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युवाओं में दिल की बीमारी, टीएवीआई बेहतर विकल्प

हाल के वर्षों में खासतौर से युवाओं में दिल के दौरे के मामले चिंता का विषय रहे हैं. पहले दिल की बीमारियों के शिकार ज्यादातर बुजुर्ग होते थे लेकिन हाल ही में पीडि़तों के आयुवर्ग में अहम बदलाव देखा गया है. अमेरिकन कालेज औफ कार्डियोलौजी के एक अध्ययन के अनुसार, कम उम्र के लोगों में हर

साल दिल का दौरा पड़ने की दर

2 फीसदी बढ़ रही है. यह बदलाव मुख्य रूप से जीवनशैली में बदलाव के कारण है, जिस से लोगों में तनाव की मात्रा बढ़ गई है और यह युवाओं में दिल के दौरे की एक प्रमुख वजह बन गया है.

कैसे काम करता है हार्ट ?

दिल शरीर का इंजन है जो लगातार पंपिंग करते हुए शरीर के विभिन्न हिस्सों व टिशूज को रक्त पहुंचाने का काम करता है. दिल छाती में स्थित होता है, थोड़े से बाएं ओर, स्टर्नम के पीछे. दिल का आकार आमतौर पर बंद मुट्ठी के आकार के बराबर होता है और वयस्कों में आमतौर पर यह 250 से 350 ग्राम के बीच होता है. इस का मुख्य कार्य रक्त के परिपथ को प्रवाहित करना है, जिस से शरीर के विभिन्न ऊतकों को औक्सीजन और पोषण पहुंचता है और कार्बन डाइऔक्साइड जैसे कचरा हटता है.

हार्ट द्वारा रक्त का परिपथ एक यातायाती प्रक्रिया के रूप में काम करता है, जिसे कार्डिएक साइकिल कहा जाता है. सिस्टोल के दौरान हार्ट कांपता है और रक्त को धमनियों में धकेलता है. डायस्टोल के दौरान हार्ट आराम से खुल जाता है, जिस से इस के कमरों में रक्त भर जाता है. यह गति विविध भागों में रक्त के निरंतर प्रवाह को सुनिश्चित करने में मदद करती है.

अकसर यह माना जाता है कि हृदय संबंधी समस्याएं उम्र बढ़ने के साथ जुड़ी होती हैं लेकिन आजकल ऐसा नहीं रहा. हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि युवा लोगों में दिल की समस्याओं में चिंताजनक वृद्धि हुई है. आजकल 5 में से 1 दिल का दौरा पड़ने वाला मरीज युवा है, खासतौर से 20 से 30 साल के बीच का युवा. युवाओं में हृदय संबंधी समस्याएं बढ़ने के कई कारण हैं :

तनाव का बढ़ना और जीवनशैली में बदलाव : बेहद तेज गति से आगे बढ़ते समाज में लोगों को रोजगार, रिश्तों, व्यक्तिगत पसंद और अन्य जिम्मेदारियों को ले कर छोटी उम्र से ही तनाव का सामना करना पड़ता है. यह तनाव बढ़ता है तो कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम यानी कि हृदय प्रणाली पर प्रभाव डालता है. तनाव कोर्टिसोल और एड्रेनालाइन जैसे हार्मोंस के स्राव को ट्रिगर करता है, जो समय के साथ धमनियों को नुकसान पहुंचा सकता है और रक्तचाप को बढ़ा सकता है.

इस के अलावा, आधुनिक जीवन में आमतौर पर कई घंटे की बैठक शामिल है, खासतौर से स्क्रीन के सामने या लंबे सफर में. शारीरिक गतिविधियां कम होने की वजह से मोटापा आता है जो दिल की बीमारियों की एक प्रमुख वजह होता है.

अनहैल्दी खाना : आजकल युवा अपने काम में ज्यादा व्यस्त होने के कारण प्रोसैस्ड फूड, फास्ट फूड और मीठे पेय पदार्थों पर ज्यादा निर्भर होते जा रहे हैं, जिस से मोटापा, हाई ब्लडप्रैशर और हाई कोलैस्ट्रौल जैसी सेहत की समस्याएं पैदा होती हैं. ऐसी खाने की चीजों में कोलैस्ट्रौल और फैट की मात्रा ज्यादा होती है, जो रक्त वाहिकाओं में जमा हो कर उन्हें ब्लौक कर देती हैं. ठीक से काम करने के लिए शरीर को संतुलित आहार की जरूरत होती है.

नशीले पदार्थों का ज्यादा इस्तेमाल : लोग सम   झते हैं कि धूम्रपान और शराब पीने से तनाव कम होता है और छोटी उम्र से ही इन की आदत लगा लेते हैं. इन के ज्यादा इस्तेमाल से रक्त वाहिकाओं में रुकावट आ जाती है व हृदय तक पहुंचाई जाने वाली औक्सीजन में कमी हो जाती है, जिस से दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है और दिल का दौरा पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. इस से रक्त वाहिकाओं में रक्त भी रुक जाता है और गाढ़ा हो जाता है, जिस से रक्तप्रवाह कठिन हो जाता है.

मोटापा : मोटापा युवाओं में दिल के दौरे के जोखिम का एक प्रमुख कारण है. शरीर का अतिरिक्त वजन दिल पर अनावश्यक दबाव डालता है, जिस के कारण हाई ब्लडप्रैशर व कोलैस्ट्रौल का स्तर बढ़ जाता है और इंसुलिन की कमी हो जाती है. यह हृदय की नसों और धमनियों में भी रुकावट पैदा करता है, जिस के कारण हृदय में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है, जिस से पंप करने में कठिनाई होती है.

मोटापा अनहैल्दी खानपान के कारण होता है, जो डायबिटीज यानी मधुमेह के प्रमुख कारणों में से एक है. आजकल युवाओं में मोटापा बहुत आम है और यह टाइप 2 डायबिटीज के खतरे को बढ़ाता है. मोटापा और डायबिटीज दोनों ही हृदय रोग के जोखिम को बढ़ाते हैं. इसलिए अच्छे पोषण और व्यायाम से हैल्दी बौडी वेट को बनाए रखना बहुत जरूरी है.

आज युवाओं में हृदय संबंधी समस्याओं के बढ़ते मामलों का इलाज एडवांस्ड टैक्नोलौजी की मदद से आसानी से किया जा सकता है. ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व इम्प्लांटेशन यानी टीएवीआई एक बेहतरीन प्रक्रिया के रूप में सामने आया है, जो युवाओं में हृदय संबंधी समस्याओं के इलाज में बहुत लाभकारी है.

टीएवीआई इलाज

ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व इम्प्लांटेशन मैडिकल टैक्नोलौजी के क्षेत्र में एक महान इनोवेशन के रूप में उभरा है. टीएवीआई को मूल रूप से महाधमनी स्टेनोसिस वाले बुजुर्ग रोगियों के लिए डिजाइन किया गया था, लेकिन यह दिल की बीमारी वाले युवाओं के लिए तेजी से एक बेहतरीन विकल्प साबित हो रहा है.

यह एक सर्जिकल प्रक्रिया है जिस का उपयोग उन लोगों के ब्लौक या संकुचित हो चुके महाधमनी वौल्व को बदलने के लिए किया जाता है जिन की बीमारी ओपन हार्ट सर्जरी की स्थिति तक पहुंच चुकी है. इस सर्जरी में कैथेटर का उपयोग कर के पुराने क्षतिग्रस्त वौल्व को हटाए बिना एक नया महाधमनी वौल्व लगा दिया जाता है.

यह महाधमनी वौल्व स्टेनोसिस के इलाज के लिए विकसित की गई एक प्रक्रिया है, यह एक ऐसी बीमारी है जिस में महाधमनी वौल्व सिकुड़ जाता है. इस का इलाज न किए जाने पर हृदय संबंधी अहम समस्याएं पैदा हो सकती हैं. आमतौर पर इस प्रक्रिया में मरीज को दर्द नहीं होता. एक कैथेटर को आप के पैर के ऊपरी हिस्से में या छाती के भीतर रक्तवाहिका में डाला जाता है और हृदय के महाधमनी वौल्व की ओर ले जाया जाता है. ट्यूब का उपयोग मौजूदा वौल्व के ऊपर नया वौल्व लगाने के लिए किया जाता है. जब युवा रोगियों में हृदय संबंधी समस्याओं के इलाज की बात आती है तो इस इनोवेटिव एप्रोच के कई फायदे सामने आते हैं.

कम समय में रिकवरी : टीएवीआई के लिए ओपन हार्ट सर्जरी की तुलना में अस्पताल में कम दिनों के लिए भरती होना पड़ता है और घाव कम समय में ठीक हो जाते हैं. टीएवीआई सर्जरी के मरीज आमतौर पर 48 घंटे या 3 से 5 दिनों के भीतर घर लौट सकते हैं, जो उन की रिकवरी दर पर निर्भर करता है. इस प्रक्रिया से इलाज के बाद काम पर जल्दी लौटने की इच्छा रखने वाले लोग जल्द ही अपने काम पर लौट सकते हैं और फिर से अपना सामान्य जीवन शुरू कर सकते हैं.

इस में छोटे चीरे लगाए जाते हैं : चूंकि युवाओं को सर्जरी से शरीर पर निशान पड़ने का डर होता है जो बदसूरत दिख सकते हैं, टीएवीआई में छाती को खोलने वाले बड़े कट के बजाय एक छोटा चीरा लगाया जाता है. इस से इन्फैक्शन की संभावना भी कम हो जाती है, मरीज को दर्द कम होता है, साथ ही, सांस लेने में आसानी रहती है. इस में निशान भी कम से कम पड़ते हैं जो पुरानी तकनीकों की तुलना में जल्दी ठीक हो जाते हैं.

मरीज लंबे समय तक ठीक रहता है : टीएवीआई युवाओं में दीर्घकालिक परिणाम दे सकता है. ट्रांसप्लांट किए गए वौल्व लंबे समय तक टिकाऊ और सफल साबित हुए हैं, जिस से युवा रोगियों को यह भरोसा हुआ है कि आने वाले सालों में उन की हृदय संबंधी समस्याओं की उचित रूप से देखभाल होती रहेगी.

कम मृत्यु दर : नियमित ओपन हार्ट सर्जरी की तुलना में टीएवीआई की एक सब से अहम उपलब्धि है मृत्यु दर में कमी. टीएवीआई की मृत्यु दर में कमी आई है, जिस से यह कई रोगियों के लिए एक सुरक्षित विकल्प बन गया है, खासतौर से उन लोगों के लिए जिन की ज्यादा उम्र या अन्य बीमारियों के कारण सर्जरी में काफी जोखिम होता है.

