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अब जापान में चलेगी अदृश्य ट्रेन

अभी तक आप ने ड्राइवरलैस ट्रेनों के बारे में सुना था, लेकिन क्या कभी आप ने सुना है कि ट्रेन पटरी पर दौड़ते हुए अदृश्य हो जाएगी. भविष्य में हमारा ड्रीम हकीकत में बदलने जा रहा है क्योंकि जापान ने ऐसी अदृश्य ट्रेन को 2018 तक पटरी पर उतारने की तैयारी कर ली है. इस की घोषणा सेबु रेलवे की 100वीं वर्षगांठ पर की गई. आर्किटेक्ट कजूयो सेजिया ने ऐसा डिजाइन बनाया है कि जैसे ही ट्रेन पटरी पर गति पकड़ेगी वह अदृश्य हो जाएगी क्योंकि उस की बाहरी और भीतरी सतह को इस तरह बनाया गया है कि वह गति पकड़ते ही बाहर की चीजों में मिल जाती है, जिस से ट्रेन पटरी पर दौड़ रही है कोई नहीं जान पाता. बाहरी सतह पर अर्द्धपरावर्तक प्रिंट की परत लगाई गई है. उस के कैबिंस ऐसे बनाए जा रहे हैं कि यात्री को उस में सफर करते हुए ऐसा एहसास ही नहीं होगा कि वह ट्रेन में ट्रेवल कर रहा है बल्कि उसे लगेग कि वह अपने कमरे में बैठ कर आराम फरमा रहा है. ट्रेन को पूरी तरह से मौडर्न टैक्नोलौजी से लैस करने की कोशिश की जा रही है. ऐसा सिर्फ और सिर्फ सेजिमा के कारण ही संभव हो पाया है. तभी तो सेजिमा की काबिलियत को देखते हुए सेबु रेलवे कंपनी ने रैड एरो कंप्यूटर ट्रेन को रीडिजाइन करने के लिए नियुक्त किया था, जो टोक्यो में चलती थी. फास्ट कंपनी रिपोर्ट्स के अनुसार, सेजिमा ऐसी ट्रेन डिजाइन करने वाले पहले व्यक्ति हैं. उन्हें आर्किटेक्चर के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार भी मिल चुका है.

दलितों के संत

इस बार पूरे देश समेत मध्य प्रदेश में भी दलित संत रविदास की जयंती धूमधाम से सरकारी तौर पर मनाई गई, तो भारतीय जनता पार्टी की इस चाल का कांग्रेस कोई सटीक जवाब नहीं दे पाई. दलित समुदाय के लोग सड़कों पर जयकारे लगाते और झूमतेगाते नजर आए. दलित वोट बैंक को लुभाने के लिए अब भगवा खेमे ने हमेशा की तरह तय कर लिया है कि इन के देवीदेवता और संत अलग कर दिए जाएं, जिस से ये उन के पूजापाठ में रमे रहें. इस से सवर्ण भी खुश हैं कि चलो अबये लोग राम, शिव और विष्णु के मंदिरों में आ कर मंदिर को अपवित्र नहीं करेंगे और दानदक्षिणा के फेर में भी पड़े रहेंगे. रविदास या अंबेडकर जयंती धूमधाम से मनाने से दलितों का क्या भला होगा, यह न कोई पूछ रहा है, न कोई सोच रहा है.

धर्म बेटी की शादी

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हर साल गरीब और अनाथ लड़कियों की शादी खूब धूमधाम से कराते हैं. यह सिलसिला तब से चला आ रहा है, जब वे विदिशा से सांसद थे और उन्होंने कभी मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद नहीं की थी. पर इस मुकाम पर आने के बाद भी वे बेसहारा लड़कियों का कन्यादान करना भूले नहीं है. विदिशा में उन्होंने अपनी ऐसी ही एक धर्म बेटी की शादी धूमधाम से की. उन की पत्नी साधना सिंह ने भी मां का रोल निभाते हुए अपनी बेटी के हाथ पर मेहंदी लगाई और सुबकते हुए उसे विदा किया. कहने वाले इस मसले पर दो फाड़ हैं. पहले गुट का कहना है कि यह सियासत नहीं समाजसेवा है, जबकि दूसरे गुट के लोग मानते हैं कि यह एक तरह का अंधविश्वास है, जिस के तहत शिवराज सिंह चौहान को लगता है कि इन लड़कियों की शादी कराने की वजह से ही वे इस मुकाम तक पहुंचे हैं.

मुंह में लड्डू, मन में डर

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रह चुके अजीत जोगी के विधायक बेटे अमित जोगी को कांग्रेस से बाहर कर दिया गया है. अमित जोगी पर आरोप है कि उन्होंने अंतागढ़ उपचुनाव में भाजपा से सौदेबाजी की थी, जिस के तहत कांग्रेस उम्मीदवार ने अपना नाम वापस ले कर भाजपा को थाल में सजा कर यह सीट दे दी थी.

अमित जोगी को बाहर निकाले जाने की उम्मीद नहीं थी, इसलिए शुरू में तो पार्टी में वापिसी के लिए वे दिल्ली जा कर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के दरबार के चक्कर काटते रहे, पर वहां भाव नहीं मिला तो वापस आ कर जगहजगह यह बता रहे हैं कि जोगी खानदान किसी पेड़ की डाल नहीं है, जिसे काटा जा सके. इनेगिने समर्थकों के सहारे कांग्रेस पर दबाव बनाने की नाकाम कोशिश कर रहे अमित जोगी को जगहजगह लड्डुओं से तोला गया, तो ताना कसने वालों ने यही कहा कि अभी खा लो लड्डू, फिर शायद ये भी न मिलें.

बेईमान अफसरशाही से मिले छुटकारा

अफसर बेईमान हैं. चपरासीबाबू से ले कर कलक्टर और कमिश्नर तक बेईमान हैं. हमारी व्यवस्था पर रिश्वत दाग है. ऐसे में आम आदमी कहां जाए  किस का दरवाजा खटखटाए  छोटेबड़े काम के लिए पैसे मांगे जाते हैं. अफसरशाही समय के साथसाथ तानाशाह हो रही है. आजादी को मिले 68 साल हो गए हैं. देश ने तरक्की के डग तो भरे हैं, लेकिन हमारे अफसरों ने लोकतंत्र का बेजा फायदा उठाया है. वे कानून की लचीली गलियों, लालफीताशाही, लचर व्यवस्था के चलते सालों तक फाइलों को अटकातेदबाते रहते हैं.

बच्चों का जन्मतिथि प्रमाणपत्र बनवाने से ले कर वृद्धावस्था पैंशन, विधवा पैंशन और तमाम तरह के कामों में आम आदमी को प्रशासन के चक्कर लगाने पड़ते हैं, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है. जनसुनवाई में मामले इस तरह अटकाए जाते हैं कि सालों तक नहीं सुलझते. अफसरों के खिलाफ कार्यवाही करने के दर्जनों कानून हैं, लेकिन जिन कानूनों को अफसर बनाते हैं, उन की तंग गलियों का सहारा ले कर वे बच निकलते हैं. अफसरशाही की चेन इतनी लंबी और मजबूत है कि अगर उन पर आंच भी आती है, तो सारे अफसर एक हो जाते हैं. भ्रष्टाचार की शुरुआत गांव के पटवारी, ग्रामसेवक से शुरू होती है, जो बीडीओ, कोष अधिकारी, एसडीएम, एडीएम से ले कर कलक्टर, कमिश्नर तक एकदूसरे से जुड़ी रहती है.

