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Janhvi Kapoor ने बॉयफ्रेंड Shikhar Pahariya संग की सगाई! हाथ में दिखी डायमंड रिंग

Janhvi Kapoor Engagement News : बॉलीवुड एक्ट्रेस जान्हवी कपूर जितना अपनी फिल्मों से लाइमलाइट बटोरती हैं. उतना ही वह अपने रिलेशनशिप को लेकर सुर्खियों में बनी रहती हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कहा जाता है कि जान्हवी लंबे समय से शिखर पहाड़िया को डेट कर रही है. हालांकि अभी तक अपनी डेटिंग की अफवाहों पर एक्ट्रेस ने कभी कोई बात नहीं की है. वहीं अब कहा जा रहा है कि उन्होंने अपने बॉयफ्रेंड शिखर संग सगाई कर ली है.

जान्हवी ने गुपचुप तरीके से की सगाई!

दरअसल बीते दिन एक्ट्रेस जान्हवी, (Janhvi Kapoor diamond ring) शिखर पहाड़िया के साथ तिरुमाला टेंपल दर्शन करने के लिए पहुंची थी. इस दौरान उन्होंने हाथ में एक बड़ी, खूबसूरत और चमचमाती डायमंड की अंगूठी पहन रखी थी, जिसके बाद से लोगों ने कयास लगानी शुरु कर दी उन्होंने सगाई कर ली है.

जानें एक्ट्रेस की डायमंड रिंग का सच

आपको बता दें कि जब से बोनी कपूर और दिवंगत एक्ट्रेस श्रीदेवी की बेटी ”जान्हवी कपूर” की डायमंड रिंग वाली तस्वीर सामने आई है. तभी से उनके फैंस अटकले लगा रहे हैं कि जान्हवी, अपने लॉन्ग टर्म बॉयफ्रेंड शिखर पहाड़िया के साथ सगाई करने के बाद भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए तिरुमाला मंदिर गई थी.

हालांकि इन अटकलों के बीच एक एंटरटेनमेंट पोर्टल की रिपोर्ट भी खूब वायलर हो रही है. इस रिपोर्ट में एक्ट्रेस जान्हवी (Janhvi Kapoor Engagement News) की शिखर पहाड़िया संग सगाई को लेकर एक खुलासा किया गया है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सोशल मीडिया पर जो जान्हवी की डायमंड रिंग वाली तस्वीर वायरल हो रही है वो सच है, लेकिन असलियत यह नहीं है. सच कुछ और ही है. दरअसल, कहा जा रहा है कि जान्हवी अपने बॉयफ्रेंड शिखर पहाड़िया के साथ तिरुमाला मंदिर अपनी सगाई के लिए भगवान का आशीर्वाद लेने नहीं गई थी. बल्कि वो अपनी मम्मी दिवंगत श्री देवी की बर्थ एनिवर्सरी पर भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए तिरुमाला टेंपल गई थी.

YRKKH Spolier: शो में आएगा लीप, अक्षरा-अभिमन्यु आएंगे साथ

YRKKH Spolier alert : प्रणाली राठौड़ और हर्षद चोपड़ा स्टारर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इस समय खूब सारा ड्रामा देखने को मिल रहा है. हालांकि अब जल्द ही शो में कुछ ऐसा होगा, जिसे देखने के बाद दर्शक हैरान हो जाएंगे. दरअसल, सीरियल में जल्द ही लीप आने वाला है. इसके अलावा आज के एपिसोड में भी कुछ नया ट्विस्ट देखने को मिलेगा.

अभिनव को याद करेगी अक्षरा

आज के एपिसोड (YRKKH Spolier alert) में दिखाया जाएगा कि अभीर अपना नया घर देखकर खुश हो जाता हैं और अभीर को खुश देख बाकी सभी घरवालों के चेहरे पर भी स्माइल आ जाती है. इसके बाद दिखाया जाएगा कि, अभिमन्यु, अभीर को ब्रश करवाने लेकर जाता है. दूसरी तरफ सभी लोग घर की साफ-सफाई करने में जुट जाते हैं. इस बीच कायरव और मुस्कान एक-दूसरे से माफी मांगते है. खुशी के इस माहौल में सभी लोग मिलकर ‘एक-दूसरे से करते हैं प्यार हम’ गाने पर डांस करते हैं.

डांस और साफ-सफाई करते-करते अबीर इतना थक जाता है कि वो अभिमन्यु के साथ ही सो जाएगा. अभिमन्यु और अभीर को साथ देख अक्षरा को अभिनव की याद आ जाती है.

अभिमन्यु और अक्षरा की होगी बहस

इसके बाद दिखाया (YRKKH Spolier alert) जाएगा कि अक्षरा रात में ही डॉक्टर को फोन करती है और उन्हें अभीर के रात में सुसु करने वाली बात बताती है. अक्षरा और डॉक्टर की पूरी बात अभिमन्यु सुन लेता. जिसके बाद वो अक्षरा से कहता है, ‘रात के 12 बजे डॉक्टर से कौन बात करता है?’

इसके बाद अभिमन्यु अक्षरा का ध्यान भटकाने की कोशिश करता है और उससे केस के बारे में पूछता है. फिर अक्षरा उसे बताती है कि उसके क्लाइंट के भाई ने उसकी ही भेस चुरा ली है. ये सुन अभिमन्यु जोर-जोर से हंसने लगता है. इसके बाद दोनों के बीच बहस होने लगती है और बहस-बहस में ही सुबह हो जाती हैं.

अब आएगा कहानी में लीप

आगे दिखाया (YRKKH Spolier alert) जाएगा कि, सुबह उठते ही अक्षरा, अभीर को पढ़ाती है. इसके बाद कहानी में लीप आएगा और सब कुछ बदल जाएगा. अक्षरा-अभिमन्यु की दोस्ती हो जाएगी. दोनों मिलकर अभीर की देखभाल करेंगे और उसे संभालेंगे. वहीं मुस्कान का बहुत बड़ा प्रमोशन होगा.

अपनी भूख को जानें

डोली एक गृहिणी है जोकि आजकल अपनी एक आदत से बेहद परेशान है. वह न चाह कर भी अपनी भूख पर कंट्रोल नहीं कर पा रही है. इस कारण अब उसे मोटापे का तो सामना करना पड़ ही रहा है, साथ ही, उसे सिरदर्द, पेटदर्द व तनाव की समस्या भी रहने लगी है. वहीं, कभीकभी हम सभी के साथ अकसर ऐसा होता है कि हम खाना खाने के बाद भी अजीब सी भूख से परेशान रहते हैं या अचानक से कुछ खाने की लालसा जाग उठती है.

किसी विशेष पदार्थ को खाने की लालसा सिर्फ आप की इच्छा ही नहीं होती है बल्कि यह  संकेत होता है कि आप के अंदर किसी पौष्टिक पदार्थ की कमी हो रही है जिस का कारण हमारे शरीर या जीवनशैली में विशेष पोषक तत्त्वों की कमी होता है.

वास्तव में एक संतुलित आहार हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी होता है. यदि इस में असंतुलन हो जाता है तो यह हमारे शरीर पर नकरात्मक प्रभाव डालता है. कभी अचानक से मीठा खाने का तो कभी नमकीन, खट्टा, चटपटा या तलाभुना खाने की ललक होती है. सो, जरूरी है कि आप को अपनी इस बढ़ती भूख का सही कारण पता हो जिस से आप जल्दी ही नजात पा सकें.

नमक

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर रोज 5 ग्राम से अधिक नमक का सेवन सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि हमारे मूत्र, रक्त और पसीने में भी सोडियम शामिल होता है. इस के अधिक सेवन से हाई ब्लडप्रैशर, किडनी की समस्या, दिल का दौरा या स्ट्रोक विकसित होने का खतरा बढ़ सकता है. इस स्थिति के कई कारण भी हो सकते हैं, जैसे-

  • हमारे शरीर में लवण और खनिजों के स्तर बिगड़ने से पोटैशियम, कैल्शियम या आयरन की कमी का आना.
  • ज्यादा पेशाब और पसीना आना.
  • नमक खाने का आदी (लत) होना.
  • एडिसन बीमारी का होना. इस में अवसाद, चिड़चिड़ापन अत्यधिक थकान, भूख की कमी, वजन का कम होना, कम रक्तचाप, मांसपेशियों में ऐंठन और कमजोरी, मतली, दस्त, उलटी की समस्या हो सकती है.

आदतों में करें बदलाव

  • सफेद नमक की जगह काले नमक का प्रयोग करें.
  • भोजन में ऊपर से नमक न डालें.
  • सलाद या फल बिना नमक के खाएं.
  • मीठा खाने की लालसा

मीठा खाने से एनर्जी तो मिलती है लेकिन जरूरत से ज्यादा ग्लूकोज आप को बीमार बना सकता है. यह दिल की समस्या, मोटापा, स्किन प्रौब्लम, डायबिटीज, ब्रेन से जुड़ी समस्या, फैटी लिवर जैसी बीमारियों से ग्रस्त कर सकता है, इसलिए सावधानी बरतना बहुत जरूरी है.

कारण

  • भोजन में कार्बोहाईड्रेट की मात्रा ज्यादा लेना.
  • खराब पाचनतंत्र.
  • शरीर में पानी की कमी होना.

आदतों में करें बदलाव

  • अपने दांतों की अच्छे से सफाई करें.
  • रोजाना वर्कआउट करें.
  • खाने से पहले फल खा लें.
  • खाना खाने के आधे घंटे बाद पानी पिएं. इस से भी मीठे की तलब को कम किया जा सकता है.

