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गाड़ी की पिछली सीट, न बाबा न

चर्चित फिल्म ‘पीके’ का वह सीन आप को याद होगा, जिस में गाड़ी हिलते हुए दिखाई गई थी, जिस का सिंबोलिक मतलब है कि गाड़ी की पिछली सीट सैक्स के लिए इस्तेमाल की जा रही है, ऐसे में पीके जैसा दूसरे ग्रह से आया एलियन उन के कपड़े तक उठा कर चला जाता है, लेकिन गाड़ी में वह सब अनवरत चलता रहता है. गाड़ी हिलती है यानी सैक्स होने का आभास देती है.

आज यह स्थिति आम है. अधिकतर जोड़े सैक्स के लिए गाड़ी की पिछली सीट का इस्तेमाल करते हैं और उन्हें यह आभास भी नहीं होता कि किसी की निगाह उन पर पड़ चुकी है. भले ही वह उन का कलीग हो, दोस्त हो, रिश्तेदार हो या फिर अन्य कोई, लेकिन इस का खमियाजा उन्हें तब भुगतना पड़ता है जब समाज में उन्हें हिकारत भरी नजरों से देखा जाता है. ऐसा ही कुछ रोहित और प्रिया के साथ भी हुआ, जिस में उन की प्यार में पिछली सीट पर लांघी गई सीमाएं ही उन्हें ले डूबीं. दरअसल, रोहित कई दिन से प्रिया को नोटिस कर रहा था, क्योंकि दोनों एक ही औफिस में जौब करते थे और प्रिया उसे बहुत स्वीट लगती थी. इस बात से प्रिया अनजान थी क्योंकि वह अपनी दुनिया में खोई रहती थी.

एक दिन रोहित ने हिम्मत जुटा कर प्रिया को रोक कर उसे प्रपोज कर दिया. रोहित के इस प्रस्ताव को सुन प्रिया डर गई, क्योंकि वह इन लफड़ों में नहीं पड़ना चाहती थी. इसलिए प्रिया उस दिन तो बिना कुछ कहे वहां से चली गई, लेकिन उस दिन के बाद अब अकसर रोहित उसे मिल जाया करता था. प्रिया उसे इग्नोर करती पर वह उस के पीछे लगा रहता. कई बार मिलने से प्रिया के दिल में रोहित के लिए प्यार उमड़ पड़ा और एक दिन जब रोहित मैट्रो स्टेशन पर मिला तो प्रिया ने अपना कंट्रोल खो दिया और भीड़ की परवा किए बिना रोहित को गले लगा लिया.

अब तो दोनों दुनिया की परवा किए बिना रोज साथ आतेजाते, घूमतेफिरते. एक दिन रोहित के फ्रैंड दीपक को जब इस बात का पता चला कि प्रिया ने जिसे वह काफी चाहता था, लेकिन वह उसे भाव नहीं देती थी, उसे इग्नोर कर रोहित से फ्रैंडशिप कर ली है, तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा और उस ने उस से बदला लेने की ठान ली. उस ने एक प्लान बनाया, जिस से रोहित अनजान था. उस ने रोहित से आउटिंग पर अपनीअपनी गर्लफ्रैंड को ले कर चलने को कहा. यह सुन रोहित खुशी के मारे पागल हो गया और उस ने प्रिया को भी इस के लिए राजी कर लिया. अगले दिन वे दोनों तय समय पर दीपक की बताई जगह पर पहुंच गए. लेकिन वहां प्रिया को छोड़ कर किसी की भी गर्लफ्रैंड नहीं आई थी. यह देख प्रिया डर गई, लेकिन रोहित पर विश्वास कर वह गाड़ी की पिछली सीट पर बैठने के लिए तैयार हो गई.

कहते हैं इंसान अकसर जोश में होश खो देता है. यही रोहित और प्रिया के साथ भी हुआ. दोनों रोमांटिक गानों की धुन में ऐसे खो गए कि गाड़ी की पिछली सीट पर उन्होंने सारी सीमाएं यह सोच कर पार कर दीं कि आगे वाली सीट पर बैठे फ्रैंड्स उन की हिफाजत कर रहे हैं, लेकिन उन्हें क्या पता था कि वे इसी मौके की तलाश में थे. उन्होंने उन्हें नशीली कोल्डड्रिंक पिला दी थी, जिस से दोनों खुद को संभाल नहीं पाए. उन्होंने इस सैक्सी मूवमैंट का वीडियो बना कर फेसबुक पर वायरल कर दिया. जैसे ही इस का पता रोहित और प्रिया को लगा तो उन के होश उड़ गए, क्योंकि इस के बाद वे दोनों कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे थे. यहां तक कि दोनों अपने पेरैंट्स की नजरों में भी गिर गए थे. अब उन के पास सिवा पछतावे के कुछ नहीं था. ऐसा सिर्फ रोहित और प्रिया के साथ ही नहीं बल्कि अधिकांश युवकयुवतियों के साथ होता है, क्योंकि युवाओं के लिए गाड़ी की पिछली सीट महत्त्वपूर्ण होने के साथसाथ काफी रोमांटिक भी होती है, तभी तो वे इस पर प्रेमलीलाओं को अंजाम देने की कोशिश करते हैं.

जब भी कोई इस तरह की सैक्सी वारदात होती है या आपसी रजामंदी से ऐसे रिलेशन बनते हैं तो कार की पिछली सीट का ही इस्तेमाल होता है, क्योंकि मौजमस्ती करना पिछली सीट पर जितना सहज और मुमकिन है उतना ड्राइव करते वक्त नहीं. बलात्कार की ज्यादातर घटनाओं को भी पिछली सीट पर ही अंजाम दिया जाता है. यही नहीं युवकयुवती भी मौजमस्ती के लिए पिछली सीट का ही इस्तेमाल करते हैं. अमूमन ग्रुप में जाते समय भी यह तय कर लिया जाता है कि पहले एक जोड़ा ड्राइव करेगा और दूसरा पिछली सीट पर बैठेगा, लेकिन यह पिछली सीट का सैक्सी लुत्फ भी युवतियों पर ही भारी पड़ता है इसलिए कोशिश करें पिछली सीट को न कहने की.

और भी कई खतरे हैं सैक्सी वीडियो से ब्लेकमैल

एक बार यदि आप का सैक्सी वीडियो किसी के हाथ लग गया तो फिर आप की जिंदगी का रिमोट हमेशा के लिए उस के हाथों में आ जाएगा और आप उस के हाथों की कठपुतली बन कर रह जाएंगी. फिर चाहे वह आप के सामने पैसों की डिमांड करे या फिर ग्रुप सैक्स की फरमाइश, आप को न चाहते हुए भी इस के लिए राजी होना पड़ेगा इसलिए सावधान हो जाएं.

कौस्ट फ्री, बट टैंशन हजार

भले ही आप ने यह सोच कर कि इस में कोई खर्च नहीं आएगा और मजा भी पूरापूरा मिलेगा, पिछली सीट के लिए हामी भरी हो परंतु आप की यह सोच बिलकुल गलत है, क्योंकि गाड़ी में आप को ऐसा करते आसपास के लोग देख रहे हैं यदि किसी ने आप को सबक सिखाने के लिए भीड़ इकट्ठा कर ली तो आप की ठुकाई भी पक्की है. इसलिए कौस्ट फ्री के चक्कर में मुसीबत मोल न लें.

आप की तो लग जाएगी वाट

भले ही आप ने अपनी गाड़ी यह सोच कर बहुत दूर खड़ी की है कि कोई देख न ले, लेकिन इस के बावजूद यदि किसी फैमिली मैंबर या पड़ोसी ने आप को देख लिया तो आप की तो बदनामी हो जाएगी. इस के बाद आप लाख सफाई दें, लोगों का मुंह बंद नहीं कर पाएंगी. सो बी केयरफुल.

ब्लैक शीशे के बावजूद खतरा

भले ही आप के पार्टनर की गाड़ी में ब्लैक शीशे हों और आप यह सोच कर निश्चिंत हों कि किसी को कुछ नहीं दिखेगा, पार्टनर के साथ सैक्स ऐंजौय करने लग जाएं, तो ऐसे में आप समाज की नजरों के साथसाथ पुलिस के हत्थे चढ़ सकती हैं.

खुद की इज्जत पर भी बट्टा

जिस पार्टनर पर आप आंखें मूंद कर  अपना सबकुछ खुलेआम उसे सौंप रही हैं, क्या पता वही आप को धोखा दे जाए. ऐसे में आप खुद अपनी नजरों से गिर जाएंगी. इस से आप की पर्सनैलिटी, आप का कैरियर भी चौपट हो सकता है.

पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में कार की पिछली सीट पर सैक्स करने के कई मामले सामने आए. ज्यादातर में युवतियों के साथ सैक्स किया गया और उन्हें गाड़ी से धक्का दे कर सड़क पर फेंक दिया गया. आप भी कहीं ऐसे किसी हादसे का शिकार न हो जाएं इसलिए सोचसमझ कर ही बौयफ्रैंड की कार में बैठें.

