Download App

उत्तर प्रदेश में अब बसों पर भी चढ़ा भगवा रंग

सपा और बसपा की नीली-हरी रंग की बसों की कभी भाजपा ने आलोचना की थी. उस समय भाजपा ने सलाह दी थी कि रंग बदलने की जगह पर बसों के हालात बदले जायें जिससे सफर करने वालों को सहूलियत हो. अब जब भाजपा खुद सत्ता में है, वह अपनी सीख पर अमल करने के बजाये बसों के रंगों को बदल कर भगवा करने में लगी है.

भाजपा ने अपनी इन नई बसों को संकल्प सेवा नाम दिया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 50 बसों से इसकी शुरुआत की है. उत्तर प्रदेश सरकार ने 4 सालों में 9563 गावों को इस बस सेवा से जोड़ने का संकल्प लिया है. अब तक 4766 गावों को जोड़ने का दावा प्रदेश सरकार कर रही है.

सरकार ने बताया है कि इन बसों में किराया 30 प्रतिशत दूसरी बसों से कम होगा. संकल्प बस सेवा की शुरुआत के समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ परिवहन मंत्री स्वतंत्र देव सिंह भी उपस्थित थे.

उत्तर प्रदेश में बसों का किराया सबसे मंहगा है. सड़कों पर कई तरह की बसें दौड रही हैं. हर सरकार अपने कार्यकाल में एक नई बस सेवा शुरू कर देती है. इसके नाम सरकार के नाम से जुड़े होते हैं. पार्टी के रंग में बसों को रंग दिया जाता है. उत्तर प्रदेश अकेला ऐसा प्रदेश है जहां एक ही सड़क पर चलने के लिये अलग अलग तरह की कई बसें मिलती हैं. इसके बाद भी प्राइवेट डग्गा मार बसें भी लोगों को सफर करा रही हैं.

असल में हर सरकार जनता के पैसे पर अपनी पार्टी का प्रचार करना चाहती है. इसके लिये वह नई बसों को खरीद कर उनमें पार्टी का रंग भर देती है. बसों के नये होने से यात्रियों को थोड़ा आराम का अनुभव होता है. देखा जाए तो बसों के आने या सड़कों के बनने का प्रभाव यातायात में लगने वाले समय पर नहीं पड़ता है.

वोल्वो जैसी एसी बसों में किराया दोगुना होने के बाद भी एक शहर से दूसरे शहर की दूरी तय करने में समय नहीं बचता. नई नई बस सेवाओं के शुरू होने से किराया बढ़ जाता है. सरकार दिखाने के लिये कुछ सेवाओं का किराया कम कर देती है. इसके बाद भी बाकी सेवाओं में पैसा कम नहीं होता है. भाजपा भी दूसरे दलों की तरह ही अब रंग बदलने में यकीन कर रही है. भाजपा सरकार अब हर काम में भगवा रंग को सामने रखने लगी है. संकल्प बस सेवा इसका एक उदाहरण है. बसों के रंग के सहारे योगी सरकार पार्टी के रंग को लोगों तक पहुचाने में लगी है. सरकार हर काम में हिन्दुत्व के रंग को ही आगे कर रही है.

रातों रात सुपरस्टार बनने वाली डिंपल कपाड़िया की कहानी पढ़िए यहां

सुपर स्टार राजेश खन्ना की पत्नी डिंपल कपाड़िया जितना फिल्मों की वजह से चर्चा में रही हैं, उतनी ही सुर्खियां उन्हें निजी जिंदगी के चलते भी मिलीं हैं. आइए जानते हैं डिंपल की जिंदगी से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियां.

  • डिंपल कपाड़िया बौलीवुड की ऐसी नायिका हैं जो रातो रात एक ही फिल्म से स्टार बन गईं थीं. 8 जून, 1957 को मुंबई में जन्मीं डिंपल को महज 15 साल की उम्र में राज कपूर ने अपनी फिल्म ‘बौबी’ में बतौर नायिका ले लिया. यह फिल्म सुपरहिट हुई और डिंपल एक ही फिल्म से फिल्म इंडस्ट्री की बड़ी नायिका बन गयीं.
  • इसके बाद उनकी जिंदगी ने अलग राह पकड़ ली. अपनी पहली फिल्म से ही डिंपल रातों रात स्कूल गर्ल से ‘सेक्सी रोमांटिक’ हीरोइन बनकर चमक उठीं. पहली फिल्म के लिए ही उन्हें फिल्मफेयर के बेस्ट एक्ट्रेस अवौर्ड से नवाजा गया.

  • यह फिल्म जिस साल रिलीज हुई उसी समय डिंपल कपाड़िया ने अपने से 15 साल ज्यादा उम्र वाले राजेश खन्ना से शादी रचा ली. राजेश खन्ना उन दिनों फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार थे.
  • मुंबई में समुद्र किनारे टहलते हुए एक दिन अचानक राजेश खन्ना ने डिंपल के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. डिंपल इस प्रस्ताव को मना नहीं कर पाईं. उनकी शादी फिल्म इंडस्ट्री के लिए कौतुक का विषय थी.
  • शादी के बाद डिंपल कपाड़िया फिल्मों से दूर हो गयीं. वह एक अच्छी पत्नी बनकर राजेश जिंदगी में शामिल हुईं. लेकिन इन दोनों का यह साथ बहुत दिन तक नहीं चला.
  • राजेश खन्ना का कैरियर जैसे जैसे उतार पर जाता गया उनके दांपत्य जीवन में वैसे वैसे खटास बढ़ती गयी. राजेश यह भी नहीं चाहते थे कि डिंपल फिल्मों में काम करें. इस बीच डिंपल दो बेटियों, ट्विंकल और रिंकी की मां बन गई.

  • राजेश और डिंपल के बीच का यह टकराव आखिरकार अलगाव में बदल गया. 1984 में राजेश खन्ना से अलग होने के बाद वह दोबारा फिल्मों में आईं. 1985 में उन्होंने एक बार फिर ऋषि कपूर के साथ जोड़ी बनाई. इन दोनों की फिल्म ‘सागर’ सुपरहिट रही.
  • इसके बाद ‘अर्जुन’, ‘कब्जा’, ‘जख्मी’ ‘औरत’, ‘राम लखन’, ‘क्रांतिवीर’ जैसी कई हिट फिल्मों के साथ डिंपल का नाम जुडा. उन्होंने समांतर फिल्मों में भी काम किया. ‘काश’, ‘लेकिन’, ‘रुदाली’, ‘बांग्ला’ जैसी फिल्में चर्चित रहीं.
  • डिंपल कपाड़िया ने अपने फिल्मी जीवन की तीसरी पारी भी खेली. ‘फिर कभी’, ‘लक बाइ चांस’, ‘दबंग’,  ‘पटियाला हाऊस’, ‘कौकटेल’ जैसी सफल फिल्मों का वह हिस्सा रहीं.

  • राजेश खन्ना जब बीमार हुए तो डिंपल कपाड़िया उनके साथ भी कुछ दिनों तक रहीं. डिंपल से अलग होने के बाद राजेश खन्ना अनीता आडवाणी नाम की महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगे थे.
  • कुछ समय पहले डिंपल और सनी देओल को विदेश में एक साथ देखा गया था, जिससे ये अंदाजा लगाया जा रहा था कि वे दोनो एक दूसरे के साथ रिश्ते में हैं क्योकि दोनो ने एक दूसरे का हाथ पकड़ रखा था.

क्या आपको पता हैं गूगल के ये मजेदार ट्रिक्स

आज के समय में जब हमें कुछ सर्च करना होता है तो हम सीधे गूगल पर सर्च करते हैं, लेकिन क्या आपको पता है google में कुछ ऐसे ट्रिक्स और सीक्रेट हैं जिन्हें टाइप करने के बाद कभी google को आप पानी में डूबते हुए देखेंगे तो कभी पूरा का पूरा पेज ही उल्टा पुल्टा हो जाएगा.

ये कुछ ऐसे सीक्रेट ट्रिक्स हैं जिन्हें बहुत कम लोग ही जानते हैं. आइए आप भी जानिए ऐसे ही कुछ अनजाने व मजेदार गूगल ट्रिक्स.

Google In 1980

इस ट्रिक से आप जान सकते हैं कि गूगल जब स्टार्ट हुआ था तब किस तरह का दिखता था और कैसे काम करता था. गूगल पर Google in 1980 लिखकर I’m Feeling Lucky पर क्लिक करते ही फोटो में दिख रहा पेज खुल जाएगा और आप महसूस व देख पाएंगे कि 1980 में गूगल कैसा था.

Google Dinosaur Game

अगर आपका इन्टरनेट नहीं चल रहा और आप बोरियत महसूस कर रहे हों तो ये औफलाइन गेम आप बिना इंटरनेट के भी खेल सकते हैं. याद रखें ये गेम सिर्फ तभी चलेगा जब आप औफलाइन होंगे यानी कि जब आपका इंटरनेट नहीं चल रहा होगा. जब आपका इंटरनेट बंद हो और आप गूगल में कुछ भी सर्च कर रहें हों तब आपको ये error मैसेज दिखाई देगा Unable to Connect to the internet. बस तब आप ये डायनासोर वाला गेम खेल सकते हैं.

Google Snake

गूगल स्नेक एक ऐसा गेम है जो अमूमन हर किसी ने खेला ही होगा. देर किस बात की गूगल ट्रिक्स की मदद से कीजिए अपने बचपन की यादें ताजा करें. गूगल पर Google Snake लिखकर I’m Feeling Lucky पर क्लिक करें और गेम खेलें.

Gravity Google

गूगल पर ग्रेविटी गूगल लिख कर I’m Feeling Lucky पर क्लिक करें. इसके बाद आपको गूगल का पूरा पेज उड़ता उड़ता सा दिखेगा भरोसा ना हो तो करके देख लें.

Flip a Coin Google Tricks

जब आप कोई खेल खेल रहे होते हो तो आप पहला दांव किसका आएगा, ये जानने के लिए टौस उछालते हो और टौस उछालने के लिए सिक्के की जरूरत होती है. अब आपको सिक्के की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि ये काम अब Google Trick करेगा. जानिए कैसे. गूगल पर Flip a Coin लिखें और फिर गूगल का जादू देखें.

Do a Barrel Roll Google Tricks

गूगल पर Do a Barrel Roll लिखकर सर्च करें. ऐसा करते ही आपको समझ में आ जाएगा कि गूगल पेज के साथ क्या हुआ.

