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रियो ओलंपिक के बाद उसैन बोल्ट करेंगे बड़ा खुलासा

दुनिया के सबसे तेज धावक उसैन बोल्ट की रफ्तार रियो ओलंपिक के बाद हमेशा के लिए थम जायेगी. बोल्ट ने अपने कैरियर को रियो ओलंपिक बाद खत्म करने का ऐलान कर दिया है. जमैका के धावक उसैन बोल्ट ने उन सभी कयासों और अटकलों पर लगाम दे दिया जिसमें कहा जा रहा था कि वह 2020 के ओलंपिक में भी हिस्सा ले सकते हैं.

बोल्ट के कोच ग्लेन मिल्स ने उन्हें सुझाव दिया है कि इस ओलंपिक तक वह फिट रहेंगे. वहीं बोल्ट का कहना है कि वह इस ओलंपिक में तीन गोल्ड मेडल जीतने की तैयारी कर रहे हैं. बोल्ट ने कहा कि रियो डी जेनेरियो ओलंपिक मेरा आखिरी ओलंपिक होगा. उन्होंने कहा कि अगले चार साल तक खुद को आगे ले जा पाना मुश्किल होगा.

दीपिका के बारे में ये क्या बोल गए रणवीर सिंह

रणवीर सिंह को दीपिका पादुकोण के साथ अपने कथित रिश्ते की अभी पुष्टि करनी है लेकिन ‘बाजीराव मस्तानी’ के अभिनेता ने अदाकारा को एक अच्छी ‘बेटर हाफ’ और बहुत खूबसूरत महिला करार दिया है. हालांकि दोनों एक दूसरे के प्रति अपने स्नेह को सार्वजनिक तौर पर इजहार करने से झिझकते नहीं हैं, पर शब्दों का चयन बेहद सावधानी से करते हैं.

एक अवार्ड समारोह में पुरस्कार लेने के बाद उन्होंने कहा, ‘यह सर्वश्रेष्ठ जोड़ी के लिए है और जोड़ी की ‘बेटर हाफ’ अभी यहां नहीं है, लेकिन मैं आपकी शुभकामनाएं उन तक पहुंचा दूंगा. जैसा करीना ने पहले कहा था, मेरे पास सबसे खूबसूरत महिला है. सब का शुक्रिया.’

दीपिका इस अवार्ड में नहीं आ सकीं क्योंकि वह हॉलीवुड में अपनी पहली फिल्म ‘एक्सएक्सएक्स : द रिटर्न ऑफ जेंडर केज’ की अमेरिका में शूटिंग कर रही हैं. अवार्ड समारोह से पहले करीना ने यह कह कर छेड़ा था कि उनके (रणवीर के) पास ‘सबसे खूबसूरत महिला है.’ इस पर 30 वर्षीय रणवीर शरमा गए थे.

अब अनुष्का शर्मा पर फिदा हुए सलमान खान

सुपर स्टार सलमान खान ने ‘सुल्तान’ में अपनी सह अभिनेत्री रहीं अनुष्का की तारीफ करते हुए कहा कि उन जैसी प्रतिभावान कलाकार के साथ काम करके उन्हें बहुत अच्छा लगा. पिछले साल जब फिल्म का ऐलान किया गया था तब से उसके लिए कई अभिनेत्रियों के नामों की चर्चा हुई, लेकिन फिल्म के लिए अनुष्का का चयन किया गया. जब सलमान से 27 वर्षीय अनुष्का के साथ काम करने के उनके अनुभव के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘यह शानदार रहा है. अच्छे और प्रतिभावान लोगों के साथ काम करके अच्छा लगा.’ फिल्म में सलमान सुल्तान अली खान की भूमिका में है जो हरियाणा का एक पहलवान है. 50 वर्षीय अभिनेता ने यशराज फिल्म्स की इस फिल्म को अपने करियर की सबसे मुश्किल फिल्मों में से एक बताया.

उन्होंने कहा, ‘मैं कड़ी मेहनत कर रहा हूं. यह मेरी सबसे कठिन फिल्मों में से एक है.’ इस खेल ड्रामा के निर्देशक अली अब्बास जफर खान हैं. यह फिल्म इस वर्ष ईद पर रिलीज होनी है और बॉक्स ऑफिस पर इसकी भिड़ंत शाहरूख खान की ‘रईस’ से होगी.