जटिलताओं में कमी : देखा गया है कि टीएवीआई में ओपन हार्ट सर्जरी की तुलना में बहुत कम समस्याएं पैदा होती हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि ओपन हार्ट सर्जरी ऐसी सर्जरी है जिस में छाती को खोलने के लिए चीरा लगाया जाता है और दिल की मांसपेशियों, वौल्वों या धमनियों की सर्जरी की जाती है. लेकिन टीएवीआई औपरेशन के दौरान मरीजों को कार्डियोपल्मोनरी बाईपास मशीन पर नहीं रखा जाता. उन के दिल की धड़कन जारी रहती है, जिस से जटिलताओं का खतरा कम हो जाता है. इन के कारण चीरा लगाने, चोट लगने, रक्त का थक्का जमने, धमनी की चोट, इन्फैक्शन, रक्तस्राव, गुर्दे फेल होना या दिल का दौरा पड़ने जैसी जटिलताएं पैदा नहीं होतीं. इस तरह आने वाले वर्षों में युवाओं के पास स्वस्थ रहने के लिए एक सुरक्षित विकल्प उपलब्ध है.

युवाओं में दिल के रोगों की बढ़ती घटनाएं चिंता का कारण हैं और इस समस्या के निदान के लिए इनोवेटिव सर्जरी की जरूरत है. ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वौल्व इम्प्लांटेशन अपने जीवन के शुरुआती चरणों में ही कई तरह की हृदय समस्याओं से पीडि़त युवाओं के इलाज के लिए एक बेहतरीन विकल्प है. कम से कम चीरफाड़ व जटिलताओं का कम जोखिम और क्वालिटी लाइफ बनाए रखने की क्षमता इसे एक महत्त्वपूर्ण तकनीक बनाती है, जो युवाओं को हृदय रोगों का सामना करने में मदद करती है.

(लेखिका मणिपाल अस्पताल, गुरुग्राम में कार्डियोलौजिस्ट हैं.)

मेरा ब्वॉयफ्रेंड बहुत फ्लर्टी है, क्या मेरा उससे शादी करना ठीक रहेगा ?

सवाल

मैं 20 साल की लड़की हूं, मेरा प्रेमी मुझे बहुत प्यार करता है, वह मुझ से शादी के लिए भी तैयार है पर वह बहुत फ्लर्टी  किस्म का है. हर लड़की को प्रपोज करता है और हर बात मुझे बताता भी है. मुझे डर इस बात का है कि वह अगर शादी के बाद भी नहीं सुधरा तो… क्या मेरा उस से शादी करना ठीक रहेगा, आप मुझे राह दिखाएं?

जवाब

देखिए, एक तरफ आप से शादी की बात और दूसरी बात आप के होते हुए हर लड़की को प्रपोज करने की आदत, यह इसी ओर इशारा कर रही है कि वह आप से सिर्फ टाइमपास कर रहा है. और रही बात आप को सारी बातें बताने की, तो वह सिर्फ आप को विश्वास में लेने के लिए ऐसा करता है. इसलिए समय रहते संभल जाएं और उस से शादी के बारे में तो भूल कर भी न सोचें वरना बाद में पछतावे के सिवा कुछ हाथ नहीं लगेगा.

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थोड़ा प्यार थोड़ी छेड़छाड़

नेहा ने कुहनी मार कर समर को फ्रिज से दूध निकालने को कहा तो, वह चिढ़ गया, ‘‘क्या है? नजर नहीं आता, मैं कपड़े पहन रहा हूं?’’ लेकिन नेहा ने तो ऐसा प्यारवश किया था. और बदले में उसे भी इसी तरह के स्पर्श, छेड़छाड़ की चाहत थी. मगर समर को इस तरह का स्पर्श पसंद नहीं आया. नेहा का मूड अचानक बिगड़ गया. वह आंखों में आंसू भर कर बोली, ‘‘मैं ने तुम्हें आकर्षित करने के लिए कुहनी मारी थी. इस के बदले में तुम से भी ऐसी ही प्रतिक्रिया चाहिए थी, पर तुम तो गुस्सा हो गए.’’ समर यह सुन कर कुछ पल सहमा खड़ा रहा, फ्रिज से दूध निकाल कर देते हुए बोला, ‘‘सौरी, मैं तुम्हें समझ नहीं सका. मैं ने तुम्हारे इमोशंस को नहीं समझा. मैं शर्मिंदा हूं. इस मामले में शायद अभी अनाड़ी हूं.’’

शब्द को कई खास नहीं थे पर दिल की गहराइयों से निकले थे. बोलते समय समर के चेहरे पर शर्मिंदगी की झलक भी थी. नेहा का गुस्सा काफूर हो गया. वह समर के पास आई और उस के कालर को छूते हुए बोली, ‘‘तुम ने मेरी नाराजगी को महसूस किया, इतना ही मेरे लिए काफी है. तुम ने अपनी गलती मान ली यह भी एक स्पर्श ही है. मेरे दिल को तुम्हारे शब्द सहला गए हैं… मेरे तनमन को पुलकित कर गए हैं,’’ और फिर वह उस के गले लग गई. समर के हाथ सहसा ही नेहा की पीठ पर चले गए औैर फिर नेहा की कमर को छूते हुए बोला, ‘‘कितनी पतली है तुम्हारी कमर.’’ समर का यह कहना था कि नेहा ने समर के पेट में धीरे से उंगली चुभा दी. वह मचल कर पलंग पर गिर पड़ा तो नेहा भी हंसते हुए उस के ऊपर गिर पड़ी. फिर कुछ पल तक वे यों ही हंसतेखिलखिलाते रहे.

इस तरह बढ़ेगा प्यार

ऐसे ही जीवन में रोमांस बढ़ता है. तीखीमीठी दोनों ही तरह की अनुभूतियां जीवन में रस घोलती हैं और रिलेशन को आसान एवं जीने लायक बनाती हैं. आजकल वैसे भी कई तरह के तनाव औैर जिम्मेदारियां दिमाग में चक्कर लगाती रहती हैं. पास हो कर भी पतिपत्नी हंसबोल नहीं पाते. बस दूरदूर से ही एकदूसरे को देखते रह जाते हैं. ऐसे बोर कर देने वाले पलों में साथी को छेड़ना किसी औषधि से कम मूल्यवान नहीं हो सकता. अधिकतर पतिपत्नी तनाव के पलों में चाह कर भी आपस में बोलबतिया नहीं पाते. ऐसे ही क्षणों में पहल करने की जरूरत होती है. आप हिम्मत कर के साथी का माथा चूमें या सहलाएं. शुरू में तो वह आप को अनदेखा करेगा पर अधिक देर तक नहीं कर सकेगा, क्योंकि छेड़छाड़ से दिमाग को पौजिटिव रिस्पौंस मिलता है. आप पत्नी हैं यह सोच कर न डरें. यह सोच कर अबोलापन न पसरने दें कि न जाने पति आप की पहल को किस रूप में लेगा. इस तरह के डर के साथ जीने वालों की लाइफ में कभी रोमांस नहीं आ पाता और उम्र यों ही निकल जाती है. आप हिम्मत कर के साथी का माथा चूमें या गले लगें अथवा कमर पर हाथ रख कर स्पर्श करें, शुरू में तो साथी आप की छेड़खानी नजरअंदाज करने लगेगा, पर अधिक देर तक वह आप की छेड़खानी को अनदेखा नहीं कर सकेगा, क्योंकि छूने या छेड़छाड़ से दिमाग को पौजिटिव संदेश मिलता है और इस संदेश के पहुंचते ही धीरेधीरे दिमाग से तनाव की काली छाया हट जाती है. आप उसे अच्छे लगने लगते हैं. वह गुड फील करने लगता है. यह फीलिंग ही रोमांस के पलों को आप के बीच विकसित करने में मदद करती है.

सुखद पहलू

नेहा ने चुपचाप खड़े समर को अचानक कुहनी मार कर फ्रिज से दूध निकालने को कहा था, उस पर वह चिढ़ गया. लेकिन नेहा डरीसहमी नहीं, बल्कि उस ने अपनी फीलिंग्स और अंदर के प्यार व इमोशंस को बताने की पूरी कोशिश की. समर का गुस्सा छूमंतर हो गया और वह शर्मिंदा भी हुआ. फिर उस ने भी नेहा के प्रति अपनी फीलिंग्स जाहिर करनी शुरू कर दीं. दोनों अगले ही पल रोमांस के रंगों में रंग गए. उन का मूड आशिकाना हो गया. एकदूसरे को अच्छे लगने लगे. यही है रोमांस और रोमांच को वैवाहिक जीवन में लाने की तकनीक, जिस का हम में से अधिकांश दंपतियों को पता ही नहीं होता. बस साथ रहते हैं. मन करता है तो बोल लेते हैं या बहस कर लेते हैं. ज्यादा ही तनाव में होते हैं, तो एकदूसरे के आगे रो लेते हैं. लेकिन यह मैरिड लाइफ का नैगेटिव पक्ष है इस से पतिपत्नी कभी रोमांटिक कपल नहीं बन सकते. उन के जीवन में जो भी घटता है, वह स्वाभाविक या नैचुरल रूप से नहीं, बल्कि जबरदस्ती, यौन संबंध हो या प्यार अथवा हंसीमजाक, जिसे इन चीजों की जरूरत होती है, वह खुद शादी के करीब आ कर कोशिश करता है. अब सब सामने वाले साथी के मूड पर निर्भर करता है. वह अपने पार्टनर की इच्छा की पूर्ति करना चाहता है या नहीं. यही मैरिड लाइफ का सुखद पहलू है, रोमांटिक पहलू है. ऐसा कब तक एक साथी दूसरे के साथ जोरजबरदस्ती करेगा? एक दिन थकहार कर कोशिश करना ही छोड़ देगा.

कैसे बनें रोमांटिक

आज की मैरिड लाइफ में जिम्मेदारियों के बोझ के कारण एकदूसरे को देख कर कोई भी प्यारअनुराग मन में पैदा नहीं हो पाता. ये सिर्फ और सिर्फ मन से ही उत्पन्न हो सकती हैं और आप दोनों में से किसी एक को ही इस के लिए आगे आना होगा. अब आगे आए कौन? इस दुविधा में ही जोड़ी रोमांस के पल हाथ से जाने देती है, मेरी राय में पत्नी से बेहतर जीवन को समझने वाला कोई हो ही नहीं सकता. एक औरत होने के नाते वह स्नेही हृदय की होती है, दिल वाली होती है. प्रेम का अर्थ वह जानती है. फिर जो प्यार को जानता है वही पुरुष को रोमांटिक बना सकता है. नेहा ने कोशिश की तो उसे बदले में रोमांस के पल मिले. आप भी इस मामले में हठी न बनें. मन में इगो न पालें कि जब पति को मेरी कोई जरूरत नहीं है, वह मुझ से बात करने को राजी नहीं है, तो मैं क्यों फालतू में उस के साथ जबरदस्ती जा कर बात करूं.

ऐसे विचार मन में नहीं लाने चाहिए. इस से दांपत्य जीवन बंजर बन जाता है. आप औरत हैं, आप में पैदाइशी प्यार, रोमांस सैक्स के भाव हैं. आप जब चाहें जैसे चाहें पति को रोमांटिक बना सकती हैं. रोमांस आप से पैदा होता है और आप के भीतर हमेशा ही होता है. जरूरत है बस उसे जीवन में लाने की. फिर देखिए, तनाव और जिम्मेदारियों पर कैसे रोमांस भारी पड़ने लगता है.