Google Gravity Pacman

इस गूगल ट्रिक की मदद से आप pacman गेम खेल सकते हैं. गूगल पर Gravity Pacman लिखकर I’m Feeling Lucky पर क्लिक करते ही आपके सामने ये गेम चालू हो जाएगा.

Google Calculator Easter Eggs

number of horns on a unicorn the loneliest number से कैलकुलेटर खुलेगा. इसमें कैलकुलेटर सादा और साइंटिफिक दोनों होंगे. गूगल पर number of horns on a unicorn the loneliest number लिखकर सर्च करें. आपके सामने कैलकुलेटर खुलेगा और आप इसमें अपना हिसाब किताब कर सकेंगे.

Google Sphere

गूगल पर Google Sphere लिखकर I’m Feeling Lucky पर क्लिक करें और गूगल स्फीयर का मजा लें.

पुलिस के सामने जब काम न आईं शिखा की अदाएं

मुंबई के बारे में कहावत है कि यह शहर कभी नहीं सोता. दिन हो या रात, लोग अपने कामों मे लगे रहते हैं. लोग भी लाखों और काम भी लाखों. लेकिन

एक सच यह भी है कि मुंबई दिन के बजाय रात की बांहों में ज्यादा हसीन हो जाती है. इस की वजह यह है कि ज्यादातर फिल्मों, सीरियल्स की शूटिंग तो रात में होती ही है, यहां के होटल, रेस्तरां और पब भी रात को खुले रहते हैं.

इस के अलावा  फिल्मी और टीवी के सितारों तथा बडे़ लोगों की पार्टियां भी रात को ही होती हैं. बड़ीबड़ी पार्टियां हों या शूटिंग, उन में ग्लैमर न हो, ऐसा नहीं हो सकता. मध्यमवर्गीय लोगों के लिए पब हैं, जहां नाचगाने और शराब के साथ ग्लैमर भी होता है. यही वजह है कि मुंबई के लाखोंलाख लोग सुबह नहीं, बल्कि शाम का इंतजार करते हैं.

मुंबई की हर शाम समुद्र की लहरों को चूम कर धीरेधीरे रात की बांहों में सिमटने लगती है और समुद्र ढलती शाम का मृदुरस पी कर जवान होती रात में मादकता भर देता है. 14 मई, 2017 की रात का भी कुछ ऐसा ही हाल था. उस रात मुंबई के एक मशहूर होटल के पब में एक पार्टी चल रही थी. गीतसंगीत ऐसी पार्टियों की जान होता है. ऐसी पार्टियों में फोनोग्राम रिकौर्ड्स पर म्यूजिक प्ले करने वालों को डिस्को जौकी यानी डीजे कहा जाता है. ये लोग संगीत की धड़कन होते हैं.

विभिन्न संगीत उपकरणों माइक्रोफोन, सिंथेसाइजर्स, इक्वलाइजर्स, सिक्वेंसर, कंट्रोलर व इलेक्ट्रौनिक म्यूजिक की-बोर्ड्स व डीजे म्यूजिक सौफ्टवेयर की मदद से ऐसी पार्टियों में गीतसंगीत का ऐसा समां बंध जाता है कि डांस फ्लोर पर युवाओं के हाथपैर ही नहीं, पूरा शरीर थिरकने लगता है. डांस फ्लोर पर हिपहौप, रागे, सनरौक, यूनिक फ्यूजन की आवाजें आती रहती हैं. मुंबई में डीजे अनुबंध के आधार पर अपना प्रोग्राम करते हैं.

मुंबई के होटलरेस्त्रां ने अपने पब में गीतसंगीत की हसीन शाम सजाने के लिए विभिन्न डीजे से अनुबंध किए हैं. मायानगरी में ऐसे डीजे की तादाद सैकड़ों में होगी, लेकिन इन में 20-30 डीजे ही ऐसे हैं, जिन की वजह से होटलरेस्त्रां के पब म्यूजिकल ईवनिंग के नाम पर हसीन और जवान होते हैं. डीजे के इस पेशे में अधिकांश महिलाएं हैं.crime story

डिस्को जौकी की भीड़ में डीजे अदा ने कुछ ही महीनों में अपनी धाक जमा ली थी. वह मुंबई के युवा वर्ग में संगीत की धड़कन के रूप में उभर कर सामने आई थी. अदा अनुबंध के आधार पर अलगअलग होटलों और रेस्त्राओं के पब में प्रोग्राम करती थी. उस के लाइव कंसर्ट में डांस फ्लोर पर युवा झूम उठते थे. पुराने फिल्मी गीतों से ले कर क्लासिकल, रीमिक्स व वेस्टर्न संगीत में डीजे अदा ने महारथ हासिल कर ली थी. उस ने अपनी अदाओं से हजारों फैंस बना लिए थे, जो संगीत से ज्यादा उस के दीवाने थे.

डीजे अदा के कार्यक्रम में अभी कुछ देर बाकी थे, लेकिन डांस फ्लोर पर संगीत व डांस प्रेमी जुटना शुरू हो गए थे. संगीत प्रेमियों की इस भीड़ में जयपुर से आए कुछ युवाओं की टोली भी शामिल थी. जयपुर की इस टोली के युवा डांस फ्लोर पर अलगअलग हिस्सों पर खड़े हो कर आनेजाने वाले पर नजर रखे हुए थे.

इस टोली की महिला सदस्य डांस फ्लोर पर आगे की ओर उस जगह खड़ी थीं, जहां म्यूजिक उपकरण लगे हुए थे. यह टोली भी दूसरे संगीत प्रेमियों की तरह डीजे अदा का इंतजार कर रही थी. हालांकि इस टोली के सदस्यों ने डीजे अदा को ना तो पहले कभी किसी प्रोग्राम में देखा था ना ही कहीं और. इस टोली के सदस्यों के पास डीजे अदा की फोटो मोबाइलों में सेव थी. इसी फोटो के आधार पर वे अदा को पहचान सकते थे.

खैर, इंतजार खत्म हुआ. पब में डीजे के साथी कलाकारों ने अपने उपकरण बजा कर लाइव कंसर्ट की तैयारी शुरू की. इस का मतलब था कि डीजे अदा अब परफौरमेंस देने के लिए फ्लोर पर आने वाली थी. म्यूजिकल ड्रम की तेज आवाजों के बीच हैडफोन लगाए हुए डीजे अदा फ्लोर पर आई और अपना दायां हाथ मिला कर दर्शकों से हैलो कहा. इसी के साथ तेज म्यूजिक बजने लगा और डीजे अदा अपनी अदाओं पर संगीत प्रेमियों के साथ थिरकने लगी. अदा को देख कर जहां कुछ युवा उस की खूबसूरती पर आहें भरने लगे, वहीं संगीत प्रेमी अपनी फरमाइशें करने लगे.

जयपुर की टोली ने अपने मोबाइल में सेव डीजे अदा का फोटो देख कर यह निश्चित कर लिया कि वे सही ठिकाने पर आए हैं. अदा का प्रोग्राम जैसेजैसे आगे बढ़ता गया, वैसेवैसे डांस फ्लोर पर जयपुर की टोली का शिकंजा कसता चला गया.

करीब डेढ़, दो घंटे बाद जब अदा का प्रोग्राम खत्म हुआ तो उस ने होंठों पर अपनी हथेली ले जा कर हवा में प्यार बिखेरते हुए श्रोताओं को गुडनाइट कहा. जब वह डांस फ्लोर से जाने लगी, तभी जयपुर की टोली ने उसे चारों ओर से घेर लिया. उस टोली में महिलाएं भी थीं.

एकाएक इस तरह कुछ लोगों के घेरे जाने से अदा ने समझा कि वे लोग संभवत: संगीत के रसिया होंगे, जो उस के प्रोग्राम को देख कर खुश हुए होंगे और उसे धन्यवाद कहने आए होंगे या किसी पार्टी में डीजे के लिए बात करने आए होंगे.

अदा की उम्मीद के विपरीत उस टोली में  से एक जवान ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘शिखा…शिखा तिवाड़ी, तुम्हारा खेल खत्म हो गया है.’’

इस के साथ ही उस जवान के साथ खड़ी महिला ने डीजे अदा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘शिखा हम लोग जयपुर के एसओजी (स्पेशल औपरेशन ग्रुप) के लोग हैं. तुम यहां कोई तमाशा खड़ा मत करना, वरना तुम्हारी पोल खुल जाएगी और जो लोग अब तक तुम्हारी अदाओं पर थिरक रहे थे, वे तुम पर थूकेंगे.’’

अदा उर्फ शिखा तिवाड़ी समझ गई कि जिस एसओजी से बचने के लिए वह जयपुर से भाग कर मुंबई आई थी, वह अब उसे छोड़ने वाली नहीं है. उस ने कोई विरोध नहीं किया. वह चुपचाप जयपुर से आई एसओजी टीम के अफसरों के साथ चल दी.

जयपुर की एसओजी टीम ने मुंबई के संबंधित पुलिस अधिकारियों को मामले की जानकारी दी और शिखा को पकड़ कर ले जाने की बात बताई. यह बात इसी साल 14 मई की रात की है.crime story

दरअसल, मई के पहले सप्ताह में राजस्थान की एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन को सूचना मिली थी कि दुष्कर्म के झूठे मुकदमे दर्ज कराने की धमकी दे कर लोगों से करोड़ों रुपए ऐंठने वाले हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह की सदस्या शिखा तिवाड़ी उर्फ अंकिता उर्फ डीजे अदा आजकल मुंबई में है. मुंबई में वह बड़े होटलरेस्त्राओं में डिस्को जौकी (डीजे) का काम करते हुए लाइव कंसर्ट देती है.

जयपुर में हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह का खुलासा होने के बाद शिखा तिवाड़ी दिसंबर, 2016 में फरार हो गई थी. एसओजी लगातार उस की तलाश कर रही थी. लेकिन उस का कोई पता नहीं चल रहा था. एक दिन एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. को फेसबुक के माध्यम से पता चला कि शिखा तिवाड़ी ने आजकल डीजे अदा के नाम से मुंबई में अपना म्यूजिकल ग्रुप बना रखा है. वह डीजे अदा के नाम से ही मुंबई में रह रही है.

एसओजी को डीजे अदा की ओर से फेसबुक पर पोस्ट की गई उस की लाइव कंसर्ट की फोटो भी मिल गई. इन फोटो से तय हो गया कि शिखा तिवाड़ी ही डीजे अदा है. इस के बाद आईजी ने डीजे अदा की तलाश में जयपुर से अपने तेजतर्रार मातहतों की एक टीम मुंबई भेजी. इस टीम ने कई होटलरेस्त्राओं में पूछताछ के बाद पता लगाया कि डीजे अदा कहांकहां प्रोग्राम करती है. इस के बाद जयपुर से गई एसओजी की टीम ने 14 मई की रात मुंबई से अदा उर्फ शिखा तिवाड़ी को पकड़ लिया.