एकएक जिले में जनसुनवाई के हजारों से ज्यादा मामले लंबित रहते हैं. अफसरों में इच्छाशक्ति की कमी है. वे काम करना ही नहीं चाहते हैं. अगर कोई अच्छा काम करता भी है, तो उसे छुटभैए मुलाजिम सहयोग नहीं करते हैं. देश की आजादी के बाद भी गांवों की तसवीर नहीं बदली है. देश की 85 फीसदी जनता को पीने का साफ पानी नहीं मिलता है. 75 फीसदी लोग रोजाना 80 रुपए से कम की आमदनी वाले हैं.

रोजगार के लिए लोग फुटपाथों पर संघर्ष करते हैं और गैरकानूनी कह कर सालों की रोजीरोटी पर बुलडोजर व जेसीबी चला दी जाती है. बहुमंजिला इमारतों के खिलाफ कभी कोई कार्यवाही नहीं होती है. पैसा देने और लेने की संस्कृति ने जीना मुहाल कर दिया है. अफसरशाही ने देश के संविधान का मखौल बना कर रखा है. कानून के दांवपेंच आम आदमी नहीं समझता. उसे तो काम से मतलब है, लेकिन बिना पैसों के लिएदिए काम नहीं होता है. 10 में से 7 लोग प्रशासन से पीडि़त हैं. लोग दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करते हैं, मगर अफसर उन से भी चौथ वसूल करते हैं. 

लोग इज्जत के साथ जीना चाहते हैं, मगर उन्हें बेइज्जत होना पड़ता है. कलक्टर तक गरीब को पहुंचने ही नहीं दिया जाता है. कमिश्नर भी गरीब की कब सुनता है. नेता आते हैं, तो पूंछहिलाऊ प्रशासन उन के आगेपीछे घूमता है. तसवीर का दूसरा रूप बता कर हकीकत की अनदेखी की जाती है. कहने को देश में शिक्षा के अधिकार का कानून है, पर अब तक कितने बच्चे पढ़े हैं  कानून बनने से ले कर अब तक 42 फीसदी बच्चे इस के लाभ से दूर हैं. रोजीरोटी और रोजगार का संकट बरकरार है. अफसरों के बंगले बन रहे हैं. बैंक बैलैंस बढ़ रहे हैं. कलक्ट्रेट और इनकम टैक्स महकमे का चपरासी लखपतिकरोड़पति बन जाता है और आम आदमी जहर का घूंट पी कर रह जाता है. अगर सरकार कोई कदम उठाती भी है, तो अफसरशाही उसे कामयाब नहीं होने देती. योजनाएं बनती हैं, पर कागजों पर. बंद कमरों में. उन्हें चलाने वाले मनमानी कर रहे हैं. ऐसी मनमानी से देश का भला होने वाला नहीं है. जब बात कार्यवाही की आती है, तो अफसरशाही बचने का पिछला दरवाजा निकाल लेती है. कर्मचारी आंदोलन कर बेईमान कर्मचारियों को बचा लेते हैं. इस देश में सरकार चल रही है, मगर अफसरशाही की. अफसरशाही देश के नेताओं को अपने इशारों पर नचा रही है. 15 अगस्त और 26 जनवरी पर नेताओं के भाषण नौकरशाह लिखते हैं. देश की सही तसवीर दिखाने वाले अफसर होते हैं, मगर वे ही गलत तसवीर पेश कर जनता के साथ धोखा करते हैं. सरकारी अफसरों से हर कोई परेशान है.

अफसरों और मुलाजिमों ने मिल कर देश का भला नहीं किया है. कमिश्नर मीटिंगों में मसरूफ रहते हैं. गरमी आती है और पानी की सुविधा को ले कर कलक्टर और कमिश्नर अफसरों और मुलाजिमों की क्लास लेते हैं, लेकिन करोड़ों का बजट सब मिल कर खा जाते हैं. आज भी 45 फीसदी गांवों में बिजली नहीं पहुंची है. जंगल महकमा आजादी के इतने सालों में 0.15 फीसदी जमीन पर पेड़ नहीं लगा पाया है. हर महकमा भ्रष्ट है. जहां पैसों का बड़ा बजट, वहां बड़ी हेराफेरी. गांवों की तरक्की के नाम पर करोड़ों का बजट, मगर आम आदमी हमेशा की तरह आज भी परेशान है.

प्रधानमंत्री रह चुके राजीव गांधी कहा करते थे कि वे केंद्र से एक रुपया गांव की तरक्की के लिए भेजते हैं, मगर वह सही हाथों तक पहुंचतेपहुंचते 10 पैसे रह जाता है. यह हालत अच्छी नहीं है. प्रधानमंत्री रह चुके अटल बिहारी वाजपेयी का भी कहना है कि बेईमान अफसरशाही देश की राजनीति को खराब कर रही है. किसान गेहूं पैदा करते हैं, लेकिन अफसर उन्हें उन का वाजिब दाम नहीं दिलाते. मुनाफा बिचौलिए खा जाते हैं. अन्नदाता किसान खुदकुशी करने को मजबूर हैं. विदेशों में निर्यात के नाम पर किसानों के साथ नाइंसाफी की जाती है. बिना जरूरत और बिना काम का सामान विदेशों से मंगा लिया जाता है. सब कमीशन का खेल है. हालत यह है कि रक्षासुरक्षा से ले कर आम आदमी के काम की चीजों की खरीदफरोख्त में कमीशन खाने का खेल चलता है. अगर कहें कि अफसरशाही ने इस देश की राजनीति को खराब किया है, तो गलत नहीं होगा.

स्कूलों के लिए जमीन आवंटित होती है, तो कमीशन. होटलों के लिए जमीन आवंटित होती है, तो रिश्वत. हर छोटेमोटे काम के लिए लेनदेन की संस्कृति ने देश की इमेज तो खराब की ही है, साथ ही आम आदमी का भी नुकसान किया है.

आज भी महानगरों में लोग फुटपाथ पर जूते सिलने का काम करते हैं. पटरी पर पान की दुकानें चलती हैं. एकएक रुपए के लिए गरीब संघर्ष करता है, मगर उसे अपने बेटाबेटी को पढ़ाने का हक नहीं है. गरीब अपनी बेटी की धूमधाम से शादी करने का सपना नहीं देख सकता है. क्यों  क्योंकि देश में भ्रष्टाचार हद पर है.

इस भ्रष्टाचार की वजह भी अफसरशाही ही है. नेताओं को तो ये अफसर अपने इशारों पर नचाते हैं. जब तक अफसरशाही में फैला भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा, तब तक देश का भला नहीं हो सकता है.                   