तलाभुना खाने की लालसा

यदि आप को तलाभुना खाने की इच्छा हो रही है तो इस का मतलब है आप के शरीर में आवश्यक फैटी एसिड ओमेगा-3 और ओमेगा-6 की कमी हो रही है. कभीकभी मौसम में हो रहे बदलाव के कारण भी यह इच्छा बढ़ जाती है लेकिन वसायुक्त भोजन शारीरिक व मानसिक बीमारियों से ग्रस्त कर सकता है, इसलिए इस पर काबू पाना बहुत जरूरी है.

आदतों में करें बदलाव

  • भोजन में प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाएं.
  • नट्स, जैसे काजू, मूंगफली का सेवन करें.
  • व्यायाम अवश्य करें, इस से तनाव से भी राहत मिलेगी.
  • रात में तलाभुना न खाएं, इस से एसिडिटी की परेशानी हो सकती है.

खट्टा खाने की लालसा

खट्टे स्वाद की बढ़ती ललक बताती है कि आप का पाचनतंत्र निर्जलित है. यदि आप का जिगर (लिवर) कमजोर है तो भी खट्टे खाने की तीव्र इच्छा होती है. लेकिन लिवर से संबंधित परेशानी में खट्टी चीजों से परहेज करना चाहिए. ज्यादा खट्टा खाने से क्रोध और ईर्ष्या की भावना उत्तेजित होती है जिस से मानसिक तनाव भी बढ़ता है.

आदतों में करें बदलाव

  • पानी का सेवन अधिक करें.
  • दूसरे आहार डाइट में शामिल करें.
  • दही, खट्टा क्रीम, सिरका, अचार या जंक फूड जैसे पदार्थों से परहेज करें.

हम हैं तैयार चलो : चांद पर जाने का ख्याल पहले किस शायर के दिलोदिमाग में आया था?

साल 1962 में प्रदर्शित कमाल अमरोही की फिल्म ‘पाकीजा’ में मशहूर शायर कैफ भोपाली ने मीना कुमारी और राजकुमार से यह गाना गवाया था,”चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो… हम हैं तैयार चलो…”

जैसे ही चंद्रयान 3 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड किया तो साबित यह हुआ कि सपने देखते तो साहित्यकार हैं पर उन्हें सच कर दिखाने का माद्दा सिर्फ वैज्ञानिकों में ही होता है।

चांद पर जा कर हम ने अपनी श्रेष्ठता, योग्यता और प्रतिभा साबित भी कर दी है जिस पर दीवाली जैसी आतिशबाजी स्वाभाविक बात थी। हर किसी ने इस कामयाबी को अपने लिहाज से भुनाया जिस से लगा कि इस जश्न के पीछे भी पूर्वाग्रह है. हम एकदूसरे को बधाई नहीं दे रहे बल्कि एकदूसरे को नीचा दिखाने की मानसिकता प्रदर्शित कर रहे हैं.

वैज्ञानिक उपलब्धियों का श्रेय लेने की होड़ तो कुछ इस तरह थी मानो किसी हाटबाजार में टमाटर लुट रहे हों। इस की शुरुआत 20 अगस्त से ही शुरू हो गई थी। देशभर के मंदिरों में पूजापाठ, यज्ञ और हवनों का दौर था। कई जगह तो शिव के अभिषेक भी हुए जिन के गले में चंद्रमा टाई की तरह लटका रहता है। फिर 21, 22 और 23 अगस्त आतेआते तो लोग पगला उठे। हर जगह से आह्वान होने लगा कि चलो फलां मंदिर में चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग के लिए विशेष अनुष्ठान और कर्मकांड किए जा रहे हैं। कई भक्तों ने तो कांवड़ यात्राएं तक आयोजित कर डालीं।

चंद्रमा हमारे लिए आस्था का विषय रहा है। उस के नाम पर व्रत, तीज, त्योहार और दानदक्षिणा बेहद आम हैं। अब इस की पोल खुलने जा रही थी तो धर्म के दुकानदार घबरा उठे। लिहाजा, उन्होंने भजनकीर्तन कर यह जताने की कोशिशों में कोई कमी नहीं छोड़ी कि वैज्ञानिक तो निमित्त और माध्यम मात्र हैं। दरअसल, ईश्वर ऐसा चाहता है और बिना उस की परमिशन के चांद को छू पाना नामुमकिन है। यह और बात है कि चंद्रयान की सफलता के आयोजनों में भी दोनों हाथों से दक्षिणा बटोरी गई. भले ही सालों पहले कोई नील आर्मस्ट्रांग चांद पर उतरा था लेकिन अब हमारी बारी थी और बगैर हरि इच्छा के यह या कोई और मिशन कामयाब हो जाए ऐसा हम होने नहीं देंगे।

तो चंद्रयान 3 यों ही चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड नहीं कर गया बल्कि इस के लिए भक्तों ने 72 घंटे बड़ी मेहनत की। देश के गलीमोहल्लों तक में लोग इकट्ठा थे। कुछ को तो यह भी नहीं मालूम था कि वे क्यों पूजापाठ का हिस्सा बने हैं। ये वे लोग हैं जो कहीं भी कभी भी उस मंदिर के प्रांगण में हाथ जोड़े जा खड़े होते हैं जहां से सुबहशाम आरती की आवाज आ रही होती है। इन्हें नहीं मालूम कि लैंडर और रोवर किस बला के नाम हैं। इन्हें यह जरूर मालूम है कि अक्षत कब चढ़ाए जाते हैं और स्वाहा कब बोला जाता है।

काशी, उज्जैन, मथुरा, वृंदावन, प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार, ऋषिकेष सहित अयोध्या में भी स्पैशल अनुष्ठान हुए। वैज्ञानिकों की मेहनत पर भगवान पानी न फेर दे इस के लिए फायर ब्रैंड साध्वी ऋतंभरा ने मथुरा में कई बार हनुमान चालीसा का पाठ किया तो अयोध्या में तपस्वी छावनी के जगतगुरू आचार्य परमहंस के नेतृत्व में चारों वेदों की ऋचाओं का पाठ साधुसंतों ने किया। इस पर भी जी नहीं भरा तो महामंत्र और विजयमंत्र का भी पाठनवाचन किया गया।

छुटभैयों से ले कर ब्रैंडेड मंदिरों में हर कैटिगिरी के साधुसंतों ने ऐसा समां बांधा, इतना होहल्ला मचाया कि एक बार तो लगा कि कहीं सचमुच में भगवान खासतौर से कल्कि अवतार जिस की जयंती पिछले दिनों मनाई गई थी, धरती पर आ कर इन भक्तों के पांव यह कहते न पकड लें कि मुझे बख्शो मेरे बच्चो, चंद्रयान 3 सफल होगा इस का मैं वरदान देता हूं।

सारा श्रेय सनातनी ही ले जा रहे हैं, यह खयाल आते ही मुसलिम धर्मगुरू भी जंग के इस मैदान में कूद पड़े और जगहजगह मसजिदों में विशेष नमाज होने लगी। इस से आम मुसलमानों में भी जोश आया कि देश हमारा भी है और कहीं ऐसा न हो कि कल को हमें इस बिना पर भी न लताड़ा जाने लगे कि तुम ने तो चंद्रयान 3 की कामयाबी के लिए नमाज तक नहीं पढ़ी। इसलिए तुम देशभक्त नहीं हो। देखते ही देखते देशभर के लाखों मुसलमानों के हाथ ऊपर उठे और गंगाजमुनी तहजीब की मिसाल कायम हो गई। हालांकि इस ड्रामे का भी कोई मतलब नहीं था लेकिन इतना जरूर साबित हुआ कि कम से कम विज्ञान का कचरा करने के मुद्दे पर सभी धर्म एक हैं और सहमत हैं कि विज्ञान और तर्क हमारी रोजीरोटी को निगल जाएंगे इसलिए उसे पूजापाठ और नमाजोंदुआओं की चादर से इतना ढंक दो कि लोगों को सिर्फ अपनेअपने ऊपरवाले दिखें।

इसरो के वे नीचे वाले और उन की ये कोशिशें नही दिखें जिन से यह साबित होता है कि चंद्रमा कोई देवता नहीं बल्कि एक उपग्रह है जिस के दक्षिणी ध्रुव पर पानी और कैमिकल्स वगैरह हैं और जहां आइंदा कभी आदमी का रहना मुमकिन है।

एक दिन में ही पूजापाठ का यह रोग कोरोना वायरस से भी ज्यादा फैला। जैन मंदिरों में पूजापाठ हुआ, गुरुद्वारों में अरदास का दौर चला। केंद्रीय मंत्री हरदीप पूरी इस बाबत खासतौर से दिल्ली के गुरूद्वारे बंगला साहिब गए। और तो और रांची में आदिवासियों ने अपनी आराध्य सरना मां से प्रार्थना की। कुछ गिरिजाघरों में भी प्रार्थना की गई।

योगगुरू बाबा रामदेव ने भी बहती गंगा में हाथ धोते हरिद्वार में हवन कर डाला। अच्छा तो उन का यह बताना न रहा कि चंद्रमा पर इतनी दुर्लभ जड़ीबूटियां पाई जाती हैं जो संजीवनी से भी ज्यादा करामाती और कारगर होती हैं। जैसे ही चांद पर आवाजाही आम होगी तो वे और बालकृष्ण वहां जा कर इन्हें लाएंगे और पतंजलि चांद की जड़ीबूटियों से बने प्रोडक्ट लांच करेगी।