ओह! तो इस वजह से करीना ने कर दी ‘बादशाहो’ रिजेक्ट

अब ये तो सबको पता चल ही चुका है कि करीना कपूर ने अजय देवगन की बादशाहो रिजेक्ट कर दी है और फिल्म के लिए अब प्रियंका चोपड़ा का नाम हर कोई फाइनल करना चाह रहा है. लेकिन करीना कपूर को बादशाहो का किरदार काफी पसंद आया था, इसलिए फिल्म को उनका रिजेक्ट करना किसी की समझ नहीं आया.

दरअसल, कारण हैं सैफ अली खान. सैफ अली खान को भी बादशाहो में एक रोल ऑफर किया गया पर उन्होंने बहुत ज़्यादा फीस मांगी. और डायरेक्टर मिलन लूथरिया ने उन्हें फीस कम करने को कहा पर सैफ नहीं माने.  ऐसे में उन्होंने फिल्म छोड़ दी. अब इसे कहते हैं सच्चा प्यार. वैसे सैफ अली खान की पिछली फिल्मों का ग्राफ देखा जाए तो उन्हें फीस की बजाय रोल पर ध्यान देना चाहिए था.

खबर है कि रंगून में भी उन्हें कंगना रनौत से कम फीस मिल रही है और इस बात से अब उन्हें दिक्कत हो रही है. बहरहाल, करीना का बादशाहो रिजेक्ट करना काफी बोल्ड कदम था. लेकिन उनके बोल्ड बयानों से कम.

पाकिस्तान क्रिकेट में घमासान

अभी क्रिकेट का टी 20 वर्ल्ड कप चल ही रहा है कि पाकिस्तान क्रिकेट में चल रहा गृहयुद्ध सामने आ गया है. पाकिस्तान ने अपना पहला मैच बंगलादेश के खिलाफ जीता था, लेकिन दूसरे मैच में वह भारत से हार गया. इस के बाद तो पाकिस्तान क्रिकेट टीम के कप्तान शाहिद अफरीदी पर संकट के बदल मंडराने लगे. अभी यह टूर्नामेंट चल ही रहा है कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष शहरयार खान ने ऐलान कर दिया कि शाहिद अफरीदी को इस वर्ल्ड कप के बाद कप्तानी से हटा दिया जाएगा.
कोलकाता से लाहौर जाने के बाद शहरयार खान ने कहा कि शाहिद अफरीदी और बोर्ड के बीच यह तय हो चुका था कि वे वर्ल्ड कप के बाद रिटायरमेंट ले लेंगे. अगर वे अपना इरादा बदलेंगे, तो फिर सोचा जाएगा कि उन्हें टीम में रखा जाए या नहीं.
पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने यह भी इशारा किया है कि टीम के कोच में भी बदलाव हो सकता है. अभी कोच वकार यूनिस हैं. पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के इस तरह के फैसलों से यह साफ़ जाहिर होता है कि पाकिस्तान क्रिकेट का क्या हाल है. किसी टूर्नामेंट के बीच में कप्तान को हटा देने की बात का बुरा असर उन के आगे आने वाले मैचों पर भी पड़ेगा. वैसे भी अभी पाकिस्तान की टीम टूर्नामेंट से बाहर नहीं हुई है.
 

होली पर छाये सूखे रंग

होली के त्योहार का रंग बदल गया है. अब गीले और स्किन को खराब करने वाले रंगों से परहेज होने लगा है. पहले होली खेलने के लिये लोग पुरानी ड्रेस का उपयोग करते थे, जिससे उसके खराब होने पर भी फर्क नहीं पडता था. अब ज्यादातर महिलायें होली के रंगों का लुत्फ उठाने के लिये डिजाइनर पोशाके पहन कर आती है. होली का आयोजन फाइव स्टार होटलों में होने लगा है. लखनऊ के फाइव स्टार होटल रेनंसा में होली हंगामा पार्टी का आयोजन किया गया. होली हंगामा में सबसे अच्छी ड्रेस पहन कर रैंप पर खूबसूरत स्टाइल दिखाने वाली अंजुम, सुची और निधि को होली क्वीन के रूप में चुना गया. होली हंगामा पार्टी में हिस्सा लेने वालों के बीच कई तरह के होली गेम्स भी खेले गये.

