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क्यों घर से भाग कर पछताती नहीं ये लड़कियां

लड़कियों, खासतौर से नाबालिगों, का घर से भागना हमेशा से ही बड़ी परेशानी रही है. लड़कियां आखिर क्यों घर से भागने पर मजबूर हो जाती हैं. इस के पीछे जो वजहें जिम्मेदार मानी जाती रहीं हैं उन में खास हैं गरीबी, अशिक्षा, घरेलू कलह, घर में बुनियादी सहूलियतों का न होना, घर में प्यार की जगह नफरत और अनदेखी किया जाने और रातोंरात हेमा मालिनी व माधुरी दीक्षित बन जाने की उन की अपनी ख्वाहिश. लेकिन अब यह पूरा सच नहीं रहा है, कुछ बदलाव इस में आ रहे हैं.

इंडियन इंस्टिट्यूट औफ मैनेजमैंट यानी आईआईएम इंदौर की एक ताजी रिपोर्ट की मानें तो आजकल घर से भागने वाली अधिकतर लड़कियां बाहरी चकाचौंध की गिरफ्त में आ कर नहीं भाग रही हैं और न ही उन के सिर पर अब फिल्म ऐक्ट्रैस बनने का भूत सवार रहता है. हां, यह जरूर है कि उन के घर से भागने की अहम वजहें घर में होने वाली रोकटोक, झगड़े और दीगर परेशानियां हैं. ज्यादातर लड़कियां अब अपना कैरियर बनाने के लिए भाग जाती हैं क्योंकि घर पर रहते हुए उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय नजर आता है.

इस रिपोर्ट, जिस में 5 साल के आंकड़े शामिल हैं, के मुताबिक गुमशुदगी वाले बच्चों में 13 से 17 साल की लड़कियां ज्यादा होती हैं. आईआईएम इंदौर ने पुलिस के सहयोग से उन इलाकों में जांचपड़ताल यानी रिसर्च की जहां से बच्चे ज्यादा गायब होते हैं. ये वे इलाके हैं जहां शहरी लोग भी रहते हैं और स्लम यानी कि झुग्गियां भी हैं.

हैरानी वाली एक बात यह उजागर हुई कि गुम होने वाले बच्चों में 75 फीसदी लड़कियां होती हैं. रिसर्च के दौरान 75 ऐसे मामलों पर काम किया गया तो यह खुलासा भी हुआ कि कम उम्र की लड़कियां जिन लड़कों के साथ भागीं उन में अधिकतर की उम्र 18 से 23 साल है और वे लड़कियों के जानपहचान वाले पड़ोसी या रिश्तेदार हैं.

आईआईएम की टीम ने जब इन लड़केलड़कियों से बात की तो दिलचस्प बात यह भी सामने आई कि कोई 50 फीसदी लड़कियां वापस घर नहीं लौटना चाहतीं और घर से भागने के अपने फैसले को भी वे गलत नहीं मानतीं. जाहिर है, उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है और वे अपनी मौजूदा जिंदगी और हालात से खुश हैं.

स्लम इलाकों की तंग जिंदगी कभी किसी सुबूत की मुहताज नहीं रही. जहां लड़कियों के हिस्से में डांटफटकार और शोषण ही आते हैं. जैसे ही इन लड़कियों को यह एहसास होता है कि भेदभाव करने वाले मांबाप उन्हें बोझ समझते हैं तो वे बगावत करने पर उतारू हो आती हैं. एक बेहतर कल की उम्मीद उन्हें बाहर दिखती है तो ये उम्र में अपने से थोड़े बड़े लड़के का हाथ थाम घुटनभरी जिंदगी से नजात पाने को घर छोड़ जाती हैं.

इन लड़कियों को यह भी समझ आ जाता है कि उन के भाग जाने से कोई पहाड़ मांबाप पर नहीं टूट पड़ना है. हां, इस बात का अफसोस जरूर उन्हें होगा कि मुफ्त की नौकरानी हाथ से छूट गई जो नल से पानी भर कर लाती थी, खाना बनाती थी, झाड़ूबुहारी करती थी, कपड़े भी धोती थी और इस से ज्यादा अहम यह कि गुस्सा उतारने के काम भी आती थी जिसे कभी भी डांटापीटा जा सकता था.

शायद बाहर कुछ अच्छा हो या मिल जाए, यह आस लिए वे गुलामीभरी जिंदगी को ठोकर मार भाग जाती हैं. यह भी वे सोच चुकी होती हैं कि भाग कर भी अगर यही नरक मिला तो उसे भी भुगत लेंगे. लेकिन एक उम्मीद तो है कि शायद तनहाई में देखे गए वे सपने पूरे हो जाएं कि मेरा भी अपना अलग एक वजूद है, सांस लेने को खुली हवा है और प्यार करने वाला जानू साथ है जो मेरे लिए मेरी ही तरह अपना घरद्वार छोड़ने को तैयार है.

जरूरी नहीं कि ऐसा हो ही. कई बार उन का पाला एक और बड़े नर्क से भी पड़ता है जिस की दुश्वारियों को इन लड़कियों ने फिल्मों और वीडियोज में देखा होता है. फिर भी वे रिस्क उठाती हैं क्योंकि उन्हें फौरी तौर पर घुटनभरी जिंदगी से छुटकारा चाहिए रहता है. आईएमएम इंदौर की रिसर्च बताती है कि आधी लड़कियों के सपने पूरे हो जाते हैं. बची आधियों में जरूरी नहीं कि उन के हिस्से में बदतर जिंदगी ही आती होगी. हां, उन में से कुछ जरूर गलत हाथों में पड़ कर एक ऐसी जिंदगी जीने को मजबूर हो जाती हैं जिस में रोजरोज मरना पड़ता है. ये वे लड़कियां होती हैं जो ट्रैफिकिंग यानी तस्करी का शिकार हो जाती हैं.

इन की चिंता कितनों को है और इन की बाबत क्याकुछ किया जाता है, इस का कोई रिकौर्ड किसी के पास नहीं. अलबत्ता कई खबरें जरूर आएदिन मीडिया की सुर्खियां बनती हैं कि देहव्यापार के दलदल में फंसी इतनी या उतनी लड़कियों को छुड़ाया गया. इस के बाद क्या होता है, यह कोई नहीं जानता. घरवापसी के इन के रास्ते बंद हो चुके होते हैं, लिहाजा, ये यहां से वहां भटकती रहती हैं. चंद लड़कियों को कोई एनजीओ सहारा और रोजगार दे देता है पर तब तक इन लड़कियों के सपने और हालात से लड़ने की हिम्मत दोनों पूरी तरह टूट चुके होते हैं.

और जिन के सपने पूरे हो जाते हैं उन्हें मानो दोनों जहां मिल जाते हैं. जाहिर है, ये लड़कियां प्लान बना कर और सोचसमझ कर घर छोड़ती हैं. उन के सपने भी बहुत छोटे होते हैं कि बस एक घरगृहस्थी हो, साथ रहते प्यार करने वाला और खयाल रखने वाला पार्टनर हो. पैसा तो ये छोटेबड़े काम कर कमा ही लेती हैं. कम पढ़ीलिखी ये लड़कियां अपने भले को ले कर चौकन्नी भी रहती हैं. दुनियादारी तो वे अपने घर और बस्ती में बहुत कम उम्र में सीख चुकी होती हैं.

यह ठीक है कि कुछ भी कर लिया जाए, बच्चों का घर से भागना पूरी तरह खत्म या बंद नहीं हो सकता लेकिन इसे कम किया जा सकता है. इस के लिए जरूरी है कि बच्चों के साथसाथ मांबाप की भी काउंसलिंग हो जिस के तहत उन्हें यह बताया जाए कि लड़कियां कोई बोझ नहीं होतीं बल्कि मौका मिले तो कई मामलों में लड़कों को भी मात दे देती हैं. लेकिन इस के लिए जरूरी है कि उन्हें पढ़ाया जाए, उन के साथ भेदभाव और मारपीट न की जाए, उन में कोई हुनर है तो उसे निखारा जाए और उन्हें भी लड़कों के बराबर सहूलियतें व आजादी दी जाए.

Valentine’s Day 2024 : अगर आपका पार्टनर भी है इमोशनल, तो इस तरह निभाएं साथ

मेघा की नईनई शादी हुई थी. एक दिन जब वह औफिस से घर आई, तो देखा उस का पति रजत सोफे पर बैठा फूटफूट कर रो रहा है. मेघा की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ. वह परेशान हो गई कि उस का पति ऐसे क्यों रो रहा है. मेघा के कई बार पूछने पर रजत ने बताया, ‘‘मैं ने तुम्हें फोन किया था, लेकिन तुम ने फोन नहीं उठाया. बस बिजी हूं का मैसेज भेज दिया.’’

मेघा हैरान हो गई. उसे समझ नहीं आया कि क्या जवाब दे. जिस समय रजत का फोन आया उस समय वह बौस के साथ मीटिंग में थी. उस समय तो मेघा ने रजत को सौरी कह कर किसी तरह मामला दफादफा कर दिया. लेकिन जब यह रोजरोज की बात बन गई, तो उस के लिए रजत के साथ रहना मुश्किल हो गया.

इस बाबत जब मेघा ने अपनी सास से बात की, तो वे बोलीं, ‘‘रजत बचपन से ही बहुत ज्यादा भावुक है. छोटीछोटी बातों का बुरा मान जाता है.’’

रजत की तरह बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं, जो बेहद भावुक होते हैं. उन के साथ जिंदगी बिताना कांटों पर चलने के समान होता है. कब कौन सी बात उन्हें चुभ जाए पता ही नहीं चलता. पतिपत्नी का संबंध बेहद संवेदनशील होता है. संबंधों की प्रगाढ़ता के लिए प्यार के साथसाथ एकदूसरे की भावनाओं को समझने और अपने साथी पर भरोसा बनाए रखने की भी जरूरत होती है. सच तो यह है कि पतिपत्नी का रिश्ता तभी खूबसूरत बनता है, जब आप अपने साथी को पूरी स्पेस देते हैं. मशहूर लेखक खलील जिब्रान का कहना है कि रिश्तों की खूबसूरती तभी बनी रहती है, जब उस में पासपास रहने के बावजूद थोड़ी सी दूरी भी बनी रहे. आज रिश्तों की सहजता के लिए दोनों के बीच स्पेस बेहद जरूरी है.

आमतौर पर तो पतिपत्नी एकदूसरे को पूरा समय देते हैं, लेकिन कभीकभार स्थिति उलट हो जाती है. अगर आप का जीवनसाथी बेहद इमोशनल है, तो उस की यही डिमांड रहती है कि हर समय आप उस के आसपास ही घूमती रहें. आप की प्राइवेसी उस की भावनाओं के आहत होने का सबब बन जाती है. बहुत ज्यादा भावुक पति के साथ जीवन बिताना सच में बेहद मुश्किल होता है. आप समझ नहीं पाती हैं कि आप की कौन सी बात आप के पति को बुरी लग रही है.

इस संबंध में वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डाक्टर तृप्ति सखूजा का कहना है कि बेहद संवेदनशील या यों कहें भावुक व्यक्ति के साथ निर्वाह करने में दिक्कत होती है. अगर दूसरा साथी समझदार न हो, तो कई बार संबंध टूटने के कगार पर भी पहुंच जाते हैं. अगर आप के पति जरूरत से ज्यादा इमोशनल हैं, तो आप को उन के साथ बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है. उन की भावनाओं का खयाल रख कर ही आप उन्हें अपने प्यार का एहसास दिला सकती हैं. पति की भावनाओं को ठीक तरह से समझ न पाने के कारण संबंधों में दूरी आने लगती है. कारण यह है कि इमोशनल व्यक्ति की सब से बड़ी कमी यह होती है कि अगर आप उस से कोई सही बात भी कहेंगी, तो उसे ऐसा महसूस होगा कि आप उस की अवहेलना कर रही हैं. वह अपने संबंधों को ले कर हमेशा असुरक्षित रहता है, इसलिए उस के साथ रहने के लिए छोटीछोटी बातों का भी ध्यान रखना होगा ताकि आप उस के साथ अपने संबंधों को मजबूती दे सकें.

