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पचास के युवा

केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की नई तिलमिलाहट देश में शिक्षा का गिरता स्तर या किसी होनहार दलित युवा छात्र की खुदकुशी नहीं, बल्कि राहुल गांधी की 50 साल की उम्र है जिसे ले कर उन्होंने ताना कसा है कि राहुल 50 के हो रहे हैं और खुद को युवा कहते हैं. यह निहायत ही व्यक्तिगत मामला है. इसलिए स्मृति के बयान पर किसी ने कान नहीं दिए और मानने वालों ने मान लिया कि उन के पास भाजपा आलाकमान और आरएसएस के प्रति निष्ठा जताने का इकलौता तरीका सोनिया राहुल पर कटाक्ष का ही बचा है जिस का नवीनीकरण वे जबतब करती रहती हैं.

बाजार में धूम मचाने आ रही हैं ये कारें

डर्न लाइफस्टाइल के दीवाने किशोरों को गाड़ी चलाने का कानूनी अधिकार भले ही न हो, लेकिन उन में घर के दरवाजे पर न्यू ट्रैंड की गाड़ी खड़ी रखने की ख्वाहिश जरूर होती है, आफ्टरऔल फ्रैंड्स पर रोब जमाने के लिए जरूरी जो है. मार्केट में किसी भी ब्रैंड की नई गाड़ी जब उम्दा फीचर्स के साथ उतरती है तो लोगों की जबान पर चढ़ ही जाती है खासकर गाड़ी के शौकीन किशोरों की जबान पर.

ऐसे में जब अलगअलग ब्रैंड्स की नई गाडि़यां एकसाथ औटो ऐक्सपो के महाकुंभ में देखने को मिलें तो टीनएजर्स उन्हें देख कर वाउ तो कह ही उठेंगे, साथ ही उन्हें खरीदने के लिए अपने पेरैंट्स पर भी दबाव डालेंगे ताकि अपने फ्रैंडसर्कल में छाने के साथसाथ जहां से भी उन की यूनीक कार या बाइक गुजरे तो सब उसे देखते ही रह जाएं. ऐसी ही शानदार कारों, बाइक्स, साइकिल्स, स्कूटर्स आदि का प्रदर्शन औटो ऐक्सपो 2016 में हुआ, जिस का आयोजन दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के ऐक्सपो सैंटर में किया गया. औटो ऐक्सपो में गाड़ी के शौकीनों की पसंद का खास ध्यान रखा गया, क्योंकि आज के किशोर सिर्फ गाड़ी या बाइक रखने भर से ही संतुष्ट नहीं होते बल्कि वे ऐसी गाड़ी या बाइक चाहते हैं जो जब सड़क पर दौड़े तो कोई उसे फौलो ही न कर पाए.

यहां हम आप को कुछ ऐसी गाडि़यों के बारे में बता रहे हैं जो दिखने में अच्छी होने के साथसाथ फीचर्स में भी लाजवाब हैं.

बीएमडब्लू 7 सीरीज

न्यू जनरेशन की बीएमडब्लू 7 सीरीज सीडान को मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने लौंच किया. यह कार न्यू क्लस्टर आर्किटैक्चर (क्लीयर) रीयल व्हील प्लेटफौर्म पर बनी है जो इस सीरीज की पहले की कारों से कहीं बेहतर है. इस में फ्यूल क्षमता को इंपू्रव करने के लिए ऐक्टिव एरो फंक्शन के साथ बड़ी और चौड़ी किडनी ग्रिल है. इस में लेजर लाइट हैडलैंप की सुविधा भी जोड़ी गई है. कार की बौडी को बनाने के लिए कार्बन फाइबर, स्टील, अलुमिनियम और प्लास्टिक का प्रयोग किया गया है. साथ ही सीट्स भी काफी कंफर्टेबल हैं. इस में कई फीचर्स ऐसे हैं जिन का औटोमोटिव वर्ल्ड में पहली बार प्रयोग किया गया है, जिन में रिमोट कंट्रोल पार्किंग, बीएमडब्लू डिस्प्ले की, बीएमडब्लू टच कमांड सिस्टम आदि शामिल हैं. दिल्ली में इस की ऐक्स शोरूम कीमत 1.1 करोड़ से 1.5 करोड़ रुपए के बीच है.

मस्टैंग मचाएगी धूम

भारत में अपने आकर्षक फीचर्स के कारण फोर्ड की मस्टैंग धूम मचाएगी. यह छठी पीढ़ी की कार है. इस का सब से पहला मौडल 1964 में उतारा गया था. लेकिन अब मस्टैंग यूनीक फीचर्स के साथ आ रही है. यह पहली ऐसी कार है, जिस में राइटहैंड ड्राइव यानी दाईं तरफ स्टीयरिंग है. इस में 5 लिटर यू8 इंजन होगा जो 420 बीएचपी की पावर देगा. इस में एलईडी ट्राई बार टेल लैंप्स के साथ हैडलैंप्स भी हैं.  गाड़ी के अंदर का लुक हवाईजहाज की तरह है, जिस में सैंटर कंसोल में टोगल स्विच हैं. इस में टचस्क्रीन के साथ इंफोटेनमैंट सिस्टम, एडौप्टिव क्रूज कंट्रोल आदि हैं.