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नारायण बन गया जैंटलमैन

कंप्यूटर साइंस में बीटैक के आखिरी साल के ऐग्जाम्स हो चुके थे और रिजल्ट आजकल में आने वाला था. कालेज में प्लेसमैंट के लिए कंपनियों के नुमाइंदे आए हुए थे. अभी तक की बैस्ट आईटी कंपनी ने प्लेसमैंट की प्रक्रिया पूरी की और नाम पुकारे जाने का इंतजार करने के लिए छात्रों से कहा. थोड़ी देर बाद कंपनी के मैनेजर ने सीट ग्रहण की और हौल में एकत्रित सभी छात्रों को संबोधित करते हुए प्लेसमैंट हुए छात्रों की लिस्ट पढ़नी शुरू की.

‘‘पहला नाम है जैंटलमैन नारायण का. नारायण स्टेज पर आएं और कंपनी में सेवाएं देने के लिए अपना फौर्म भरें. अगला नाम है…’’ कहते हुए उन्होंने कई नाम लिए. नारायण अपना नाम सुनते ही फूला न समाया. जब उस का नाम पुकारा गया तो हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. कारण था नारायण को जैंटलमैन कह कर पुकारा जाना. दरअसल, नारायण सभी छात्रों का प्यारा और टीचर्स का पसंदीदा टौप करने वाला छात्र था. साथ ही इंटरव्यू के दौरान उस ने कंपनी वालों को बता दिया था कि वह जैंटलमैन बनने के लिए आईटी कंपनी जौइन करना चाहता है, सो उन्होंने भी उसे जैंटलमैन कह कर पुकारा.

नारायण स्टेज पर गया और फौर्म ले कर एक कोने में लगे डैस्क पर बैठ कर उसे भरने लगा. उस का तो जैसे सपना साकार हो गया था. उसे लाखों का सालाना पैकेज मिला था. फौर्म भरते हुए वह वर्तमान से अतीत में खो गया. उस की नजरों के सामने अचानक वह दिन घूमने लगा जब उस ने पापा से स्मार्टफोन लेने की जिद की थी. उस दिन पापा ने सरसरी तौर पर पूछा, ‘‘परसों तुम्हारा जन्मदिन है. क्या गिफ्ट चाहिए?’’

बस, पापा का पूछना था और नारायण का कहना, ‘‘मुझे आप के जैसा स्मार्टफोन चाहिए. क्लास में सब के पास स्मार्टफोन है, मेरे पास नहीं.’’

‘‘पर बेटा, स्कूल में तो मोबाइल अलाउड ही नहीं होता. हम तुम्हें कालेज जाने पर ले देंगे,’’ पापा ने कहा तो वह नाराज हो गया और बोला, ‘‘कालेज जाने पर तो मैं बाइक लूंगा, अभी मुझे फोन चाहिए, वह भी बिलकुल आप के फोन जैसा.’’

मम्मी ने भी समझाया, ‘‘बेटा, अभी तो तेरे स्कूल की फीस गई है. फिर घर के खर्च भी काफी हैं. अगर थोड़ा रुक जाता तो…’’ इस पर नारायण भड़क गया, तो मम्मीपापा ने अपने खर्च में कटौती कर उसे बिलकुल वैसा फोन ले दिया जैसा पापा के पास था. स्मार्टफोन पा कर नारायण फूला न समाया. वह अगले दिन जल्दी तैयार हुआ और स्कूल चल दिया. स्कूल जा कर वह सभी दोस्तों को अपना फोन दिखा रहा था कि तभी उसे दूर से गायत्री आती दिखी तो वह उस की तरफ भागा और उसे स्मार्टफोन दिखाता हुआ बोला, ‘‘देखो, अब तो मेरे पास भी स्मार्टफोन है. मिलाओ हाथ, लगो गले.’’

‘‘हूं,’’ गायत्री ने नाकमुंह सिकोड़ा, ‘‘सिर्फ स्मार्टफोन रख कर कोई स्मार्ट नहीं बन जाता. पहले अपना हुलिया तो ठीक करो. स्मार्टफोन तो मम्मीपापा ने ले दिया, लेकिन यह नहीं सिखाया कि स्कूल कैसे बन कर जाते हैं. न तुम ने कंघी की, न ड्रैस प्रैस कर के पहनी. तिस पर हमेशा गुटका खाते रहते हो. जैसे उठे वैसे ही आ जाते हो. मुझे तो लगता है तुम नहाते भी नहीं होगे. पता है तुम जब बात करते हो तो मुंह से गुटके के टुकड़े गिरते हैं.

‘‘क्लास मौनिटर नीता भी कई बार तुम्हें यह बात समझा चुकी हैं कि जैंटलमैन बन कर रहा करो. हमेशा साफसुथरे बन कर स्कूल आया करो पर तुम्हारे कानों तो जूं नहीं रेंगती. हाथ भी मिलाऊंगी और गले भी लगा लूंगी, पहले जैंटलमैन बन कर दिखाओ.’’ गायत्री की बातें नारायण को गहरा आघात कर गईं. कहां तो वह सोच रहा था गायत्री उसे मिल कर खुश होगी. उस का फोन देखेगी पर उस ने तो उलटा डांट दिया. वह भी क्या करे, कई बार गुटका छोड़ने की कोशिश की पर नहीं छूटा. पापा भी कई बार समझाते हैं साफसुथरे जैंटलमैन बन कर रहो, पढ़ाई करो. अब तुम्हारी दाढ़ी आ गई है तो शेव कर के रहा करो पर मैं तो निखद ही रहा. कई बार पापा यह भी कहते कि पढ़ाई के साथ कोई काम करो, चार पैसे जेब में आएंगे तो आत्मविश्वास भी बढ़ेगा व तरक्की भी करोगे. लेकिन नारायण तो बस खाली समय भी घर पर सो कर बिताता, इसी कारण कक्षा के अन्य छात्रछात्राएं भी उस से कतराते हैं. गायत्री की बातों से रुष्ट नारायण स्कूल से घर आया तो औंधेमुंह लेट गया. उस ने खाने को भी मना कर दिया. अगले दिन संडे था. पापा को आज भी औफिस जाना था. उन का फोन चार्जिंग पर लगा हुआ था. नारायण ने उन का फोन चार्जिंग से हटाया और अपना फोन चार्जिंग पर लगा दिया.

नारायण 12वीं कक्षा का छात्र था. स्कूल में हमेशा लेट जाना, पान, गुटका आदि खाना और बिना कंघी, बिना साफ कपड़े पहने जाने के कारण छात्र उस से कटते थे. वह मन ही मन गायत्री को प्यार करता था, लेकिन उस की गंदी आदतों के कारण गायत्री भी उसे भाव न देती. नारायण के पापा एक प्राइवेट कंपनी में जौब करते थे. आज संडे के दिन भी उन्हें जाना पड़ रहा था. उन का वेतन भी बहुत कम था. किसी तरह घर चला रहे थे व जुगाड़ कर नारायण को पढ़ा रहे थे. उन की मनशा थी कि नारायण कंप्यूटर, सौफ्टवेयर इंजीनियर बने, लेकिन नारायण को इस से कोईर् लेनादेना न था. वह देर तक सोता रहता. फिर उठ कर स्कूल भागता. घर की आर्थिक मंदी से भी उसे कोई लेनादेना न था. बिस्तर पर पड़े नारायण को बाय कह उस के पापा ने फोन चार्जिंग से हटाया और जेब में डाल कर चल पड़े औफिस. थोड़ी देर बाद मम्मी भी बाजार सामान लेने चल दीं. तभी फोन बजा तो नारायण ने फोन स्क्रीन पर देखा किसी अभिनव का फोन था.

यह क्या नारायण चकराया, ‘ओह, उस ने चार्जिंग से पापा का फोन हटा कर अपना फोन लगा दिया था. लेकिन एकसा फोन होने के कारण पापा मेरा फोन ले गए.’ उस ने सोचा, फिर सोचा, ‘फोन अटैंड कर बता देता हूं कि पापा फोन घर भूल गए हैं. सो जैसे ही उस ने फोन उठाया, उधर से आवाज आई, ‘‘प्रदीपजी, आप अपने बेटे नारायण की चिंता छोडि़ए, आप के बेटे नारायण की पढ़ाई के लिए लोन मिल जाएगा. मैं आप को पर्सनल लोन आप के कहे मुताबिक दिलवा दूंगा. ब्याज की डिटेल मैं ने आप के व्हाट्सऐप पर डाल दी हैं, देख लीजिएगा,’’ जब तक नारायण अभिनव को बताता कि पापा फोन भूल गए हैं, उधर से फोन कट गया. नारायण को उत्सुकता हुई कि जाने क्या डिटेल हैं लोन की, सो उस ने उत्सुकतावश पापा व अभिनव के बीच हुई चैटिंग पढ़ी. उसे पढ़ कर नारायण को बड़ी हैरानी हुई, पापा ने लिखा था, ‘मैं नारायण की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए लोन लेना चाहता हूं.’

अभिनव का जवाब था, ‘आजकल ऐजुकेशन लोन मिल जाता है, जिस का भुगतान बच्चे की पढ़ाई के बाद नौकरी लगने पर बच्चे द्वारा ही किया जाता है.’

पापा ने कहा था, ‘नहींनहीं, मैं नारायण पर कोई बोझ नहीं डालना चाहता, फिर जब नारायण की नौकरी लगेगी और उसे अपनी पढ़ाई के खर्च का लोन चुकाना पड़ेगा तो वह क्या सोचेगा कि मांबाप ने पढ़ाई भी करवाईर् तो मेरे ही कंधे पर बंदूक रख कर. मुझे पर्सनल लोन दिलवा दो. किसी तरह नारायण की बीटैक हो जाए. बस, फिर तो नारायण ही संभालेगा घर को.’

अभिनव का जवाब था, ‘ठीक है, कोशिश करता हूं.’

फिर आज के मैसेज में अभिनव ने पर्सनल लोन की डिटेल भेजी थीं जो काफी महंगा था. ‘ऐसा लोन लेना शायद पापा की तनख्वाह के हिसाब से संभव भी न होगा. फिर उसे चुकाएंगे कहां से,’ नारायण ने सोचा. मैसेज पढ़ कर नारायण की आंखें भर आईं. ‘पापा मेरे लिए कितना सोचते हैं. मेरे सैटल होने के बाद भी वे नहीं चाहते कि मैं लोन चुकाऊं या मुझ पर भार पड़े,’ नारायण सोच में पड़ा था. ‘ठीक कहती है गायत्री भी, मुझे घर के लिए, मातापिता के लिए सोचना चाहिए और एक मैं हूं इतनी महंगी डिमांड कर फोन लिया और अभी बाइक की इच्छा भी रखता हूं.’ वह खुद को धिक्कारने लगा, फिर कुछ सोच कर वह उठा और नहाने चल दिया. जब तक नारायण नहा कर आया मम्मी बाजार से आ चुकी थीं. मम्मी ने नारायण का बदला रूप देखा तो हैरान रह गईं. कहां तो वह 12 बजे तक उठता ही न था और कहां नहाधो कर तैयार था. उन्होंने नारायण से पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’ नारायण ने इतना ही कहा, ‘‘जैंटलमैन बनने,’’ और घर से निकल गया.