बात को तरजीह दें

आप के पति भावुक हैं, तो यह बेहद जरूरी है कि आप उन की कही सारी बातों को ध्यानपूर्वक सुनें. इस से आप को पता चलेगा कि उन के मन में क्या चल रहा है. पति की बातों को सुन कर आप यह निर्णय ले पाएंगी कि उन के साथ आप को कैसा व्यवहार करना है. जब भी आप के पास फुरसत हो, उन के साथ बैठ कर बातचीत करें. बात करते समय इस बात का ध्यान रखें कि जब वे कुछ कहें, तो आप बीच में टोकें नहीं. उन की बात को सुन कर आप को इस बात का एहसास हो जाएगा कि वे परेशान क्यों हैं.

सच जानने की कोशिश करें

अगर आप के पति हर समय भावुक बातें करते हैं और यह चाहते हैं कि आप हर समय उन के आसपास ही रहें, तो उन के पास बैठ कर उन के इस तरह के व्यवहार का कारण पूछें. अगर वे कोई तार्किक जवाब न दे पाएं, तो आप उन्हें प्यार से समझाएं कि आप उन के साथ हर समय हैं. जब भी उन्हें कोई दिक्कत होगी, तो वे आप को अपने करीब पाएंगे. आप के आश्वासन से आप के पति के मन में आप के साथ अपने रिश्ते को ले कर सुरक्षा का भाव आएगा. यकीन मानिए आप के प्रयास से धीरेधीरे उन की अनावश्यक भावुकता कम होने लगेगी.

उन के करीब आएं

आप पति के जितना ज्यादा करीब जाएंगी, आप को उन के व्यवहार के बारे में उतना ही ज्यादा पता चलेगा. आप की नजदीकी से आप के पति को इस बात का एहसास होगा कि आप उन्हें प्यार करती हैं. जब वे आप के प्यार को महसूस करेंगे, तो उन की भावनात्मक असुरक्षा कम होगी. ऐसे में वे अपने मन की सारी बातें आप के साथ शेयर करेंगे. उस समय आप उन की भावुकता का कारण जान कर उन्हें उस से छुटकारा दिला सकती हैं. आप उन्हें हर समय इस बात का एहसास  दिलाती रहें कि अच्छीबुरी हर स्थिति में आप उन के साथ हैं.

कारण जानने की कोशिश

आप के पति इतने ज्यादा इमोशनल क्यों हैं, इस के पीछे का कारण जानने की कोशिश करें. इस के लिए आप परिवार के सदस्यों मसलन, अपनी सासूमां और ननद की सहायता ले सकती हैं. कोई भी पुरुष विवाह पूर्व अपनी मां और बहन के सब से ज्यादा करीब होता है. अगर उन की यह भावुकता किसी लड़की के कारण है, जो उन्हें छोड़ कर चली गई है, तो आप उन्हें समझाएं कि उन के साथ जो हुआ अच्छा नहीं हुआ, लेकिन अब उन के जीवन में कुछ भी बुरा नहीं होगा. आप उन के साथ हमेशा रहेंगी. आजीवन उन्हें प्यार करेंगी.

स्थिति का धैर्यपूर्वक सामना करें

आप के पति भावुक हैं, तो उन के साथ अपने संबंधों को पटरी पर लाने के लिए आप को उत्तेजना नहीं धैर्य की जरूरत है. भले ही उन की बातों से आप को गुस्सा आता हो. उन्हें पलट कर जवाब देने की बजाय उन की बातों को ध्यानपूर्वक सुन कर उन्हें सांत्वना दें.

पति को प्यार का एहसास कराएं

भावुक पति को मानसिक तौर पर संतुष्ट और सुरक्षित रखने के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप उन्हें इस बात का एहसास दिलाएं कि आप उन्हें बहुत प्यार करती हैं. उन की पसंदनापसंद आप के लिए बहुत माने रखती है. इस के लिए आप उन्हें समयसमय पर उपहार दें या फिर उन की पसंद का काम कर के उन्हें इस बात का एहसास दिला सकती हैं कि आप को उन की परवाह है और आप उन की भावनाओं का खयाल रखती हैं.

क्या बिना तलाक लिए भी लिवइन में रह सकते हैं ?

सवाल 

मैं यह जानना चाहता हूं कि शादीशुदा होते हुए भी एक पुरुष लिवइन रिलेशनशिप में बिना तलाक लिए रह सकता हैपत्नी उस पर कोई कानूनी कार्यवाही कर सकती है क्या?

जवाब

जहां तक कानून की बात है तो पति व पत्नी के रहते हुए भी कोई पार्टनर किसी और साथी के साथ लिवइन रिलेशनशिप में बिना तलाक हुए रह सकता है. नए दौर में स्वतंत्रता से जीवन जीने का अधिकार के कानून का यह फैसला है पर अगर कोई अपनी पत्नी या पति को छोड़ कर लिवइन में रहने चला ही गया है तो उस के साथ फिर रिश्ते किस बात के. किसी गैर के साथ रहना अब गुनाह की श्रेणी में नहीं है पर उस के साथ रहने का कोई मतलब बनता नहीं है. इसलिए तलाक लिया जाना कानूनी कार्यवाही हो सकती है ताकि आप भी चैन से रहें और दूसरा भी.

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पता : कंचनसरिता, ई-8, झंडेवाला एस्टेटनई दिल्ली-55.

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दांतों को स्वस्थ रखने के लिए बच्चों को जरूर बताएं ये बातें, कभी नहीं लगेगा कीड़ा

Tips to keep Teeth Healthy : माता-पिता होना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि आपको बहुत जिम्मेदार होना होता है और अपने बच्चे के स्वास्थ्य का ख्याल रखना होता है. बच्चे के स्वास्थ्य का ख्याल रखना मुश्किल है पर उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.बच्चों की संपूर्ण स्वास्थ्य की देखभाल के साथ यह आवश्यक है कि मुंह के स्वास्थ्य काख्याल रखने पर भी ध्यान दिया जाए. हर किसी को चाहिए कि वह बच्चों के दांतों के स्वास्थ्य और हाईजीन (साफ-सफाई) की महत्ता जाने. आप भी अपने बच्चे के मुंह का अच्छा स्वास्थ्य और हाईजीन सुनिश्चित कर सकते हैं. पेश हैं कुछ महत्वपूर्ण चीजें जो आपको जानना चाहिए. जो बता रहे हैं क्लिनिकऐप्प के सीईओ,श्री सत्काम दिव्य.

बच्चे अच्छा और बुरा नहीं जानते हैं. वे किसी भी चीज को मुंह में रख सकते हैं. कई अन्य कारणों से आपके बच्चे के दांतों का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है. बहुत सारे लोग बच्चों के मामले में स्वास्थ्यकर उपायों को नजरअंदाज कर देते हैं. वे समझते हैं कि पहली बार आए दांत तो गिरने ही हैं. लेकिन दांतों का ख्याल रखने से संबंधित ऐसी महत्वपूर्ण बातों को नजरअंदाज करने से दांतों ख़राब होंगे और दांतों में प्लेक और मसूड़ों की बीमारियां होंगी. कम उम्र में ही दांत खराब होने का असर यह होगा कि बाद में आने वाले दांत भी खराब या प्रभावित होंगे और भविष्य में दांतों की ढेरों समस्याएं खड़ी हो जाएंगी.

बच्चों में पाई जाने वाली दांतों की आम समस्याएं

बच्चों में पाई जाने वाली दांतों की सबसे आम समस्या डेंटल कैरीज (dental caries) की है जो दांतों की संरचना को क्षतिग्रस्त कर देता है. अगर आप चाहते हैं कि बच्चे के दांतों का क्षरण न हो और वह वह मसूड़े की बीमारियों से बचा रहे तो आपको अपने बच्चे के लिए स्वास्थ्यकर व्यवहारों का चुनाव करने की जरूरत है.

प्लेक : प्लेक एक सफेद परत है जो दांतों पर जमा हो जाती है. खाद्य पदार्थों और लार व बैक्टीरिया के मिलने से बनने वाली यह परत दांतों पर जमा हो जाती है. जब यह लंबे समय तक जमा रहती है तो इसका रंग पीला हो जाता है और धीरे-धीरे दांतों का क्षरण शुरू हो जाता है.

दांतों का क्षरण: खाने की चीजें जब दांतों में फंसी रह जाती हैं तो इनपर बैक्टीरिया का हमला होता है. इससे खाद्य पदार्थ टूट जाते हैं. इसका नतीजा यह होता है कि दांतों में छोटे सुराख और कैविटी बन जाती हैं.

मसूड़ों की बीमारी : प्लेक लंबे समय तक बना रहे और उसे एक्सपोजर मिले तो जो संक्रमण होता है उससे मसूड़ों में सूजन होता है और यह दांतों की शक्ति को उल्टे ढंग से प्रभावित करता है. यानी सूजन जितना ज्यादा दांत उतने कमजोर.

सांसों में बदबू : दांतों में फंसे खाद्य पदार्थ, प्लेक, बैक्टीरिया के बढ़ने और मसूड़ों के संक्रमण से सांसों में बदबू आती है जो कई बार बहुत ज्यादा होती है और बर्दाश्त के काबिल नहीं होती है. मुंह से आती बदबू आपके बच्चे को मानसिक रूप से भी प्रभावित करेगी. अगर ऐसी चीजें बचपन में न हों तो आप भी खतरे को नजरअंदाज कर सकते हैं. सुनिश्चित कीजिए कि अपने बच्चे के लिए स्वस्थ्य व्यवहार की शुरुआत करें ताकि आपके बच्चे के मुंह की देखभाल की जा सके.

स्वस्थ आदते बचपन से अपनाएं

दांतों को स्वस्थ और स्वास्थ्यकर बनाए रखने के लिए निम्नलिखित आदतों को प्रोत्साहित करें मुंह के स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित और स्वास्थ्यकर आदतों की शुरुआत बचपन से ही कीजिए बचपन से ही बच्चों के दांतों और मसूड़ों को साफ करने के लिए साफ कपड़े का उपयोग करना महत्वपूर्ण है. एक बार जब बच्चे के दांत दिखने लगें तो अनुशंसित औषधि वाले घोल का उपयोग कीजिए और मुंह के अंदर के हिस्से को साफ कर दीजिए क्योंकि ब्रश का उपयोग नहीं किया जा सकता है. मसूड़ों और दांतों को हल्के से पोंछिए और उस परत को साफ कीजिए जो मुंह के अंदर बन जाती है और कोमल तथा चिपचिपा होता है. यह मसूड़ों को प्रभावित करने के मुख्य कारणों में एक है.

सही टुथब्रश का चुनाव कीजिए

एक बार जब ऊपर-नीचे दांत दिखने लगें तो आपको वाश क्लॉथ की जगह टुथ ब्रश का उपयोग शुरू करने की जरूरत है. बच्चों के मसूड़े बहुत कोमल होते हैं और ऐसे में किसी भी टुथब्रश का उपयोग करना ठीक नहीं है. आप अपने टुथ ब्रश का भी उपयोग नहीं कर सकते हैं क्योंकि उसके शूक सख्त होते हैं और बच्चे के कोमल मसूड़ों के लिए तकलीफदेह होंगे. यही नहीं, बड़ा ब्रश छोटे बच्चे के लिए ठीक नहीं रहेगा. आपको छोटा ब्रश लेना होगा जिसके शूक कोमल हों और दांतों व मसूड़ों को सरलता से साफ करें. शुरुआती चरण में आपको अपने बच्चे को सिखाना होगा कि वह टुथब्रश का उपयोग कैसे करे जिससे उसे घाव-जख्म नहीं हो. एक बार सर्वश्रेष्ठ तरीका बता दिया जाए तो आप अपने बच्चे को खुद दांत साफ करने दे सकते हैं. लेकिन उस पर नजर रखेंगे. अपने बच्चे को रोज दो बार ब्रश करने की जरूरत बताइए. अपने बच्चे को अपनी पसंद का टुथब्रश चुनने दीजिए पर सुनिश्चित कीजिए कि वह सुरक्षित होगा कि नहीं.

