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लिटरेचर पढ़ने के हैं शौकीन तो ये ऐप्स हैं काम के

आज भी अगर आपको पढ़ने का शौक है तो घर की एक अलमारी किताबों से तो जरूर भरी होगी. लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि आपकी पसंदीदा किताब आपको बाजार में नहीं मिलती. ऐसे में निराश होने की जरुरत नहीं है. आजकल डिजिटल दुनिया में सब कुछ मुनासिब है. आप अपने पसंद की किताब को आसानी से ऑनलाइन खोज सकतें हैं. कुछ ऐसे ऐप्स जो रीडर्स के जरुरत को पूरा कर सकतें हैं. इन ऐप्स में आपको हिंदी की कई कहानियां और कई किताबें मिलेंगी.

मुंशी प्रेमचंद

अगर आप मुंशी प्रेमचंद की किताबें पढना पसंद करते हैं तो, यह ऐप आपके लिए उपयोगी हो सकते हैं. इन ऐप को गूगल प्ले स्टोर से फ्री में डाउनलोड किया जा सकता है.

हिंदी पुस्तकालय

गूगल प्ले स्टोर में फ्री में मौजूद यह ऐप रीडर यूजर के लिए काफी उपयोगी साबित हो सकती है. यह एक डिजिटल पुस्तकालय है जिसमें हिंदी की बहुत सी किताबें मौजूद हैं.

हिंदी उपन्यास संग्रह

एंड्रॉयड यूजर्स के लिए यह ऐप काफी उपयोगी साबित हो सकता है. इसमें यूजर को हिंदी उपन्यासों से जुड़ी कई कहानियां मिलेंगी. इस ऐप के लिए आपको इंटरनेट की भी जरुरत नहीं होगी. इस ऐप के जरिये आप ऑफलाइन भी किताबें पढ़ सकते हैं. इस ऐप को आप गूगल प्ले स्टोर से फ्री में डाउनलोड कर सकते हैं.

भारत और विश्व इतिहास

अपने देश दुनिया के बारे में जाने इससे बेहतर और क्या होगा. यह ऐप आपको भारत और विश्व के प्राचीन इतिहास के बारे में जानकारी देती है.

ओशो कहानियां

गूगल प्ले स्टोर में मौजूद यह ऐप आपको फ्री में मिलेगी। इसमें ओशो की सभी कहानियां हैं. ओशो और उनका संदेश आपको इस ऐप में मिलेगा.

महापुरुषों की जीवनगाथाएं

यह ऐप उन हिंदी पाठकों के लिए है जो महापुरुषों के बारे में जानने की इच्छा रखते हैं. इस ऐप पर अटल बिहारी वाजपेयी, एडम स्मिथ, मार्टिन लूथर जैसे लोगों की जीवनगाथाएं पढ़ सकतें हैं.

अब मोबाइल ऐप्स देंगी फ्री टॉकटाइम और डाटा

प्री-पेड मोबाइल यूजर्स अपने फोन में टॉकटाइम और डाटा समेत कई तरह के रिचार्ज करवाते हैं. जाहिर है कि इन सर्विसेस का लुत्फ उठाने के लिए आपको पैसे देने पड़ते हैं. लेकिन हम आपके लिए कुछ ऐसे तरीके लाएं हैं जिसके जरिए आप बिना पैसे दिए इन सर्विसेस का लाभ उठा सकते हैं. दरअसल, गूगल प्ले स्टोर पर कई ऐसी ऐप्स मौजूद हैं जो यूजर्स को टॉकटाइम के साथ-साथ इंटरनेट डाटा भी फ्री में उपलब्ध कराती हैं.

जिगाटो

यह ऐप यूजर्स को डाटा कमाने का मौका देती है. यह ऐप यूजर्स को कई अलग-अलग ऐप्स का ऑप्शन देगी. इन्हें डाउनलोड और इस्तेमाल करने से यूजर्स को डाटा दिया जाएगा. उदाहरण के तौर पर यूजर्स को Voot ऐप डाउनलोड करने को कहा जाएगा और अगर वो उसे डाउनलोड करते हैं तो उन्हें 10 एमबी डाटा बिल्कुल फ्री दिया जाएगा.

अर्न टॉकटाइम

यह ऐप यूजर्स को टॉकटाइम देती है जिसका इस्तेमाल प्री-पेड नंबर को रिचार्ज कराने के लिए किया जा सकता है. उदाहरण के तौर पर यूजर्स को इस ऐप के जरिए NewsHunt ऐप डाउनलोड करते हैं तो उन्हें 20 रुपये का टॉकटाइम दिया जाएगा. साथ ही उस ऐप को 1 हफ्ते इस्तेमाल करने पर 10 रुपये का टॉकटाइम दिया जाएगा. यानि यूजर्स को एक बार में सिर्फ एप डाउनलोड कर 30 रुपये का टॉकटाइम मिल सकता है.

माइ एड्स

इस एप में यूजर्स को विज्ञापन देखने और उस ऐड के बारे में कुछ सवालों के जवाब देने के पैसे मिलेंगे. इस ऐप का कॉन्सेप्ट और इंटरफेस काफी स्पष्ट है. यूजर्स वाई-फाई नेटवर्क में विज्ञापन देख सकते हैं.

पेट्यून्स

यह ऐप यूजर के फोन की रिंगटोन को विज्ञापन में बदल देता है. इसके बाद जब भी यूजर के पास कॉल आएगी तो उसके पैसे उसे मिलेंगे.

फोन को रीचार्ज करके

कई यूजर्स अपना मोबाइल फ्रीचार्ज, पेटीएम, मोबाक्विक या एयरटेल मनी जैसे ऐप्स से ऑनलाइन रिचार्ज करते हैं. इसमें यूजर्स को कई बार कुछ स्पेशल डील और कैशबैक ऑफर भी दिए जाते हैं. इसका मतलब जब यूजर्स अपने फोन को रीचार्ज करते हैं तो इनमें से किसी ऐप को इस्तेमाल करके आप स्पेशल ऑफर का फायदा उठा सकते हैं.

राष्ट्रपति तो आखिरकार राष्ट्रपति ही होता है

मौजूदा राष्ट्रपति चुनाव में अब देखने समझने को कुछ बाकी नहीं रह गया है, सिवाय इसके कि एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद कितने वोटों के अंतर से यूपीए की प्रत्याशी मीरा कुमार को हराते हैं, हां यह जरूर साफ हो गया है कि राष्ट्रपति दलित समुदाय का होगा.

रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी निसंदेह चौंका देने वाली इस लिहाज से है कि किसी को अंदाजा नहीं था कि भगवा खेमा दलित उम्मीदवार पर दांव खेलने का जोखिम उठाएगा. भाजपा और आरएसएस का दलित प्रेम छद्म ही सही शबाब पर है, जिसका ताल्लुक देश के मौजूदा सामाजिक और जातिगत समीकरणों से है. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बहुत बड़ी दिक्कत है कि वे यदि किसी सवर्ण को इस पद का उम्मीदवार बनाते तो उन पर सीधा आरोप यह लगता कि दलित क्यों नहीं और अब एक दलित उम्मीदवार को राष्ट्रपति भवन पहुंचा रहे हैं तो पूछा जा रहा है कि दलित ही क्यों.

दलित शब्द मूलतः अंग्रेजों की देन है, वे जब भारत आए तो यह देख कर हैरान रह गए थे कि एक बहुसंख्यक आबादी ऐसे तबके की है जिसमे कोई बल, बुद्धि या विवेक नहीं है. इसे अंग्रेजों ने अपनी भाषा में डिप्रेस्ड कहा, यानि हिन्दी में दलित जो ऊंची जाति वालों के इशारों पर नाचती है. आज भी हालत अपवाद स्वरूप ज्यों की त्यों है, कोविंद खुशी खुशी भाजपा के और मीरा कुमार कांग्रेस के इशारों पर नृत्य कर रहीं हैं, उन्हें अपनी तयशुदा हार का कोई मलाल नहीं है. उनके पिता बाबू जगजीवन राम नेहरू गांधी परिवार के दरबार में ठीक वैसे ही बैठा करते थे जैसे राम दरबार में हनुमान बैठता था.

भाजपा का एक बड़ा वर्ग अपने पितृ पुरुष लालकृष्ण आडवाणी को इस अहम ओहदे पर विराजमान देखना चाहता था, इस वर्ग का आडवाणी से भावनात्मक लगाव है. यह बात नरेंद्र मोदी को भी मालूम है और आरएसएस को भी कि अगर किसी और सवर्ण भाजपाई को राष्ट्रपति बनाया गया तो अंदरूनी असंतोष पनपेगा, इसलिए उन्होंने इसे दबाये रखने कोविंद को खोज निकाला, जो संघ खेमे से हैं और साफ सुथरी छवि वाले भी हैं. उनके नाम पर सब सहमत भले ही न हों पर खामोश रहे क्योंकि सवाल दलित वोट बैंक का है. आडवाणी खेमा अगर कोविंद की उम्मीदवारी का विरोध करता तो आरोप उस पर ही दलित विरोधी होने का लगता.

गलत नहीं कहा जाता कि राष्ट्रपति रबर स्टाम्प होता है, जिसका जाति से कोई ताल्लुक नहीं नहीं होता, सो बैठे बिठाये भाजपा को ऐसा उम्मीदवार मिल गया है जो रबर ही रहेगा, लोहा होने की कोशिश नहीं करेगा. अब इस चुनाव में औपचारिकताए ही शेष बची हैं, क्योंकि तमाम छोटे बड़े दल भाजपा के साथ हैं, यहां तक कि मुलायम सिंह और नीतीश कुमार जैसे दिग्गज भी इस ट्रम्प चाल के कायल हो चुके हैं, जिसके सामने मायावती और लालू यादव के प्रलाप मीरा कुमार के कोविंद से ज्यादा लोकप्रिय होने और बिहार की बेटी होने की दलीलों का कोई असर नहीं हो रहा.

नरेंद्र मोदी ने महज तीन साल में ही या तो दलित दल और नेता अपने पाले में ले लिए हैं या फिर खत्म कर दिये हैं. राम विलास पासवान, अनुप्रिया पटेल और रामदास अठावले जैसे दलित नेता सत्ता सुख भोग रहे हैं तो मायावती और उनकी पार्टी बसपा अब कहने भर को रह गई है. एनडीए जिसको भी उम्मीदवार बनाती उसका जीतना वोटों के लिहाज से तय था, इसके बाद भी उसने सुरक्षित और कूटनीति वाला रास्ता चुना, जिसके जबाब में सोनिया गांधी की अगुवाई वाला 17 छोटे बड़े दलों वाला विपक्ष अब खिसियाई राजनीति कर रहा है. रही बात राष्ट्रपति की जाति की तो यह मुद्दा दम तोड़ रहा है, वजह राष्ट्रपति आखिरकार राष्ट्रपति ही होता है और आम लोग इस पर विवाद या बहस नहीं चाहते. मीरा कुमार हारने को तैयार हैं, तो यह उनकी अपने पिता जैसी निष्ठा है जिसके एवज में काफी कुछ उन्हें मिल चुका है.  

बेबी को पति नहीं प्रेमी पसंद है

14 नवंबर, 2016 की शाम उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के थाना नैनी के मोहल्ला करबला का रहने वाला मोहम्मद हुसैन रोज की अपेक्षा आज कुछ जल्दी ही घर आ गया था. हाथमुंह धोने के बाद वह चाय पी कर टीवी देखते हुए 2 साल की बेटी शैजल के साथ खेलने लगा तो पत्नी बेबी ने पास आ कर कहा, ‘‘लगता है, अब आप को कहीं नहीं जाना?’’