वह सीधा अपने दोस्त लक्ष्मण के घर गया जिस के बड़े भैया अखबार का काम करते थे. उस ने उन से अखबार बांटने का काम मांगा तो वे बोले, ‘‘हां, हमें तो एक लड़के की जरूरत है ही. हम तुम्हें 1,100 रुपए महीना देंगे. कल साइकिल ले कर सैंटर पहुंच जाओ.’’ लक्ष्मण के भैया को ‘थैंक्स’ कह कर नारायण खुशीखुशी घर लौटा और अपनी पुरानी साइकिल निकाल कर उस में तेल डालने व साफसफाई करने लगा. उस में यह परिवर्तन देख कर मां भी हैरान थीं. कहां बाइक की डिमांड करने वाला नारायण आज साइकिल साफ कर रहा था. अगले दिन सुबह से उस ने 4 बजे उठ कर अखबार डालने का काम शुरू कर दिया. वह सुबह 7 बजे तक अखबार बांटता और वापस आ कर नहाधो कर प्रैस किए कपड़े पहन स्कूल जाता.

मम्मीपापा हैरान थे, 5 मिनट… 5 मिनट… कह कर स्कूल के लिए लेट उठने वाला नारायण अब सुबह न केवल जल्दी उठता बल्कि काम भी करता. साथ ही वह साइकिल से ही स्कूल जाता, जिस से वैन का किराया भी बचने लगा था. अखबार के काम से मिलने वाले पैसे उस ने अपने पास इकट्ठे करने शुरू कर दिए. साथ ही वह स्कूल से आ कर इंजीनियरिंग के ऐंट्रैंस टैस्ट की तैयारी करता व शाम को 10वीं के 5 बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाता. अपनी मेहनत के बल पर 12वीं में नारायण ने 80त्न अंक ले कर क्लास में टौप किया. आगे की पढ़ाई के लिए जहां नीता उस की क्लास मौनिटर विमन कालेज चली गईं, वहीं गायत्री ने वोकेशनल कालेज में कंपनी सैक्रेटरी के कोर्स के लिए ऐडमिशन लिया. नारायण ने इंजीनियरिंग के ऐंट्रैंस टैस्ट में अच्छी रैंक ला कर टौप आईटी कालेज में इंजीनियरिंग में ऐडमिशन लिया. आईटी में ऐडमिशन की फौरमैलिटीज पूरी होने पर फीस भरने के लिए हफ्ते का समय मिला. नारायण के पापा अपने दोस्त अभिनव को फोन कर बोले, ‘‘अभिनवजी, लोन की कार्यवाही जल्दी पूरी करवा दो ताकि नारायण की फीस भरी जा सके.’’

‘‘हां, करता हूं,’’ अभिनव से जवाब मिला तो नारायण के पापा प्रदीपजी ने फोन रखा. तभी नारायण आया और पापा के हाथ में नोट रखते हुए बोला, ‘‘पापा, आप को लोन लेने की आवश्यकता नहीं है, यह लीजिए पैसे. बस, बैंक से ड्राफ्ट बनवाइए ताकि फीस भरी जा सके. यह पैसे मैं ने अखबार का काम करने व ट्यूशन पढ़ाने से कमाए हैं. हां, कुछ कम हों तो अवश्य आप की सहायता की जरूरत होगी.’’ पापा ने नोट पकड़े तो उन की आंखों से आंसू छलक आए, उन्होंने नारायण को गले लगा लिया. सभी नारायण में अचानक आए इस बदलाव से अचंभित थे. अब उस ने गुटका खाना भी छोड़ दिया था और सदा टिपटौप हो कर रहता. रोज शेव बनाता, अपने कपड़े खुद प्रैस कर पहनता. वह सचमुच जैंटलमैन बन गया था. लेकिन कोई नहीं जानता था कि यह हृदय परिवर्तन पापा के फोन पर पढ़े मैसेज का नतीजा है. धीरेधीरे 4 साल बीत गए. गायत्री तब तक बीए कर एक कंपनी में कंपनी सैक्रेटरी बन गई थी. नीता की शादी हो गई और वह अपने पति के बिजनैस में उन की सहायता करने लगी. इधर नारायण ने मेहनत से पढ़ाई की व साथसाथ 10वीं व 12वीं के बच्चों की ट्यूशन ले कर न केवल अपनी पढ़ाई का खर्च निकाला बल्कि घर में भी आर्थिक सहायता करने लगा.

नारायण की सहपाठी पारुल, रविंद्र, हरीश व विकास तो उसे अभी से जैंटलमैन कह कर पुकारने लगे थे. घरबाहर सभी उसे प्यार करते. कालेज में टीचर्स का तो वह चहेता था, क्योंकि पढ़ाई के साथ वह शिष्टता में भी आगे बढ़ गया था. आज टिपटौप नारायण जब कालेज आया तो पारुल ने उसे स्पष्ट कह दिया, ‘‘पढ़ाई के कारण तुम्हें कंपनी वाले प्लेसमैंट दें न दें, लेकिन तुम्हारी पर्सनैलिटी को देख यानी इस जैंटलमैन को अवश्य देंगे प्लेसमैंट.’’ और फिर हुआ भी यही, रविंद्र व हरीश का नाम बाद में लिया गया जबकि नारायण का नाम पहले, वह भी जैंटलमैन संबोधित करते हुए. ‘‘अगर फौर्म भर गए हों तो दे दें,’’ कंपनी मैनेजर की आवाज से नारायण की तंद्रा भंग हुई और वह वर्तमान में आया. उस ने जल्दी से फौर्म भर कर मैनेजर को दिया और वह हौल से बाहर निकलने को था कि तभी विकास ने आ कर बताया, ‘‘इंटरनैट पर रिजल्ट घोषित हो गया है. मैं ने सब का रिजल्ट देख लिया है और हमारे जैंटलमैन ने तो टौप किया है टौप.’’

नारायण सुनते ही खुशी से झूम उठा. पारुल, हरीश व रविंद्र के साथ वह कंप्यूटर रूम की ओर भागा रिजल्ट देख कर नारायण बहुत उत्साहित था अब वह अपने घर के, मातापिता के आर्थिक उन्मूलन में सहायक बन सकता है. पढ़ाई भी पूरी हुई और बेहतर प्लेसमैंट भी मिली. नारायण ज्यों ही कंप्यूटर रूम से बाहर निकल गेट की ओर बढ़ा सामने गायत्री बांहें फैलाए खड़ी थी. वह अचानक उसे यहां देख अचंभित हुआ.

‘‘आओ, जैंटलमैन. यह हुई न बात. मातापिता का सपना भी पूरा और साथ ही मेरा इंतजार भी खत्म,’’ और उस ने नारायण को सीने से लगा लिया. तभी नीता का फोन आया. उस ने भी नारायण को उस की कामयाबी पर बधाई दी. नारायण ने सब की बधाई ली और चल पड़ा घर की ओर मातापिता को अपनी इंजीनियरिंग पूरी होने व टौप करने के साथसाथ टौप आईटी कंपनी में प्लेसमैंट की खुशखबरी देने. अब वह न केवल जैंटलमैन बन गया था बल्कि घर के आर्थिक उन्मूलन में भी सहायक बन सकता था.

घर पहुंच मातापिता को उस ने खुशखबरी दी तो उन्होंने उसे अश्रुपूरित नेत्रों से सीने से लगा लिया. अब नारायण वास्तव में जैंटलमैन बन गया था.

गर जरा बता देतीं : निशा किस बात से डरी सहमी थी ?

‘‘कुलक्षणी,अभी से जवानी फूट पड़ी… शर्म नहीं आई तुझे  बाप तो चला गया और मेरे ऊपर यह मुसीबत… किस से कहूं  क्या करूं ’’

पड़ोसिन अचला के रोनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर मैं ने उन के घर की घंटी बजाई. उन से हमारे बहुत ही अच्छे संबंध थे. दरवाजा खोलते ही मुझे देख कर वे रोते हुए बोलीं, ‘‘कहीं का नहीं छोड़ा इस ने मुझे… पिता तो चल बसे हैं… मेरा तो कुछ खयाल करती  मैं क्या इस के बारे में नहीं सोचती हूं  इसी के लिए तो जी रही हूं.’’

मैं ने पूछा, ‘‘पर हुआ क्या है ’’

‘‘अरे, पेट से है यह,’’ कह वे जोरजोर से रोने लगीं.

मैं भी सुन कर हैरान रह गई. फिर पूछा, ‘‘कैसे  कहां ’’

‘‘इसी से पूछो. मुझे तो कुछ बताती ही नहीं.’’

‘‘आप शांत रहें… मैं इसे अपने घर ले जाती हूं. वहां इस से सब कुछ प्यार से पूछती हूं,’’ कह मैं उसे अपने घर ले गई. निशा डरीसहमी चुपचाप मेरे साथ चल दी. घर आ कर मैं ने उसे अपने साथ खाना खिलाया. जिस तरह से वह बड़ेबड़े निवाले खा रही थी उस से मालूम होता था सुबह से कुछ नहीं खाया है बेचारी ने. जब वह खाना खा चुकी तो मैं ने प्यार से पूछा, ‘‘सचसच बताओ यह किस का काम है  डरो नहीं.’’

उस के मुंह से सिर्फ एक ही शब्द निकला, ‘‘मामा.’’

‘‘क्या यह सच है ’’

वह बोली, ‘‘हां, मामा घर आते रहते थे. कभी चौकलेट लाते, कभी नई ड्रैस, तो कभी घुमाने ले जाते. मैं सोचती थी यह सब उन का लाडप्यार है… फिर एक दिन मां घर में नहीं थीं… और बस… मैं ने उन्हें मना भी किया, पर नहीं माने उलटे बाद में बोले कि मां को मत बताना… वे मर जाएंगी… मैं तुम से माफी मांगता हूं… फिर कभी ऐसा न होगा. यह सुन कर मैं बहुत डर गई और फिर मां को कुछ नहीं बताया,’’ और फिर वह जोरजोर से रोने लगी.

मात्र 13 वर्ष की थी बेचारी. अभी तो जवानी की दहलीज पर कदम ही रखा था. कैसे समझती वह सब, जब 42 वर्षीय मामा न समझा फिर मैं उसे समझाते हुए बोली, ‘‘धैर्य रखो, सब ठीक हो जाएगा… मैं तुम्हारी मां से बात करती हूं… तुम यहीं रहो.’’ फिर जब मैं ने उस के घर जा कर उस की मां अचला को सच बताया तो उन के तो जैसे पैरों तले से जमीन खिसक गई. बोलीं, ‘‘क्या  काश, मेरी अभी मौत हो जाए,’’ और फिर दहाड़ें मार कर रोने लगीं.

मैं उन्हें धैर्य बंधाते हुए बोली, ‘‘चलिए, निशा से बात कीजिए.’’ थोड़ी ही देर बाद निशा अपनी मां की छाती से लग रोते हुए बोली, ‘‘मां, तुम ने बोला तुम देर शाम बाहर मत जाओ, मैं नहीं गई. स्कूल से सीधे घर आओ, मैं आई. दुपट्टा ठीक से लो, मैं ने लिया. महल्ले के लड़कों से मत बोलो, मैं नहीं बोली. पर तुम ने यह कभी नहीं कहा कि मामा, चाचा, फूफा, मौसा आदि से भी दूर रहो. मैं कैसे समझती कि जिन की गोद में खेल कर बड़ी हुई वे ही ऐसा करेंगे  अगर तुम बता देतीं तो यह न होता मां.’’