सही टुथपेस्ट चुनिए

बाजार में भिन्न ब्रांड के कई तरह के टूथब्रश उपलब्ध हैं. पर ये सभी उत्पाद आपके बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हैं. उत्पाद की पसंद इस बात पर निर्भर करती है कि उसमें किन चीजों का उपयोग किया गया है. मसाला फ्लेवर वाले या अत्यधिक मीठे टुथब्रश का उपयोग नहीं करें. सर्वश्रेष्ठ सुझाव के लिए आप दांतों के किसी डॉक्टर से संपर्क करें. साथ ही सुनिश्चित कीजिए कि टुथपेस्ट की मात्रा सही हो. तीन साल की आयु के बाद आप ज्यादा टुथपेस्ट का उपयोग करने दे सकते हैं. बच्चे को बताइए कि टुथपेस्ट निगलते नहीं हैं.

ब्रश करने की तकनीक

दांतों की स्थिति अच्छी बनाए रखने के लिए हरेक बच्चे को ब्रश करने की सबसे अच्छी तकनीक सीखना चाहिए. इसके लिए प्रत्येक दांत को अच्छी तरह साफ किया जाना चाहिए. ऊपर से नीचे और अंदर-बाहर सब. सर्वश्रेष्ठ तकनीक से फंसे हुए खाद्य पदार्थ को निकालने में मदद मिलेगी. जब आपका बच्चा ब्रश कर रहा हो तो उसे कुछ महीने तक देखिए और आवश्यक जानकारी दीजिए. बड़ा होकर वह इसे जारी रखेगा/रखेगी.

ज्यादा चीनी खाने से रोकिए

दांतों का स्वास्थ्य बनाए रखने में आहार में चीनी की मात्रा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. बच्चों को कैंडीज, मिठाइयां, चॉकलेट और कई अन्य मीठे खाद्य पदार्थ पसंद होते हैं. इससे उनके दांतों को काफी नुकसान हो सकता है क्योंकि मीठी चीजें दांतों में फंस जाती हैं जिससे बैक्टीरिया और प्लेक को मौका मिलता है. सुनिश्चित कीजिए कि जब कभी वे मीठा खाएं, अच्छी तरह मुंह साफ करें.

हर महीने दांतों की जांच

अपने बच्चे को हर महीने दांतों के डॉक्टर के पास ले जाइए. बच्चों के दंत चिकित्सक कुछ जांच करेंगे और दांतों की स्थिति अच्छी बनाए रखने के सर्वश्रेष्ठ उपाय सुझाएंगे. अगर आवश्यक हुआ तो बेहतर देखभाल के लिए दांतों के डॉक्टर उपचार बताएंगे.

मुंह को अच्छी तरह साफ करना

मुंह को अच्छी तरह साफ करना सर्वश्रेष्ठ व्यवहार है. आप दवा मिले हुए किसी घोल का उपयोग कर सकते हैं जिससेकुल्ला करने पर बैक्टीरिया मर जाते हैं और ताजगी बनी रहती है.

बच्चों को दांतों से सख्त चीजें काटने न दें

बच्चों को सख्त चीजें दांत से न काटने दें क्योंकि उनके दांत इतने मजबूत नहीं होते हैं कि इसके लिए आवश्यक दबाव झेल सकें. इससे दांत टूट सकता है या फिर एनामेल क्षतिग्रस्त हो सकता जिससे संवेदनशीलता बढ़ेगी.

दांतों की साफ-सफाई अच्छी हो तो इसका मतलब यह नहीं है कि बच्चों को दांतों के डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है. साल में दो बार डेनटिस्ट के पास जाना जरूरी है. बच्चे की आदतों तथा डेंटल हाईजीन का ख्याल रखते हुए डेंटिस्ट तकनीक और उत्पादों की सिफारिश कर सकता है. इस बार राष्ट्रीय बाल दंत स्वास्थ्य माह में मुंह के स्वस्थ हाईजीन के लिए प्रतिबद्धता दिखाइए.

पुनर्विवाह : क्या पत्नी की मौत के बाद आकाश ने दूसरी शादी की ?

जब से पूजा दिल्ली की इस नई कालोनी में रहने आई थी उस का ध्यान बरबस ही सामने वाले घर की ओर चला जाता था, जो उस की रसोई की खिड़की से साफ नजर आता था. एक अजीब सा आकर्षण था इस घर में. चहलपहल के साथसाथ वीरानगी और मुसकराहट के साथसाथ उदासी का एहसास भी होता था उसे देख कर. एक 30-35 वर्ष का पुरुष अकसर अंदरबाहर आताजाता नजर आता था. कभीकभी एक बुजुर्ग दंपती भी दिखाई देते थे और एक 5-6 वर्ष का बालक भी.

उस घर में पूजा की उत्सुकता तब और भी बढ़ गई जब उस ने एक दिन वहां एक युवती को भी देखा. उसे देख कर उसे ऐसा लगा कि वह यदाकदा ही बाहर निकलती है. उस का सुंदर मासूम चेहरा और गरमी के मौसम में भी सिर पर स्कार्फ उस की जिज्ञासा को और बढ़ा गया.

जब पूजा की उत्सुकता हद से ज्यादा बढ़ गई तो एक दिन उस ने अपने दूध वाले से पूछ ही लिया, ‘‘भैया, तुम सामने वाले घर में भी दूध देते हो न. बताओ कौनकौन हैं उस घर में.’’

यह सुनते ही दूध वाले की आंखों में आंसू और आवाज में करुणा भर गई. भर्राए स्वर में बोला, ‘‘दीदी, मैं 20 सालों से इस घर में दूध दे रहा हूं पर ऐसा कभी नहीं देखा. यह साल तो जैसे इन पर कयामत बन कर ही टूट पड़ा है. कभी दुश्मन के साथ भी ऐसा अन्याय न हो,’’ और फिर फूटफूट कर रोने लगा.

‘‘भैया अपनेआप को संभालो,’’ अब पूजा को पड़ोसियों से ज्यादा अपने दूध वाले की चिंता होने लगी थी. पर मन अभी भी यह जानने के लिए उत्सुक था कि आखिर क्या हुआ है उस घर में.

शायद दूध वाला भी अपने मन का बोझ हलका करने के लिए बेचैन था.

अत: कहने लगा, ‘‘क्या बताऊं दीदी, छोटी सी गुडि़या थी सलोनी बेबी जब मैं ने इस घर में दूध देना शुरू किया था. देखते ही देखते वह सयानी हो गई और उस के लिए लड़के की तलाश शुरू हो गई. सलोनी बेबी ऐसी थी कि सब को देखते ही पसंद आ जाए पर वर भी उस के जोड़ का होना चाहिए था न.

‘‘एक दिन आकाश बाबू उन के घर आए. उन्होंने सलोनी के मातापिता से कहा कि शायद सलोनी ने अभी आप को बताया नहीं है… मैं और सलोनी एकदूसरे को चाहते हैं और अब विवाह करना चाहते हैं,’’ और फिर अपना पूरा परिचय दिया.

‘‘आकाश बाबू इंजीनियर थे व मांबाप की इकलौती औलाद. सलोनी के मातापिता को एक नजर में ही भा गए. फिर उन्होंने पूछा कि क्या तुम्हारे मातापिता को यह रिश्ता मंजूर है?

‘‘यह सुन कर आकाश बाबू कुछ उदास हो गए फिर बोले कि मेरे मातापिता अब इस दुनिया में नहीं हैं. 2 वर्ष पूर्व एक कार ऐक्सिडैंट में उन की मौत हो गई थी.

‘‘यह सुन कर सलोनी के मातापिता बोले कि हमें यह रिश्ता मंजूर है पर इस शर्त पर कि विवाहोपरांत भी तुम सलोनी को ले कर यहां आतेजाते रहोगे. सलोनी हमारी इकलौती संतान है. तुम्हारे यहां आनेजाने से हमें अकेलापन महसूस नहीं होगा और हमारे जीवन में बेटे की कमी भी पूरी हो जाएगी.

‘‘आकाश बाबू राजी हो गए. फिर क्या था धूमधाम से दोनों का विवाह हो गया और फिर साल भर में गोद भी भर गई.’’

‘‘यह सब तो अच्छा ही है. इस में रोने की क्या बात है?’’ पूजा ने कहा.

दूध वाले ने फिर कहना शुरू किया, ‘‘एक दिन जब मैं दूध देने गया तो घर में सलोनी बिटिया, आकाश बाबू और शौर्य यानी सलोनी बिटिया का बेटा भी था. तब मैं ने कहा कि बिटिया कैसी हो? बहुत दिनों बाद दिखाई दीं. मेरी तो आंखें ही तरस जाती हैं तुम्हें देखने के लिए. पर मैं बड़ा हैरान हुआ कि जो सलोनी मुझे काकाकाका कहते नहीं थकती थी वह मेरी बात सुन कर मुंह फेर कर अंदर चली गई. मैं ने सोचा बेटियां ससुराल जा कर पराई हो जाती हैं और कभीकभी उन के तेवर भी बदल जाते हैं. अब वह कहां एक दूध वाले से बात करेगी और फिर मैं वहां से चला आया. पर अगले ही दिन मुझे मालूम पड़ा कि मुझ से न मिलने की वजह कुछ और ही थी. सलोनी बिटिया नहीं चाहती थी कि सदा उस का खिलखिलाता चेहरा देखने वाला काका उस का उदास व मायूस चेहरा देखे.

‘‘दरअसल, सलोनी बिटिया इस बार वहां मिलने नहीं, बल्कि अपना इलाज करवाने आई थी. कुछ दिन पहले ही पता चला था कि उसे तीसरी और अंतिम स्टेज का ब्लड कैंसर है. इसलिए डाक्टर ने जल्दी से जल्दी दिल्ली ले जाने को कहा था. यहां इस बीमारी का इलाज नहीं था.

‘‘सलोनी को अच्छे से अच्छे डाक्टरों को दिखाया गया, पर कोई फायदा नहीं हुआ. ब्लड कैंसर की वजह से सलोनी बिटिया की हालत दिनोंदिन बिगड़ती चली गई. बारबार कीमोथेरैपी करवाने से उस के लंबे, काले, रेशमी बाल भी उड़ गए. इसी वजह से वह हर वक्त स्कार्फ बांधे रखती. कितनी बार खून बदलवाया गया. पर सब व्यर्थ. आकाश बाबू बहुत चाहते हैं सलोनी बिटिया को. हमेशा उसी के सिरहाने बैठे रहते हैं… तनमनधन सब कुछ वार दिया आकाश बाबू ने सलोनी बिटिया के लिए.’’

शाम को जब विवेक औफिस से आए तो पूजा ने उन्हें सारी बात बताई, ‘‘इस

दुखद कहानी में एक सुखद बात यह है कि आकाश बाबू बहुत अच्छे पति हैं. ऐसी हालत में सलोनी की पूरीपूरी सेवा कर रहे हैं. शायद इसीलिए विवाह संस्कार जैसी परंपराओं का इतना महत्त्व दिया जाता है और यह आधुनिक पीढ़ी है कि विवाह करना ही नहीं चाहती. लिव इन रिलेशनशिप की नई विचारधारा ने विवाह जैसे पवित्र बंधन की धज्जियां उड़ा दी हैं.’’

फिर, ‘मैं भी किन बातों में उलझ गई. विवेक को भूख लगी होगी. वे थकेहारे औफिस से आए हैं. उन की देखभाल करना मेरा भी तो कर्तव्य है,’ यह सोच कर पूजा रसोई की ओर चल दी. रसोई से फिर सामने वाला मकान नजर आया.

आज वहां काफी हलचल थी. लगता था घर की हर चीज अपनी जगह से मिलना चाहती है. घर में कई लोग इधरउधर चक्कर लगा रहे थे. बाहर ऐंबुलैंस खड़ी थी. पूजा सहम गई कि कहीं सलोनी को कुछ…

पूजा का शक ठीक था. उस दिन सलोनी की तबीयत अचानक खराब हो गई और उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा. हालांकि उन से अधिक परिचय नहीं था, फिर भी पूजा और विवेक अगले दिन उस से मिलने अस्पताल गए. वहां आकाश की हालत ठीक उस परिंदे जैसी थी, जिसे पता था कि उस के पंख अभी कटने वाले ही हैं, क्योंकि डाक्टरों ने यह घोषित कर दिया था कि सलोनी अपने जीवन की अंतिम घडि़यां गिन रही है. फिर वही हुआ. अगले दिन सलोनी इस संसार से विदा हो गई.