‘‘क्यों, कोई काम है क्या?’’

‘‘हां, अगर आप को कहीं नहीं जाना तो चल कर मेरे मोबाइल का चार्जर खरीदवा लाओ. कितने दिनों से खराब पड़ा है. दूसरे का चार्जर मांग कर कब तक काम चलेगा.’’

हुसैन बेबी की बात को टाल नहीं सका और फौरन तैयार हो गया. बेबी को भी साथ जाना था, इसलिए वह भी फटाफट तैयार हो गई. बेटी को उस ने सास के हवाले किया और पति के साथ बाजार के लिए चल पड़ी.

मोबाइल शौप उन के घर से महज 2 सौ मीटर की दूरी पर थी. जैसे ही दोनों दुकान के सामने पहुंचे, एक मोटरसाइकिल उन के सामने आ कर रुकी. मोटरसाइकिल सवार हेलमेट लगाए था, इसलिए कोई उसे पहचान नहीं सका. पतिपत्नी कुछ समझ पाते, उस के पहले ही उस ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और हुसैन के सीने पर रख कर गोली दाग दी.

 

गोली लगते ही हुसैन जमीन पर गिर पड़ा. शाम का समय था इसलिए बाजार में काफी भीड़भाड़ थी. पहले तो लोगों की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ. लेकिन जैसे ही लोगों को सच्चाई का पता चला, बाजार में अफरातफरी मच गई. धड़ाधड़ दुकानों के शटर गिरने लगे. इस अफरातफरी का फायदा उठा कर बदमाश भाग गया. कोई भी उसे पकड़ने की हिम्मत नहीं कर सका.

हुसैन का घर घटनास्थल के नजदीक ही था, इसलिए उसे गोली मारे जाने की सूचना जल्दी ही उस के घर तक पहुंच गई. खून से लथपथ जमीन पर पड़ा हुसैन तड़प रहा था. बेबी उस का सिर गोद में लिए रो रही थी.

सूचना मिलते ही आननफानन में हुसैन के घर वाले और पड़ोसी आ गए थे. घटना की सूचना पा कर थाना नैनी की पुलिस भी आ गई थी. चूंकि हुसैन की सांसें चल रही थीं, इसलिए पुलिस और घर वाले उसे उठा कर पास के एक नर्सिंगहोम में ले गए. उस की हालत काफी नाजुक थी, इसलिए नर्सिंगहोम के डाक्टरों ने उसे स्वरूपरानी नेहरू जिला चिकित्सालय ले जाने की सलाह दी. लेकिन हुसैन की हालत प्रति पल बिगड़ती ही जा रही थी.

पुलिस हुसैन को ले कर जिला अस्पताल ले गई लेकिन वहां पहुंचतेपहुंचते उस की मौत हो चुकी थी. वहां के डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया. हुसैन की मौत की जानकारी होते ही उस के घर में कोहराम मच गया. मां और पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. इस हत्या की सूचना पा कर एसपी (गंगापार) ए.के. राय, सीओ करछना बृजनंदन एवं नैनी समेत कई थानों की पुलिस आ गई थी.

हुसैन के बड़े भाई नफीस की तहरीर पर थाना नैनी पुलिस ने हुसैन की बीवी बेबी और उस के प्रेमी सल्लन मौलाना के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर बेबी को तुरंत हिरासत में ले लिया था.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद हुसैन का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया था. उस के अंतिम संस्कार के बाद बेबी से पूछताछ शुरू हुई. पहले तो वह खुद को निर्दोष बताती रही, लेकिन जब पुलिस ने मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए सवालों की झड़ी लगाई तो वह असलियत छिपा नहीं सकी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने पति की हत्या उस के दोस्त सल्लन मौलाना से कराई थी. इस के बाद पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर 16 नवंबर को छिवकी जंक्शन से सल्लन को भी गिरफ्तार कर लिया था.

थाना नैनी के थानाप्रभारी इंसपेक्टर अवधेश प्रताप सिंह और अन्य पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में मृतक हुसैन की पत्नी बेबी बेगम और दोस्ती में दगा देने वाले सल्लन ने हुसैन की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

 

इलाहाबाद में यमुनापार स्थित थाना नैनी के मुरादपुर करबला निवासी मोहम्मद हुसैन का निकाह सन 2013 में कोरांव गांव की रहने वाली बेबी के साथ हुआ था. हुसैन औटो चलाता था. वह इतना कमा लेता था कि परिवार हंसीखुशी से रह रहा था. शादी के करीब साल भर बाद ही वह बेटी शैजल का बाप बन गया तो उस का परिवार भरापूरा हो गया.

हुसैन की दोस्ती मोहल्ला लोकपुर के रहने वाले सल्लन से थी, जो थाना नैनी का हिस्ट्रीशीटर था. मुरादपुर अरैल में उस की तूती बोलती थी. वह मौलाना के नाम से मशहूर था. सल्लन मोहम्मद हुसैन के घर भी आताजाता था. इसी आनेजाने में कब सल्लन और हुसैन की पत्नी बेबी की आंखें चार हो गईं, हुसैन को पता नहीं चला. क्योंकि वह तो अपने दोस्त सल्लन पर आंखें मूंद कर विश्वास करता था.

आंखें चार होने के बाद सल्लन अपने दोस्त हुसैन की अनुपस्थिति में भी उस के घर आनेजाने लगा. जैसे ही हुसैन औटो ले कर घर से निकलता, बेबी सल्लन को फोन कर के घर बुला लेती. इस के बाद दोनों ऐश करते. ऐसी बातें छिपी तो रहती नहीं, सल्लन और बेबी के संबंधों की जानकारी पहले मोहल्ले वालों को, उस के बाद हुसैन तथा उस के घर वालों को हो गई.

लेकिन सल्लन के डर से कोई सीधे उस से कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. लेकिन जब मोहल्ले वाले हुसैन और उस के घर वालों पर तंज कसने लगे तो घर वालों ने हुसैन पर सल्लन से दोस्ती खत्म कर के उस के घर आनेजाने पर पाबंदी लगाने को कहा. उन का कहना था कि अगर इसी तरह चलता रहा तो बेबी नाक कटवा सकती है.

उस समय तो हुसैन कुछ नहीं बोला, लेकिन पत्नी की बेवफाई पर वह तड़प कर रह गया. दोस्त सल्लन की करतूत सुन कर उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इतना सब जानने के बाद भी उस ने सल्लन से कुछ नहीं कहा. इसलिए उस की और सल्लन की दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ा. अलबत्ता हुसैन ने बेबी पर जरूर शिकंजा कसा. उस ने उसे समझाया कि वह जो कर रही है, वह ठीक नहीं है.

बेबी ने हुसैन को सफाई दी कि लोग उसे बिनावजह बदनाम कर रहे हैं. कभीकभार सल्लन उसे पूछने घर आ जाता है तो क्या वह उसे घर से भगा दे. बेबी ने सफाई भले दे दी, लेकिन वह समझ गई कि पति को उस के और सल्लन के संबंधों का पता चल गया है. यही नहीं, उसे यह भी पता चल गया था कि इस की शिकायत हुसैन के भाई हसीन ने की थी. इसलिए उस ने सल्लन से उसे सबक सिखाने के लिए कह दिया ताकि दोनों आराम से मौजमस्ती कर सकें.

हसीन ने जो किया था, वह सल्लन को बुरा तो बहुत लगा लेकिन न जाने क्यों वह शांत रहा. शायद ऐसा उस ने हुसैन की वजह से किया था. उस के बाद उस ने हुसैन के घर भी आनाजाना कम कर दिया था. लेकिन मौका मिलते ही बेबी से मिलने जरूर आ जाता था. इसी का नतीजा यह निकला कि एक दिन हुसैन दोपहर में घर आ गया और उस ने बेबी व सल्लन को रंगेहाथों पकड़ लिया.

 

सल्लन तो सिर झुका कर चला गया, लेकिन बेबी कहां जाती. पत्नी की कारगुजारी आंखों से देख कर हुसैन का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. क्योंकि उस पर भरोसा कर के उस ने घर वालों तक की बात नहीं मानी थी. उस गुस्से में हुसैन ने बेबी की जम कर पिटाई कर दी. इस के बाद बेबी ने कान पकड़ कर माफी मांगी कि अब वह इस तरह की गलती दोबारा नहीं करेगी.

हुसैन ने पत्नी को माफ तो कर दिया, लेकिन अब उसे न तो पत्नी पर भरोसा रहा और न दोस्त सल्लन पर. इसलिए वह दोनों पर नजर रखने लगा. बेबी ने पति से माफी जरूर मांग ली थी, लेकिन अपनी हरकतों से बाज नहीं आई.

चोरीछिपे वह सल्लन से फोन पर बातें करती रहती. इस का नतीजा यह निकला कि सन 2016 के जुलाई महीने के अंतिम सप्ताह में वह सल्लन के साथ भाग गई. इस से मोहल्ले और रिश्तेदारी में काफी बदनामी हुई. इस के बाद दोनों के घर वालों के बड़ेबुजुर्गों के हस्तक्षेप के बाद हुसैन और उस के घर वाले बेबी को अपने घर ले आए.

दरअसल, बेबी के मायके वालों को उस की यह हरकत काफी बुरी लगी थी. वे नहीं चाहते थे कि बेबी अपना अच्छाखासा बसाबसाया घर बरबाद कर के एक गुंडे के साथ रहे. क्योंकि इस से उन की भी बदनामी हई थी. सब के दबाव में हुसैन बेबी को घर तो ले आया था लेकिन घर आने के बाद उस ने उस की जम कर धुनाई की थी.

 

महीने, 2 महीने तक तो सब ठीक रहा, लेकिन इस के बाद बेबी फिर पहले की तरह फोन पर अपने यार सल्लन से बातें करने लगी. शायद उसी के कहने पर सल्लन ने हुसैन के छोटे भाई पर गोली चलाई थी, जिस में वह बालबाल बच गया था. हसीन ने इस वारदात की रिपोर्ट दर्ज करानी चाही तो इस बार भी बड़ेबुजुर्गों ने बीच में पड़ कर दोनों पक्षों का थाने में समझौता करा दिया.

बेबी से सल्लन की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. यही हाल सल्लन का भी था. दोनों ही एकदूसरे के बिना रहने को तैयार नहीं थे. लेकिन बेबी ऐसा नाटक कर रही थी, जैसे हुसैन ही अब उस का सब कुछ है.

पत्नी में आए बदलाव से हुसैन पिछली बातें भूल कर उसे माफ कर चुका था. हुसैन की यह अच्छी सोच थी, जबकि बेबी कुछ और ही सोच रही थी. अब वह पति को राह का कांटा समझने लगी थी, जिसे वह जल्द से जल्द निकालने पर विचार कर रही थी. क्योंकि अब वह पूरी तरह सल्लन की होना चाहती थी.

मन में यह विचार आते ही एक दिन उस ने प्रेमी से बातें करतेकरते रोते हुए कहा, ‘‘सल्लन, अब मुझ से तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं होती. हुसैन मुझे छूता है तो लगता है कि मेरे शरीर पर कीड़े रेंग रहे हैं. अब तुम मुझे हुसैन से मुक्त कराओ या मुझे मार दो. ये दोहरी जिंदगी जीतेजीते मैं खुद तंग आ गई हूं.’’

 

बेबी की बातें सुन कर सल्लन तड़प उठा. उस ने कहा, ‘‘तुम्हें मरने की क्या जरूरत है. मरेंगे तुम्हारे दुश्मन. बेबी, जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. तुम कह रही हो तो मैं जल्दी ही प्यार की राह में रोड़ा बन रहे हुसैन को ठिकाने लगाए देता हूं.’’