होली के मजेदार गानों पर भाव्या और श्वेता ने डांस किया. होली हंगामा का आयोजन करने वाली सलोनी केसरवानी ने बताया कि होली हंगामा पार्टी को पूरी तरह से होली के रंग में रंगने के लिये सूखे रंगों का प्रयोग किया गया. सभी ने एक दूसरे पर रंग लगाये. होटल रेनेंसा के खूबसूरत लौन में रंग खेलने का इंतजाम किया गया था. गेम्स के विजेताओं को उपहार दिया गया. सलोनी ने बताया कि सूखे रंगों से होली खेलने से स्किन खराब नहीं होती ड्रेस से रंग को आसानी से छुडाया जा सकता है.आजकल लोग रंगों में मिलावट  की वजह से रंग खेलने से बचते है. सूखे रंगों से खेलने में पानी की बरवादी को भी रोका जा सकता है. ऐसे में जरूरी है कि सूखे रंगों की होली को बढावा दिया जाये.       

मुख्यमंत्री ने छुडाये अफसरों के छक्के

वैसे तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को खेलों में फुटबाल पसंद है. पिछले 4 सालों से वह क्रिकेट के खेल में अफसरों के छक्के छुडा रहे हैं. हर साल आईएएस वीक के दौरान मुख्यमंत्री इलेवन बनाम आईएएस इलेवन के बीच क्रिकेट का मैच खेला जाता है. दिलचस्प बात यह है कि हर साल मुख्यमंत्री इलेवन ही मैच को जीत जाता है. लामार्ट कालेज के मैदान पर साट वौल से खेले गये मैच में मुख्यमंत्री इलेवन ने 8 विकेट पर 127 रन बनाये, जिसमें सबसे अधिक 65 रन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बल्ले से निकले. मैन आफ द मैच का खिताब भी मुख्यमंत्री के ही नाम रहा. इसके जवाब में आईएएस इलेवन ने 20 ओवर में केवल 126 रन बनाये. मैच को देखने से लगा कि जिन गेदों पर अफसर रन बना सकते थे, वह रन के लिये नहीं दौडे. मुख्यमंत्री के भतीजे और सांसद तेज प्रताप यादव ने एक के बाद एक 9 ओवर गेंद की. सुबह 8 बजे से खेले गये मैच के लिये किसी इंटरनेशनल मैच की तरह व्यवस्था की गई थी.

मुख्यमंत्री इलेवन में मंत्री नेता थे, तो आईएएस इलेवन में सभी अफसर थे. अभिनेत्री मंदिरा बेदी और पूनम पांडेय मैदान पर  ग्लैमर का तडका लगाने के लिये मौजूद थी. आकाशवाणी और दूरदर्शन के एंकर क्रिकेट कमेंट्री करते दिखे. अफसरों की रूचि मुख्यमंत्री इलेवन को हराने में नहीं थी. मुख्यमंत्री को आउट करने वाले अपफसर राजकमल ने खुशी मनाने की जगह पर अपना सिर पकड लिया. अफसरों और नेताओं के बीच आपसी सामंजस्य बनाने के लिये क्रिकेट का मैच बेहतर साधन हो सकता है. जिस तरह लगातार 4 साल से अफसर हारते नजर आये उससे साफ लगा कि वह अपने खेल में सुधार नहीं कर सके.

दूसरी तरफ मुख्यमंत्री इलेवन में भी दूसरे नेताओं की तरह केवल अखिलेश यादव ही खेलते नजर आये. इससे मैच देखने वालों को महसूस हो रहा था कि मैच फिक्स था. मैच देखने वालों में मुख्यमंत्री की सांसद पत्नी डिपंल यादव और उनके बच्चों ने भी मुख्यमंत्री का हौसला बढाया.           