इस घटना को घटे करीब 2 महीने हो गए थे पर जब भी उस घर पर नजर पड़ती पूजा की आंखों के आगे सलोनी का मासूम चेहरा घूम जाता और साथ ही आकाश का बेबस चेहरा. मानवजीवन पर असाध्य रोगों की निर्ममता का जीताजागता उदाहरण और पति फर्ज की साक्षात मूर्ति आकाश.

दोपहर के 2 बजे थे. घर का सारा काम निबटा कर मैं लेटने ही जा रही थी कि दरवाजा खटखटाने की आवाज आई. दरवाजे पर एक महिला थी. शायद सामने वाले घर में आई थी, क्योंकि पूजा ने इन दिनों कई बार उसे वहां देखा था. उस का अनुमान सही था.

‘‘मैं आप को न्योता देने आई हूं.’’

‘‘कुछ खास है क्या?’’

‘‘हां, कल शादी है न. आप जरूर आइएगा.’’

इस से पहले कि पूजा कुछ और पूछती, वह महिला चली गई. शायद वह बहुत जल्दी में थी.

वह तो चली गई पर जातेजाते पूजा की नींद उड़ा गई. सारी दोपहरी वह यही सोचती रही कि आखिर किस की शादी हो रही है वहां, क्योंकि उस की नजर में तो उस घर में अभी कोई शादी लायक नहीं था.

शाम को जब विवेक आए तो उन के घर में पैर रखते ही पूजा ने उन्हें यह सूचना दी जिस ने दोपहर से उस के मन में खलबली मचा रखी थी. उसे लगा कि यह समाचार सुन कर विवेक भी हैरान हो जाएंगे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. वे वैसे ही शांत रहे जैसे पहले थे.

बोले, ‘‘ठीक है, चली जाना… हम पड़ोसी हैं.’’

‘‘पर शादी किस की है, आप को यह जानने की उत्सुकता नहीं है क्या?’’ पूजा ने तनिक भौंहें सिकोड़ कर पूछा, क्योंकि उसे लगा कि विवेक उस की बातों में रुचि नहीं ले रहे हैं.

‘‘और किस की? आकाश की. अब शौर्य की तो करने से रहे इतनी छोटी उम्र में. आकाश के घर वाले चाहते हैं कि यह शीघ्र ही हो जाए, क्योंकि आकाश को इसी माह विदेश जाना है. दुलहन सलोनी की चचेरी बहन है.’’

यह सुन कर पूजा के पैरों तले की जमीन खिसक गई. जिस आकाश को उस ने आदर्श पति का ताज दे कर सिरआंखों पर बैठा रखा था. वह अब उस से छिनता नजर आ रहा था. उस ने सोचा कि पत्नी को मरे अभी 2 महीने भी नहीं हुए और दूसरा विवाह? तो क्या वह प्यार, सेवाभाव, मायूसी सब दिखावा था? क्या एक स्त्री का पुरुषजीवन में महत्त्व जितने दिन वह साथ रहे उतना ही है? क्या मरने के बाद उस का कोई वजूद नहीं? मुझे कुछ हो जाए तो क्या विवेक भी ऐसा ही करेंगे? इन विचारों ने पूजा को अंदर तक हिला दिया और वह सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गई. उसे सारा कमरा घूमता नजर आ रहा था.

जब विवेक वहां आए तो पूजा को इस हालत में देख घबरा गए और फिर उस का सिर गोद में रख कर बोले, ‘‘क्या हो गया है तुम्हें? क्या ऊटपटांग सोचसोच कर अपना दिमाग खराब किए रखती हो? तुम्हें कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा?’’

विवेक की इस बात पर सदा गौरवान्वित महसूस करने वाली पूजा आज बिफर पड़ी, ‘‘ले आना तुम भी आकाश की तरह दूसरी पत्नी. पुरुष जाति होती ही ऐसी है. पुरुषों की एक मृगमरीचिका है.’’

‘‘नहीं, ऐसा नहीं है. आकाश यह शादी अपने सासससुर के कहने पर ही कर रहा है. उन्होंने ही उसे पुनर्विवाह के लिए विवश किया है, क्योंकि वे आकाश को अपने बेटे की तरह चाहने लगे हैं. वे नहीं चाहते कि आकाश जिंदगी भर यों ही मायूस रहे. वे चाहते हैं कि आकाश का घर दोबारा बस जाए और आकाश की पत्नी के रूप में उन्हें अपनी सलोनी वापस मिल जाए. इस तरह शौर्य को भी मां का प्यार मिल जाएगा.

‘‘पूजा, जीवन सिर्फ भावनाओं और यादों का खेल नहीं है. यह हकीकत है और इस के लिए हमें कई बार अपनी भावनाओं का दमन करना पड़ता है. सिर्फ ख्वाबों और यादों के सहारे जिंदगी नहीं काटी जा सकती. जिंदगी बहुत लंबी होती है.

‘‘आकाश दूसरी शादी कर रहा है इस का अर्थ यह नहीं कि वह सलोनी से प्यार नहीं करता था. सलोनी उस का पहला प्यार था और रहेगी, परंतु यह भी तो सत्य है कि सलोनी अब दोबारा नहीं आ सकती. दूसरी शादी कर के भी वह उस की यादों को जिंदा रख सकता है. शायद यह सलोनी के लिए सब से बड़ी श्रद्धांजलि होगी.

‘‘यह दूसरी शादी इस बात का सुबूत है कि स्त्री और पुरुष एक गाड़ी के 2 पहिए हैं और यह गाड़ी खींचने के लिए एकदूसरे की जरूरत पड़ती है और यह काम अभी हो जाए तो इस में हरज ही क्या है?’’

विवेक की बातों ने पूजा के दिमाग से भावनाओं का परदा हटा कर वास्तविकता की तसवीर दिखा दी थी. अब उसे आकाश के पुनर्विवाह में कोई बुराई नजर नहीं आ रही थी और न ही विवेक के प्यार पर अब कोई शक की गुंजाइश थी.

विवेक के लिए खाना लगा कर पूजा अलमारी खोल कर बैठ गई और फिर स्वभावानुसार विवेक का सिर खाने लगी, ‘‘कल कौन सी साड़ी पहनूं? पहली बार उन के घर जाऊंगी. अच्छा इंप्रैशन पड़ना चाहिए.’’

विवेक ने भी सदा की तरह मुसकराते हुए कहा, ‘‘कोई भी पहन लो. तुम पर तो हर साड़ी खिलती है. तुम हो ही इतनी सुंदर.’’

पूजा विवेक की प्यार भरी बातें सुन कर गर्वित हो उठी.

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जाति : दकियानूसी सोच को चुनौती देती दो प्रेमियों की कहानी

ऊंची जाति में पैदा होना किसी मुसीबत से कम नहीं है. मैं पैदाइशी लैफ्ट हैंडर था, नैसर्गिकता छीन ली गई. व्यर्थ का मेहनत करवाया गया. सीधे हाथ से लिखना तो सीख गया लेकिन था वह पूर्णतया कृत्रिम जिस में हैंडराइटिंग सुधरने की बजाय बिगड़ती चली गई. सुंदर हस्तलिपि के लिए अलग से कठोर श्रम करना पड़ा. बावजूद इस के मैं भोजन करना नहीं सीख सका, सीधे हाथ से. नतीजा यह हुआ कि ब्राह्मणों के सार्वजनिक भोज में मुझे तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाने लगा. नसीहतें दी जाने लगीं.

मैं ने सार्वजनिक भोज में जाना ही छोड़ दिया. मेरा अपना तर्क था कि कुदरत ने 2 हाथ दिए हैं. अब दाएं से खाऊं या बाएं से क्या फर्क पड़ता है. लेकिन शास्त्रों को मानने वाले तर्क से कहां सहमत होते हैं. वे इसे विद्रोह और पाप समझते हैं.

जब कुछ बड़ा हुआ, स्कूल जाने लगा तो मेरे दोस्त भी बने. दोस्ती और प्रेम किया नहीं जाता, बस हो जाता है. कोई व्यक्ति अच्छा लगने लगता है और आप का खास दोस्त बन जाता है. बाद में पता चला कि दोस्त की जाति क्या है, उस का धर्म क्या है. मुझे क्या लेनादेना इन सब बातों से. लेकिन समाज को लेनादेना है. जब रविवार को अवकाश पर दोस्त ने खेलने के लिए घर बुलाया तो मैं चला गया. खेलतेखेलते प्यास लगी. दोस्त से पानी मांगा. दोस्त की मां ने यह कह कर पानी देने से मना कर दिया कि तुम ब्राह्मण हो, हमारे यहां का पानी कैसे पी सकते हो. तुम्हारे घर वालों को पता चलेगा तो हम लोगों की मुसीबत हो जाएगी. दोस्त की मां ने यह भी कहा कि तुम हमारे घर खेलने मत आया करो. स्कूल में ही मिल लिया करो. मुझे बहुत बुरा लगा. मेरा मन उदास हो गया.

मैं खिन्न मन से घर आया तो यहां भी मुसीबत. मुझे पहले तो स्नान करने को कहा गया. फिर डांट अलग से पड़ी. लेकिन इस से हमारी दोस्ती पर कोई असर नहीं पड़ा. हां, इतना जरूर हुआ कि हम एकदूसरे के घर नहीं आतेजाते थे.

जब कालेज जाने लगे तो नए फैशन के रोग भी लग गए. मेरे लिए शौक लेकिन घर वालों के लिए रोग. मैं ने शानदार कंपनी के जूते, बेल्ट और चमड़े की एक जैकेट खरीदी. पिताजी ने देखा तो गुस्से में कहा,”शर्म नहीं आती, ब्राह्मण हो कर चमड़े की चीजें पहनते हो. जूते तक ठीक था कि चलो बाहर उतार दिए. तुम जैकेट, बेल्ट, पर्स चमड़े का इस्तेमाल करते हो. घर अशुद्ध कर दिया. चलो बाहर फेंको इन्हें और कल वापस कर के आना.’’ वापस तो खैर नहीं देने गया, न दुकानदार लेता, मैं ने अपने दोस्त कमल को दे दिए.

उस ने पूछा,‘‘क्यों?’’

मैं ने उसे कारण बताया तो उस ने कहा,‘‘बड़े चोंचले हैं तुम्हारे घर वालों के.’’

मैं ने कहा,‘‘घर वालों के नहीं, ऊंची जाति के. उच्च कुल में पैदा होने के नुकसान भी बहुत हैं.’’

उच्च समाज में पैदा होना बहुत बड़ी मुसीबत है. रहनसहन, पहनावा, बोलचाल, खानपान सब पर पाबंदी होती है. दायां हाथ शुद्ध है. बायां हाथ अशुद्ध. दुनिया चांदतारों तक पहुंच रही है और ये हैं कि आदमीआदमी में फर्क करते हैं. सुबह स्नान करो, गायत्री मंत्र की माला जपो. जनेऊ धारण करो, तिलक लगाओ, चोटी रखो. मुझे बड़ी शर्म आती है दोस्तों के सामने. मजाक बनता हूं लेकिन फिर भी घर में रहना है तो यह सब करना पड़ेगा. क्या करें, मजबूरी है.

कालेज में पढ़ते समय एक गोरी सी सुंदर लड़की मुझे भाने लगी. मैं उस के नजदीक जाने का हरसंभव प्रयास करता. उसे अपनी ओर आकर्षित करने के लिए घर से निकलने के बाद कमल के घर जा कर चमड़े के जूते, बेल्ट, लैदर वाली जैकेट पहन कर जाता. जनेऊ तो कपड़े में छिप जाता लेकिन कमबख्त चोटी को छिपाने के लिए क्या करता. एक ही उपाय था कि जब उस के सामने जाता तो फैशनेबल टोपी पहन कर जाता, देवानंद की तरह. वैसे, मैं ने अपनी चोटी को इतना छोटा तो कर लिया था कि आसानी से नजर नहीं आती थी.