बाग बगीचों में सैक्स, खतरा ही खतरा

दृश्य 1 : दिल्ली के दिल कनाट प्लेस स्थित सैंट्रल पार्क में एक पेड़ के नीचे गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड एकदूसरे की बांहों में समाए हुए हैं. बौयफ्रैंड कभी गर्लफ्रैंड को किस कर रहा है तो कभी उस की टीशर्ट में अपना हाथ डाल रहा है.

दृश्य 2 : साउथ दिल्ली का गार्डन औफ फाइव सैंसेस, झाडि़यों के अंदर, पहाड़ों के पीछे, पेड़ के नीचे, प्रेमी जोड़े एकदूसरे के साथ फुल ऐंजौय करते हुए. कहीं बौयफ्रैंड अपनी गर्लफ्रैंड की उत्तेजना को शांत कर रहा है तो कहीं गर्लफ्रैंड शर्म के मारे बौयफ्रैंड को खुश नहीं कर पा रही है.

दिल्ली के इन पार्कों की तरह हर शहर में कोई न कोई पार्क ऐसा जरूर होता है जहां हमेशा प्रेमी युगलों का जमघट लगा रहता है, क्योंकि वहां न तो कोई उन्हें डिस्टर्ब करने वाला होता है और न ही उन्हें एकदूसरे के साथ समय बिताने के लिए पैसे खर्च करने पड़ते हैं. घंटों फ्री में एकदूसरे के साथ मस्ती कर सकते हैं. वे घूमतेफिरते हुए एक सुरक्षित स्थान खोजते हैं. बस फिर क्या, न अगल, देखते हैं न बगल, बस, शुरू हो जाते हैं. इन पार्कों में एकदूसरे की बांहों में समाना, किस करना तो आम बात है, वे झाडि़यों की आड़ में सैक्स करने से भी नहीं कतराते. वे यह भी नहीं सोचते कि उन की ये सैक्सी हरकतें उन्हें मुसीबत में भी डाल सकती हैं. वे तो बस, जवानी के नशे में मदहोश रहते हैं.

दरअसल, युवा सोचते हैं कि गर्लफ्रैंड के साथ सैक्स करने का यह अच्छा स्थान है. यहां न तो पेरैंट्स आएंगे और न वे पकड़े जाएंगे, क्योंकि आसपास सारे कपल्स भी उन्हीं की तरह हैं. इस तरह बागबगीचों में खुलेआम सैक्स करना आप के और आप की पार्टनर के लिए महंगा पड़ सकता है, आप केवल प्रौब्लम्स में ही नहीं फंसते बल्कि आप का कैरियर भी खराब हो सकता है.

खर्च कम, मुसीबतें ज्यादा

अधिकांश युवा सोचते हैं कि कौन करे पैसे खर्च जब फ्री में काम हो रहा है और इसी वजह से वे बागबगीचों में जाना पसंद करते हैं. वहां उन्हें खर्च भी नहीं करना पड़ता और झाडि़यों के पीछे या पेड़ के सहारे फुल ऐंजौय कर सकते हैं.

क्या आप जानते हैं कि इस ऐंजौयमैंट के बदले आप को कई तरह की मुसीबतों का भी सामना करना पड़ सकता है, जैसे कोई चुपके से आप का वीडियो बना कर फेसबुक और व्हाट्सऐप पर शेयर कर सकता है. एक बार आप का वीडियो शेयर हो जाने के बाद वह चारों तरफ वायरल हो जाएगा. फिर आप के कंट्रोल में कुछ भी नहीं रहेगा. इन जगहों पर एकदूसरे के साथ मस्ती करने के दौरान अकसर आप सेफ्टी बरतना भी भूल जाते हैं, गलती से आप की जींस का बटन टूट सकता है, कपड़े फट सकते हैं, आप दोनों को वहां आप का कोई फ्रैंड पहचान सकता है, भले ही वह भी वहां वही करने आया हो, जो आप करने गए हैं. लेकिन आप दोनों के अलावा अगर किसी तीसरे को इस बारे में पता चल जाए तो मन में हमेशा के लिए डर बना रहता है.

ऐक्स का मिलना मतलब काम तमाम

ऐसा भी हो सकता है कि आप जिस पार्क में गई हैं वहां आप का ऐक्स बौयफ्रैंड मिल जाए और जब वह किसी दूसरे के साथ आप को देखे तो उस का गुस्सा बाहर आ जाए और वह आप के पार्टनर से झूठ बोलने लगे कि आप ने उस के साथ भी ऐसा ही किया था और जब मन भर गया तो आप को छोड़ दिया. भाई, मैं तो इसलिए बता रहा हूं ताकि तुम संभल जाओ. ऐक्स के बोलने के बाद फिर क्या आप का बौयफ्रैंड आप से झगड़ने लगेगा, आप पर शक करने लगेगा.

लूटपाट का खतरा

आप सोचते हैं पार्क में जाएंगे वहां घूमेंगेफिरेंगे और एक सुरक्षित स्थान खोज कर सैक्स का मजा लेंगे. फिर वापस घर आ जाएंगे और किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा. लेकिन जब आप एकदूसरे में व्यस्त होते हैं तब साइड से कोई आप का फोन चोरी कर सकता है. अगर आप की गर्लफ्रैंड ने गोल्ड पहन रखा है तो कोई चाकू या रिवाल्वर दिखा कर उसे लूट सकता है. सुनसान जगहों पर लूटपाट की घटनाएं आम हैं. इसलिए जब भी एकांत स्थान पर जाएं तो गोल्ड या महंगी चीजें साथ न ले जाएं.

बीमारियों का डर

यहां सैक्स करना आप के लिए इसलिए भी खतरनाक हो सकता है, क्योंकि पता चले आप एकदूसरे में समाने के लिए झाडि़यों के पास गए और वहां आप को किसी कीड़े ने काट लिया तो लेने के देने पड़ सकते हैं. आप ऐंजौय तो जरूर कर लेंगे, लेकिन इस के बाद बीमार पड़ जाएंगे उस का क्या. आजकल तो वैसे भी डेंगू, चिकनगुनिया तेजी से फैला हुआ है, अकसर जल्दबाजी में गर्लफ्रैंड व बौयफै्रंड सेफ्टी मेजर्स साथ नहीं रखते. बस, सैक्स करने में जुट जाते हैं. अगर गर्लफ्रैंड को कोई बीमारी है तो बौयफ्रैंड को हो सकती है इसी तरह बौयफ्रैंड किसी गंदी बीमारी से ग्रस्त है तो वह गर्लफ्रैंड को भी हो सकती है.

पुलिस की रेड

सोचिए, आप पार्क में गर्लफ्रैंड की बांहों में हैं और वहां पुलिस की रेड पड़ जाए, उस समय आप मुसीबत में तो फंस ही जाएंगे और यह बात जब आप के घर वालों को पता चलेगी तो आप उन से नजरें भी नहीं मिला पाएंगे.

अपमान होने का डर

कभी ऐसा भी हो सकता है कि आप अपनी गर्लफ्रैंड के साथ घूम रहे हों और गर्लफ्रैंड की खूबसूरती देख कर आप अपना कंट्रोल खोने लगें और बातोंबातों में उसे पास के ही पार्क में ले कर चले जाएं, जहां आप पहले कभी नहीं गए हों और वहां के बारे में आप को कोई आइडिया भी न हो, लेकिन फिर भी आप एक कोना ढूंढ़ कर ऐंजौय करने लगें. ऐसा हो सकता है कि उस पार्क में बड़ेबुजुर्ग घूमने आते हों. वे आप दोनों को इस तरह से देख कर आपत्ति जताएं या आप की गतिविधियों के बारे में गार्ड को खबर कर दें और गार्ड सब के सामने आप दोनों को बाहर निकाल दे.

अंधेरे में सैक्स करना पड़ेगा महंगा

प्रेमी जोडे़ बागबगीचों में अंधेरा होने का बेसब्री से इंतजार करते हैं, जल्दी से अंधेरा हो ताकि उजाले में जो मजा नहीं मिल पाया, वे उसे अंधेरे में ले सकें. दिन में गर्लफ्रैंड सैक्स में थोड़ी हिचकिचाहट दिखाती है, लेकिन अंधेरा होते ही वह भी ऐंजौयमैंट में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. लेकिन अंधेरे में सैक्स करना खतरनाक ही नहीं बल्कि खुद को प्रौब्लम में डालने के बराबर है इसलिए अगर आप सोचते हैं कि अंधेरे में सैक्स कर के भरपूर मजा ले पाएंगे और किसी को पता भी नहीं चलेगा, तो जरा संभल जाएं. वैसे तो यह उम्र ही ऐसी है जिस में खुद पर कंट्रोल रखना मुश्किल होता है, हम फिसलते चले जाते हैं. अगर ऐसा है तो आप वैसी जगहों का चयन करें जो हर तरीके से सुरक्षित हों, जहां न तो पकड़े जाने का खतरा हो और न ही ब्लैकमेलिंग का डर. युवकयुवतियों के बीच सैक्स होना लाजिमी है, क्योंकि यह उम्र ही ऐसी होती है जब अपनी सैक्स भावनाओं पर अंकुश रख पाना मुश्किल होता है. पर सैक्स के लिए ऐसे स्थान का चयन करें जहां किसी भी प्रकार का खतरा न हो. हां, प्रीकौशंस का भी ध्यान रखें वरना आप मुसीबत में पड़ सकते हैं.