स्वरुप संपतः किरदार से मेरी निजी जिंदगी कोसों दूर

 ‘‘मिस इंडिया’’ का खिताब हासिल करने के बाद अस्सी के दशक के अति लोकप्रिय सीरियल ‘‘ये जो है जिंदगी’’ में अपने अभिनय का जलवा बिखेरते हुए सफलतम अभिनेत्री बन जाने वाली अदाकारा स्वरूप संपत ने कई सफल फिल्मों में भी अपने अभिनय का डंका बजाया था. मगर स्वरूप संपत ने उस वक्त अभिनेता परेश रावल के साथ विवाह कर लिया था, जब उनका करियर उंचाइयों पर था. शादी के बाद वह फिल्मों से दूर होकर घर परिवार की जिम्मेदारियों को संभालने के साथ ही एज्यूकेशन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम करती आयी हैं. पर थिएटर में यदा कदा काम करती रही. उन्होने  ‘‘द रोल आफ ए ड्रामा इनहैंसिंग लाइफ स्किल्स इन चिल्ड्रेन’’ विषय में पीएचडी कर रखी है. लगभग तीन वर्ष पहले वह गुजराती फिल्म ‘‘सप्तपदी’’ में नजर आयी थी. अब वह एक अप्रैल को रिलीज हो रही फिल्मकार आर बालकी की फिल्म ‘‘की एंड का’’ में एक समाज सेवक और करीना कपूर की मां के किरदार में नजर आने वाली हैं.

बौलीवुड में चर्चाएं गर्म है कि स्वरूप संपत जिस तरह से निजी जिंदगी में एक सफल मां और सफल समाज सेविका हैं, उसी तरह का किरदार उन्होने आर बालकी की फिल्म ‘‘की एंड का’’ में निभाया है. मगर स्वरुप संपत इस बात से इत्तफाक नहीं रखती हैं. वह साफ साफ कहती हैं-‘‘फिल्म ‘की एंड का’ के किरदार और मेरी निजी जिंदगी में कोई समानता नहीं है. दोनों बहुत ही अलग हैं. फिल्म में मेरा किरदार अलग तरह की समाज सेवा करता है. जबकि निजी जिंदगी में मेरी समाज सेवा बहुत अलग है. निजी जिंदगी में मैं इस फिल्म की मां से काफी अलग हूं. निजी जिंदगी में मैं दो बेटो की मां हूं, जबकि फिल्म में मेरा किरदार करीना कपूर की मां का है. मुझे निजी जिंदगी में कूकिंग करना पसंद है, जबकि फिल्म के किरदार को पसंद नही है.

वह एनजीओ किस्म की समाज सेवा करती है. मैं निजी जिंदगी में यथार्थ के धरातल व जमीनी सतह से जुड़कर काम करती हूं. मैं शहर नहीं बल्कि गांवों में जाकर बच्चों को सिखाती हूं. तो फिल्म का किरदार मेरी निजी जिंदगी से काफी अलग है. निजी जिंदगी में मैं दूर दराज के गांवों में पल बढ़ रहे बच्चों की जिंदगी बदलना चाहती हूं. मेरा किरदार शिक्षा को लेकर पॉलिसी मेकिंग में भी इनक्रेडीबल है. मैं सेंट्ल एडवाजरी बोर्ड आफ एज्यूकेशन’ और बोर्ड आफ गवर्निंग कमेटी आफ चाइल्ड इंटरनेशनल’’ से जुड़ी हुई हूं, जो पालिसी बनाने में माहिर हैं. और हर उसमें मैं बेहतर हूं. मैं वही काम करती हूं, जो कि मैं अच्छा कर सकती हूं.’’

दिवालिया होने के कगार पर वेनेजुएला

वैश्विक मंदी के दौर में दुनिया के बहुत सारे देश आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं. ग्रीस दिवालिया हो चला. अब इस सूची में वेनेज्यूएला भी शामिल हो गया है. तेल आधारित अर्थव्यवस्था वाला यह देश ओपेक का संस्थापक सदस्य रहा है. जाहिर है आज तेल पर संकट का असर वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था पर पड़ना ही है. आज हालात यह है कि देश में खाद्य पदार्थों, बिजली की कमी से वेनेजुएला जूझ रहा है. संकट इस कदर गहरा गया है कि राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने सात दिनों यानि एक हफ्ते के लिए पूरा देश में बंद की घोषणा कर दी है. अब तक दुनिया के इतिहास में ऐसा कभी होते तो दूर, इस तरह की सोच के बारे में कानों ने कभी सुना भी नहीं गया था. और यह वेनेजुएला में हो रहा है. 

