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Raksha Bandhan : बंधन कच्चे धागों का

पूजा अकसर अपनी सहेलियों व दोस्तों से कहा करती थी कि मैं सारी उम्र जगजीत सिंह की गजलों, गुलजार सिंह की गजलों और गुलजार की फिल्मों के सहारे बिताऊंगी. ये दोनों कमरे में हों तो कोई अकेला नहीं हो सकता.

संजय वर्मा को पूजा की बातें और अंदाज दोनों इस कदर पसंद थे कि कई बार वह उस से शादी की बात करने की सोच कर भी कह नहीं सका क्योंकि हिम्मत नहीं जुटा पाया था.

पूजा अकसर कैंटीन में चाय के साथ समोसे या पकौड़े खाते हुए अपने दोस्तों को अपने साथ बीती हुईं सड़कछाप आशिकों की कहानियां सुनाया करती.

‘‘मैं कल घर जा रही थी. दोपहर का समय था. 2 लड़के बेसुरा राग अलापते हुए बगल से गुजरे, ‘तुम हम से दोस्ती कर लो, ये हसीं गलती कर लो.’ मैं ठीक उन के सामने जा कर खड़ी हो गई और कहा, ‘ठीक है, चलो, दोस्ती करते हैं.’ मेरे इतना कहते ही वे दोनों लड़के सकपका गए और माफी मांगने लगे.’’

सीमा ने कहा, ‘‘तुम्हें क्या पड़ी थी इस तरह प्रतिक्रिया जाहिर करने की?’’

‘‘क्या मैं सब्जी या गोबर हूं जो प्रतिक्रिया व्यक्त न करती. मैं उन लड़कों को छेड़खानी का वह मजा चखाती कि याद रखते.’’

‘‘क्या कर लेतीं तुम?’’

‘‘मैं उन के ‘आई कार्ड’ रखवा लेती. उन को यूनिवर्सिटी से निकलवा देती…’’

संजय बीच में बोला, ‘‘पूजाजी, आप जीवन को इतनी सख्ती से क्यों लेती हैं. क्या हुआ किसी का मन थोड़ा आवारा हो उठा तो.’’

‘‘नहीं, मु झे आवारगी पसंद नहीं. वह तो उन्होंने माफी मांग ली वरना…’’

‘‘आप को तो खुद संगीत से लगाव है.’’

‘‘हां, लेकिन सड़कछाप संगीत से नफरत है.’’

पूजा को खुद पता नहीं कि इधर वह कुछ ज्यादा ही सख्त मिजाज होती जा रही है. अगर कक्षा में कोई विषय अधूरा है तो वह बुखार में भी दवा की शीशी पर्स में डाल कर कक्षा में आ जाती. ऐसा लगता है जैसे इस एक प्राणी में अनेक और प्राणी आ बसे हैं- असफल समाजसुधारक, अकड़ू अफसर, अडि़यल क्लर्क और अधेड़ यौवना.

लेकिन 2-3 साल पहले तक ऐसा नहीं था. तब उस की अनेक सहेलियां और कई मित्र थे. दिन में जब यूनिवर्सिटी से लौटती तो उस की नजर अपने कंपाउंड के गुलमोहर पर पड़ती जहां अकसर कोई न कोई विद्यार्थी जोड़ा पढ़ाई के बहाने प्यार करता होता. प्रकृति के हरेपन के बीच उन की गुलाबी गुफ्तगू घंटों चलती.

पूजा को अकसर पुराने बीते दिन याद आते. कभी वह अपने 16वें तो कभी 21वें साल की यादों में डूब जाती. उसे लगता जैसे कल की ही बात थी जब वह रिकशा में बैठ कालेज जाने लगती तो उस के तीनों भाई उसे घेर लेते. एक रिकशे के आगे पायलट बन जाता, दूसरा, बगल में गार्ड और तीसरा, पीछे फुटमैन. तब इस बैंक रोड पर क्या मजाल जो कभी कोई फब्ती कसे या उसे घूरे. कालेज की अन्य लड़कियां जब उसे छेड़खानी के किस्से सुनातीं तो उसे अचंभा होता कि क्या लड़के ऐसे भी होते हैं? कभीकभी वह शीशे में अपनेआप को देखते हुए सवाल करने लगती, ‘क्या मैं सुंदर नहीं हूं? मु झे कोई कुछ क्यों नहीं कहता?’

एमएससी तक पहुंचतेपहुंचते पूजा की शादी के लिए कई प्रस्ताव आ चुके थे पर भाइयों को कोई भी लड़का अपनी बहन के काबिल नहीं लगा. एकाएक उस के पिताजी चल बसे. उन के स्थान पर उसे नौकरी मिल गई. इस के साथ ही जिंदगी की घड़ी कुछ अलग ढंग से टिकटिक करने लगी.

अब वह घर की बुजुर्ग थी. उस ने अपनी शादी का इरादा ताक पर रख भाइयों के भविष्य पर ध्यान दिया.

इस के बाद जिंदगी में कई  झटके लगे. मां का भी निधन हो गया. नए मिजाज की भाभियों का घर में आगमन, फिर भतीजेभतीजियों की चेंचेंपेंपें के साथ घर में कलह. अगर यह मकान पूजा के नाम न होता तो उसे यहां से कब का निकाल दिया गया होता. एकएक कर के सभी भाभियां अपने पति और सामान के साथ विदा हुईं. ऊपर से यह आरोप कि ये इतना लंबाचौड़ा मकान ले कर अकेली बैठी हैं और हम किराए के घरों में पड़े हैं.

पूजा किसकिस से कहे कि भाई सिर्फ नाम को अलग घर में रहते हैं. उन की आवाजाही और दखलंदाजी में कहीं कोई फर्क नहीं पड़ा था.

बड़े भाई के दोनों बच्चे स्कूल के बाद सीधे उस के पास ही आते हैं. वे यहीं बैठ कर होमवर्क कर के वीडियो गेम खेलते और चाटकुल्फी खाने का मजा लेते. वापस जाते समय बच्चे ऐसे रोने लगते जैसे अपने घर नहीं, पराए घर जा रहे हों.

गरमी की छुट्टियों में जैसे ही भाभी का इरादा मां या अपने भाई के घर जाने का बनता, दोनों बच्चे तुरंत कह देते कि हम तुम्हारे साथ नहीं जाएंगे, बूआ के पास रह लेंगे. भाभी तुनक कर बच्चों का गाल नोचती और कहती, ‘बूआ के यहां लड्डू बंट रहे हैं क्या?’

तीनों भाभियों के तेवर इस बात पर तीखे बने रहते कि पूजा की खोजखबर रखने में भाइयों को कोई आलस नहीं होता था. छोटे भाई की शादी को सिर्फ डेढ़ साल हुआ था. छोटी भाभी शाम को तैयार हो कर अपने पति से कहती, ‘चलो, घूम आएं.’

पति साथ चल देता पर स्कूटर उस का पूजा के घर आ कर रुक जाता.

वैसे पूजा कहीं कम ही आतीजाती थी. बहुत जरूरी होने पर ही कहीं जाती थी. उस दिन वह चित्रकला प्रदर्शनी देखने चली गई थी. आने में देरी हुई तो भाई नंबर 3 आपे से बाहर हो गया, ‘तुम इतनी रात को बाहर क्यों गईं? जमाना बहुत खराब है, दीदी, तुम जानती नहीं.’

पूजा ने उस के आगे अपनी कलाईघड़ी कर दी और बोली, ‘तू तो बेवजह डर रहा है, अभी सिर्फ 9 बजे हैं.’

भाई गुर्राया, ‘नहीं, बस, कह दिया, 5 बजे के बाद तुम घर से निकलोगी नहीं.’

‘मैं इतनी बड़ी हो गई हूं, बता, मेरी चौकीदारी तू करेगा या तेरी चौकीदारी मैं?’

‘दीदी, मजाक की बात नहीं, वारदात कभी भी हो सकती है.’ और फिर दीदी, आप के हाथों में मोटेमोटे 3 तोले के कड़े देख कर तो कोई भी लूट लेगा,’ भाभी ने कह डाला.

भाई से हुई तूतूमैंमैं पूजा को बिलकुल सामान्य लग रही थी पर उस की बीवी की बात उसे डंक मार गई.