माहौल स्कूलकालेजों में भी गरमाया जहां शासन के आदेश पर छात्र और अध्यापक टीवी स्क्रीन के सामने बैठे समोसा कुतरते अगले आइटम का इंतजार कर रहे थे जो 23 अगस्त को ठीक 6 बज कर 4 मिनट के कुछ देर ही बाद नुमाया हुआ। यह देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे जिन के स्क्रीन पर प्रगट होते ही लगा कि प्रार्थनाएं, पूजापाठ और दुआएं जाया नहीं गई हैं। कम से कम नीचे वाले तो प्रगट हुए. मोदीजी ने संक्षिप्त और सारगर्भित संस्कृतनुमा भाषण दिया। तब वे दक्षिण अफ्रीका में सरकारी दौरे पर थे। लेकिन गौरतलब यह कि देश को और चंद्रयान को नहीं भूले थे।

उन्होंने लगभग वही कहा जो मथुरा में आसीन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने चंद्रयान 3 की सफलता के बाद कहा था। जिस का सार यह है कि यह उपलब्धि वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भी मील का पत्थर है। इस का एक सार यह भी है कि हम ने विश्वगुरू बनने की तरफ एक कदम और बढ़ा दिया है। इसलिए भारत जो भी करता है पूरी दुनिया के लिए करता है। रही बात इसरो की तो उस के चीफ एस सोमनाथ तो पहले से ही वेदपुराणों में आस्था जताते रहे हैं कि नया कुछ नहीं है सबकुछ वेदों में पहले से ही लिखा है।

असल में हम विश्वगुरू तो तब से ही हैं जब विश्व नाम की कोई चीज अस्तित्व में ही नहीं थी। अफसोस तो इस बात का है कि हमारे ज्ञानविज्ञान को यूरोप और दूसरे विदेशियों ने चुराया। सोमनाथ की मानें तो दुनिया में जितने भी वैज्ञानिक आविष्कार हुए हैं वे हमारे वेदों और पूर्वजों की देन हैं। हम कभी उन्नत विज्ञान के मालिक हुआ करते थे।

इस बाबत वे गिना भी सकते हैं कि संजय ने धृतराष्ट्र को महाभारत का जो आखों देखा हाल सुनाया था वह दरअसल आज की तरह का आम वीडियो कौल था। लेकिन वे चाह कर भी यह नहीं बता सकते कि पौराणिक युग में खीर और कान के मैल से बच्चे कैसे पैदा हो जाते थे? किसी योद्धा का एक सिर कटता था तो दूसरा वह भी हुबहू कैसे आ जुड़ता था? किसी बच्चे की गरदन पर हाथी का सिर वह भी भारीभरकम सूंङ सहित कैसे जोड़ दिया जाता था?

ऐसे सवाल अंतहीन हैं जिन का चंद्रयान 3 की सफलता का श्रेय लेने वाले लीडर से इतना ताल्लुकभर है कि यह सब था लेकिन हम अज्ञानी वक्त रहते इसे न समझ पाए और न ही संभाल पाए। जाहिर है, सोमनाथ भी आस्था या किसी लालच, दबाव या विवशता के चलते वह भाषा बोल रहे हैं जो प्रमाण और परिणाम नहीं बल्कि मान्यताओं को थोपती है।

हम कथित तौर पर लुटे इसलिए कि हम आज भी जातपात, धर्म के पचड़े में पड़े हैं। यह मिशन इसरो टीम की मेहनत, प्रतिभा और कोशिशों से कामयाब नहीं हुआ बल्कि ईश्वर कृपा से हुआ है जिस के लिए खुद सोमनाथ जुलाई में खासतौर से तिरुपति के मंदिर में पूजापाठ कर के आए थे। हरि ने उन की सुन ली तो मुमकिन है कि वे जल्द ही मन्नत पूरी होने पर फिर तिरुपति जाएं और सूर्य मिशन की तैयारियों में जुट जाएं जिसे हनुमान ने फल समझ कर मुंह में ले लिया था। इस पर वे या कोई और यही कहेगा कि हनुमान का मुंह फायर प्रूफ था।

अब अहम सवाल यह कि हम बच्चों को क्या पढ़ाएं और युवाओं को क्या समझाएं यह कि एक तरफ तो चंद्रमा उपग्रह साबित हो चुका है और भारत ने उस के दक्षिणी ध्रुव पर दस्तक दे दी है। दूसरी तरह हमारे धर्मग्रंथ कहते हैं कि चंद्रमा ब्रह्मा के मानसपुत्रों में से एक अत्रि की संतान था जिस की शादी कर्दम मुनि की बेटी अनुसुईया से हुई थी। चंद्रमा इन्हीं दोनों का बेटा है। चंद्रमा की शादी दक्ष प्रजापति की 27 बेटियों से हुई थी जिन्हें नक्षत्र कहा और माना जाता है।

कुछ लोगों ने तो चंद्रमा पर जमीन बेचने और खरीदने का भी कारोबार शुरू कर दिया है। चंद्रयान 3 की कामयाबी के बाद तो लगता है कि चंद्रमा रियल एस्टेट का केंद्र बन कर रह जाएगा।

लेकिन 23 अगस्त को एक खास बात यह भी हुई है कि हमारी धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं ध्वस्त हो गई हैं लेकिन इस से लोग तार्किक सोच पाएंगे ऐसा लग नहीं रहा। यह बात 1 नवंबर को करवाचौथ पर सिद्ध भी हो जाना है। इस दिन महिलाएं चंद्रमा का पूजापाठ करेंगी गणेश चतुर्थी पर लोग चंद्रमा को देखने से बचते हैं क्योंकि एक और किस्से के मुताबिक इस दिन चांद को जो देखता है उस पर चोरी का आरोप लगता है। ऐसे मौकों पर हंसीमजाक भी होगा जो 23 अगस्त से ही शुरू हो गया है।

एक वायरल मीम में कुछ महिलाएं बैठी बतिया रही हैं कि चंद्रमा पर अगर बस जाएंगे तो करवाचौथ पर पूजापाठ किस का करेंगे? एक और पोस्ट में उन प्रेमियों को नसीहत दी जा रही है जो माशूका के लिए चांदतारे तोड़ कर लाने का सनातनी पुरातनी वादा करते हैं। एक पोस्ट में कहा गया कि चंद्रयान से मैसेज आया है कि किसी की भी पत्नी या प्रेमिका की शक्ल चांद से नहीं मिलती है। अब तक सारे मर्द औरतों को वेबकूफ बनाते रहे थे।

लोगों ने चंद्रयान के रोमांचक क्षणों को जिया है तो बाद में उस पर स्वस्थ हंसीमजाक भी जम कर किया है लेकिन इस पर राजनीति भी जम कर हुई जिस की शुरुआत न्यूज चैनल्स पर बाइट्स दे रहे आम लोगों ने की कि यह तो मोदीजी का कमाल है। हम उन्हें बधाई देते हैं व उन का आभार व्यक्त करते हैं। मोदीजी के स्क्रीन पर अवतरित होने के बाद तो भक्त ऊपरवाले को भूल कर नीचेवाले इन भगवान का गुणगान करते दिखे. मानो मोदीजी न होते या न चाहते तो चंद्रयान अभियान परवान नहीं चढ़ पाता।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो मोदीजी का आभार व्यक्त करते सभी अखबारों में एक पेज का सरकारी विज्ञापन भी छपवा दिया। चाटुकारिता, खुशामद और व्यक्तिपूजा की इस से बड़ी मिसाल शायद ही कहीं मिले। इस खेल में बेचारा इसरो औपचारिक बधाई का पात्र बन कर रह गया।

इस पर विपक्ष को मिर्ची लगनी स्वभाविक बात थी कि महज प्रधानमंत्री होने के नाते मोदीजी सारा श्रेय हकदार न होते हुए भी ले जा रहे हैं तो उन्होंने अपनी शुभकामनाओं में इसरो और वैज्ञानिकों को बधाई पर खासा जोर दिया कि कहीं सचमुच में लोग यह न मान बैठें कि यह मोदीजी का चमत्कार है। राहुल गांधी ने तो अपने संदेश में खासतौर से यह कहा कि अंतरिक्ष गतिविधियों ने 1962 में जोर पकड़ा था वे अब फलीभूत हो रही हैं। इस बहाने उन्होंने अपने पूर्वजों के योगदान को याद दिलाने की कोशिश की।

लेकिन नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी भगवा गैंग के लिए कोसने के किरदार भर हैं। उन्हें तभी याद किया जाता है जब किसी परेशानी का ठीकरा फोड़ना होता है। ऐसे में राहुल को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि चंद्रयान की सफलता और इसरो के गठन का श्रेय उन के पुरखों को देने की जहमत कोई उठाएगा।

अब चांद पर बसने की सुगबुगाहट ने कईयों को रोमांचित कर दिया है। लोग मीना कुमारी और राजकुमार की तरह चांद पर बसने जाने को तैयार हैं क्योंकि वे धरती की आपाधापी, नफरत और रोजरोज दुश्वार होती जिंदगी से आजिज आ चुके हैं। लेकिन लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर आदमी चांद पर बसा तो वह धरती से धर्म और भगवान जरूर ले जाएगा और वहां भी मंदिरमसजिद और चर्च वगैरह बनाएगा। फिर शुरू होगा जातपात का फसाद, धार्मिक दुकानदारी और रंगभेद सहित अमीरीगरीबी का भी भेदभाव। आज जो कल्पना है वह साकार भी होती है यह बात कैफ भोपाली के सच होते शेर से भी साबित होती है लेकिन चांद पर आदमी की रिहायश पर कैसेकैसे गुल खिलेंगे यह तो आप के साथ मुझे भी इंतजार है।