स्पेन का उपनिवेश रहे वेनेजुएला में 1958 में आजादी के बाद भी लंबे समय तक पूंजीवाद का प्रभाव रहा. लेकिन 1998 में साम्यवादी ह्यूगो चावेज के सत्ता में आने के बाद साम्यवाद का प्रभाव बढ़ने लगा. लेकिन 2013 में ह्यूगो चावेज की मृत्यु के बाद राजनीतिक अस्थिरता गहराने लगी. राजनीतिक अस्थिरता किसी भी देश के लिए घातक साबित हो सकती है और इसे सच होते हाल में कई देशों ने देखा है. चावेज के उत्तराधिकारी निकोलस मादुरो राष्ट्रपति तो बने, लेकिन देश में धीरे-धीरे राजनीतिक अस्थिरता अपने चरम पर पहुंचने लगी. इसका असर देश का अर्थव्यवस्था पर पड़ने लगा. रही-सही कसर तेल की कीमतों ने पूरी कर दी.

पिछले 16 सालों तक देश में राज करने वाली ह्यूगो चावेज की पार्टी को तब जबरदस्त धक्का लगा, जब वेनेजुएला के एक सदन वाले संसद के लिए दिसंबर 2015 को चुनाव हुए. चुनाव में 167 सीटोंवाली संसद में विपक्षी पार्टी डेमोक्रेटिक युनिटी राउंडटेबल (एमयूडी) ने 112 सीटों पर जीत हासिल हुई. वहीं चावेज समर्थक युनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी औफ वेनेजुएला (पीएसयूवी) को महज 55 सीटों से संतोष करना पड़ा. इस चुनाव के नतीजे को साम्यवादी प्रभाव के खात्मे के रूप में देखा गया. इससे दुनिया के पूंजीवादी देश खुश हुए और इस बदलाव का स्वागत किया गया. लेकिन इस बदलाव ने वेनेजुएला को आर्थिक तंगी के कगार पर ला खड़ा कर दिया. आज इसकी आर्थिक स्थिति खतरे के निशान पर है.

जनवरी 2016 में वेनेजुएला में नई सरकार बनी. 65 प्रतिशत संसद में विपक्ष‍ का नियंत्रण हो गया. उधर पूर्व राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज की 2013 में मृत्यु के बाद निकोलस मादुरो को अगले छह सालों तक के लिए वेनेजुएला का राष्ट्रपति घोषित किया गया. गौरतलब है कि वेनजुएला के एक सदन वाले संसद में कार्यपालिका का प्रमुख राष्ट्रपति ही होता है. लेकिन राष्ट्रपति सदन में पारित बिल पर अपनी सहमति के लिए बाध्य होता है. ऐसे में 16 सालों तक वेनेजुएला में शासन करने के बाद चावेज की पार्टी युनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी औफ वेनेजुएला (पीएसयूवी) के चुनाव हार जाने के बाद भी राष्ट्रपति उसी का रहा. लेकिन मादुरो और विपक्ष के बीच नीतियों को लेकर तकरार शुरू हो गया, जो राजनीतिक अस्थिरता का कारण बना. पर देश का सुप्रीम कोर्ट मादुरो के पक्ष में काम करता रहा.

इससे पहले अर्थव्यवस्था को गति देने की मंशा से राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने देश में आर्थिक आपातकाल की घोषणा भी की थी. देश के सुप्रीम कोर्ट ने भी राष्ट्रपति के इस फैसले को हरी झंडी तक दिखा दिया था. क्योंकि निकोलस मादुरो ने नई सरकार बनने से पहले सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश की नियुक्ति की. यही कारण है कि मादुरो को सुप्रीम कोर्ट की सहमति मिल गयी. लेकिन एमयूडी इसके विरोध में उठ खड़ा हो गया. उनका कहना था कि आर्थिक आपातकाल लागू हो जाने से अर्थव्यवस्था संभलने के बजाए और भी गहरी खाई में गिर जाएगी. गौरतलब है कि वेनेजुएला कांग्रेस (संसद) का नियंत्रण विपक्ष के हाथों में होता है. जाहिर है विपक्ष की दलील के आगे राष्ट्रपति निकोलस मदुरो की एक न चली. और उनका प्रस्ताव गताल खाते में चला गया.