जियोफाई अब सभी स्मार्टफोन पर करेगा काम

रिलायंस जियो अपने लॉन्चिंग के समय से ही कभी अच्छी तो कभी बुरी बातों को ले कर खबरों में बना हुआ है. लेकिन इस बार यह अपने डिवाइस को ले चर्चा में है. रिलायंस जियो का कहना है कि उसका 4 जी डिवाइस अब बाजार में उपलब्ध है जिसके जरिए कोई भी 2जी व 3जी स्मार्टफोन धारक उसकी सभी सेवाओं का इस्तेमाल कर सकता है. कंपनी के यहां जारी बयान के अनुसार जियोफाई 4जी पोर्टेबल वायस व डेटा डिवाइस है जो कि हॉटस्पॉट के रूप में काम करता है और इसके जरिए फोन कॉल करने के साथ साथ वीडियो कॉल व जियो के सभी ऐप का इस्तेमाल किया जा सकता है. यानी अगर ग्राहक का फोन 4जी नहीं है तो भी वह रिलायंस जियो की सभी सेवाओं का इस्तेमाल कर सकेगा.

बयान के अनुसार इसके लिए जियोफाई में सिम लगाकार उसे एक्टिवेट करना होता है. इसके बाद 2जी या 3जी स्मार्टफोन पर जियो4जीवायस एप्लीकेशन डाउनलोड कर उसे जियो नेटवर्क से कनेक्ट करना होता है. कंपनी का कहना है कि इस डिवाइस के जरिए जियो के ग्राहक इंटरनेट, वायसकाल, वीडियोकाल व एसएमएस सहित कंपनी की विभिन्न सेवाओं का इस्तेमाल कर सकता है भले ही उसका फोन 4जी वोल्टी नहीं हो.

उल्लेखनीय है कि मुकेश अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस जियो के पास देश भर में 4जी दूरसंचार सेवा उपलब्ध कराने का लाइसेंस है. कंपनी ने पांच सितंबर को अपनी सेवाओं की औपचारिक शुरुआत की थी और हाल ही में घोषणा की कि उसके ग्राहकों की संख्या पांच करोड़ से अधिक हो गई है.

कंपनी फिलहाल 31 मार्च 2017 तक अपनी सभी सेवाएं मुफ्त दे रही है.

20, 50 के बाद अब 100 रुपए के नए नोट

20 और 50 रुपए के नए नोट के बाद आरबीआई अब 100 रुपए के नए नोट जारी करेगा. पर 100 रुपए के पुराने नोट बंद नहीं होंगे. आरबीआई द्वारा जारी किए गए बयान में कहा गयाहै, ‘आरबीआई महात्मा गांधी-2005 सीरीज के तहत जल्द ही 100 रुपये के नए नोट जारी करेगी. इसमें वर्तमान गर्वनर उर्जित आर. पटेल के हस्ताक्षर होंगे और इस पर मुद्रण का साल 2016 दर्ज होगा.’

नोटबंदी के बाद छोटे नोटों की कमी को देखते हुए शीर्ष बैंक ने यह कदम उठाया है. 100 रुपए का ये नोट 2005 की महात्मा गांधी सीरीज में ही छापे जाएंगे. इन पर मौजूदा गवर्नर उर्जित पटेल के हस्ताक्षर होंगे. इन नए नोटों के बाकी डिजाइन और सिक्यॉरिटी फीचर्स 100 के नोट की तरह ही होंगे. इसके अलावा इन नोटों में बढ़ते क्रम में अंक दर्ज होंगे.

इससे पहले 50 और 20 रुपये के नए नोट जारी करने की भी घोषणा की जा चुकी है. 50 रुपये के नोट 2005 की महात्मा गांधी सीरीज में छापे जाएंगे. 50 रुपये के इस नए नोट के दोनों नंबर पैनल में कोई इनसेट लेटर नहीं होगा. आरबीआई के मुताबिक 20 और 50 रुपये के नए नोटों को जारी किए जाने के बावजूद पुराने नोट पहले की तरह ही मान्य रहेंगे.

पॉन्टिंग और मैथ्यू को पीछे छोड़ वॉर्नर ने रचा इतिहास

न्यूजीलैंड के खिलाफ दूसरे वनडे मैच में शतक लगाने वाले ऑस्ट्रेलियाई सलामी बल्लेबाज डेविड वॉर्नर ने 119 रन की पारी खेलकर एक रिकॉर्ड बना दिया. इसी के साथ उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान रिकी पॉन्टिंग और पूर्व सलामी बल्लेबाज मैथ्यू हेडन के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है.

डेविड वार्नर ने एकदिवसीय क्रिकेट में एक साल में आस्ट्रेलिया की तरफ से सबसे ज्यादा शतक लगाने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया है. वार्नर ने न्यूजीलैंड के खिलाफ खेले गए मुकाबले में 115 गेंदों में 14 चौके और एक छक्के की मदद से 119 रनों की शतकीय पारी खेली. यह वार्नर का इस साल में खेले गए 22 मैचों में छठा शतक था. वह इसके साथ ही एक साल में एकदिवसीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक लगाने वाले बल्लेबाजों की सूची में तीसरे स्थान पर आ गए हैं.

एक साल में एकदिवसीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा शतक लगाने का रिकार्ड सर्वकालिक महान बल्लेबाजों में शुमार भारत के सचिन तेंदुलकर के नाम हैं. सचिने ने 1998 में 34 मैच खेले थे और नौ शतक लगाए थे.

उनके बाद भारत के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली का नंबर आता है. गांगुली ने 2000 में 32 मैचों में सात शतक लगाए थे. वार्नर के अलावा एक साल में छह शतक लगाने वाले बल्लेबाजों में दक्षिण अफ्रीका के गैरी कर्स्टन और सचिन (1996) तथा भारत के ही राहुल द्रविड़ (1999) के नाम शामिल हैं.

पोंटिंग और हेडन ने एक साल में पांच शतक लगाए थे. पोंटिंग ने अपने करियर में दो बार 2003 और 2007 में यह कारनामा किया था. वहीं हेडन ने 2007 में एक साल में पांच शतक लगाए थे. वार्नर के इसी शतक की बदौलत आस्ट्रेलिया ने किवी टीम के खिलाफ निर्धारित 50 ओवरों में पांच विकेट के नुकसान पर 378 रन बनाए जोकि उसका एकदिवसीय में तीसरा सर्वोच्च स्कोर है.

मनहूस कौन विधानसभा या….

5 दिसम्बर को जब मध्यप्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ, तब सदन में आ रहे कई विधायकों के चेहरे पर दहशत थी, मानो मौत उनका पीछा कर रही हो. माहौल वाकई किसी डरावनी फिल्म या जासूसी उपन्यास के सस्पेंस सरीखा था, जिसमें एक के बाद एक मौतें हो रही हों और इनकी वजह किसी को समझ नहीं आ रही हो.

दरअसल में राज्य के अधिकांश विधायकों के मन में दोबारा से यह डर बैठ गया है कि हो न हो विधानसभा भवन मनहूस है या इसमें कोई वास्तुदोष है जिसके चलते एक के बाद एक विधायकों की मौतें हो रही हैं.

बीती 25 अक्टूबर को कांग्रेसी विधायक सत्यदेव कटारे की मौत के बाद यह डर और गहरा गया था, जो विधानसभा सत्र शुरु होते ही भवन के गलियारों में दिखा. कुछ प्रेस फोटोग्राफर्स यह चर्चा करते देखे भी गए कि जाने कब फिर से पूजा, पाठ, यज्ञ, हवन और वास्तुदोष निवारण का फरमान आ जाए.

13 साल, 29 मौतें

साल 1998 में अरेरा हिल्स स्थित नए विधानसभा भवन में जब कामकाज शुरू हुआ था, तब सभी ने नई ईमारत की भव्यता की खूब तारीफ की थी, पर 2003 आते आते यानि 5 साल में 10 विधायकों की मौतें हुईं, तो इस नए भवन पर मनहूसियत का ठप्पा लग गया जो अब तक बरकरार है.

