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पुलिस अफसर की हत्या

उत्तर प्रदेश में एक पुलिस अफसर की हत्या ने अखिलेश यादव की सरकार को सकते में डाल दिया है. यह हत्या प्रतापगढ़ जिले में एक भूमि विवाद पर हुई. चूंकि हत्या के पीछे वहां के विधायक और मंत्री रघुराज प्रताप सिंह जिसे राजा भैया के नाम से ज्यादा जाना जाता है, का हाथ बताया जाता है, इसलिए मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी किसी भी तरह इस मंत्री को बचाना चाहती है. फिलहाल, उन से त्यागपत्र ले कर और मामले को केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप कर आग बुझाने की कोशिश की गई है.

मामला उत्तर प्रदेश की बिगड़ती कानून व्यवस्था का ज्यादा है. अखिलेश यादव पर आरोप है कि वे अपने अफसरों को काबू में नहीं कर पा रहे हैं और पिता व चाचाओं के कारण सत्ता के केंद्र कई हो गए हैं जिन में अखिलेश बौने रह गए हैं. उत्तर प्रदेश की ढीलीढाली सरकार के लिए किसी को तो दोषी ठहराना ही होगा, इसलिए अखिलेश यादव की अनुभवहीनता को कोसा जा रहा है.

उत्तर प्रदेश असल में अभी भी सदियों की मानसिक गुलामी, निकम्मेपन, अंधविश्वासों, बेईमानी, गुंडागीरी के जंजाल से नहीं निकल पाया है. जहां हर कोई मुफ्त की खाना चाहता हो वहां विकास नाम की चिडि़या को कोई पर कैसे मारने दे सकता है.

उत्तर प्रदेश चाहे कल्याण सिंह के हाथों में रहा या मुलायम सिंह या मायावती के, सदा ही लखनऊ से चमत्कारों की अपेक्षा करता रहा. उत्तर प्रदेश अभी भी सदियों पुरानी खेती के अलावा कुछ भी नया करना नहीं सीख पाया है. यहां न उद्योग लग रहे हैं न अब नहरें या बांध बन रहे हैं. बिजली की हालत बुरी है क्योंकि यहां इंजीनियर न उत्पादन जानतेसमझते हैं, न वितरण. उत्तर प्रदेश की पुलिस भी सदियों पुरानी है बल्कि कहिए कि आज तो पहले से भी ज्यादा बदतर है और उस में अब रिश्वतखोरी व निकम्मेपन की दीमक भी लग गई है. तभी लोगों में ऐसी हिम्मत आ गई कि सरेआम पुलिस अफसर की हत्या कर डाली गई.

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य, जिस का केंद्र की राजनीति पर हमेशा दबदबा रहा है और जो दिल्ली के सब से निकट है, की लगातार हो रही दुर्दशा यह साफ करती है कि वहां अभी कुछ नहीं होने वाला.

 

नया सीरियल किसर

अब तक ‘सीरियल किसर’ के रूप में केवल अभिनेता इमरान हाशमी ही जाने जाते थे पर अब लगता है कि अभिनेता नील नितिन मुकेश इमरान के किसिंग रिकौर्ड को तोड़ने वाले हैं. नील ने ‘उ जी’ में अभिनेत्री सोनल चौहान को 32 बार ‘किस’ किया है. इतना ही नहीं, वे अगली फिल्म ‘शौर्टकट रोमियो’ में?अभिनेत्री अमीषा पटेल को भी ‘किस’ करते हुए दिखेंगे. नील, संभल जाइए, फिल्में कहानी, अभिनय और अच्छे निर्देशन से हिट होती हैं, किसिंग सीन से नहीं.

बदल गई वधू

टैलीविजन सीरियल ‘बालिका वधू’ की आनंदी यानी प्रत्यूषा बनर्जी ने इस शो से विदा ले ली. 3 साल तक इस सीरियल में काम करने के बाद जमशेदपुर की प्रत्यूषा अब कुछ दिन अपनी मां की सेवा करना चाहती हैं. हाल ही में उन की मां की आंखों का औपरेशन हुआ है. हालांकि अंदरूनी खबर यह है कि पिछले कुछ महीनों से प्रोडक्शन हाउस और चैनल वाले उन के बरताव से नाखुश थे जबकि प्रत्यूषा का कहना है कि शेड्यूल हैक्टिक होने की वजह से वे समय नहीं निकाल पा रही थीं. फिलहाल, उन की जगह अभिनेत्री तोरल रासपुत्र ने ली है.

