बच्चे बहुत बार मातापिता से मिली आजादी का गलत इस्तेमाल कर बैठते हैं. ऐसे में जरूरी है कि मांबाप बच्चों को इतनी भी आजादी न दें कि वे उन्हीं से कटने लगें, उन की डोर अपने हाथों थामे रहें. जैसे ही मुझे पता चला कि मेरी सहेली सुधा की बेटी रीवा ने सल्फास खा कर अपनी जान देने की कोशिश की है, मैं सकते में आ गई. रीवा बहुत ही जिंदादिल और जिंदगी को भरपूर जीने वाली ऊर्जा से भरपूर लड़की थी. उस से इस तरह के कायरतापूर्ण कदम की उम्मीद मुझे बिलकुल भी नहीं थी.

हकीकत तो सुधा से मिल कर ही पता चलेगी. मुझे इस मुश्किल घड़ी में अपनी दोस्त के साथ होना चाहिए, यही सब सोचते हुए मैं सुधा और रीवा से मिलने सिटी अस्पताल चल दी. रीवा की नाजुक हालत देख कर मैं भी अपनेआप को नहीं संभाल सकी. इस कली को मुर?ाने मत देना, मन ही मन विचारती हुई मैं ने सुधा के कंधे पर हाथ रखा. मेरा स्पर्श पाते ही सुधा के भीतर रुका हुआ सैलाब अपने बांध तोड़ कर बह निकला. वह मेरे कंधे से लग कर फफक पड़ी. मैं ने उसे शांत कर के पूरी घटना बताने को कहा. सुधा रोतेरोते बोली, ‘‘सारी गलती मेरी ही है. काश, मैं ने रीवा को ढील देते समय डोर को अपने हाथों से थामे रखा होता तो आज यह यहां इस हाल में न होती.’’ सुधा ने बताया कि रीवा अपने कालेज के फर्स्ट ईयर में पहली बार उन के स्वागत में दी गई फ्रैशर पार्टी में गई थी. वहां कुछ सीनियर्स के साथ उस की दोस्ती हो गई. वे बुक्स और नोट्स आदि से भी खूब मदद करते थे.

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