अचला अपने माथे पर जोर से हाथ मारते हुए बोलीं, ‘‘तुम ठीक कह रही हो बेटी… तुम्हारी कोई गलती नहीं… सब ठीक हो जाएगा… हम कोई उपाय सोचते हैं… तुम डरो नहीं, तुम्हारी मां तुम्हारे साथ है,’’ कह अचला ने मेरी तरफ ऐसे देखा गोया पूछ रही हों कि तुम्हीं बताओ क्या करें. तब मैं ने उन का हाथ थाम कर कहा, ‘‘घबराएं नहीं, यह मेरी भी बच्ची है. मेरी जानपहचान की डाक्टर हैं. सब ठीक हो जाएगा…’’

एक इंच मुस्कान

“अरे! कहाँ भागी जा रही हो?” दीपिका को तेज-तेज कदमों से जाते हुये देख पड़ोस में रहने वाली उसकी सहेली सलोनी उसे आवाज लगाते हुये बोली.

“मरने जा रही हूँ.” दीपिका ने बड़बड़ाते हुए जवाब दिया.

“अरे, वाह! मरने और इतना सज-धज कर. चल अच्छा है, आज यमदूतों का भी दिन अच्छा गुजरेगा.”सलोनी चुटकी लेते हुये बोली.

“मैं परेशान हूँ और तुझे मजाक सूझ रहा है.” दीपिका सलोनी को घूरते हुये बोली, ” अभी मैं ऑफिस के लिए लेट हो रही हूँ,तुझसे शाम को निपटूंगी.”

“अरे हुस्नआरा! इस बेचारी को भी आज करोलबाग की ओर जाना है, यदि महारानी को कोई ऐतराज न हो तो यह नाचीज उनके साथ चलना चाहती हैं.” सलोनी ने दीन-हीन होने का अभिनय करते हुए मासूमियत से जवाब दिया.

“चल! बड़ी आई औपचारिकता निभाने वाली.” सलोनी की पीठ पर हल्का सा धौल जमाते हुए दीपिका बोली,” एक तू ही तो है जो मेरा दुख दर्द समझती है.”

बातों-बातों मे दोनो पड़ोसन-कम-सहेलियाँ बस-स्टैण्ड पहुँच गयीं.कुछ ही देर मे करोल बाग वाली बस आ गयी.

एक तो ऑफिस टाईम, ऊपर से सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती हुई दिल्ली की आबादी. जिधर देखो भीड़ ही भीड़. खैर, धक्का-मुक्की के बीच दोनो सहेलियां बस मे सवार हो गयी.संयोग अच्छा था कि दो सीटों वाली एक लेडीज बर्थ खाली थी.

“थैंक गॉड! कुछ तो अच्छा हुआ!” कहते हुये दीपिका सलोनी का हाथ पकड़कर झट से उस खाली बर्थ पर लपककर विराजमान हो गयी.

सलोनी, ”कुछ तो अच्छा हुआ!अरे! ऐसा क्यों बोल रही हो?चल अब साफ-साफ बता क्या हुआ? और यह चाँद सा चेहरा आज सूजा हुआ क्यों है?”

दीपिका, “अरे! क्या बताऊँ? घर मे किसी को मेरी तनिक भी परवाह नही है. मै सिर्फ पैसा कमाने की मशीन और सबकी सेवा करने वाली नौकरानी हूँ.”

“अरे! इतना गुस्सा! क्या हो गया?” सलोनी उसे प्यार से अपने से चिपकाते हुए बोली.

“आज सुबह मै थोड़ी ज्यादा देर तक क्या सो गयी, घर का पूरा माहौल ही बिगड़ गया. देर हो जाने के कारण भागम-भाग में ऑफिस जाने के लिये नहाने जाने के पहले मैं इनके लिए कपड़ा निकालना भूल गयी तो महाशय तौलिया लपेटे तब तक बैठे रहे,जब तक मैं बाथरूम से निकल नहीं आई और इस भाग-दौड़ के बीच इतनी मुश्किल से जो नाश्ता बनाया उसे भी बिना किये यह कहते हुए ऑफिस चले गये कि आज शर्ट-पैन्ट निकला न होने के कारण तैयार होने में देरी हो गयी.इधर साहबजादे तरुण को आलू-गोभी की सब्जी नाश्ते मे दिया तो मुँह फुलाकर बैठ गये कि रोज-रोज एक ही तरह की सब्जी खाते-खाते बोर हो गया हूँ, मशरुम क्यों नही बनाया? उधर बिटिया रानी की रोज यही शिकायत रहती है कि आप रोज एक ही तरह की बहन जी स्टाईल की चोटी करती हो. मेरी फ्रेन्ड्स की मम्मियाँ रोज नये-नये स्टाईल में उनकी हेयर डिजाईन करती हैं. बस सबको अपनी-अपनी पड़ी रहती है. कोई यह नहीं पूछता कि मैने नाश्ता किया या नहीं?टिफिन में क्या ले जा रही हूँ? मेरी ड्रेस कैसी है?  कहीं मुझे लेट तो नहीं हो रहा है? सबको बस अपनी अपनी चिंता है.”यह कहते-कहते उसकी आँखों मे आँसू भर गये.

“अरे परेशान मत हो, मेरी ब्यूटी क्वीन!अव्वल तू खुद इतनी सुन्दर है कि कुछ भी पहन ले तो भी हीरोइन ही लगेगी और घर के जो सारे लोग तुझसे फरमाइशें करते हैं, उसकी वजह उनका तुझसे लगाव है, वे तुझपर भरोसा करते हैं.” सलोनी उसे प्यार से समझाते हुए बोली.

“बस-बस रहने दो. मै सब समझती हूँ. यह सब कहने की बात है. यहाँ मेरी जान भी जा रही होगी न तो किसी न किसी को जरूर मुझसे कोई काम पड़ा होगा.” दीपिका का उबाल कम होने का नाम नहीं ले रहा था.

इसी बीच अगले स्टॉप पर बस के रूकते ही उसके ऑफिस मे डेली वेज पर काम करने वाली प्यून कांति किसी तरह जगह बनाते हुए भी उसमे दाखिल हो गयी. लेडीज सीट की ओर पहुँचकर बस के हैंगिंग हुक को पकड़कर वह खड़ी हो गयी. अभी वह आँचल से अपना पसीना पोंछ रही थी कि दीपिका ने पूछा, “अरे! कांति कैसी हो?”

दीपिका की आवाज सुनकर कांति चौंक कर उसकी ओर मुड़ते हुये बोली, “अरे मैडम! आप भी इसी बस मे! नमस्ते.” दीपिका को देखकर उसके चेहरे पर सदैव छाई रहने वाली मुस्कान कुछ और खिल आई थी.

दीपिका,” नमस्ते!तुम तो रोज नौ बजे दफ्तर पहुँच जाती हो, आज लेट कैसे?”

कांति,” मैडम! दरअसल आज से बेटे की दसवीं की बोर्ड परीक्षा शुरु हुयी है. वह जिद कर रहा था कि सबके मम्मी-पापा उन्हें छोड़ने एक्जाम सेन्टर पर आयेगें.आप भी मेरे साथ चलिए. वह इतने लाड़ से बोल रहा था कि मैं उसे मना नहीं कर पाई. उसे पहुंचाने चली गयी इसलिये थोड़ी देर हो गयी,सॉरी.”

दीपिका,” अरे! कोई बात नहीं. मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी लेकिन एक बात बताओ,तुम्हारे पति भी तो बेटे के साथ जा सकते थे, न?” अभी कांति कोई जवाब दे पाती कि वह सलोनी की ओर मुड़ते हुए बोली, “देखो, हर घर की यही कहानी है, औरत घर का भी काम करे और बाहर भी मरे और पति एक भी काम एक्स्ट्रा नही कर सकते, क्योंकि वो मर्द है.”

“नहीं, मैडम!ऐसी बात नही है.” अभी कांति आगे कुछ और बोल पाती कि दीपिका ने कहा, ” अब पति की  तरफदारी करना छोड़ो. पति को हमेशा परमेश्वर, पूजनीय और उनकी ज्यादतियों पर पर्दा डालने का ही यह नतीजा है कि उनकी मनमानी बढ़ती जा रही है.” वह बिफरने सी लगी थी.

“नही. मैडम, मै उन्हें बचा नही रही हूँ. दरअसल पिछले साल ऑटो चलाते समय उनका बुरी तरह एक्सीडेन्ट हो गया था, जिसमे उनका दाहिना हिस्सा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया. इसलिये बाहर के काम मे उन्हें दिक्कत होती है. किन्तु, वे घरेलू कार्य मे मेरा पूरा सहयोग करते हैं और मुझे अपने परिवार के लिये कुछ भी करना बहुत अच्छा लगता है.”

कांति की बात से विस्मित दीपिका एकदम सन्नाटे मे आ गयी. दिव्यांग और बेरोजगार पति, छोटी सी तनख्वाह मे पूरे परिवार का गुजारा करने वाली कांति क्या उससे कम चुनौतियों का सामना कर रही है लेकिन एक इंच की मुस्कान लिये घर और बाहर दोनो जगह का काम कितनी हँसी-खुशी संभाल रही है.

इधर कांति बोले जा रही थी, “मैडम! बच्चे और पति जब अपनी इच्छा और परेशानी मेरे सामने रखते हैं, तो मुझे लगता है कि मै इस घर की धुरी हूँ.उनका मुझसे कुछ अपेक्षा रखना मुझे मेरे होने का अहसास कराता रहता है.”

कांति की सहज बातों ने अनजाने में ही दीपिका के अंदर धधक रही क्षोभ और गुस्से की अग्नि-ज्वालाओं को मीठी फुहार से बुझा दिया. सच में कांति ने कितनी आसानी से उसे समझा दिया था कि पति और बच्चों की फरमाईशें और उनका उस पर निर्भर होना उसे परेशान करना नही, बल्कि उनसे जुड़े रहने की निशानी है. एक क्षण के लिए उसने कल्पना कर यह देखा कि पति और बच्चे अपना-अपना काम करने में व्यस्त हैं. कोई अपनी डिमांड पूरी करने के लिए न तो उसकी चिरौरी कर रहा है और न ही कोई तुनक कर मुंह फुलाये बैठा है. अभी कुछ क्षण पहले तक इन्हीं फरमाइशों से बुरी तरह खीझी हुयी दीपिका का ने दिल इस कल्पना से ही घबरा उठा. वह स्वयं से दृढ़ता पूर्वक बोली,”लेट्स हैव ए न्यू बिगिनिंग.”

पश्चाताप की बूंदे गुस्से और खीझ से उपजे उसकी आँखों के सूखेपन को तर कर रही थी. तभी उसके मोबाईल फोन की रिंगटोन बजी. देखा, तो पति अश्विन की कॉल थी. उसके हलो कहते ही वे बोले, “दीपू! आज सुबह सोते समय तुम बिल्कुल इन्द्रलोक की परी लग रही थी. तुम्हे नींद से जगाकर मैं यह मौका खोना नही चाहता था.”