2003 से लेकर 2008 तक 12वीं विधानसभा के दौरान भी 8 विधायकों की मौतें हुईं, तो विधानसभा भवन के मनहूस होने का शक यकीन में बदल गया. 13वीं विधानसभा 2013 तक चली और इस दौरान 6 विधायक काल के गाल में समा गए. फिर 2013 के बाद से लेकर अब तक फिर 6 विधायकों की मौतें हुईं, तो एक बार फिर यह चर्चा शुरू हो गई है कि विधानसभा भवन का ‘ट्रीटमेंट’ होना चाहिए. इलाज होना चाहिए यानि फिर से पूजा पाठ या दूसरे टोटके कर कोई ऊपरी बाधा या हवा जो भी हो उसे दूर करने जतन किए जाना चाहिए.

खूब हुए ड्रामे

कांग्रेसी शासनकाल में विधानसभा अध्यक्ष पंडित श्रीनिवास तिवारी ने विधायकों की मौतों का शुरू हुआ सिलसिला रोकने एक खास किस्म की पूजा कराई थी. तब विंध्य इलाके के पांच नामी पंडितों ने भोपाल आकर सदन के दरवाजे पर खुलेआम पूजा पाठ कर सरकार को भरोसा दिलाया था कि इससे बला टल गई.

लेकिन विधायकों की मौतें होती रहीं, तो अंधविश्वास भाजपा सरकार के राज में भी खूब फला फूला. विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी ने भी इस कथित मनहूसियत को टालने उपाय किए थे, जिनके तहत मुख्य दरवाजे के टाइल्स बदले गए थे ओर सदन के अंदर की सीटों का रंग बदला गया था. अलावा इसके विधानसभा अध्यक्ष के चेम्बर के नीचे एक पंडित के मशवरे पर मैदान बनाकर यहां बना नर्मदा कुण्ड बंद कराया गया था. इतने पर भी बात नहीं बनी तो विधानसभा अध्यक्ष और प्रमुख सचिव के चेम्बर्स के सामने के बैठने के इंतजाम भी बदल दिए गए थे.

इसके बाद एक बेतुका काम यह किया गया था कि विधानसभा स्टाफ केम्पस में बने दुर्गा मंदिर में बिना पर्वत वाले हनुमान की स्थापना की गई थी. इस बारे में किसी पंडित ने मशवरा यह दिया था कि पर्वत वाला हनुमान सिर्फ राम की हिफाजत करता है, जबकि बिना पर्वत वाला हनुमान आम लोगों की हिफाजत करता है.

अंधविश्वास या वहम के इलाज का यह टोटका भी बेकार साबित हुआ, तो सुंदरकांड के पाठ विधानसभा भवन में होने लगे. एक वक्त में तो यहां का माहौल देख लगता था कि यह विधानसभा नहीं, बल्कि कोई नामी मंदिर है. विधायकों की मौतें होती रहीं, खासतौर से हादसों में कुछ युवा विधायक मरे तो फिर से मांग उठने लगी कि कुछ किया जाए. मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष सीताशरण शर्मा इस मसले पर हाल फिलहाल खामोश हैं.

नहीं सुधरेंगे

मध्यप्रदेश की राजनीति में धर्म कर्म बेहद आम बात है, तमाम नेता कुछ और करें ना करें पर पूजा पाठ यज्ञ हवन और दूसरे धार्मिक जलसों में जरूर शिरकत करते हैं. इसके बाद भी भगवान जाने क्यों विधायकों से खफा हैं, जो बजाय जिंदगी बचाने के जिंदगियां छीन रहा है. इस सवाल का जवाब हालांकि धर्म ग्रंथों में है कि मौत तो शाश्वत है और कब किसकी कैसे कहां आ जाए यह किसी को नहीं मालूम.

और ‘जिन्हें’ मालूम रहता है वे पूजा पाठ, यज्ञ, हवन और वास्तु दोष दूर करने के नाम पर हर बार तगड़ी दक्षिणा खीसे में डालकर चलते बनते हैं. अब फिर कुछ कहने की मांग उठ रही है तो विधायकों की मानसिकता पर तरस ही खाया जा सकता है, जो डरे हुए हैं क्योंकि अंधविश्वास के शिकार हैं.

यह मानने समझने कोई तैयार नहीं कि अधिकांश विधायकों की मौतों चाहे वे हार्ट अटैक से हुई हों या हादसों की जिम्मेदार खुद उनकी लापरवाही रही है. अगर विधानसभा भवन मनहूस होता, तो उसकी गाज यहां काम कर रहे मुलाजिमों पर गिरनी चाहिए थी, क्योंकि वे विधायकों से कहीं ज्यादा वक्त यहां बिताते हैं. पाखंडी माहौल सुधरेगा ऐसा लग नहीं रहा, क्योंकि कई विधायकों ने अपने लेवल पर धार्मिक और तांत्रिक उपाय शुरु कर दिए हैं.

पांच रुपए में बिकेगी मामा थाली

अपने मुख्यमंत्रित्व काल के 11 साल पूरा होने पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल के जम्बूरी मैदान से ताबड़तोड़ घोषणाएं, कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा कर डालीं, इनमें से अधिकांश गरीबों के लिए हैं. इन घोषणाओं पर यकीन करें तो सूबे में अब कोई बेघर और बेजमीन नहीं होगा, गरीबों को मुफ्त इलाज मिलेगा और सरकारी योजना के तहत शादी करने वालों को तोहफे में स्मार्ट फोन दिया जाएगा.

घोषणावीर होते जा रहे शिवराज सिंह चौहान ने एक घोषणा यह भी कि जल्द ही सरकार गरीबों को पांच रुपये थाली के हिसाब से भरपेट खाना मुहैया कराएगी. इस योजना का नाम दीनदयाल रसोई रखा गया है, जिसकी शुरुआत भोपाल से होगी. चूंकि शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश में मामा कहा जाता है, इसलिए आम लोगों ने ही इसे मामा थाली खाना नाम दे दिया है.

गरीबों को मुफ्त या सस्ता खाना खिलाने से पुण्य के साथ साथ शोहरत भी मिलती है, इसलिए शिवराज सिंह चौहान पुण्य कमाने का यह मौका भी नहीं छोडऩा चाह रहे. मुफ्त के भाव के खाने की शुरुआत तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने की थी, जिनके नाम पर अम्मा थाली 15 रुपये में तमिलनाडु में मिलती है, जयललिता जिन वजहों के चलते याद की जाएंगी, अम्मा थाली उनमें से एक है.

शिवराज सिंह चौहान के भाषण को समझें तो उनका इशारा बेहद साफ है कि अब भाजपा बजाए धर्म और राम के समाजवाद की राजनीति करेगी और गरीबों को अमीर और अमीरों को गरीब बनाने की कोशिश जारी रखेगी. 11 साल में हुआ इतना है कि भाजपा का कांग्रेसीकरण हो गया है, जिस तरह दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री रहते सोनिया जी सोनिया जी करते रहते थे, उसी तरह शिवराज सिंह अपने भाषणों में मोदी मोदी भजते रहते हैं. दिग्विजय दलितों के भले के लिए दलित एजेंडा लाए थे, तो शिवराज सिंह ने तो दलितों को कुम्भ में नहलाकर उन्हें हिन्दू मान लिया.

मुद्दे की बात उनके भाषण में कहीं नहीं थी कि सूबे की बिगड़ती कानून व्यवस्था पर लगाम कसी जाएगी, औरतों पर बढ़ रहे अत्याचार रोके जाएंगे और गांव के स्कूलों में शिक्षक मुहैया कराए जाएंगे. साफ दिख रहा है कि असल समस्याओं से मुंह चुरा रहे शिवराज सिंह चौहान अब ऐसी बातें और नारे लगा रहे हैं, जिन्हें पूरा किया गया तो सूबा गले तक कर्ज में डूबकर कंगाल हो जाएगा, पर राजनीति आखिरकार राजनीति है, इसमें सब जायज होता है. एक बार कुर्सी का चस्का लग जाए, तो नेता उससे चिपके रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, फिर शिवराज सिंह चौहान ने तो गरीबों के भले के लिए कुछ एलान ही किए हैं.

सबसे बड़ा ‘सेक्स सिंबल’ कहा जाना पसंद है: रणवीर सिंह

एनर्जेटिक और हंसमुख रणवीर सिंह मुंबई के हैं. अभिनय उनका पैशन है, लेकिन कोलेज के दिनों में कई बार उन्हें लगा था कि अभिनय का ख्याल करना उनके लिए ठीक नहीं. इसलिए वे लेखन के क्षेत्र में उतरे. जब विदेश में वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए गए, तो एक बार फिर अभिनय की ओर आकर्षित हुए, जहां उन्होंने कई नाटकों में काम किया और खूब प्रसंशा पाई. इसके बाद वे भारत आये और अभिनय की ओर रुख किया. कई जगहों पर ऑडिशन देने के बाद उन्हें यशराज की फिल्म ‘बैंड बाजा बारात’ मिली. यहीं से उनके अभिनय की शुरुआत हुई. उन्होंने कई हिट फिल्में तो कई फ्लॉप फिल्में भी दी ,लेकिन ‘बाजीराव मस्तानी’ उनकी एक यादगार फिल्म है, जिसमें उन्होंने बाजीराव की भूमिका बखूबी निभाई. उन्हें सबसे बड़ा ‘सेक्स सिंबल’ कहा जाना पसंद है. इस समय उनकी फिल्म ‘बेफिक्रे’ रिलीज़ पर है. जिसे वे ‘लाइट मूड’ की फिल्म कहते हैं, जिसकी शूटिंग पेरिस में हुई. उनसे बात करना रोचक था, पेश है अंश.