इस के बाद बेबी और सल्लन ने मोबाइल फोन पर ही हुसैन को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. उसी योजना के अनुसार, 14 नवंबर, 2016 की शाम बेबी हुसैन को चार्जर खरीदवाने के बहाने लोकपुर मोहल्ला स्थित मोबाइल शौप पर ले आई, जहां पहले से घात लगाए बैठे सल्लन मौलाना ने गोली मार कर हुसैन की हत्या कर दी.

सल्लन की निशानदेही पर थाना नैनी पुलिस ने 315 बोर का देसी पिस्तौल और एक जिंदा कारतूस बरामद कर लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने सल्लन और बेबी को इलाहाबाद अदालत में पेश किया था, जहां से दोनों को जिला कारागार, नैनी भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक किसी की जमानत नहीं हुई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सिरकटी लाश

अंबाला छावनी के रेलवे पुलिस स्टेशन में तैनात महिला हवलदार मनजीत कौर को सुबह सुबह खबर मिली कि अंबाला और छावनी रेलवे स्टेशनों के बीच खंभा नंबर 267/15 के पास अपलाइन पर एक सिरकटी लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंच कर अपनी काररवाई में जुट गईं.

धड़ रेलवे लाइन के बीचोबीच उत्तरदक्षिण दिशा में पड़ा था. धड़ पर हल्के बादामी रंग का पठानी सूट था. उस से ठीक 8 कदम की दूरी पर उत्तर दिशा में शरीर से अलग हुआ सिर पड़ा था. उस से 2 कदम की दूरी पर लाइन के बीचोबीच बायां हाथ और 5 कदम की दूरी पर सफेद रंग की पंजाबी जूतियां पड़ी थीं.

मरने वाला 35 से 40 साल के बीच था. उस की पहचान के लिए मनजीत कौर ने पठानी सूट की जेबें खंगाली, लेकिन उन में ऐसा कुछ नहीं मिला, जिस से उस की पहचान हो पाती. मनजीत कौर को यह मामला दुर्घटना का नहीं, आत्महत्या का लगा. लिहाजा अपने हिसाब से वह काररवाई करने लगीं. उस दिन थानाप्रभारी सतीश मेहता छुट्टी पर थे, इसलिए थाने का चार्ज इंसपेक्टर सोमदत्त के पास था.

निरीक्षण के बाद सोमदत्त ने मनजीत कौर के पास जा कर कहा, ‘‘यह आत्महत्या नहीं हो सकती. आत्महत्या करने वाला आदमी कहीं रेलवे लाइन पर इस तरह लेटता है?’’

‘‘जी सर, आप सही कह रहे हैं. यह मामला आत्महत्या का नहीं है.’’

‘‘जरूर यह हत्या का मामला है और हत्या कहीं दूसरी जगह कर के लाश यहां फेंकी गई है. इस के पीछे का षड्यंत्र तो जांच के बाद ही पता चलेगा.’’

‘‘ठीक है, कानूनी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाइए.’’ सोमदत्त ने एएसआई ओमवीर से कहा.

 

औपचारिक कानूनी काररवाई पूरी कर के ओमवीर और मनजीत कौर ने लाश को अंबाला के कमांड अस्पताल भिजवा दिया, जहां से लाश को पोस्टमार्टम के लिए रोहतक के पीजीआई अस्पताल भेज दिया.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद मृतक का विसरा रासायनिक परीक्षण के लिए मधुबन लैबोरेटरी भिजवा दिया गया. डाक्टरों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण श्वासनली कटना बताया था. रेल के पहियों से वैसे ही उस की गरदन कट गई थी. डाक्टरों के अनुसार यह रेल दुर्घटना का मामला था.

उन दिनों रेलवे पुलिस की अंबाला डिवीजन के एसपी थे आर.पी. जोवल. यह मामला उन के संज्ञान में आया तो वह भी इस की जांच में रुचि लेने लगे.

उन के लिए यह मामला दुर्घटना या आत्महत्या का नहीं था. उन्होंने इसे हत्या ही माना, लेकिन जांच तभी आगे बढ़ सकती थी, जब लाश की शिनाख्त हो जाती. हालांकि सिरकटी लाश मिलने का समाचार सभी अखबारों में छपवा दिया गया था. इस के अलावा लाश की शिनाख्त के लिए पुलिस ने भी समाचार पत्रों में अपील छपवाई थी. जिस में लाश का हुलिया और कपड़ों वगैरह का विवरण दिया गया था.

2 दिनों बाद इंसपेक्टर सतीश मेहता छुट्टी से लौटे तो उसी दिन दोपहर बाद अखबार हाथ में लिए एक आदमी उन से मिलने आया. उस ने आते ही कहा, ‘‘जिस आदमी की शिनाख्त के बारे में आप ने अखबार में विज्ञापन दिया है, मैं उस के कपड़े वगैरह देखना चाहता हूं. आप लोगों ने लाश के फोटो तो करवाए ही होंगे, आप उन्हें भी दिखा दें.’’

इंसपेक्टर मेहता ने उस का परिचय पूछा तो वह बोला, ‘‘मेरा नाम मोहनलाल मेहता है. मैं भी एक रिटायर्ड पुलिस इंसपेक्टर हूं, महेशनगर में रहता हूं,’’ कहते हुए उन्होंने हाथ में थामा अखबार खोल कर उस में छपा विज्ञापन सतीश मेहता को दिखाते हुए कहा, ‘‘आप लोगों की ओर से आज के अखबार में यह जो विज्ञापन छपवाया गया है, इस में मरने वाले का हुलिया और कपड़े वगैरह मेरे बेटे से मेल खा रहे हैं.’’

सतीश मेहता ने अखबार ले कर उस में छपी अपील को देखते हुए पूछा, ‘‘आप के बेटे का क्या नाम है?’’

‘‘उस का नाम जोगेंद्र मेहता है, मगर सभी उसे जग्गी मेहता कहते थे.’’

‘‘काम क्या करता था आप का बेटा?’’

‘‘पंजाब नैशनल बैंक में क्लर्क था. उस की पोस्टिंग मेन बाजार शाखा में थी. 14 जुलाई की रात वह अपने बैंक के चपरासी के साथ स्कूटर से कहीं गया था, उस के बाद लौट कर नहीं आया. आज 4 दिन हो चुके हैं.’’

‘‘आप ने चपरासी से नहीं पूछा?’’

‘‘मैं ने अगले दिन ही उसे बैंक में फोन कर के पूछा था. उस ने बताया था कि वह किसी जरूरी काम से अंबाला से बाहर गया है. 2-4 दिनों में लौट आएगा. स्कूटर के बारे में उस ने बताया था कि वह उसी के पास है.’’

‘‘चपरासी का क्या नाम है?’’

‘‘जी मुन्ना.’’

‘‘वह कहां रहता है?’’

‘‘वह हिसार रोड पर कहीं रहता है. अगर आप को उस से कुछ पूछना है तो वह बैंक में ही मिल जाएगा. लेकिन आप मुझे कपड़े और फोटो तो दिखा दीजिए.’’

‘‘आप परेशान मत होइए. आप को सभी चीजें दिखा दी जाएंगी. लेकिन पहले आप मेरे साथ मुन्ना चपरासी के यहां चलिए. हो सकता है, हमारे पास जो कपड़े और फोटो हैं, वे आप के बेटे के न हों. फिर भी आप मेरे साथ चलिए.’’ सतीश मेहता मोहनलाल को साथ ले कर बैंक पहुंचे.

लेकिन तब तक मुन्ना घर जा चुका था. पूछने पर पता चला कि वह अंबाला शहर के हिसार रोड पर दुर्गा नर्सिंगहोम के पास किराए पर रहता है. सतीश मेहता वहां पहुंचे तो वह घर पर ही मिल गया. उस का नाम मनजीत कुमार था. पूछने पर उस ने वही सब बताया, जो वह मोहनलाल को बता चुका था.

लेकिन सतीश मेहता को उस की बातों पर यकीन नहीं हुआ. उन्होंने उसे डांटा तो उस ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘सर, 14 जुलाई की शाम मैं बैंक से जग्गी साहब के साथ उन के घर गया था. उस रात उन्होंने मुझे पार्टी देने का वादा किया था. खानेपीने के बाद आधी रात को मैं चलने लगा तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं उन के साथ चलूं. इस के बाद वह मुझे अपने स्कूटर पर बैठा कर विश्वासनगर ले गए. वहां एक घर के सामने उन्होंने स्कूटर रोक दी.’’

‘‘जहां स्कूटर रोका, वह घर किस का था?’’ सतीश मेहता ने मुन्ना से पूछा.

‘‘यह मुझे नहीं मालूम. उस घर की ओर इशारा कर के उन्होंने कहा था कि रात में वह वहीं रुकेंगे. इस के बाद मैं उन का स्कूटर ले कर चला आया था.’’ मुन्ना ने कहा.

‘‘तुम ने उन से पूछा नहीं कि वह मकान किस का है? उतनी रात को वह उस मकान में क्या करने जा रहे हैं?’’

‘‘पूछा था सर.’’

‘‘क्या कहा था उन्होंने?’’

‘‘सर, जग्गी साहब ने मुझ से सिर्फ यही कहा था कि रात में वह वहीं रुकेंगे. उन्होंने मुझे उस घर का फोन नंबर दे कर यह भी कहा था कि जरूरत हो तो मैं फोन कर लूं. लेकिन फोन एक लड़की उठाएगी. इस के बाद उन्होंने मुझे सुरजीत सिंह का फोन नंबर भी दिया और कहा कि कोई ऐसीवैसी बात हो जाए तो मैं सुरजीत सिंह को फोन कर लूं.’’

‘‘यह सुरजीत कौन है?’’

‘‘सुरजीत सिंह जग्गी साहब के दोस्त हैं. वह भी विश्वासनगर में रहते हैं. घूमने के लिए जग्गी साहब अकसर उन्हीं की कार मांग कर लाया करते थे.’’

‘‘टैक्सी वगैरह का धंधा करते हैं क्या?’’

‘‘यह तो मुझे नहीं मालूम. लेकिन इतना जरूर पता है कि किसी औफिस में नौकरी करते हैं.’’

‘‘अभी उन्हें छोड़ो, यह बताओ कि उस रात और क्या हुआ था?’’

‘‘सर, जब मैं जग्गी साहब को छोड़ कर घर आया तो लेटते ही सो गया. सुबह तक जग्गी साहब नहीं आए तो मैं ने पड़ोस के पीसीओ से उन के बताए नंबर पर फोन किया. फोन सचमुच लड़की ने उठाया. मैं ने उस से जग्गी साहब के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि इस नाम का कोई आदमी वहां नहीं रहता. इस पर मैं ने उसे समझाते हुए कहा कि उन का पूरा नाम जोगेंद्रलाल मेहता है और वह पंजाब नैशनल बैंक में नौकरी करते हैं. इस पर भी उस ने मना कर दिया कि वह इस नाम के आदमी को नहीं जानती.’’

‘‘ठीक है, तुम हमारे साथ वहां चलो, जहां रात में जग्गी साहब को छोड़ कर गए थे.’’

मुन्ना सतीश मेहता को उस जगह ले गया, जहां उस ने जग्गी को छोड़ा था. वह विश्वासनगर का एक पुराना सा मकान था. मुन्ना ने उस मकान की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘हम इसी मकान के आगे रुके थे और इसी दरवाजे से जग्गी साहब अंदर गए थे.’’