 

आइटम गर्ल मुग्धा

मुग्धा गोडसे फिल्म ‘साहब बीवी और गैंगस्टर रिटर्न’ में काफी दिनों बाद आइटम नंबर करती नजर आईं. गीत के बोल भी काफी दिलचस्प हैं. ‘मीडिया से कह दूं क्या…’ भोजपुरिया रंग में रंगी मुग्धा पर फिल्माया गया यह आइटम नंबर काफी सुर्खियों में है. तिग्मांशु धूलिया निर्देशित इस फिल्म में वैसे तो माही गिल और सोहा अली खान मुख्य भूमिकाओं में हैं पर मुग्धा को यह गाना खासा पसंद है क्योंकि यह भले ही एक गाना हो पर यह पूरी फिल्म की कहानी को बयान करता है. उम्मीद करते हैं कि मुग्धा का आइटम उन के डूबते कैरियर को कोई सहारा देगा.

 

मुंबई मिरर

जब भी आप ‘मुंबई मिरर’ जैसी फिल्म देखेंगे उस में आप को मुंबई की वही तसवीर दिखाई देगी जो अब तक आप सैकड़ों बार देख चुके हैं. एक हीरो टाइप इंस्पैक्टर होगा, एक ड्रग बेचने वाला माफिया होगा. भ्रष्ट पुलिस अफसर होगा जो माफिया से मिला होगा, गोलियां चलती दिखाई देंगी. रेप, मारधाड़ सबकुछ होगा. इस फिल्म में यही सबकुछ घिसापिटा है. इसीलिए इसे न ही देखें तो अच्छा है.

कहानी एक पुलिस इंस्पैक्टर अभिजीत पाटिल (सचिन जोशी) और एक ड्रग माफिया शेट्टी (प्रकाश राज) के टकराव की है. बारबार दोनों आपस में टकराते हैं. फिल्म की यह कहानी घिसीपिटी है. पटकथा भी कमजोर है. फिल्म की सब से बड़ी कमजोरी नायक सचिन जोशी है. उस ने फिल्म ‘सिंघम’ के अजय देवगन की नकल करने की असफल कोशिश  की है. खलनायक प्रकाश राज ने सिवा अपनी आंखों की पुतलियां फैलाने के कुछ भी नहीं किया है. फिल्म का निर्देशन बेकार है. ‘जो उखाड़ना है उखाड़ लेना’, ‘कौन किस की बैंड बजाता है’ इस तरह के संवाद वाहियात नहीं तो और क्या हैं. फिल्म में 2-2 आइटम सौंग हैं जो उत्तेजक हैं. महेश मांजरेकर और आदित्य पंचोली जैसे पुराने कलाकारों से?भी निर्देशक बढि़या काम नहीं ले सका है. फिल्म का गीतसंगीत बेकार है. छायांकन ठीकठाक है.

मर्डर-3

यह फिल्म मर्डर सीरीज की पिछली 2 फिल्मों का सीक्वल जरूर है परंतु पिछली फिल्मों से इस का कुछ लेनादेना नहीं है. कहानी एकदम अलग है. पिछली 2 फिल्मों जैसा न तो इस का संगीत है, न ही अभिनय पक्ष जानदार है.

इस फिल्म में मुकेश भट्ट ने विदेश से फिल्म मेकिंग की तालीम ले कर लौटे अपने बेटे विशेष भट्ट को बतौर डायरैक्टर लौंच किया है. लेकिन उस ने इस फिल्म में कुछ नया कर के नहीं दिखाया है. ‘मर्डर-3’ स्पैनिश फिल्म ‘दि हिडन फेस’ पर आधारित है. बाकायदा इस फिल्म के अधिकार ले कर इसे बनाया गया है.

कहानी वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर विक्रम (रणदीप हुड्डा) और उस की प्रेमिका रोशनी (अदिति राव हैदरी) की है. रोशनी पेशे से आर्किटैक्ट है. दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. एक दिन विक्रम को मुंबई में एक नामी ऐड एजेंसी के साथ काम करने का औफर मिलता है. वह रोशनी के साथ मुंबई आता है और शहर से दूर सुनसान इलाके में एक बंगला खरीदता है. एक दिन अचानक एक वीडियो मैसेज छोड़ कर रोशनी गायब हो जाती है. दरअसल, वह घर में ही बने एक गुप्त कमरे में खुद को बंद कर लेती है जहां अंदर से तो वह घर में हो रही हर गतिविधि को देख सकती है परंतु उसे कोई नहीं देख सकता. उस गुप्त कमरे में जाते वक्त उस के बैग से उस कमरे की चाबी बाहर कहीं गिर जाती है. वह वहां कैद हो कर रह जाती है. पुलिस तहकीकात करती है परंतु रोशनी नहीं मिलती.