मैं ने बड़ी हिम्मत कर के उसे प्रोपोज किया जिस का उस ने कोई उत्तर नहीं दिया. लेकिन मैं ने हार नहीं मानी. मैं कालेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने लगा. मुझे इतनी जानकारी तो हो गई थी कि उसे साहित्य, नाटकों में रुचि है. फिर क्या था, जिस नाटक में वह नायिका बनती, मैं हरसंभव प्रयास कर के उस में नायक बनता. इस के लिए मुझे क्याक्या पापड़ बेलने पड़ते मैं ही जानता हूं. हिंदी के प्रोफैसर को खुश करने के लिए उन्हें नएनए मंहगे गिफ्ट देता ताकि वे मुझे नाटक में रख लें. वह शकुंतला बनती तो मैं दुष्यंत.

वादविवाद प्रतियोगिता में मैं ने जो मत रखा, उस से वह मेरी तरफ आकर्षित हुई. मंच पर मैंं ने कहा कि जब चर्मकार के हाथ से बनाए मरे जानवर की खाल से बनी ढोलक से मंदिर अपवित्र नहीं होता जोकि मंदिर में भजनकीर्तन में बजाई जाती है तो बनाने वाले चर्मकार के मंदिर जाने से मंदिर कैसे अपवित्र हो सकता है? जब तथाकथित ईश्वर ने कहा है कि सभी जीवित प्राणियों में मैं ही हूं तो फिर हम कौन होते हैं भेदभाव करने वाले. यह ईश्वर का अपमान है. जातिगत भेदभाव मानने वाले तो नास्तिक हुए. वे कैसे मंदिर और ईश्वर को अपनी जागीर मान सकते हैं? मेरी इस प्रतियोगिता में एक तरफ तो खूब तालियां बजीं लेकिन कुछ लोग मुझ पर इस बात से नाराज भी दिखे. फिर भी मुझे भी प्रथम घोषित किया गया.

दूसरे प्रतियोगी ने धर्मशास्त्रों का हवाला दिया. पूर्वजों की बनाई परिपाटी का वास्ता दे कर उसे उचित ठहराया. लेकिन मेरे तर्क भारी पड़े उस पर. मैं ने कहा, ‘‘राम ने शबरी के जूठे बेर खाए. उन्हीं राम को आप ईश्वर मानते हैं तो जब ईश्वर फर्क नहीं करता तो आप कौन होते हैं फर्क करने वाले? फिर त्रेता, द्वापर में क्या हुआ, इस से क्या लेनादेना. यह कलयुग है. इस में कर्म के आधार पर जातियां बनती हैं,’’ जोरदार तालियां बजीं.

मैं अपनी जीत की ट्राफी लिए उसे तलाश रहा था. तभी पीछे से आवाज आई,‘‘सुनिए.’’

मैं मुड़ा. सामने मेरी सपना खड़ी थी.
‘‘मुझे आप की स्पीच पसंद आई. जीत के लिए बधाई.’’

मैं ने धन्यवाद दे कर कहा,‘‘और मेरा प्रणय निवेदन. उस का क्या हुआ? क्यों ठुकरा दिया आप ने?’’

उस ने कहा,‘‘नहीं, मुझे कुबूल है.’’ और मैं जैसे आसमान में उड़ने लगा.

वादविवाद प्रतियोगिता का हारा हुआ प्रतियोगी मेरे घर के पास ही रहता था. उस ने मुझ से कहा,‘‘तुम जीत कर भी हार गए. जीत के लिए बधाई. लेकिन मुझे अपने हारने पर भी गर्व है. मैं ने व्यवहारिक बातें कहीं. धर्मगत बातें कहीं और तुम ने किताबी.’’

मैं ने कहा,‘‘मुझे जो कहना था वह कह चुका हूं मंच पर. और वही मेरा सत्य है. मेरे विचार हैं. उन पर मैं अडिग हूं.’’ वह मुझ पर आग्नेय दृष्टि बरसाता हुआ चला गया.

सपना से मेरी मुलाकातों का सिलसिला आगे बढ़ चुका था. हम दोनों ही अपने प्रेम का इजहार कर चुके थे. साथ मरनेजीने की कसमें खा चुके थे. कालेज में हम हर समय साथ में नजर आते सब को. क्लास में भी एक ही साथ बैठने लगे थे.

‘‘तुम्हारा सरनेम क्या है?’’ उस ने पूछा.

मैं ने बताया तो उस ने माथा पीट लिया,‘‘सत्यानाश.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मैं दलित हूं यार,’’ उस ने कहा.

‘‘तो क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अपने मांबाप को बताओ कि तुम एक छोटी जाति की लड़की से प्यार करते हो, तब समझ में आ जाएगा कि क्या हुआ?’’ उस ने कहा.

‘‘प्रेम व्यक्तिगत मामला है,’’ मैं ने सहज भाव से कहा.

‘‘तो क्या बस प्रेम ही करना है, आगे नहीं सोचा?’’ उस ने प्रश्न किया.

‘‘आगे शादी…’’ मैं ने कहा.

‘‘और शादी व्यक्तिगत मामला नहीं होती जनाब,’’ उस ने समझाया.

‘‘प्रेम का रोग सिर चढ़ कर बैठा है. अब उतरने से रहा,’’ मैं ने कहा.

‘‘जूते पड़ेंगे दोनों तरफ से. खुद भी मरोगे और मुझे भी मरवाओगे,’’ उस ने डराने वाले अंदाज में कहा.

‘‘तुम डरती हो?’’ मैं ने प्रश्न किया.

‘‘नहीं,’’ उस ने सहज उत्तर दिया.

‘‘तो फिर प्रेम हमारा है. प्रेम में व्यक्ति 2 नहीं एक होते हैं जो मेरी जात सो तुम्हारी जात,’’ मेरे कहने पर वह झल्ला उठी और उस ने कहा,‘‘अपनी किताबी दुनिया से बाहर निकलो.’’

‘‘तुम चाहो तो पीछे हट जाओ,’’ मैं ने कहा.

‘‘यही मैं तुम से कहती हूं,’’ पलट कर उस ने कहा.

‘‘मैं नहीं हट सकता,’’ मैं ने कहा.

‘‘तो आगे क्या सोचा है?’’ उस ने जिज्ञासा से पूछा.

‘‘पहले अपनी बात रखेंगे. नहीं माने तो बगावत,’’ मैं ने दृढ़ स्वर में कहा. वह चुप रही.

मैं ने जब घर में यह बात रखी तो घर में तूफान आ गया. मुझे खरीखोटी सुनाई गई. डांटाफटकारा गया. कुल की मानमर्यादा का वास्ता दिया गया. न मानने पर पिताजी ने दोटूक स्वर में कहा,‘‘तुरंत इस घर से निकल जाओ. आज से तुम मेरे लिए मर चुके हो.’’ पिता के क्रोध को मैं जानता था. इस से पहले कि वे कोई अस्त्रशस्त्र मुझ पर चलाते, मैं घर से बाहर निकल गया.

पिताजी यदाकदा मां से कहते भी रहते थे, ‘‘पूत नहीं कपूत पैदा किया है. एक दिन यह सब मिट्टी में मिला देगा, इस की बातों से जाहिर होता है.’’

पहले जब भी कभी जातपात पर बहस होती, मैं पिताजी से वही कहता जो धर्मग्रंथों में लिखा है. जो तथाकथित ईश्वर ने कहा है. सार सजीवनिर्जीव सब में भगवान का अंश होता है. लेकिन अंतत: मुझे ही कुल का कलंक माना जाता था. मैं माना गया और मजबूरन घर छोड़ना पड़ा. अब घर छोड़ते ही मुझे अपने लिए सारे इंतजाम करने थे. रहने का, खानेपीने का. कमल ने इस में मेरी बहुत सहायता की.

उस ने मुझे समझाया भी,‘‘एक बार फिर सोच लो. एक बार शादी हो गई तो गए जात से बाहर, हमेशा के लिए. फिर तुम्हें रोजगार पहले तलाशना होगा.”

मैं ने कमल से कहा,”पहले तुम मेरी कोर्ट मैरिज की व्यवस्था करो.’’

उस ने सारी जिम्मेदारी अपने सिर पर ले ली. मेरी प्रेमिका सपना उस की हिम्मत नहीं पड़ी घर में बात करने की.

उस ने कहा,‘‘मना ही होना है तो फिर कहने से क्या होगा. तुम जब कहो मैं अपना सबकुछ छोड़ कर तुम्हारे पास आने के लिए तैयार हूं.’’

मैं ने उसे शादी की तारीख बताई. उस ने कहा,‘‘ठीक है, लेकिन फिर हमारा इस शहर में रहना ठीक नहीं है.’’

कमल ने अपने दोस्त के माध्यम से गुप्त रूप से हमारा विवाह आर्य समाज में करवाया और भोपाल जाने वाली ट्रेन में छोड़ने भी आया. उस ने कहा कि मैं ने एक कंपनी में तुम्हारे लिए नौकरी की व्यवस्था करवा दी है. तुम पहले जा कर नौकरी जौइन करना. ट्रेन चलने को हुई. कमल और मैं गले मिले. उस ने भरे गले से कहा,”अपना ध्यान रखना और मेरे लायक कुछ हो तो कहना.’’

हमें भोपाल आए काफी समय हो चुका था. इस बीच घर में कई बार फोन लगाया. लेकिन उधर से फोन बंद बता रहा था हर बार. मैं ने एक बार सपना को ले कर घर जाने का फैसला किया. लेकिन हमारे शहर पहुंचते ही हमें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. थाने जाने पर सारी बात सामने आई. सपना के पिता ने लड़की के अपहरण और बलात्कार की रिपोर्ट थाने में लिखवा दी थी. मेरे पिता से पूछताछ होने पर उन्होंने स्पष्ट लिख कर दे दिया था थाने में कि हमारा अपने पुत्र से कोई लेनादेना नहीं है. दोनों परिवारों में जातिगत झगड़ा भी हुआ. दलित समाज की तरफ से धरनाप्रदर्शन भी हुए. अखबारों में खबर भी प्रकाशित हुई, ‘दलित लड़की का अपहरण’ शीर्षक से.

सपना ने थाने में सारे आरोपों को निराधार बताते हुए आर्य समाज द्वारा जारी किया गया विवाह प्रमाणपत्र भी दिखाया. हमें छोड़ दिया गया. सपना अपने घर पहुंची तो उस के परिवार ने थोड़ा सा क्रोध दिखा कर उसे अपना लिया. मैं अपने घर पहुंचा तो पिता ने बाहर से जाने को कह दिया. उन्होंने कहा,‘‘तुम हमारे लिए मर चुके हो.’’

परिवार के बाकी सदस्य भी पिता के साथ थे. कमल का कुछ पता नहीं चला. मैं अपने दूसरे खास दोस्तों से मिला. किसी ने मेरे निर्णय को गलत ठहराया, किसी ने सही. रहीम ने कहा,‘‘तुम लोगों के शहर छोड़ने के बाद माहौल काफी बिगड़ चुका था. कमल को उसी के समाज के लोगों ने यह कह कर धिक्कारा था कि तुम ने अपनी जाति से गद्दारी की है. जात की लड़की को गैर जाति के लड़के के साथ भगवा दिया है. मुझे लगता है कि कमल की हत्या कर दी गई है.’’

मैं हिम्मत कर के सपरा के घर पहुंचा. सपना के परिवार ने मेरा स्वागत किया. उस के पिता ने कहा,‘‘भागने की क्या जरूरत थी. मुझ से कहते मैं शादी करवा देता तुम दोनों की. तुम्हारे घर के लोग तो तुुम्हें कभी स्वीकारेंगे नहीं. हां, एक शर्त पर स्वीकार सकते हैं. यदि तुम दोनों में से, दोनों ही, खासकर सपना किसी ऊंची सरकारी जौब पर पहुंच जाए तब वे गर्व से कहेंगे कि सपना मेरी बहू है और तभी मैं तुम्हारे इस विवाह को संपूर्ण समझूंगा.’’

‘‘कमल के बारे में कुछ पता है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जो नहीं रहा उस की बात मत करो. भूतकाल को छोड़ भविष्य के लिए जीना सीखो.’’

‘‘लेकिन कमल मेरे बचपन का दोस्त था,’’ मैं ने प्रतिवाद किया.