जंगली पंचायतें और जालिम पंच

इस साल जनवरी महीने के दूसरे पखवारे में महाराष्ट्र के परभनी जिले की एक जातीय पंचायत ने एक शख्स के सामने शर्त रखी कि अगर वह पंचायत के आठों पंचों को अपनी पत्नी के साथ हमबिस्तर होने की इजाजत दे दे, तो उस का 6 लाख रुपए का कर्ज माफ कर दिया जाएगा. पंचायत का फैसला मानने से इनकार करनपर उस जोड़े का हुक्कापानी बंद कर दिया गया. सूचना मिलने पर पुलिस, ‘महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति’ और दूसरे गैरसरकारी संगठनों ने दखलअंदाजी कर के न केवल उस जोड़े का सामाजिक बहिष्कार खत्म कराया, बल्कि पंचायत को भी भंग कर दिया. पंच परमेश्वर होते हैं, यह बात ‘कथा सम्राट’ मुंशी प्रेमचंद के जमाने में जरूर सच रही होगी, लेकिन अब तो पंच सच्चे इनसान भी नहीं रहे हैं. देश की विभिन्न पंचायतों के कुछ फैसलों पर अगर नजर डाली जाए, तो यह बात आईने की तरफ साफ हो जाती है.

दरअसल, समस्या यह है कि मौजूदा समय में ज्यादातर लोग पंचायत नामक संस्था को सही माने में समझ नहीं पा रहे हैं. पंचायत चाहे जाति के आधार पर बनी हो या धर्म या वर्ग के आधार पर, उस का मूल काम इंसाफ करना होता है. अफसोस इस बात का है कि पंचायतें ये सब भूलती जा रही हैं. उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में नगला टोटा गांव की पंचायत ने एक दलित नौजवान को फांसी की सजा सुना दी और उसे अंजाम भी दे दिया. उस नौजवान पर अपने गांव की एक शादीशुदा औरत से नाजायज संबंध रखने का आरोप था. उस औरत के पति ने पंचायत बुला कर नौजवान की शिकायत की, जिस पर पंचायत ने बिना कुछ पूछेसुने, पहले उसे पीटने और फिर फांसी पर लटकाने का फरमान जारी कर दिया.

उत्तर प्रदेश के ही कौशांबी इलाके में अमिरसा गांव की पंचायत ने एक 15 साला लड़की को तथाकथित प्रेम प्रसंग का आरोपी मानते हुए उसे और उस के परिवार को गांव छोड़ने का हुक्म जारी कर दिया. वह लड़की पड़ोस के एक हमउम्र लड़के के साथ गांव छोड़ कर कहीं चली गई थी. उस लड़के के घर वाले दोनों को खोज कर ले आए और उन्होंने पंचायत बुला कर आरोप लगाया कि वह लड़की ही उन के लड़के को बहलाफुसला कर ले गई थी. पंचों ने बिना कोई जांचपड़ताल किए फरमान सुना दिया कि वह लड़की और उस का परिवार गांव छोड़ दे. राजस्थान के राजसमंद जिले के थुरावड़ गांव में एक औरत के बाल काटने के बाद उसे बिना कपड़ों के गधे पर बैठा कर पूरे गांव में घुमाया गया. उस औरत पर रिश्ते के भतीजे की हत्या में शामिल होने का शक था, इसलिए उसे ऐसी सजा दी गई. देश की पंचायतों को हरियाणा की विभिन्न पंचायतों के उन हालिया फैसलों से सबक लेना चाहिए, जिन के तहत उन्होंने शादीब्याह में दहेज न लेने, डीजे व शराब पर रोक, कम से कम भोज और कम तादाद में बराती या मेहमान बुलाने जैसे कदम उठाए हैं.

पंचायतों को उत्तराखंड के देहरादून की चकराताबणगांव खत महापंचायत से भी सबक लेना चाहिए, जिस ने वहां घूमने आए एक जोड़े को लूटने, औरत के साथ बलात्कार करने के बाद उन दोनों की हत्या करने वाले 4 लोकल टैक्सी ड्राइवरों को फांसी की सजा देने की मांग उठाई. ऐसे फैसले पंचायतों की इज्जत को बढ़ाते हैं और जनता का उन पर भरोसा मजबूत करते हैं. लेकिन बहुत बार देखा जाता है कि पंचायत के पंच मुंहदेखी बातें करते हैं. यही वजह है कि वे इंसाफ की कुरसी पर बैठ कर अकसर नाइंसाफी कर बैठते हैं. इस का उदाहरण ग्रेटर नोएडा के चौपाइया पट्टी गांव की पंचायत है, जिस ने 8 साल की बच्ची के साथ गलत काम करने वाले 15 साला लड़के को सिर्फ 11 जूते मारने की सजा दे कर मामला खत्म कराने की कोशिश की.

बच्ची के घर वाले जब शिकायत ले कर जेवर कोतवाली पहुंचे, तो पुलिस ने उन्हें बदनामी का डर दिखा कर वापस लौटा दिया. उत्तर प्रदेश के भदोही जिले की एक पंचायत ने एक नई शादीशुदा औरत की शादी महज इसलिए तुड़वा दी कि वह खाना बनाते समय आटा ज्यादा गूंध देती थी, जिस से अन्न बरबाद होता था. पंचायत ने उस औरत को समझाने के बजाय बिना उस का पक्ष जाने उसे पति से अलग रहने का हुक्म जारी कर दिया. मजेदार बात यह है कि उस औरत का पति एमए का छात्र था और उस ने खुद अपनी पत्नी को अन्न की बरबादी के प्रति सचेत न कर के पंचायत का सहारा लिया. इलाहाबाद के कप्सा गांव में एक विधवा के साथ गलत काम करने की कोशिश करने वाले शख्स को पंचायत ने गांव में भोज का दंड दे कर बरी कर दिया. यह शख्स गांव के एक हजार लोगों को भोजन करा कर अपने गंभीर अपराध से छुटकारा पा गया.

पीडि़ता चाहती थी कि उसे गांव के लैवल पर ही इंसाफ मिल जाए और पुलिस या मुकदमे के चक्कर में न फंसना पड़े, लेकिन उस के हाथ सिर्फ बदनामी लगी.  पश्चिम बंगाल के वीरभूम इलाके की लाभपुर पंचायत के 13 लोगों ने दूसरे समुदाय के लड़के से प्यार करने वाली आदिवासी लड़की के साथ गैंगरेप किया. पंचायत ने पहले लड़की के घर वालों पर 50 हजार रुपए का जुर्माना ठोंका और जब घर वालों ने जुर्माना भर पाने में हाथ खड़े कर दिए, तो पंचायत के फरमान पर लड़की के साथ गैंगरेप किया गया. मध्य प्रदेश के इंदौर के खजराना इलाके में एक प्रेमी जोड़े को पंचायत ने अनोखी सजा सुनाई. पंचों ने कहा कि लड़के का अंग काट दिया जाए और उस के परिवार को समाज से निकाल दिया जाए. लड़के के परिवार पर 11 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया और लड़की को जिंदगीभर शादी न करने की सजा दी गई. इसी तरह तमिलनाडु के धर्मपुरी इलाके में एक प्रेमी जोड़े ने मंदिर में शादी कर ली. गैरदलित परिवार की उस लड़की के पक्ष ने पहले तो पंचायत के जरीए दबाव बनाया कि वह वापस आ जाए, लेकिन जब लड़की ने अपने पिता के घर वापस आने से इनकार कर दिया, तो गैरदलित समुदाय के तकरीबन ढाई हजार लोगों ने एकराय हो कर 148 दलितों के घर आग के हवाले कर दिए.