एक तरफ राजनीतिक अस्थिरता से वेनेजुएला जूझ रहा था और उधर अंतर्राष्ट्रीय तेल बाजार में इसकी कीमत में जबरदस्त गिरावट हो रही थी. यहीं से तमाम गड़बडि़यां शुरू हो गयी. वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विश्लेषकों ने इसे मादुरो की बदकिस्मती के रूप में देखा, क्योंकि जबसे तेल की कीमत में गिरावट शुरू हुई, तबसे तेल उत्पादक देशों की आर्थिक सेहत गड़बड़ाने लगी. अब इस कड़ी में वेनेजुएला का नाम भी जुड़ा गया है.

दुनिया के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि लैटिन अमेरिकी देशों में तेल की कीमत गिरने का सबसे ज्यादा नुकसान वेनेजुएला को उठाना पड़ा है. गौरतलब है कि वेनेजुएला की 95 प्रतिशत आय तेल के बल पर है. 2013 और 2014 में जहां यह देश लगभग प्रति बैरल 100 डौलर बेचा करता था, वहां इसकी कीमत 25 डौलर प्रति बैरल रह गया है. वेनेजुएला दो साल पहले 75 बिलियन डौलर का तेल निर्यात किया करता था, 2016 में यह महज 27 बिलियन डौलर रह गया है.

यह सही है कि वेनेजुएला के मौजूदा संकट का सबसे बड़ा कारण तेल है. वैसे इस संकट के और भी कई कारण हैं. देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए राष्ट्रपति ने कई जतन किए. फरवरी में निकोलस को विशेष आर्थिक अधिकार दिया गया था. इस अधिकार का उपयोग करते हुए निकोलस ने वेनेजुएला की मुद्रा बोलिवार का अवमूल्यन किया और उधर पेट्रोल की कीमत को बढ़ाया. बताया जाता है कि 6000 प्रतिशत पेट्रोल की कीमत को बढ़ाया गया. यह वृद्धि 20 सालों के बाद हुई थी. इससे पहले वेनेजुएला में पेट्रोल सबसे सस्ता हुआ करता था. महज 0.01 डौलर प्रति लीटर. कीमत में वृद्धि के बाद प्रति लीटर प्रीमियम पेट्रोल की कीमत 0.60 डौलर कर दी गयी. वहीं लोअर ग्रेड के पेट्रोल की कीमत 0.10 डौलर प्रति लीटर कर दी गयी. हालांकि मादुरो ने अर्थव्यवस्था को सुधारने के मकसद से पेट्रोल की कीमत में जबरदस्त बढ़ोत्तरी की थी. अपने संबोधन में राष्ट्रपति मादुरो ने कहा था कि पेट्रो की कीमत बढ़ने से देश में हर साल 80 करोड़ डौलर की बचत होगी. लेकिन इससे देश में नाराजगी बढ़ने लगी.

इससे पहले 1989 में ह्यूगो चावेज ने भी पेट्रोल की कीमत में वृद्धि की थी. सरकार के इस फैसले के बाद उस समय भी देश में व्यापक हिंसा हुई और सैकड़ों लोग मारे गए थे. लेकिन इसके बाद ह्यूगो चावेज ने 14 सालों तक पेट्रोल की कीमत को स्थिर कर दिया.

वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था को कितना जबरदस्त धक्का लगा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कहां तो एक डौलर की कीमत 175 बोलिवार (वेनेजुएला मुद्रा) हुआ करती थी, आज एक डौलर की कीमत 865 बोलिवार है. दूसरे शब्दों में एक बोलिवार 0.15 डौलर के बराबर है. बताया जाता है कि वेनेजुएला मुद्रा का विनिमय पद्धति बड़ा भ्रामक है. वहां तीन तरह का विनिमय दर है- दो किस्म का विनिमय दर अलग-अलग तरह के आयात के लिए और तीसरा सामान्य वेनेजुएला वासी के लिए. आयात के लिए तय विनिमय की दोनों ही दरों में बोलिवारा का अधिक मूल्य लगाया गया, इससे डौलर की मांग बढ़ती गयी. उधर कर्ज का बोझ बढ़ता गया. इससे पार पाने की केवल दो ही सूरत थी. या तो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल कीमत बढ़े या चीन इरान और रूस वेनेजुएला को बेलआउट कर दे. लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ होने की सूरत नजर नहीं आ रही है और वेनेजुएला संकट की गहरी खाई में समाता जा रहा है.