उस मकान में ताला लटक रहा था. सतीश मेहता ने पड़ोसियों से उस मकान में रहने वालों के बारे में पूछा तो पता चला कि उस घर में हरीश विरमानी अपनी पत्नी कांता और 2 जवान बेटियों यवनिका तथा शामला के साथ रहते थे.

विरमानी के दिमाग की नस फट गई थी, जिस की वजह से उन दिनों इस परिवार को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही थी. विरमानी चंडीगढ़ के पीजीआई में भरती थे. परिवार के लोग अकसर चंडीगढ़ में ही रहते थे. संभव था कि उस समय भी घर पर ताला लगा कर वहीं गए हों.

वहां काम की कोई जानकारी नहीं मिल सकी. इस पर सतीश सुरजीत सिंह के घर की ओर बढ़ गए. उन का घर भी विश्वासनगर में ही था. वह स्थानीय इलैक्ट्रिसिटी बोर्ड में काम करते थे. सुरजीत घर पर ही मिल गए.

उन से जग्गी मेहता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि जग्गी उन का दोस्त था और उन से हर तरह की बातें शेयर करता था. एक बार उस ने मुझे बताया था कि हरीश विरमानी की लड़कियां बदचलन हैं.

पलभर बाद सुरजीत ने दिमाग पर जोर देते हुए कहा, ‘‘डेढ़, 2 महीने पहले की बात है. विरमानी अपनी बीमारी की वजह से चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में भरती था. जग्गी ने उस का हालचाल लेने की बात कही तो मैं उसे अपनी कार से चंडीगढ़ ले गया. उस समय जग्गी के साथ विरमानी की बड़ी बेटी यवनिका भी थी. वापसी में जीरकपुर के एक होटल में जग्गी ने गाड़ी रुकवा कर मुझे बीयर पिलाई और खुद भी पी. उस के बाद मुझे बाहर बैठा कर वह खुद यवनिका को ले कर होटल के कमरे में चला गया. वहां से वह करीब पौन घंटे बाद लौटा.’’

‘‘तुम्हारे कहने का मतलब यह है कि जग्गी और यवनिका के बीच गलत संबंध थे?’’ सतीश मेहता ने पूछा.

‘‘इस बारे में पक्के तौर पर तो कुछ नहीं कह सकता, लेकिन जब हम चंडीगढ़ से लौट रहे थे तो पिछली सीट पर बैठा जग्गी लगातार यवनिका के साथ अश्लील हरकतें करता रहा था.’’ सुरजीत ने कहा.

उस की इस बात पर मोहनलाल मेहता भड़क उठे. ‘‘ऐसा नहीं हो सकता. मेरा बेटा 40 साल का हो चुका है और बालबच्चेदार है. उस की खूबसूरत पढ़ीलिखी बीवी है.’’

सतीश मेहता ने उन्हें समझाया कि इस तरह की बातों पर भावुक होने की जरूरत नहीं है. हमें हर बात को ध्यान में रख कर जांच आगे बढ़ानी है.

इस पर मोहनलाल कुछ सोचते हुए बोले, ‘‘हरीश विरमानी की लड़कियों के पास कुछ लड़के आया करते थे. इस बारे में मेरे बेटे ने कुछ अन्य लोगों के साथ मिल कर पुलिस से शिकायत भी की थी.’’

‘‘क्या हुआ था शिकायत वाले मामले में?’’

‘‘दोनों पार्टियों में समझौता करा दिया गया था. उस के बाद लड़कियों के पास फालतू लोगों का आना बंद हो गया था.’’

‘‘यह तो आप के बेटे ने अच्छा काम किया था. लेकिन अभी मुझे सुरजीत से कुछ और पूछना है.’’

‘‘आप के कुछ पूछने से पहले मैं एक बात जानना चाहता हूं. आप जिस जग्गी मेहता के बारे में पूछ रहे हैं, उस ने कुछ कर दिया है क्या?’’

‘‘वह गायब है और हम उस की तलाश में लगे हैं.’’

 

सुरजीत का घर दूर नहीं था. इंसपेक्टर सतीश मेहता मोहनलाल को ले कर उस के घर पहुंचे. वह घर पर ही था. मेहता ने उस से पूछा, ‘‘14 जुलाई की रात जग्गी मेहता से तुम्हारी कोई बातचीत हुई थी?’’

‘‘जी सर, उस रात वह मेरे पास आया था. आते ही उस ने यवनिका को फोन किया था. उस के प्रोग्राम के अनुसार उस रात उसे यवनिका के साथ रहना था. उस ने मुझ से 2 हजार रुपए मांगते हुए कहा था कि अगर उसे कार की जरूरत पड़ी तो वह मेरी कार ले जाएगा. लेकिन मैं ने उसे कार देने से इनकार कर दिया था. इस की वजह यह थी कि वह मेरा दोस्त जरूर था, लेकिन वह बालबच्चेदार था, इसलिए मुझे यह ठीक नहीं लगा.’’

‘‘तुम्हारे पास वह अकेला ही आया था?’’

‘‘जी, वह अकेला ही आया था.’’

‘‘उस का चपरासी मुन्ना साथ नहीं था?’’

‘‘जी नहीं, वह साथ में नहीं था. जग्गी ने मुझे बताया कि उसे अपने घर पर बैठा कर वह शराब लेने आया था.’’

‘‘फिर क्या हुआ था?’’

‘‘वह मुझ से 2 हजार रुपए ले कर चला गया था. आधी रात के बाद उस का फोन आया था. तब उस ने कहा था कि वह यवनिका के घर से बोल रहा है. उस ने एक बार फिर कार मांगी थी, लेकिन मैं ने मना कर दिया था.’’

‘‘उस के बाद क्या किया था उस ने?’’

‘‘क्या किया, पता नहीं. शायद टैक्सी ले कर अंबाला से कहीं बाहर चला गया होगा?’’

इस के बाद सतीश मेहता मोहनलाल के घर जा पहुंचे. जग्गी मेहता की पत्नी का नाम संतोष था. वह पब्लिक स्कूल में टीचर थीं. सतीश मेहता ने शालीनता के साथ पतिपत्नी के रिश्तों के अलावा जग्गी के बारे में कुछ बातें पूछीं और मोहनलाल के साथ थाने लौट आए.

 

वापस लौट कर उन्होंने थाने में रखे लाश के कपड़े और फोटो मोहनलाल को दिखाए तो उन्होंने रोते हुए कहा, ‘‘ये कपड़े और फोटो मेरे बेटे के हैं.’’

सतीश मेहता ने उन्हें सांत्वना दी और समझा कर कहा, ‘‘आप एक अरजी लिख कर दे दें ताकि हम रिपोर्ट लिख कर आगे की काररवाई शुरू करें.’’

‘‘क्या आप इस अभागे बाप को बेटे की लाश दिखा देंगे?’’

लेकिन एक दिन पहले ही लाश को लावारिस मान कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया था, यह बात सतीश मेहता ने उन्हें बता दी.

दुखी मन से मोहनलाल मेहता उठे और धीरेधीरे चलते हुए थाने से बाहर निकल गए. उन की मानसिक दशा देख कर सतीश मेहता ने कुछ कहना उचित नहीं समझा. मोहनलाल मेहता दोबारा थाने नहीं आए तो उन्हें बुलाने के लिए सिपाही भेजे गए, लेकिन वह टालते रहे. इस से पुलिस को लगा कि शायद वह बेटे की बदनामी से डर गए हैं.

लेकिन 2 अगस्त की सुबह मोहनलाल मेहता बेटे की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने आ पहुंचे. उन की तहरीर के आधार पर यवनिका, शामला, अमित और सुनील को संदिग्ध मानते हुए नामजद रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद सतीश मेहता ने एसपी आर.सी. जोवल से संपर्क किया तो उन्होंने काररवाई का आदेश दे दिया. सतीश मेहता ने अपनी एक टीम गठित की, जिस में एसआई सोमदत्त, एएसआई गुरमेल सिंह, हवलदार आनंद किशोर, अश्विनी कुमार, राधेश्याम के अलावा कुछ महिला पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.

जब यह टीम काररवाई के लिए मौडल टाउन की ओर जा रही थी तो रास्ते में उन्हें स्थानीय नेता दिलीप चावला मिल गए. औपचारिक बातचीत के बाद सतीश मेहता ने उन्हें जग्गी की सिरकटी लाश मिलने वाली बात बताई तो उन्होंने कहा, ‘‘जग्गी मेहता का कत्ल 2 लड़कियों यवनिका, शामला और 2 लड़कों अमित और सुनील ने किया है.’’

‘‘आप को कैसे पता चला?’’

‘‘कुछ देर पहले वे चारों मेरे पास मदद के लिए आए थे. लेकिन मुझे उन की मदद करना उचित नहीं लगा. इसलिए मैं ने मना कर के उन्हें अपने घर से भगा दिया.’’

‘‘आप को पुलिस को बताना चाहिए था. खैर, इस समय वे कहां होंगे?’’

‘‘मेरे पास जाते वक्त उन्होंने अपनेअपने घर लौट जाने की बात कही थी. मैं समझता हूं कि इस समय वे अपनेअपने घरों में ही होंगे.’’

सतीश मेहता ने यह बात एसपी आर.सी. जोवल को बताई तो उन्होंने सीआईए इंसपेक्टर खुशहाल सिंह के नेतृत्व में एएसआई हरबंस लाल, हवलदार ललित कुमार, सिपाही रणबीर सिंह, बलबीर सिंह और सोहनलाल की एक टीम बना कर उन की मदद के लिए भेज दी.

अब तक सतीश मेहता के बुलाने पर थाने की महिला एएसआई सुदर्शना देवी, हवलदार संगीता, मनजीत कौर, सिपाही धर्मपाल कौर भी तैयार हो कर आ पहुंची थीं. सतीश मेहता अपनी टीम के साथ विश्वासनगर की ओर चल पड़े. ये पुलिस टीम हरीश विरमानी के घर पहुंची तो यवनिका और शामला घर पर ही मिल गईं. पुलिस वालों को देख कर उन लड़कियों को घबरा जाना चाहिए था, लेकिन घबराने के बजाय उन्होंने अपना अपराध स्वीकार करते हुए आत्मसमर्पण कर दिया.

इस के बाद खुशहाल सिंह दिलीप चावला को साथ ले कर अमित और सुनील को गिरफ्तार करने चले गए. संयोग से वे दोनों भी अपनेअपने घरों पर मिल गए. उन्होंने भी जग्गी मेहता के कत्ल का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

चारों अभियुक्तों को अगले दिन स्पैशल रेलवे दंडाधिकारी संतप्रकाश की अदालत में पेश कर के पूछताछ के लिए 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. यह तब की बात है, जब जुवैनाइल एक्ट अस्तित्व में नहीं आया था. लिहाजा नाबालिग शामला के साथ भी अन्य अभियुक्तों जैसा ही व्यवहार किया जा रहा था.

 

रिमांड अवधि के दौरान की गई पूछताछ में चारों ने पुलिस को जो कुछ बताया, उस से जोगेंद्र कुमार मेहता उर्फ जग्गी मेहता की हत्या की कहानी सामने आ गई.

अंबाला के विश्वासनगर के रहने वाले टेलर मास्टर लेखराज के परिवार में पत्नी सुमित्रा देवी के अलावा 3 बेटे थे. जिन में सब से बड़ा था अमित, जिस ने आठवीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी थी. कुछ दिन उस ने मिक्सी बनाने का काम सीखा. जल्दी ही उस का इस काम से जी भर गया तो वह पिता के साथ टेलरिंग का काम करने लगा. अमित से दोनों छोटे भाई अभी पढ़ रहे थे.

