बंद हो रहा है.यह बहुत ही संजीदा व इमोशनल सब्जेक्ट है.
वजन को एक तय सीमा के अंदर घटाने या बढ़ाने का शरीर पर क्या असर पड़ता है?
-इसका शरीर को काफी नुकसान होता है.इसीलिए मैंने न्यूट्ीषियन की मदद ली.मैं किसी को भी वजन घटाने या बढ़ाने की सलाह नहीं देती.यह तभी करना चाहिए जब आपके पास एक ज्ञानी न्यूट्ीषियन हो.जिनके शरीर का वजन ज्यादा होता है,वह नेच्युरली होता है.जब मैने वजन बढ़ाया तब मुझे बहुत ब्लीडिंग हो रही थी.सीढ़ियंा चढ़ने में तकलीफ होती थी.
आपका अपना एनजीओ भी है?
-जी हाॅ!मैं अपनी माँ के साथ मिलकर एक गैर सरकारी संगठन “स्कॉड सोसाइटी फॉर सोशल कम्युनिकेशन” चलाती हॅूं.इस एनजीओ के तहत हम मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के विकास पर काम करते हैं.इसके अलावा मैं आइडियल स्कूल फॉर डेफ से जुड़ी हुई हॅूं.मैं 2016 तक डॉग ओनर्स एंड लवर्स एसोसिएशन (डोला) की राजदूत थीं.मैं सोशल मीडिया पर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भी काफी बातें करती रहती हॅंू.