नए रूप में इगनिस बलेनो

कार निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी अब तक बेमिसाल मौडल्स ही ले कर आती रही है. अब वह इगनिस और बलेनो ले कर आई है. कंपनी पहले भी बलेनो नाम से कार पेश कर चुकी है लेकिन इस बार उसे बिलकुल अलग प्लेटफौर्म पर डिजाइन किया गया है. मारुति की बलेनो आरएस में 1.0 लिटर टर्बोचार्ज्ड पैट्रोल इंजन, बूस्टर जैट का इस्तेमाल किया है. फ्यूल टैंक की क्षमता 37 लिटर है. इस कार में औटोमैटिक गियर की सुविधा भी है. इस की कीमत 7 से 9 लाख रुपए के बीच है. इगनिस 4 मीटर से छोटी कार है. मारुति ने इसे हैचबैक क्रौस एसयूवी का नाम दिया है. इस का कैबिन स्टाइलिश और स्पोर्टी स्टाइल में डिजाइन किया गया है. सीट्स भी बहुत आरामदायक हैं. इस में स्मार्ट हाइब्रिड व्हीकल बाई सुजुकी टैक्नोलौजी के साथ 1.2 लिटर ड्यूल जैट पैट्रोल इंजन है.

जगुआर ऐक्स ई देगी हाईक्लास कारों को टक्कर

औटो ऐक्सपो में न्यू जगुआर ऐक्स ई लौंच की गई, जिस की दिल्ली में ऐक्स शोरूम कीमत 39.90 लाख रुपए है. इस की लंबाई 4,672 एमएम, चौड़ाई 1,850 एमएम और हाइट 4,672 एमएम है. इस की बौडी को बनाने के लिए लाइट वेट अलुमिनियम का प्रयोग किया गया है. यह कार औडी ए4 व मर्सिडीज सी क्लास जैसी कारों को टक्कर देगी.

बाइकस्कूटर्स ने भी मचाई धूम

औटो ऐक्सपो में कारों ने तो अपने जलवे बिखेरे ही साथ ही नई बाइक्स भी आकर्षण का केंद्र रहीं. टीवीएस मोटर कंपनी लिमिटेड ने औटो ऐक्सपो में 2 बाइक्स और एक स्कूटर पेश किया, जिन में अकूला और टीवीएस ऐक्स 21 रेसिंग बाइक प्रमुख हैं. टीवीएस अकूला में ऐडवांस्ड टैक्नोलौजी का इस्तेमाल किया गया है. 6 स्पीड गियर बौक्स से लैस यह बाइक युवाओं को खास लुभाएगी. टीवीएस ऐक्स 21 रेसिंग में 212.4 सीसी इंजन है जो उसे खास बनाएगा.

स्कूटर में भी बाइक जैसा मजा

एनटोक स्कूटर होने पर भी बाइक जैसा आनंद देता है. इस में जीपीएस, एलईडी लाइटिंग और औनलाइन कनैक्टिविटी जैसे फीचर्स हैं.

स्पलैंडर आईस्मार्ट लाजवाब

बाइक के शौकीन युवाओं के लिए हीरो मोटोकौर्प ने क्लच से स्टार्ट होने वाली हीरो स्पलैंडर आईस्मार्ट 110 बाइक पेश की है. वजन में हलकी, ट्रैंडी कलर्स, ईंधन की कम खपत के लिए स्मार्ट इग्निशन सिस्टम जैसे फीचर्स तो इस में हैं ही, लेकिन एक और बढि़या खूबी यह है कि यह बाइक जब ट्रैफिक जाम में होगी या रैडलाइट पर खड़ी होगी तो इस का इंजन खुद ही बंद हो जाएगा. बाइक को रीस्टार्ट करने के लिए सिर्फ क्लच दबाना होगा.

साइकिल का भी जवाब नहीं

स्टारकेन स्पोर्ट्स ने प्रौपेल ऐडवांस्ड (एसएलओ) लौंच की है. यह दुनिया की सब से तेज साइकिल है. यह अन्य साइकिल्स से हट कर है और काफी हलकी भी है. इस में कार्बन फ्रेम्स का इस्तेमाल किया गया है. गाडि़यों व बाइक्स के स्मार्ट फीचर्स को देख कर आप भी जरूर इन के जादू में खो गए होंगे.  

हमारी मानें और सुखी रहें

मानव शरीर एक ही सांचे में कहां ढलता है. उस में तो हजारों तरह के मौडल हैं पर लगभग सभी मौडल एकजैसा काम करते हैं. बार्बी डौल बनाने वाले 57 साल से लगभग एक तरह का मौडल आदर्श शरीर की तरह पेश करते रहे हैं और बचपन से ही गुडि़याओं से खेलने वाले बच्चों के दिमाग में एक छवि बैठती रही है कि बार्बी कितनी अच्छी है. पर अब विविधता को भी जगह मिली है. दुनिया का लगभग हर देश अब विविधता को बढ़ावा दे रहा है. अमेरिका की सफलता के पीछे उस की यह विविधता रही है कि वहां हजारों तरह के लोग एक देश के नागरिक हैं और फक्र से अपने को अमेरिकी कहते हैं.

उस के मुकाबले सऊदी अरब जैसा कट्टर देश है जहां एक ही कबीले के, एक ही धर्म के, एक ही तरह की पोशाक पहने लोगों को पसंद किया जाता है. यदि सऊदी अरब के पास तेल न हो, जो उस ने खुद नहीं बनाया, तो मक्कामदीना के बावजूद उस की हालत भारत के अजमेर शहर से अच्छी नहीं होती जो टूटी सड़कों, संकरी गलियों, बदहाली, गरीबी का नमूना है. भारत में एक वर्ग देश को एक सांचे में ढालने की कोशिश कर रहा है और सांचे की डिजाइन के लिए बारबार रामायण, महाभारत, पुराणों और मनुस्मृति को खंगालता है. उस के लिए बुरा यह है कि भारत की विविधता का जोर इतना है कि उस की लाख कोशिशों के बावजूद भारत की बार्बी डौल एक सांचे वाली बन ही नहीं पा रही.