ये बड़े चिंताजनक हालात हैं. आज जबकि हमारे देश की न्यायपालिका इतनी सजग है, सतर्क है और बेखौफ फैसले देने के लिए लोगों में इज्जत की नजर से देखी जा रही है, तब भी एक तीखा सच शाप की तरह हमारे माथे पर चस्पां है कि गरीब तबके से इंसाफ कोसों दूर है. ऐसे में पंचायतों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वे पीडि़त व पीड़ा की सही पहचान करने के बाद ही किसी फैसले तक पहुंचें. अगर वे ऐसा नहीं कर पाती हैं, तो उन्हें खुद को पंचायत कहलाने का कोई हक नहीं है.    

कैसा ये इश्क है

कांग्रेस पार्टी के एक विधायक सिद्धार्थ सिंह, एक लड़की निधि और विधायक सिद्धार्थ सिंह के ड्राइवर पंकज सिंह के बीच चला इश्क, अपहरण और फिर शादी का मामला ऊपरी तौर पर भले ही सुलझाने का दावा किया जा रहा है, लेकिन इस मामले के कई सारे पेंच अभी भी खुले नहीं हैं. पहले तो विधायक सिद्धार्थ सिंह पर निधि का अपहरण करने का आरोप लगा और जब इस मामले ने बिहार की सियासत को गरमा दिया, तो अचानक निधि अपनी मांग में सिंदूर भर कर ड्राइवर पंकज सिंह के साथ सामने आई और उस से शादी रचाने की बात कह कर विधायक सिद्धार्थ सिंह को क्लीन चिट देने की कोशिश की.

कांग्रेस ने फिलहाल भले ही अपने विधायक सिद्धार्थ सिंह को पाकसाफ करार दे दिया हो, लेकिन निधि के पिता अभय सिंह का दावा है कि विधायक सिद्धार्थ सिंह और निधि के बीच पहले से ही इश्क का खेल चल रहा था और विधायक को बचाने के लिए ड्राइवर पंकज सिंह को बलि का बकरा बनाया जा रहा है. 28 जनवरी, 2016 की सुबह के तकरीबन सवा 9 बजे विधायक सिद्धार्थ सिंह का एक आदमी मुकेश शर्मा निधि के घर आया. मुकेश को देख कर निधि के भाई ने अपने पिता को आवाज दी.

मुकेश शर्मा ने पास खड़ी निधि से कहा कि विधायकजी बाहर खड़े हैं और निधि उस के साथ बाहर निकल गई. विधायक सिद्धार्थ सिंह ने उसे अपनी गाड़ी में बैठाया और चलते बने. निधि के पिता ने जब तक हल्ला मचाया, तब तक विधायक की गाड़ी दूर जा चुकी थी. बिहार राज्य की विक्रम विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक सिद्धार्थ सिंह पर नाबालिग लड़की को ले कर फरार होने का केस दर्ज कराया गया. पटना जिले के मसौढ़ी ब्लौक में हुए इस अपहरण कांड ने राज्य के सियासी गलियारे में हलचल मचा दी. निधि के पिता अभय सिंह ने बताया कि 28 जनवरी की सुबह विधायक सिद्धार्थ सिंह उन के घर पहुंचे और उन की नाबालिग बेटी को जबरन उठा कर अपनी गाड़ी में बैठा लिया और भाग निकले.

अभय सिंह ने विधायक सिद्धार्थ सिंह और उन के सहयोगी मुकेश शर्मा के खिलाफ मसौढ़ी थाने में अपहरण का मामला दर्ज कराया. मसौढ़ी के थानेदार अरुण कुमार अकेला ने बताया कि विधायक सिद्धार्थ सिंह के मोबाइल नंबर पर कई बार बात करने की कोशिश की गई, लेकिन फोन रिसीव नहीं किया गया. कुछ देर के बाद उन का मोबाइल फोन स्विच औफ था. पुलिस ने विधायक सिद्धार्थ सिंह पर आईपीसी की धारा 366 और 366ए के तहत मामला दर्ज कर लिया.

गौरतलब है कि विधायक सिद्धार्थ सिंह शादीशुदा हैं. उन की शादी 5 साल पहले हुई थी और उन का 2 साल का बेटा और 3 महीने की बेटी है. पुलिस को निधि का मोबाइल फोन उस के कमरे से मिला था, जिस की काल डिटेल से पता चला कि विधायक सिद्धार्थ सिंह के साथ गायब हुई 20 साला लड़की निधि उर्फ सुधा कुमारी विधायक के ड्राइवर पंकज सिंह को रोज फोन करती थी. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, निधि भले ही पंकज सिंह के फोन पर बात करती थी, पर उस की बात विधायक से ही होती थी. विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान सिद्धार्थ सिंह की निधि से मुलाकात हुई थी. उस समय वह अपने ननिहाल नौबतपुर में थी. वह वहां रह कर ही बीए की पढ़ाई कर रही थी. 20 जनवरी को वह ननिहाल से लापता हो गई थी. खोजबीन के बाद पता चला था कि उसे विधायक भगा कर ले गए.

निधि के घर वाले विधायक सिद्धार्थ सिंह के राजेंद्र नगर महल्ले के रोड नंबर-8 के मकान पर पहुंच गए और लड़की को सौंपने की गुहार लगाने लगे. पुलिस ने लड़की के मोबाइल फोन के टावर की लोकेशन के आधार पर उसे पटना के कंकड़बाग महल्ले के पार्वती गर्ल्स होस्टल से बरामद किया था. निधि के घर वालों से विधायक सिद्धार्थ सिंह के माफी मांगने के बाद इस मामले को ले कर थाने में कोई केस दर्ज नहीं किया गया था.