‘हमारे दफ्तर में तो लड़कियां इस से भी भारी कंगन पहन कर आती हैं,’ पूजा ने अपनी भाभी को जवाब दिया.

पूजा की कलाइयों में पड़े कंगनों का इतिहास यह था कि ये कंगन उस की मां की यादगार थे. मां इन्हें हमेशा पहने रहतीं. उन के मरने के बाद उन का गहनों का बक्सा पूजा ने तीनों भाभियों में बांट दिया पर मां के हाथों में पड़े ये कंगन पूजा नहीं दे पाई. इसलिए जबतब भाभियों को ये कंगन खटकते रहते.

पिताजी के मरने के बाद मझली भाभी उन की आरामकुरसी ले जाना चाहती थी. मां ने टोका, ‘नहीं बहू, यह बरामदे में रखी है तो मुझे लगता है वे बैठे हैं.’

म झले भाई ने जवाब दिया, ‘इसीलिए तो हम इसे कमरे में रखना चाहते हैं.’

मां नहीं मानीं. उस समय तो भाई चुप हो गए पर मां के चले जाने पर वे एक दिन आ कर आरामकुरसी ले गए. जब तक भाइयों के नए घर सामान से भर नहीं गए, वे महमूद गजनवी की तरह हर हफ्ते आते और कोई न कोई चीज उठा ले जाते.

ऐसे तजरबों ने पूजा को तल्ख बना दिया. इस में सब से खराब बात यह थी कि पूजा के अंदर दूसरों की अच्छाइयां देखने, परखने की जो कुदरती क्षमता थी वह खत्म होने लगी और वह हर वक्त आशंकाओं से घिरी रहती.

वैसे भाइयों के लिए अभी भी उस का हृदय जबतब उमड़ता रहता था. भाइयों को ही फुरसत नहीं थी. अकसर वे शाम को सचल दस्ते की तरह आते, बहन को घर में देख आश्वस्त हो लौट जाते.

रक्षाबंधन पूजा के घर का बड़ा त्योहार था. जब पूजा छोटी थी तो हफ्तों पहले तीनों भाइयों की कलाइयों की नाप ले कर फूलों की राखियां बनाती. बड़ी होने पर न उस के पास इतना समय था, न धीरज. फिर भी वह जयपुर की बनी कलावस्तु की राखियां ला कर फल, मिठाई से थाल सजा कर भाइयों का इंतजार करती. सारा दिन आमोदप्रमोद में व्यतीत होता. लेकिन धीरेधीरे इस त्योहार का छोटा रूप सामने आने लगा. कई बार भाई भाभी व बच्चों के साथ आते पर कई बार भाभी और बच्चे साथ न आ पाते.

पूजा यही सोच कर खुश थी कि उस के भाई अभी भी उसे एकदम से भूले नहीं हैं.

इस बार सभी भाई आए, लेकिन अलगअलग.

भाई नंबर एक ने कहा, ‘‘दीदी, औफिस में आज छुट्टी नहीं है. राखी बांध कर जल्दी से खाना खिला दो तो मेरी एक छुट्टी बच जाएगी.’’

पूजा ने जल्दी से भाई की कलाई पर प्यार का बंधन बांधा, मुंह मीठा कराया और घर ले जाने के लिए मिठाई का डब्बा दिया.

भाई उल झन में पड़ गया और बोला, ‘‘इस समय तो मैं सीधा दफ्तर जाऊंगा. तू डब्बा रख ले, मैं शाम को वापसी में इसे ले जाऊंगा.’’

भाई नंबर 2 बीवीबच्चों समेत आया. पूजा ने राखी बांधने के बाद खाना लगाने का उपक्रम किया. भाभी के माथे पर बल पड़ गए.

भाई बोला, ‘‘दीदी, अभी इन्हें अपने घर जा कर भाइयों को राखी बांधनी है. वहीं खानापीना होगा.’’

पूजा ने कहा, ‘‘चलो, खीर तो खाते जाओ.’’

भाभी ने यह कह कर खीर भी नहीं चखी कि आज उस का व्रत है.

छोटा भाई अकेला आया और बोला, ‘‘दीदी, जल्दी से राखी बांध दो, मु झे वापस घर जाना है.’’

‘‘अभी तो आए हो, ऐसी क्या जल्दी है,’’ पूजा बोली.

‘‘बिंदू को अकेले डर लगता है. पड़ोस के लोग सब बाहर गए हुए हैं.’’

‘‘उसे भी ले आते. अकेला क्यों छोड़ आए?’’ पूजा ने कहा.

‘‘वह सुबह से नाराज है क्योंकि वह अपने भाइयों को राखी बांधने के लिए देहरादून नहीं जा सकी. उस का सारा कार्यक्रम मु झे छुट्टी न मिलने की वजह से बिगड़ गया. वैसे मैं ने कल ही स्पीडपोस्ट से उस की राखियां तो भेज दी हैं पर दुख तो होता ही है,’’ राखी बंधवाते ही भाई नंबर 3 चला गया.

पूजा का मन भारी हो गया. उसे लगा, शहर में ऐसा कोई नहीं जिसे वह अपना सगा कह सके. उस के ये तीनों भाई रक्षाबंधन के दिन भी ठीक से भाई नहीं बन सकते. वे इस कदर अपनी पत्नियों के गुलाम और अपने अफसरों के सेवक हैं कि बहन उन की सूची में शामिल ही नहीं है. हक जमाने, अंकुश लगाने के सिवा और इन का उस से कोई नाता नहीं है.

मेज पर 3 लिफाफे पड़े थे मानो त्योहार के 3 चंदे हों. पूजा ने खुद आज की छुट्टी ले रखी थी. उसे अपनी छुट्टी और स्थिति दोनों काफी बेतुकी लगीं. इस समय उन छोटीछोटी बातों को याद करने से कोई फायदा नहीं है, यह सोच कर कि उस के जीवन की रफ्तार में ये तीनों भाई 3 गतिरोधक थे, 3 लाल बत्तियां. 3 ताले.

पूजा ने दरवाजा बंद किया और टेपरिकौर्डर पर जगजीत सिंह की गजल सुनने लगी.

अगर ये टिप्स आजमाएंगी तो आप को भी आएगी गहरी नींद

एक तंदुरुस्त इंसान के लिए 5-6 घंटे की नींद काफी है, जबकि छोटे बच्चों के लिए 10-12 घंटे की नींद जरूरी होती है. बुजुर्गों के लिए 4-5 घंटे की नींद भी काफी है.

रात में अच्छी नींद न आने से कई तरह की शारीरिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. आंखों के नीचे काले घेरे, खर्राटे, चिड़चिड़ापन और एकाग्रता में कमी, निर्णय लेने में दिक्कत, पेट की गड़बड़ी, उदासी, थकान जैसी परेशानियां सिर उठा सकती हैं.

नींद न आने के कारण

नींद न आने के बहुत से कारण हो सकते हैं जैसे चिंता, तनाव, निराशा, रोजगार से जुड़ी परेशानियां, मानसिक और भावनात्मक असुरक्षा वगैरह.

इस के अलावा तय समय पर न सोना, चाय या कौफी का ज्यादा सेवन, कोई तकलीफ या बीमारी, देर से खाना या भूखा सो जाना, देर रात तक टीवी, इंटरनैट और मोबाइल फोन से चिपके रहना, दिन भर कोई काम न करना आदि कारण भी अनिद्रा की वजह बन सकते हैं.