बार्बी डौल कंपनी ने विविधता को स्वीकार कर के मान लिया है कि अलगअलग तरह के लोग साथ रह कर काम कर सकते हैं और रोटीबेटी के संबंध बना सकते हैं. समाज तभी चलता है जब अलगअलग सोच के लोग साथ काम करते हैं और लकीर को नहीं पीटते. कई बार दुनिया आगे सिरफिरों के कारण ही बढ़ी है. अगर कोलंबस पर पश्चिम में पूर्व की खोज करने का पागलपन न सवार होता तो क्या वह कई जहाज ले कर अटलांटिक सागर पार करने की योजना बना पाता? अगर न्यूटन का दिमाग सेब को गिरते देख कर पगला न जाता तो क्या वह फिजिक्स के नए सिद्धांतों को खोज पाता, जिन पर आज की तकनीक टिकी है? घरघर में विविधता को जगह मिलनी चाहिए. बहू आप के नक्शेकदम पर चले, यह जोर न दें. बेटा वही करे जो पिता ने अपने बचपन में किया, यह जबरन न थोपें.

बेटियों को बार्बी डौल की तरह का बदन बनाने को मजबूर न करें. अपनी सहेलियां तरहतरह की होने दें. अपने से अलग, कुछ मुंहफट, कुछ जिद्दी, कुछ दबीसहमी सी, तो कुछ बिंदास. आप के जीवन में बहार तभी आएगी जब चारों ओर बहुत से रंग बिखरे होंगे. बार्बी डौल अब 7 रंगों में आ रही हैं. वे छरहरी ही नहीं, भरे बदन वाली भी हैं. अपने दिमाग की बार्बी को भी नए मौडलों के लिए तैयार कर लें.

इन घरेलू उपायों से त्वचा चमकाएं

बदलते मौसम की सब से बड़ी समस्या चेहरे के सौंदर्य को बनाए रखने की होती है. इस मौसम का सब से पहला प्रभाव त्वचा पर ही महसूस होता है. शरीर के अन्य सभी हिस्से तो ढके रहते हैं, लेकिन चेहरे को शुष्क हवाओं व धूलमिट्टी का शिकार बनना पड़ता है.

ऐसे मौसम में त्वचा की निचली सतह पर पाई जाने वाली तैलीय ग्रंथियां कार्य करना बंद कर देती हैं. फलस्वरूप त्वचा खुश्क और खुरदरी हो जाती है. और फिर पर्याप्त देखभाल के अभाव में फटने लगती है. असमय ही चेहरे पर झुर्रियां भी पड़ जाती हैं.

मगर त्वचा को साफ, चिकना तथा कोमल बनाए रखना कोई कठिन काम नहीं है. बस जरूरत है थोड़ी सी अतिरिक्त देखभाल की.

नियमित सफाई

चेहरे की स्वाभाविक कांति और ताजापन बनाए रखने के लिए क्लींजिंग यानी सफाई पर विशेष ध्यान दें, क्योंकि धूलमिट्टी तथा मेकअप की बासी परतों के कारण चेहरा मलिन तो लगता ही है, साथ ही रोमछिद्रों के बंद हो जाने से कीलमुंहासे भी हो जाते हैं. चेहरे की सफाई के लिए जहां तक संभव हो साबुन का प्रयोग न करें, क्योंकि साबुन में हानिकारक तत्त्व होते हैं जो त्वचा को और अधिक खुश्क बना देते हैं. हां, तेलयुक्त साबुन का प्रयोग किया जा सकता है.

इन घरेलू खाद्यपदार्थों को भी चेहरे की सफाई के लिए प्रयोग कर सकती हैं:

बेसन: 1 चम्मच बेसन को पानी में घोल कर पेस्ट बना कर चेहरे पर 5 मिनट तक लगाए रखें. फिर रगड़ कर उतारें और चेहरे को धो लें. यदि आप की त्वचा अधिक खुश्क है, तो बेसन में थोड़ी सी मलाई या कच्चा दूध मिला लें.

जौ का आटा: 2 चम्मच दूध में 1/2 चम्मच जौ का आटा व नीबू के रस की कुछ बूंदें मिला कर चेहरे पर लगाएं. कुछ देर बाद चेहरा धो लें.

दही: चेहरे पर दही का लेप करें. इस से न केवल चेहरे की सफाई होती है, बल्कि उस में चमक भी आ जाती है.

– उबटन लगाने के बाद चेहरे को कुनकुने पानी से धोएं.

– रात को सोने से पहले क्लींजिंग मिल्क चेहरे पर लगा कर गीली रुई से साफ कर लें. इस से रोमछिद्रों में छिपा मैल जो साबुन या अन्य पदार्थों से भी साफ नहीं हो पाता पूरी तरह निकल जाता है.

– त्वचा में प्राकृतिक नमी व तेल की कमी की पूर्ति के लिए सुबह मेकअप से पहले व रात को सोने से पहले मौइश्चराइजर का प्रयोग जरूर करें. यह चेहरे को निखार कर चिकना बनाता है.

– सप्ताह में 1 दिन चेहरे पर भाप लें. भाप लेने से रोमछिद्र खुल जाते हैं.