मां आनंदेश्वरी : कैसे बदली एक कामवाली की जिंदगी

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दूषित पानी : बिगाड़ न दे सेहत

जलजनित बीमारी गंभीर चिंता का विषय है और लोगों के स्वास्थ्य पर इस के पड़ने वाले प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। दूषित जलस्रोतों के मिलने, अपर्याप्त स्वच्छता और स्वच्छता संबंधी गलत आदतों से सालाना लाखों लोग प्रभावित होते हैं।

जलजनित बीमारियां

जलजनित बीमारियां अकसर सूक्ष्म परजीवियों, बैक्टीरिया और वायरस के कारण होती हैं। ये बीमारियां देश की स्वास्थ्य सुविधाओं पर भारी बोझ डालती हैं। हैजा से ले कर हैपेटाइटिस ए तक की ये बीमारियां उसी पानी के माध्यम से चुपचाप घरों में प्रवेश करती हैं जिसे हम जिंदा रहने के लिए ग्रहण करते हैं।

ऐसे संक्रमणों के परिणाम गंभीर होते हैं, जिस से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं और यहां तक कि मौत भी हो जाती है। इस का प्रभाव संवेदनशील स्थिति वाली आबादी पर सब से गहरा पङता है, जिस में बच्चे, बुजुर्ग और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग शामिल हैं।

डा. प्रदीप डी कास्टा, सीनियर कंसल्टैंट, इंटर्नल मैडिसिन, सह्याद्रि सुपर स्पैशियल्टी हौस्पिटल, नागर रोड, पुणे ने स्वास्थ्य पर जलजनित बीमारियों का प्रभाव कैसे होता है, विस्तार से बताया :

प्रभाव

जलजनित बीमारियों से हर साल लगभग 37.7 मिलियन भारतीय प्रभावित होते हैं। टाइफाइड, हैपेटाइटिस ए, पीलिया, पेटदर्द, उलटी और दस्त आम बीमारियां हैं, जो दर्द, परेशानी और सब से खराब स्थिति में मरीज के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकती हैं।

हैल्थ ऐक्सपर्ट के मुताबिक बंद नाक, सर्दी और बुखार सहित ऊपरी श्वसन मार्ग के संक्रमण (यूआरआई) से पीड़ित बाल रोगियों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है।

जलजनित बीमारियों के कारण अस्पताल में भरती होना एक सामान्य घटना है, जिस से चिकित्सा संस्थानों के संसाधनों पर असर पड़ता है।

मूल कारण

जलजनित बीमारियों के अनेक कारण हैं। ये सामाजिक और पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होते हैं। इस में प्रदूषित जलस्रोतों की सब से बड़ी भूमिका है, क्योंकि ये अपर्याप्त स्वच्छता और अनुचित तरीके से गंदे पानी का निबटारा रोगजनकों के लिए प्रजनन स्थल बनाते हैं। अपर्याप्त उपचार और वितरण प्रणालियां इस चक्र को आगे बढ़ाती हैं, जिस से जलजनित बीमारियां फैलने लगती हैं। सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच की कमी से ऐसे संक्रमणों की संभावना बढ़ जाती है।

बचाव का तरीका

• जलजनित परजीवियों के खतरे से निबटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। वितरण प्रणालियों के सतर्क रखरखाव के साथ बेहतर जल उपचार विधियां, पीने के पानी की शुद्धता सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है।

• परिवार के सदस्यों को बीमारियों से बचाने के लिए कई बातों का प्रमुखता से ध्यान रखा जाना चाहिए, जैसे समयसमय पर हाथ धोना और अपशिष्ट पदार्थों का सुरक्षित तरीके से निबटारा और साफसफाई के लिए उपयुक्त पद्धतियों को अपनाना।

• व्यक्तिगत स्तर पर व्यक्ति पानी पीने से पहले पानी को उबालना या उपचारित करना, जल शुद्धिकरण के तरीकों को अपनाना, अच्छी तरह से हाथ धोना, स्वच्छता बनाए रखना, साफ बरतनों का उपयोग करना आदि जैसे उपाय अपना सकता है।

• व्यक्ति को स्ट्रीट फूड से भी बचना चाहिए। बोतलबंद पानी का सेवन करना चाहिए, सुरक्षित तरीके खाना पकाना चाहिए। जल की गुणवत्ता संबंधी चेतावनियों से अवगत रहें और यात्रा के दौरान स्वच्छता बनाए रखें। इन को प्रयासपूर्वक आदत में शामिल किए जाने की आवश्यकता है। ये जलजनित बीमारियों के घातक खतरे के खिलाफ शक्तिशाली सुरक्षा उपाय के रूप में काम करते हैं।

• स्वास्थ्य की दिशा में सामूहिक प्रयास सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जलजनित बैक्टीरिया के प्रभाव पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना आवश्यक है।

• स्वच्छता पद्धतियों को बढ़ावा दे कर और सार्वजनिक जागरूकता को बढ़ावा दे कर हम स्वस्थ और रोगमुक्त भारत का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।

शतरंज का भविष्य

रमेशबाबू प्रज्ञानानंद शतरंज के भविष्य के रूप में आज हमारे सामने हैं . रमेशबाबू प्रज्ञानानंद ने दुनिया में एक नया इतिहास लिखा, 18 साल की छोटी सी उम्र में प्रज्ञानानंद शतरंज विश्व कप टूनामेंट के फाइनल में पहुंच गए यह अपने आप में रमेश बाबू की काबिलियत को जग जाहिर करता है . वे भले पराजित हो गए , लेकिन उन्होंने दुनिया में अपनी चमक बिखेर दी है. और देश भर में उनके चाहने वालों की एक बड़ी तादाद पैदा हो गई. सबसे बड़ी बात यह है कि शतरंज विश्व कप के फाइनल में प्रज्ञानानंद का सामना विश्व के नंबर एक खिलाड़ी मैगनस कार्लसन से हुआ़ . दुनिया ने देखा कि किस तरह बड़ी शिद्दत के साथ प्रज्ञानानंद ने कार्लसन को लगातार कड़ी टक्कर देते रहे जिसे देखकर के देश में उनके चाहने वाले मुरीदो की संख्या बढ़ने लगी. अब देश में यह भावना पैदा हो गई है कि आने वाले समय में शतरंज के मैदान में रमेश बाबू प्रज्ञानानंद देश को ऊंचा मुकाम दिलाने में आवश्यक रूप से कामयाब होंगे. आज आपको इस आलेख में हम रमेश बाबू प्रज्ञानानंद के संदर्भ में कुछ ऐसी जानकारियां दे रहे हैं जिन्हें पर जानकर आप आवश्यक रूप से चौंक जाएंगे.

10 अगस्त, 2005 को चेन्नई, तमिलनाडु में जन्मे रमेशबाबू प्रज्ञानानंद एक भारतीय शतरंज खिलाड़ी बन कर सामने आए हैं हैं.उन्हें देश के सबसे प्रतिभाशाली खिलाड़ियों में से एक माना जा रहा है. प्रज्ञानानंद के पिता बैंक में काम करते हैं, और उनकी मां नागालक्ष्मी एक गृहिणी हैं. बड़ी बहन वैशाली आर हैं, जो शतरंज खेलती हैं. पांच साल की उम्र से शतरंज प्रतिभा शतरंज खेल रही है. आप एक महिला ग्रैंडमास्टर है. बड़ी बहन वैशाली ने एक बातचीत में बताया शतरंज में उनकी रुचि एक टूनामेंट जीतने के बाद बढ़ी और इसके बाद उनका छोटा भाई भी इस खेल को पसंद करने लगा. और धीरे-धीरे अपने खेल के माध्यम से उसने सिद्ध कर दिया कि वह एक अच्छा खिलाड़ी बनकर देश का नाम रोशन कर सकता है.आज वैशाली भारत में शतरंज की मशहूर खिलाड़ी है.

रोचक तथ्य यह है कि बहन वैशाली को खेलता देख प्रज्ञानानंद भी उससे प्रभावित हुआ़ और शतरंज को सिर्फ़ तीन साल की उम्र में खेलने लगा था. तभी परिवार जनों को यह लगने लगा था कि यह कहावत सहित हो जाएगी पूत त के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. बेटी और बेटे के शतरंज खेल से जुड़ने के बारे में एक रोचक जानकारी यह भी है कि प्रज्ञानानंद के पिता रमेशबाबू के अनुसार वैशाली को शतरंज से जोड़ा जिससे कि उसके टीवी देखने के समय को कम किया जा सके. आगे चलकर दोनों बच्चों को यह खेल पसंद आया और इसे जारी रखने का फैसला किया गया . हमें खुशी है कि दोनों खेल में सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं. उम्मीद है कि प्रज्ञानानंद देश का नाम रोशन करेगा.

सचमुच बचपन में ही अगर हमें रास्ता मिल जाए और रूठी जागृत हो जाए तो कोई भी ऊंचाई हम प्राप्त कर सकते हैं यह तथ्य रमेश बाबू प्रज्ञानानंद के रुचि को देखकर कहा जा सकता है.

महज सात साल की उम्र में ही प्रज्ञानानंद ने विश्व युवा शतरंज चैंपियनशिप जीती थी. तब सात साल की उम्र में इससे उन्हें फेडरेशन इंटरनेशनल डेस एचेक्स मास्टर की उपाधि मिली.इसके बाद 2015 में उन्होंने चैंपियनशिप का अंडर – 10 डिवीजन जीता. और 10 साल की उम्र में शतरंज के सबसे कम उम्र के अंतरराष्ट्रीय मास्टर का खिताब भी हासिल किया. ऐसा करने वाले आप उस समय सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे. इसके बाद 12 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर बने, ऐसा करने वाले वह उस समय के दूसरे सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे.