विश्वासनगर के ही एक मंदिर में एक दिन शाम को अमित कुमार दर्शन करने गया तो प्रसाद खरीदते समय उस की नजर एक लड़की से टकरा गई. वह पहली ही नजर में उस की ओर आकर्षित हो गया. इस के बाद वह रोजाना वहां जाने लगा. आंखों ही आंखों में उस ने उस से प्रणय निवेदन किया तो लड़की ने मौन स्वीकृति दे दी.

वह लड़की यवनिका थी. जल्दी ही दोनों की मुलाकातें अंबाला के विभिन्न स्थानों पर होने लगीं. मांबाप के घर न होने पर यवनिका उसे अपने घर भी बुलाने लगी.

हरीश विरमानी के बीमार पड़ जाने के बाद दोनों की मौज आ गई. यवनिका रात में अमित को अपने घर बुलाने लगी तो दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. 

एक दिन अमित यवनिका घर पर थे, तभी जग्गी मेहता अचानक आ पहुंचा. हरीश विरमानी से उस का अच्छा परिचय था. उसी की हालचाल लेने वह वहां आया था. मांबाप की अनुपस्थिति में अमित को देख कर जग्गी ने कहा, ‘‘विरमानी साहब तो अस्पताल में हैं. तुम्हारी मां और बहन भी शायद वहीं गई होंगी. ऐसे में तुम इस लड़के के साथ अकेली क्या कर रही हो?’’

जग्गी मेहता ने यह बात यवनिका से कही थी, लेकिन उस के बजाय जवाब अमित ने दिया, ‘‘तुम्हें क्या ऐतराज है?’’

‘‘मुझे इस में क्या ऐतराज हो सकता है. मेरे कहने का मतलब यह है कि तुम भी ऐश करो और कभीकभी मुझे भी करवा दिया करो.’’

जग्गी यवनिका के पिता का दोस्त था. उम्र में भी लगभग उन के बराबर था. पिता के दोस्त की बातें सुन कर उसे बड़ा अजीब लगा. लेकिन उस के मन में चोर था, इसलिए वह चुप रही.

जबकि अमित से यह बात बरदाश्त नहीं हुई. वह जग्गी को हड़काते हुए बोला, ‘‘तुम हमारे लिए पहले भी मुसीबत बनते रहे हो. उस दिन पुलिस बुला कर तुम हमारे ऊपर इस तरह रौब डाल रहे थे, जैसे तुम कहीं के मजिस्ट्रेट हो. ध्यान से सुन लो, यवनिका मेरी है, हम दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहते हैं और जल्दी ही शादी भी करने वाले हैं.’’

‘‘भई, जब तुम्हें शादी करनी हो, कर लेना. मैं इस से कहां शादी करने जा रहा हूं.’’

‘‘तुम शादीशुदा हो और तुम्हारे बच्चे भी हैं, इसलिए तुम्हें यह सब शोभा नहीं देता. तुम हमारे रास्ते में मत आओ.’’

‘‘वाह! तुम तो बड़े अकड़ रहे हो भाई. एक बात याद रखना, मेरा नाम जग्गी मेहता है. मैं तुम्हें ऐसा सबक सिखाऊंगा कि जिंदगी भर याद रखोगे.’’ कह कर जग्गी पैर पटकता चला आया.

विश्वासनगर में ही शिंगाराराम रहते थे. लेकिन कुछ समय पहले ही उन की मौत हो गई थी. उन के परिवार में पत्नी दुलारी देवी के अलावा 3 बेटे थे. उन का बीच वाला बेटा सुनील कुमार था, जो दसवीं पास कर के सेल्समैनी करने लगा था.

अमित और सुनील एक ही कालोनी में आगेपीछे के मकानों में रहते थे. इसी वजह से दोनों में परिचय था. अमित का जिन दिनों यवनिका के साथ इश्क परवान चढ़ा था, एक दिन उस ने यवनिका को अपनी गर्लफ्रैंड बता कर सुनील से मिलवाया. इस के बाद अमित ने सुनील का परिचय यवनिका की छोटी बहन शामला से करवा दिया तो उन के बीच दोस्ती हो गई.

बड़ी बहन की देखादेखी किसी की बांहों में समाने को वह भी मचल रही थी. सुनील से दोस्ती हुई तो वह भी उस से संबंध बना बैठी. इस के बाद दोनों बहनें जब घर में अकेली होतीं, सुनील और अमित को बुला कर रासलीला रचातीं.

 

17 जून को जग्गी मेहता सुरजीत सिंह की कार में हरीश विरमानी का हालचाल लेने चंडीगढ़ जा रहा था. जाने से पहले उस ने फोन कर के यवनिका को भी साथ चलने को कहा. उस ने जाने से मना किया तो जग्गी ने कहा कि उस के साथ एक परिवार जा रहा है. इस के बाद यवनिका उस के साथ चंडीगढ़ चलने को तैयार हो गई.

उस दिन शाम को अंबाला लौटने पर अमित यवनिका से मिला तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘अमित आज जग्गी मेहता ने मेरे साथ बहुत गलत किया, वह बहुत गंदा आदमी है.’’

‘‘क्या किया उस ने तुम्हारे साथ…?’’

‘‘जाते वक्त तो सब ठीक रहा, लेकिन लौटते समय जीरकपुर पहुंचे तो वहां के एक होटल के सामने जग्गी ने कार रुकवा दी. अंदर जा कर दोनों ने बीयर पी. इस के बाद जग्गी मुझे होटल के कमरे में ले गया. सुरजीत बाहर ही बैठा रहा. जग्गी ने कमरे में ले जा कर मेरे साथ जबरन मुंह काला किया.’’

‘‘क्याऽऽ? उस ने तुम्हारे साथ जबरदस्ती की और तुम ने शोर भी नहीं मचाया?’’

‘‘मैं अकेली लड़की क्या कर सकती थी? डर के मारे मेरे मुंह से आवाज तक नहीं निकली. लेकिन अब मैं उसे जिंदा नहीं रहने दूंगी. बस, तुम्हें मेरा साथ देना होगा.’’ यवनिका ने गुस्से में कहा.

 

इस के बाद दोनों ने जग्गी मेहता की हत्या की योजना बनाने के साथ शामला और सुनील से बात की. चारों ने इस मुद्दे पर एक अनूठी योजना तैयार की. उसी योजना के तहत लोहे का एक बड़ा ट्रंक खाली कर लिया गया. करंट लगा कर मारने के लिए बिजली के तार की भी व्यवस्था कर ली गई. लेकिन यवनिका को यह योजना पसंद नहीं आई.

इस के बाद खूब सोचसमझ कर जो योजना तैयार की गई, उस के अनुसार 14 जुलाई की दोपहर यवनिका ने जग्गी के घर फोन कर के बैंक का नंबर ले लिया. इस के बाद बैंक फोन किया. जिस आदमी ने फोन उठाया, उस ने लड़की की आवाज सुन कर कहा, ‘‘जग्गी का रोज का यही हाल है, कभी सविता का फोन आता है तो कभी किसी और का.’’

इस के बाद उस ने जग्गी मेहता को आवाज लगाई. जग्गी मेहता ने पहले यवनिका के पिता का हालचाल पूछा. इस के बाद जीरकपुर वाली घटना का जिक्र कर के उसे उकसाने की कोशिश करने लगा.

इस के बाद यवनिका ने उसे रात में अपने घर आने को कह दिया. जग्गी ने किसी होटल में चलने को कहा तो यवनिका ने घर में ही रात बिताने को कहा.

उसी रात साढ़े 10 बजे जग्गी मेहता ने यवनिका को फोन किया. एक बार फिर उस ने रात कहीं बाहर बिताने को कहा तो यवनिका ने साफसाफ कहा, ‘‘आना हो तो घर आ जाओ. मैं बाहर नहीं जाऊंगी. घर में कोई खतरा नहीं है. घर में शामला और मैं ही हूं.’’

‘‘ठीक है. मैं रात 12, साढ़े 12 बजे के बीच आ जाऊंगा.’’

इस के बाद योजना के अनुसार, सुनील बाजार से शराब ले आया. अमित ने नशे की गोलियों का इंतजाम किया. जिस कमरे में जग्गी मेहता को जाना था, वहां पड़े बैड पर सुनील चादर ओढ़ कर लेट गया. घर का दरवाजा खुला छोड़ दिया गया.

 

एकदम सही समय पर जग्गी पहुंच गया. अमित रसोई में छिप गया. शामला और यवनिका जग्गी को प्यार से अंदर ले आईं. जग्गी अपने भाग्य पर इतराते हुए शहंशाहों की तरह आया. कमरे में पहुंच कर बैड पर किसी को लेटा देख कर पूछा, ‘‘यह कौन लेटा है?’’

‘‘दादी अम्मा हैं. अभी कुछ देर पहले अचानक आ गईं. लेकिन तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है. अफीम खा कर आराम से पड़ी रहती हैं. फिर तुम जरा धीरे बोलना.’’ यवनिका ने कहा.

इस के बाद वहीं से सुरजीत सिंह को फोन किया. फोन करने के बाद यवनिका ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, उधर दीवान पर चलो. अगर कपड़े उतारना चाहो तो उतार लो.’’

जग्गी अपनी जगह से उठ कर दीवान पर इत्मीनान से बैठ गया. शराब की बोतल पहले ही वहां रखी गई थी. बोतल देख कर उस ने यवनिका से गिलास लाने को कहा. नशे की गोलियां पीस कर यवनिका ने पहले से ही स्टील के गिलास में डाल रखी थीं. जग्गी के पास आ कर उस ने खुद ही गिलास में शराब डाली और उसे हिलाते हुए जग्गी की ओर बढ़ा दिया.

 

जग्गी पहले ही शराब पी कर आया था. यवनिका के हाथों उस ने 2 पैग और चढ़ा लिए. वह भी नशीली दवा के साथ. थोड़ी ही देर में वह नशे में झूमने लगा. उस के बाद यवनिका और शामला से बोला, ‘‘तुम दोनों भी मेरे साथ थोड़ी पियो.’’

यवनिका रसोई में गई और 2 गिलासों में थम्सअप ले आई. रसोई में जाते समय वह शराब की बोतल साथ ले गई थी. इसलिए उन्हें थम्सअप पीते देख कर जग्गी को लगा कि वे भी शराब पी रही हैं. अब तब झूमते हुए उस ने अपने कपड़े उतार दिए.

जग्गी मेहता ने जैसे ही कपड़े उतारे सुनील ने जल्दी से सामने आ कर उस की फोटो खींच ली. ठीक उसी समय अमित भी वहां आ गया. कैमरे की फ्लैश से जग्गी की आंखें चुंधिया गईं. अमित और सुनील को सामने पा कर वह आंखें मलते हुए चिल्लाया, ‘‘कबाब में हड्डी बनने के लिए तुम लोग यहां क्यों आए हो? दिनरात तुम लोग ऐश करते हो, मैं ने कभी अड़ंगा डाला है?’’

अमित ने उस के दोनों हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘तुम ने मेरी यवनिका को पीजीआई ले जाने के बहाने रास्ते में होटल में दुष्कर्म किया था न?’’

‘‘नहीं तो. मैं ने कब इस से दुष्कर्म किया?’’

‘‘जीरकपुर के ब्रिस्टल होटल के कमरे में यवनिका को ले जा कर तुम ने इस के साथ क्या किया था?’’

