बौलीवुड की कार्यप्रणाली बहुत ही अजीबोगरीब है. यहां पर 8-10 साल काम करने के बाद कुछ भी सहज नहीं होता है, बल्कि कठिनाइयां बढ़ती ही हैं. ऐसा मानना है बौलीवुड अभिनेता अभय देओल का. फिल्म ‘सोचा न था’ से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले अभय हाल ही में प्रदर्शित फिल्म ‘रांझणा’ में वाम विचारधारा वाले नेता के रूप में नजर आए. पेश है शांतिस्वरूप त्रिपाठी से हुई उन की बातचीत के खास अंश.

फिल्म ‘रांझणा’ में आप जेएनयू नेता के किरदार में नजर आए. निजी जीवन में आप इस किरदार के साथ कितना रिलेट करते हैं?

मैं भी थोड़ा वाम विचारधारा का हूं. मैं बीच का रास्ता ले कर चलता हूं, थोड़ा सा आशावादी भी हूं. मेरा मानना है कि पैसे से ही गरीबी आती है. पैसा ही रचनात्मकता को खत्म करता है और पैसा आने से इंसानियत भी मर जाती है.

लेकिन आप को नहीं लगता कि वर्तमान में पूरे विश्व से वाम विचारधारा खत्म होती जा रही है?

मैं न वामपंथी हूं और न ही सामान्य विचारधारा का हूं, बल्कि बीच में हूं. मेरा मानना है कि हमेशा बीच का रास्ता अपनाना चाहिए. देखिए, पूरे विश्व में न तो साम्यवाद चला है और न ही पूंजीवाद. मेरे खयाल से दोनों असफल हैं.

आप अपने 8 साल के कैरियर में खुद को कहां पाते हैं?

यह तो मुझे नहीं पता. लेकिन इन 8 वर्षों में मैं ने बहुतकुछ सीखा है. जो चाहा, वह किया. मैं ने दिमाग के बजाय दिल से सोच कर काम किया. कई बार सफल भी हुआ, कई बार असफल भी. फिल्म इंडस्ट्री बहुत अजीबोगरीब तरीके से काम करती है. यहां बहुत छोटे विचारों वाले लोग हैं. यहां खुले दिमाग नहीं, बल्कि बंद दिमाग के लोग हैं. इसलिए इस माहौल में काम करना बहुत कठिन होता है.

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