शिखा तिवाड़ी को एसओजी की टीम जयपुर ले आई. शिखा से की गई पूछताछ और दिसंबर, 2016 में जयपुर में उजागर हुए हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह की जांचपड़ताल के बाद जो कहानी उभर कर सामने आई, वइ इस तरह थी—

दिसंबर 2016 में एसओजी को हत्या के एक मामले में गिरफ्तार आरोपी से पूछताछ में पता चला था कि जयपुर में एक ऐसा गिरोह सक्रिय है, जो हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करता है. इस गिरोह में कुछ वकील, पुलिस वाले, प्रौपर्टी व्यवसाई और फर्जी पत्रकार शामिल हैं. यह गिरोह खूबसूरत युवतियों की मदद से रईस लोगों को ब्लैकमेल करता है.

इस गिरोह के लोग पहले रईस लोगों को चिह्नित करते हैं, फिर उन्हें फांसने के लिए उन की दोस्ती गिरोह की खूबसूरत लड़कियों से कराते हैं. इस दोस्ती के लिए ये लोग फार्महाउस पर सेलीब्रेशन के नाम पर पार्टियां आयोजित करते हैं. इन छोटी पार्टियों में पीनेपिलाने का दौर भी चलता है. गिरोह की लड़कियां इन पार्टियों में अपना मोबाइल नंबर दे कर अपने शिकार का नंबर लेती हैं. इस के बाद उन का मुलाकातों का दौर शुरू होता है.

जल्दीजल्दी की कुछ मुलाकातों में ये युवतियां अपने शिकार को अपनी सुंदरता के मोहपाश में इस तरह बांध लेती हैं कि वह उस के साथ हमबिस्तर होने के लिए तड़पने लगते हैं.

शिकार को तड़पा कर ये युवतियां हमबिस्तर होने का कार्यक्रम तय करती हैं. इस के लिए वे कई बार जयपुर से बाहर भी जाती हैं. रईसों के साथ हमबिस्तर होते समय गिरोह के सदस्य युवती की मदद से या तो गुप्त कैमरे से या मोबाइल से क्लिपिंग बना लेते हैं. अगर इस में वे सफल नहीं होते तो युवतियां हमबिस्तर होने के बाद अपने अंतर्वस्त्र सुरक्षित रख लेती हैं. इस के बाद उस रईस को धमकाने का काम शुरू होता है. सब से पहले युवतियां अपने उस रईस शिकार को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करने की धमकी देती हैं.

अधिकांश मामलों में युवतियां पुलिस में शिकायत दे भी देती हैं. इस के बाद फर्जी पत्रकार व वकील का काम शुरू होता है. वे उस रईस को बदनामी का डर दिखा कर समझौता कराने की बात करते हैं. जरूरत पड़ने पर बीच में पुलिस वाले भी आ जाते हैं. रईस अपनी इज्जत बचाने के लिए उन से सौदा करता है. रईस की हैसियत देख कर 10-20 लाख रुपए से ले कर एक करोड़ रुपए तक मांगे जाते हैं. गिरोह के लोग उस शिकार पर दबाव बनाए रखते हैं. आखिर शिकार बने व्यक्ति को सौदा करना पड़ता है.

यह गिरोह खासतौर से जयपुर सहित राजस्थान के बड़े शहरों के नामचीन प्रौपर्टी व्यवसायियों व बिल्डरों, मोटा पैसा कमाने वाले डाक्टरों, ज्वैलर्स, होटल-रिसौर्ट संचालक और ठेकेदार आदि को अपना शिकार बनाता है. इस काले धंधे में एक एनआरआई युवती भी शामिल है.

ये लोग गिरोह की युवती को प्लौट या फ्लैट खरीदने के बहाने प्रौपर्टी व्यवसाई अथवा बिल्डर के पास भेजते हैं और उसे फंसा लेते हैं. इसी तरह लड़कियों को होटल और रिसौर्ट संचालकों के पास नौकरी के बहाने भेजा जाता है. डाक्टर के पास इलाज कराने के बहाने युवतियों को भेजा जाता था. सौदा होने के बाद युवती और उस के गिरोह के सदस्य स्टांप पर लिख कर दे देते थे कि दुष्कर्म नहीं हुआ था.

शिखा तिवाड़ी जयपुर में गुरु की गली, सीताराम बाजार, ब्रह्मपुरी के रहने वाले आदित्य प्रकाश तिवाड़ी की बेटी थी. हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह के सदस्य अक्सर डिस्को बार में जाते थे. वहीं शिखा की मुलाकात अक्षत शर्मा से हुई. अक्षत ने शिखा को अपने गिरोह में शामिल कर लिया. इस गिरोह ने जयपुर के वैशालीनगर में मेडिस्पा नाम से हेयर ट्रांसप्लांट क्लीनिक चलाने वाले डा. सुनीत सोनी को अपने शिकार के रूप में चिह्नित किया. योजनाबद्ध तरीके से शिखा तिवाड़ी को हेयर ट्रीटमेंट कराने के बहाने डा. सुनीत सोनी के पास उन के क्लीनिक पर भेजा गया.

अप्रैल, 2016 में 2-4 बार इलाज के नाम  पर आनेजाने के दौरान शिखा ने डा. सोनी को अपने रूप के जाल फांस लिया. एक दिन उस ने डा. सोनी को बताया कि वह डिप्रेशन में आ गई है. शिखा ने डा. सोनी से कहा कि वह पुष्कर जा कर 2-4 दिन घूमना चाहती है, ताकि डिप्रेशन से बाहर आ सके. शिखा ने डाक्टर से कहा कि वह डिप्रेशन की स्थिति में अकेली पुष्कर नहीं जाना चाहती. जबकि साथ जाने के लिए कोई नहीं है. उस ने डा. सोनी पर घूमने के लिए पुष्कर चलने का दबाव डाला.

डा. सोनी जाना तो नहीं चाहते थे, लेकिन अपने डाक्टरी पेशे में पेशेंट की भावनाओं का खयाल रखते हुए वह शिखा के साथ पुष्कर घूमने जाने को तैयार हो गए. डा. सोनी के तैयार हो जाने के बाद शिखा ने गिरोह के सरगना की सलाह पर डा. सुनीत सोनी से पुष्कर के एक रिसौर्ट में कमरा बुक करवा लिया. तय कार्यक्रम के अनुसार, शिखा व डा. सोनी कार से पुष्कर चले गए. डा. सोनी शिखा को पुष्कर के रिसौर्ट में छोड़ कर उसी शाम जयपुर लौट आए. उन के जयपुर लौट जाने से शिखा को अपना मकसद पूरा होता नजर नहीं आया.

शिखा ने डा. सोनी को बारबार फोन कर बताया कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मैं डिप्रेशन में हूं. यहां अकेली रहूंगी तो कुछ भी हो सकता है. शिखा ने डाक्टर को इस तरह छोड़ कर चले जाने पर कई तरह के उलाहने भी दिए, साथ ही कहा भी कि अभी पुष्कर आ कर उसे वापस ले चले.

शिखा के उलाहनों से तंग आ कर डा. सोनी उसी रात अपनी गाड़ी ले कर पुष्कर गए. वहां रिसौर्ट के कमरे में ठहरी शिखा ने डा. सोनी पर ऐसा जादू चलाया कि वह रात को उसी के कमरे में ठहर गए. इस के अगले दिन डा. सोनी जयपुर आ गए.

2 दिन बाद अक्षत शर्मा व विजय उर्फ सोनू शर्मा डा. सुनीत सोनी के पास पहुंचे. दोनों ने खुद को मीडियाकर्मी बताया और टीवी चैनलों पर खबर चलाने की धमकी दी. उन्होंने शिखा से उस के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की धमकी दे कर एक करोड़ रुपए मांगे. लेकिन डा. सोनी ने उन्हें रुपए देने से इनकार कर दिया. इस पर गिरोह के सरगना वकीलों ने शिखा से डा. सुनीत सोनी के खिलाफ अजमेर जिले के पुष्कर थाने में भादंसं की धारा 376 के अंतर्गत बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवा दिया.

पुष्कर थाना पुलिस ने इस मामले में डा. सुनीत सोनी को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद गिरोह ने शिखा से समझौता करने के नाम पर डा. सोनी के पिता व भाई से एक करोड़ रुपए वसूल लिए. रकम लेने के बाद गिरोह के सदस्यों ने अदालत में शिखा के बयान बदलवा दिए. डा. सुनीत सोनी को बलात्कार के इस झूठे मुकदमे में 78 दिनों तक जेल में रहना पड़ा. उस समय डा. सुनीत सोनी ने जयपुर के वैशालीनगर थाने में लिखित शिकायत भी दी थी, लेकिन पुलिस  ने उस समय कुछ नहीं किया था.

बाद में जब एसओजी को जयपुर में हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह के सक्रिय होने की जानकारी मिली तो इस गिरोह से पीडि़त डा. सुनीत सोनी ने एसओजी में लिखित शिकायत दी. डा. सोनी की शिकायत पर जांचपड़ताल के बाद एसओजी ने 24 दिसंबर, 2016 को इस हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करने वाले गिरोह का खुलासा किया. एसओजी ने उस दिन सब से पहले 2 लोगों को गिरफ्तार किया. गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ में ही एसओजी को गिरोह में शामिल युवतियों के बारे में पता चला. इन में शिखा तिवाड़ी के अलावा एनआरआई युवती रवनीत कौर उर्फ रूबी, उत्तराखंड की युवती कल्पना और अजमेर की आकांक्षा आदि के नाम सामने आए.

गिरोह की पकड़धकड़ शुरू होेने पर शिखा तिवाड़ी जयपुर से भाग कर मुंबई चली गई. मुंबई में वह डीजे अदा के नाम से म्यूजिकल ग्रुप बना कर होटल, नाइट क्लब व बार में प्रोग्राम करने लगी. मुंबई पहुंच कर उस ने अपने पुराने मोबाइल नंबर बंद कर दिए थे और फेसबुक आईडी भी बदल ली थी.