अश्विन की बातें सुनकर इस भीड़ भरी बस मे भी उसके गाल शर्म से गुलाबी हो उठे. वह धीरे से बोली, “बस-बस ठीक है. शाम को समय से घर आ जाना. आज मैं आपके पसन्द के केले के कोफ्ते और लच्छा पराठा बनाऊंगी और तरुण के लिये मशरुम. बाय.”

अश्विन,” बाय स्वीटहार्ट.” फोन रखते ही उसने सोनल के साथ मिलकर दो सीट वाली बर्थ पर थोड़ी सी जगह बनायी और कांति का हाथ पकड़ उसे सीट पर बैठाते हुए बोली, “आओ! कांति बैठो, तुम भी खड़े-खड़े थक गयी होगी. हम साथ-साथ चलेंगे.” कांति पहले थोड़ा हिचकी,लेकिन दीपिका के आत्मीय निमंत्रण से उसका संकोच भीगकर बह निकला.

कांति,”थैंक्स दी. आपका परिवार बहुत लकी है.”

दीपिका,”धन्यवाद,पर भला,वो क्यों?”

कांति,”जब आप बाहरी लोगों का इतना ध्यान रखती हैं तो आपके घरवालों को तो किसी बात की चिंता करने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती होगी.”

कांति की हथेली को धीमे से दबाकर उसे मौन धन्यवाद देते हुए वह खुद से बोली,” थैंक्स,कांति. मेरे संसार में मुझे अपने वजूद का अहसास कराने के लिए.” दीपिका के चेहरे पर भी अब कांति की तरह एक इंच की सच्ची वाली मुस्कान खिल आई थी. उसे मुस्कराते देख सलोनी बोली,” अब लग रही हो न सच्ची ब्यूटी क्वीन.” दुनिया से बेखबर बस की इस लेडीज बर्थ पर एक साथ तीन मुस्कान खिल आई. इधर अच्छी और चिकनी सड़क पाकर बस की रफ्तार भी तेज हो गयी थी.

बीमारी, नाकामी और तमाम परेशानियों से yo yo Honey Singh ने कैसे किया डील ? जानें रैपर के उन मुश्किल दिनों के बारे में

Yo Yo Honey Singh Untold Story : म्यूजिक इंडस्ट्री के जाने माने चेहरे ”यो यो हनी सिंह” एक बार फिर कमबैक कर रहे हैं. पिछले काफी समय से उन्होंने न तो कोई हिट गाना दिया है और ना ही वो सार्वजनिक तौर दिखाई दिए. लेकिन अब एक बार फिर वो अपना जलवा बिखेरने के लिए पूरी तरह से तैयार है. इस बार वो ‘हनी सिंह 3.0’ के तौर पर वापसी कर रहे हैं.

हालांकि इस बीच ‘रैपर हनी सिंह’ के गाने की चर्चा के अलावा उनसे जुड़ी निगेटिव खबरों ने ज्यादा सुर्खियां बनाई थी. कहा जा रहा था कि ‘हनी सिंह’ किसी बड़ी बीमारी का शिकार हो गए है. साथ ही उनकी पर्सनल लाइफ में भी कई दिक्कतें चल रही थी. वहीं अब मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में रैपर ने अपने बारे में उड़ रही सभी अफवाहों पर खुलकर बात की है.

रैपर- बचपन से था गाने का शौक

इंटरव्यू में ”हनी सिंह” ने सबसे पहले बताया कि, ”म्यूजिक का शौक उन्हें बचपन से ही था. स्कूल में उन्होंने सबसे पहले तबला बजाया था, जिसके बाद साल 1999 से उन्होंने हिपहॉप सुनना शुरू किया. इसके अलावा वो एआर रहमान के गाने भी सुना करते थे. फिर उनकी रुचि ‘इंटरनेशनल हिपहॉप’ को सुनने में भी बढ़ने लगी. फिर उन्हें कुछ ऐसा ही करने का ख्याल आया, जिसके लिए उन्होंने आईटी ली. जिससे वह बीट बना सके. इसके बाद वर्ष 2003 में सबसे पहले उन्होंने ‘अंडरग्राउंड रैपर्स’ के लिए बीट बनाई और फिर 2005 में ‘अशोक मस्ती’ के साथ गाना कंपोज किया. उस गाने का नाम था ‘खड़के गलासी…’ जो कुछ ही समय में सुपरहिट हो गया था.”

हनी सिंह को इस गाने से मिली पहचान 

इसके आगे उन्होंने बताया कि, ”फिर साल 2007 में वह पंजाब शिफ्ट हो गए थे. जहां उन्होंने गाने लिखने के साथ-साथ उन्हें बनाना और एलबम डिजाइन करना भी शुरू किया. फिर कुछ ही सालों में वह पंजाब में स्टार बन गए. लेकिन बाकी राज्यों में उन्हें अभी भी पहचान नहीं मिली थी. इसी बीच उन्होंने अपना पहला गाना ‘ब्राउन रंग’ लॉन्च किया. जो सुपरहिट रहा. इसके बाद उन्होंने एक से बढ़कर एक कई गाने दिए.”

पंचाब में क्यों जलाए गए थे हनी के पुतले ?

वहीं इस बीच पंजाब में उनके पुतले जलाने की खबर वायरल हो गई. जिस पर बात करते हुए हनी सिंह ने कहा, “जब मेरे डोप-शोप जैसे गाने रिलीज हुए तो तब लोगों ने पंजाब में मेरे पुतले जलाए. लेकिन मैंने उन्हें तवज्जो नहीं दी, क्योंकि मेरे फैंस तब भी मेरे साथ खड़े थे. बस मुट्ठीभर कुछ लोग ही मेरा विरोध कर रहे थे, जिससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा.”

‘ड्रग एक्डिक्ट’ जैसे सवालों पर क्या बोले रैपर ?

इसके अलावा उनके ”ड्रग एडिक्ट” होने जैसे आरोपों पर हनी सिंह ने कहा, ‘अगर मैं वास्तव में ड्रग एडिक्ट होता, तो मुझे इतना प्यार करने वाले मेरे फैंस, रिश्तों के रूप में कैसे मिलते ?’ वहीं ‘डिप्रेशन और एंक्ज़ाइटी’ वाली खबरों पर भी ”हनी सिंह” ने अपनी बात रखी. उन्होंने बताया कि, ”उन्हें ‘बाइपोलर डिसऑर्डर विद साइकोटिक सिमपटम्स’ हो गया था. जो डिप्रेशन या एंक्ज़ाइटी से भी ज्यादा घातक बीमारी है.”

आपको बता दें कि, उन्हें अपनी इस बीमारी का झटका सबसे पहले अमेरिका में एक शो के दौरान लगा था. जब वह स्टेज पर गाना गा रहे थे तो तब अचानक से उनकी तबियत खराब हो गई. उनकी हालात इतनी बिगड़ गई थी कि वो चलता शो छोड़कर जाने पर मजबूर हो गए थे. वहीं इस बीमारी से उभरने के लिए उन्हें पांच सालों का लंबा समय लग गया.

‘हनी सिंह 3.0’ वर्जन का ख्याल कैसे आया ?

इसी के साथ उन्होंने ये भी कहा कि, ”इन पांच सालों में लोगों ने उनके बारे में कई बातें फैलाई लेकिन किसी को भी सच्चाई के बारे में नहीं पता था. बीते 5 सालों से मैं मीडिया से पूरी तरह से दूर थे. फैंस मेरी एक झलक देखने के लिए तरस गए थे. बहरहाल इस मुश्किल घड़ी में मेरे परिवार वालों, मेरे दोस्त और मेरे फैंस मेरे साथ खड़े थे. इसलिए मैं दोबारा अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रहा हूं और इसी वजह से मैंने ‘हनी सिंह 3.0’ वर्जन के बारे में सोचा.

तो डूब जाएगा जकार्ता

मौसम में बदलाव हो रहा है. वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो रही है. इस के कारण ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं, जिन का पानी जा कर समुद्र में मिल रहा है. इस से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है. अगर इसी रफ्तार से यह सब चलता रहा तो दुनिया के नक्शे से कई शहर मिट जाएंगे, जिन में एक जकार्ता (इंडोनेशिया की राजधानी) बहुत बड़ा नाम है.

जकार्ता का तो अस्तित्व ही मिटता नजर आ रहा है. यहां जकार्ता की बात इसलिए हो रही है क्योंकि इंडोनेशिया अपनी राजधानी बदलने की तैयारी में है.

मनुष्य और जलवायु परिवर्तन

हम सभी ने कभी न कभी अपनी जिंदगी में जलवायु परिवर्तन के बारे में सुना होगा. ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज, ओजोन लेयर, वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की उच्च सांद्रता जैसे शब्दों को सुना होगा. बच्चों ने तो भूगोल में यह सब पढ़ा होगा और आज भी पढ़ रहे हैं. देश और विदेशों में इस की चर्चाएं होती रहती हैं. लेकिन क्या आप को पता है कि यह कितना जरूरी है?

ग्लोबल वार्मिंग के कारण धरती गरम हो रही है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं. जब वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है तब प्रकृति का विनाशकारी और भयंकर रूप दिखता है, जो अपने साथ सबकुछ तबाह कर ले जाता है. इस के कारण भयंकर तूफान, बाढ़, जंगल में आग, सूखा, भयंकर लू जैसी आपदाएं बढ़ जाती हैं. इस का ताजा उदाहरण आप हिमाचल से ले सकते हैं. इस बार बारिश और बाढ़ के कारण लगभग पूरा हिमाचल डूब गया. करोड़ों की तबाही हुई. न जाने कितने लोगों ने अपनी जान गंवाई.

उत्तराखंड का भी यही हाल है. इस से भी चिंता करने की बात यह है कि समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है. अगर यह इसी तरह बढ़ता रहा तो तटवर्ती देशों के डूबने का खतरा बनेगा.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले महीने एक जानकारी सामने आई कि इंडोनेशिया अपनी राजधानी बदल रहा है. अभी उस की राजधानी जकार्ता है. लेकिन यह शहर अकसर प्राकृतिक आपदाओं से घिरा रहता है. कभी यहां भूकंप तो कभी बाढ़. अकसर यहां पर कुछ न कुछ होता रहता है. लेकिन समस्या यह नहीं है. ऐसा नहीं है कि इस कारण से यहां की सरकार राजधानी बदलने पर विचार कर रही है. दरअसल जकार्ता जावा सागर के किनारे बसा हुआ है. यह धीरेधीरे समुद्र में समाता जा रहा है क्योंकि समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है.

इस के पीछे का कारण है ग्लोबल वार्मिंग. दुनिया के कई शक्तिशाली देशों ने वैश्विक मंच पर इस मुद्दे को उठाया है और इसे रोकने के भी प्रयास जारी हैं.

2050 तक डूब जाएगा जकार्ता

इंडोनेशिया के अधिकारियों का कहना है कि नई राजधानी एक फौरेस्ट सिटी  होगा. उन का लक्ष्य 2045 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का है जिसे किसी भी तरह से वे हासिल करना चाहते हैं. लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञों ने सरकार को चेतावनी दी है. उन का तर्क है कि जब एक जंगल वाले इलाके को एक शहर में तबदील करेंगे तो वहां पर बड़े पैमाने में पेड़ काटने पड़ेंगे. इस से प्रकृति, जीवजंतुओं और वे लोग जो जंगलों में रहते हैं उन के लिए खतरा पैदा हो जाएगा.