‘‘रिपोर्ट लिखी है उस की थाने में,’’ सपना के पिताजी ने गुस्से से कहा.

‘‘क्या आप ने उसे मारा?’’

‘‘तुम दोनों के प्रेम ने बलि ली है उस की.’’

‘‘आप कातिल हैं.’’

‘‘जब सिद्ध हो जाएगा तो जेल जाने को भी तैयार रहूंगा.’’

माहौल में गरमाहट आ चुकी थी. मैं सपना के साथ वापस भोपाल आ गया. सपना की इच्छा थी कि वह घरेलू महिला बन कर रहे. उसे अपने घर को सजानासंवारना अच्छा लगता था. अपने पति के लिए खाना बनाना भी. पति की सेवा करने को ही वह अपना जीवन मान कर जीना चाहती थी. मेरे पास छोटी सी नौकरी थी. मैं एक कंपनी में सुपरवाइजर की पोस्ट पर था. प्राइवेट नौकरी थी. समय अधिक देना पड़ता था. इसलिए मेरा आगे पढ़ना और किसी बड़ी नौकरी की तैयारी करने के लिए समय निकालना संभव नहीं था. मुझे सपना के पिता की बात याद आई,”तुम्हारा परिवार मेरी बेटी को अपनी बहू तभी स्वीकारेगा, जब वह किसी बड़ी पोस्ट पर होगी. तब गर्व होगा उन्हें अपनी बहू पर. इस शादी पर. तभी तुम्हारा विवाह संपूर्ण मानूंगा. दूसरी बात है कि कमल तुम दोनों के प्रेम की बलि चढ़ गया.

मैं ने सपना को आगे पढ़ने के लिए कहा. उस ने कहा, ‘‘कर तो लिया ग्रैजुएट. और कितना पढ़ना है…’’

‘‘अभी बहुत पढ़ना है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘ताकि हमारी शादी संपूर्ण हो सके.’’

‘‘आप भी मेरे बाबूजी की बातों में आ गए. मैं गृहिणी बन कर खुश हूं.’’

‘‘तुम इसलिए पढ़ो ताकि मेरा परिवार गर्व कर सके तुम पर, मुझ पर, हमारे विवाह पर.’’

‘‘हमारी शादी हो चुकी है और मुझे अपनी शादी पर गर्व है. आप 2 परिवारों के जातीय अहम को संतुष्ट करने का साधन न बनाएं मुझे और न खुद बनें. मैं सीधीसादी गृहस्थन बन कर संतुष्ट हूं.’’

‘‘तुम्हें मेरी खातिर पढ़ना भी होगा और नौकरी की तैयारी भी करनी होगी.’’

‘‘आप मुझ से मेरी घरगृहस्थी क्यों छीनना चाहते हैं?’’ सपना ने गुस्से में कहा.

‘‘मैं तुम्हें सफल होते, आगे बढ़ते और ऊंचाइयों पर जाते देखना चाहता हूं,’’ मैं ने कहा.

सपना ने मेरा मन रखने के लिए स्वीकृति दे दी लेकिन सशर्त पर कि वह प्राइवेट परीक्षा देगी. सपना प्राइवेट परीक्षा देती रही और अच्छे नंबरों से पास भी होती रही. मैं ने जोर दे कर आईएएस की कोचिंग में उस का दाखिला करवा दिया जहां उसे मात्र 2 घंटे जाना होता था पढ़ने के लिए. मैं बीचबीच में कमल की मौत की जांच के लिए पुलिस अधिकारियों को पत्र भी लिख रहा था. कभीकभी गुमनाम खत लिख कर संदिग्ध व्यक्ति का नाम भी लिख देता था. सपना, जोकि पहले पढ़ना नहीं चाहती थी, न नौकरी करना चाहती थी, धीरेधीरे पढ़ाई और नौकरी के प्रति गंभीर हो रही थी. मैं ने एक दिन उस से मजाक में कहा, ‘‘पक्की गृहस्थन, अब पक्की पढ़ाकू हो गई है.’’

उस ने बुझे स्वर में कहा,‘‘मैं तो अपनी घरगृहस्थी में ही सुख और आनंद से थी. आप ने मुझे उलझा दिया. लेकिन अब अपनेआप को साबित करने के लिए पढ़ रही हूं. किसी को बताने के लिए कि मैं भी कुछ हूं. कुछ दिनों पहले कोचिंग के टीचर ने व्यंग्य किया था कि आप तो रिजर्व कैटेगरी में आती हैं, तो आप को नौकरी नहीं लगी? तो फिर लानत है आप पर. आप को तो लगनी ही है. और मैं ने तय कर लिया कि मैं रिजर्व से नहीं सामान्य उम्मीदवार के रूप में फौर्म भरूंगी.’’

मैं ने सपना को समझाने की कोशिश की. लेकिन उस ने समझने से इनकार करते हुए कहा,‘‘मेरा प्रण अटूट है. मैं साबित कर के रहूंगी, खुद को कि रिजर्वेशन नहीं मिलता, तब भी मैं क्षमता रखती हूं.’’ सपना के दृढ़ विश्वास के आगे मैं भी झुक गया.

सपना ने पीएचडी में भी प्रवेश ले लिया. आईएएस की तैयारी भी करती रही. कभी प्रथम परीक्षा पास करती तो दूसरे में रुक जाती. कभी दोनों पास करती तो इंटरव्यू में उत्तीर्ण न हो पाती. लेकिन उस से उस का आत्मविश्वास कम होने की बजाय बढ़ता गया. पीएचडी पूर्ण होतेहोते वह आईएएस अधिकारी बन चुकी थी. मेरा सपना साकार हो चुका था. ट्रेनिंग के बाद पहली नियुक्ति उसे अपने गृह जिले में ही मिली. मैं ने उस से वचन लिया कि वह हम दोनों के प्रेम में बलि चढ़ चुके कमल के हत्यारों की जांच करवाए. उस ने मुझे वचन दिया और कहा, ‘‘हां, वह तुम्हारा दोस्त था और मेरे भाई जैसा था, मैं उस के हत्यारों को पकड़ने के लिए पूरी कोशिश करवाऊंगी.’’

मुझे लगा कि अब अपने परिवार से मिलने का समय आ चुका है। एक दिन लालबत्ती की गाड़ी में मैं अपनी पत्नी के साथ अपने घर के दरवाजे पर उतरा. लालबत्ती की गाड़ी देख कर कुछ लोग अपने घरों से झांकने लगे. कुछ अपनेअपने दरवाजे पर खड़े हो गए. घर के दरवाजे खुले. पिता ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘नमस्कार करते हैं. सौभाग्य है हमारा कि कलेक्टर साहिबा हमारे घर पर पधारी हैं,’’ पिता की बात में व्यंग्य सा छिपा था.

सपना ने चरणस्पर्श किए, अपने सासससुर के. उसे आशीर्वाद भी मिला. सपना के लिए मेरी मां चायनाश्ता बनाने के लिए उठी. सपना ने मां के काम में हाथ बंटाना चाहा तो मां ने मना करते हुए कहा,”आप बैठिए. आप को शोभा नहीं देता घरगृहस्थी का काम. आप तो जिला संभालिए,’’ मां की बात में भी तंज सा लगा.

मैं ने पिताजी से कहा,”अब तो आप खुश हैं कि आप की बहू कलैक्टर जैसी ऊंची पोस्ट पर है.”

पिता कुछ देर चुप रहे. फिर बोले, ‘‘यह सम्मान हम कलैक्टर साहिबा का कर रहे हैं. बड़े लोग, बड़ी पोस्ट. पता नहीं किस बात पर नाराज हो कर कौन सा केस बनवा दें.’’

सपना ने कहा,‘‘पापा, मैं आप की बहू पहले हूं, कलैक्टर बाद में.’’

तभी मां चायनाश्ता ले कर आ गई. मां ने कहा,‘‘हम सम्मान कलैक्टर का कर रहे हैं, बहू का नहीं.’’

‘‘मुझे आप का सम्मान चाहिए भी नहीं. मैं तो बहू बन कर ही खुश हूं. आप की सेवा मेरा सौभाग्य होगा. इन्होंने ही मुझे जबरदस्ती आगे पढ़ायालिखाया और नौकरी के लिए प्रेरित किया,’’ सपना ने मेरी ओर देखते हुए अपनत्व से कहा.

‘‘हां, हमें नीचा दिखाने की कोशिश में कामयाब रहा हमारा बेटा,’’ मां ने मेरी तरफ देखते हुए कहा. फिर बात को संभालते हुए बोली,‘‘खुशकिस्मत हो तुम जो ऐसा पति मिला.’’

मुझे एहसास हो गया और शायद सपना को भी कि अपनेआप को उच्च मानने वालों की मानसिकता, खासकर इस उम्र में बदलना नामुमकिन है. घर में खाने को दाना न हो लेकिन अपनी पैदाइशी उच्चता पर इतराएंगे जरूर. हम उठ खड़े हुए. सपना लौटते समय पैर नहीं पड़ी और जातेजाते कहा,‘‘आईएएस अधिकारी का पैर पड़ना आप को भी अच्छा नहीं लगेगा.’’

सपना गाड़ी में बैठ चुकी थी. पिता ने मुझे इशारे से बुला कर धीरे से कहा,”जात जन्म से आती है और मर कर ही जाती है. तुम कलैक्टर बनो या प्रधानमंत्री, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. अधिकारियों, नेताओं का सम्मान करना फर्ज है नागरिक का, सो निभा लिया.’’

मेरे कारण मेरी पत्नी का भी अपमान हुआ. इस बात से मैं आहत था. मैं ने सपना से कहा,‘‘सौरी.’’

उस ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,‘‘मैं आप के कहने पर आप की इच्छा का मान रखने के लिए कलैक्टर बनी हूं न कि अपने पिता के कहने पर, न आप के पिता को खुश करने के लिए.’’

इस के बाद हम सपना के घर पहुंचे. सपना के पिता ने कहा,‘‘गर्व से सीना चौड़ा ड़हो गया हमारा. अब आई समझ में बात ऊंची जाति वालों को.’’

सपना ने कहा,”पापा, मैं कलैक्टर किसी को ऊंचा या नीचा दिखाने के लिए नहीं बनी हूं.’’

सपना के पिता ने अहंकार भरा ठहाका लगाया. हम दोनों ही अपनेअपने परिवार की जातिवादी रूढ़ियों, अहंकार से तंग आ चुके थे. प्रेम, दोस्ती दो मन के एक होने के लिए होते हैं. सुखदुख के सच्चे साथी. लेकिन इन पिछड़े दिमाग वालों को कोई कैसे समझाए.

इस बीच एक अच्छी बात हुई कि कमल के कातिल पकड़ गए जिस में उस की ही जाति के कुछ युवा लड़के थे और हत्या की योजना बनाने में सपना के पिता भी गिरफ्तार हुए. मुझे समझ आ रहा था कि कैसे सम्राट अशोक के जमाने का अखंड भारत, जोकि अब केवल भारत रह गया था, उस में भी आज धर्मजाति की आग लगी हुई है. कभी खालिस्तान की मांग उठती है तो कभी पृथक कश्मीर की. हम एक धर्म के लोग जाति के कबीलों में बंट कर एकदूसरे में उलझे हुए हैं. दूसरे धर्म की तो बात ही छोड़ दें. व्यर्थ ही हम अंगरेजों का दोष देते हैं बंटवारे का. व्यर्थ ही हम राजनीतिज्ञों को कोसते हैं जाति के नाम पर बांटने का. हम स्वयं आपस में भाईचारे से रहें तो कौन हमें बांट सकता है. कौन हमें लड़ा सकता है. जो भी हो रहा है उस के लिए हम स्वयं दोषी हैं.

कहने को देश 1947 में आजाद हो गया लेकिन हम आज भी कैद हैं अपनी ही जंजीरों में. धर्मजाति, उपजाति, भाषा, प्रांत की कैद से हम कब आजाद होंगे, होंगे भी या नहीं, कह नहीं सकते.

मजबूरी : बारिश की उस रात आखिर क्या हुआ था रिहान के साथ ?

