नई सरकार से उम्मीद की गई थी कि वह ज्यादा कुशलता दिखा कर बरबाद होता पैसा बचाएगी और देश को महंगाई के आतंक से बचाएगी पर वह अपने लंबेचौड़े वादे दूर करने के नाम पर टैक्स बढ़ाने में लगी है जैसे समृद्ध और शांति के लिए यज्ञहवन कराने की सलाह तक तो दी जाती है पर पहले मोटा दानपुण्य वसूल लिया जाता है.
स्वच्छ भारत के लिए सेवा कर को आधा प्रतिशत बढ़ाना देश पर तमाचा मारना है. साल सवा साल में देश कहीं से साफ नहीं हुआ जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश की सफाई देखते रहे और उन के चेलेचपाटे दिमागसफाई में लग गए. अब सफाई के नाम पर आधा प्रतिशत कर बढ़ा कर देशवासियों की जेब साफ कर दी गई है.
वित्त मंत्री अरुण जेटली का यह कहना कि यह कर तो योगदान है, बहकावा है. सरकार इतना पैसा करों से एकत्र करती है कि इस आधे प्रतिशत से कुछ ज्यादा बनताबिगड़ता नहीं है, यह तो सिर्फ बहाना है.
असल में भारतीय जनता पार्टी सरकार का स्वच्छ भारत का नारा खोखला साबित हुआ है क्योंकि इसे जनसमर्थन न के बराबर मिला. देश गंदा इसलिए है कि यहां गंदगी से प्रेम है, जो कर देने से नहीं जाएगा. सरकार चाहे तो भी, 120 करोड़ लोगों को साफसफाई का पाठ नहीं पढ़ा सकती.
सफाई नागरिकों का अपना कर्तव्य है पर यहां घरों, दफ्तरों, दुकानों, बाजारों, होटलों सब में गंदगी बसी रहती है और लोग ठाट से गंदगी बिखेरते चलते रहते हैं और चिंता नहीं करते. शहरी पढ़ेलिखों और ग्रामीण गंवारों में कोई खास फर्क नहीं है. दोनों बेहद गंदगी फैलाते हैं. कुछ शान से कूड़ेदान का इस्तेमाल करते हैं पर कूड़ेदान को कौन साफ करेगा, इस की कोई चिंता नहीं करता.
सरकार आमदनी बढ़ाने के लिए नएनए कर नएनए नामों से लगा रही है. और स्वच्छता कर ऐसा ही है. जो देश अपने राजपथ तक को साफ न रख पाए तो वह कब क्यों कैसे साफ होगा, यह पहेली ही है.