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, सिद्धार्थ सिंह और निधि के रिश्ते 2 साल से ज्यादा पुराने हैं और वे दोनों गुपचुप तरीके से शिमला के होटल में समय गुजार चुके हैं. इस बात का दावा निधि के पिता अभय सिंह ने ही किया है और सुबूत के तौर पर ट्रेन का रिजर्वेशन टिकट, टूर ऐंड ट्रैवल्स और होटल का बिल पुलिस को दिया है. अभय सिंह का कहना है कि ये सारी चीजें उन्हें निधि के बैग से मिली हैं. निधि की ड्राइवर पंकज सिंह से शादी की बात कर के विधायक सिद्धार्थ सिंह ने मामले को मोड़ने की साजिश रची है, ताकि उन पर कोई आंच न आए. इस अपहरण केस में कई दिनों तक चले हंगामे के बाद 30 जनवरी, 2016 को निधि और पंकज सिंह ने मसौढ़ी सिविल कोर्ट में सरैंडर किया और निधि ने बयान दिया कि वह खुद पंकज सिंह के साथ मोटरसाइकिल से खगौल गई थी. वहीं से वह भोजपुर के बखोरापुर मंदिर गई, पर वहां के पुजारी ने शादी कराने से मना कर दिया. इस के बाद वह पंकज सिंह के साथ बनारस चली गई. वहीं मंदिर में शादी की. उस के साथ किसी ने कोई जोरजबरदस्ती नहीं की है और न ही उस का अपहरण किया गया है. उस ने अपने पिता द्वारा किए गए पुलिस केस को गलत करार दिया है. निधि ने कोर्ट को बताया कि वह पिछले 2 साल से पंकज सिंह को जानती है और वे दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं. इस बात की जानकारी उस के घर वालों को भी है. निधि ने कोर्ट से यह भी कहा कि वह विधायक सिद्धार्थ सिंह के बारे में ज्यादा नहीं जानती है. उन्हें 1-2 बार पंकज सिंह के साथ ही देखा था.

लेकिन पिता अभय सिंह का कहना है कि विधायक बनने से पहले ही सिद्धार्थ सिंह और निधि की जानपहचान हुई थी. साल 2014 में सिद्धार्थ सिंह ने विक्रम इलाके में आंखों का कैंप लगवाया था, वहीं निधि अपनी नानी की आंख का आपरेशन कराने पहुंची थी. निधि की नानी के आपरेशन के बाद सिद्धार्थ ने निधि का मोबाइल फोन नंबर ले लिया. इस के बाद से ही उन दोनों में पहचान बनी हुई थी और निधि को बहलाफुसला कर सिद्धार्थ सिंह अपनी मनमानी करता रहा. अभय सिंह का यह भी दर्द है कि निधि के गायब होने और फिर शादी रचा कर सामने आने के ड्रामे के बाद निधि की बड़ी बहन की सगाई टूट गई है. फरवरी में ही उस की शादी होनी थी. वे कहते हैं कि अब उन की बेटी की शादी होना मुश्किल लग रहा है.

गौरतलब है कि विधायक सिद्धार्थ सिंह के ड्राइवर पंकज सिंह की शादी साल 2009 में भोजपुर जिले के जगदीशपुर सुंदरा गांव की सुशीला देवी से हुई थी. उस की 4 साल की बेटी वर्षा और 3 साल का बेटा आदित्य है. ड्राइवर पंकज सिंह ने कोर्ट को बताया कि निधि को उस के शादीशुदा होने से कोई परेशानी नहीं है. उन के इश्क की जानकारी उस की बीवी और परिवार को पहले से ही है.पटना के एसएसपी मनु महाराज ने बताया कि एक बीवी होने के बाद भी दूसरी लड़की से शादी करने के लिए पंकज सिंह पर धारा 494 के तहत केस दर्ज किया जाएगा. पटना सिविल कोर्ट के वकील अनिल कुमार सिंह कहते हैं कि ऊपरी तौर पर देखने से तो यही लग रहा है कि इस हाईप्रोफाइल मामले को दूसरा रंग देने और उसे दबाने की साजिश रची गई है. पहले लड़की का अपहरण, फिर लड़की का विधायक के ड्राइवर पंकज सिंह के साथ सब के सामने आने और उस से शादी की बात करने के पीछे कई पेंच हैं.                             

कौन हैं सिद्धार्थ सिंह

साल 1998 में जब सिद्धार्थ सिंह महज 15 साल के थे, उस समय उन पर हत्या करने का आरोप लगा था. उन्होंने अपने दोस्त अभिषेक शाही को कोचिंग सैंटर से बाहर बुला कर गोली मार दी थी. अभिषेक के पिता डाक्टर और दादा जज थे. इस हाईप्रोफाइल मर्डर केस में पुलिस ने सिद्धार्थ सिंह को गिरफ्तार कर लिया था. पटना के कदमकुआं थाने में उन के खिलाफ हत्या और आर्म्स ऐक्ट के तहत केस नंबर- 574/98 दर्ज किया गया था. पुलिस की जांच के बाद यह पता चला था कि सिद्धार्थ सिंह जिस लड़की को चाहते थे, वह लड़की अभिषेक को पसंद करती थी. सिद्धार्थ सिंह को उम्रकैद की सजा मिली थी, पर उस समय उन्हें नाबालिग होने का फायदा मिला था. किशोर न्याय अधिनियम के तहत 15 मई, 2009 को वे कैद से रिहा कर दिए गए. उन के पिता डाक्टर उत्पलकांत पटना के मशहूर चाइल्ड स्पैशलिस्ट हैं. साल 2010 में सिद्धार्थ सिंह ने लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट से पहली बार विक्रम सीट से बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा था, पर महज 2348 वोटों से हार गए थे. उन्हें 36 हजार, 617 वोट मिले थे, जबकि भारतीय जनता पार्टी के विजयी उम्मीदवार अनिल कुमार को 38 हजार, 965 वोट मिले थे.

उस के बाद सिद्धार्थ सिंह ने राजनीति में ही अपना कैरियर बनाने की ठानी. डाक्टर पिता की मदद से वे अपने चुनाव क्षेत्र विक्रम में लगातार 5 सालों तक मुफ्त ही मैडिकल कैंप लगाते रहे, जिस से वहां उन की अच्छीखासी पैठ बन गई. साल 2015 में वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे और उन्हें कामयाबी मिल गई.

खाली बातों से काम नहीं चलता

स्मृति ईरानी ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और हैदराबाद विश्वविद्यालय में छात्रों के विरोधों का जो जवाब लोक सभा व राज्य सभा में दिया वह तर्कों, कुतर्कों, सत्य, अर्धसत्य और चुनिंदा तथ्यों से भरा था पर मानने की बात है कि वह साबित करता है कि टीवी स्क्रीन ने उन्हें काफी कुछ सिखा दिया है. अब वे धाराप्रवाह बोल सकती हैं और उन की मुद्राएं तो उन के मुंह से भी कुछ ज्यादा ही कहती हैं. कहते हैं कि इटैलियन भाषा केवल मुंह से ही नहीं बोली जाती हाथों, आंखों व शरीर से भी बोली जाती है. अगर किसी इटैलियन से बात करो तो उस के हाथ, पैर, गरदन यानी पूरा शरीर भी भाषा की तरह चलेगा और इटैलियन सोनिया गांधी की पार्टी के सवालों के उत्तर देने में स्मृति ईरानी ने यह कला पूरी तरह अपनाई.