कैसे आएगी मीठी नींद

  • जिन्हें दिन में बारबार चाय या कौफी पीने की आदत होती है वे रात में जल्दी नहीं सो पाते. चाय या कौफी में मौजूद कैफीन नींद में बाधा पैदा करती है, इसलिए खास कर सोने से तुरंत पहले इन का सेवन कतई नहीं करना चाहिए.
  • अगर आप दिमागी रूप से किसी बात को ले कर परेशान हैं और कोई फैसला नहीं कर पा रहे हैं, तो आप की नींद डिस्टर्ब हो सकती है. ऐसे में आप को उस बारे में सोचना छोड़ना होगा. अच्छी नींद के लिए दिमाग का शांत होना बहुत जरूरी है.
  • यदि आप सोने का प्रयास कर रहे हैं पर नींद नहीं आ रही है, तो उठ कर थोड़ी देर टीवी देखें, कोई मनपसंद किताब पढ़ें या फिर हलका संगीत सुनें, इस से आप को अच्छी नींद आएगी.
  • सोने से पहले थोड़ी देर के लिए अपने दिमाग को किसी खास चीज पर फोकस करें. इस से मन की चंचलता कम होगी और आप को अच्छी नींद आएगी.
  • दिन में न सोएं तो रात में गहरी नींद आती है.
  • रात में सोने से पहले थोड़ी देर टहलना चाहिए. इस से हाजमा सही रहता है और नींद भी सुकूनभरी आती है. डिनर में भारी खाना नहीं लेना चाहिए.
  • खाना खाने के तुरंत बाद सोने न जाएं. सोने से 3 घंटे पहले भोजन कर लें.
  • सोने से पहले नहा लेने से भी गहरी नींद आती है.
  • सोने और जागने का समय तय रखें. रोज एक ही समय पर सोने से नींद गहरी आती है.
  • सोते समय हमेशा ढीलेढाले कपड़े पहनने चाहिए.
  • कमरे का तापमान न ज्यादा ठंडा और न ज्यादा गरम रखें. वरना बारबार नींद टूटती रहती है.
  • रात को सोने से पहले कुनकुने दूध में हलदी मिला कर पीने से अच्छी नींद आती है.
  • सोते समय कमरे में हलकी रोशनी होनी चाहिए.
  • दिनभर औफिस में बैठ कर काम करना पड़ता है, जिस से कमर दर्द, पीठ दर्द होता है. इसलिए रोज व्यायाम जरूर करें. व्यायाम करने से दर्द दूर रहेगा और नींद भी गहरी आएगी.

इन टिप्स को आजमाने के बाद भी नींद न आने की समस्या जस की तस बनी रहे तो डाक्टर से मिलें और अनिद्रा की समस्या का इलाज कराएं.

ननद भाभी : तकरार नहीं बढ़े प्यार

मायके में परिवार की चहेती और अपने तरीके से जीवन जीने वाली लड़की विवाहोपरांत जब ससुराल आती है तो नए घरपरिवार की जिम्मेदारी तो उस के कंधों पर आती ही है, साथ ही उस के नएनवेले गृहस्थ जीवन में प्रवेश करते हैं सासससुर, ननददेवर जैसे अनेक नए रिश्ते. इन सभी रिश्तों को निभाना और इन की गरिमा बनाए रखना नवविवाहिता के लिए बहुत बड़ी चुनौती होती है.

ननद चाहे वह उम्र में बड़ी हो या छोटी सब की चहेती तो होती ही है, साथ ही परिवार में अपना अलग और महत्त्वपूर्ण स्थान भी रखती है. जिस भाई पर अभी तक केवल बहन का ही अधिकार था, भाभी के आ जाने से वह अधिकार उसे अपने हाथों से फिसलता नजर आने लगता है, क्योंकि अब भाई की जिंदगी में भाभी का स्थान अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है.

परिवार में एक नवीन सदस्य के रूप में प्रवेश करने वाली भाभी ननद की आंखों में खटकने लगती है. कई बार ननद भाभी को अपना प्रतिद्वंद्वी समझने लगती है और फिर अपने कटु व्यवहार से भाईभाभी की जिंदगी को नर्क  बना देती है.

अनावश्यक हस्तक्षेप

एक स्कूल में प्रिंसिपल रह चुकीं लीला गुप्ता कहती हैं, ‘‘मेरी इकलौती ननद परिवार की बड़ी लाडली थीं. विवाह हो जाने के बाद भी अपनी ससुराल से ही मायके को संचालित करती थीं. जब भी मायके आती थीं तो मेरे सासससुर उन्हीं की भाषा बोलने लगते थे. मैं भले कितने ही मन से कोई वस्तु या कपड़ा अपने या घर के लिए लाई हूं अगर वह ननद ने पसंद कर लिया तो वह उन्हीं का हो जाता था. यहां तक कि मेरे जन्मदिन पर मेरे लिए पति द्वारा लाया गया उपहार भी यदि उन्हें पसंद है तो उन का हो जाता था.

‘‘जब मेरे बच्चे बड़े हो गए तो वे इस प्रकार के व्यवहार का विरोध करने लगे. उस से पहले तक सदैव सरेआम मेरी इच्छाओं का गला घोट दिया जाता था और मैं उफ भी नहीं कर पाती थी. यदि कभी कुछ बोलने या विरोध करने की कोशिश की भी तो सासससुर के साथसाथ पति भी मुंह फुला लेते थे.’’

रूखा व्यवहार

अपने विवाह के बीते 10 वर्षों को याद कर के अरुणा का मन दुखी हो जाता है. वे कहती हैं, ‘‘मेरी 2 ननदें हैं. एक पति से बड़ी और एक छोटी. बड़ी ननद पैसे वाली हैं और मेरे सासससुर की बेहद प्रिय. इसलिए जब वे आने वाली होतीं, तो जैसे घर में तूफान आ जाता है. वे जब तक रहती हैं घर की प्रत्येक गतिविधि उन्हीं के द्वारा संचालित होती है.

‘‘छोटी ननद की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं है. अत: जब वे आती हैं तो घर के बजट की परवाह किए बिना उन्हें भरपूर सामान दिया जाता है. फिर चाहे मेरी और मेरे बच्चों की जरूरतें पूरी हों या न हों. उन के आने के बाद मेरा काम सिर्फ नौकरानी की तरह चुपचाप काम करना होता है. पति भी उस समय बेगाने से हो जाते हैं.’’

जिंदगी भर की कसक

आस्था का दूसरा विवाह हुआ है. ससुराल में पति व सास के अलावा एक अविवाहित ननद भी है, जो एक कंपनी में मैनेजर है. आस्था कहती हैं, ‘‘मेरी गृहस्थी में आग लगाने वाली मेरी ननद हैं. उन के आगे मेरी सास को कुछ नहीं सूझता. पूरा घर उन के अनुसार चलता है. अपनी शादी न होने के कारण उन से हमारा सुख भी नहीं देखा जाता. भाई के लिए तो सब कुछ है पर मेरे लिए उस परिवार में जरा सा भी प्यार नहीं है. सदैव मेरे खिलाफ सास को भड़काती रहती हैं. उन के कारण आज विवाह के 8 साल बीत जाने पर भी मेरी लाख कोशिशों के बावजूद मेरे अपनी सास और पति से संबंध सामान्य नहीं हो पाए हैं. केवल उन के कारण ही हम शादी के बाद हनीमून पर नहीं जा पाए थे, जिस की कसक आज तक है.’’

खूबसूरत रिश्ता

ननद और भाभी का रिश्ता बेहद प्यारा रिश्ता है. यदि इसे पूरी ईमानदारी और निष्ठा से निभाया जाए तो इस से खूबसूरत रिश्ता और हो ही नहीं सकता, क्योंकि हर लड़की किसी की ननद और भाभी होती है. परंतु अकसर देखा जाता है कि ननदें भाई के प्रति तो प्यार और अपनापन रखती हैं पर भाभी के प्रति द्वेष और घृणा की भावना रखती हैं. विवाहित ननद अकसर ससुराल में रह कर भी मायके में दखल करती है और अपने मातापिता को भाभी के विरुद्ध भड़काती रहती है, जिस से भाईभाभी का गृहस्थ जीवन प्रभावित होता है.

यह सही है कि अकसर भाभी और ननद के रिश्ते प्रगाढ़ नहीं होते, परंतु कई बार इस के उलट भी उदाहरण देखने को मिलते हैं जहां बहन ने न केवल अपने भाई की टूटती गृहस्थी को बचाया, बल्कि अपने मातापिता से भी भाभी को उचित मानसम्मान दिलाया.