एक दिन विक्रम की मुलाकात निशा (सारा लारेन) नाम की खूबसूरत युवती से होती है. दोनों में प्यार हो जाता है. विक्रम उसे अपने घर ले आता है. घर में आते ही निशा को कुछ अजीब सी आवाजें सुनाई पड़ती हैं. कुछ दिनों बाद उसे एहसास होता है कि रोशनी घर में ही कहीं कैद है. वह गुप्त कमरे की चाबी ढूंढ़ती है और कमरे को खोलती है जहां रोशनी आंखें बंद किए लेटी है. अचानक रोशनी निशा को थप्पड़ मार कर कमरे से बाहर निकल जाती है और उसे वहीं मरने के लिए छोड़ कमरा बंद कर चली जाती है. वह विक्रम से नाता तोड़ लेती है. अब पुलिस को तलाश है निशा की.

फिल्म का क्लाइमैक्स जल्दबाजी में किया गया है, जो दर्शकों की समझ से परे है. रणदीप हुड्डा के अभिनय में पहले की अपेक्षा कोई सुधार नहीं हुआ है. पाकिस्तानी कलाकार सारा लारेन खूबसूरत लगी है परंतु उस की डायलौग डिलिवरी अच्छी नहीं है. अदिति राव हैदरी ने अच्छा काम किया है.

फिल्म के गीत याद रखने लायक नहीं हैं. छायांकन खूबसूरत है. केपटाउन की खूबसूरत लोकेशनों पर शूटिंग की गई है.

जिला गाजियाबाद

गैंगवार वाली इस फिल्म में कुछ नया ढूंढ़ने की कोशिश न करें. फिल्म 80 के दशक में उत्तर प्रदेश में आतंक फैलाने वाले महेंद्र फौजी और सतबीर गुर्जर पर आधारित है. फिल्म में कहींकहीं गालियां भी हैं.

फिल्म की कहानी एकदम मुंबइया स्टाइल की है. बाहुबलि राशिद खान (रवि किशन) और चेयरमैन (परेश रावल) के बीच गांव के एक प्लौट को ले कर टकराव है. सतबीर उर्फ मास्टरजी (विवेक ओबराय) गांव में टीचर है. चेयरमैन की बेटी सुमन (चार्मी कौर) मन ही मन उसे चाहती है. फौजी (अरशद वारसी) नामी गुंडा है. उस का अपना गिरोह है, जो फिरौती के लिए वसूली करता है. सतबीर के यह सिद्ध करने पर कि प्लौट चेयरमैन का ही है, पंचायत चेयरमैन के पक्ष में अपना फैसला सुनाती है. राशिद फौजी को मोटी रकम दे कर अपने साथ मिला लेता है. फिर एक षड्यंत्र के तहत वह फौजी के घर पर हमला कराता है. फौजी सतबीर पर शक करता है. वह सतबीर के भाई कर्मवीर (चंद्रचूड़ सिंह) की हत्या कर देता है. यहीं से सतबीर और फौजी के बीच गैंगवार शुरू होती है, जिस की चपेट में पूरा गाजियाबाद जिला आ जाता है. चेयरमैन को फौजी मार डालता है. फौजी की बेटी सुमन सतबीर से शादी कर लेती है. बाद में फौजी सुमन को भी मार डालता है. इस गैंगवार को खत्म करने के लिए इंस्पैक्टर प्रीतम सिंह (संजय दत्त) को बुलाया जाता है जो अपनी शतरंजी चाल से राशिद और फौजी को मार डालता है और सतबीर को कानून के हवाले करता है.

फिल्म की गति तेज है. निर्देशक ने गैंगवार को खुल कर दिखाया है. अरशद वारसी ने बहुत अच्छा काम किया है. संजय दत्त पर सलमान खान की दबंगई का असर साफ नजर आया. दोनों हीरोइनें सिर्फ शोपीस बनी रहीं. फिल्म का गीतसंगीत पक्ष अच्छा है. लेकिन निर्देशक ने जल्दबाजी में गंदे, उजाड़ से गाजियाबाद में हरेभरे पहाड़, बड़े तालाब और झीलें तक दिखा डाली हैं. बौलीवुड में ऐसा ही होता है.

 

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