प्र. इस फिल्म को करने की वजह क्या है? किसी फिल्म को चुनते समय किस बात का ध्यान रखते हैं?

मैं हमेशा निर्देशक को ही देखता हूं. स्क्रिप्ट की सेंस अभी मुझे अधिक नहीं है. मैं थोड़ी ‘सेफ गेम’ खेलना चाहता हूं, इसलिए जिनकी फिल्में देखी हैं, उन्ही निर्देशक के साथ फिल्में करना चाहता हूं. इससे मुझे उनके काम के स्टाइल के बारे में थोड़ी जानकारी मिलती है और अभिनय करना आसान हो जाता है. कास्टिंग में मैं कभी नहीं घुसता. इसलिए मेरी को-स्टार कौन है, इस पर मैं कोई राय नहीं देता. आजतक प्राय: सभी फिल्मों में मैंने ही सबसे पहले फिल्म को साइन किया है.

प्र. फिल्म ‘बेफिक्रे’ के किरदार से अपने आप को कैसे ‘रिलेट’ करते हैं?

बेफिक्रे एक फिलोस्फी है, जिसका अर्थ यह है कि अधिक सोचना नहीं. वर्तमान में जीना है. मेरे हिसाब से लाइफ एक गिफ्ट है, जिसे पूरी तरह जिया जाना चाहिए. किसी काम को मैं हमेशा पूरे दिल से करता हूं. मैं जब फिल्में करता हूं या दोस्तों, परिवार वालों से मिलता हूं, तो पूरे तरीके से उनके साथ रहता हूं. इसके अलावा जो दिल में आये उसे करना पसंद करता हूं. पहले मैं डरता था कि ये काम सही कर रहा हूं या नहीं. अब तो बिलकुल भी नहीं डरता, जिससे मुझे खुशी मिले वह करता हूं. दर्शको को खुश करना ही मेरा मकसद होता है.

प्र. आप अपनी सफलता को कैसे देखते हैं?

मैंने कई सफल फिल्में और ब्रांड इंडोर्समेंट किये हैं. सफलता की परिभाषा मेरे लिए अलग है. मैंने औरो के लिए क्या किया, समाज को क्या वापस किया, कितनी अच्छाई आप चारों ओर बिखेर रहे हैं? ये सब देखता हूं. इसके अलावा क्या मैं अपनी शर्तों पर काम कर सकता हूं? मेरी सफलता छोटी है. अपने टर्म पर जो लाइफ को जिए, वही इंसान सफल है. मुझे नहीं लगता कि मैं सफल हूं. हालांकि कई फिल्में सफल हुई हैं. पर मैं लार्जर विज़न से दूर हूं. अभी भी कुछ चीजों से मैं बंधा हुआ हूं.

प्र. पेरिस की शूटिंग का अनुभव कैसा था?

वहां मेरे लिए निर्देशक ने एक आलीशान अपार्टमेंट खरीद दिया था. बहुत ही अच्छा अनुभव था. जगह बहुत ही खुबसूरत है. वहां के लोग भी बहुत अच्छे हैं. वहां का खाना, वहां की बोली अदभुत है. फिर ये एक हैप्पी फिल्म है. मूड भी वैसा ही था. इसलिए सबको सेट पर खुश होकर आने के लिए कहा गया था, ताकि वह खुशी पर्दे पर भी नज़र आये. मैं किसी भी चरित्र में हमेशा घुस जाने की कोशिश करता हूं, अगर दृश्य गुस्से का है, तो पूरा दिन मैं उसमें रहने की कोशिश करता हूं और ये बात मैं अपने टीम मेम्बर को पहले ही बता देता हूं ताकि वे मेरे किसी बात का बुरा ना माने. इस फिल्म में पूरा मनोरंजन का है. पूरी फिल्म मैंने विदेश में की और मेरा सपना कुछ हद तक पूरा हो चुका है.

प्र. फिल्म का प्रमोशन कितना जरूरी है? इसका फायदा और नुकसान कितना होता है?

फिल्म के लिए पहले ट्रेलर, फिर गाने जरुरी हैं. इससे फिल्म का फ्लेवर पता चलता है. अगर दर्शकों को ये दो चीजें पसंद नहीं आई है, तो आप कितना भी ढिंढोरा पीट लो, प्रमोशन कर लो, फिल्म नहीं चलती. कई बार बड़ी फिल्म भी प्रमोशन करने के बाद नहीं चलती, जबकि छोटी फिल्म बिना प्रमोशन के चल जाती हैं. दक्षिण में फिल्मों का प्रमोशन केवल एक सप्ताह में होता है, जिससे फिल्म के प्रति लोगो की रूचि बनी रहती है. वहीं प्रमोशन अगर हम एक दो महीने से करते हैं तो बार-बार एक बात रिपीट होती रहती है. आजकल प्रमोशन एक इंटरप्राईज हो चुका है, जहां लोग एक दूसरे की प्रॉफिट को देखने लगे हैं.

प्र. क्या आपको स्टारडम खत्म हो जाने का डर कभी सताता है? आप अपने आप को कैसे ‘कूल’ रखते हैं?

अभी तक सोचा नहीं है. मैं हमेशा चाहता हूं कि मुझे काम मिलता रहे. ‘मनी’ और ‘फेम’ मुझे कभी भी आकर्षित नहीं करती. मुझे पैसा पसंद है जिससे मुझे हर तरह के ऐशोआराम मिल रहा है. पर मैं यह जानता हूं कि यह हमेशा नहीं रहेगा. ये सही है कि जितना अधिक पैसा और प्रसिद्धी आपके पास रहेगी, जिंदगी उतनी ही कठिन होगी, जिसमें आपके खुद का व्यक्तित्व प्रभावित होता है. मैं इसे संतुलित करने के लिए काम के साथ-साथ अपने माता-पिता, बहन के अलावा अपने मित्रों को भी समय देता हूं. नहीं तो आप प्रसिद्दी और पैसे के पीछे भागते-भागते अपने परिवार और दोस्तों को खो देंगे, ऐसे में निश्चित ही आप अकेले रह जायेंगे. इसलिए जब मैं अपने परिवार और दोस्तों के बीच में होता हूं तो अपना मोबाइल बंद कर देता हूं, ताकि उस पल को मैं पूरी तरह उनके साथ रहूं. सेलिब्रिटी स्टेटस जितना बढ़ेगा, उतना ही मेरा सामाजिक दायरा कम होता जायेगा. मैं इससे डरता हूं और अभी से सब रिश्तों को सम्हाल रहा हूं.

मैं बहुत गुस्से वाला हूं, पर अपने आपको शांत रखने की हमेशा कोशिश करता हूं. अभिनय करने से पहले मैं मेडिटेट करता हूं. सही खाना, वर्कआउट और नींद ठीक होने पर मैं खुश रहता हूं. इससे मेरा तनाव भी कम होता है. मैं ‘आउटब्रस्ट’ नहीं होता और अपने आप को कंट्रोल करना जानता हूं. कई बार ऐसा हुआ है कि मैंने कोई बात कह दी और बाद में मुझे पछताना पड़ा.

प्र. पहली फिल्म से लेकर अब तक की फिल्म के दौरान अपने आप में क्या बदलाव महसूस करते हैं?

पहली फिल्म में मै कुछ नहीं जानता था. किसी को पहचानता नहीं था. मुझे वैनिटी वैन में बैठने के लिए कहा गया. मैं वहां बैठकर ‘रेस्टलेस’ होकर बुलाये जाने की अपेक्षा करता रहा. इस तरह आदित्य चोपड़ा ने मुझे हीरो बनाया. मैं समझता हूं कि वही मेरा सबसे ईमानदार परफोर्मेंस था. अभी तो सबकुछ पता है. इसका श्रेय आदित्य चोपड़ा को जाता है. इसलिए मैं उन्हें हमेशा प्राउड फील करवाना चाहता हूं. मुझे याद आता है कि पहली फिल्म के दौरान मैं बहुत इमोशनल भी हो गया था, क्योंकि इससे पहले उन्होंने केवल शाहरुख खान को लीड रोल में लिया था. संजय लीला भंसाली और आदित्य चोपड़ा मेरे लिए खास निर्देशक हैं.