रीमा श्रीनिवास अपने 2 भाइयों की इकलौती बहन हैं. एक भाई उन से छोटा और एक बड़ा है. वे बताती हैं, ‘‘चूंकि छोटे भाई ने अपनी मरजी से शादी की थी. अत: मातापिता भी भाभी के प्रति कटुतापूर्ण व्यवहार करते थे. मातापिता के द्वारा किए जाने वाले दुर्व्यवहार का आक्रोश भाभी भाई पर निकालती थी. इस से दोनों में अकसर झगड़ा होने लगा और फिर नौबत अलगाव तक की आ गई. अपने मायके की कलह मुझ से देखी नहीं जाती थी. उस समय मेरे पति ने मेरा बड़ा साथ दिया. हम ने चारों को एकसाथ बैठा कर समझाया. एक काउंसलर की मदद से उन के रिश्ते को पटरी पर ले आए.’’

रीमा के भाई रमन कहते हैं, ‘‘मेरी जैसी बहन सब को मिले. उस ने मेरे वैवाहिक जीवन को जीवनदान दिया.’’

भाभी अंजलि भी अपनी ननद की तारीफ करते हुए नहीं थकतीं, ‘‘दीदी ने हमारे जीवन को खुशियों से भर दिया वरना घर टूट जाता.’’

जीवन में प्रत्येक रिश्ते का अपना अलग महत्त्व होता है. हर रिश्ते की अपनी मर्यादाएं होती हैं. यदि उसे उसी मर्यादा में रह कर निभाया जाता है, तो वह और अधिक खूबसूरत हो जाता है. उस में किसी भी प्रकार की समस्या उत्पन्न नहीं होती.

क्या करें ननदें

– हमेशा ध्यान रखें कि भाभी वह इंसान है जिसे आप का भाई ब्याह कर अपने घर लाया है और जो उस के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है, इसलिए भाई अपनी पत्नी के लिए भी अपने समान ही मानसम्मान की अपेक्षा रखता है. आप का भी दायित्व है कि अपने भाईभाभी की जिंदगी में खलनायिका बन कर जहर घोलने के बजाय प्यारी सी बहन बन कर प्यार और खुशियों के खूबसूरत रंग बिखेरें.

– निमिषा का जब विवाह हुआ तो छोटी ननद की उम्र 30 साल की थी और वे अविवाहित थीं. निमिषा कहती हैं, ‘‘मैं यह देख कर हैरान रह गई विवाह के 2 माह बाद एक दिन मेरी ननद ने यह कहते हुए हमारे बैडरूम में अपना बैड लगा लिया कि अलग कमरे में उसे डर लगता है.’’

आप अपने मातापिता और भाई की कितनी भी प्यारी क्यों न हों पर भाई के विवाह के बाद भाईभाभी को पर्याप्त स्पेस देना आपकी नैतिक जिम्मेदारी है. यदि आप छोटी हैं, तो भी हर जगह उन के साथ जाने का प्रयास न करें.

– भाभी को वही मानसम्मान दें जिस की आप अपनी ससुराल में अपेक्षा रखती हैं. उसे अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि सहेली मानें और नए परिवार में ऐडजस्ट होने में भाभी को सहयोग करें.

– विवाहोपरांत जिस प्रकार आप अपने परिवार को चलाना चाहती हैं उसी प्रकार आप की भाभी भी अपने घरपरिवार को चलाना चाहेगी. अत: अनावश्यक हस्तक्षेप न करें. जहां आप का हस्तक्षेप अपेक्षित हो वहीं करें.

– अकसर देखा जाता है कि बेटियां स्वयं चाहे अपने मातापिता की लेशमात्र भी इज्जत न करें परंतु भाभी से उन की इज्जत करवाना चाहती हैं. इस की अपेक्षा आप अपने मातापिता को सम्मान दें. भाभी को अनावश्यक सीख देने की कोशिश न करें.

– भाई के विवाह से पूर्व आप चाहे जैसे भी भाई का ध्यान रखती हों परंतु विवाह के बाद भाई से संबंधित समस्त अधिकार भाभी को दे दें. वह चाहे जैसे अपने पति का ध्यान रखे. आप को बीच में टोकाटाकी करने की जरूरत नहीं है.

– यदि आप अविवाहित और भाई से बड़ी हैं तो भी आप को उन की जिंदगी में बेवजह हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है. आप को समझना होगा कि अब आप के भाई की अपनी जिंदगी है.

Raksha Bandhan : घर पर बनाएं गुजराती मिठाई ‘मोहन थाल’

मोहन थाल गुजरात का मशहूर मिठाई है. इसे बाकी जगहों पर बेसन की बर्फी कहते हैं. देशी घी से यह मिठाई बनाई जाती है. इसका स्वाद तब और ज्यादा टेस्टी बन जाता है जब इसमें घी भरपूर मात्रा में बनाया डाला जाए.

समाग्री

– मोटा बेसन का आटा 2 कप
– घी 3/4 कप + 1 बड़ा चम्मच
– दूध 3 बड़ा चम्मच
– इलाईची का पावडर 1/4 छोटी चम्मच
– जयफल का पावडर बड़ी चुटकी
– चीनी 1 1/2 कप
– केसर 5-7 लड़ियां
– आलमंड/बादाम उबालकर लम्बे सलाइस बने हुए 10
– पिस्ते उबालकर लम्बे सलाइस बने हुए 10

विधि

– सबसे पहले बेसन को एक कटोरे में रखें. अब एक नॉन स्टिक पैन गरम करके उसमें 1 1/2 बड़े चम्मच घी और दो बड़े चम्मच दूध डालकर हल्का  गरम कर लें.

– इस मिश्रण को बेसन में डालें और  मिलाकर ब्रेडक्म्रब्स जैसे बना लें. एक थाली पर थोड़ा सा घी लगा लें.

– केसर को एक बड़ा चम्मच गुनगुने दूध में दस मिनट के लिये भिगोकर रखें दें. बचा हुआ घी एक नॉन स्टिक पैन में गरम करें, उसमें बेसन का मिश्रण डालें और मध्यम आंच पर महक आने तक और तब तक भूनते रहे जब तक सुनहरा न हो जाए.

– थोड़ा सा छोटा इलायची पाउडर मिला लें.
– पैन को आंच से उतार लें और तब तक चलाते रहें जबतक मिश्रण ठंडा न हो जाए. तबतक एक दूसरे नॉन स्टिक पैन में चीनी और आधा कप पानी डालकर पका लें और 1 1/2 तार की चाशनी बना लें.
– इसमें केसर का दूध डालें और अच्छी तरह मिला लें.
– अब यह चाशनी बेसन के मिश्रण में डालें और लगातार चलाते रहें जबतक सब चाशनी सोख लें और मिश्रण गाढ़ा जाए.

– अब मिश्रण को थाली पर डालें और फैलाकर समान कर लें. बादाम, पिस्ते और बची हुइ इलायची पाउडर छिड़कें और ठंडा होने दें.
– आपका मोहनथाल तैयार है , मेहमानों मं परोसे.

कुछ समय से मेरे बाल बहुत झड़ने लगे है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 32 साल है, शादीशुदा हूं. मेरी 5 साल की बच्ची है. बेटी के पैदा होने के बाद मेरे बाल काफी झड़ने लगे. बालों का टैक्सचर काफी रूखा हो गया है. जब भी पार्लर जाती हूं, वे हेयर स्पा कराने की सलाह देती हैं. स्पा कराने से क्या वाकई फायदा होगा या पार्लर वाली पैसे बनाने के चक्कर में ऐसा बोलती रहती हैं?

जवाब

प्रैग्नैंसी के बाद एस्ट्रोजन हार्मोन के लैवल के गिरने की वजह से बाल झड़ते हैं. इस में ज्यादा बाल रैस्ंिटग मोड में चले जाते हैं और डिलीवरी के बाद लगभग 4 महीने तक बाल ?ाड़ते हैं. यह फेज 6 से 8 महीने तक चलता है.

लेकिन आप के बाल अभी भी झड़ते हैं तो शरीर में विटामिन डी की कमी हो सकती है. वैसे तो बालों को स्वस्थ और सुंदर रखने के लिए प्रोटीन, विटामिन ए, बी, सी और बी कौम्पलैक्स, आयोडीन, आयरन, मैग्नीशियम जैसे तत्त्वों की भी जरूरत होती है. अपने खानपान में अंडे, हरी सब्जियां, फल, नट्स, शामिल करें.