आज भी बहुत तेज बारिश हो रही थी. बारिश में भीगने से बचने के लिए रिहान एक घर के नीचे खड़ा हो गया था. बारिश रुकने के बाद रिहान अपने घर की ओर चल दिया. घर पहुंच कर उस ने अपने हाथपैर धो कर कपड़े बदले और खाना खाने लगा. खाना खाने के बाद वह छत पर चला गया और अपनी महबूबा को एक मैसेज किया और उस के जवाब का इंतजार करने लगा.

छत पर चल रही ठंडी हवा ने रिहान को अपने आगोश में ले लिया और वह किसी दूसरी ही दुनिया में पहुंच गया. वह अपने प्यार के भविष्य के बारे में सोचने लगा.

रिहान तबस्सुम से बहुत प्यार करता था और उसी से शादी करना चाहता था. तबस्सुम के अलावा वह किसी और के बारे में सोचता भी नहीं था. जब कभी घर में उस के रिश्ते की बात होती थी तो वह शादी करने से साफ मना कर देता था.

रिहान के घर वाले तबस्सुम के बारे में नहीं जानते थे. वे सोचते थे कि अभी यह पढ़ाई कर रहा है इसलिए शादी से मना कर रहा है. पढ़ाई पूरी होने के बाद वह मान जाएगा.

तभी अचानक रिहान के मोबाइल फोन पर तबस्सुम का मैसेज आया. उस का दिल खुशी से झूम उठा. उस ने मैसेज पढ़ा और उस का जवाब दिया. बातें करतेकरते दोनों एकदूसरे में खो गए.

तबस्सुम भी रिहान को बहुत प्यार करती थी और शादी करना चाहती थी. अभी तक उस ने भी अपने घर पर अपने प्यार के बारे में नहीं बताया था. वह रिहान की पढ़ाई खत्म होने का इंतजार कर रही थी.

ऐसा नहीं था कि दोनों में सिर्फ प्यार भरी बातें ही होती थीं, बल्कि दोनों में लड़ाइयां भी होती थीं. कभीकभी तो कईकई दिनों तक बातें बंद हो जाती थीं. लड़ाई के बाद भी वे दोनों एकदूसरे को बहुत याद करते थे और कभी किसी बात पर चिढ़ाने के लिए मैसेज कर देते थे. मसलन, तुम्हारी फेसबुक की प्रोफाइल पिक्चर बहुत बेकार लग रही है. बंदर लग रहे हो तुम. तुम तो बहुत खूबसूरत हो न बंदरिया. और लड़तेलड़ते फिर से बातें शुरू हो जाती थीं.

पिछले 3 सालों से वे दोनों एकदूसरे को प्यार करते थे और अब जा कर शादी करना चाहते थे. रिहान ने सोच लिया था कि इस साल पढ़ाई पूरी होने के बाद कोई अच्छी सी नौकरी कर वह अपने घर वालों को तबस्सुम के बारे में बता देगा. अगर घर वाले मानते हैं तो ठीक, नहीं तो उन की मरजी के खिलाफ शादी कर लेगा. वह किसी भी हाल में तबस्सुम को खोना नहीं चाहता था.

एक दिन रिहान की अम्मी बोलीं, ‘‘तेरे मौसा का फोन आया था. उन्होंने तुझे बुलाया है.’’

‘‘मुझे क्यों बुलाया है? मुझ से क्या काम पड़ गया उन्हें?’’ रिहान ने पूछा.

‘‘अरे, मुझे क्या पता कि क्यों बुलाया है. वह तो हमें वहीं जा कर पता चलेगा,’’ उस की अम्मी ने कहा.

कुछ देर बाद वे दोनों मोटरसाइकिल से मौसा के घर की तरफ चल दिए. रिहान के मौसा पास के शहर में ही रहते थे. एक घंटे में वे दोनों वहां पहुंच गए. वहां पहुंच कर रिहान ने देखा कि घर में बहुत लोग जमा थे. उन में उस के पापा, उस की शादीशुदा बहन और बहनोई भी थे.

यह सब देख कर रिहान ने अपनी अम्मी से पूछा, ‘‘इतने सारे रिश्तेदार क्यों जमा हैं यहां? और पापा यहां क्या कर रहे हैं? वे तो सुबह दुकान पर गए थे?’’

अम्मी बोलीं, ‘‘तू अंदर तो चल. सब पता चल जाएगा.’’ रिहान और उस की अम्मी अंदर गए. वहां सब को सलाम किया और बैठ कर बातें करने लगे.

तभी रिहान के मौसा चिंतित होते हुए बोले, ‘‘आसिफ की हालत बहुत खराब है. वह मरने से पहले अपनी बेटी की शादी करना चाहता है.’’

आसिफ रिहान के मामा का नाम था. कुछ दिन पहले हुईर् तेज बारिश में उन का घर गिर गया था. घर के नीचे दब कर मामा के 2 बच्चों और मामी की मौत हो गई थी. मामा भी घर के नीचे दब गए थे, लेकिन किसी तरह उन्हें निकाल कर अस्पताल में भरती करा दिया गया था. वहां डाक्टर ने कहा था कि वे सिर्फ कुछ ही दिनों के मेहमान हैं. उन का बचना नामुमकिन है.

‘‘फिर क्या किया जाए?’’ रिहान की अम्मी बोलीं.

‘‘आसिफ मरने से पहले अपनी बेटी की शादी रिहान के साथ करा देना चाहता है. यह आसिफ की आखिरी ख्वाहिश है और हमें इसे पूरा करना चाहिए,’’ मौसा की यह बात सुन कर रिहान एकदम चौंक गया. उस के दिल में इतना तेज दर्द हुआ मानो किसी ने उस के दिल पर हजारों तीर एकसाथ छोड़ दिए हों. उस का दिमाग सुन्न हो गया.

‘‘ठीक है, हम आसिफ के सामने इन दोनों की शादी करवा देते हैं,’’ रिहान की अम्मी ने कहा.

रिहान मना करना चाहता था, लेकिन वह मजबूर था. उसी दिन शादी की तैयारी होने लगी और आसिफ को भी अस्पताल से मौसा के घर ले आया गया. शाम को दोनों का निकाह करवा दिया गया.

शादी के बाद रिहान अपनी बीवी और मांबाप के साथ घर आ गया. पूरे रास्ते वह चुप रहा. उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था. वह समझ नहीं पा रहा था कि उस के साथ हुआ क्या है.

घर पहुंच कर रिहान कपड़े बदल कर छत पर चला गया. उस ने तबस्सुम को एक मैसेज किया. थोड़ी देर बाद तबस्सुम का फोन आया. रिहान के फोन उठाते ही तबस्सुम गुस्से में बोली, ‘‘कहां थे आज पूरा दिन? एक मैसेज भी नहीं किया तुम ने.’’

तबस्सुम नाराज थी और वह रिहान को डांटने लगी. रिहान चुपचाप सुनता रहा. जब काफी देर तक वह कुछ नहीं बोला तो तबस्सुम बोली, ‘‘अब कुछ बोलोगे भी या चुप ही बैठे रहोगे?’’

‘‘मेरी शादी हो गई है आज,’’ रिहान धीमी आवाज में बोला.

तबस्सुम बोली, ‘‘मैं सुबह से नाराज हू्र्रं और तुम मुझे चिढ़ा रहे हो.’’

‘‘नहीं यार, सच में आज मेरी शादी हो गई है. उसी में बिजी था इसलिए मैं बात नहीं कर पाया तुम से.’’

‘‘क्या सच में तुम्हारी शादी हो गई है?’’ तबस्सुम ने रोंआसी आवाज में पूछा.

‘‘हां, सच में मेरी शादी हो गई है,’’ रिहान ने दबी जबान में कहा. उस की आवाज में उस के टूटे हुए दिल और उस की बेबसी साफ झलक रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे वह जीना ही नहीं चाहता था.

‘‘तुम ने मुझे धोखा दिया है रिहान,’’ तबस्सुम ने रोते हुए कहा.

‘‘मैं कुछ नहीं कर सकता था, मेरी मजबूरी थी,’’ यह कह कर रिहान भी रोने लगा.

‘‘तुम धोखेबाज हो. तुम झूठे हो. आज के बाद मुझे कभी फोन मत करना,’’ कह कर तबस्सुम ने फोन काट दिया. फोन रख कर रिहान रोने लगा. वहां तबस्सुम भी रो रही थी.

सुलक्षणा : भाग 1- आखिर ससुराल छोड़कर वह अनजान जगह पर क्यों चली गई?

किसी को क्या कोई शौक होता है अपनी शादीशुदा जिंदगी खत्म कर के ससुराल से रातोंरात भागना? बिना मंजिल राह चलती किसी भी बस में चढ़ जाना? अपना चेहरा औरों की नजरों से छुपा कर, बिखरते आंसुओं को पांेछना, भला किसे सुख देता होगा?

मगर, ऐसा हाल सुलक्षणा का हो चुका था…

उस के ससुराल में पैसों और रुतबे की कोई कमी भी नहीं थी. कमी थी तो बस उस के जज्बात की थोड़ी भी समझ न रखने की.

आप को लगता होगा कि उस का यह कदम गलत हो सकता है. उसे अपना रिश्ता बचाने के लिए थोड़ा और प्रयास करना था… या शायद गलती उसी की हो? जैसा कि उस के परिवार वालों और ससुराल पक्ष को हमेशा से लगता आया है.

चलिए, फिर आप ही एक बार उस की कहानी सुनिए और बताइए कि क्या उस का निर्णय सही था या नहीं?

उस की परिस्थितियों को समझने के लिए थोड़ा पीछे मुड़ कर उस की पिछली जिंदगी में झांकना होगा, क्योंकि इनसान की वर्तमान स्थिति उस के भूत में गुजरे और गुजारे दिनों के इर्दगिर्द ही तय कर जाया करती हैं.

बहुत सालों पहले की बात है, जब उस के पिता का विवाह उन के किशोरावस्था में उस के दादाजी द्वारा संपन्न करा दिया गया था. दादाजी ने दहेज का पैसा जोड़ कर एक सुनार की दुकान खोली, जो समय गुजरते, सफलता के उच्चतम पायदान पर पहुंचने लगी.

दादाजी के निधन के बाद पिता तुरंत उन की संपूर्ण संचित संपत्ति के सीधे हकदार बन गए. धीरेधीरे 3  बहनें हो गईं. पोते की ख्वाहिश पूरी करने के लिए दादी द्वारा विशेष पूजाअनुष्ठानों के कई सालों बाद उन के घर एक छोटा भाई आया.

उस के पिता जिस घर में जनमे थे, वहां बहुओं को केवल रसोई और बच्चों की परवरिश तक सीमित रखा गया था. आगे के विषयों पर उन से कभी कोई मशवरा नहीं लिया जाता था और यह प्रथा जमाने से उन के खानदान में आज तक चली आ रही है.

लड़के जो कि उन के बुढ़ापे का सहारा है, उन्हें कोई बंदिशें नहीं. रही बात लड़कियों की, तो उन्हें हलकाफुलका शादी योग पढ़ना होगा और घरगृहस्थी के कामों में निपुण, एक बार ब्याह गई, फिर उन की जिम्मेदारी खत्म, अपने भाग्य से जीती रहे. उन का इस घर से न के बराबर सरोकार होगा, क्योंकि अब उन का घर उन का ससुराल है.
अच्छे पैसे वाले घर से होने के कारण वे चारों शहर के सब से नामी स्कूल में पढ़ने जाया करते थे, पढ़ाईलिखाई से दादी की तरह पिता को भी कोई दिलचस्पी नहीं थी.

उन की आगे की रणनीति बिलकुल पानी की तरह साफ थी, एक उम्र के बाद अच्छा दहेज दे कर तीनों की संपन्न परिवार में शादी और भाई को जल्द से जल्द अपने पेशे में शामिल कर, अथाह दहेज ले कर उस की भी शादी. वैसा ही जैसा दादाजी ने उन के साथ किया था.

उस के पिता की दुनिया में सिर्फ पैसा ही एकमात्र ऐसी चीज है जो अच्छी जिंदगी देने के लिए पर्याप्त है. न तो पढ़ाई, संस्कार, सद्भावना, करुणा और न ही कोई दानपुण्य, यह सब उन के लिए समय और पैसे की बरबादी के रास्ते थे.