प्र. आप अपनी कंट्रोवर्सी को कैसे लेते हैं?

कंट्रोवर्सी तो आती हैं, पर उसे मैं अधिक महत्व नहीं देता. हमेशा सोच समझ कर हर काम करने की कोशिश करता हूं, पर अगर कुछ गलत हो भी जाय तो माफी भी मांग लेता हूं.

प्र. क्या नोट बंदी का आपकी फिल्म पर कुछ असर पड़ेगा?

नहीं, फिल्म अच्छी है, असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि मनोरंजन भी डेली लाइफ का एक पार्ट है और लोग अवश्य मैनेज कर लेंगे. मुझे लगता है कि ये सबकी समस्या है जो थोड़े दिनों बाद ठीक हो जाएगी. 

जानलेवा फेसबुक फ्रैंडशिप

आजकल तकरीबन हर कोई सोशल मीडिया खासतौर से फेसबुक, ट्विटर और वाट्सऐप पर मौजूद है. कई लोगों के लिए इन साइटों पर रहना जरूरत की बात है, तो ज्यादातर लोग इन के जरीए अपना वक्त काटते हैं. हैरानी की बात है कि अब तेजी से लड़कियां भी फेसबुक पर दिख रही हैं. बड़े शहरों की लड़कियों को पछाड़ते हुए अब देहातों और कसबों की लड़कियां भी फेसबुक पर अकाउंट खोल कर दोस्त बनाने लगी हैं और उन से चैट यानी लिखित में बातचीत करने लगी हैं. फेसबुक पर दोस्त बना कर उन से चैट करने पर घर वालों को कोई खास एतराज नहीं होता, क्योंकि उन्हें स्मार्टफोन और कंप्यूटर की ज्यादा जानकारी नहीं होती, इसलिए लड़कियां बेखौफ हो कर अपने बौयफ्रैंड से बातें करती हैं.

ये बातें कभीकभी ऐसे जुर्म की भी वजह बन जाती हैं, जिस से नादान लड़कियां मुसीबत में पड़ जाती हैं, इसलिए अब जरूरी हो चला है कि फेसबुक का इस्तेमाल सोचसमझ कर और एहतियात बरतते हुए किया जाए, नहीं तो हालात मध्य प्रदेश के इंदौर की प्रिया जैसे भी हो सकते हैं.

आशिक बना कातिल

17 साला प्रिया इंदौर के गीता नगर इलाके के कृष्णा नगर अपार्टमैंट्स में तीसरी मंजिल पर रहती थी. हाईस्कूल में पढ़ रही प्रिया पढ़ाई की अहमियत समझती थी, इसलिए इंजीनियर बनने की अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिए उस ने अभी से आईआईटी की भी तैयारी शुरू कर दी थी और कोचिंग क्लास में  जाती थी. प्रिया के पिता श्याम बिहारी रावत एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में काम करते हैं और मां किरण पेशे से ब्यूटीशियन हैं. हालांकि ये लोग कोई बहुत बड़े रईस नहीं हैं, लेकिन इज्जत से गुजारे लायक कमाई आराम से हो जाती थी. पूजा इन दोनों की एकलौती लड़की थी. दूसरी लड़कियों की तरह पूजा भी फेसबुक का इस्तेमाल करती थी और उस के कई दोस्त भी बन गए थे.

प्रिया जानती थी कि फेसबुक पर लड़कों या अनजान लोगों से दोस्ती करना अब खतरे से खाली बात नहीं, इसलिए वह ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट मंजूर नहीं करती थी, जिन में सामने वाला जानपहचान का न हो. एक दिन पूजा को प्रियांशी नाम की लड़की ने फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी, तो उस ने इसे मंजूर कर लिया, क्योंकि प्रियांशी लड़की थी और उस की प्रोफाइल भी प्रिया को ठीकठाक लगी थी. धीरेधीरे प्रिया और प्रियांशी की फेसबुक पर दोस्ती गहराने लगी और दोनों चैटिंग करने लगीं. इस दौरान प्रिया ने प्रियांशी से कई दिली बातें कीं और अपना और अपनी मम्मी का मोबाइल नंबर भी उसे दे दिया. लेकिन एक दिन प्रियांशी की हकीकत प्रिया के सामने खुल ही गई कि वह लड़की नहीं, बल्कि लड़का है. उस का असली नाम अमित यादव है. वह

24 साल का है और पेशे से सौफ्टवेयर इंजीनियर है अमित ने असलियत बताते हुए प्रिया से मुहब्बत का इजहार किया, तो धोखा खाई प्रिया तिलमिला उठी और उस ने अमित का अकाउंट ब्लौक कर दिया. गूजरखेड़ी गांव का रहने वाला अमित अब तक प्रिया, उस के घर और स्वभाव के बारे में चैट के जरीए प्रिया से ही काफीकुछ जानकारी हासिल कर चुका था, इसलिए उस ने प्रिया के मोबाइल पर फोन कर उस से अपनी मुहब्बत का इजहार किया. तब भी प्रिया ने उसे झिड़क दिया. जब प्रिया ने अमित का फोन रिसीव करना बंद कर दिया, तो एकतरफा प्यार में पागल इस सिरफिरे आशिक ने मैसेज भेजने शुरू कर दिए. प्रिया को अब समझ आ गया था कि धोखे या गलती से ही सही, वह एक गलत और झक्की नौजवान से फेसबुक पर दोस्ती कर के फंस चुकी है, तो उस ने पीछा छुड़ाने के लिए उस पर ध्यान देना ही बंद कर दिया. इस अनदेखी और बेरुखी से अमित और भी तिलमिला गया, जो यह मान कर चल रहा था कि चूंकि वह प्रिया से प्यार करता है, इसलिए यह उस की जिम्मेदारी है कि वह भी उसे प्यार करे. हालांकि उसे मन में कहीं न कहीं एहसास होने लगा था कि प्रिया सख्तमिजाज और उसूलों वाली लड़की है.

हिम्मत न हारते हुए अमित ने प्रिया की मां किरण को फोन किया और सारी बात बताई. इस पर किरण ने प्रिया से पूछा, तो उस ने मां को साफसाफ बता दिया कि अमित एक धोखेबाज लड़का है, जिस ने लड़की बन कर फेसबुक पर उस से दोस्ती की और अब जबरदस्ती प्यारमुहब्बत की बातें कर रहा है.

बेरहमी आशिक की

मां किरण ने आजकल के जमाने को देख शुरू में तो बेटी की तरह ही अमित को झिड़क दिया. यह देख कर अमित गिड़गिड़ाया, ‘‘आंटी, मुझे बस एक बार प्रिया से बात कर लेने दें, फिर मैं कभी फोन नहीं करूंगा.’’ दुनिया देख चुकीं किरण यहीं गच्चा खा गईं. उन्होंने सोचा था कि लड़का एकतरफा प्यार में पागल हो गया है और कहीं ऐसा न हो कि गुस्से में आ कर बेटी को कोई नुकसान पहुंचा दे, इसलिए जब 27 सितंबर, 2016 की सुबह उस का दोबारा फोन आय , तो उन्होंने उसे घर आने की इजाजत दे दी, लेकिन इस शर्त पर कि बात दरवाजे के बाहर से ही होगी. अमित तो मानो इसी फिराक में था, इसलिए वह किरण की हर बात मानता गया और सुबह के तकरीबन 10 बजे उन के घर पहुंच गया.

जब किरण ने उसे दरवाजे से ही टरकाना चाहा, तो वह फिर दुखी होने की ऐक्टिंग करते हुए बोला, ‘‘यहां बाहर खड़ेखड़े क्या बात होगी. अंदर आने दें तो इतमीनान से बात कर लूंगा.’’

किरण ने उसे अंदर आने दिया. अंदर आ कर अमित ने बाथरूम जाने की बात कही और बाथरूम में चला भी गया. अंदर कमरे में प्रिया स्कूल जाने के लिए अपना बैग लगा रही थी कि अमित ने बगैर कुछ कहे या मौका दिए पीछे से चाकू निकाल कर उस पर जानलेवा हमला कर दिया. प्रिया हमले से घबराई और चीखी तो किरण उस के कमरे की तरफ भागीं, पर जब तक अमित प्रिया पर चाकू के दर्जनभर वार कर चुका था, जो पीठ के अलावा पेट, सीने और चेहरे पर लगे थे. बदहवास सी किरण बेटी को बचाने बीच में आईं, तो अमित ने उन पर भी हमला बोल दिया. मौका पा कर प्रिया बाथरूम में जा घुसी और डर के मारे भीतर से दरवाजा बंद कर लिया. शोर सुन कर अपार्टमैंट्स के कई लोग किरण के फ्लैट की तरफ भागे, तो उन्होंने हाथ में चाकू लिए एक नौजवान यानी अमित को भागते देखा. दूसरी मंजिल पर आ कर उस ने भीड़ देखी, तो अपने बचाव के लिए वह नीचे कूद गया.

