मायावती को कांग्रेस पीएम का फेस बनाना चाहती है, यह अफवाह है. इस के लिए 2 तारीखें भी अफवाह के रूप में सामने हैं. पहली 9 मार्च है, दूसरी तारीख लोकसभा चुनाव की अचारसंहिता लगने के बाद की बताई जा रही है. दूसरी तारीख के पक्ष में तर्क यह दिया जा रहा है कि चुनाव आचारसंहिता लगने के बाद ईडी, सीबीआई का डर खत्म हो जाएगा. इस के बाद मायावती खुल कर अपने पत्ते खोल सकेंगी. इस रणनीति के बीच कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और मायावती के बीच सीधी बातचीत को माना जा रहा है. इसे राजनीति का बड़ा उलटफेर बताया जा रहा है.

मायावती लगातार इस बात का खंडन करती रही हैं कि वे किसी गठबंधन के साथ लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी. बसपा ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. असल में मायावती गठबंधन के पक्ष में नहीं रहती हैं. चुनाव के पहले तो गठबंधन बहुत ही कम करती हैं. एकदो बार ही बसपा ने गठबंधन किया है.

1993 में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का जब गठबंधन हुआ था उस समय यह फैसला कांशीराम और मुलायम सिंह यादव ने किया था. इस के बाद भाजपा के सहयोग से मायावती 3 बार यूपी सीएम बनीं. कभी भाजपा के साथ गठबंधन नहीं किया. 2019 के लोकसभा चुनाव में सपाबसपा मिल कर चुनाव लड़ीं और चुनाव बाद अलग हो गईं.

मायावती ने दलित राजनीति की फसल काट कर अपना राजनीतिक हित साधने का काम किया है. दलित विचारधारा से जुड़े लोग मायावती को दलित नेता नहीं मानते. अंबेडकरवादी विचारधारा के लोगों का मानना है कि मायावती और कांशीराम की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा ने दलित आंदोलन को नुकसान पहुंचाया जिस से उन का विस्तार यूपी से बाहर नहीं जा पाया.

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