मेकअप

आकर्षक दिखने के लिए साफसुथरी त्वचा के साथसाथ मेकअप भी आकर्षक होना चाहिए. अत: इस ओर भी ध्यान देना जरूरी है:

– बदलते मौसम में त्वचा रूखी हो जाती है, इसलिए पाउडर का प्रयोग न करें. इस की जगह फाउंडेशन लगाएं.

– गहरा मेकअप करें. त्वचा से मेल खाते गहरे रंग की लिपस्टिक व आईशैडो का चुनाव करें.

– लिपस्टिक लगाने से पहले चैपस्टिक लगाएं. फटे होंठों पर लिपस्टिक भद्दी लगती है.

कुछ और उपयोगी बातें

– बदलते मौसम में अकसर होंठ फट जाते हैं, जिस से चेहरे का आकर्षण नष्ट हो जाता है. अत: इन्हें फटने से बचाने के लिए रात को सोते समय इन पर मलाई या देशी घी लगाएं.

– बाहर से घर आने पर मेकअप को अच्छी तरह साफ कर चेहरे को कुनकुने पानी से धो लें.

– भोजन में पौष्टिक तत्त्वों की मात्रा बढ़ाएं जैसे हरी सब्जियां, मौसमी फल, दालें, अंकुरित चने आदि. 

घरेलू काम: न मान, न दाम

क्याघरेलू कामकाज थैंकलैस जौब है? जी हां, यह सच है. अगर ऐसा नहीं होता तो हिंदुस्तान में कामगार के तौर पर महिलाओं की इज्जत पुरुषों से ज्यादा होती, क्योंकि वे पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा काम करती हैं. उन का काम हर समय जारी रहता है, केवल सोने के समय को छोड़ कर. यह बात एनएसएसओ यानी नैशनल सैंपल सर्वे और्गेनाइजेशन के सालाना राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण से सामने आई है. 68वें चक्र के इस सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि महिलाएं चाहे शहरों में रहती हों या गांवों में, वे पुरुषों से कहीं ज्यादा काम करती हैं.

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 68वें चक्र के आंकड़े एक और गलतफहमी दूर करते हैं कि शहरी महिलाएं शिक्षित होने के नाते अधिक कामकाजी होती हैं. आंकड़ों से मालूम होता है कि ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में शहरी क्षेत्र की महिलाएं गैरमेहनताने वाले घरेलू कार्य में अधिक व्यस्त रहती हैं. एनएसएसओ के 68वें चक्र के अनुसार, 64% महिलाएं जो 15 वर्ष या उस से अधिक आयु की हैं घरेलू कामकाज में व्यस्त रहती हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का यह प्रतिशत 60 है.

अगर शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों की बहस को छोड़ दें तो इन आंकड़ों से मालूम होता है कि ज्यादातर महिलाएं घरेलू कामकाज में व्यस्त रहती हैं, जिस का उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं मिलता है. इन आंकड़ों से भी इस मांग को बल मिलता है कि घरेलू कामकाज को श्रम माना जाए और महिलाओं को उस का मेहनताना दिया जाए. गौरतलब है कि ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में लगभग 92% महिलाएं अपना ज्यादातर समय घरेलू काम में व्यतीत करती हैं.

बहरहाल, प्रत्येक राज्य व केंद्र शासित प्रदेश में 1 लाख घरों को इस सर्वे में शामिल किया गया, जिस में चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि शहरी क्षेत्र की अधिकतर महिलाएं कहती हैं कि वे घरेलू काम अपनी व्यक्तिगत इच्छा के कारण करती हैं. जबकि ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का कहना है कि वे घरेलू काम इसलिए करती हैं, क्योंकि उसे करने के लिए कोई और सदस्य उपलब्ध नहीं है.

जुलाई, 2011 से जून, 2012 तक के इस 68वें चक्र से यह भी जाहिर होता है कि चूंकि शहरों में छोटे परिवार ज्यादा हो गए हैं, इसलिए घरेलू जिम्मेदारियों को बांटने के लिए सदस्यों की कमी रहती है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में ऐसी स्थिति नहीं है.

दिलचस्प बात यह है कि लगभग 34% ग्रामीण महिलाओं ने इस बात की इच्छा व्यक्त की कि अगर उन्हें घर पर ही कोई अन्य काम दिया जाए तो वे उसे खुशीखुशी स्वीकार लेंगी, जबकि 28% शहरी महिलाओं ने ही घर पर रह कर कोई अन्य काम करने की इच्छा व्यक्त की. दोनों क्षेत्रों में मात्र 8% महिलाएं ही ऐसी हैं, जिन्हें अपना ज्यादातर समय घरेलू काम करते हुए गुजारना नहीं पड़ता.

अब सवाल यह है कि घरेलू काम के अतिरिक्त घर पर रहते हुए महिलाएं किस किस्म के काम को करने को अधिक प्राथमिकता देती हैं? सर्वे से मालूम पड़ता है कि सिलाई का काम महिलाओं को अधिक पसंद है. दोनों क्षेत्रों में 95% महिलाएं नियमित आधार पर कार्य करने को प्राथमिकता देती हैं. महिलाओं की दिलचस्पी स्वरोजगार में भी है, बशर्ते उन्हें व्यापार करने के लिए रिआयती व आसान दर पर ऋण दिया जाए.

दिलचस्प बात यह है कि इस सिलसिले में भी ग्रामीण महिलाओं का प्रतिशत (41), शहरी महिलाओं के प्रतिशत (29) से कहीं ज्यादा है. इस के अलावा 21% ग्रामीण महिलाओं और 27% शहरी महिलाओं ने कहा कि अपनी इच्छा का कार्य करने के लिए वे पहले ट्रेनिंग लेना पसंद करेंगी.