माना जा रहा है कि 2050 तक जकार्ता का 75 फीसदी तक हिस्सा पानी में डूब जाएगा. हालांकि अब आगे क्या होगा, इस का फैसला तो वहां की सरकार ही लेगी लेकिन यह तो तय है कि अगर राजधानी बदली तो नुकसान और भी ज्यादा होगा.

जकार्ता में बढ़ रही है भीड़

इंडोनेशिया सरकार को जकार्ता के डूबने का डर है. इसलिए कैपिटल के लिए बोर्नियो द्वीप का चयन किया गया है. रिपोर्ट्स की मानें तो अगले साल तक इस का उद्घाटन किया जाएगा. हालांकि इस को तैयार होने में कम से कम 20 साल का समय लगेगा.

जकार्ता के हालात बहुत बुरे हैं. यहां पर आबादी बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है. यहां की जनसंख्या 1 करोड़ से ज्यादा है. यहां पर ट्रैफिक, प्रदूषण की भी बड़ी समस्या है. जब आबादी बढ़ती है तो प्रकृति के जरिए कुछ न कुछ नुकसान होता ही है.

अब आप को बताते हैं कुछ रिपोर्ट्स के बारे में, जिन को कई शोधों और रिसर्च के बाद तैयार किया गया है.

जलवायु परिवर्तन पर अंतर्देशीय पैनल की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि साल 1990 से 2100 के बीच समुद्री जल का स्तर 9 सैंटीमीटर से 88 सैंटीमीटर के बीच बढ़ सकता है. अब इस में कोई शक नहीं कि इस के पीछे ग्लोबल वार्मिंग है. यानी पूरी दुनिया में धरती का तापमान बढ़ रहा है. इस के पीछे कार्बन डाइऔक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन का बढ़ना है. इस को रोकने को ले कर दुनियाभर में कवायद चल रही है. अगर वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी होगी तो जाहिर सी बात है कि हीटिंग बढ़ेगी. इस से ग्लेशियर पिघलेंगे. समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा और पानी का तापमान भी बढ़ेगा.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक

जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि इस को रोकने के लिए गैसों का उत्सर्जन कम करना होगा. अगर यह इसी स्पीड से जारी रहा तो खतरा बढ़ता जाएगा. नक्शे से न जाने कितने ही देशों के नाम मिट जाएंगे.

जलवायु वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि पिछले 200 सालों में लगभग सभी वैश्विक तापमान के लिए मनुष्य जिम्मेदार हैं. मानवीय गतिविधियां ग्रीनहाउस गैसों का कारण बन रही हैं, जो कम से कम पिछले 2 हजार सालों में किसी भी समय की तुलना में दुनिया को तेजी से गरम कर रही हैं.

ऐसा नहीं है कि वैज्ञानिक प्रयास नहीं कर रहे हैं लेकिन देश में इतने जोरों पर कंस्ट्रक्शन के काम, पहाड़ों को काटना, समुद्रों में कैमिकल का बढ़ना, पेड़ों की कटाई इन सब को रोक पाना इतना आसान नहीं है और इन सब के जिम्मेदार केवल और केवल मनुष्य हैं.

तुम से न हो पाएगा : सफलता के लिए ‘समाज क्या कहेगा’ की न सोचें

रेटिंग : 5 में से 2 स्टार

‘स्टार्टअप’ ट्रैंड की शुरुआत होते ही कई युवाओं ने अलगअलग क्षेत्र में छोटी कंपनी के तहत ‘स्टार्टअप’ बिजनैस की शुरुआत की. इसी दौर में दिल्ली के 2 युवकों प्रशांत टंडन और गौरव अग्रवाल ने हर इनसान के घर तक दवाएं पहुंचाने के स्टार्टअप बिजनैस ‘वन एमजी’ की शुरुआत की, जिस का बाद में ‘टाटा’ ने अधिग्रहण कर लिया और अब इस का नाम ‘टाटा वन एमजी’ हो गया है.

यह कहानी अपने सपनों को पूरा करने की जिद व विजेता बनने की है. इसी तर्ज पर वरुण अग्रवाल और उन के दोस्त रोहण मल्होत्रा ने भी स्टार्टअप कंपनी ‘अमला मैटर’ की शुरुआत की थी जो स्कूलकालेजों में कस्टमाइज कपड़े पहुंचाने का काम करती थी. वरुण अग्रवाल की मां को उन की मां की सहेली और उन के एक दोस्त की मां ने जो कुछ किया और उन की कंपनी के साथ जो कुछ हुआ, उसी पर वरुण अग्रवाल ने ‘आटोबायोग्राफिक’ उपन्यास ‘हाउ आई ब्रेव्ड अनु आंटी एंड कोफाउंडेड ए मिलियन डालर कंपनी’ लिखा, जो वर्ष 2012 में प्रकाशित हुआ था.

इसी किताब को आधार बना कर फिल्मकार अभिषेक सिन्हा फिल्म ‘तुम से न हो पाएगा’ ले कर आए हैं, जो 29 सितंबर से ओटीटी प्लेटफार्म ‘डिज्नी प्लस हौटस्टार’ पर स्ट्रीम हो रही है. पहले इस फिल्म का नाम ‘बस करो आंटी’ था, फिल्म देखने के बाद कहा जा सकता है कि इस कहानी पर ‘बस करो आंटी’ नाम ज्यादा सटीक बैठता है.

फिल्म युवा पीढ़ी के असमंजस, दुविधा, संघर्ष के साथ ही समाज के ‘लोग क्या कहेंगे’ के कारण बढ़ने वाले संघर्ष का सजीव चित्रण करती है. इस में कारपोरेट नौकरी की कठिनाइयों, अपने बचपन के प्यार का पीछा करने से ले कर अपना खुद का कुछ शुरू करने के सपनों की दास्तां है.

फिल्म की कहानी शुरू होती है एक कंपनी में नौकरी कर रहे गौरव से. वास्तव में गौरव (इश्वाक सिंह), अर्जुन (करण जोतवानी ), देविका (महिमा मकवाना), माल ( गौरव पांडे ) और वाघेला (गुरप्रीत सालिनी) स्कूल व कालेज में एकसाथ पढ़ते थे. धनी परिवार के अर्जुन की मां और गौरव की मां सहेली हैं. अनु गौरव की मां (अमला अक्किनेनी) के सामने शेखी बघारती है और गौरव को एक महत्वाकांक्षी हारे हुए व्यक्ति के रूप में बदनाम करती रहती हैं.

खैर, गौरव अपनी नौकरी से तंग आ गया है. वह कारपोरेट की नौकरी से निकल कर अपनी जिंदगी में कुछ पाना चाहता है.

एक दिन वाशरूम में गौरव अपने दोस्त से सच बयां करता है, जिसे उस का बौस सुन लेता है और उसे नौकरी से बाहर कर दिया जाता है. दूसरी नौकरी मिल नहीं रही है. तभी उस के दिमाग में आता है कि यदि नौकरीपेशा कुंआरे युवाओं तक मां के हाथ का बना भोजन पहुंचाया जाए तो कैसा होगा.

उस की इस सोच को अर्जुन को डेट कर रही व गौरव की दोस्त देविका का समर्थन मिलता है. मिलनसार चाय विक्रेता (ओमकार दास मानिकपुरी) भी मुफ्त पेय पदार्थ और 5 लाख रुपए प्रदान करता है. इस काम को 5 अलगअलग महिलाओं से संपर्क कर उन से खाना बनवा कर भेजना शुरू करता है. वह अपने साथ अपने दोस्त मल को भी जोड़ता है और अपनी स्टार्टअप कंपनी का नाम ‘मास किचन’ रख देता है.

होटल का खाना खाते हुए ऊब चुका हर युवक गौरव की कंपनी से खाने का डब्बा मंगवाने लगता है. पहले गौरव बिना शर्म किए खुद खाने के डब्बे पहुंचाता है. इस पर अर्जुन की मां गौरव की मां को ताने सुनाती है, पर गौरव अपना काम बंद नहीं करता. अब वह छोटी वैन खरीद कर ड्राइवर रख कर यह काम शुरू करता है.

एक दिन वह आता है, जब वह अपने इस व्यापार को पूरी मुंबई में फैलाने के लिए एक इंवैस्टर (परमीत सेठी) को जोड़ता है. एप पर खाने के डब्बे की बुकिंग होने लगती है. इंवैस्टर की सलाह पर गौरव सभी औरतों को हटा कर एक बड़े किचन में पेशेवर सेफ रख कर उन से खाना बनवाने लगता है. धीरेधीरे हर युवक को लगता है कि उन के खाने के डब्बे में मां के हाथ के भोजन का स्वाद नहीं रहा और वह गौरव की कंपनी से खाने का डब्बा मंगवाना बंद करने लगते हैं.

कंपनी की हालत खराब होने लगती है. तब गौरव को अपनी गलती का अहसास होता है. वह पेशेवर किचन को बंद कर पुराना रास्ता अपनाता है. यह बात इंवैस्टर को पसंद नहीं आती और इंवैस्टर ऐसी चाल चलता है कि उस की कंपनी बंद हो जाती है और गौरव व उस के दोस्त मल को पुलिस पकड़ लेती है. तब अर्जुन उस की कंपनी को 30 करोड़ रुपए में टेकओवर करने का प्रस्ताव रखता है, जिसे गौरव नहीं मानता.

दूसरे दिन जमानत पर दोनों रिहा हो जाते हैं. उस के बाद नए इंवैस्टर की तलाश में गौरव भटकना शुरू करता है, पर बात नहीं बनती. उधर अर्जुन की मां गौरव की मां के पास आ कर बकवास करती रहती हैं. अंततः एक दिन गौरव की मां नौकरी छोड़ कर अपने फंड व ग्रैच्युटी की रकम गौरव को ला कर देते हुए कंपनी को शुरू करने के लिए कहती हैं.

गौरव पुनः उन्ही औरतों को अपने साथ जोड़ता है. कंपनी फिर से राह पकड़ लेती है और इस बार गौरव अपनी शर्तों के आधार पर इंवैस्टर को जोड़ता है, तो वहीं देविका अर्जुन को हमेशा के लिए अलविदा कह कर गौरव के साथ विवाह करने को तैयार हो जाती है.

एक चुस्त व मनोरंजक पटकथा शुरू से अंत तक दर्शकों को बांध कर रखती है. कहीं भी उपदेशात्मक भाषणबाजी नहीं है. हर दर्शक इस फिल्म के दृश्यों व कहानी के साथ रिलेट भी करता है. फिल्म का संवाद ‘तुम तय करोगे कि तुम फेल हुए हो या पास’ जरूर युवा पीढ़ी को एक सार्थक संदेश दे जाता है.

फिल्म यह भी संदेश देती है कि आप अपने जीवन के सपनों को पूरा करने के लिए कब तक समाज के दबाव में फंसे रहेंगे? गौरव भी अनु आंटी के दबाव में रहता है और उसे घुटन महसूस होती है.