रोचक तथ्य भी है कि 16 वर्षीय प्रज्ञानानंद शतरंज के इतिहास में न केवल दूसरे सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर हैं, बल्कि इसे हासिल करने वाले इतिहास में सबसे कम उम्र के भारतीय भी हैं. शतरंज के खेल में सबसे प्रतिष्ठित उपाधि ग्रैंडमास्टर है.

22 फरवरी 2022 को सिर्फ 16 साल की उम्र में रमेश बाबू प्रज्ञानानंद तत्कालीन विश्व चैंपियन मैगनस कार्लसन को हराने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बन गए. जब उन्होंने एयरथिंग्स मास्टर्स रैपिड शतरंज टूनामेंट में एक रैपिड गेम में कार्लसन को हराया था. महत्वपूर्ण तथ्य भी है कि नंबर एक चेस खिलाड़ी मैगनस कार्लसन को प्रज्ञानानंद ने केवल 39 चाल में परास्त कर दिया था. अब खेल प्रेमी यह मान रहे हैं कि देश के लिए शतरंज का भविष्य रमेश बाबू प्रज्ञानानंद है.

मैं अपनी लिवइन गर्लफ्रैंड से शादी करना चाहता हूं, पर घरवालों नहीं मान रहे, अब मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 26 वर्षीय अविवाहित युवा हूं. मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूं व मेरी गर्लफ्रैंड हिमाचल से है. वह 24 वर्ष की है. हम दोनों चंडीगढ़ में साथ काम करते हैं व साथ ही लिवइन में रहते हैं. मगर हमारे समाज में लिवइन में रहने वाली लड़की को सही नहीं माना जाता.

हम दोनों मिडिल क्लास से हैं और लिवइन का हाई सोसाइटी में चलन है. बावजूद इस के हम दोनों की सोच थोड़ी अलग है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और साथ रहने में प्यार और बढ़ गया है. एकदूसरे को हम लोग अच्छी तरह से समझ चुके हैं. मगर अब घरवालों को यह पता लग गया है कि मैं किसी लड़की के साथ रह रहा हूं.

अब मेरी प्रेमिका को सही लड़की नहीं समझ रहे हैं. यही हाल मेरी प्रेमिका के घरवालों के साथ भी है. दोनों के परिवार अब इस रिलेशन से खुश नहीं हैं. क्या करें, समझ नहीं आ रहा है. न तो मैं घरवालों को नाराज करना चाहता हूं और न ही मेरी प्रेमिका अपने घरवालों को नाराज करना चाहती है.

जवाब

जहां तक आप दोनों के साथ रहने की बात है, तो इस में हर्ज की कोई बात नहीं. आप दोनों बालिग हैं और साथसाथ नौकरी भी करते हैं. आप दोनों चाहें तो कानूनन शादी कर सकते हैं. मगर मातापिता की भी अप बच्चों से कुछ अपेक्षाएं होती हैं और उन अपेक्षाओं पर खरा उतरना बच्चों का फर्ज भी होता है.

इसलिए आप दोनों को चाहिए कि आप अपने घरवालों से बात करें. उन्हें समझाने का प्रयास करें कि हम दोनों खुश हैं और रहेंगे. ऐसा नहीं है कि हम लोगों की उम्र का दोष है बल्कि अच्छी तरह सोचसमझ कर हम लोग शादी का निर्णय कर चुके हैं. और आज नहीं तो कल आप लोग शादी के लिए कहोगे ही. फिर लड़का ढूंढ़ो या लड़की देखो आदिआदि. फिर वह कैसी  है या कौन है की किचकिच, फिर घरपरिवार कैसा है आदि.

इस से तो बेहतर है कि आप लोगों के सामने कम से कम यह तो टैंशन नहीं रहेगी. इस में बुराई ही क्या है. जब इस तरह की बातें आप लोग घरवालों के सामने रखेंगे तो यकीनन वे भी मान जाएंगे. अगर नहीं माने तो फिर आप लोगों के लिए कोर्ट का दरवाजा तो खुला है ही.

Raksha Bandhan : खैरू की बलि- छोटी बहन के जन्म से घर में क्यों छाया था सन्नाटा ?

दादी का भुनभुनाना जारी था, ‘अरे, लड़कियां तो निखालिस भूसा होती हैं, हवा लगते ही फुर्र से उड़ जाएंगी, पर वजनदार अनाज की तरह परिवार का रखवाला तो लड़का ही होता है. बेटे वाले घर की तो बात ही कुछ और है.’

यह सुनने के हम अब आदी हो गए थे. मुझ से 2 बड़ी और 3 छोटी बहनें थीं. मैं तीसरे नंबर की बड़ी चंचल व भावुक थी. मुझ से 2 बड़ी बहनें अकसर गुमसुम रहतीं.

मेरी सब से छोटी बहन का जब जन्म हुआ तो घर में मातम सा छा गया. ऐसा सन्नाटा शायद हम सभी बहनों के जन्म के समय भी रहा होगा. छोटी के जन्म पर पड़ोसी भी ‘हे राम, फिर लड़की ही हुई’ जैसे शब्द बोल कर अपने पड़ोसी होने का धर्म निभा जाते. पापा को 2 लाइन लिख दी जातीं कि इस बार भी घर में बेटी पैदा हुई है.

छोटी के जन्म के बाद पापा 1 साल में घर आए थे. 2 महीने की छुट्टियां चुटकियों में बीत गईं. वापस ड्यूटी पर जाते हुए पापा ने दादी के पांव छुए. हम सभी लड़कियों को अच्छे नंबरों से पास होने की हिदायत दे कर उन्होंने संकरी पगडंडियों की तरफ धीरेधीरे अपने कदम बढ़ाए तो घुटनेनुमा पहाड़ पर चढ़ते हुए पापा की पदचाप हम सभी महसूस करते रहे.

जितने दिन पापा घर में रहे हर दिन त्योहार की तरह बीता. चूल्हे की आग से तपती कंचनवर्णा मां के चेहरे पर जरा भी शिकन न दिखाई देती. वह बड़ी फुर्ती से पापा की पसंद के व्यंजन बनाती रहतीं. दोपहर के 2-3 बजे पापा गांव से दूर घूमने निकल पड़ते. कभी हम बहनें भी उन के साथ चल देतीं. गोल, चमकीले, चौकोर पत्थरों के ऊपर जब कभी हम सुस्ताने बैठतीं तो पापा भी बैठ जाते. पापा ध्यान दिलाते, ‘देखो बच्चो, कितना सुंदर लग रहा है यह सब. खूबसूरत पहाड़, स्लेटी रंग के पत्थरों से ढकी छतें कितनी प्यारी हैं.’

तब जा कर कहीं हमें पहाड़ों की सुंदरता का एहसास होता. पहाड़ी खेतों के बीच चलतेचलते सांझ हो जाती और फिर अंधेरा छाने लगता. मैं पापा को याद दिलाती कि अब हमें वापस चलना चाहिए. तारों की छांव में हम वापस मुड़ते. पहाड़ी ढलान पर चलना सहज नहीं होता, ऊपर तारों की चादर फैली हुई और नीचे कलकल करती पहाड़ी नदी. पापा बिना कठिनाई के कदम बढ़ाते साथ ही हमें ऊंचीनीची, संकरी जगहों पर हाथ पकड़ कर रास्ता तय करवाते.

पापा के जाने के बाद उदासी सी छा गई. सारे घर में दादी समयअसमय साड़ी के पल्लू से अपनी आंखें पोंछा करतीं और सारा गुस्सा हम बहनों पर ही उतारतीं. उन के सामने कोई जवाब देने की हिम्मत न करता. दादीजी का रौब और दबदबा सारे गांव में मशहूर था.

अंगरेजी सरकार द्वारा सम्मानित जागीरदारों के उच्च कुल में जन्मी 7 भाइयों की अकेली बहन थीं हमारी दादी. सुना है, उस जमाने में दादाजी की बरात में 500 बराती गए थे. जबकि मेरी मां साधारण परिवार की, कम पढ़ीलिखी लड़की थीं. पापा नायब सूबेदार थे. एन.डी.ए. की लिखित परीक्षा में 2 बार निकलने पर एस.एस.बी. में असफल रहे. इस असफलता का गम पापा को अंदर तक झकझोर गया. वह गम पापा कभी भुला नहीं पाते कि पढ़ाई में उन से फिसड्डी लड़के आगे निकल गए थे और वह रह गए. फिर भी फौज में जाने की उन की दिली इच्छा थी इसलिए जो पद मिला स्वीकार कर लिया.

दादी को सख्त अफसोस होता कि मेरा बेटा दीपू मेजर का बेटा होते हुए भी पीछे क्यों रह गया जबकि वह पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहा था. मेजर का इकलौता वारिस होने के कारण बड़ेबड़े घरों से रिश्ते आए थे लेकिन वह खूबसूरती पर मर मिटा. दानदहेज फूटी कौड़ी भी न मिली और आगे से देखो लड़कियों की फौज खड़ी है. दादी कुछ न कुछ बोलती ही रहतीं. कभी हमें कोसतीं और कभी पापा की किस्मत को दोषी ठहरातीं.

दादी चालीसा अभी खत्म भी नहीं हो पाई थी कि पूर्वा भागीभागी आई और बोली, ‘‘दादी, पार गांव से संतू आया है. साथ में बकरी का छोटा सा एक बच्चा भी लाया है.’’