स्मृति ईरानी ने जोश से अपनी बात रखी पर छात्रों का संघर्ष और दलितों के साथ बढ़ता दुर्व्यवहार केवल बातों से दूर न होगा. घरों में सब्जी क्यों जली, मुन्ना क्यों फेल हुआ, बेटी देर से घर क्यों आई उस के लिए आधपौन घंटे का वाक्प्रहार समस्या को हल न करेगा. समस्या तो ठोस कदम उठाने से दूर होगी और घरों में विवाद इसीलिए पलते रहते हैं कि उन्हें बातों से ही हल करने की कोशिश रहती है. देश में दलितों के साथ दुर्व्यवहार सदियों से हो रहा है. सदियों से तो वे यही सोचते रहे कि यह उन के भाग्य में ही लिखा है, पिछले जन्म का फल है. ऐसा ही औरतें भी सोचती थीं. ज्यादातर औरतें सदियों तक सामाजिक प्रताड़ना का शिकार रही हैं. विधवा होना, बांझ होना, केवल बेटियों की मां होना, पति का दूसरी औरतों के पास जाना, पति व बच्चों का बिगड़ना सब का दोष औरतों पर मढ़ दिया जाता है कि वे गरीब हैं, अंधविश्वासी हैं, तिरस्कृत हैं तो गलती उन्हीं की है.

स्मृति ईरानी औरतों का दुख समझते हुए समाज के बड़े हिस्से दलित, शूद्र वर्ग की समस्याएं समझ सकती थीं, उन के लिए कुछ कर सकती हैं पर उन्होंने उसी सामाजिक लकीर को पीटना तय किया जो समस्या का हल नहीं समस्या की जड़ है. औरतों के साथ भी यही होता है, क्योंकि सताई हुई हर बहू अपना बदला सास बनने पर अपनी बहू से लेती है जो ‘सास भी कभी बहू थी’ घरघर की कहानी है. दलितों, शूद्रों, पिछड़ों के प्रति अन्याय गलीगली की कहानी है.

यह समाज के नेताओं, पुराणवादी लोगों की सफलता है कि वे सदा संस्कृति, संस्कारों, रीतिरिवाजों, धर्मोंपदेशों की बात कर के यथास्थिति को बनाए रखने में उन्हीं को पटा लेते हैं, जो असल में सामाजिक अन्याय के पीडि़त हैं और अन्याय सहने वाला कठघरे में खड़ा रहता है. जिन धारावाहियों से स्मृति ईरानी आई हैं, उन में निर्दोष औरतों, लड़कियों, बहुओं, पत्नियों के साथ वही होता है, जो समाज में सताए हुए दलितों के साथ हो रहा है. कहीं उन्हें आत्महत्या को मजबूर होना पड़ा है, तो कहीं जेल में सड़ना होता है. कहीं कमरों में बंद होना पड़ता है, तो कहीं सिर छिपा कर वृंदावन, काशी जाना पड़ता है. शिक्षा मंत्री होने के बावजूद औरतों की तरह सताए गए निचले वर्गों के साथ कुछ न कर के देशभक्ति बनाम धर्मभक्ति या दानभक्ति की आड़ में संदेश दे दिया गया है. जैसा चल रहा है चलने दो. आज का समाज इन वंचित वर्गों और औरतों को थोड़ी सी जमीन और थोड़ा सा आसमान देने की तैयार नहीं है. अगर औरतों को रामायण की सीता बने रहना है तो शूद्रों की शंबूक बने रहना है. स्मृति ईरानी की सरकार दोनों मामलों में कुछ करने को तैयार नहीं दिखती है. लोक सभा और राज्य सभा में उन्होंने सरकार का समर्थन बहुत ही जोश में किया पर उस सरकार का जो गंद के ढेर को आग लगाने को तैयार नहीं.

अंधविश्वास का मारा, किसान बेचारा

एक तरफ हमारा देश विज्ञान के क्षेत्र में नईनई खोजें कर रहा है, जिस से जीवन को आसान किया जा सके, वहीं दूसरी तरफ हमारे देश के बहुत से किसान आज भी जादूटोनों और तंत्रमंत्रों से ही बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. बस्ती जिले के किसान कैलाश ने अपने खेतों में धान की बोआई की ही थी कि हलकीहलकी बारिश शुरू हो गई. उस ने तुरंत अपनी पत्नी से कहा कि बीज डालते ही बारिश होने लगी है. तुम जल्दी से काना बांध दो, जिस से बारिश बंद हो जाए. उस की पत्नी फौरन एक सफेद कपड़े को ले कर गांठ बांधने लगी और गांव के कुछ काने लोगों के नाम बोलने लगी.

एक बार थरौली गांव का राम कुमार अपनी मां की बीमारी की वजह से समय पर अपने गेहूं की फसल की मड़ाई नहीं कर पाया और बारिश होने से उस की सारी फसल बरबाद हो गई. तब गांव के कुछ धर्म के ठेकेदारों ने यह कहना शुरू कर दिया कि रामकुमार ने धान की फसल कटने के बाद कालीजी व शंकर भगवान को चढ़ावा नहीं चढ़ाया इसलिए भगवान ने नाराज हो कर उस की फसल खराब कर दी. इस तरह के तमाम उदाहरण हमारे आसपास ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद हैं.

वसूली का तरीका : इस तरह की गलतफहमियां फैला कर के और भगवान व ग्राम देवता का डर दिखा कर ये धर्म के ठेकेदार फसल कटने के बाद किसान के घर में अनाज जाने से पहले देवीदेवताओं के नाम पर अपना हिस्सा वसूलते हैं. किसान श्रीधर शुक्ल ने बताया कि उन के यहां कोई भी फसल होती है, तो वे सब से पहले गोसाई बाबा और पंडितजी को बुला कर उन की खलिहानी (हिस्सा) उन को निकाल कर दे देते हैं और उस के बाद ही अनाज को घर के अंदर ले जाते हैं. जब भी उन के छप्पर पर कोई लौकी या कद्दू फलता है, तो भी वे पहले फल को भगवान को चढ़ा कर पंडितजी या गोसाई बाबा को दान देते हैं, जिस से भगवान की कृपा उन पर बनी रहे और उन की फसल अगले साल और अच्छी हो. यह अजीबोगरीब हाल किसी खास इलाके का नहीं है, बल्कि पूरे हिंदुस्तान का है.

डराने के हैं और भी तरीके : कोई किसान बाबाओं व पंडितों को हिस्सा नहीं देता तो ये लोग बारिश न होने पर गांव के मनचले लड़कों से कह कर उस किसान के ऊपर गोबरी (सड़ा हुआ गोबर) फिंकवा देते हैं. कहा जाता है कि जिस इनसान के ऊपर गोबरी फेंकी जाती है, वह जितना चिल्लाएगा बारिश उतनी ही अच्छी होगी. अपने फायदे के लिए ये धर्म के ठेकेदार भोलेभाले गरीब किसानों को इस तरह के तमाम हथकंडे अपना कर परेशान करते हैं. इस बारे में समाजसेवी डा. संजय द्विवेदी का कहना है कि आज भी गांवों में लोगों का पढ़ालिखा न होना एक बड़ी समस्या है, जिस का फायदा उठा कर धर्म के ठेकेदार अपना उल्लू सीधा करते हैं. वैसे अब लोग थोड़े जागरूक होने लगे हैं. कुछ पढ़ेलिखे लोग धर्म के ठेकेदारों के खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं.