2011-12 के सर्वे से यह तथ्य भी सामने आया है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान शहरी क्षेत्र में घरेलू कार्य में जुटी महिलाओं का प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में लगभग एक सा ही रहा है. घरेलू कार्य में जुटी महिलाओं का प्रतिशत 2004-05 में जहां 45.6 था, वहीं 2009-10 में बढ़ कर 48.2% हो गया, लेकिन 2009-10 और 2011-12 के बीच वह लगभग समान ही रहा है.

दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्र में घरेलू कामों में जुटी महिलाओं का प्रतिशत निरंतर बढ़ता जा रहा है. मसलन, 61वें चक्र में यह प्रतिशत 35.3% था जो 66वें चक्र में बढ़ कर 40.1% हो गया और वर्तमान चक्र में यह 42.2% है. अगर क्षेत्र की दृष्टि से देखें तो उत्तरी राज्यों खासकर पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में महिलाएं घरेलू काम में अधिक जुटी हुई हैं. दक्षिण व उत्तरपूर्व राज्यों में यह स्थिति कम है.

जरूरी है अर्थिक स्वतंत्रता

बहरहाल, जहां घरेलू काम को ‘उत्पादक श्रम’ की श्रेणी में शामिल करने की मांग बढ़ती जा रही है, वहीं एनएसएसओ से यह भी आग्रह किया जा रहा है कि वह ‘समय प्रयोग सर्वे’ को लागू करे. इस का एक फायदा यह होगा कि शोधकर्ताओं को मालूमहो जाएगा कि घर पर रहने वाली महिला कितना समय आर्थिक दृष्टि से उत्पादक गतिविधि में व्यतीत करती है.

इस में कोई संदेह नहीं है कि समाज में महिलाओं की स्थिति उसी सूरत में मजबूत हो सकती है जब वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हों. जाहिर है, इस के लिए जरूरी है कि महिलाओं द्वारा किए जा रहे घरेलू कार्य को श्रम माना जाए और उन्हें इस का आर्थिक मेहनताना मिले. इस के अलावा यह भी जरूरी है कि महिलाओं की संपूर्ण स्थिति को सामने लाने के लिए एनएसएसओ उन से आधुनिक संदर्भों पर भी सवाल करे जैसे- क्या वे घर से बाहर कोई वेतन कार्य करना पसंद करेंगी या घरेलू काम के बोझ को वे किसी दूसरे के साथ बांटना चाहेंगी आदि.

किसी भी विकसित देश की तमाम अलगअलग परिभाषाओं में एक महत्त्वपूर्ण परिभाषा या फिर कहें उस के विकसित होने को साबित करने वाली स्थिति यह होती है कि उस देश की तमाम महिलाएं उस देश के पुरुषों की ही तरह कामकाजी होती हैं. कामकाजी होने से यहां आशय पुरुषों के बराबर महत्त्व वाले घर से बाहर के कामकाजों में हिस्सेदारी करना और उन्हीं के बराबर वेतन पाना है. जिन देशों में ऐसी स्थितियां नहीं हैं वे कम से कम विकसित देशों की सूची में नहीं आते. इसलिए भी हिंदुस्तान को अभी लंबा सफर तय करना है, क्योंकि हमारे यहां श्रम के मामले में महिलाएं यों तो पुरुषों से कहीं ज्यादा श्रम करती हैं, लेकिन उन के श्रम को उतना पारितोष नहीं मिलता जितना पुरुषों को मिलता है.

अगर 2020 तक भारत को एक बड़ी आर्थिक ताकत बनना है तो हमें अपने देश की महिलाओं के श्रम की महत्ता को समझना होगा. लेकिन समझने से आशय महज मुंहजबानी शाबाशी देना या यह कहना कि सब कुछ तुम्हारा ही तो है, से नहीं है, बल्कि इस से आशय महिलाओं के श्रम को आर्थिक दृष्टि से बराबर का सम्मान देना है और उन्हें तमाम आर्थिक गतिविधियों का अनिवार्य व बराबर की ताकत वाला महत्त्व देना है.

सवाल जो सर्वे में नहीं पूछे गए

यह सच है कि नैशनल सैंपल सर्वे के आंकड़ों से बहुत कुछ पता चलता है, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अगर इस सर्वेक्षण को सामाजिक, आर्थिक दृष्टि से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बनाना है, तो इस में हर उस सवाल को शामिल करना जरूरी होगाजो महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को विस्तार से बयां कर सके, क्योंकि महत्त्वपूर्ण होते हुए भी इस सर्वे की कई खामियां हैं और वे आमतौर पर न पूछे गए जरूरी सवालों को ले कर ही हैं.

मसलन, सर्वे में महिलाओं से इस संबंध में सवाल नहीं किया गया कि क्या वे घर से बाहर के कामकाज में शामिल होना चाहेंगी? यह प्रश्न इसलिए भी आवश्यक था, क्योंकि घर पर रह कर घरेलू काम करने वाली महिलाओं में से बहुत कम ही ऐसी होंगी जो घर के बाहर जा कर काम करते हुए वेतन लेने की इच्छुक न हों. महिलाएं इस बात से भी काफी आहत रहती हैं कि पुरुषों के मुकाबले काफी ज्यादा काम करने के बावजूद उन के काम से ठोस रूप में घर वेतन नहीं आता, इसलिए उन के काम को महत्त्व नहीं दिया जाता.