‘‘संतू बकरी का बच्चा ले आया,’’ दादी खुश होते हुए बोलीं, ‘‘बड़ी खुशामद से मंगवाया है.’’

हम    बहनें प्रश्नभरी नजरों से दादी को देखने लगीं तो वह बोलीं, ‘‘बच्चो, तुम्हारी समझ में अभी ये बातें नहीं आएंगी. समय आने पर तुम खुद ही समझ जाओगी.’’

मैं उत्सुकता से भरी आंगन की तरफ भागी तो देखा सामने दूध की तरह सफेद बकरी का बच्चा भयभीत नजरों से टुकरटुकर मुझे देख रहा था. मैं उसे गोद में लेने को आगे बढ़ी तो वह कुलांचें भरता हुआ भाग निकला.

संतू को चाय और रोटी, बकरी के बच्चे को दानापानी खिलापिला कर दादी ने राहत की सांस ली थी और फिर दालान में बैठ कर वह आगे की रूपरेखा बनाने में जुट गईं.

दादी ने गांव के एक लड़के को सब कुछ समझा कर पुरोहित के घर जल्दी आने का बुलावा भेजा. पंडित ठीक समय पर पहुंच गया. उस ने संकल्प के लिए परिवार के सभी लोगों को पूजाघर में जमा किया और फिर सब की हथेली में पानी और तिल रखते हुए संकल्प छोड़ने को कहा. पंडित मंत्रोच्चारण कर रहा था और परिवार के लोग बकरी पर तेल छिड़क रहे थे. अंत में पंडित ने कहा, ‘‘हे देवी, अगर घर में बेटा हुआ तो यह बकरी तुझे भेंटस्वरूप देंगे.’’

पंडित के कहे अंतिम शब्द मुझे विष वाण से लग रहे थे.

इत्तफाक ही कहिए कि 6 बहनों के बाद घर में बेटे का जन्म हो गया. नामकरण संस्कार बड़े धूमधाम से मनाया गया तो घर में बधाई देने वालों का तांता लग गया. गांव की रस्म के अनुसार भरपूर दक्षिणा दी गई. भाई का नाम दादी की इच्छानुसार तथा पंडित की सहमति से कालीचरण रख दिया गया.

मैं बकरी के छौने को चारापानी देने गई. लाड़ से मैं ने उसे सहलाया तो वह मैं…मैं करता हुआ मेरे आसपास उछलने- कूदने लगा. मैं ने प्यार से उसे खैरू कह कर पुकारा तो वह मेरे पास आ गया. मैं उछलती हुई अपनी छोटीबड़ी बहनों को बताने गई, ‘‘देखो, कल से बकरी के बच्चे को खैरू कह कर बुलाना, यह नाम मैं ने रखा है. कैसा लगा तुम्हें?’’

‘‘अच्छा है,’’ मेरे से 2 साल बड़ी बहन जो बोलने में बड़ी कंजूस थी, अपने शब्दों को खर्च करती हुई मुझे समझाते हुए बोली, ‘‘नन्हे छौने को इतना प्यार न किया कर प्रिया, क्योंकि इस की जुदाई तू सह नहीं पाएगी. खैरू की खैरियत नहीं, वह देवी मां को चढ़ेगा.’’

पलक झपकते ही साल निकल गया. खैरू अब खापी कर जवान बकरा बन चुका था. इस साल पापा जब घर आए तो दादी फुरसत के क्षणों में पापा को अपने पास बिठाते हुए बोलीं, ‘‘दीपक, आने वाले दशहरे पर तुझे छुट्टी लेनी पड़ेगी. अष्टमी को काली मंदिर में बकरा भेंट करना है.’’

खीजते हुए पापा बोले, ‘‘तुम तो जानती हो मां कि फौज में छुट्टियां कम ही मिलती हैं. तुम्हारी इसी बेटे की झक के कारण इतनी बड़ी गृहस्थी जुड़ गई. जानती हो मां अब वह जमाना आ गया है कि बेटे और बेटी में कोई फर्क नहीं माना जाता.’’

पापा का इतना कहना था कि दादी भभक कर बोलीं, ‘‘अगर उपाय न होता तो जिद कर के मैं ने बकरा न मंगवाया होता. तुम ने तो वंश का नामोनिशान ही मिटादिया होता. पुरखे बिना तर्पण के निराश हो कर भूखेप्यासे ही लौट जाते. बेटियों के हाथ से पितरों को पानी चढ़वाता क्या? 2 गांवों की जायदाद दूसरे वंश को ऐसे ही सौंप देते? अब कुल में नाम लेने वाला हो गया है तो काली को पूजा तो देनी ही होगी.’’

दादी का अंधविश्वास ही हमें अखरता था, वरना तो उन का व्यक्तित्व हम सब के लिए गर्व करने लायक था. दादाजी फौज में बड़े ओहदेदार थे. उन की मौत के समय पापा बहुत छोटे थे, सो दादी ने ही मायके और ससुराल दोनों जगह को संभाला और पापा को पालपोस कर बड़ा किया. हर साल शहीद दिवस पर सफेद सिल्क की साड़ी में दादी को जब सम्मानित किया जाता तो वह क्षण हम बहनों के लिए फख्र करने का होता था. अब सब से कहतीं फिरती हैं कि काली मां के खुश होने से ही उन के घर में पोता पैदा हुआ.

गांव भर में दादी को अपनी मन्नत पूरी होने का ढिंढोरा पीटते देख एक उन की हमउम्र बुढि़या से नहीं रहा गया तो उन्होंने पूछ लिया, ‘‘क्यों दीपक की मां, पहले कालीमां की याद नहीं आई जो 6 लड़कियां हो जाने के बाद मन्नत मानी.’’

दादी लड़कियों को कितना भी डांटें लेकिन दूसरों का इस तरह कहना उन्हें कहां बरदाश्त होता. फौरन बोलीं, ‘‘तुम्हें मेरी पोतियों की फिक्र क्यों हो रही है? सब पढ़ रही हैं. सुंदर हैं, कितने ही अच्छे घरों के राजकुमार मेरी देहरी चढ़ेंगे.’’

खैरू अब खूब सुंदर दिखने लगा था. सफेद लंबे झबरीले बालों में वह लंबातगड़ा लगता. जानपहचान वाले लोग उस की हड्डीपसली पर निगाह रखते, उस की खाल को खींच कर अनुमान लगाते कि प्रसाद के रूप में उन्हें कितनी बोटियां मिलेंगी. ताजे गोश्त के स्वाद को याद करते हुए वे थूक निगलते.

दशहरा शुरू हो गया. पापा छुट्टी ले कर घर आ गए, नजदीकी रिश्तेदार जमा होने लगे. इस तरह का जो भी मेहमान आता वह एक नजर खैरू पर डाल कर दूसरे मेहमानों से यही कहता, ‘‘बकरा बड़ा जोरदार है.’’

आखिर खैरू की जुदाई का दिन भी आ गया. सप्तमी के दिन खैरू को मंदिर ले जाना था. मंदिर गांव से काफी दूर है. मैं उस से लिपटती और आंसुओं को उसी के शरीर से रगड़ती, पोंछती लेकिन आंसू हैं कि थमने का नाम ही नहीं लेते. पापा गुस्सा होते हुए मुझे झिड़की देते, ‘‘क्यों बकरे को परेशान करती हो. इधरउधर खेलती क्यों नहीं?’’

ऐसे समय दादी मुझे गोद में बैठा कर कहतीं, ‘‘रहने दे, बेटा, इसी के साथ हिला है. दानापानी भी इसी के हाथ से खाता है. जिस समय बकरे को ले जाएंगे इस की नजर बचा कर ही ले जाना होगा वरना यह तूफान खड़ा कर देगी.’’

सप्तमी के दिन सुबह ही गेंदे के सुगंधित फूलों की माला खैरू के गले में डाल दी गई. रोली और अक्षत से उस का माथा सजाया गया. मुलायम घास की पत्तियां, भीगे चने और आटे की मीठी रोटी उस को खाने के लिए दी गई लेकिन उस ने छुआ तक नहीं. खैरू मैं…मैं… कर रहा था. मांस के भूखे लोग उसे धकियाते हुए ले जा रहे थे. कतारबद्ध वे पहाड़ी रास्ते पर ढलान व चढ़ाई लांघते हुए उत्साह से, तेज कदमों से चले जा रहे थे. लेकिन खैरू धीमी चाल से चलता हुआ पीछे मुड़मुड़ कर कभी घर की ओर तो कभी मुझे देख रहा था.

मिमियाता हुआ निरीह प्राणी कितना बेबस था. मैं उस को लाख कोशिशों के बावजूद नहीं बचा सकती थी. बड़ा विश्वास था उस का मुझ पर, मैं क्या करती. देखते ही देखते वे लोग पहाड़ की दूसरी तरफ आंखों से ओझल हो गए और मैं थके पैरोंसे वापस घर की ओर मुड़ी और बिना खाएपीए बिस्तर में घुसी रही. घर में हर कोई देवीपूजन की बात करता कि पूजन कैसा रहा, कितने बकरे आए थे, बलि के लिए उन में खैरू सब से अच्छा था आदि. और मैं चुपचाप रोती, अपने गुस्से को अंदर ही अंदर दबाने की कोशिश करती रही रात भर.

कालीचरण 4 साल का हो गया लेकिन वह न बोलता और न ही सुन सकता था. दादी को गहरा धक्का लगा. उन्होंने सिर पीट लिया. इनसान की इच्छाएं कितनी अधिक हैं लेकिन जीतेजी किस की इच्छा पूरी होती है. दादी की पोते की इच्छा तोपूरी हुई लेकिन प्रकृति ने तो बड़े ही क्रूर ढंग से बदला चुकाया. धीरेधीरे कालीचरण बड़ा होने लगा. पापा रिटायर हो गए. उन्हें बेटे की स्कूल की फिक्र होने लगी. मूकबधिरों के हमारे यहां बहुत कम स्कूल हैं. किसी तरह एक स्कूल में दाखिला करवाया.