‘‘जो भी किया, उस से क्या हो गया? तुम उस के साथ क्या करते हो? मैं ने तो कभी कुछ नहीं पूछा. और तुम लोग मेरा यह फोटो खींच कर क्या करोगे?’’

‘‘उस का क्या होगा, यह बाद की बात है.’’ यवनिका ने उस के सामने आ कर कहा, ‘‘अभी तो मुझ से आंख मिला कर बताओ कि ब्रिस्टल होटल में तुम ने मेरे साथ जबरदस्ती की थी या नहीं?’’

यवनिका के यह कहते ही जग्गी उस के पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा. शायद उसे इस बात का आभास हो गया था कि उसे वहां मौजमस्ती के लिए नहीं, किसी साजिश के तहत बुलाया गया है.

जग्गी माफी मांग ही रहा था कि अमित ने जग्गी के मुंह पर हाथ रख कर दूसरे हाथ से उस की गरदन में चाकू घुसेड़ दिया. ठीक उसी समय सुनील ने दूसरा चाकू भी उस की गरदन में दूसरी ओर से घुसेड़ दिया.

2 चाकुओं के वार से बिना चीखेचिल्लाए जग्गी छटपटाने लगा. फिर तो उन्होंने उस पर और भी कई वार किए. कुछ देर बाद जब उन्हें लगा कि जग्गी मर गया है तो उसे कपड़े और जूते पहना कर दीवान पर बिछे गद्दे में लपेट कर घर में रखी साइकिल पर लाद कर रेलवे लाइन पर फेंक आए. संयोग से उस समय तेज बारिश हो रही थी, इसलिए रेलवे लाइन तक लाश ले जाते समय उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई.

इस के बाद उन्होंने गद्दा और चाकू पास के गंदे नाले में फेंक दिया. वहीं साइकिल भी छिपा दी. घर लौट कर खून के छींटे और धब्बे साफ कर दिए गए.

दीवार पर खून साफ करने से जो धब्बे बन गए थे, उसे सहज बनाने के लिए यवनिका ने वहां सरसों का तेल गिरा दिया ताकि देख कर लगे कि किसी से तेल की शीशी गिर गई है.

यह सब करतेकरते 5 बज गए. इस के बाद यवनिका और शामला पहले चंडीगढ़ स्थित पीजीआई गईं और मातापिता से मिल कर हरिद्वार चली गईं. जबकि मातापिता से बताया था कि अंबाला जा रही हैं.

पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर खून लगा गद्दा, साइकिल और हत्या में प्रयुक्त दोनों चाकू बरामद कर लिए गए. रिमांड अवधि समाप्त होने पर उन्हें फिर से अदालत में पेश कर सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

विवेचक सतीश मेहता ने निर्धारित अवधि में इन के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर निचली अदालत में पेश कर दिया. अंबाला की जिला अदालत में 3 साल तक केस चला. बाद में सेशन से चारों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मेकअप टिप्स फौर मौनसून वैडिंग

मौनसून में शादी मेकअप के हिसाब से थोड़ी असहज प्रतीत होती है. ऐसे में अगर आप की शादी मौनसून में ही हो रही है तो कुछ खास सुझाव आप के लिए बेहद फायदेमंद रहेंगे:

– मौनसून के दौरान त्वचा के रोमछिद्र खुल जाते हैं, इसलिए मेकअप करने से पहले त्वचा को अच्छी तरह साफ कर के मौइश्चराइज करें, मेकअप से 1 दिन पहले ऐक्सफौलिएशन या स्क्रबिंग को अपना सकती हैं. इस से त्वचा की मृत परतें निकल जाएंगी और वह चमकदार एवं खूबसूरत दिखाई देगी.

– मौनसून में ऐसा मेकअप चुनें जो लंबे समय तक त्वचा पर टिका रहे. ऐसे प्रोडक्ट चुनें जो लौंग लास्टिंग और वाटरप्रूफ हों, क्योंकि कभीकभी पसीने और नमी के कारण मेकअप बहने या फिर फटने लगता है. अत: मेकअप वह चुनें जो कम से कम 7-8 घंटे टिका रहे.

– अपनी स्किन टाइप के बारे में जानना जरूरी है. पहचानें कि आप की त्वचा का प्रकार क्या है यानी ड्राई, सैंसिटिव, औयली, डीहाइड्रेटेड, कौंबिनेशन, मैच्योर आदि. मौनसून में त्वचा को हाइड्रेट करना यानी त्वचा की नमी बरकरार रखना बहुत जरूरी होता है. बाहरी तापमान के अनुसार उसे संतुलित बनाए रखना भी जरूरी होता है. अत: पर्याप्त मात्रा में लस्सी, नारियल पानी व सादे पानी का सेवन करें. चायकौफी का सेवन कम से कम करें.

– सब से पहले चेहरे और गरदन पर बेस और प्राइमर लगाएं. प्राइमर आप की त्वचा में पीएच को संतुलित करेगा और त्वचा पसीने से ज्यादा औयली नहीं दिखेगी. इस से मेकअप ज्यादा देर तक टिकेगा. अगर त्वचा औयली है और पसीना ज्यादा आता है तो मेकअप से पहले बर्फ की मदद से कोल्ड कंप्रैशन ले सकती हैं. कमरे का तापमान भी माने रखता है. ध्यान रखें कि तापमान में नमी या गरमी ज्यादा न हो. बेस लगाने के बाद वाटरप्रूफ फाउंडेशन या सूफले अथवा सिलिकौन बेस एअरब्रश फाउंडेशन लगाएं. आंखों के मेकअप के लिए मैटेलिक, शिमर, मैट आईशैडो चुनें, जो मानसून की शादी के लिए उचित विकल्प हैं.

– मेकअप करने के बाद मेकअप फिक्सर स्प्रे लगाना न भूलें. यह बाजार में आसानी से मिलता है और इसे इस्तेमाल करना भी बेहद आसान है. स्प्रे को चेहरे से 6 इंच दूर रख कर स्प्रे करें. यह मेकअप को लौक कर देगा और वह लंबे समय तक टिका रहेगा.

– अगर किसी शादी या सगाई के समारोह में जा रही हैं तो कपड़े ऐसे हों, जिन में सहज और आरामदायक महसूस करें. कपड़े शरीर से चिपके नहीं होने चाहिए, क्योंकि पसीने के कारण तंग कपड़ों में असहजता महसूस होती है.

– आजकल हलके आभूषण फैशन में हैं. मौनसून की शादी के लिए फ्लोरल, वुडेन या शैल के नैकपीस चुन सकती हैं. अगर चाहें तो मैटल का कोई हलका पीस भी पहन सकती हैं.

– कपड़ों और आभूषणों के बाद बात आती है फुटवियर की. फुटवियर ऐसा हो जिस में हवा का आवागमन आसानी से हो सके और पैरों में ज्यादा पसीना न आए.

– मौनसून की शादी में बालों को कर्ल करने से बचें, क्योंकि ये नमी के कारण जल्दी खुल जाएंगे और आप का हेयरस्टाइल खराब दिखने लगेगा. इस मौसम में बन, पफ, क्रौस ब्रैड्स, साइड फ्रैंच ब्रैड्स चुन सकती हैं.       

– आसमीन मुंजाल, ब्यूटी ऐक्सपर्ट

 

परनारी के प्यार में

दोपहर का वक्त था. वंदना नहा कर बाथरूम से निकली तभी ‘भाभीभाभी’ कहता हुआ गणेश उस के घर आ पहुंचा. उस समय वंदना के शरीर पर मात्र पेटीकोटब्लाउज था. उस के जुल्फों से पानी की बूंदें टपक रही थीं. गणेश की निगाहें वंदना के मखमली बदन पर जैसे पानी की बूंदों की तरह चिपक कर रह गई थीं. गणेश की इस हरकत को वंदना समझ रही थी. वह न तो शरमाई और न ही वहां से भाग कर दूसरे कमरे में गई. बल्कि वह नजाकत से चलते हुए उस के और करीब आ गई. गणेश रिश्ते से उस का देवर लगता था. उन के बीच अकसर मजाक भी होता रहता था. वंदना उस के एकदम करीब आ कर बोली, ‘‘गणेश, खड़े क्यों हो, बैठ जाओ न.’’

वंदना के कहने के बावजूद गणेश चारपाई पर नहीं बैठा, बल्कि खड़ेखड़े उसे अपलक निहारता रहा. उस के मन में कोई तूफान मचल रहा था. वंदना मादक मुसकान बिखेरती हुई मुड़ी और अंदर वाले कमरे में चली गई. गणेश तब भी अपनी जगह जमा रहा. वंदना कुछ देर बाद बाहर आई तो गणेश की आंखें फिर उस के चेहरे पर टिक गईं. आखिर वंदना से रहा नहीं गया तो उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है गणेश, तुम आज मुझे इस तरह से क्यों देख रहे हो?’’

‘‘बता दूं?’’ गणेश ने वंदना की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘भाभी, तुम मुझे बहुत खूबसूरत लगती हो. तुम्हारी अदाएं मेरे अंदर बेचैनी पैदा कर रही हैं.’’

गणेश की बात सुन कर वंदना के मन में भी हलचल सी मच गई. वह आगे बढ़ी और गणेश का हाथ थाम कर बोली, ‘‘सच कहूं गणेश, तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो. मैं तो तुम्हारे लिए ही सजतीसंवरती हूं. राजू को तो मेरी कद्र ही नहीं है.’’

वंदना के इतना कहते ही गणेश का खुद पर काबू नहीं रहा. उस ने वंदना को अपनी आगोश में भींच लिया. जब 2 जवान बदन मिले तो आग लगनी लाजिमी थी. दोनों हाथ एकदूसरे के बदन पर रेंगने लगे और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. वंदना से अवैध संबंध कायम होने के बाद तो गणेश ने उस के पति राजू से दोस्ती और बढ़ा ली ताकि दोस्ती की आड़ में उस का खेल चलता रहे. रविवार को राजू की छुट्टी रहती थी. गणेश सुबह ही राजू के घर पहुंच जाता. वह खुद अपने साथ मीट और शराब की बोतल ले जाता. फिर दोपहर को दारू का दौर शुरू हो जाता. राजू को फ्री में पार्टी मिल जाती. वह गणेश के मकसद को काफी दिनों तक नहीं समझ पाया. गणेश और वंदना राजू की इस बेवकूफी पर खुश होते थे.

13 दिसंबर, 2016 की सुबह उत्तर प्रदेश के औरैया जिले से करीब 40 किलोमीटर दूर तिर्वा-बेला रोड पर स्थित रसूखपुर गांव के कुछ लोग फार्महाउस की तरफ जा रहे थे, तभी उन्हें एक लाश दिखाई दी. यह गांव थाना झींझक के अंतर्गत आता था. किसी ने लाश मिलने की सूचना फोन द्वारा थाना झींझक पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव पुलिस बल के साथ गांव रसूखपुर पहुंचे. लाश युवक की थी, जिस की उम्र यही कोई 30-32 साल थी. उस के गले में एक अंगौछा बंधा था, इसलिए लग रहा था कि उस की हत्या गला घोंट कर की गई थी. मृतक काले रंग की पैंट, चैकदार कमीज और ग्रे कलर का स्वेटर पहने था. उस के एक पैर का जूता वहीं उतरा पड़ा था. श्रीप्रकाश यादव घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थे कि एक महिला एक बूढ़े व्यक्ति के साथ भीड़ को हटा कर लाश के पास आई. लाश देख कर दोनों फूटफूट कर रोने लगे. पुलिस समझ गई कि मृतक जरूर इन्हीं का संबंधी है. थानाप्रभारी ने महिला को धैर्य बंधा कर पूछताछ की तो पता चला कि लाश उस के पति राजू की थी.