जहां तक आप हेयर स्पा के बारे में पूछ रही हैं तो आप के रूखे हो रहे बालों के लिए हेयर स्पा कराना अच्छा रहेगा. हेयर स्पा हर 3 या 6 महीने में नियमित रूप से लें, तभी असर लंबे समय तक रहेगा. दरअसल हेयर स्पा बालों को प्रदूषण से बचाता है क्योंकि हेयर स्पा रोमछिद्रों को खोलता है और गंदगी को साफ करता है. इस से स्कैल्प भी साफ होती है और इस तरह हमारे बाल वापस सामान्य हो जाते हैं.

हेयर स्पा में सिर की मालिश भी शामिल है जो स्कैल्प के रक्त परिसंचरण में सुधार करती है. यह पोषक तत्त्वों के प्रवाह के साथ फौलिकल्स को मजबूत बनाने का काम भी करती है. इसलिए हेयर स्पा लेने में कोई बुराई नहीं है.

भाभी : गीता को क्यों याद आ रहे थे पुराने दिन ?

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गुरु दक्षिणा: स्वामी प्रज्ञानंद को क्यों लोग पसंद नहीं करते थे?

भक्ति कार्यक्रम में माइक पर कहा गया कि स्वामीजी दक्षिणा नहीं लेते, लेकिन दानदक्षिणा का पुण्य लाभ इतना है कि जो भक्त दक्षिणा देते हैं उस का दसगुना उन्हें मिलता है. भक्तों के उस हुजूम में कामता और राधा भी थे, उन्हें संतान की चाह थी. एकांत में विशेष पूजा के दौरान स्वामी प्रज्ञानंद ने राधा से दक्षिणा चाही. स्वामीजी की चाह क्या थी और राधा ने दक्षिणा में क्या दिया?

आश्रम का यह सब से बड़ा कार्यक्रम होता था. जब तक बड़े बाबा थे तब तक ज्यादा भीड़ नहीं होती थी. उन्हें यह तामझाम करना नहीं आता था. छोटेमोटे चढ़ावे और एक प्रौढ़ सी नौकरानी से उन की जिंदगी कट गई थी. पर उन के बाद आश्रम से जो लोग जुड़े थे, उन का स्वार्थ भी इस से जुड़ना शुरू हो गया था.

‘‘गुरु पूर्णिमा का पर्व तो मनाना ही चाहिए,’’ रामगोविंद ने सलाह दी, ‘‘दशपुर के आश्रम में अयोध्या के एक युवा संत आए हैं, उन से निवेदन किया जाए तो अच्छा रहेगा.’’

रामगोविंद की सलाह पर आश्रम वाले प्रज्ञानंद को बुला लाए थे. आश्रम के भक्तजनों का निमंत्रण वे अस्वीकार नहीं कर पा रहे थे. यही तय हुआ कि माह में कुछ दिन के लिए प्रज्ञानंद इधर आते रहेंगे.

इस बार विशेष तैयारियां होनी शुरू हो गई थीं. गांव के प्रधान ने पंचायत समिति के प्रधान को जा कर समझाया था कि यह चुनाव का वर्ष है, अभी से सक्रिय होना होगा. कार्ड आदि सामान 15 दिन पहले पहुंचाना है. इस से भीड़ बढ़ जाएगी.

‘‘भंडारे का खर्चा?’’ पंचायत समिति के प्रधान ने पूछा तो गांव के प्रधान ने कहा था, ‘‘देखो, इस प्रकार के कार्यक्रम में जो भी आता है वह अपनी श्रद्धा से खर्च करता है. भंडारे में सेब, पूरी, सब्जी, बस ज्यादा खर्चा नहीं होगा. हिसाब बाद में होता रहेगा.’’

‘‘स्वामीजी का खर्चा?’’

‘‘वे तो हम को ही देंगे. चढ़ावे में जो भी आएगा उस का आधा उन का होगा आधा हमारा,’’ गांव के प्रधान ने कहा, ‘‘पिछली बार हम ने 60 प्रतिशत लिया था, जो भेंट होगी, बड़े महाराजजी की तसवीर की होगी, लोग उन्हें भेंट चढ़ाएंगे, वह थाली में रखी रहेगी. वहीं रामगोविंद रहेंगे, वे सारा हिसाब रख लेंगे, बाद में हम बैठ कर जोड़ लगा लेंगे. आप तो बस, मंत्रीजी को आने को कहें.’’

2 दिन पहले से आश्रम में अखंड रामायण का पाठ शुरू हो चुका था. दूरदूर से भक्त आने लगे थे. इस बार स्वामी प्रज्ञानंद ने बड़े चित्र, जिस में शिव शंकर और स्वामी शंकराचार्य के साथ उन की भी तसवीर थी, गांवगांव बंटवा दिए थे. बहुत बड़ा सा एक पोस्टर आश्रम के दरवाजे पर भी लगा हुआ था.

मास्टर रामचंद्र ने पोस्टर देख कर चौंकते हुए कहा, ‘‘यह क्या, शिव और आदि शंकराचार्य के साथ स्वामी प्रज्ञानंद, क्या यह शिव का पोता है?’’

‘‘चुप करो,’’ उन की पत्नी ने टोकते हुए कहा, ‘‘तुम हर जगह कुतर्क ले आते हो. यह भी नहीं देखते कि ये लोग कितना काम कर रहे हैं, इन्होंने तो कोई चेला, शिष्य नहीं बनाया, ये तो समिति के लोग हैं जो स्वामीजी को ले आते हैं और उत्सव हो जाता है.’’

तब तक नील कोठी से आने वाली बस आ गई थी. औरतें अपनेअपने थैले, अटैचियां ले कर उतरीं. उतरते ही भजन शुरू हो गया. तेज स्वर के साथ सुरबेसुर सभी एकसाथ थे.

‘‘देखदेख, ये बाबा से कहने गए हैं कि हम आ गए हैं,’’ जानकी बहन ने कहा.

‘‘नहींनहीं, ये तो रसोई में बताने गए हैं कि गरम चाय बना दो, हम आ गए हैं,’’ नंदा ने धीरे से कहा.

‘‘चुप कर, लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे,’’ नंदा की मां ने बेटी को टोका.

शहर के जानेमाने सेठ भी 2-3 बार वहां आ चुके थे. हर बार की तरह इस बार भी भंडारे की सामग्री उन की दुकान से ही आ रही थी. वे भी जानते थे कि न तो यहां सामान तुलता है न कहीं कोई क्वालिटी देखी जाती है. दानेदार चीनी के भाव में यहां सल्फर की बोरियां आराम से खप जाती हैं. वनस्पति घी की भी 50 किस्में हैं, नुकसान का अंदेशा दूरदूर तक नहीं था.

तभी जीप आ कर रुकी. उस में से स्वामीजी का शिष्य भास्कर नीचे उतरा. उस ने अपनी जेब से एक परचा निकाल कर पंचायत समिति के मानमलजी को पकड़ाते हुए कहा, ‘‘स्वामीजी ने दिया है. कृपया पढ़ लें.’’

मानमलजी ने परचा पढ़ा और बोले, ‘‘यार, तुम्हीं ले आते, रुपए हम दे देते. महाराज ने फलों के साथ बिसलरी का पानी भी लिखा है, जो यहां मिलता नहीं. खैर, यहां से गाड़ी जाएगी, जो भी होगा, देखेंगे.’’

भास्कर ने फिर गंभीर मुद्रा में कहा, ‘‘महाराज के साथ मथुरा के ठाकुरजी भी आ रहे हैं. महाराज चाहते हैं, यहां कभी रासलीला भी हो, भागवत का पाठ भी, ये उन्हीं के लिए है.’’

‘‘हां, वे भंडारे का प्रसाद भी तो खाते होंगे,’’ बूढ़े मास्टर रामचंद्रजी चीखे.

‘‘चुप करो,’’ मानमलजी को गुस्सा आ गया था, ‘‘बूढ़ों के साथ यही दिक्कत है.’’

बात आईगई हो गई. सामने सड़क पर दूसरी बस, जो मालता से आई थी, आ कर रुकी. तभी 4-5 कारें, दशपुर से भी आ गईं.

‘‘मैं चलता हूं,’’ मानमलजी बोले, ‘‘महाराज तो कल 11 बजे आएंगे… सुबह हमारे यहां भी कार्यक्रम है.’’