मुझ से बड़ी बहन जो ज्यादातर चुप रहती थी आज एक नामी डाक्टर है. कोई शिक्षिका तो कोई निजी फर्म में जनरल मैनेजर का पद संभाले हुए है. हम बहनोंके लिए पापा को वर ढूंढ़ने में अधिक परेशानी नहीं हुई, क्योंकि सभी तो अच्छे पदों पर कार्यरत थीं. बहुत गर्व की अनुभूति होती थी पापा को हम बहनों के बारे में बोलतेहुए.

कई महीनों बाद मैं इस बार पापा से मिलने मायके आई तो कुशलक्षेम, प्रणाम और आशीर्वाद के बाद मैं कुरसी पर बैठी ही थी कि कालीचरण नमस्ते करता हुआ मेरे सामने खड़ा था. मैं प्रश्नसूचक नेत्रों से पापा को देखने लगी. वे सजल आंखों से मेरी ओर देखते हुए बोले, ‘‘क्या करूं बेटा, मैं ने इस का एडमिशन जितने भी विकलांग स्कूल हैं, सभी में करवा दिया लेकिन यह मारपीट करता है. इस कारण इस का नाम काट दिया जाता है. आखिरी स्कूल था वहां से भी निकाल दिया गया. कभी सोचता हूं यह या तो पैदा ही न होता और होना ही था तो तुम्हारी तरह लड़की होता.’’

मैं मम्मीपापा को दुखी देख कर परेशान सी आंगन में टहलने लगी. आंगन से मैं चौक में उतर आई. मेरे पीछेपीछे मां भी आ गईं. खैरू का खूंटा वहीं गड़ा हुआ था. मैं निर्जीव खूंटे को बैठ कर सहलाने लगी. मां मेरी पीठ पर हाथ रखते हुए बोलीं, ‘‘क्या करें प्रिया बेटा, खैरू की बलि हम भी नहीं भूले हैं.’’

मेरे कानों में 5 वर्ष पहले दादी के कहे शब्द गूंजने लगे. बेटा तो वजनदार अनाज की तरह परिवार का रक्षक होता है. बकरा मंगवा लिया तो हो गई न काली मां प्रसन्न. 

Raksha Bandhan : सौगात- नमिता को किस बात की सबसे ज्यादा खुशी थी?

पति के बाहर जाते ही नमिता ने बाहरी फाटक को बंद कर लिया. कुछ पल खड़ी रह कर वह पति को देखती रही फिर घर की ओर बढ़ने लगी. उस ने 8-10 कदम ही बढ़ाए कि डाकिए की आवाज सुन उसे रुकना पड़ा. डाकिया ने अत्यंत शालीनता से कहा, ‘‘मेम साहिबा, यह आप के नाम का लिफाफा.’’

लिफाफा नाम सुन कर एकबारगी उस के जेहन में तरहतरह के भाव पनपने लगे. फिर वह लिफाफे पर अंकित भेजने वाले के नाम को देख अपनी उत्सुकता को दबा नहीं पाई. वहीं खडे़खड़े उस ने लिफाफा खोला, जो उस के चचेरे भाई सुजीत ने भेजा था. लिफाफे के अंदर का कार्ड जितना खूबसूरत था, उस पर दर्ज पता उतने ही सुंदर अक्षरों में लिखा गया था. सुजीत ने अपने पुत्र मयंक की शादी में आने के लिए उन्हें आमंत्रित किया था.

शादी का कार्ड नमिता की ढेर सारी स्मृतियों को ताजा कर गया. वह तेज कदमों से बढ़ी और बरामदे में रखी कुरसी पर बैठ गई. फिर लिफाफे से कार्ड निकाल कर पढ़ने लगी. एकदो बार नहीं, उस ने कई बार कार्ड को पढ़ा. उस ने कार्ड को लिफाफे में रखना चाहा, उसे आभास हुआ कि लिफाफे के अंदर और कुछ भी है. उस ने लिफाफे के कोने में सिमटे एक छोटे से पुरजे को निकाला. उस पर लिखा था : ‘बूआ, मेरी शादी में जरूर आना, नहीं तो मैं शादी करने जाऊंगा ही नहीं.’

बड़ा ही अधिकार जताया था उस के भतीजे मयंक ने. अधिकार के साथ अपनत्व भी. उस ने उस छोटे से पत्र को दोबारा लिफाफे में न रख कर अपनी मुट्ठी में भींच लिया. उस ने निर्णय लिया कि भतीजे के पत्र का उल्लेख पति से नहीं करेगी. पति कहेंगे कि तुम्हारे भतीजे ने तो सिर्फ तुम्हें ही बुलाया है. उन्हें वहां जाने की जरूरत ही नहीं है. तुम अकेली ही चली जाओ. मायके जाने की बात सोच कर ही नमिता के मन में गुदगुदी होने लगी. साथ ही मयंक की शादी के संबंध में पति को सूचना देने की ललक भी. मयंक का वह छोटा सा धमकीभरा पत्र. आज जबकि संचार माध्यमों की विपुलता की वजह से लोग पत्र लिखना भी भूल गए हैं, तब मयंक के उस छोटे से पत्र ने उसे वह खुशी दी थी जिस की उस ने कल्पना तक नहीं की थी.

उस का बचपन गांव की अमराइयों में बीता था, जहां घंटों तालाब में तैरना, अमिया तोड़ कर खाना, कभी गन्ना चूसना तो कभी मूली कुतरना. कोई रोकटोक नहीं. फिर उसे अपने पिता की यादें कुरेदने लगीं. बचपन में ही मां के गुजर जाने के बाद पिता ने ही मांबाप, दोनों का स्नेह उस पर उडे़ल दिया था. उस के पिता गांव के संपन्न किसान थे. उन्होंने नमिता को पढ़ाने में भी किसी तरह की कोताही नहीं बरती.

उस की शादी शहर के संभ्रांत परिवार के आकर्षक, मेधावी युवक युवराज के साथ अत्यंत धूमधाम से कर दी. वह गुलमोहर के फूलों से सजी कार पर सवार हो कर ससुराल आई थी, जो उस समय के लिए बड़ी बात थी. अपने पिता की लाड़ली तो वह थी ही, ससुराल में भी उसे बड़ा प्यार मिला. गौने में जब वह ससुराल पहुंची तो उस के कुछ महीने के बाद ही पति को बैंक के ऊंचे पद पर नौकरी मिल गई. नतीजतन, ससुराल वालों ने भी उसे हाथोंहाथ लिया. कालांतर में वह मां भी बनी और घरगृहस्थी में वह इस कदर मशगूल हुई कि नैहर की यादें यदाकदा ही आतीं. पहले पुत्रवधू का दायित्व और बाद में चल कर गृहिणी व मां का दायित्व, सब का निर्वाह उस ने बड़ी कुशलता से किया. एक आदर्श परिवार की कुशल गृहिणी थी वह.

आज उस का लड़का अनिमेष जहां इंजीनियर बन बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत था, वहीं उस की बेटी सुजाता डाक्टरी की परीक्षा पास कर सरकारी सेवा में थी. दोनों का पारिवारिक जीवन अत्यंत सफल था. सबकुछ अच्छा होने के बाद भी आज नैहर की यादों ने उस के अंदर हलचल पैदा कर दी. पिता के निधन के बाद नैहर से उस का संबंध टूट सा गया था. सिर्फ रक्षाबंधन के अवसर पर वह लिफाफे में सुजीत के लिए राखी रख कर डाक से भेज देती थी और सुजीत भी कुछेक रुपए मनीऔर्डर से भेज देता था. सच तो यह था कि न तो नमिता ने संबंध प्रगाढ़ करने की कभी कोशिश की और न सुजीत ने. शायद इस के पीछे नमिता के बड़े होने का अहं था या फिर सुजीत के मन में छिपा अपराधबोध.

पिता की मृत्यु के बाद श्राद्ध समाप्त होने के उपरांत लौटने के क्रम में भतीजे की गोलमटोल काया को देख अनायास ही उस के मुंह से निकल गया था, ‘सुजीत, इस की शादी में मुझे जरूर बुलाना. मैं ही इस की एकमात्र बूआ हूं.’ आज वही घटना उसे याद हो आई थी. लंबे समय तक वह वहीं बैठी रही. घर के अंदर बहुत सारे काम उसे निबटाने थे. पर वह उस ओर से उदास ही रही. महरी आई और अपना काम कर लौट भी गई. उस की ओर भी उस ने ध्यान नहीं दिया. बस, नैहर की यादों में खोई रही. मां का चेहरा तक उसे याद नहीं था. कारण, जब वह कुछेक महीने की थी, तभी वे चल बसी थीं. हां, पिता की याद आते ही उस की आंखों में न चाहते हुए भी अश्कों के समंदर लहराने लगे. मन ही मन वह सोचने लगी कि आखिर सुजीत ने इतने दिनों बाद उसे आने को क्यों कहा.