यही नहीं, न सिर्फ महिलाओं के श्रम को नकद वेतन मिलने वाले श्रम के मुकाबले कम महत्त्व दिया जाता है, बल्कि उस श्रम की सामाजिक प्रतिष्ठा भी बहुत कम है. महिलाएं इस पीड़ा से अकसर दोचार होती रहती हैं. मगर इस सर्वेक्षण में उन की इस पीड़ा को व्यक्त करने वाला कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है. इस लिहाज से भी यह सर्वेक्षण की एक बड़ी खामी है.

अधूरी तसवीर

इस सर्वेक्षण में एक और जरूरी पहलू पर महत्त्वपूर्ण राय नहीं पता चल पाई कि अगर इस सर्वेक्षण में घर पर रहने वाली महिलाओं से यह सवाल किया जाता कि उन्हें सवेतन संबंधी काम करने के लिए आखिर किस चीज की ज्यादा जरूरत है- अच्छी क्वालिफिकेशन की, शुरू से घर से बाहर काम करने की मानसिकता के तहत की जाने वाली परवरिश की, अपना काम शुरू करने के लिए नकद पैसों की, परिवार के सदस्यों के प्रोत्साहन की या महिलाओं को घर के बाहर के कामकाज को बढ़ावा देने वाली संस्कृति की? यह जानना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि सामूहिक रूप से किसी विस्तृत राय के अभाव में हम लोग महज अनुमान लगाते हैं कि महिलाएं किस बात या चीज की कमी के चलते खुद को कोल्हू के बैल माफिक मानती हैं.

इस सवाल के अभाव में हम तार्किक रूप से यह भी नहीं जान सकते कि महिलाएं क्या सोचती हैं कि जब वे घर का काम नहीं करेंगी तो फिर उन की नजर में यह काम किसे करना चाहिए? जैसे आज की स्थिति में तमाम घर के काम उन के जिम्मे हैंक्या कल वे भी इसी तरह घर के तमाम कामों को पुरुषों के सिर पर डालना चाहती हैं? या फिर पुरुषों ने भले उन के साथ बराबरी का व्यवहार न किया हो और बाहर का काम करने के बाद भी उन से घर के पूरे काम की अपेक्षा करते हों, वे प्रोफैशनल कामकाजी होने के बाद घर के काम के लिए बराबरी के बंटवारे पर भरोसा करती हैं?

यह भी जानना जरूरी था कि महिलाएं नौकरी करना ज्यादा पसंद करती हैं या अपना काम? अगर अपना काम करना पसंद करती हैं, तो इस क्षेत्र में उन्हें सब से बड़ी बाधा फिलहाल क्या लगती है? इन जरूरी सवालों के अभाव में यह सर्वेक्षण महिलाओं के कामकाज की स्थिति और उन के आर्थिक आकलन की एक तसवीर तो पेश करता है, मगर यह तसवीर कुल मिला कर अधूरी ही है.

अनचाहे बाल, अब कल की बात

प्रस्तुत हैं, कुछ ऐसे उपाय जिन से बिना किसी परेशानी के आसानी से अनचाहे बालों को हटाया जा सकता 

घरेलू उपचार से भी चेहरों के अनचाहे बाल हटाए जा सकते हैं. इस के लिए एक कटोरे में 1 अंडे का सफेद भाग ले कर उस में चीनी और कौर्नफ्लोर डाल कर अच्छी तरह मिलाएं. फिर इसे चेहरे और गरदन पर लगा कर 15 मिनट मसाज करने के बाद 5 मिनट ऐसे ही छोड़ दें. बाद में चेहरे को ठंडे पानी से धो लें. ऐसा हफ्ते में 2-3 बार करें. बाल हट जाएंगे.

– चीनी डैड स्किन को तो हटाती ही है, चेहरे के बालों को भी जड़ से निकाल देती है. अत: अपने चेहरे को पानी से गीला कर उस पर चीनी लगा कर हलके हाथों से रगड़ें. ऐसा हफ्ते में 2 बार जरूर करें.

– हलदी पाउडर में नमक, कुछ बूंदें नीबू का रस और थोड़ा दूध डाल कर अच्छी तरह मिला कर उस से चेहरे की 5 मिनट तक मसाज करें.

– बेसन में हलदी और दही डाल कर मिलाएं और फिर चेहरे पर 20 मिनट लगाए रखें. बाद में दूध और ठंडे पानी से धो लें. ऐसा हफ्ते में 2 बार करें.

– बेसन में हलदी और सरसों का तेल डाल कर गाढ़ा पेस्ट बनाएं. फिर इसे चेहरे पर लगा कर रगड़ें. ऐसा करने से अनचाहे बाल हट जाएंगे और चेहरा साफ हो जाएगा.

उपाय पैरों के बाल हटाने के

– वैक्स त्वचा के अनचाहे हार्ड बालों को निकालने का कारगर तरीका है. इस से बालों को जड़ से निकाला जा सकता है. हालांकि इस में हलका सा दर्द होता है, परंतु इस तरीके से काफी दिनों तक त्वचा पर बाल नहीं आते हैं.