सुबह से ही अतिथियों का आना शुरू हो गया था. लगभग 7 से 10 हजार स्त्रीपुरुष जमा होंगे, इस बार तो गांवगांव जीप घुमाई गई थी. सत्संग और फिर भंडारा, भंडारे के नाम पर भीड़ अच्छी- खासी आ जाती है. संयोजकजी मोबाइल से बारबार स्वामीजी से संपर्क साध रहे थे और माइक पर कहते जा रहे थे, ‘‘थोड़ी देर में स्वामीजी हमारे बीच में होंगे, तब तक हम कार्यक्रम प्रारंभ करते हैं.’’

संयोजकजी ने माइक से घोषणा की कि बड़े बाबा के जमाने से रामचंद्रजी इस आश्रम से जुड़े हैं. वे संक्षेप में अपनी बात कहें, क्योंकि थोड़ी ही देर में स्वामी प्रज्ञानंदजी हमारे बीच में होंगे…अभी और भी श्रोताओं को बोलना है.

अचानक दौड़ती कारें आश्रम के प्रांगण में आ कर रुकीं तो आयोजक लोग हाथ में मालाएं ले कर तेजी से उस ओर दौड़े.

‘‘विलंब के लिए क्षमा चाहता हूं,’’ स्वामीजी ने अपने दंड के साथ कार से नीचे उतरते हुए कहा.

उन के साथ आए लोग भी उन के पीछेपीछे चल दिए.

‘‘आइए, ठाकुरजी, यह भी अब अपना ही आश्रम है,’’ स्वामी प्रज्ञानंद बोले, ‘‘आप की भागवत की यहां बहुत चर्चा है. आप समय निकालें तो यहां भी भागवत कथा हो जाए.’’

आयोजक समिति के सदस्य स्वामीजी का संकेत पा चुके थे और उद्घोषक ने माइक पर भागवत कथा का महत्त्वपूर्ण समाचार दे दिया. जनजन तक पहुंचाने के लिए आह्वान भी कर दिया. श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट से इस का स्वागत किया. कहा जाता है कि कलियुग में भागवत कथा के श्रवण मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं.

स्वामीजी कह रहे थे, ‘‘आज गुरु- पूर्णिमा है. गुरु साक्षात शिव के अवतार होते हैं. गुरु का पूरा शरीर ब्रह्म का शरीर है.’’

भाषण के बाद भीड़ खड़ी हो गई. उद्घोषक गुरुपूजा के लिए पंक्ति बना कर आने को कह रहा था.

स्वामीजी ने परात में अपने पांव रखे तो बिसलरी के जल को लोटों में लिया गया, क्योंकि कुएं के पानी से स्वामीजी के पांव में इन्फैक्शन होने का डर जो था. पांव धोए गए, चरणामृत अलग से जमा किया गया…फिर उस में पांव के जल को मिला दिया गया. अब चरणामृत को कार्यकर्ता चम्मच से सभी के दाएं हाथ में दे रहे थे और उस के लिए भी धक्का- मुक्की शुरू हो चुकी थी.

फिर स्वामीजी के पैर के नाखून पर रोली लगा कर पूजा करते हुए दक्षिणा देने का कार्यक्रम शुरू हुआ. उद्घोषक कह रहा था, ‘‘स्वामीजी दक्षिणा नहीं लेते, पर सपने में गुरु महाराज ने कहा है कि दक्षिणा जो दी जाती है, उस का दसगुना भक्तों को वापस हो जाता है, यह परंपरा है. आप स्वेच्छा से जो भी देना चाहें, दें, गुरुकृपा से आप को इस का कई गुना मिलता रहेगा, गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु… गुरु साक्षात परब्रह्म…’’ माइक पर मंत्रों का पाठ भी हो रहा था.

बड़ी मुश्किल से कामता प्रसाद को स्वामीजी से मिलने का मौका मिला.

‘‘अरे, आप भी यहां आए हैं?’’ स्वामीजी बोले, ‘‘हां, राधाजी तो दिखी थीं, वे तो पूजा के लिए आ गई थीं पर आप कहां रह गए?’’

‘‘जी, मैं भी यहीं था.’’

‘‘अच्छाअच्छा, ध्यान नहीं गया. रात को आप लोग कमरे में आ जाना, वहां रामगोविंद हैं, वे सब व्यवस्था कर देंगे.’’

संध्या को ही दोनों तैयार हो गए थे. निर्देशानुसार राधा ने गुलाबी रंग की सिल्क की साड़ी और हरे रंग की चूडि़यां पहन रखी थीं. राधा की शादी हुए 7 साल हो गए थे, पर पुत्र सुख नहीं मिला था. पड़ोसिन नंदा ने कहा था कि पूजा होती है, करवा ले. सुना है प्रज्ञानंद से पूजा करवाने पर बहुतों को पुत्र लाभ मिला है. कोई बाधा हो तो हट जाती है. तभी कामता प्रसाद ने स्वामीजी से संपर्क किया था और उन्होंने आज का दिन बताया था.

कामता प्रसाद जब वहां पहुंचे तो उन्हें कमरे के भीतर ले जाया गया. रामगोविंद ने सारी पूजा की सामग्री रख दी. सामने तसवीर के पास एक कद्दू रखा था. सामने की चौकी पर हलदी, रोली, चावल की अनेक आकृतियां बनी हुई थीं.

‘‘आप पहले आएंगे, पूजा होगी, ध्यान होगा, फिर भाभीजी आएंगी, बाद में उन की अलग से भी पूजा होगी,’’ रामगोविंद ने बताया.

कामता प्रसाद तो अपनी पूजा कर के बाहर के कमरे में आ गए. तब भीतर से आवाज आई और राधा को बुलाया गया. राधा भीतर गई. उस ने स्वामी प्रज्ञानंद को प्रणाम किया. कमरे में बाबा ही अकेले थे, वे आंखें बंद किए संस्कृत में श्लोक पढ़ते जा रहे थे, राधा सामने बैठी थी. अचानक प्रज्ञानंद की आंखें खुलीं, दृष्टि सीधी राधा के वक्षस्थल से होती हुई उस की पूरी देह पर फैल गई.

राधा सिहर उठी. उसे लगा, कहीं कुछ गलत तो नहीं हो रहा है. स्वामीजी ने फिर आंखें बंद कर लीं, फिर पंचपात्र में से छोटी तांबे की चम्मच से जल निकाल कर स्वामीजी ने राधा की दाईं हथेली पर रखा और बोले, ‘‘आचमन कर लो.’’

‘नहीं, नहीं, राधा, नहीं,’ जैसे उस के भीतर से कोई बोला हो.

राधा ने उंगलियों को थोड़ा सा खोल दिया और जल बह गया. उस ने आचमन के लिए अंजलि को होंठों से लगाया फिर हाथ नीचे रख लिया.

‘‘एक बार और,’’ मंत्र पढ़ते हुए स्वामीजी ने जल उस की हथेली पर रखा. इस बार आंखें उस के शरीर पर एक्सरे की किरण की तरह बढ़ रही थीं.

उस ने पहले की तरह वहीं जल गिराया और उठना चाहा.

‘‘आप कहां चलीं. पूजा को बीच में छोड़ते नहीं,’’ स्वामी प्रज्ञानंद ने उठ कर उसे पकड़ना चाहा. उन का हाथ राधा की कमर से होते हुए उस की छातियों पर आ चुका था.

‘‘हट, पापी,’’ कहते हुए राधा का हाथ तेजी से प्रज्ञानंद के गाल पर पड़ा और वह चीखी.

‘‘क्या हुआ, क्या हुआ,’’ बोलता रामगोविंद भीतर की ओर दौड़ा. वह किवाड़ बंद करना चाह रहा था लेकिन तब तक राधा किवाड़ को धक्का देती हुई पास के कमरे में पहुंच गई थी. उस की साड़ी खुल गई थी. उस ने उसे तेजी से ठीक किया और बाहर की ओर दौड़ पड़ी.

‘‘कहां हैं ये, कहां हैं ये…’’ राधा चीख रही थी.

‘‘साहब तो अपने कमरे की तरफ गए हैं,’’ किसी ने बताया.

राधा तेजी से कामता के कमरे की तरफ दौड़ी. उस के पीछे और भी लोग जो आश्रम में थे, आ गए थे.