मुंबई में वह अपने बौयफ्रैंड के साथ लोखंडवाला बैंक रोड, अंधेरी (वेस्ट) की एक बिल्डिंग में किराए के फ्लैट में रहती थी. मुंबई में रहते हुए उस के बौयफ्रैंड के इवेंट मैनेजर दोस्त ने शिखा से यह कह कर ढाई लाख रुपए ऐंठ लिए थे कि जयपुर में पुलिस अफसरों से उस की सेटिंग है, वह उस का नाम ब्लैकमेलिंग मामले में नहीं आने देगा.

बाद में जब शिखा को पता चला कि उस का नाम एसओजी थाने में दर्ज मुकदमे में है तो उस ने उस इवेंट मैनेजर से संपर्क किया. इस के बाद इवेंट मैनेजर भूमिगत हो गया. हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोह ने शिखा तिवाड़ी को डा. सुनीत सोनी को ब्लैकमेल करने के लिए पहले 10 लाख रुपए दिए थे, लेकिन बाद में उस से 5 लाख रुपए वापस ले लिए थे. बाकी रकम गिरोह के सदस्यों ने आपस में बांट ली थी.

गिरोह के पुरुष सदस्यों के अलावा महिला सदस्यों में सब से पहले एसओजी के हाथ कल्पना लगी. इस के बाद एनआरआई युवती रवनीत कौर उर्फ रूबी भी एसओजी की गिरफ्त में आ गई. शिखा तिवाड़ी उर्फ डीजे अदा की मुंबई से हुई गिरफ्तारी के समय तक हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग करने वाले 4 गिरोहों के 32 अभियुक्तों को एसओजी गिरफ्तार कर चुकी थी. इन में कई वकील, फर्जी पत्रकार, पुलिसकर्मी व बिचौलिए भी शामिल थे.

शिखा के पकड़े जाने के बाद उस से पूछताछ में ब्लैकमेलिंग गिरोह की एक और महिला सदस्य आकांक्षा का पता चला. एसओजी ने 16 मई को अजमेर के क्रिश्चियन गंज, माली मोहल्ला की रहने वाली 25 वर्षीया आकांक्षा को गिरफ्तार कर लिया. एसओजी के एसपी संजय श्रोत्रिय का कहना है कि आकांक्षा ब्लैकमेलिंग की कई वारदातों में शामिल रही है.

आकांक्षा ने जयपुर से एमबीए की पढ़ाई की थी. एमबीए की पढ़ाई के दौरान वह जयपुर में सिरसी रोड पर एक अपार्टमेंट में रहने लगी थी, तभी उस की पहचान अक्षत शर्मा से हुई थी. अक्षत ब्लैकमेलिंग के मामलों में आकांक्षा का भी सहयोग लेता था. अक्षत शर्मा पहले ही गिरफ्तार हो चुका था. अक्षत ने अपने साथियों की मदद से एक सैन्यकर्मी के फ्लैट पर भी कब्जा कर लिया था. करणी विहार में सिरसी रोड पर स्थित एक फ्लैट का सौदा 45 लाख रुपए में हुआ था, लेकिन अक्षत ने केवल 5 लाख रुपए दे कर अपने साथियों की मदद से उस फ्लैट पर कब्जा कर लिया था.

शिखा व आकांक्षा की गिरफ्तारी के बाद एसओजी ने अक्षत के सामने दोनों को बैठा कर पूछताछ की. पूछताछ में पता चला कि अक्षत व आकांक्षा ने करीब 20 लोगों को अपने जाल में फंसा कर ब्लैकमेल किया था. अक्षत ही आकांक्षा का खर्चा उठाता था. अक्षत ने आकांक्षा को एक फ्लैट व कार गिफ्ट की थी. एसओजी थाने में अक्षत के खिलाफ पांचवां मामला सैन्यकर्मी के फ्लैट पर कब्जे का दर्ज किया गया. आकांक्षा भी गिरोह की गिरफ्तारी शुरू होने पर जयपुर छोड़ कर अजमेर चली गई थी.

एसओजी की जांच में सामने आया है कि जयपुर में चल रहे हाईप्रोफाइल ब्लैकमेलिंग गिरोहों ने ढाई साल में 45 लोगों से करीब 20 करोड़ रुपए वसूले थे.

– कथा पुलिस सूत्रों व अन्य रिपोर्ट्स पर आधारित

पत्नी की खूनी साजिश : प्यार में पागल लड़की ने प्रेमी से करवाई पति की हत्या

22 अप्रैल, 2017 की रात करीब 2 बजे की बात है. उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंट के मोहल्ला हादेव झारखंडी टुकड़ा नंबर 1 के रहने वाले देवेंद्र प्रताप सिंह अपने घर में सो रहे थे. अचानक घर की डोलबेल बजी तो वह बड़बड़ाते हुए दरवाजे पर पहुंचे कि इतनी रात को किसे क्या जरूरत पड़ गई? चश्मा ठीक करते हुए उन्होंने दरवाजा खोला तो बाहर पुलिस वालों को देख कर उन्होंने हैरानी से पूछा, ‘‘जी बताइए, क्या बात है?’’

‘‘माफ कीजिए भाईसाहब, बात ही कुछ ऐसी थी कि मुझे आप को तकलीफ देनी पड़ी.’’ सामने खड़े थाना कैंट के इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा.

‘‘जी बताएं, क्या बात है?’’ देवेंद्र प्रताप ने पूछा.

‘‘आप की बहू और बेटा कहां है?’’

‘‘ऊपर अपने कमरे में पोते के साथ सो रहे हैं.’’ देवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा.

अब तक परिवार के बाकी लोग भी नीचे आ गए थे. लेकिन न तो देवेंद्र प्रताप सिंह का बेटा विवेक प्रताप सिंह आया था और न ही बहू सुषमा. इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने थोड़ा तल्खी से कहा, ‘‘आप को पता भी है, आप के बेटे विवेक प्रताप सिंह की हत्या कर दी गई है?’’

‘‘क्याऽऽ, आप यह क्या कह रहे हैं इंसपेक्टर साहब?’’ देवेंद्र प्रताप सिंह ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘वह हम सब के साथ रात का खाना खा कर पत्नी और बेटे के साथ ऊपर वाले कमरे में सोने गया था. अब आप कह रहे हैं कि उस की हत्या हो गई है? ऐसा कैसे हो सकता है, इंसपेक्टर साहब?’’

‘‘आप जो कह रहे हैं, वह भी सही है और मैं जो कह रहा हूं वह भी. आप जरा अपनी बहू को बुलाएंगे?’’ इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा.

इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी की बातों पर देवेंद्र प्रताप सिंह को बिलकुल यकीन नहीं हुआ था. उन्होंने वहीं से बहू सुषमा को आवाज दी. 3-4 बार बुलाने के बाद ऊपर से सुषमा की आवाज आई. उन्होंने सुषमा को फौरन नीचे आने को कहा. कपड़े संभालती सुषमा नीचे आई तो वहां सब को इस तरह देख कर परेशान हो उठी. उस की यह परेशानी तब और बढ़ गई, जब उस की नजर पुलिस और उन के साथ खड़े एक युवक पर पड़ी. उस युवक को आगे कर के इसंपेक्टर ओमहरि ने कहा, ‘‘सुषमा, तुम इसे पहचानती हो?’’

उस युवक को सुषमा ने ही नहीं, सभी ने पहचान लिया. उस का नाम कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू था. वह सुषमा के मायके का रहने वाला था और अकसर सुषमा से मिलने आता रहता था. सभी उसे हैरानी से देख रहे थे.

सुषमा कुछ नहीं बोली तो इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा, ‘‘तुम नहीं पहचान पा रही हो तो चलो मैं ही इस के बारे में बताए देता हूं. यह तुम्हारा प्रेमी डब्लू है. अभी थोड़ी देर पहले यह तुम्हारे पति की हत्या कर के लाश को मोटरसाइकिल से ठिकाने लगाने के लिए ले जा रहा था, तभी रास्ते में इसे हमारे 2 सिपाही मिल गए. उन्होंने इसे और इस के एक साथी को पकड़ लिया. अब ये कह रहे हैं कि पति को मरवाने में तुम भी शामिल थी?’’crime story

ओमहरि वाजपेयी की बातों पर देवेंद्र प्रताप सिंह को अभी भी विश्वास नहीं हुआ था. वह तेजतेज कदमों से सीढि़यां चढ़ कर बेटे के कमरे में पहुंचे. बैड के एक कोने में 5 साल का आयुष डरासहमा बैठा था. दादा को देख कर वह झट से उठा और उन के सीने से जा चिपका. वह जिस बेटे को खोजने आए थे, वह कमरे में नहीं था. देवेंद्र पोते को ले कर नीचे आ गए. अब साफ हो गया था कि विवेक के साथ अनहोनी घट चुकी थी.

हैरानी की बात यह थी कि विवेक के कमरे के बगल वाले कमरे में उस के चाचा कृष्णप्रताप सिंह और चाची दुर्गा सिंह सोई थीं. हत्या कब और कैसे हुई, उन्हें पता ही नहीं चला था. सभी यह सोच कर हैरान थे कि घर में सब के रहते हुए सुषमा ने इतनी बड़ी घटना को कैसे अंजाम दे दिया? मजे की बात यह थी कि इतना सब होने के बावजूद सुषमा के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी.

सुषमा की खामोशी से साफ हो गया था कि यह सब उस की मरजी से हुआ था. उस के पास अब अपना अपराध स्वीकार कर लेने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. उस ने घर वालों के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. सच्चाई जान कर घर में कोहराम मच गया. देवेंद्र प्रताप सिंह के घर से अचानक रोने की आवाजें सुन कर पड़ोसी उन के यहां पहुंचे तो विवेक की हत्या के बारे में सुन कर हैरान रह गए. उन की हैरानी तब और बढ़ गई, जब उन्हें पता चला कि यह काम विवेक की पत्नी सुषमा ने ही कराया था.

पुलिस सुषमा को साथ ले कर थाना कैंट आ गई. कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू और उस के एक साथी राधेश्याम पकड़े जा चुके थे. पता चला कि उस के 2 साथी अनिल मौर्य और सुनील भागने में कामयाब हो गए थे.

ओमहरि वाजपेयी ने रात होने की वजह से सुषमा सिंह को महिला थाने भिजवा दिया. रात में कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू और उस के साथी राधेश्याम मौर्य से पुलिस ने पूछताछ शुरू की. दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

अगले दिन यानी 23 अप्रैल, 2017 की सुबह मृतक विवेक प्रताप सिंह के पिता देवेंद्र प्रताप सिंह ने थाना कैंट में बेटे की हत्या का नामजद मुकदमा 6 लोगों कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू, राधेश्याम मौर्य, अनिल मौर्य, सुनील तेली, सुषमा सिंह और मुकेश गौड़ के खिलाफ दर्ज कराया.

