ऊंची जाति में पैदा होना किसी मुसीबत से कम नहीं है. मैं पैदाइशी लैफ्ट हैंडर था, नैसर्गिकता छीन ली गई. व्यर्थ का मेहनत करवाया गया. सीधे हाथ से लिखना तो सीख गया लेकिन था वह पूर्णतया कृत्रिम जिस में हैंडराइटिंग सुधरने की बजाय बिगड़ती चली गई. सुंदर हस्तलिपि के लिए अलग से कठोर श्रम करना पड़ा. बावजूद इस के मैं भोजन करना नहीं सीख सका, सीधे हाथ से. नतीजा यह हुआ कि ब्राह्मणों के सार्वजनिक भोज में मुझे तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाने लगा. नसीहतें दी जाने लगीं.

मैं ने सार्वजनिक भोज में जाना ही छोड़ दिया. मेरा अपना तर्क था कि कुदरत ने 2 हाथ दिए हैं. अब दाएं से खाऊं या बाएं से क्या फर्क पड़ता है. लेकिन शास्त्रों को मानने वाले तर्क से कहां सहमत होते हैं. वे इसे विद्रोह और पाप समझते हैं.

जब कुछ बड़ा हुआ, स्कूल जाने लगा तो मेरे दोस्त भी बने. दोस्ती और प्रेम किया नहीं जाता, बस हो जाता है. कोई व्यक्ति अच्छा लगने लगता है और आप का खास दोस्त बन जाता है. बाद में पता चला कि दोस्त की जाति क्या है, उस का धर्म क्या है. मुझे क्या लेनादेना इन सब बातों से. लेकिन समाज को लेनादेना है. जब रविवार को अवकाश पर दोस्त ने खेलने के लिए घर बुलाया तो मैं चला गया. खेलतेखेलते प्यास लगी. दोस्त से पानी मांगा. दोस्त की मां ने यह कह कर पानी देने से मना कर दिया कि तुम ब्राह्मण हो, हमारे यहां का पानी कैसे पी सकते हो. तुम्हारे घर वालों को पता चलेगा तो हम लोगों की मुसीबत हो जाएगी. दोस्त की मां ने यह भी कहा कि तुम हमारे घर खेलने मत आया करो. स्कूल में ही मिल लिया करो. मुझे बहुत बुरा लगा. मेरा मन उदास हो गया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...