कमरे में कामता प्रसाद गहरी नींद में सो रहे थे. अचेत थे.

‘‘रात को जागरण हुआ था, दिनभर कार्यक्रम में थे, थक गए हैं, ऐसी गहरी नींद तो भाग्यवानों को ही आती है,’’ पीछे से आवाज आई.

‘‘जब जग जाएं तब पूजा कर आना, आश्रम का दरवाजा तो हमेशा खुला रहता है,’’ एक सलाह आई.

राधा ने जलती आंखों से उसे देखा और बोली, ‘‘अपनी सलाह अपने पास रख, यह स्वर्ग तुझे ही मुबारक हो,’’ फिर उस ने सामने पानी से भरी बालटी उठाई और कामता के माथे पर उड़ेल दी. पानी की तेज धार से कामता की नींद खुल गई.

‘‘क्या हुआ?’’ वह बोला.

‘‘कुछ नहीं, तुम इतनी गहरी नींद में सो कैसे गए?’’ राधा बोली.

‘‘स्वामीजी ने जो जल दिया था उस का आचमन करते ही मुझे झपकी आनी शुरू हो गई थी, मुझ से वहां बैठा ही नहीं गया, इसलिए उठ कर चला आया. तुम पूजा कर आईं?’’ कामता ने पूछा.

‘‘हां, अच्छी तरह पूजा हो गई है, तुम इस नरक से जल्दी बाहर चलो.’’

कामता प्रसाद कुछ समझ नहीं पा रहे थे. राधा ने तेजी से अपनी अटैची उठाई और गीले कपड़ों में ही पति का हाथ पकड़े आश्रम के अहाते से बाहर निकल गई.

उधर स्वामी प्रज्ञानंद अब बाहर तख्त पर आ कर बैठ गए थे. महिलाएं उन के पांव दबाने के लिए प्रतीक्षारत थीं.

‘‘गुरुपूजा पर गुरु का पाद सेवन का पुण्य वर्षों की साधना से मिलता है,’’ रामगोविंद सब को समझा रहा था.

बाबा की निगाहें अपनी गाड़ी की ओर बढ़ती राधा पर टंगी हुई थीं. उन का दायां हाथ बारबार अपने गाल पर चला जाता जहां अब हलकी सूजन आ गई थी.

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai में आएंगे ये 7 बड़े ट्विस्ट एंड टर्न, अक्षरा-अभिमन्यु की होगी शादी!

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Upcoming Episode : टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इस समय काफी मजेदार ट्रैक चल रहा है. शो में प्रणाली राठौड़ यानी अक्षरा और हर्षद चोपड़ा यानी अभिमन्यु की जोड़ी को लोगों का खूब प्यार मिल रहा है. इसके अलावा टीआरपी लिस्ट में भी सीरियल की रेटिंग लगातार बढ़ रही है.

हालांकि, शो को नंबर वन बनाने के लिए मेकर्स कहानी में एक के बाद एक कई नए ट्विस्ट ला रहे हैं. वहीं अब कहा जा रहा है कि शो में अब बैक टू बैकल 7 नए ट्विस्ट एंड टर्न आएंगे. तो आइए जानते हैं सीरियल में आने वाले उन नए 7 ट्विस्ट के बारे में.

1. अभिमन्यु को माफ नहीं करेगी मुस्कान

आपको बता दें कि इस समय शो (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Upcoming Episode) में दिखाया जा रहा है कि अक्षरा और अभिमन्यु के बीच की दूरियां धीरे-धीरे कम हो रही हैं, जो कि मुस्कान को बर्दास्त नहीं हो रहा है. दरअसल मुस्कान अपने भाई अभिनव की मौत के लिए अभिमन्यु को जिम्मेदार मानती है. इसी वजह से उसका गुस्सा अभिमन्यु के लिए बढ़ता जाएगा और वो रोजाना घर में कलेश करेगी.

2. अक्षरा से भी नफरत करेगी मुस्कान

इसके अलावा आगे दिखाया जाएगा कि मुस्कान, अक्षरा की इज्जत पर कीचड़ उछाड़ेगी. वह बार-बार सभी घरवालों से कहेगी कि अभिनव के जाते ही अक्षरा फिर से अभिमन्यु के करीब चली जाएगी.

3. कायरव-मुस्कान के रिश्ते में आएंगी दूरियां

शो (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Upcoming Episode) में आगे देखने को मिलेगा कि मुस्कान अपना पूरा ध्यान और पूरा समय अक्षरा और अभिमन्यु के बीच में दरार लाने पर लगाती है. जिस कारण वह अपने और कायरव के रिश्ते पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देती, जिससे धीरे-धीरे दोनों का रिश्ता बिगड़ने लगेगा.

4. गोयनका हाउस में रहेगा अभिमन्यु

आपको बता दें कि बीते दिनों ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ का नया प्रोमो वीडियो जारी किया गया है, जिसमें दिखाया गया है कि अभिमन्यु अबीर के लिए गोयनका हाउस में रहने का फैसला करता है, जिसके चलते वह अक्षरा से बात भी करेगा.

5. एक घर में रहेंगे अक्षरा-अभिमन्यु

इसके आगे दिखाया (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Upcoming Episode) जाएगा कि बड़े पापा, अभिमन्यु को गोयनका हाउस में रहने की इजाजत दें देते है. इस वजह से अब अक्षरा-अभिमन्यु एक घर में एक साथ रहेंगे.

6. राखी का त्योहार साथ मनाएंगे दोनों परिवार

जहां एक तरफ अक्षरा और अभिमन्यु एक साथ गोयनका परिवार में रहेंगे, तो इससे धीरे-धीरे गोयनका और बिरला परिवार भी एक दूसरे के करीब आएंगे. इसके अलावा दोनों परिवार इस साल राखी भी साथ मनाएंगे.

7. अक्षरा से शादी करेगा अभिमन्यु!

इसके अलावा ये भी कहा जा रहा है कि आने वाले एपिसोड (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Upcoming Episode) में दिखाया जाएगा कि अभिमन्यु, अक्षरा की मांग भरेगा और दोनों फिर से अपने रिश्ते की शुरुआत करेंगे.

Alia Bhatt की मां ने किया दामाद का सपोर्ट, कैंसिल कल्चर को लेकर कहीं बड़ी बात

Alia bhatt lipstick statement : बॉलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट जितना अपनी फिल्मों से लाइमलाइट में बनी रहती हैं. उतना ही वह अपने बयानों के चलते सुर्खियां बटोरती हैं. इस समय उनका लिपस्टिक वाला बयान इतना वायरल हो रहा है कि लोगों ने उसे मुद्दा बना दिया और लोग उनके पति रणबीर कपूर को ट्रोल कर रहे हैं.

आलिया पर अपनी मर्जी थोपते हैं रणबीर!

दरअसल, हाल ही में एक इंटरव्यू में आलिया भट्ट (alia bhatt lipstick statement) अपने मेकअप पर बात कर रही थी. इस बीच उनसे पूछा गया कि उनकी फेवरेट लिपस्टिक कौन सी है. तो इस पर उन्होंने कहा, वह कई सालों से एक ही शेड की लिपस्टिक इस्तेमाल कर रही हैं. फिर इसके आगे आलिया कहती हैं कि वह लिपस्टिक लगाने के बाद उसे पोंछ भी देती हैं क्योंकि उनके पति रणबीर कपूर को उनके होठों का नेचुरल रंग ज्यादा पसंद है.

जैसे ही आलिया (alia bhatt lipstick statement) का ये बयान सामने आया, वैसे ही लोगों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरु कर दी. जहां कुछ लोगों ने कहा कि रणबीर आलिया पर अपनी मर्जी थोपते हैं. तो वहीं कुछ ने आलिया-रणबीर का सपोर्ट भी किया. हालांकि अब इस मुद्दे में आलिया भट्ट की मां सोनी राजदान कूद गई है.

जानें क्या कहा रणबीर की सासु मां ने?