पुलिस ने यह मुकदमा भादंवि की धारा 302, 201, 147, 149 के तहत दर्ज किया था. इस मामले में 3 लोग पकड़े जा चुके थे, बाकी की तलाश में पुलिस निकल पड़ी. पूछताछ में गिरफ्तार किए गए कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू ने विवेक की हत्या की जो कहानी सुनाई थी, वह इस प्रकार थी—

32 साल की सुषमा सिंह मूलरूप से जिला देवरिया के थाना गौरीबाजार के गांव पथरहट के रहने वाले सुरेंद्र बहादुर सिंह की बेटी थी. उन की संतानों में वही सब से बड़ी थी. बात उन दिनों की है, जब सुषमा ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा था. सुषमा काफी खूबसूरत थी, इसलिए उसे जो भी देखता, देखता ही रह जाता. उस के चाहने वालों की संख्या तो बहुत थी, लेकिन वह किसी के दिल की रानी नहीं बन पाई थी. इस मामले में अगर किसी का भाग्य जागा तो वह था कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू.

32 साल का कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू उसी गांव के रहने वाले दीपनारायण सिंह का बेटा था. उन की गांव में तूती बोलती थी. गांव का कोई भी आदमी दीपनारायण से कोई संबंध नहीं रखता था. उस के किसी कामकाज में भी कोई नहीं आताजाता था. डब्लू 18-19 साल का था, तभी वह भी पिता के नक्शेकदम पर चल निकला था. वह भी अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता था.crime story

पुलिस सूत्रों के अनुसार, कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू इंटर तक ही पढ़ पाया था. इस के बाद वह अपराध में डूब गया. जल्दी ही आसपास के ही नहीं, पूरे जिले के लोग उस से खौफ खाने लगे. डब्लू का बड़ा भाई बबलू पुलिस विभाग में सिपाही था. वह शराब पीने का आदी था. उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था.

सन 2010 में गांव के बाहर एक तालाब में पुलिस वर्दी में बबलू की लाश तैरती मिली थी. लोगों का कहना था कि शराब के नशे में वह डूब कर मर गया था. लेकिन डब्लू और उस के घर वालों का मानना था उस की हत्या की गई थी. यह हत्या किसी और ने नहीं, गांव के ही उस के विरोधी रमेश सिंह ने की थी. लेकिन यह बात उन लोगों ने रमेश सिंह से ही नहीं, गांव के भी किसी आदमी से नहीं कही थी.

इस की वजह यह थी कि डब्लू को रमेश सिंह से भाई की मौत का बदला लेना था. इस के लिए उस ने रमेश सिंह से दोस्ती गांठ ली. फिर एक दिन गांव के पास ही वह रमेश सिंह के साथ शराब पीने बैठा. उस ने जानबूझ कर रमेश सिंह को खूब शराब पिलाई.

जब रमेश सिंह नशे में बेकाबू हो गया तो डब्लू ने हंसिए से उस का गला धड़ से अलग कर दिया. इस के बाद रमेश सिंह का कटा सिर लिए वह मां के पास पहुंचा और सिर उन के सामने कर के बोला, ‘‘देखो मां, यही भैया का हत्यारा था. आज मैं ने इस के किए की सजा दे दी. इसे वहां भेज दिया, जहां इसे बहुत पहले पहुंच जाना चाहिए था.’’

यह सन 2011 की बात है.   इस के बाद रमेश सिंह का कटा सिर लिए डब्लू पूरे गांव में घूमा. डब्लू के दुस्साहस को देख कर गांव में दहशत फैल गई. पुलिस उस तक पहुंच पाती, उस से पहले ही वह रमेश सिंह का सिर फेंक कर फरार हो गया. लेकिन पुलिस के चंगुल से वह ज्यादा समय तक नहीं बच पाया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

जमानत पर जेल से बाहर आने के बाद डब्लू को लगा कि गांव के ही रहने वाले रमेश सिंह के करीबी पूर्व ग्रामप्रधान शातिर बदमाश अरुण सिंह उस की हत्या करवा सकते हैं. फिर क्या था, वह उन्हें ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगा.

25 अप्रैल, 2013 को किसी काम से अरुण सिंह अपनी मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे, तभी मचिया चौराहे पर घात लगा कर बैठे डब्लू ने गोलियों से भून डाला. घटनास्थल पर ही उन की मौत हो गई. उस समय तो वह फरार हो गया था, लेकिन बाद में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

बात उस समय की है, जब सुषमा कालेज में पढ़ती थी. संयोग से उसी कालेज में डब्लू भी पढ़ता था. चूंकि दोनों एक ही गांव के रहने वाले थे, इसलिए कालेज आतेजाते अकसर दोनों की मुलाकात हो जाती थी. सुषमा खूबसूरत तो थी ही, डब्लू भी कम स्मार्ट नहीं था. साथ आनेजाने में ही दोनों में प्यार हो गया. सुषमा डब्लू के आपराधिक कारनामों के बारे में जानती थी, इस के बावजूद उस से प्यार करने लगी.

सुषमा और डब्लू की प्रेमकहानी जल्दी ही गांव वालों के कानों तक पहुंच गई. फिर तो इस की जानकारी सुरेंद्र बहादुर सिंह को भी हो गई. बेटी की इस करतूत से पिता का सिर शरम से झुक गया. उन्होंने सुषमा को डब्लू से मिलने के लिए मना तो किया ही, उस के घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी. इस का नतीजा यह निकला कि एक दिन वह मांबाप की आंखों में धूल झोंक कर डब्लू के साथ भाग गई. इस के बाद दोनों ने मंदिर में शादी कर ली. यह 7-8 साल पहले की बात है.crime story

सुषमा के भाग जाने से सुरेंद्र बहादुर सिंह की काफी बदनामी हुई. डब्लू आपराधिक प्रवृत्ति का था, इसलिए वह उस का कुछ कर भी नहीं सकते थे. फिर भी उन्होंने पुलिस के साथसाथ बिरादरी की मदद ली. पुलिस और बिरादरी के दबाव में डब्लू ने सुषमा को उस के घर वापस भेज दिया. सुषमा के घर वापस आने के बाद सुरेंद्र बहादुर सिंह ने उस के घर से बाहर जाने पर सख्त पाबंदी लगा दी.

संयोग से उसी बीच रमेश सिंह की हत्या के आरोप में डब्लू जेल चला गया तो सुरेंद्र बहादुर सिंह ने राहत की सांस ली. डब्लू की जो छवि बन चुकी थी, उस से वह काफी डरे हुए थे. वह जेल चला गया तो उन्होंने इस मौके का फायदा उठाया और आननफानन में सुषमा की शादी गोरखपुर के रहने वाले संपन्न और सभ्य देवेंद्र प्रताप सिंह के बेटे विवेक प्रताप सिंह उर्फ विक्की से कर दी.

यह शादी इतनी जल्दी में हुई थी कि देवेंद्र प्रताप सिंह बहू के बारे में कुछ पता नहीं कर सके. जेल में बंद डब्लू को जब सुषमा की शादी के बारे में पता चला तो वह सुरेंद्र बहादुर सिंह पर बहुत नाराज हुआ. लेकिन वह सुषमा के पिता थे, इसलिए वह उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता था. पर उस ने यह जरूर तय कर लिया था कि वह सुषमा को खुद से अलग नहीं होने देगा. इस के लिए उसे कुछ भी करना पड़े, वह करेगा.

सुषमा ने भले ही विवेक से शादी कर ली थी, लेकिन उस का तन और मन डब्लू को ही समर्पित था. हर घड़ी वह उसी के बारे में सोचती रहती थी. जल्दी ही वह विवेक के बेटे आयुष की मां बन गई. जनवरी, 2013 में जब डब्लू जमानत पर जेल से बाहर आया तो सुषमा से मिलने गोरखपुर स्थित उस की ससुराल पहुंच गया.

डब्लू को देख कर सुषमा बहुत खुश हुई. उस का प्यार उस के लिए फिर जाग उठा. इस के बाद वे किसी न किसी बहाने एकदूसरे से मिलने लगे. फोन पर तो बातें होती ही रहती थीं. उसी बीच 25 अप्रैल, 2013 को डब्लू ने पूर्वप्रधान अरुण सिंह की हत्या कर दी तो वह एक बार फिर जेल चला गया. इस बार वह 5 सालों बाद 18 मार्च, 2017 को जेल से बाहर आया तो एक बार फिर उस का सुषमा से मिलनाजुलना शुरू हो गया.

डब्लू बारबार सुषमा से मिलने आने लगा तो विवेक प्रताप सिंह को पत्नी के चरित्र पर संदेह हो गया. इस के बाद पतिपत्नी में अकसर झगड़ा होने लगा. वह डब्लू को अपने यहां आने से मना करने लगा. लेकिन सुषमा उस की एक नहीं सुनती थी. पत्नी के इस व्यवहार से विवेक काफी परेशान रहने लगा. रोजरोज के झगड़े से बेटा भी परेशान रहता था. डब्लू को ले कर पतिपत्नी में संबंध काफी बिगड़ गए. दोनों के बीच मारपीट भी होने लगी.

सुषमा विवेक की कोई बात नहीं मानती थी. रोजरोज के झगड़े से परेशान विवेक अपने दुख को किसी से न कह कर फेसबुक पर पोस्ट किया करता था. दूसरी ओर सुषमा भी पति से ऊब चुकी थी. अब वह उस से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगी. जब उस ने यह बात डब्लू से कही तो उस ने आश्वासन दिया कि उसे चिंता करने की जरूरत नहीं है. वह जब चाहेगा, उसे विवेक से छुटकारा दिलवा देगा. उस के बाद दोनों एक साथ रहेंगे.

डब्लू के लिए किसी की जान लेना मुश्किल काम नहीं था. सुषमा के कहने के बाद वह विवेक की हत्या की योजना बनाने लगा. सुषमा भी योजना में शामिल थी. दोनों विवेक की हत्या इस तरह करना चाहते थे कि उन का काम भी हो जाए और उन का बाल भी बांका न हो. यानी वे पकड़े न जाएं. वे विवेक की हत्या को एक्सीडेंट दिखाना चाहते थे. इस के लिए डब्लू ने टाटा सफारी कार की व्यवस्था कर ली थी. यह कार उस के पिता की थी. इस के बाद वे घटना को अंजाम देने का मौका तलाशने लगे.