महिला का नाम वंदना था और उस के साथ जो बूढ़ा था, उस का नाम हरीराम था. वह मृतक का बाप था. शव की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने पंचनामा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए औरैया के जिला अस्पताल भिजवा दिया.

पुलिस ने हरीराम की तहरीर पर भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर विवेचना शुरू कर दी. पुलिस ने सब से पहले मृतक की पत्नी वंदना से पूछताछ की. उस ने बताया कि उस का पति सीधासादा आदमी था. उन का न किसी से झगड़ा था और न ही कोई लेनदेन.

वह सुबह काम पर जाते थे तो रात 8 बजे तक घर लौटते थे. लेकिन कल रात वह नहीं लौटे. रात भर वह उन का इंतजार करती रही. सुबह उसे पड़ोसियों से पता चला कि फार्महाउस के पास किसी की लाश पड़ी है तो वह ससुर के साथ वहां पहुंची तो लाश देख कर पता चला कि लाश उस के पति की है. पूछताछ में हरीराम ने बताया था कि राजू एकदम सीधासादा था, जबकि उस की बहू वंदना चंचल स्वभाव की थी. दोनों में ज्यादा पटती नहीं थी. अकसर दोनों में झगड़ा होता रहता था. इस की वजह थी पड़ोसी गणेश का उस के घर आनाजाना था. उसी को ले कर दोनों में झगड़ा होता रहता था. उस ने गणेश पर ही हत्या का शक जाहिर किया.

हरीराम के शक के आधार पर पुलिस ने गणेश के घर दबिश दी तो वह घर से फरार मिला. इस के बाद पुलिस ने वंदना से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि गणेश से उस के नाजायज संबंध थे. लेकिन पति की हत्या किस ने की, यह उसे पता नहीं है. इस के बाद पुलिस ने उसे छोड़ दिया.

18 दिसंबर, 2016 को पुलिस ने मुखबिर से मिली सूचना पर गणेश को झींझक के रूरा रोड स्थित मधुबन होटल से हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से राजू की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने गुनाह कबूल कर के राजू की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी— वंदना रसूखपुर गांव के ही रहने वाले दीपचंद की बेटी थी. वंदना के अलावा उन के 2 बेटे और थे. वह खेतीकिसानी कर के अपने परिवार का पालनपोषण करता था. वंदना सयानी हुई तो दीपचंद ने औरैया के ही कस्बा झींझक के रहने वाले हरीराम के बेटे राजू से उस का विवाह कर दिया. राजू के अलावा हरीराम की 2 और बेटियां थीं. राजू कानपुर के दादानगर में स्थित एक प्लास्टिक की फैक्ट्री में नौकरी करता था.

राजू सीधासादा युवक था, जबकि वंदना आकर्षक रूपरंग की तेजतर्रार व चंचल स्वभाव की युवती थी. वह न तो ससुर से परदा करती थी और न ही बड़ीबुजुर्ग महिलाओं से. उस के इस व्यवहार से उस के सासससुर नाराज रहते थे. उन्हें उस की यह आदत पसंद नहीं थी. आखिर दोनों अलग कमरा ले कर रहने लगे.

सासससुर से निजात मिलने के बाद वंदना और भी स्वच्छंद हो गई. उस का जहां मन होता, घूमने लगी. राजू तो सीधासादा था, उसे उस ने एक तरह से मुट्ठी में कर रखा था. वह जो कमा कर लाता, पत्नी को दे देता था. वंदना 2 बच्चों की मां बन गई.

2 बच्चों की मां बनने के बाद भी वंदना खूब बनसंवर कर रहती थी. जबकि राजू की पत्नी के प्रति रुचि कम हो गई. वह सुबह 8 बजे नौकरी के लिए निकलता तो रात 8 बजे तक घर लौटता था. इस तरह पूरे दिन वंदना अकेली रहती थी.

वंदना के घर के पास ही गणेश रहता था. 24 साल का गणेश काफी स्मार्ट था. 3 भाईबहनों में वह सब से छोटा था. कस्बे की ही एक जनरल स्टोर की दुकान पर वह काम करता था. वह वंदना को भाभी कहता था. देवरभाभी के नाते दोनों में हंसीमजाक भी होती रहती थी. गणेश अकसर वंदना के घर आता रहता था. इसी आनेजाने में वंदना का झुकाव गणेश की तरफ हो गया. वंदना की हंसीमजाक व छेड़छाड़ से गणेश समझ गया कि वंदना उस से क्या चाहती है. इस के बाद उस के मन में भी वंदना को पाने  की ललक जाग उठी.

आखिर एक दोपहर वह वंदना के घर पहुंचा और अपने दिल की बात उस से कह दी. इस के बाद उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए. फिर तो किसी न किसी बहाने गणेश राजू के घर पहुंच जाता और इच्छा पूरी कर निकल जाता. राजू की गैरमौजूदगी में गणेश का उस के घर आनाजाना लोगों के मन में शक पैदा करने लगा. फिर किसी ने यह बात राजू के कानों में भी डाल दी. पत्नी के बदले व्यवहार से राजू को वैसे ही शक था, पड़ोसी की बात सुन कर वह शक और ज्यादा मजबूत हो गया. वह वंदना और गणेश पर नजर रखने लगा. आखिर एक दिन राजू ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया. पत्नी को गणेश के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख कर उस का खून खौल उठा. पति को देख कर वंदना का चेहरा पीला पड़ गया. वहीं रंगेहाथ पकड़े जाने पर गणेश भाग गया.

राजू ने सारा गुस्सा पत्नी पर उतारा. पत्नी को जम कर पीटने के बाद उस ने उसे समझाया, ‘‘मुझे अच्छी तरह पता है कि गणेश मनचला है. दोस्ती का उस ने नाजायज फायदा उठाया. जरूर उस ने ही तुम्हारे साथ ज्यादती की होगी, वरना तुम बहकने वाली नहीं थी. मैं तुम्हें सुधरने का एक मौका देता हूं.’  पति की बातें सुन कर वंदना की जान में जान आई. उस ने पति की हां में हां मिलाई और अपने किए की माफी मांग ली. कुछ दिनों तो सब ठीक रहा. वंदना ने गणेश से दूरी बनाए रखी. पर मौका मिलते ही वह प्रेमी गणेश से फिर मिलने लगी. अब वे पूरी सावधानी बरतते थे. इस के बावजूद एक दिन दोनों को रंगरलियां मनाते राजू ने फिर पकड़ लिया.

इस बार राजू ने वंदना के साथसाथ गणेश की भी जम कर पिटाई की और उसे हिदायत दी, ‘‘तू मेरा दोस्त नहीं दुश्मन है. दोस्त बन कर तूने मेरी इज्जत पर डाका डाला. आस्तीन के सांप तू कान खोल कर सुन ले, आज के बाद अगर तू मेरे घर में दिखाई दे गया तो तेरा काम तमाम कर दूंगा.’’ उस समय तो गणेश और वंदना ने उस से माफी मांग ली थी, पर बाद में वे फिर अपने ढर्रे पर चलने लगे. राजू की धमकी से वंदना और गणेश डर तो गए थे, लेकिन मन ही मन दोनों राजू से खुन्नस रखने लगे थे. राजू पत्नी की इस बेवफाई से इतना टूट गया था कि वह शराब में डूबा रहने लगा. वह गुस्से में अकसर वंदना की पिटाई करता रहता था.

राजू से दोनों ही परेशान थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वे क्या करें? गणेश का एक हमदर्द था. गणेश ने उसे अपनी समस्या बताई तो उस ने समस्या से निजात पाने के लिए राजू को ठिकाने लगाने का सुझाव दिया. गणेश को उस का यह सुझाव पसंद आ गया. योजना के तहत गणेश ने राजू से फिर से दोस्ती गांठ ली. गणेश ने बारबार माफी मांगी तो राजू का गुस्सा ठंडा पड़ गया और उस ने उसे माफ कर दिया. सारे गिलेशिकवे भूल कर दोनों फिर से साथसाथ खानेपीने लगे.

12 दिसंबर, 2016 की रात 8 बजे जब राजू घर लौट रहा था तो झींझक बसस्टैंड के पास उसे गणेश मिल गया. दोनों में बातचीत होने लगी. राजू को शराब की तलब लगी थी, लेकिन उस के पास पैसे नहीं थे. गणेश को ऐसे ही मौके की तलाश थी. बसस्टैंड के पास स्थित शराब की दुकान से गणेश ने शराब की एक बोतल खरीदी. दोनों ने वहीं बैठ कर शराब पी. गणेश ने जानबूझ कर राजू को अधिक शराब पिलाई. शराब पीने के बाद राजू घर की ओर चला तो गणेश उसे बातों में उलझा कर घर के बजाय फार्महाउस की ओर ले गया. फार्महाउस कस्बे के पूर्वी छोर पर स्थित है. कभी यहां अनाज मंडी लगती थी, लेकिन अब यह खंडहर में तब्दील हो चुकी है. शाम ढलते ही यहां सन्नाटा पसर जाता है.

कुछ देर बाद राजू और गणेश फार्महाउस पहुंच गए. उस समय वहां अंधेरा था. उचित मौका देख कर गणेश ने अचानक राजू को धक्का दे कर गिरा दिया. अधिक नशा होने की वजह से राजू उठ नहीं सका. उसी बीच गणेश ने अंगौछे से उस का गला घोंट दिया. राजू की हत्या कर के गणेश घर लौट आया. पुलिस से बचने के लिए वह इधरउधर घूमता रहा. आखिर 5 दिनों बाद मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने उसे पकड़ लिया. पूछताछ करने के बाद पुलिस ने गणेश को औरैया की जिला अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हो सकी थी. जिस वंदना के लिए उस ने अपने हाथ दोस्त के खून से रंगे, क्या अब वह उस की हो पाएगी.      

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मुंहासों से यों पाएं छुटकारा

मौनसून अपने साथ बहुत सी समस्याएं भी ले कर आता है. उन में सब से ज्यादा परेशान करने वाली समस्या है पसीना. पसीना कई बार पिंपल्स का कारण भी बनता है. क्या हैं इस से बचने के उपाय, आइए बताते हैं:

– जब चेहरे पर पसीना आता है तो वह चेहरे को चिपचिपा बना देता है, जिस से धूल के कण चेहरे पर चिपक जाते हैं और रोमछिद्र बंद हो जाते हैं. इस से घमौरियों की समस्या होने लगती है. इस के अलावा कई महिलाओं की स्किन बहुत ज्यादा सैंसिटिव होती है. ऐसे में जब चेहरे पर पसीने की वजह से धूल चिपकती है तो उस में खुजली और रैशेज जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं.

– औयली स्कैल्प भी पिंपल्स का एक बड़ा कारण है. पसीने की वजह से औयली हुई स्कैल्प पिंपल्स को जन्म देती है.

– पसीने की वजह से चेहरा तैलीय न लगे, इसलिए कई महिलाएं चेहरे पर पाउडर लगा लेती हैं. अगर आप भी ऐसा करती हैं तो फौरन सावधान हो जाएं, क्योंकि पाउडर का ज्यादा प्रयोग रोमछिद्रों को ब्लौक कर मुंहासों की समस्या को जन्म देता है.

उपाय

– इस मौसम में जितना हो सके हलका मेकअप ही करें और सोने से पहले उसे साफ जरूर कर लें.

– औयल मेकअप प्रोडक्ट का प्रयोग न करें.

– क्ले मास्क का प्रयोग करें. इस से चेहरे पर पसीना कम आता है.