इधर लोग किरण के घर में गए और हालात देख कर बाथरूम का दरवाजा तोड़ा. वहां प्रिया बेहोश पड़ी थी. लोगों ने तुरंत पुलिस को खबर की और प्रिया को कार में डाल कर अस्पताल की तरफ भागे, पर इलाज के दौरान ही प्रिया ने दम तोड़ दिया.

अमित नीचे कूद तो गया, लेकिन उस के हाथपैर की हड्डियां टूट गईं, इसलिए भाग नहीं सका और गिरफ्तार हो गया. उसे जेल वार्ड में रखा गया. अमित अपने बयानों में पुलिस को यह कहते हुए बरगलाने की कोशिश करने लगा कि प्रिया उस पर जबरदस्ती करने का झूठा इलजाम लगा रही थी और उसी ने 100 नंबर पर फोन कर पुलिस को बुलाया था. पर यह बहानेबाजी ज्यादा नहीं चली और जल्दी ही एकतरफा प्यार में पगलाए इस आशिक का जुर्म सामने आ गया. प्रिया के पिता श्याम बिहारी ने जब बेटी की हत्या की खबर सुनी, तो सदमे के चलते वे बेहोश हो गए और होश में आते ही हत्यारे अमित को फांसी की सजा देने की मांग करने लगे.       

एहतियात बरतना है जरूरी

जिस ने भी इस अपराध के बारे में सुना, वह सन्न रह गया और फेसबुक जैसी साइट को कोसता नजर आया कि आजकल यह जुर्म का नया जरीया बन गया है, इसलिए लड़कियों को जरा संभल कर रहना चाहिए. बात सच भी है, क्योंकि लड़कियां फेसबुक पर ज्यादा से ज्यादा फ्रैंड्स बनाना अपनी शान की बात समझती हैं. हालांकि प्रिया ने अमित को लड़की समझ कर उस से दोस्ती की थी, पर इस हादसे से लगता है कि फेसबुक का इस्तेमाल करते समय लड़कियों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो वे भी प्रिया की तरह किसी हादसे या जुर्म का शिकार हो सकती हैं:

* यह जरूरी नहीं कि जो फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज रही है, ये हकीकत में लड़की हो, इसलिए उसे प्रोफाइल की बारीकी से जांच कर लेनी चाहिए कि फैमिली फोटो डाले गए हैं या नहीं.  कितने फ्रैंड्स कौमन हैं. अगर कौमन फ्रैंड्स न हों या कम हों, तो भी फ्रैंड रिक्वैस्ट कबूल नहीं करनी चाहिए.

* किसी भी अनजान शख्स की फ्रैंड रिक्वैस्ट कबूल न करें.

* अपने प्रोफाइल में मोबाइल नंबर नहीं डालना चाहिए, न ही चैटिंग में किसी को देना चाहिए.

* अगर सामने वाली लड़की ज्यादा अपनापन दिखाए, तो चौकन्ना हो जाएं. अकसर जब 2 अनजान लड़कियां दोस्त बनती हैं, तो एकदूसरे से यह जरूर पूछती हैं कि तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड है क्या? तुम ने कभी सैक्स किया है क्या? ऐसी बातें करने वाली लड़की को भाव नहीं देना चाहिए.

* घर का पता किसी को न दें.

* फेसबुक का पासवर्ड भी किसी को न दें.

* फ्रैंड कहीं बाहर होटल या पार्क वगैरह में मिलने बुलाए, तो सख्ती दिखाते हुए मना कर देना चाहिए. आजकल लोग गिरोह बना कर भी फेसबुक पर भोलीभाली लड़कियों को फांसने लगे हैं.

* अगर यह पता चल जाए कि सामने जो लड़की थी, वह असल में लड़का है, तो उस से धीरेधीरे कन्नी काटनी चाहिए. ब्लौक कर देने या भड़कने से गुस्से में आ कर लड़का कोई भी खतरनाक कदम उठा सकता है.

* इस के बाद भी बात न बने, तो मांबाप या घर के बड़ों को भरोसे में लेते हुए सारी बात बता देनी चाहिए.

बिहटा: जमीन दबाने और गंवाने का खेल

बिहार में पटना से सटे बिहटा ब्लौक के इलाकों में जमीन खरीदने, बेचने और गैरकानूनी तरीके से सरकारी जमीनों पर कब्जा करने की होड़ मची हुई है. बिहटा में आईआईटी बनने के बाद वहां कई रिएल ऐस्टेट कंपनियों ने भी अपने पैर जमा लिए हैं और कम कीमत पर जमीन खरीद कर अपार्टमैंट्स बनाने का धंधा चालू कर दिया है. इस से बिहटा में जमीन की कीमतों में कई गुना ज्यादा इजाफा होने से जमीन को ले कर कई तरह की तिकड़मबाजी चल रही है. हालत यह है कि सूखी नदी की जमीन पर कब्जा जमाने की होड़ मची हुई है.

वहीं दूसरी ओर अपनी मरजी से सरकारी योजना के लिए जमीन देने वाले किसान मुआवजा पाने के लिए पिछले 5 सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं. बिहटा में दनवा नदी के सूखने के बाद पहले तो दबंगों ने उस की खाली जमीन पर कब्जा जमाया और अब उसे बेचने की साजिशें भी शुरू हो चुकी हैं. कई जमीनें बिक भी गई हैं. अब उन पर पक्के मकान भी बनने शुरू हो गए हैं. इतना होने के बाद भी प्रशासन की नींद नहीं खुल सकी है. जमीन को खरीदने वाले भी दबंग ही हैं और जमीन लेने के तुरंत बाद जेसीबी मशीन लगा कर जमीन पर मिट्टी भराने का काम शुरू कर दिया है. वहीं के बाशिंदों ने जब इस मामले के बारे में थाने को जानकारी दी, तो थाने ने टका सा जवाब दे दिया कि इस मामले में उसे कोई शिकायत नहीं मिली है.

बिहटाखगौल सड़क के किनारे बहने वाली दनवा बरसाती नदी है और वह पिछले कई सालों से सूखी पड़ी है. इस वजह से कई दबंगों और जमीन माफिया की नजरें उस पर गड़ी हुई हैं. पहले उस में बांस, फूस और खपरैल की झोंपडि़यां बनाई गईं और अब उस पर कानूनन कब्जा जमाने के लिए उस की खरीदफरोख्त का काम भी शुरू कर दिया गया है. बिहटा पटना शहर से 35 किलोमीटर की दूरी पर बसा है. पटना शहर के बढ़ने से बिहटा में जमीन की कीमतें काफी बढ़ गई हैं और वहां जमीन खरीदने की होड़ सी मची हुई है. कई छोटीबड़ी रिएल ऐस्टेट कंपनियों ने वहां काम चालू कर रखा है. बिहटा के अम्हारा गांव के पास 5 सौ एकड़ जमीन में आईआईटी बनने के बाद वहां की जमीन की कीमतों में काफी उछाल आया है. पटना एयरपोर्ट को भी  फुलवारीशरीफ से हटा कर बिहटा में ले जाने की तैयारी चल रही है.

गौरतलब है कि बिहटा में एयरफोर्स बेस स्टेशन भी है. इन सब वजह से वहां की जमीन अचानक ही कई गुना ज्यादा महंगी हो गई है. 5 साल पहले एक लाख रुपए में एक बीघा यानी 20 कट्ठा के भाग से बिकने वाली बिहटा की जमीनों की कीमत आज 20 लाख रुपए प्रति कट्ठा हो चुकी है. जमीन की कीमतें बढ़ने के बाद अब सूखी नदी की जमीन को बेचने और खरीदने की आपाधापी मची हुई है. इस आपाधापी का फायदा जमीन माफिया जम कर उठा रहे हैं और लोगों को जमीन बेच कर बेवकूफ बना रहे हैं. अब जमीन बेचने और खरीदने की होड़ के बीच दबंग जमीन माफिया ने सालों से सूखी पड़ी दनवा नदी की खाली पड़ी जमीन को बेचना चालू कर दिया है. कम कीमत में जमीन खरीदने की मारामारी के बीच लोगों की आंखें इस कदर बंद हैं कि जमीन खरीदने के पहले उस के बारे में छानबीन भी नहीं ले रहे हैं. कई लोग तो जमीन की घेराबंदी कर उस पर मकान बनाना शुरू कर चुके हैं. दिनरात कई टै्रक्टर तो जमीन को मिट्टी से भरने के काम में लगे हुए हैं.