डांसर के इश्क में

मैक्स बीयर बार में सैक्स रैकेट चलने की सूचना मिलते ही नौदर्न टाउन थाने के सबइंस्पैक्टर भीमा सिंह ने अपने दलबल के साथ वहां छापा मारा. वहां किसी शख्स के जन्मदिन का सैलिब्रेशन हो रहा था. खचाखच भरे हाल में सिगरेट, शराब और तेज परफ्यूम की मिलीजुली गंध फैली हुई थी. घूमते रंगीन बल्बों की रोशनी में अधनंगी बार डांसरों के साथ भौंड़े डांस करते मर्द गदर सा मचाए हुए थे. सब इंस्पैक्टर भीमा सिंह हाल में घुसा और चारों ओर एक नजर फेरते हुए तेजी से दहाड़ा, ‘‘खबरदार… कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा. बंद करो यह तमाशा और बत्तियां जलाओ.’’

तुरंत बार में चारों ओर रोशनी बिखर गई. सबकुछ साफसाफ नजर आने लगा. सब इंस्पैक्टर भीमा सिंह एक बार डांसर के पास पहुंचा और उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए एक जोरदार तमाचा उस के गाल पर मारा. वह बार डांसर गिर ही पड़ती कि भीमा सिंह ने उसे बांहों का सहारा दे कर थाम लिया और बार मालिक को थाने में मिलने का आदेश देते हुए वह उस बार डांसर को अपने साथ ले कर बाहर निकल गया. भीमा सिंह ने सोचा कि उस लड़की को थाने में ले जा कर बंद कर दे, फिर कुछ सोच कर वह उसे अपने घर ले आया. उस रात वह बार डांसर नशे में चूर भीमा सिंह के बिस्तर पर ऐसी सोई, जैसे कई दिनों से न सोई हो.

दूसरे दिन भीमा सिंह ने उसे नींद से जगाया और गरमागरम चाय पीने को दी. उस ने चालाक हिरनी की तरह बिस्तर पर पड़ेपड़े अपने चारों ओर नजर फेरी. अपनेआप को महफूज जान उसे तसल्ली हुई. उस ने कनखियों से सामने खड़े उस आदमी को देखा, जो उसे यहां उठा लाया था. भीमा सिंह उस बार डांसर से पुलिसिया अंदाज में पेश हुआ, तो वह सहम गई. मगर जब वह थोड़ा मुसकराया, तो उस का डर जाता रहा और खुल कर अपने बारे में सबकुछ सचसच बताने लगी कि वह जामपुर की रहने वाली है. वह पढ़ीलिखी और अच्छे घर की लड़की है. उस के पिता ने उस की बहनों की शादी अच्छे घरों में की है. वह थोड़ी सांवली थी, इसलिए उस की अनदेखी कर दी. इस से दुखी हो कर वह एक लड़के के साथ घर से भाग गई.

रास्ते में उस लड़के ने भी धोखा देते हुए उसे किसी और के हाथ बेचने की कोशिश की. वह किसी तरह से उस के चंगुल से भाग कर यहां आ गई और पेट पालने के लिए बार में डांस करने लगी.

भीमा सिंह बोला, ‘‘तुम्हारे जैसी लड़कियां जब रंगे हाथ पकड़ी जाती हैं, तो यही बोलती हैं कि वे बेकुसूर हैं.

‘‘ठीक है, तुम्हारा केस थाने तक नहीं जाएगा. बस, तुम्हें मेरा एक काम करना होगा. मैं तुम्हारा खयाल रखूंगा.’’

‘‘मुझे क्या करना होगा ’’ उस बार डांसर के मासूम चेहरे पर चालाकी के भाव तैरने लगे थे.

भीमा सिंह ने उसे घूरते हुए कहा, ‘‘तुम मेरे लिए मुखबिरी करोगी.’’ उस बार डांसर को अपने बचाव का कोई उपाय नहीं दिखा. वह बेचारगी का भाव लिए एकटक भीमा सिंह की ओर देखने लगी. भीमा सिंह एक दबंग व कांइयां पुलिस अफसर था. रिश्वत लिए बिना वह कोई काम नहीं करता था. जल्दी से वह किसी पर यकीन नहीं करता था. भ्रष्टाचार की बहती गंगा में वह पूरा डूबा हुआ था. लड़कियां उस की कमजोरी थीं. शराब के नशे में डूब कर औरतों के जिस्म के साथ खिलवाड़ करना उस की आदतों में शुमार था. भीमा सिंह पकड़ी गई लड़कियों से मुखबिरी का काम कराता था. लड़कियां भेज कर वह मुरगा फंसाता था. पकड़े गए अपराधियों से केस रफादफा करने के एवज में उन से हजारों रुपए वसूलता था. शराब के नशे में कभीकभी तो वह बाजारू औरतों को घर पर भी लाने लगा था, जिस के चलते उस की पत्नी उसे छोड़ कर मायके में रहने लगी थी.

इस बार डांसर को भी भीमा सिंह यही सोच कर लाया था कि उसे इस्तेमाल कर के छोड़ देगा, पर इस लड़की ने न जाने कौन सा जादू किया, जो वह अंदर से पिघला जा रहा था.

भीमा सिंह ने पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है ’’

‘‘रेशमा.’’

‘‘जानती हो, मैं तुम्हें यहां क्यों लाया हूं ’’

‘‘जी, नहीं.’’

‘‘क्योंकि थाने में औरतों की इज्जत नहीं होती. तुम्हारी मोनालिसा सी सूरत देख कर मुझे तुम पर तरस आ गया है. मैं ने जितनी लड़कियों को अब तक देखा, उन में एक सैक्स अपील दिखी और मैं ने उन से भरपूर मजा उठाया. मगर तुम्हें देख कर…’’

भीमा सिंह की बातों से अब तक चालाक रेशमा भांप चुकी थी कि यह आदमी अच्छी नौकरी करता है, मगर स्वभाव से लंपट है, मालदार भी है, अगर इसे साध लिया जाए… रेशमा ने भोली बनने का नाटक करते हुए एक चाल चली.

‘‘मैं क्या सचमुच मोनालिसा सी दिखती हूं ’’ रेशमा ने पूछा.

‘‘तभी तो मैं तुम्हे थाने न ले जा कर यहां ले आया हूं.’’

रेशमा को ऐसे ही मर्दों की तलाश थी. उस ने मन ही मन एक योजना तैयार कर ली. एक तिरछी नजर भीमा सिंह की ओर फेंकी और मचल कर खड़ी होते हुए बोली, ‘‘ठीक है, तो अब मैं चलती हूं सर.’’ ‘‘तुम जैसी खूबसूरत लड़की को गिरफ्त में लेने के बाद कौन बेवकूफ छोड़ना चाहेगा. तुम जब तक चाहो, यहां रह सकती हो. वैसे भी मेरा दिल तुम पर आ गया है,’’ भीमा सिंह बोला.