– 2 बूंदें लैमन जूस की रोज वाटर में मिला कर चेहरे पर लगाएं. फिर 10 मिनट बाद चेहरे को धो लें. इस से पसीने की वजह से चेहरे पर जमा हुआ अतिरिक्त औयल साफ हो जाता है और अगर मुंहासे हुए हों तो वे भी जल्दी ठीक हो जाते हैं.

– मस्टर्ड पाउडर में शहद मिला कर चेहरे पर लगाएं व

15 मिनट बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. इस से भी पसीने की समस्या कम होती है और पिंपल्स से भी राहत मिलती है.

– बर्फ को सूती कपड़े या तौलिए में लपेट कर चेहरे पर

1-2 मिनट तक रब करें. इस से भी पिंपल्स और अतिरिक्त तेल से मुक्ति मिलेगी.

इस के बारे में पुलत्स्या कैडल स्किन केयर सैंटर के डर्मैटोलौजिस्ट डा. विवेक मेहता का कहना है कि इसे करते वक्त आंखों के आसपास इस का प्रयोग न करें. इस के अलावा कभी इसे 2 मिनट से ज्यादा देर तक न करें. सब से महत्त्वपूर्ण बात बर्फ को कभी स्किन पर सीधे अप्लाई न करें वरना फायदे की जगह नुकसान उठाना पड़ सकता है.      

प्रेम बड़ा न रिश्ता सब से बड़ा रुपया

भारतीय टैनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस जब अभिनेता संजय दत्त की पूर्व पत्नी रिया पिल्लै के साथ लिव इन पार्टनर के रूप में रह रहा होगा, तो उसे लगा होगा कि वह कोई ट्रौफी अपने से ज्यादा चमत्कारी पैसे वाले से छीन लाया है. उसे क्या पता था कि वह एक जंजाल में फंस रहा है. अब लगभग 8 साल से लिव इन पार्टनर रह रहे उन का मुकदमा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है जहां अदालत ने भी हाथ झाड़ से लिए हैं. दरअसल, 2014 में रिया ने पेस के खिलाफ डोमैस्टिक वायलैंस ऐक्ट के तहत केस किया था.

रिया पिल्लै अब अलग होने के लिए 20 करोड़ और एक मकान मांग रही है. मजेदार बात यह है कि एक मकान वह संजय दत्त से भी तलाक के समय हथिया चुकी है. सुप्रीम कोर्ट के जजों ने चैंबर में बुला कर दोनों को समझानेबुझाने की कोशिश भी की पर बेकार, क्योंकि भूखी शेरनी को मालूम है कि उसे मनचाहा शिकार उस की शर्तों पर मिल जाएगा.

अदालतों में चल रहे हाई प्रोफाइल तलाक के मामलों में ज्यादातर में पत्नियां ही हावी होती हैं और उन का रुख होता है कि चाहे कुछ भी हो जाए उस पति को तो सबक सिखाना होगा जिस ने उस जैसी सुंदर, स्मार्ट औरत को छोड़ने की बात भी सोची. आखिर यों ही तो उस के बीसियों दीवाने नहीं हैं और दीवानों में अच्छीखासी हैसियत वाले भी हैं जो घर, पत्नी, धंधा छोड़ कर उस पर मंडराते रहते हैं और उसे साथ ले चलने में उन की गरदन शुतुरमुर्ग जैसी ऊंची हो जाती है. करिश्मा कपूर के साथ भी ऐसा ही हुआ था. सुनंदा पुष्कर भी उसी श्रेणी में आती है.

सुंदर स्मार्ट होने का मतलब यह नहीं होता कि उसे जहां चाहो भुना लो. यह एक जिम्मेदारी भी है अपने प्रति ही सही. ज्यादा अकड़ अकसर महंगी पड़ती है. जवानी अब ठीक है 4 दिन की नहीं होती या फिर साल भर तक चल जाती है पर उस के बाद जो तनाव व अकेलापन होता है वह शराब की बोतलों से दूर होता है. कितनी ही ट्रौफी पत्नियां अकसर अकेलेपन और निराशा की शिकार होती हैं. हां, जिन के बच्चे मां के प्रति अनुग्रहित होते हैं, वे जरूर आखिर तक अपने तेवर बनाए रख पाती हैं पर भारी कीमत देनी होती है. पतिपत्नी संबंध में ऊंचनीच नहीं तो बराबरी तो है ही. सुंदरता के बल पर औरतें अपने को विशिष्ठ समझेंगी तो पछताएंगी. रिया पिल्लै की मांग चाहे कितनी तार्किक हो पर अगर सुप्रीम कोर्ट के जज भी उसे समझा न पाएं तो मान लें कि वह कुछ अति दंभी ही है. बेचारा लिएंडर पेस.

मुझे एडवैंचर करने में बहुत मजा आता है : सिद्धार्थ मल्होत्रा

मौडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा ने करण जौहर की फिल्म ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ से फिल्मों में अपनी पहचान बनाई. दिल्ली के सिद्धार्थ मल्होत्रा को मौडलिंग के दौरान लगा कि कुछ अलग करने की आवश्यकता है और मुंबई आ कर करण जौहर के साथ ‘माई नेम इज खान’ के लिए सहायक निर्देशक का काम किया. इस के बाद करण जौहर ने उन्हें फिल्म का भी औफर दिया था. पहली फिल्म बतौर अभिनेता सफल होने के बाद उन्हें कई और फिल्मों में काम मिला, लेकिन इन में कुछ सफल तो कुछ असफल रहीं.

सिद्धार्थ लड़कियों के बीच अपने हैंडसम लुक के लिए काफी प्रसिद्ध हैं. पहली फिल्म ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ में आलिया भट्ट के साथ काम करने के बाद उन की दोस्ती आलिया से काफी बढ़ी है, वे दोनों कई बार किसी रेस्तरां या क्लब में साथसाथ भी देखे गए. इस बात को सिरे से नकारते हुए सिद्धार्थ कहते हैं कि आलिया सिर्फ उन की दोस्त है, इस से अधिक कुछ नहीं. वे अत्यंत शांतप्रिय हैं और हर बात का सोचसमझ कर जवाब देते हैं. इस समय वे न्यूजीलैंड टूरिज्म के दूसरी बार ऐंबैसडर बने हैं. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के मुख्य अंश :

ट्रैवल करना क्यों जरूरी है और आप को क्यों पसंद है?

यहां मेरा सिर्फयह मकसद नहीं कि मैं केवल यात्रा को प्रमोट करूं, बल्कि मुझे यहां आना भी अच्छा लगता है. अगर आप घर से निकल कर कहीं घूमने जाते हैं, तो आप की सोच बढ़ती है. आप को अच्छा महसूस होता है, साथ ही आप को ऐनर्जी भी मिलती है, जो आज की भागदौड़ भरी जिंदगी के लिए बहुत आवश्यक है. ये अनुभव आप को खुद करने की जरूरत है, जो आप में एक आत्मविश्वास जगाते हैं. जो चीजें मैं ने न्यूजीलैंड में देखी हैं, वे अद्भुत हैं. यह सब तनाव को कम करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है. हमारे यहां भी ऐसी सोच पैदा करने की आवश्यकता है. न्यूजीलैंड की संस्कृति भी बहुत अच्छी है, इस से आप प्रेरित होते हैं. मुझे एडवैंचर करने में बहुत मजा आता है.

इस के अलावा दिल्ली में इतना अधिक पर्यावरण प्रदूषण है कि वहां से निकल कर कहीं भी जाने पर मैं ताजगी महसूस करता हूं.

आप का फिल्मी सफर उतना सफल नहीं रहा, जितना होना चाहिए था, इस की वजह क्या रही?

मैं मुंबई से नहीं हूं, दिल्ली से आया हूं. ऐसे में एक विजन रख कर हमेशा चलने की जरूरत होती है. मेरा कोई गौडफादर यहां नहीं है जो मेरे हिसाब से फिल्में लिखी जाएं, जो मिला करता गया. अब मैं थोड़ा ध्यान रखता हूं कि फिल्में वही करूं जो मेरे लिए ठीक हों. लेकिन यह सोचने के बाद भी कुछ गलत हो जाता है. फिल्में नहीं चल पातीं. अभी तो मेरे काम की शुरुआत है कोशिश रहेगी कि आगे एक अच्छी फिल्म करूं.

संघर्ष का दौर खत्म हुआ है या नहीं?

अभी भी कुछ खास काम नहीं किया है, इसलिए संघर्ष का दौर अभी जारी है, क्योंकि मैं तसल्ली से बैठ कर सफलता को ऐंजौय नहीं कर सकता. रेस जारी है, जितनी सफलता मिली वह काफी है, लेकिन आगे और अधिक काम करना चाहता हूं.

किस बात से आप को डर लगता है?

डर इस बात से लगता है कि जो भी फिल्म करूं वह दर्शकों को पसंद आए ताकि वे मुझे देखने एक बार फिर हौल में जाएं. इस के लिए कुछ अलग करने की कोशिश हमेशा रहती है, जिसे ऐक्स फैक्टर कह सकते हैं. उस पर मैं अधिक ध्यान देता हूं.

कोई ड्रीम प्रोजैक्ट है?

ड्रीम प्रोजैक्ट है, मैं एक सुपर हीरो और नैगेटिव भूमिका निभाना चाहता हूं. अभी मैं एक मर्डर मिस्ट्री ‘इत्तफाक’ कर रहा हूं. उस में एक झलक सुपर हीरो की है पर पूरी तौर पर नहीं है. यह पुरानी फिल्म ‘इत्तफाक’ की रीमेक नहीं है. मैं ने पुरानी फिल्म नहीं देखी. मर्डर मिस्ट्री आजकल बहुत कम बन रही है इसलिए मैं इस फिल्म को करने में खुश हूं. निर्देशक जोया अख्तर, राजू हिरानी, इम्तियाज अली आदि सभी के साथ काम करना चाहता हूं.

फिटनैस पर कितना समय दे पाते हैं?

सप्ताह में 3 या 4 दिन वर्कआउट करता हूं, जिस में 45 मिनट से 1 घंटा तक समय दे पाता हूं, इस से कई बार रिकवरी भी नहीं हो पाती. अगर डांस की प्रैक्टिस करते हैं तो व्यायाम अपनेआप ही हो जाता है. मैं हमेशा शेप को बनाए रखने की कोशिश करता हूं.

क्या आप कभी अपनेआप को अकेला महसूस करते हैं?

ऐक्टिंग प्रोफैशन अपनेआप में अकेलेपन को लाता है, इस के लिए मैं अपने काम पर अधिक ध्यान देता हूं जिस में मैं अपने जोनर को बारबार बदलता रहता हूं. लवस्टोरी से ले कर ऐक्शन सब तरह की फिल्में करने की कोशिश करता हूं, उस से मुझे बहुत उत्साह मिलता है. इस के अलावा अगर समय मिलता है तो कुछ दोस्त जो इंडस्ट्री से नहीं हैं उन के साथ समय बिताता हूं. वे बहुत सहयोग देते हैं. काम के अलावा यात्रा करना व पंजाबी खाना बहुत पसंद है. वैसे भी मैं बहुत फूडी हूं इसलिए हर न्यू चीज ट्राई करना पसंद करता हूं.

आप कई बार आलिया भट्ट के साथ दिखे हैं, क्या कुछ बताना चाहते हैं?

किसी के साथ घूमनाफिरना, इस में कोई बुराई नहीं है और हम दोनों अच्छे दोस्त हैं.  लोग क्या कहते हैं इस की मैं परवा नहीं करता.

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