बिहटा के श्रीचंद्रपुर से ले कर महमूदपुर मुसहरी तक के गांवों के आसपास नदी की जमीन को बेचने का काम धड़ल्ले से चल रहा है. जगहजगह जेसीबी मशीनों और ट्रैक्टरों को लगा कर मिट्टी की कटाई और भराई का काम बड़े पैमाने पर चल रहा है और प्रशासन को इस की खबर तक नहीं लग पा रही है. श्रीचंद्रपुर गांव के रहने वाले किसान मधुसूदन यादव कहते हैं कि दनवा नदी का तो वजूद ही खत्म कर दिया गया है.  लगता ही नहीं कि वहां पर कभी कोई नदी थी. किसी ने 4 कट्ठा जमीन खरीदी, पर 10 कट्ठा में बाउंड्री कर ली है. कुछ लोगों को तो धोखे में रख कर जमीन बेची जा रही है, तो कई ऐसे लोग भी हैं, जो सबकुछ जानने के बाद भी जमीन खरीद रहे हैं. ऐसे लोगों की सोच है कि जब एक बार सरकारी जमीन पर कब्जा कर पक्का मकान बना लिया जाएगा, तो फिर सरकार के साथ सालों तक केसमुकदमा चलेगा और उस के बाद हार कर सरकार कुछ रुपए ले कर जमीन की रजिस्ट्री करने का आदेश जारी कर ही देगी.

दबंगों की देखादेखी आसपास के इलाकों के दलित परिवारों ने भी नदी की जमीन पर झोंपडि़यां बनानी शुरू कर दी हैं. डेढ़ सौ से ज्यादा झोंपडि़यां बन कर तैयार हो गई हैं और उन में लोग रहने भी लगे हैं. दनवा नदी बिहटा के ही अम्हारा गांव से निकलती है. उस के बाद वह बिहटा और मनेर होते हुए दानापुर कैंट के पास गंगा नदी में जा कर गिरती है. यह बरसाती नदी है, पर पिछले कई सालों से बिहटा के किसानों के लिए जीवनरेखा बनी हुई थी. सिंचाई के काम में नदी के पानी का बेहतर इस्तेमाल किया जाता था. हजारों एकड़ में खरीफ की फसल की बोआई में इस नदी के पानी का इस्तेमाल होता था. इस के साथ ही साथ नदी के पानी से उस इलाके में जमीनी पानी लैवल को भी ठीक रखने में मदद मिलती थी. इस गैरकानूनी कब्जे के मामले के तूल पकड़ने के बाद प्रशासन की नींद खुली और सर्किल अफसर रघुवीर प्रसाद ने मामले की जांच कराई है.

शुरुआती जांच में पता चला है कि 80 लोगों ने नदी की जमीन पर कब्जा जमा रखा है. कइयों ने पक्के घर भी बना लिए हैं. वहीं महमूदपुर और अहियापुर मुसहरी के महादलितों ने 60 से ज्यादा छोटीबड़ी झोंपडि़यां बना ली हैं. वहीं दूसरी ओर सरकारी योजनाओं के लिए अपनी मरजी से जमीन देने वाले किसान पिछले 10 सालों से मुआवजे के लिए अफसरों के पास चक्कर लगा रहे हैं. बिहटा में आंदोलन के दौरान बीमार हुए किसान कौशल किशोर पांडे की तकरीबन साढ़े 32 एकड़ जमीन का अधिग्रहण साल 2007 में किया गया था. वाजिब मुआवजे की मांग करतेकरते थक जाने के बाद वे आमरण अनशन पर बैठ गए. उसी दौरान उन की तबीयत खराब होने के बाद मौत हो गई. कौशल किशोर पांडेय की बीवी शांति देवी बताती हैं कि जमीन का अधिग्रहण होने और पूरा मुआवजा नहीं मिलने से उन के पति समेत पूरा परिवार परेशान था. एक तो खेती की जमीन छिन गई और दूसरा उन्हें सही मुआवजा नहीं दिया गया. ऐसे में किसानों के सामने जान देने के अलावा और कोई रास्ता ही नहीं बच गया है. गौरतलब है कि बिहटा में बिहटा लैंड बैंक, मैगा औद्योगिक पार्क और बिहटा औद्योगिक क्षेत्र के लिए 1280 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया है.

सरकारी अफसरों और बाबुओं की लापरवाही का आलम तो यह है कि आईआईटी की इमारत बनाने के लिए सरकार ने 11.5 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया और उस पर इमारत बना भी दी. इस के बाद भी अफसरों को पता नहीं है कि उस 11.5 एकड़ जमीन का अधिग्रहण हुआ है या नहीं? पिछले दिनों जब जिला भूअर्जन पदाधिकारी एनामुलहक सिद्दीकी किसानों की समस्या को सुनने अम्हारा गांव पहुंचे, तो किसानों ने उन्हें इस मामले की जानकारी दी. किसान आनंद, रामनाथ शर्मा, पंचानन शर्मा, राधेश्याम शर्मा वगैरह किसानों ने उन्हें बताया कि प्रशासन की ओर से अधिग्रहण की कोई सूचना उन्हें नहीं मिली है. खाता नंबर – 149, 478, 664 समेत कई भूखंड को मिला कर 11.5 एकड़ जमीन होती है. भूअर्जन पदाधिकारी ने जब अपने रिकौर्ड की जांच की, तो पता चला कि उन किसानों की जमीन अधिग्रहण सूची में शामिल ही नहीं है.

बिहटा के किसानों का दर्द केवल वाजिब मुआवजे का मिलना ही नहीं है, बल्कि उन्हें सब से ज्यादा दुख इस बात का है कि सरकार और उस के बाबुओं ने उन के साथ ठीक रवैया नहीं अपनाया. साल 2007-08 में जब पश्चिम बंगाल में सिंगूर जल रहा था, तो बिहटा के किसानों ने राज्य की तरक्की के लिए अपनी मरजी से जमीन सरकार को सौंप दी थी. सरकार के प्रस्ताव के बाद किसानों ने सरकार को राजीखुशी जमीन सौंप कर मिसाल पेश की थी. किसानों को हीरो करार देने के बदले सरकारी कुनबे ने अब उन्हें विलेन बना डाला. बिहटा में आईआईटी, एनआईटी, ईएसआईसी अस्पताल समेत कई बड़ी कपड़ा और साइकिल कंपनी के प्लांट लगने थे. किसानों ने सोचा था कि बड़ेबड़े संस्थान और कंपनियों के आने से बिहटा समेत समूचे बिहार का भला होगा, पर जमीन सौंपने के 9-10 साल के बाद ही मामला उलट गया. आज बिहटा के किसान सरकारी तंत्र की अनदेखी से नाराज हैं और समूचा बिहटा उबल रहा है. किसान संजय मिश्रा बताता है, ‘‘हम लोगों ने बिना किसी सरकारी दबाव के अपनी मरजी से जमीन सरकार को दी थी. किसी भी किसान ने रत्तीभर विरोध नहीं किया.

‘‘बिहटा के किसान इस बात से खुश थे कि बड़े कालेज और कंपनी के खुलने से बेरोजगार नौजवानों को काम मिलेगा और पूरे इलाके की परेशानियां दूर हो जाएंगी. ‘‘शुरू में तो सबकुछ ठीकठाक था, पर बाद में बाबुओं की करतूतों के चलते किसानों को जमीन का मुआवजा पाने के लिए हल्लाहंगामा करना पड़ा, सड़कों पर उतरना पड़ा और इन सब चक्कर में 3 किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ गई.’’ सरकारी सिस्टम से परेशान और हताश होने के बाद बिहटा के किसानों ने साल 2013 में आंदोलन चालू कर दिया. पहली दफा 13 दिनों तक उपवास पर रहने के बाद सरकार की नींद खुली, तो आननफानन मुआवजा देने का ऐलान कर दिया गया. उस के बाद 2 सालों तक किसान मुआवजे के इंतजार में रहे, पर कुछ नहीं मिल सका.

किसानों का कहना है कि साल 2007 में अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई थी और भूअर्जन नीति के मुताबिक एक साल के अंदर अधिग्रहण की सारी खानापूरी करने के बाद किसानों को पूरा मुआवजा दे देना था. सरकारी सुस्ती और बाबुओं की करतूतों की वजह से किसानों को पूरा मुआवजा नहीं मिल सका. किसानों का आरोप है कि सरकार ने उन से कौडि़यों के भाव जमीन ले कर कई बड़ी कंपनियों को ऊंची कीमत पर बेच दिया है. बिहार के राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री नरेंद्र नारायण यादव का दावा है कि 3 परियोजनाओं के लिए जमीन देने वाले किसानों को मुआवजा देने का काम शुरू हो गया है. आंदोलन के दौरान मरे कौशल किशोर पांडे के परिवार को मुआवजा दिया गया. 15 जून, 2016 को कुल 16 किसानों के बीच एक करोड़, 69 लाख, 32 हजार 847 रुपए का मुआवजा बांटा गया. भूअर्जन से जिन किसानों के बैंक खाते में मुआवजा भेजने का पत्र प्रमाणित हो कर कोषागार में पहुंचेगा, उन को मुआवजे की रकम दे दी जाएगी.

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