22-23 मई, 2017 की रात सुषमा सिंह ने योजना के तहत डब्लू को बुला लिया. डब्लू टाटा सफारी कार यूपी52ए के5990 से अपने 3 साथियों राधेश्याम मौर्य, अनिल मौर्य और सुनील तेली के साथ विशुनपुरा पहुंच गया. उन्होंने कार घर से कुछ दूरी पर स्थित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के औफिस के सामने खड़ी कर दी. कार का ड्राइवर अशोक उसी में बैठा था.

डब्लू अपने साथियों के साथ विवेक के घर पहुंचा तो सुषमा दरवाजा खोल कर सभी को बैडरूम में ले गई. बैड पर विवेक बेटे के साथ सो रहा था. विवेक की हत्या के लिए सुषमा ने एक ईंट पहले से ही ला कर कमरे में रख ली थी. कमरे में पहुंचते ही डब्लू ने विवेक का गला दबोच लिया. विवेक छटपटाया तो उस के साथियों ने उसे काबू कर लिया. उन्हीं में से किसी ने सुषमा द्वारा रखी ईंट से सिर पर प्रहार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया.

धक्कामुक्की और छीनाझपटी में पिता के बगल में सो रहे आयुष की आंखें खुल गईं. उस ने देखा कि कुछ लोग उस के पापा को पकड़े हैं तो वह चिल्ला उठा. उस के चीखने पर सब डर गए. डब्लू ने उसे डांटा तो उस की आवाज गले में फंस कर रह गई. इस के बाद वह आंखें मूंद कर लेट गया. एक बार सभी ने विवेक को हिलाडुला कर देखा, जब उस के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई तो सब समझ गए कि यह मर चुका है.

इस के बाद उन्होंने लाश उठाई और ऊपर से ही नीचे फेंक दी. फिर दबेपांव सीढ़ी से नीचे आ गए. डब्लू ने बरामदे में खड़ी विवेक की मोटरसाइकिल निकाली और खुद चलाने के लिए बैठ गया. जबकि राधेश्याम विवेक की लाश को ले कर इस तरह बैठ गया, जैसे वह बीच में बैठा है. बाकी के उस के 2 साथी अनिल और सुनील पैदल ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के औफिस की ओर चल पड़े. क्योंकि  उन की कार वहीं खड़ी थी.

लेकिन जब वे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास पहुंचे तो कार वहां नहीं थी. सभी परेशान हो उठे. दरअसल हुआ यह था कि उन के जाने के कुछ ही देर बाद गश्त करते हुए 2 सिपाही वहां आ पहुंचे थे. उन्होंने आधी रात को कार खड़ी देखी तो ड्राइवर अशोक से पूछताछ करने लगे. घबरा कर ड्राइवर अशोक कार ले कर भाग गया. ड्राइवर डब्लू को फोन करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से बात नहीं हो पाई.

डब्लू के आने पर वहां कार नहीं मिली तो उसे चिंता हुई. वह ड्राइवर को फोन करने ही जा रहा था कि पुलिस चौकी रामगढ़ताल के 2 सिपाही वहां आ पहुंचे. उन्होंने उन से पूछताछ शुरू की तो वे सही जवाब नहीं दे सके. सिपाहियों ने थाना कैंट फोन कर के थानाप्रभारी ओमहरि वाजपेयी को इस की सूचना दे दी.

ओमहरि वाजपेयी मौके पर पहुंचे तो उन्हें मामला संदिग्ध लगा. उन्होंने बीच में बैठे विवेक को हिलाडुला कर देखा तो पता चला कि वह तो लाश है. डब्लू और राधेश्याम से सख्ती से पूछताछ की गई तो विवेक की हत्या का राज खुल गया.

दूसरी ओर जब सभी विवेक की लाश ले कर चले गए तो सुषमा कमरे में फैला खून साफ करने लगी. उस ने जल्दी से चादर और तकिए भी बदल दिए थे. उस ने सबूत मिटाने की पूरी कोशिश की थी. तब शायद उसे पता नहीं था कि उस ने जो किया है, उस का राज तुरंत ही खुलने वाला है.

आयुष अपने पापा विवेक प्रताप सिंह की हत्या का चश्मदीद गवाह है. उस ने पुलिस को बताया कि जब अंकल लोग उस के पापा को पकड़े हुए थे तो वह चीखा था. तब एक अंकल ने उस का मुंह दबा कर डांट दिया था. उन लोगों ने पापा का गला तो दबाया ही, उन्हें ईंट से भी मारा था.

वे पापा को ले कर चले गए तो मम्मी कमरे में फैला खून साफ करने लगी थीं. वे उसे भी मारना चाहते थे, तब मम्मी ने एक अंकल से कहा था, ‘यह तो तुम्हारा ही बेटा है, इसे मत मारो.’ इस के बाद अंकल ने उसे छोड़ दिया था.

विवेक की लाश उस की मोटरसाइकिल से इसलिए ला रहे थे, ताकि उसे सड़क पर उस की मोटरसाइकिल सहित कहीं फेंक कर यह दिखाया जा सके कि उस की मौत सड़क दुर्घटना में हुई है.

पुलिस ने अनिल और सुनील को गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन ड्राइवर अशोक अभी पकड़ा नहीं जा सका है. टाटा सफारी कार बरामद हो चुकी है. पुलिस ने विवेक की हत्या में प्रयुक्त खून से सनी ईंट, खून सने कपड़े आदि भी बरामद कर लिए थे. विवेक की मोटरसाइकिल तो पहले ही बरामद हो चुकी थी.

सारी बरामदगी के बाद पुलिस ने अदालत में सभी को पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मजे की बात यह है कि सुषमा को पति की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं है. वह जेल से बाहर आने के बाद अब भी अपने प्रेमी डब्लू के साथ जीवन बिताने के सपने देख रही है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फिल्मी खेल में जेल : मधुर के खिलाफ सामने आई प्रीति की सच्चाई

फिल्म हो या कोई टीवी सीरियल, उसे बनाने में सैकड़ों लोगों की मेहनत लगती है. इन में पुरुष भी होते हैं, महिलाएं भी. दोनों में ही अच्छेबुरे लोग होते हैं. चूंकि शोबिज की दुनिया में ग्लैमर की डिमांड पहले नंबर पर होती है, इसलिए उस के प्रति सभी का आकर्षण स्वाभाविक ही है. ग्लैमर की इस दुनिया में तरहतरह के लालच दे कर जहां पुरुष लड़कियों व महिलाओं का लाभ उठाते हैं, वहीं लड़कियां या महिलाएं भी अपनी खूबसूरती को ढाल बना कर पुरुषों का लाभ उठाने में पीछे नहीं रहतीं.

यह अलग बात है कि वे अपने मकसद में कामयाब हो पाती हैं या नहीं. लेकिन यह भी सच है कि कामयाबी के लिए खूबसूरती ही नहीं, टैलेंट भी जरूरी है. जबकि कई लड़कियां अपनी खूबसूरती को ही टैलेंट का पैमाना मान बैठती हैं.

फिल्म इंडस्ट्री और टीवी इंडस्ट्री में तमाम ऐसे मामले हुए हैं, जिन में निर्मातानिर्देशक द्वारा रोल न दिए जाने या वाजिब कारणों की वजह से बीच में निकाल दिए जाने पर लड़कियां यौनशोषण का आरोप लगा देती हैं, ताकि निर्मातानिर्देशक पर दबाव बनाया जा सके. कुछ मामलों में तो बात पुलिस और कोर्टकचहरी तक भी पहुंची. जानेमाने फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ था. साफसुथरी छवि वाले शादीशुदा मधुर भंडारकर की फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान है.

‘चांदनी बार’, ‘पेज थ्री’, ‘कारपोरेट’, ‘ट्रैफिक सिगनल’, ‘फैशन’ और ‘दिल तो बच्चा है जी’ जैसी चर्चित फिल्में बना चुके मधुर सामाजिक विद्रूपता वाली अलग तरह की फिल्में बनाने के लिए मशहूर हैं. ‘ट्रैफिक सिगनल’ के लिए तो उन्हें बतौर निर्देशक, लेखक और स्क्रीनप्ले राइटर नेशनल अवार्ड भी मिल चुका है.

सन 2001 में आई बहुत कम बजट की फिल्म ‘चांदनी बार’ जब सुपरहिट हो गई तो निर्देशक मधुर भंडारकर का नाम रातोंरात नामचीन हस्तियों में शामिल हो गया. जून, 2004 में मधुर भंडारकर निर्देशित फिल्म ‘आन’ रिलीज हो चुकी थी. यह बड़े बजट की फिल्म थी, जिस में अक्षय कुमार, रवीना टंडन, सुनील शेट्टी, शत्रुघ्न सिन्हा, जैकी श्रौफ, परेश रावल, इरफान खान और लारा दत्ता जैसे बड़े स्टार थे. इस फिल्म के रिलीज होने से पहले ही मधुर भंडारकर ने अपनी अगली फिल्म ‘पेज थ्री’ की शूटिंग शुरू कर दी थी, जो कालांतर में एक नया इतिहास रचने वाली थी.crime news

15/16 जुलाई, 2004 की रात को भंडारकर ने ‘पेज थ्री’ की शूटिंग की थी. सुबह घर आ कर वह सो गए थे. उन्होंने सोचा भी नहीं था कि एक ऐसा विस्फोट होने जा रहा है, जो उन की नींद ही नहीं, चैन तक हराम कर देगा. 16 जुलाई की दोपहर को प्रीति जैन नाम की एक मौडल ने पत्रकारों, खासकर न्यूज चैनलों के रिपोर्टर्स को बुला कर एक प्रैस कौन्फ्रैंस की, जिस में उस ने मधुर भंडारकर पर यौनशोषण, धोखाधड़ी और धमकी देने के आरोप लगाए.

दोपहर के 2 बजे के बुलेटिन में जब यह समाचार चल रहा था, तब मधुर भंडारकर सो रहे थे. टीवी पर समाचार देख कर उन के एक दोस्त ने फोन कर के उन्हें यह बात बताई तो वह हड़बड़ी में उठे. उन्हें यह मामला तब अतिगंभीर लगा, जब उन्होंने अपने मोबाइल पर आई 75 मिस्ड काल्स देखीं.

उधर उसी दिन प्रीति ने थाना वरसोवा जा कर मधुर भंडारकर के खिलाफ बलात्कार, धोखाधड़ी और जान से मारने की धमकी देने के आरोप लगा कर रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने यह मामला भादंवि की धारा 376/506 के अंतर्गत दर्ज कर लिया.