आखिर सुजीत जिस संपत्ति के बूते इतरा रहा है उस में से आधी संपत्ति की मालकिन तो वह भी है. पानी के बुलबुले की तरह उस के अंदर का भाव तिरोहित हो गया है. तमाम तरह के भौतिक संसाधनों से संपन्न है उस का जीवन. पिता की संपत्ति की बात उस के जेहन में आई जरूर पर भूल से भी उस ने कभी उजागर न किया. उस ने सोचा कि पति को निमंत्रणपत्र के संबंध में सूचना अभी क्यों दूं, जब वे बैंक से लौटेंगे तो उन्हें सरप्राइज दूंगी. वह पति का इंतजार करने लगी. लेकिन आज के इंतजार में बेताबी ज्यादा थी, साथ ही साथ कई विचार भी मन में आजा रहे थे.

उस के नैहर वालों ने उस की ज्यादा खोजखबर क्यों नहीं ली. क्या कारण हो सकता है इस के पीछे. पिता के श्राद्ध के समय उस ने अपने चाचा और चाची की आंखों में संदेह के डोरे मंडराते देखे थे. शायद उन्हें पिता के हिस्से की जमीन जाने का संशय था या और कुछ. लेकिन पिता के हिस्से की जमीन की एकमात्र वारिस होने के कारण भी उस के मन में उस के प्रति रत्ती भर भी आसक्ति न थी. आखिरकार उस के इंतजार की घडि़यां समाप्त हुईं. युवराज की गाड़ी फाटक पर आ रुकी. उस ने दौड़ कर गेट खोल दिया. गाड़ी गैराज में लगा कर युवराज जैसे ही कार से बाहर आए नमिता उन के पास पहुंच गई.

युवराज का स्वर उभरा, ‘‘तुम्हारे चेहरे पर यह अव्यक्त खुशी किस बात की है?’’

नमिता ने बगैर कुछ बोले लिफाफा उन की ओर बढ़ा दिया. पर…

‘‘रुक क्यों गए?’’

‘‘अनिमेष और सुजाता तो वहां जाने से रहे. हां, मेरी जबरदस्त इच्छा तुम्हारे नैहर जाने की है.’’

‘‘मेरा नैहर, आप का ससुराल नहीं?’’

‘‘हांहां, मेरा ससुराल भी,’’ फिर आगे आते हुए बोले युवराज, ‘‘नैहर जाने की खुशी में आज चाय नहीं मिलेगी क्या?’’

‘‘क्यों नहीं, अभी लाती हूं.’’

कुछ ही देर में नमिता नाश्ते की प्लेट और चाय ले कर आ गई है. चायनाश्ते के बाद युवराज शालीन मुसकराहट के साथ बोले, ‘‘नैहर जाने की खुशी में चाय का स्वाद मीठा हो गया है.’’

दरअसल, नमिता ने भूले से चाय में दोबारा चीनी डाल दी थी, अपनी भूल पर झेंप गई नमिता.

‘‘एक बात कहूं, नमिता?’’

‘‘एक ही बात क्यों, हजार बात कहिए.’’

‘‘मैं तो अपनी ससुराल में 15 दिनों तक रहूंगा. तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं होगी?’’

‘‘मुझे क्यों आपत्ति होगी. पर आप को इतने दिनों की छुट्टी मिलेगी?’’

‘‘मिलेगी क्यों नहीं, मैं ने छुट्टी ही कब ली है. इस बार तो 15 दिनों की छुट्टी ले कर ही रहूंगा. और हां, शादी आज से 7वें दिन है न. मैं अभी छुट्टी हेतु ईमेल से आवेदन कर देता हूं. जाओ, तुम तैयार हो जाओ. सब से पहले हम लोग शौपिंग करेंगे और रात का डिनर भी कावेरी होटल में करेंगे. एक बात गौर से सुन लो, कोई अगरमगर नहीं. जाओ, जल्दी तैयार हो कर आओ.’’ अगले दिन उन दोनों के गांव पहुंचने पर ही अजीब सी हलचल मच गई. मयंक जो नमिता के गले से लिपटा तो गरदन छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था. उस ने अत्यंत धीमे स्वर में बूआ से पूछा, ‘‘बूआ, हमारा पत्र मिला था?’’

‘‘हां रे, तभी तो मैं दौड़ीदौड़ी आई हूं.’’

‘‘हां, मैं ने उसे स्पीडपोस्ट करते समय जल्दीजल्दी में डाल दिया था. आप को बुरा तो नहीं लगा न?’’

उस के बालों को सहलाती हुई नमिता बोली, ‘‘बुरा क्यों लगता. सच तो यह है कि मुझे बड़ा ही अच्छा लगा था. अच्छा, अब छोड़ो, चाचा व चाची से भी मिलना है. बहुत सारे लोगों से मिलना है और ढेर सारी बातें करनी हैं.’’

दिनप्रतिदिन शादी की गहमागहमी बढ़ती गई. वातावरण में शादी का उत्साह छाता जा रहा था. नमिता सिर से पांव तक शादी के विधिविधान में डूबी हुई थी. बुजुर्ग महिलाओं के मन में जहां नमिता को जानने के लिए अनेक जिज्ञासाएं थीं, वहीं बुजुर्गों के आशीर्वाद से वह सिर से पैर तक नहा गई. अत्यंत खुशनुमा माहौल में शादी संपन्न हो गई. नववधू अपने ससुराल आ गई. 8-10 दिनों की अवधि में वह युवराज को भी भूल सी गई थी. रिश्तेदारों का जाना शुरू हो गया था. धीरेधीरे लोगों का जमावड़ा काफी कम हो गया. लोगों के आग्रह को पा उस ने गांव के लोगों के यहां जाना शुरू किया. हर परिवार में जाना और ढेर सारी बातचीत, यही उस की दिनचर्या थी. लेकिन गांव में सब के यहां जाना उस के चाचा को कचोट रहा था. वे मन ही मन कुढ़ रहे थे.

एक दिन शाम के समय सुजीत के पिताजी ने उसे अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटा, देख रहे हो, नमिता पूरे गांव में घूमती है. ये गांव के लोग अजीब किस्म के धूर्त होते हैं. निश्चय ही कई लोग इसे जमीन के बारे में उकसाते होंगे. मैं तो इसी वजह से उसे बुलाने से आज तक परहेज करता रहा पर तुम नहीं माने. सोचो, उस के हिस्से की 10 एकड़ जमीन अगर हाथ से निकल गई तो तुम्हारी सारी साहबी धूल में मिल जाएगी.’’

‘अब चाहे जो हो, पिताजी. आप के एकमात्र पोते की शादी में, उस की जिद पर मुझे नमिता दीदी को बुलाना पड़ा.’’

पितापुत्र की बातें नमिता बाहर खड़ी हो सुनती रही. उस की उपस्थिति का एहसास पितापुत्र को नहीं था. वह समझ गई कि उस के चाचा के मन में बेबुनियाद आशंका पल रही है. इसे निर्मूल कर देना ही चाहिए. और वह अविलंब युवराज के पास पहुंच गई. संयोग ऐसा कि युवराज भी वहां अकेले बैठे थे. नमिता को देख युवराज मुसकराने लगे. बड़े गंभीर स्वर में नमिता ने पूछा, ‘‘कैसे हैं आप?’’

‘‘ठीक हूं, और तुम कैसी हो?’’

‘‘मैं तो बहुत ठीक हूं.’’

‘‘आज 10 दिन बाद मेरी याद आई है तुम्हें?’’

‘‘हां, मैं तो शादी के विधिविधान और गहमागहमी में एकदम डूब गई थी. आप को कोई कष्ट तो नहीं हुआ?’’

‘‘कष्ट क्यों होता. इतने मधुर रिश्ते वालों का मेरे पास जमघट था कि मुझे तुम्हारी जरूरत ही महसूस नहीं हुई.’’

‘‘चलिए, अच्छा हुआ. और एक गंभीर बात है.’’

अचकचा गए युवराज, ‘‘यहां और गंभीरता, ऐसा नहीं हो सकता.’’

फिर नमिता ने सुजीत तथा अपने चाचाजी के मध्य की बात युवराज को सुनाई तो युवराज ने कहा, ‘‘देखो, नमिता जिस जमीन का हिस्सा 2 परिवारों के बीच शूल बना हुआ है उसे निकाल कर फेंक दिया जाना चाहिए. वैसे यह तुम्हारा विशेषाधिकार है. जमीन तुम्हारे पिताजी की है.’’

‘‘हां, मैं ने भी निर्णय किया है. सिर्फ आप की सहमति की आवश्यकता है.’’

‘‘वैसे क्या निर्णय है तुम्हारा, मैं जानना चाहता हूं्?’’

‘‘एकदम सीधासादा. मैं पिताजी की सारी जमीन मयंक दंपती को बतौर सौगात देने का निर्णय ले चुकी हूं.’’

‘‘नमिता, तुम तो पहले भी मेरे लिए अच्छी थीं और आज तुम्हारे निर्णय ने तुम्हारे व्यक्तित्व को और अधिक ऊंचाई दे दी है. चलो, यह निर्णय हमदोनों चल कर चाचाचाची, सुजीत, उस की पत्नी और मयंक दंपती को सुना डालते हैं.’’

एकबारगी वातावरण में एक अजीब सी खुशी छा गई. नमिता के चाचा की आंखों के कोर से अश्रु बूंदें ढुलक गईं. उस की चाची बोलीं, ‘‘नमिता बेटी, मयंक केवल सुजीत का बेटा या मेरा पोता ही नहीं, तुम्हारा भतीजा भी है,’’ कहतेकहते उन की आंखों से बहती अश्रुधारा में सारी कलुषता धुल गई. नमिता व युवराज के चेहरे पर संतोष का भाव झलक रहा था. मयंक को जहां जमीन की सौगात मिली थी, वहीं नमिता को नैहर व युवराज को ससुराल की सौगात. प्रसन्नता की समानता जो थी.

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