इन सब के बावजूद ऊपर वाला उन की बरकत करता जा रहा था. धीरेधीरे उन की शहर में बहुत बड़ी आभूषण की दुकान हो गई. पिताजी का समाज और रिश्तेदारों में बहुत रुतबा बढ़ने लगा. दूरदराज से लोग भारी ब्याज पर उन से रुपए उधार लेने आने लगे. किसी का घर ही क्यों न तबाह हो जाए, मजाल है कि वे उन का एक पैसा भी माफ कर दें.

समय गुजारता चला गया. उस की दोनों बड़ी बहनों और भाई को शिक्षा रास न आई, परंतु उस की कई मिन्नतों और जिद के बाद दादी से वकालत करने की इजाजत इस शर्त पर मांगी कि जैसे ही उस की पढ़ाई खत्म होगी, वह अपने पिता के कहे घर पर आंख बंद कर ब्याह कर लेगी.

हुआ भी कुछ ऐसा ही. एक के बाद एक दोनों बहनों को उन के ससुराल वालों की तिजोरी देख विदा कर दिया गया.

कुछ सालों बाद अब वह एक वकील बन कर दादी को किए वादे के अनुसार अपने पिता के नए बिजनैस पार्टनर के बेटे संग शादी के बंधन में बंध गई.

वह मानती है कि उस का परिवेश बाकी घरों की तुलना में बहुत संकीर्ण मानसिकता के बीच हुआ है. जहां कोई अपना अलग रास्ता चुनने का साहस नहीं कर सकता, और खासतौर से बेटियों को तो कदापि नहीं, तब भी वह अपने भविष्य संजोने के सपने देखती रही.

वह अपने पूरे वंश की एकमात्र शिक्षित लड़की थी और आज के बाद एकमात्र ऐसी पत्नी भी, को गैरवक्त अपना ससुराल छोड़ कर भाग खड़ी हुई.

शादी तो उस ने कर ली, मगर उस का मन उन चारदीवारों के अंदर कैद हो कर अपनी शेष जिंदगी काटना बिलकुल नहीं चाहता था.

इसलिए समय देख अपनी वकालत को नियमित रखने के लिए अपने पति को मनाने की सोची, शायद उन्हें अपनी पत्नी की इच्छा, सपनों की परवाह हो. वह उस के घर वालों की तरह बंधे विचार न रखते हों. लेकिन जैसा सोचा था, उस के विपरीत उस ने अपना जीवन मुश्किलों से भरा हुआ पाया.

उस के पिता ने सिर्फ धनसंपत्ति और अपने बिजनैस को आगे बढ़ता देख उस की शादी उस घर में तय कर दी, लेकिन एक बार के लिए अपने बिगड़े दामाद के चालचलन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी. उस की बहनें इस मामले में खुशकिस्मत निकलीं, उन की जिंदगी में उस के जैसी तकलीफें नहीं लिखी थीं.

उस का पति शराबी, जुआ खेलने वाले, अन्य औरतों से जिस्मानी रिश्ते रखने वाले. और तो और बिना बात के उस पर हाथ उठाने वाले नासूर इनसान निकले. वह उन्हें पूरी तरह से समझतेसमझते टूटने लगी.

शुक्रिया श्वेता दी: भाग 2

Writer- डा. कविता कुमारी

उस के कमरे में जेठानी के बच्चे दिनभर ऊधम मचाते, चहकते रहते. उसे बहुत अच्छा लगता. सभी उस से खूब बातें करते, स्नेह लुटाते. जेठानी कम ही बात करती. अंकिता किचन में जाती तब वह कहती, ‘थोड़े दिन आराम कर लो, फिर काम करना ही है.’

धीरेधीरे उस ने गौर करना शुरू किया. उस के सामने सभी ठीक से बात करते लेकिन वह कमरे में होती तो ऐसा लगता वे लोग आपस में खुसरफुसर कर रहे हैं. यदि अचानक वह उन के पास चली जाती, सभी एकाएक चुप हो जाते और उस से बात करने लगते.

एक दिन दोपहर में सभी आराम कर रहे थे. जेठ घर पर नहीं थे. दीपेन लेटेलेटे ?ापकी लेने लगा. वह उठ कर जेठानी के कमरे में गई. उन्होंने उसे प्यार से अपने पास बैठाया, ‘दीपेन सो रहा है क्या?’

‘हां दीदी, तभी आप के पास चली आई, उस ने मुसकरा कर कहा.

यह कैसा सवाल है, उस ने सोचा. इतने में दीपेन आ गया, ‘अरे यार, तुम यहां हो. कम औन यार,’ उस ने ऐसी अदा से यह सब कहा कि वह हंस कर उठ गई. बात अधूरी रह गई लेकिन जेठानी का सवाल उस का पीछा करता रहा. उस ने गौर किया कि हर वक्त कोई न कोई साए की तरह उस के साथ रहता है. वह जेठानी से ज्यादा घुलमिल न पाए, ऐसी कोशिश सब की होती है.

एक दिन शाम में जेठानी नाश्ता बना रही थी. वह किचन में हैल्प करने गई. उस ने देखा, पकौडि़यां तलते हुए जेठानी की आंखें आंसुओं से तर हैं. उस ने पूछ लिया, ‘दीदी, आप रो रही हैं?’

‘अरे नहीं, प्याज काटे थे न? मेरी आंखों में प्याज ज्यादा लगता है,’ उस ने जल्दी से आंसू पोंछते हुए कहा.

अंकिता ने ताड़ लिया, प्याज नहीं रुला रहे हैं, कोई और बात है.

दसबारह दिन निकल गए. उन लोगों की छुट्टियां खत्म होने वाली थीं. दीपेन ने रात में कहा, ‘मैं बेंगलुरु जा रहा हूं. मम्मीपापा चाहते हैं, तुम कुछ दिन उन के साथ रहो.’

‘तुम्हें पता है, हमें और छुट्टी नहीं मिल पाएगी.’

‘अरे यार, अब उस की क्या जरूरत है? मैं भी किसी दूसरी कंपनी में जाने की सोच रहा हूं. वहां हमारी तनख्वाह भी कम है. कभीकभी सोचता हूं अपना काम शुरू करूं.’

‘शादी के पहले तो हमारी ऐसी कोई प्लानिंग नहीं थी?’

‘अब है न. तुम इतने सवाल क्यों कर रही हो?’ दीपेन का स्वर बदला हुआ था.

अंकिता ने बात आगे नहीं बढ़ाई लेकिन उसे लगा इस से पहले उस का इतना रूखा व्यवहार कभी नहीं था. उस ने सोचा, हो सकता है मम्मीपापा से किसी बात पर टैंशन हुई हो. कुछ दिन यहीं रुक कर एंजौय कर लेती हूं. कौन यहां परमानैंट रहना है.

दीपेन  2 दिनों बाद चला गया. जेठानी से अभी भी वह घुलमिल नहीं पाती थी. जब भी दोनों बात कर रही होतीं, सास उन्हें किसी बहाने अलगअलग काम पर लगा देतीं. उसे लगने लगा, कोईर् बात है. वह अपने मम्मीपापा से भी ज्यादा बात नहीं कर पाती. उस के जाने के बाद दोनों बच्चे उस के साथ ही सोते. सास भी उसी कमरे में सोने लगी थी. भला नई बहू को अकेले कैसे छोड़े.

दीपेन को गए एक हफ्ता गुजर गया. वह दिन में फोन करती तो यह कह कर बात न करता कि आजकल काम का दबाव बढ़ गया है, सारे पैंडिंग काम निबटाने हैं. रात में दोचार मिनट बात करता, थोड़ाबहुत मांपापा से बात करता और फोन कट.

एक रात बहुत तेजतेज आवाज सुन कर वह हड़बड़ा कर उठ बैठी. आवाज दूसरे कमरे से आ रही थी. वह उठ कर ड्राइंगरूम में आई. आवाज भाभी के कमरे से आ रही थी. सब लोग शायद वहीं थे. वह दबे पांव कमरे की तरफ बढ़ी. दरवाजा भिड़ा हुआ था. उस ने हलके सूराख से अंदर देखने की कोशिश की. ‘चटाक.’ उसी वक्त ससुर ने जेठानी के गाल पर तमाचा जड़ा. वह कांप गई. जेठानी ऐसे निरीह खड़ी थी जैसे कसाई के सामने मेमना.

‘पापा, गुस्से को काबू में रखिए. दूसरे कमरे में अंकिता सो रही है. मैं देखता हूं,’ जेठ ने कहा.

ससुर गुस्से से तमतमाते हुए कुछ बड़बड़ा रहे थे. वह जल्दी से दबे पांव अपने कमरे में आ गई. आंखें बंद कर सोने का नाटक किया लेकिन उस ने अभीअभी जो देखा था, वह उस की आंखों के सामने से हट नहीं रहा था. थोड़ी देर में सास आई, लाइटवाइट जला कर चैक किया कि इस बीच वह जागी तो नहीं. जब यकीन हो गया कि सब ठीक है, तब वह भी उस के बगल में सो गई.

सुबह सबकुछ नौर्मल था. श्वेता दी की आंखें सूजीसूजी थीं लेकिन वह हर दिन की तरह किचन में थी. 9-10 बजे के करीब उस ने देखा, ड्राइंगरूम में कोई बैठा था जिस से ससुर और जेठ बातें कर रहे थे. वह आदमी धीरेधीरे लेकिन कुछ तुनक कर बात कर रहा था. ससुर और जेठ उसे आहिस्ताआहिस्ता शांत करने में लगे थे. उस की सम?ा में कुछ नहीं आया. हवा में तैरती बातों के टुकड़ों को मिलाने पर लगा जैसे वह आदमी अपनी बकाया रकम मांग रहा था. घर खाली करने जैसी भी बात थी शायद. उस की सम?ा में कुछ नहीं आ रहा था. किस से पूछे वह? कैसे जाने इस घर की रहस्मयी बातें. उस ने पति से बात करना चाहा. हायहैलो के बाद पूछा, ‘दीपेन, तुम कब आ रहे हो?’

‘अभी थोड़ा वक्त लगेगा. अब सोच रहा हूं रिजाइन कर के ही आऊं.’

उसे शौक हुआ. वह किसी और बात के लिए फोन कर रही थी, यहां एक नया धमाका था, ‘क्यों, क्या दूसरा जौब मिल गया?’

‘दिनभर काम करता रहूंगा तो जौब कैसे मिलेगी? अब वहां आ कर इत्मीनान से ट्राई करूंगा. यार, एक बात और है. मैं खुद का काम शुरू करना चाहता हूं. अपने पापा से कहो न कि अभी कुछ मदद कर दें. मैं बाद में लौटा दूंगा. अभी 4-5 लाख ही दे दें, फिर देखते हैं.’

दीपेन ने बड़े इत्मीनान से यह सब कहा लेकिन अंकिता के दिल में लगी.  दीपेन का ऐसा रूप अभी तक नहीं दिखा था. उस ने भरे गले से कहा, ‘पापा से  कैसे कहें, अभीअभी शादी में इतना खर्च किया है…’

‘उन्होंने नया क्या किया है? बेटी की शादी में कौन खर्च नहीं करता? तुम लाड़ली हो उन की, तुम्हारे लिए इतना नहीं कर सकते?’

और उस ने फोन काट दिया . अंकिता कट कर रह गई.

दोपहर में सब के खाने के बाद श्वेता किचन समेट रही थी. अंकिता पानी लेने गई, धीरे से पूछा, ‘दीदी, रात में क्या हुआ था?’ श्वेता की आंखें डबडबा गईं. उस ने इधरउधर देखा और ब्लाउज में छिपा कर रखा तुड़ामुड़ा कागज निकाल कर जल्दी से उसे थमा दिया. बहुत धीरे से फुसफुसाई, ‘सब की नजर बचा कर इसे पढ़ लेना.’ श्वेता की आंखें भरी थीं, गला भरा था लेकिन पत्र देते समय उस के चेहरे पर दृढ़ता का भाव आ गया. अंकिता भौचक थी. उस ने जल्दी से पत्र ले कर  छिपा लिया और कमरे में आ गई.

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