हेयर रिमूवल क्रीम

आजकल बाजार में तरहतरह की हेयररिमूवर क्रीमें आसानी से उपलब्ध हैं, जिन से कुछ ही मिनटों में अनचाहे बालों से छुटकारा पा सकती हैं. क्रीम से त्वचा को न तो कोई नुकसान पहुंचता है और न ही दर्द होता है. त्वचा सौफ्टसौफ्ट, खिलीखिली रहती है

स्कूल में सीखें सैल्फ डिफैंस

हर दिन लड़कियों के साथ छेड़छाड़, चोरी, लूटपाट, पीछा करना, डराना धमकी देना जैसी घटनाएं घटित हो रही हैं. अधिकांश लड़कियां यह सोच कर चुप रहती हैं कि अगर उन्होंने कुछ बोला तो वे बड़ी मुसीबत में न फंस जाएं. कई बार तो उन्हें समझ भी नहीं आता कि वे इस तरह की स्थिति में क्या करें, किस तरह से अपनी रक्षा करें.

लड़कियां अपनी सुरक्षा स्वयं करें इस के लिए सीबीएसई बोर्ड ने एक पहल की है. जिस के तहत सीबीएसई स्कूलों में अब सैल्फ डिफैंस की टे्रनिंग कंपल्सरी होगी. इस से संबंधित गाइडलाइन बोर्ड ने सारे स्कूलों में जारी कर दिया है. इस में यह कहा गया है कि सभी स्कूल सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग दें, जिस में मार्शल आर्ट पर खास फोकस हो. सीबीएसई की ओर से जारी इस गाइडलाइंस के अनुसार स्कूलों की जिम्मेदारी होगी कि वे 9वीं और 10वीं क्लास की लड़कियों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग जरूर दें. स्कूलों में पहले से ही फिजिकल ऐंड हैल्थ एजुकेशन पढ़ाया जा रहा है और यह ट्रेनिंग भी इसी के तहत दी जाएगी.

सर्टिफिकेट में मिलेगा ग्रे

सिविल डिफैंस और सैल्फ डिफैंस ट्रेनिंग को फारमेटिव असेसमैंट का भाग बनाया जाएगा. 10वीं क्लास में चाहे स्कूल बेस्ड एग्जाम दें या फिर बोर्ड एग्जाम दोनों के लिए सर्टिफिकेट सीबीएसई जारी करता है. सीबीएसई सर्टिफिकेट में भी सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग को जगह दी जाएगी, जो स्टूडेंट सैल्फ ट्रेनिंग कोर्स में पास करेंगे उन को सर्टिफिकेट में अच्छे गे्रड मिलेंगे.

अपनी सुरक्षा के लिए साथ रखें टूल्स

आज मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग के साथ साथ अपने पास सैल्फ डिफैंस के कुछ टूल्स रखना भी जरूरी हो गया है ताकि कठिन परिस्थिति में घबराने के बजाय अपनी सुरक्षा स्वयं की जा सके. आजकल मार्केट में कई तरह के सैल्फ डिफैंस टूल्स जैसे वैलेट अलार्म, स्पाइकी चेन, हेयरब्रश, नाइफ टेजर, लिपस्टिक नाइफ, पेपर स्प्रे इत्यादि चीजें मिल रही हैं. इन टूल्स को अपन पास रखने के साथसाथ कुछ छोटीछोटी बातों का भी ध्यान रखें. जैसे रास्ते पर जाते समय फोन पर बातें करते हुए न जाएं. न ही फोन पर बताएं कि आप घर पर अकेली हैं. रात के समय खाली बस में चढ़ने से बचें.

हंसी तो फंसी…

अकसर युवक यही सोचते हैं कि अगर युवतियां उन्हें देख कर हंस दी हैं तो इस का मतलब उन की तो निकल पड़ी यानी लड़की की हंसी का सीधा मतलब फंसी से है. भले ही लड़की ने उसे दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए स्माइल दी हो लेकिन उस का दिमाग तो इसे गलत सिगनल ही समझता है. एक अध्ययन के जरिए साबित हुआ है कि यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि पुरुष का दिमाग किस तरह विकसित हुआ है. जो युवक पौर्न साइट्स ज्यादा देखते हैं उन का युवतियों को देखने का नजरिया थोड़ा अलग होता है.

इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पुरुष महिलाओं को देख कर तुरंत आकर्षित हो जाते हैं और उन से अपने रिश्ते को गंभीर बनाने के लिए न सिर्फ अपना समय बल्कि पैसा लगाने से भी गुरेज नहीं करते. बस उन के हाथ से प्रेमिका नहीं निकलनी चाहिए. नार्वे यूनिवर्सिटी औफ साइंस ऐंड टैक्नोलौजी की रिसर्च में यह साबित हुआ है कि जिन महिलाओं ने पुरुषों के साथ दोस्ताना व्यवहार किया उन्हें अकसर सैक्सुअल नजर से ही देखा गया यानी उन के लिए महिला की दोस्ती का मतलब फंसी व सैक्स से ही होता है.

रिवर सेंटर: गंगा को दुरुस्त करने की कवायद

इस हकीकत से शायद किसी को भी परहेज  नहीं होगा कि भारत में नदियों के नाम पर नाले बहते हैं. यदि देश की सबसे बड़ी और जीवनदायिनी नदी गंगा की बात करें, तो इसमें पानी कम और कचरा ज्यादा दिखाई पड़ता है. खासतौर पर  धर्म के नाम पर तो शुद्ध अशुद्ध हर वस्तु को इसमें बहा दिया जाता है. लेकिन इसे साफ़ करने के लिए सरकार द्वारा कई कागजी घोड़े दौड़ाए जा चुके हैं मगर हल अभी तक कुछ भी नहीं निकला है.