गौरव की खासियत यह है कि वह उन लोगों के आगे झुकता नहीं है, जो उसे लगातार नीचा दिखा रहे हैं. वह हर किसी के साथ खड़ा होता है और असफलताओं का स्वाद चखने के बाद, निश्चित रूप से एक सफल उद्यमी बन जाता है.

फिल्म इस बात को जोरदार तरीके से कहती है कि हर युवा को अपने सपनों का पीछा करना चाहिए और उस के सपने जरूर पूरे होंगे. मगर फिल्म की कहानी उद्यमशीलता की भावना और यात्रा की नकारात्मकताओं की बात करने के बजाय महज सकारात्मकताओं की ही बात करती है. यह अखरता है.

इतना ही नहीं, इस फिल्म की कहानी को कहने के लिए कई जगह वौइस ओवर का सहारा लिया गया है. ऐसा फिल्मकार तभी करता है, जब उस के क्राफ्ट में कमी हो. यही निर्देशक की कमजोर कड़ी है.

इंटरवल तक फिल्म ‘स्टार्टअप’ बिजनैस को ले कर सही चलती है, मगर इंटरवल के बाद लेखक व निर्देशक भटक जाते हैं.
इतना ही नहीं, लेखक व निर्देशक ने जिस तरह स्टार्टअप के व्यापार में गौरव को सफलता दिलाता है, वह गले नहीं उतरता क्योंकि हर नए काम को शुरू करते समय कई तरह की समस्याएं आती हैं, मध्यमवर्गीय युवा पीढ़ी को रातोंरात सफलता नहीं मिलती.

इसी तरह मां के हाथ के बने भोजन के बजाय जैसे ही किचन खोल कर पेशेवर शैफ रखे जाते हैं, वैसे ही गौरव की कंपनी पर पहाड़ टूट पड़ता है. इसे भी सही अंदाज में नहीं फिल्माया गया.

मल के किरदार को गलत ढंग से दिखाया गया है, जो युवक (माल) नौकरी छोड़ कर अपने दोस्त (गौरव) के व्यापार के साथ भागीदार के तौर पर जुड़ा हो, वह मुसीबत आने पर तुरंत उस का साथ छोड़ दे, ऐसा अमूमन होता नहीं है.

कारपोरेट की नौकरी की कठिनाइयों से खुद को मुक्त कर अपने सपनों को पूरा करने और अपने प्यार को पाने के लिए संघर्षरत गौरव के किरदार को इश्वाक सिंह ने अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है.

देविका के किरदार में महिमा मकवाना के हिस्से में महज सुंदर दिखना ही आया है. अर्जुन के किरदार में करण जोतवानी निराश करते हैं.

अमीरी की जड़ : पिता की बुद्धि, गरीबी की जड़ : पिता की बेवकूफी

अमीरीगरीबी हमारे पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार पिछले जन्मों का परिणाम है पर असलियत यह है कि बहुत कम मारवाड़ी या गुजराती बिलकुल फटेहाल मिलेंगे और बहुत कम ब्राह्मण अरबोंखरबों से खेल रहे होंगे. अमेरिका के लेखक रौबर्ट कियोस्की की किताब ‘रिच डैड पूअर डैड’ की टैग लाइन ही है, ‘ऐसा क्या है जो अमीर बाप अपने बच्चों को पैसे के बारे में सिखाते हैं और गरीब बाप नहीं.’

उदाहरण के लिए एक गरीब का बेटा अपने घर में एअरकंडीशनर के लिए मांग करता है. गरीब बाप तुरंत उत्तर देगा, ‘‘मेरे पास इतना पैसा नहीं है, यह हमारी हैसियत नहीं है.’’

अमीर बाप का बेटा एक एअरकंडीशंड बड़ी कार की मांग करता है पर अमीर बाप के पास बेटे को एअरकंडीशंड कार के पैसे नहीं हैं पर वह कहेगा, ‘‘सोचो, हम कैसे एअरकंडीशंड बड़ी कार खरीद सकते हैं.’’

पहले मामले में बेटे का दिमाग काम करना बंद कर देगा. एअरकंडीशनर तो खरीदा ही नहीं जा सकता. दूसरे का बेटा उपाय ढूंढ़ना शुरू करेगा कि कैसे वह भी पैसा लगाए ताकि एअरकंडीशंड बड़ी कार खरीद सके.

पहले की इच्छा कभी पूरी नहीं होगी पर दूसरा कहीं पैसा बचाएगा, कहीं काम कर के अतिरिक्त पैसे जोड़ेगा, स्कौलरशिप पर पढ़ने की कोशिश करेगा.

अमीर बापों का कहना कि टैक्स असल में समाज का अमीरों पर सजा है कि उन्होंने इतना क्यों कमाया, इसलिए वे इतना कमाते हैं कि टैक्स देने के बाद भी शान से रह सकें.

गरीब बाप का कहना होता है कि अमीर उन से पैसे छीन लेते हैं और सरकार उन से कुछ हिस्सा टैक्स में ले कर गरीबों में फिर सुविधाओं के रूप में बांट देती है. गरीब बाप अब सरकार (भारत में मंदिर पर) निर्भर हो जाता है और जितना काम करता है, उसे काफी सम   झता है और अपने बेटे को हमेशा गरीबी में पालता है.

अमीर बाप अकसर कहते हैं कि तुम अच्छा पढ़ो ताकि इतनी अक्ल हो कि बिजनैस शुरू कर सको. गरीब बाप कहता है कि अच्छा पढ़ो ताकि किसी कंपनी में लगीबंधी नौकरी मिल सके.

पहले को अगर किसी वजह से बाहर नौकरी करनी होती है तो वह उसे ट्रेनिंग सम   झता है, दूसरा नौकरी मिल जाने को अंतिम पढ़ाई मानता है. पहला ट्रेनिंग खत्म कर के सालदरसाल मेहनत कर के अपना व्यवसाय खड़ा करता है, दूसरा लगेबंधे वेतन में छोटे मकान में रह कर सरकार और समाज को कोसता रहता है.

मुसीबत आने पर गरीब बाप साहूकारों, मंदिरों, सरकारों, मुफ्त खाने या इलाज के रास्ते ढूंढ़ता है, अमीर बाप किसी भी तरह की आर्थिक समस्या आने पर समस्या से उबरने के लिए हाथपैर मारता है. वह लाइफगार्ड का इंतजार नहीं करता, मुसीबत उसे मजबूत बनाती है.

अमीर बाप अकसर चुस्त रहते हैं, अपनी सेहत का खयाल रखते हैं. अच्छे व महंगे रैस्तराओं में खाते हैं पर हिसाब से. गरीब बाप लंगरों की खोज में रहता है और टीवी पर बकवास का मजा लेता है. अमीर बाप टीवी पर वे फिल्में देखता है जिन में संघर्ष दिखाया गया हो, गरीब बाप ऐसी फिल्में देखता है जिन में चमत्कार दिखाए जाते हैं.

सलीम जावेद की फिल्म ‘शोले’ में जय और वीरू दोनों सिर्फ 2 होते हुए भी गब्बर सिंह के गैंग का मुकाबला करने को तैयार हो जाते हैं क्योंकि उन्हें अपनेआप पर भरोसा है. फिल्म उन दोनों की हिम्मत की कहानी है जिस में कोई चमत्कार नहीं होता, कहीं से देवीदेवता प्रकट हो कर गब्बर सिंह को नहीं मारते. सैंकड़ों फिल्में बनी हैं, कुछ सफल भी हुई हैं, जिन में नायक या नायिका पर किसी देवीदेवता या पुलिस की कृपा हो जाती है. फिल्म ‘शोले’ न जाने क्यों इस से बचा है. यह फिल्म की सफलता का कारण है या नहीं पर कम से कम फिल्म का संदेश तो है.

समाज असलियत में जानबू   झ कर गरीबों का सांत्वना देने की साजिश में उन्हें आलसी और निकम्मा बनाता है ताकि वे पीढ़ी दर पीढ़ी उसी भरोसे में रहें कि हम गरीब हैं तो यह हमारा दोष नहीं है. गरीबों के दोस्त, रिश्तेदार एक ही भाषा बोलते हैं. उन्हें सब से बड़े और प्रभावशाली सलाहकार, धर्म के दुकानदार हमेशा यही कहते रहते हैं कि ऊपर वाले पर भरोसा करो, दिन अवश्य फिरेंगे, यही ज्ञान गरीब बाप अपने बेटे को देता है.

अमीर बाप को यह सलाह पसंद नहीं आती. वह धर्म के पाखंड को ऊपरी तौर पर मानता है, चर्च, मसजिद, मंदिर जाता है पर उस की निगाहें इस ओर लगी रहती हैं कि कैसे पैसे कमाया जाए न कि कैसे पैसे को अपनेआप पाया जाए. शायद वह इसलिए भी धर्म की दुकान की पूरी आर्थिक सहायता करता है क्योंकि वह गरीब खुद भी उस का कर्मचारी भी है, ग्राहक भी जिस से अमीर को फायदा होता है. वह अपनी संतानों में धर्म में अंधविश्वास करना नहीं सिखाता. उसे सदियों से बताया गया है कि अमीर बने रहना है तो ज्यादा जनता का गरीब बने रहना जरूरी है. वह अपने बेटों को स्विट्जरलैंड स्कीइंग के लिए भेजता है जिस में टांग टूटने का डर भी रहता है, सिर्फ तिरुपति नहीं, जहां वह सामाजिक रस्म निभाने जाता है और यही बेटे को कराता है.

गरीबी और अमीरी अगर पीढ़ी दर पीढ़ी दर चल रही है तो पिताओं के कारण, जो गलत व सही उदाहरण पेश करते हैं. एक अपने बेटे को बचपन से पैसे का सदुपयोग सिखाता है, दूसरा, पैसों के अभाव में जीना सीखता है. एक पैसा कमाने की प्रेरणा देता है, दूसरा कम में संतोष करना सिखाता है.

हमारे यहां जाति व्यवस्था है पर लाखों गरीब ब्राह्मण मिल जाएंगे. लाखों गरीब श्रत्रिय मिल जाएंगे. लाखों गरीब वैश्य मिल जाएंगे पर हर गरीब वैश्य पिता की शिक्षा के कारण कुछ नया कर के पैसा कमाना चाहता है. गरीब ऊंची जातियों के लोगों की सोच में जन्म से पाई गरीबों की भाषा घुस जाती है और वे पीढ़ी दर पीढ़ी वहीं के वहीं रहते हैं.

एलोन मस्क आज अमीर हैं तो इसलिए कि उस ने उस काम को किया जो दूसरे सिर्फ सोच रहे थे. मार्क जुकरबर्ग कुछ लिखे बिना लेखकों का मालिक बन बैठा. यह उन की उस शक्ति का परिणाम है जो उन के पिताओं ने दी. दोष भाग्य, देश के कानून, समाज की व्यवस्था में भी है पर मुख्य बात पिता की सही शिक्षा है जो अमीरों के बच्चों को पहले से ही रेस में आगे कर देती. यह उन के पिता की संपत्ति का कमाल नहीं है, यह उन के पिता की शिक्षा है जो चाहे उस ने शब्दों में दी या उदाहरणों में, पर कमाल करती है.

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