प्रीति का कहना था कि मधुर भंडारकर ने सन 1999 से 2004 के बीच उस के साथ 16 बार यौन संबंध बनाए. प्रमाण के रूप में उस ने पुलिस को अपने मोबाइल से मधुर भंडारकर के मोबाइल पर भेजे गए 14 एसएमएस का ब्यौरा भी दिया. उस ने ये एसएमएस 23 दिसंबर, 2003 से 17 अप्रैल, 2004 के बीच भेजे थे. भंडारकर ने 1-2 मैसेज को छोड़ कर उस के किसी मैसेज का जवाब नहीं दिया था. यह देश का शायद पहला ऐसा मामला था, जिस में एसएमएस को प्रमाण के रूप में पेश किया था.

यहां यह स्पष्ट कर दें कि प्रीति जैन द्वारा भंडारकर को भेजे गए एसएमएस में बात करने के लिए कहने और कुछ मजबूरी तो कुछ धमकी भरे अंदाज में उन की फिल्म में काम मांगने के अलावा कोई खास बात नहीं थी. बहरहाल, प्रीति ने मधुर भंडारकर पर जो आरोप लगाए थे, वे काफी गंभीर थे.

इसी के मद्देनजर मधुर भंडारकर अगले ही दिन अपने मित्र फिल्म निर्मातानिर्देशक अशोक पंडित को साथ ले कर अपने वकीलों श्रीकांत शिवड़े और गिरीश कुलकर्णी से मिले. उन के वकीलों ने मधुर के खिलाफ वरसोवा थाने में दर्ज केस का हवाला दे कर तत्काल अग्रिम जमानत के कागजात तैयार किए और मुख्य दंडाधिकारी आर.आर. वाच्छा की अदालत में अपील लगा दी.

दोनों वकीलों ने अदालत के सामने दलील दी कि मधुर भंडारकर जानेमाने निर्देशक हैं, फिल्मों में काम करने की इच्छुक तमाम लड़कियां उन से मिलने आती हैं. प्रीति जैन भी उन से मिली होगी. मधुर उस के लिए कुछ नहीं कर पाए होंगे, इसलिए उस ने उन पर दबाव बनाने के लिए उन के विरुद्ध झूठा केस दर्ज करा दिया, ताकि वह फिल्म में काम देने को मजबूर हो जाएं.crime news

हालांकि अभियोजन पक्ष के वकील ने अपनी अलग दलील दी, लेकिन न्यायाधीश ने 20 हजार के मुचलके पर मधुर भंडारकर को अग्रिम जमानत दे दी, साथ ही आदेश भी दिया कि वह नियमित वरसोवा थाने जाएं और जांच में पुलिस को सहयोग करें. अदालत ने उन के मुंबई से बाहर जाने पर भी पाबंदी लगा दी.

दरअसल, मधुर भंडारकर को इस मामले में अग्रिम जमानत इतनी आसानी से इसलिए मिल गई थी, क्योंकि प्रीति जैन ने मुकदमा दर्ज कराने और गंभीर आरोप लगाने से पहले मधुर भंडारकर को कानूनी नोटिस भेज कर धमकी दी थी कि अगर वह उसे अपनी फिल्म में नहीं लेते तो वह उन के विरुद्ध धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराएगी.

इसी को आधार बना कर मधुर के वकीलों ने अदालत के सामने दलील दी थी कि प्रीति जैन और मधुर के बीच शारीरिक संबंध तो हो सकते हैं, पर यह बलात्कार का मामला कतई नहीं है. क्योंकि स्वतंत्र रूप से रहने वाली किसी लड़की को डराधमका कर 5 सालों तक बलात्कार नहीं किया जा सकता.

यहां थोड़ा प्रीति जैन के बारे में बता देना जरूरी है. 25 वर्षीया प्रीति जैन उस समय मुंबई में यारी रोड, वरसोवा स्थित एक सोसायटी के फ्लैट में अपने सेवानिवृत्त पिता के साथ रह रही थी. दिल्ली निवासी उस के पिता भारतीय विदेश सेवा से रिटायर हुए थे. अपने सेवाकाल में वह इजिप्ट, स्विटजरलैंड, बेल्जियम, पाकिस्तान और यूके में रह चुके थे. प्रीति का जन्म इजिप्ट में हुआ था. उस ने दिल्ली यूनिवर्सिटी और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की थी.

महत्त्वाकांक्षी प्रीति फिल्मों में जाना चाहती थी, इसलिए पिता के साथ मुंबई आ गई थी. मुंबई में एकदो फिल्मों में छोटीमोटी भूमिकाएं करने के साथसाथ उस ने मौडलिंग भी की. फिल्मों में काम करने के सिलसिले में ही वह मधुर भंडारकर से मिली थी.

बहरहाल, प्रीति जैन और मधुर भंडारकर का यह केस जांच के बाद चार्जशीट लग कर अदालत तक पहुंच गया. लंबी सुनवाई के बाद सन 2007 में अदालत ने मधुर भंडारकर को इस मामले में आरोपमुक्त कर दिया. इस के बावजूद प्रीति चुप नहीं बैठी. उस ने अपने आरोपों के साथ अंधेरी स्थित सेशन कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 2 साल की सुनवाई के बाद सन 2009 में सत्र न्यायालय ने मधुर भंडारकर को आरोप मुक्त करने को गलत ठहराया और पुलिस को इस मामले में दोबारा गहनता से जांच करने को कहा, साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि प्रीति जैन ने जो सबूत दिए हैं, उन्हीं के आधार पर मधुर भंडारकर के खिलाफ बलात्कार का केस चलाया जाए.

मधुर भंडारकर ने कोर्ट के आदेश के खिलाफ मुंबई हाईकोर्ट की शरण ली. लेकिन यहां यह मामला उलटा पड़ा. मतलब हाईकोट्र ने सत्र न्यायालय के निर्णय को सही माना. कोई और रास्ता न देख मधुर भंडारकर इस निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय गए. लंबी अवधि के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने सन 2012 में इस केस के सभी आरोपों को खारिज कर दिया.

यह तो था मधुर और प्रीति के पहले केस का सच. लेकिन इस बीच प्रीति ने एक और विवाद खड़ा कर लिया था, जिस का अलग से मुकदमा चल रहा था, वह भी प्रीति के खिलाफ. दरअसल, मधुर के खिलाफ दर्ज कराए गए केस में मनचाही सफलता न मिलते देख प्रीति जैन ने सन 2005 में मधुर भंडारकर के खिलाफ एक कुचक्र और रचा. यह कुचक्र था मधुर भंडारकर को मरवाने का. इस के लिए उस ने गैंगस्टर अरुण गवली गैंग के बदमाशों को 75 हजार रुपए की सुपारी दी थी.

उस की यह हकीकत भी बड़े नाटकीय अंदाज में सामने आई. हुआ यह कि 3 अगस्त, 2005 को अखिल भारतीय सेना पार्टी के वकील महेंद्र बागवे ने प्रीति जैन के खिलाफ थाना अग्रीपाड़ा में एक प्रकरण दर्ज कराया.

इस प्रकरण के अनुसार, 2 अगस्त, 2005 को प्रीति जैन दगड़ी चाल स्थित अखिल भारतीय सेना के औफिस में गई और वहां मौजूद कार्यकर्ता अनिल तावड़े से नरेश परदेशी के बारे में पूछा. जब वहां मौजूद कार्यकर्ताओं ने बताया कि वहां कोई नरेश परदेशी नहीं है तो उस ने गुस्से में कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है. मैं ने उसे 75 हजार रुपए दिए हैं.’’

दगड़ी चाल में माफिया सरगना, नेता  और अखिल भारतीय सेना पार्टी के संयोजक अरुण गवली का औफिस है. औफिस में मौजूद कार्यकर्ताओं ने प्रीति जैन को बैठा कर विस्तार से सारी बात बताने को कहा तो प्रीति ने बताया कि उस ने नरेश परदेशी को फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर को मरवाने के लिए 75 हजार रुपए की सुपारी दी थी. लेकिन उस ने अभी तक यह काम नहीं किया है. कार्यकताओं ने प्रीति जैन को समझाबुझा कर वापस भेज दिया और अगले दिन वकील महेंद्र बागवे के माध्यम से थाना अग्रीपाड़ा में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

मधुर भंडारकर का नाम जुड़ने से यह मामला हाईप्रोफाइल हो गया. पुलिस ने इस केस को प्रीति जैन के खिलाफ भादंवि की धारा 115 (जान से मरवाने की कोशिश), 120बी (अपराध का षडयंत्र रचना) के तहत दर्ज कर लिया. इस मामले की जांच का काम इंसपेक्टर कृष्णा यमाने को सौंपा गया.

कृष्णा यमाने ने अपनी पुलिस टीम के साथ भायखला के अग्रीपाड़ा इलाके में स्थित बी.जे. मार्ग पर बनी शिवनेरी बिल्डिंग के मकान से नरेश परदेशी को हिरासत में ले लिया. नरेश परदेशी से वहीं पर पूछताछ की गई, साथ ही उस के घर की तलाशी भी ली गई. नतीजतन यह बात साफ हो गई कि वह अखिल भारतीय सेना का सक्रिय सदस्य था. 6 मई, 2005 को उसे अखिल भारतीय सेना की ओर से वर्ली के वार्ड नंबर 58 का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. नरेश परदेशी के घर से एक हथियार भी मिला.

अग्रीपाड़ा थाने में नरेश परदेशी से गहन पूछताछ की गई तो उस ने मान लिया कि प्रीति जैन ने उसे मधुर भंडारकर को मारने के लिए 75 हजार रुपए की सुपारी दी थी. उन पैसों से उस ने कुछ सामान खरीदा था और बाकी खानेपीने में उड़ा दिए थे. उस का बयान दर्ज करने के बाद अग्रीपाड़ा पुलिस ने बिना कोई देर किए उसी दिन शाम को 4 बज कर 45 मिनट पर प्रीति जैन के मोबाइल पर फोन कर के उसे थाने आने को कहा. प्रीति जैन आ गई. उसे हिरासत में ले कर पूछताछ की गई तो उस ने मान लिया कि मधुर भंडारकर को मरवाने के लिए उस ने नरेश परदेशी को 75 हजार रुपए की सुपारी दी थी.crime news

इंसपेक्टर कृष्णा यमाने जानते थे कि यह हाईप्रोफाइल मामला है. इसलिए गहनता से जांच जरूरी है. केस में मुख्य आरोपी प्रीति जैन थी. स्थितियों के हिसाब से उस के फ्लैट की तलाशी जरूरी थी. इसलिए उन्होंने इस संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों से बात की. अधिकारियों ने उन्हें प्रीति के फ्लैट की तलाशी लेने की इजाजत दे दी. इस के बाद पुलिस प्रीति को सरकारी जिप्सी में बैठा कर वरसोवा, अंधेरी में यारी रोड स्थित 7 बंगला की गंगाजमुना सोसायटी के उस के फ्लैट पर ले गई.