इसी कवायद में एक बार फिर गंगा को साफ़ करने के प्रयास की कड़ी में आईआईटी कानपुर में 'रिवर साइंस' सेंटर खुलने  की चर्चा हो रही है. गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी कोऑर्डिनेटर के पद पर आईआईटी कानपुर में कार्यरत प्रो. विनोद तारे कहते हैं, 'आईआईटी कानपुर में विभिन्न नदियों को लेकर लगातार रिसर्च होती रही है. गंगा भी इनमें से एक है. यह रिवर सेंटर हमारे इन प्रयासों को और भी मजबूत बनाएगा.'

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में 'नमामी गंगे' इंजीनियर्स इण्डिया लिमिटेड द्वारा जो प्रोजेक्ट चलाया जा  रहा है उसके देखरेख की जिम्मेदारी प्रो. तारे को  ही दी गयी है. इस प्रोजेक्ट द्वारा गंगा नदी में गिर रहे नालों को रोकने के लिए प्लान तैयार किया जाएगा.  वैसे गंगा की सफाई को लेकर यह कार्य पहली बार नहीं हो रहा बल्कि कई बार अलग अलग स्तर पर इसके लिए  काम  किया जा चुका है.  यदि अतीत में जाया जाए तो गंगा में प्रदूषण की शुरुआत 1932  में तब हुई, जब कमिशनर हॉकिन्स ने बनारस का एक गन्दा नाला गंगा नदी से जोड़ने के आदेश दिए थे. इसके बाद इन नालों को गंगा से जोड़ने का सिलसिला आज तक नहीं थमा है.

इसी तरह गंगा प्रदूषण मुक्ति की शुरुआत 1986 में 'गंगा कार्य योजना' से हुई. तब से अब तक गंगा को अविरल-निर्मल बनाने के नाम पर करोड़ों रुपया खर्च किया जा चुका है. ऐसे में इस नए सेंटर को चलने के लिए प्रतिवर्ष 9 करोड़ रुपया सरकार द्वारा आईआईटी को देने की बात हजम नहीं होती.

सेंटर करेगा यह कार्य

– सेंटर में गंगा, यमुना से लेकर अन्य नदियों की स्थितियों का मूल्यांकन होगा. 

– नदियों के फ्लो के साथ बढ़ रहे प्रदूषण समेत अन्य विषयों पर भी काम होगा. 

– अन्य तकनीकी इंस्टीट्यूट से भी इस सेंटर को जोड़ा जाएगा. 

– नदियों की साफ़ सफाई को लेकर नए नए शोध होंगे.

सियासी रंगों से सैफई में फीका पड़ा शादी का रंग

मार्च का महीना होली को होता है. होली रंगों का त्योहार है. राजनीति में नेताओं के संबंध मेल मिलाप पर भी सियासत का रंग दिखता है. उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव की शादी राजलक्ष्मी के साथ बडी धूमधम से सैफई में सम्पन्न हुई. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी सांसद पत्नी डिंपल यादव, समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव और अमर सिंह जैसे बडे लोग शादी में शरीक हुये. मुलायम सिंह यादव अपने छोटे भाई शिवपाल यादव को बहुत मान और सम्मान देते है. इटावा के सैफई गांव में हुई इस शादी की तुलना कुछ समय पहले मुलायम परिवार के तेज प्रताप यादव की शादी से की जा रही है. जिसमें इस शादी का रंग फीका दिख रहा है.

तेज प्रताप की शादी में प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर देश के बडे बडे नेताओं और अभिनेताओं को मुलायम परिवार की ओर से बुलावा भेजा गया था. सभी लोगों ने पूरा समय देकर तेज प्रताप की शादी में दावत का स्वाद लिया था. जब आदित्य यादव की शादी तय हुई और सैफई में शादी का आयोजन शुरू हुआ तो लोगों को उम्मीद थी कि एक बार फिर से प्रधनमंत्री से लेकर दूसरे प्रमुख नेता और अभिनेता सैफई आयेगे. सैफई में सियासी जमघट का जो रंग देखने को नहीं मिला, मुलायम परिवार उसकी कमी 13 मार्च को लखनऊ में पूरा करने की कोशिश में है. उस दिन जनेश्वर मिश्रा पार्क में आदित्य की शादी का रिसेप्शन दिया जा रहा है.

आदित्य की शादी उत्तर प्रदेश के विधनसभा चुनाव से पहले हुई. ऐसे में विरोधी दलों के नेताओं का शादी की दावत में शामिल होना वोट बैंक की राजनीति से मुफीद नहीं लग रहा था. आज का दौर सोशल मीडिया का दौर है, जहां हंसते मुस्कराते फोटो के वायरल होते देर नहीं लगती. लिहाजा दोनो ही तरफ से दूरी बरती गई. उत्तर प्रदेश की राजनीति में नेताओं के आपसी संबंधें को वोट बैंक से जोड कर देखने का रिवाज है. यही वजह है कि कभी समाजवादी नेता मुलायम और बहुजन समाज पार्टी नेता मायावती एक मंच पर नहीं दिखे.

मायावती के प्रति सपा नेताओं के मन में बने भाव शहद में डूबे तीर की तरह समय समय पर निकलते रहते है. सपा प्रदेश में अपना मुकाबला भाजपा के साथ ही दिखाना चाहती है, ऐसे में भाजपा के बडे नेताओं के साथ हंसीखुशी के पल बांटना नुकसानदायक न हो जाय, इसलिये सैफई में पहले जैसा माहौल नहीं दिखा. 2014 के लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव के पहले मुलायम विपक्षी दलों की धुरी बनते दिख रहे थे, वह माहौल भी बदल चुका है. इन सब सियासी रंगों ने सैफई में हुई शादी के रंग को पफीका कर दिया.

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