‘‘नहींनहीं, मैं चाहती हूं कि आप अच्छी तरह से सोच लें. मैं बार डांसर हूं और क्या आप को मुझ पर भरोसा है ’’

‘‘मैं ने काफी औरतों को देखा है, लेकिन न जाने तुम में क्या ऐसी कशिश है, जो मुझे बारबार तुम्हारी तरफ खींच रही है. तुम्हें विश्वास न हो, तो फिर जा सकती हो.’’ रेशमा एक शातिर खिलाड़ी थी. वह तो यही चाहती थी, लेकिन वह हांड़ी को थोड़ा और ठोंकबजा लेना चाहती थी, ताकि हांड़ी में माल भर जाने के बाद ले जाते समय कहीं टूट न जाए.

वह एकाएक पूछ बैठी, ‘‘क्या आप मुझे अपनी बीवी बना सकते हैं ’’

‘‘हां, हां, क्यों नहीं. मैं नहीं चाहता कि मैं जिसे चाहूं, वह कहीं और जा कर नौकरी करे. आज से यह घर तुम्हारा हुआ,’’ कह कर भीमा सिंह ने घर की चाबी एक झटके में रेशमा की ओर उछाल दी. रेशमा को खजाने की चाबी के साथ सैयां भी कोतवाल मिल गया था. उस के दोनों हाथ में लड्डू था. वह रानी बन कर पुलिस वाले के घर में रहने लगी. भीमा सिंह एक फरेबी के जाल में फंस चुका था. अगले दिन रेशमा ने भीमा सिंह को फिर परखना चाहा कि कहीं वह उस के साथ केवल ऐशमौज ही करना चाहता है या फिर वाकई इस मसले पर गंभीर है. कहीं वह उसे मसल कर छोड़ न दे. फिर तो उस की बनीबनाई योजना मिट्टी में मिल जाएगी. रेशमा घडि़याली आंसू बहाते हुए कहने लगी, ‘‘मैं भटक कर गलत रास्ते पर चल पड़ी थी. मैं जानती थी कि जो मैं कर रही हूं, वह गलत है, मगर कर भी क्या सकती थी. घर से भागी हुई हूं न. और तो और मेरे पापा ने ही मेरी अनदेखी कर दी, तो मैं क्या कर सकती थी. मैं घर नहीं जाना चाहती. मैं अपनी जिंदगी से हारी हुई हूं.’’

‘‘रेशमा, तुम अपने रास्ते से भटक कर जिस दलदल की ओर जा रही थी, वहां से निकलना नामुमकिन है. तुम ने अपने मन की नहीं सुनी और गलत जगह फंस गई. खैर, मैं तुम्हें बचा लूंगा, पर तुम्हें मेरे दिल की रानी बनना होगा,’’ भीमा सिंह उसे समझाते हुए बोला. ‘‘तुम मुझे भले ही कितना चाहते हो, लेकिन मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. मैं बार डांसर बन कर ही अपनी बाकी की जिंदगी काट लूंगी. तुम मेरे लिए अपनी जिंदगी बरबाद मत करो. तुम एक बड़े अफसर हो और मैं बार डांसर. मुझे भूल जाओ,’’ रेशमा ने अंगड़ाई लेते हुए अपने नैनों के बाण ऐसे चलाए कि भीमा सिंह घायल हुए बिना नहीं रह सका.

‘‘यह तुम क्या कह रही हो रेशमा  अगर भूलना ही होता, तो मैं तुम्हें उस बार से उठा कर नहीं लाता. तुम ने तो मेरे दिल में प्यार की लौ जलाई है.’’ रेशमा के मन में तो कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी. उस ने भीमा सिंह को अपने रूपजाल में इस कदर फांस लिया था कि वह आंख मूंद कर उस पर भरोसा करने लगा था. भीमा सिंह के बाहर जाने के बाद रेशमा ने पूरे घर को छान मारा कि कहां क्या रखा है. वह उस के पैसे से अपने लिए कीमती सामान खरीदती थी. भीमा सिंह को कोई शक न हो, इस के लिए वह पूरे घर को साफसुथरा रखने की कोशिश करती थी. भीमा सिंह को भरोसे में ले कर रेशमा अपना काम कर चुकी थी. अब भागने की तरकीब लगाते हुए एक शाम उस ने भीमा सिंह की बांहों में झूलते हुए कहा, ‘‘एक अच्छे पति के रूप में तुम मिले, इस से अच्छा और क्या हो सकता है. मैं तो जिंदगीभर तुम्हारी बन कर रहना चाहती हूं, लेकिन कुछ दिनों से मुझे अपने घर की बहुत याद आ रही है.

‘‘मैं तुम्हें भी अपने साथ ले जाना चाहती थी, मगर मेरे परिवार वाले बहुत ही अडि़यल हैं. वे इतनी जल्दी तुम्हें अपनाएंगे नहीं.

‘‘मैं चाहती हूं कि पहले मैं वहां अकेली जाऊं. जब वे मान जाएंगे, तब उन लोगों को सरप्राइज देने के लिए मैं तुम्हें खबर करूंगी. तुम गाड़ी पकड़ कर आ जाना.

‘‘ड्रैसिंग टेबल पर एक डायरी रखी हुई है. उस में मेरे घर का पता व फोन नंबर लिखा हुआ है. बोलो, जब मैं तुम्हें फोन करूंगी, तब तुम आओगे न ’’

‘‘क्यों नहीं जानेमन, अब तुम ही मेरी रानी हो. तुम जैसा ठीक समझो करो. जब तुम कहोगी, मैं छुट्टी ले कर चला आऊंगा,’’ भीमा सिंह बोला. रेश्मा चली गई. हफ्ते, महीने बीत गए, मगर न उस का कोई फोन आया और न ही संदेश. भीमा सिंह ने जब उस के दिए नंबर पर फोन मिलाया, तो गलत नंबर बताने लगा. भीमा सिंह ने जब अलमारी खोली, तो रुपएपैसे, सोनेचांदी के गहने वगैरह सब गायब थे. घबराहट में वह रेशमा के दिए पते पर उसे खोजते हुए पहुंचा, तो इस नाम की कोई लड़की व उस का परिवार वहां नहीं मिला. भीमा सिंह वापस घर आया, फिर से अलमारी खोली. देखा तो वहां एक छोटा सा परचा रखा मिला, जिस में लिखा था, ‘मुझे खोजने की कोशिश मत करना. तुम्हारे सारे पैसे और गहने मैं ने पहले ही गायब कर दिए हैं.

‘मैं जानती हूं कि तुम पुलिस में नौकरी करते हो. रिपोर्ट दर्ज कराओगे, तो खुद ही फंसोगे कि तुम्हारे पास इतने पैसे कहां से आए  तुम ने पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी कब की ’ भीमा सिंह हाथ मलता रह गया.

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