देश में महंगाई आसमान छू रही है और साथ में खाद्य संकट. देश में दूध, आटा-मैदा, अंडे और खाद्य तेल नहीं है. यहां तक कि टौयलेट पेपर की भी भारी किल्लत है. सरकार के पास पैसे नहीं है कि वह खाद्य सामाग्रियों समेत  रोजमर्रा के जरूरी सामानों का आयात कर सके. खाने के सामान, कपड़े धोने के साबून, डायपर के लिए हजारों लोग 6-7 घंटे कतार में खड़े रहने को मजबूर हैं. इस पर भी सबको चीजें नहीं मिल पा रही है. खाद्य सामाग्रियों की कीमत पिछले एक साल में 315 प्रतिशत तक बढ़ गयी है. दुकानों में सामान नहीं है. सुपर मार्केट के ताक खाली है.

इसीके साथ देश में बिजल की समस्या भी अन्य किल्लतों के साथ मुंह बाए खड़ी है. वेनेजुएला में मुख्यतया हाईड्रो इलेक्ट्रिक पर निर्भर देश है. लेकिन बिजली संरक्षण का देश में कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है. उधर बिजली की खपत दिनोंदिन बढ़ती ही चल गयी. पिछले कुछ सालों से सूखा पड़ने बिजली समस्या पेश आ रही है. सरकार ने इसके लिए अल निनो को जिम्मेवार ठहरा कर एक हद तक अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की. इससे पहले 2009 में देश ब्लैक आउट के दिन देख चुका था. लेकिन फिर भी बिजली संरक्षण का कोई अंतजाम नहीं किया गया.

हालांकि जब संकट गहराया तब सरकार ने दफ्तर में कामकाज का समय छह घंटे से घटा कर पांच घंटा कर दिया. यहां तक कि दफ्तर के समय में भी बदलाव किए गए. सुबह सात बजे से दोपहर एक बजे तक का समय तय किया गया, ताकि एयरकंडीशन की चलाए जाने से बचा जा सके. लोगों को अपने घरों में जहां जेनरेटर का इंतजाम करने को कहा गया, वहीं घरों में भी एयरकंडीशन का उपयोग सीमित करने को कह दिया. लेकिन इन सब जुगत से समस्या का हल नहीं निकला. तब सात दिनों के बंद का एलान किया गया. 

सलमान को फिट नहीं हो रहे कपड़े

बीते दिनों दुबई में हुए एक अवार्ड फंक्शन के दौरान जब सलमान खान के स्टेज परफौर्मेंस की बारी आई, तो बैकस्टेज ड्रैसिंग रूम में हड़कंप मच गया.

दरअसल स्टेज परफौर्मेंस के लिए जो ड्रैस उन के लिए डिजाइन की गई थी, उसे पुराने मेजरमैंट के तहत सिला गया था. जब कि अब सलमान खान का मेजरमैंट बदल चुका है. जब डिजाइनर ने ड्रैस पहनने के लिए सलमान को दी तो वो उन्हें टाइट लगी. परफौर्मेंस के लिए बहुत ही कम वक्त बचा था इसलिए सलमान को वहीं ड्रैस पहननी पड़ी.

भले ही सलमान स्टेज पर दर्शकों के आगे मुसकराते हुए आए मगर परफौर्मेंस के बाद डिजाइनर्स को उन्होंने इस बात के लिए काफी डांट लगाई.

गौरतलब है सलमान की अपकमिंग फिल्म सुलतान के लिए उन्हें वजन बढ़ाना पड़ा है. जिस की वजह से उन्हें खुद के ही कपड़े फिट नहीं हो रहे. लेकिन वजन बढ़ने की जानकारी डिजाइनर्स को पहले से नहीं दी गई थी, इसलिए उन्हें बेवजाह ही सलमान की डांट खानी पड़ी. 

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