आपको बता दें कि महेश भट्ट की पत्नी सोनी राजदान (Soni Razdan) ने अपने दामाद का सपोर्ट किया है. रणबीर की सासु मां ने बिना किसी का नाम लिए कहा, ‘क्या है, बेवकूफी बढ़ती जा रही है. कैंसिल कल्चर… अब लोग तय करेंगे कि दूसरे लोगों की जिंदगी में क्या सही है और क्या नहीं. फिर दूसरे लोग भी इसे मुद्दा बनाएंगे और जबरदस्ती का इसमें घुसेंगे. जबकि इससे उनका कोई लेना देना भी नहीं होता है. इस फनी जमाने में जी रहे हैं हम लोग.’

मैं… मैं… और मैं : नरेंद्र दामोदरदास मोदी

भारत ने इतिहास बनाया 23 अगस्त, 2023 को, जब चांद पर भारत ने कदम रखे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बना.”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूरा भाषण अगर आप ध्यान से देखें, तो स्पष्ट है इस में, “मैं… मैं…” की भावना अपने शबाब पर है. आप इस रिपोर्ट में देखेंगे कि किस तरह नरेंद्र मोदी पर मैं… मैं… का फोबिया अपने रंग दिखा रहा है.

एक- देश में अमृत काल मनाया जा रहा है, विगत 76 वर्षों में देश के 12 प्रधानमंत्री हुए हैं, इन में नरेंद्र दामोदरदास मोदी पहले हैं, जिन्होंने यह काम किया है. अपने लिए 8,400 करोड रुपए का एक विमान खरीदा है और आप उस से उतरते ही नहीं है. क्या यह मैं… मैं… का उदाहरण नहीं है. दूसरा –
प्रधानमंत्री ब्रिक्स सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे. स्वागत के लिए एक कैबिनेट मंत्री के आने की खबर सुन कर नरेंद्र मोदी रूठ गए और विमान से उतरने से इनकार कर दिया. बात दूर तक पहुंची. भारत सरकार ने नाराजगी जाहिर की, तब जा कर दक्षिण अफ्रीका के उपराष्ट्रपति स्वागत के लिए पहुंचे और नरेंद्र मोदी विमान से उतरे. पाठको, नरेंद्र मोदी का यह मैं… मैं… का सब से बड़ा उदाहरण कहा जा सकता है.

लोकसभा के चुनाव हों या फिर किसी राज्य सभा के, हर चुनाव में भारतीय जनता पार्टी एक ही चेहरा सामने रखती है, वह है प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का. यह मोदी का मैं… मैं… का सब से ज्वलंत उदाहरण है. दीघाट समय में जब हिमाचल प्रदेश का चुनाव हुआ, वहां पार्टी ने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा. यही सबकुछ कर्नाटक में भी हुआ और नरेंद्र मोदी लंबे समय तक चुनाव प्रचार करते रहे, मगर भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह पराजित हो, यह मैं… मैं… ही है कि आगामी समय में देश में पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं, यहां भी भारतीय जनता पार्टी किसी स्थानीय चेहरे को सामने न ला कर सिर्फ मोदी के चेहरे को मतदाताओं के बीच ले जा कर के वोट मांगने की तैयारी में है.

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “मैं …मैं…” कर के हर एक कामकाज की सफलता को अपना बताने की फितरती भावना अपने उफान पर है.

नरेंद्र मोदी की यह सब से बड़ी खामी है कि वह ऐसा कोई दिन, समय, भाषण नहीं होता, जब स्वयं को दुनिया के समक्ष प्रदर्शित करने का मौका चूक जाते हों. यह बात कुछ मायने में तो सहज रूप से स्वीकार आम जनमानस कर लेता है, मगर हर एक जगह आप देश के प्रधानमंत्री होने के नाते उस एक एकाधिकार, विश्वास और प्रेम का दुरुपयोग कर रहे होते हैं, जो आप को प्रधानमंत्री के नाते इस देश की जनता ने सौंपा है.

दरअसल, यह इतिहास में पहली दफा हुआ है. प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हों या फिर लाल बहादुर शास्त्री अथवा इंदिरा गांधी या फिर अटल बिहारी वाजपेयी, इन सब के भाषणों पर अगर शोध किया जाए, तो स्पष्ट हो जाता है कि उन्होंने “मैं” की भावनाओं को दूर रख कर सदैव “हम” को आगे रखा और देश को विकास देने का प्रयास किया.

जब देश का एक प्रधानमंत्री देश की हर एक योजना, परियोजना और भाग्यवश हर एक अच्छे हो जा रहे काम की दाद लेने के लिए तो तैयार है, मगर जहां कहीं कोई कमी हो जाती है, जैसे नोटबंदी, कोरोना महामारी से मृत लोगों को राहत, वहां आप मौन धारण कर लेते हैं या फिर विपक्ष को गरियाने लगते हैं, नेहरू और पूर्ववर्ती सरकारों को दोषी बताने लगते हैं. देश की जनता यह सब देख रही है और इस की विवेचना भी कर रही है, जिस का सार संक्षिप्त यही है कि नरेंद्र मोदी लगातार आबाध गति से जिसजिस तरह “मैं… मैं…” कर रहे हैं, वह उन के व्यक्तित्व के लिए तो नुकसानप्रद है ही, देश के लिए भी बहुत नुकसानदायक है.

अब जैसे आज 23 अगस्त, 2023 को देशभर के समाचारपत्रों में नरेंद्र मोदी का एक वक्तव्य छपा है, जिसे पढ़ कर आप स्वयं अनुमान लगा सकते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “भारत आने वाले वर्षों में पूरी दुनिया की वृद्धि का इंजन बनेगा.”

मोदी ने कहा, “उन की सरकार ने ‘मिशन’ के रूप में सुधारों को आगे बढ़ाया है, जिस से देश में कारोबार सुगमता की स्थिति बेहतर हुई है.”

5 लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था बनेंगे

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोहांसबर्ग ब्रिक्स ‘बिजनेस फोरम लीडर्स डायलाग’ को संबोधित करते हुए कहा, “भारत जल्द ही पांच लाख करोड़ डालर की अर्थव्यवस्था होगा. भारत के पास दुनिया की तीसरी बड़ी स्टार्टअप पारिस्थितिकी है और यहां पर सौ से भी अधिक यूनिकार्न मौजूद हैं. एक अरब डालर से अधिक राजस्व वाले स्टार्टअप यूनिकार्न की श्रेणी में आते है.” यह कहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह स्वीकार करना चाहिए कि देश को आज इस ऊंचाई तक पहुंचाने के लिए देश की करोड़ जनता में और पहले के नेतृत्व में ईमानदारी से काम किया है. तब आने वाले समय में हम इस मुकाम पर पहुंच पा रहे हैं. मगर, नरेंद्र मोदी की बौडी लैंग्वेज और भाषण के एक भी शब्द से इस सचाई पर कोई तथ्य सामने नहीं आता.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस “मैं… मैं…” के स्याह पक्ष की विवेचना करते हुए साफगोई से बताना चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी दक्षिण अफ्रीका की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर मंगलवार को जोहांसबर्ग पहुंचे. इस दौरान नरेंद्र मोदी 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं और दुनिया के कई नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकें कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 अगस्त, 2023 को सुबह दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना होने से पहले एक वक्तव्य में कहा कि ब्रिक्स देश विभिन्न क्षेत्रों में एक मजबूत सहयोग एजेंडा अपना रहे हैं.

उन्होंने कहा, “हम मानते हैं कि ब्रिक्स विकास संबंधी अनिवार्यताओं और बहुपक्षीय प्रणाली में सुधार सहित पूरे ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए चिंता का सबब बने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करने का मंच बन गया है.”

दरअसल, उन्होंने कोई भी ऐसा मंच या भाषण के समय मौका नहीं चूका है, जब वे “मैं… मैं…” पर नहीं आ जाते हैं और दुनिया को बताने का प्रयास करते हैं कि भारत देश में अगर कोई विकास का रास्ता खुल रहा है, तो उस के पहले और अंतिम जनक वही हैं. लेकिन सच तो यह है कि इस बात को कोई थोड़ा भी पढ़ालिखा व्यक्ति या बौद्धिक कभी भी नहीं मान सकता. सच तो यह है कि देश को आगे बढ़ाने में सभी का योगदान होता है और अगर एक प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी इस सच को स्वीकार कर “हम… हम” करने लगे तो उन की एक बेहतर छवि और संदेश देशदुनिया में सकारात्मक ही जाएगा.

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