पुलिस ने उस के फ्लैट की तलाशी ली तो वहां से एक बुरका, कुछ कैसेट्स, निर्मातानिर्देशक अशोक पंडित की तसवीरें, मधुर भंडारकर केस से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण पेपर और प्रीति के हस्तलिखित कुछ दस्तावेज बरामद हुए. उस के फ्लैट से कुछ आपत्तिजनक चीजें भी बरामद हुई थीं. पुलिस ने प्रीति का मोबाइल भी अपने कब्जे में ले लिया. उस में मधुर भंडारकर सहित इस मामले से जुड़े कई लोगों के फोन नंबर थे.

प्रीति को ले कर पुलिस थाना अग्रीपाड़ा लौट आई. उस के सामने फिर नरेश परदेशी से पूछताछ की गई. नरेश परदेशी पुलिस को उनउन जगहों पर ले गया, जहांजहां वह प्रीति से मिला था और जहांजहां वह उसे साथ ले गई थी.

प्रीति जैन से पूछताछ में वरसोवा के उस साइबर कैफे का भी पता चला, जहां बैठ कर वह चैटिंग किया करती थी. पुलिस उस पौइंट ब्राउजिंग साइबर कैफे में गई और जांच के लिए सीपीयू और एक प्रिंटर अपने साथ ले आई. इन दोनों चीजों को जांच के लिए आंध्र प्रदेश की विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेज दिया गया.

पुलिस ने प्रीति और नरेश परदेशी को अदालत पर पेश किया, जहां से प्रीति को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया, जबकि नरेश परदेशी को पुलिस ने रिमांड पर ले लिया. रिमांड अवधि में की गई पूछताछ में उस ने बताया कि मधुर भंडारकर की हत्या के लिए हथियार शिवराम दास ने दिलवाया था. शिवराम दास 7 रास्ता स्थित गोपालनगर झोपड़पट्टी में रहता था. पुलिस ने उस के घर जा कर उसे हिरासत में ले लिया. पूछताछ में शिवराम दास ने बताया कि वह हथियार उस ने और नरेश परदेशी ने सतीश मोहिते को दिया था.

बहरहाल, पुलिस ने सतीश मोहिते को हिरासत में ले कर पूछताछ की. उस ने बताया कि वह हथियार दीपक थेऊर के पास रखा है. पुलिस सतीश मोहिते को ले कर दीपक थेऊर के घर जाने के लिए निकली. दीपक जब वर्ली के दमकल विभाग के पास वाली झुग्गी बस्ती की ओर जा रहा था, तभी पुलिस ने सतीश की निशानदेही पर उसे पकड़ लिया. दीपक की निशानदेही पर पुलिस ने एक देशी कट्टा और 4 कारतूस बरामद किए. पुलिस उन दोनों को थाने ले आई. पूछताछ में दीपक ने भी स्वीकार किया कि वह भी इस साजिश में शामिल था. पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों को अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया.

नरेश परदेशी के बताने पर पुलिस ने 1 अक्तूबर, 2005 को गुफरान इब्राहीम शेख उर्फ समीर को पकड़ा. गुफरान ने ही लखनऊ के रहने वाले राममिलन नाई से देशी कट्टा खरीद कर नरेश परदेशी को दिया था. गुफरान से पूछताछ के बाद पुलिस ने लखनऊ जा कर राममिलन को भी गिरफ्तार कर लिया.

इस पूरे प्रकरण पर डीसीपी आशुतोष डुंबरे और डीसीपी प्रदीप सावंत बराबर नजर जमाए हुए थे. आरोपियों से कई बार उन के सामने ही पूछताछ की गई थी. वैसे भी सारा काम उन के ही दिशानिर्देश पर हो रहा था. गुफरान शेख से पूछताछ में पता चला कि वे लोग प्रीति जैन और नरेश परदेशी के कहने पर कई दिनों तक मधुर भंडारकर के खार स्थित घर हरिभवन के आसपास छिप कर नजर रख रहे थे.

प्रीति ने नरेश परदेशी को मधुर की 2 कारों के नंबर दिए थे, जिन में एक कार का नंबर एमएच04सीडी 8027 था और दूसरी का एमएच04सीडी 2213. भंडारकर जिस कार से निकलते थे, ये लोग उस का पीछा कर के पता लगाते थे कि वह कहांकहां जाते हैं, किसकिस से मिलते हैं और अपने औफिस कितने बजे पहुंचते हैं. दरअसल, ये सारी जानकारियां एकत्र कर के नरेश परदेशी के लोग कोई ऐसा सौफ्ट टारगेट ढूंढ रहे थे, जहां मधुर भंडारकर को आसानी से गोली मार कर भागा जा सके. लेकिन वे लोग अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सके.

बहरहाल, अग्रीपाड़ा पुलिस ने इस मामले की जांच बड़ी गहराई से की. इस केस में पुलिस ने 51 गवाह बनाए. जांच के बाद इंसपेक्टर कृष्णा यमाने ने चार्जशीट तैयार कर के अदालत में पेश कर दी. मैट्रोपौलिटन मजिस्ट्रैट की कोर्ट में लंबी सुनवाई के बाद यह केस जिला एवं सत्र न्यायाधीश में न्यायाधीश एस.एस. भोसले की अदालत में पहुंचा. वहां भी इस केस की लंबी सुनवाई हुई.

इस बीच केस के सभी अभियुक्त जमानत पर रहे. अंतत: न्यायाधीश एस.एस. भोसले ने 28 अप्रैल, 2017 को अपना फैसला सुनाया. अपने फैसले में उन्होंने मधुर भंडारकर को जान से मारने का षडयंत्र रचने के आरोप में प्रीति जैन और गैंगस्टर अरुण गवली के गुर्गे नरेश परदेशी को 3 साल की सजा सुनाई, साथ ही दोनों पर 10-10 हजार रुपए का जुरमाना भी लगाया गया. जबकि नरेश परदेशी के साथी शिवराम दास को 2 साल की सजा के साथसाथ 10 हजार रुपए जुरमाना भरने की सजा मिली. बाकी आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया.

न्यायाधीश ने प्रीति जैन, नरेश परदेशी और शिवराम दास को 15 हजार के मुचलकों पर जमानत दे दी, ताकि वे इस निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट जा सकें. इस के लिए उन्हें 4 सप्ताह का समय दिया गया.

यह अपनी तरह का अलग मामला है, जिस में अपने आप को पीडि़त बताने वाली महिला दोषी पाई गई. भले ही यह उस से जुड़ा दूसरा मामला था. इस पूरे चक्कर में प्रीति जैन का कैरियर भी चौपट हो गया.

(लेखक : रविंद्र शिवाजी दुपारगुड़े/के. रवि)

तुम्हीं हो फादर…मदर तुम्हीं हो…तुम्हीं हो बिस्तर, चादर तुम्हीं हो

जब से मेरे बचपन के दोस्त आम से खास हुए हैं, अपना सीना बिना फुलाए 40 से 60 हो गया है. अब तो न चाहते हुए भी उन से गाहेबगाहे काम पड़ता ही रहता है. कभी पानी नल में न आने पर कमेटी वालों को उन का फोन करवाने जाना पड़ता है, तो कभी बिजली न आने पर.

इन सरकारी महकमे वालों को भी पता नहीं आजकल क्या हो गया है कि बिना किसी नेता के फोन के छींकते भी नहीं. इन की हरकतों को देख कर तो यों लगता है मानो ये जनता के नहीं, नेताओं के नौकर हों. जब देखो, जहां देखो, नेताओं के आगेपीछे दुम हिलाते रहते हैं. कभी ऐसे जनता के आगे भी दुम हिलाओ, तो मजा मिले.

नल में 2 दिन से पानी न आने के चलते पानी वालों को दोस्त का फोन करवाने उन के घर गया, पर वे घर में कहीं न दिखे. मैं ने परेशान होते हुए भाभी से पूछा, ‘‘नेताजी कहां हैं भाभीजी? घूमने गए हैं क्या? या अभी भी चुनाव के दिनों की भागदौड़ की थकान मिटाने के लिए लेटे हुए हैं? लगता है कि अब तो वे अगले चुनाव तक ही जागेंगे.’’

‘‘जब से पार्टी से निकाले गए हैं, तब से इन की नींद हराम हो गई है. पूजा कर रहे हैं भीतर. कुछ दिनों से नई बीमारी पाल ली है. जब देखो पूजा… पूजा… पूजा… सौ बार कह चुकी हूं, बहुत हो गई यह पूजा, पर उठने का नाम ही नहीं लेते.

‘‘सच कहूं भाई साहब, मैं ने ये इतने बेचारे कभी नहीं देखे, जितना आजकल देख रही हूं. चेहरे पर जीत की रत्तीभर लाली नहीं, जबान पर पहले सी कोई गाली नहीं. चाय 5-5 बार गरम करनी पड़ती है, पर इन को तो चाय पीने तक की फुरसत नहीं,’’ भाभी ने दुखड़ा रोया.

भाभी की यह हालत देख कर मुझे रोना आ गया. कैसा नेता है यह? जीत के महीनेभर बाद ही अपनी घरवाली को परेशान करने लग गया है.

सांसें रोके दबे पैर उन के भगवान रूम में गया, तो जो मैं ने देखा उसे देख कर मैं भी हैरान रह गया. सामने पार्टी प्रधान का बड़े से शीशे में मढ़ा हंसता हुआ फोटो बराबर खांसता हुआ और वे फोटो के आगे धूपदीप, फलफू्रट थाली में सजा साष्टांग अधखुली धोती में पड़े हुए.

यह देख कर मैं चकराया. मुझ से रहा न गया, सो पूछ बैठा, ‘‘भाई साहब? यह क्या…?’’

‘‘पूजा हो रही है और क्या?’’ कह कर वे लेटेलेटे ही पार्टी प्रधान के फोटो के आगे नाक रगड़ने लगे, तो मैं डरा. बचीखुची नाक भी जाती रही तो…

पर तभी कहीं से भविष्यवाणी हुई कि इन के नाक होना या न होना कोई माने नहीं रखता गधे. इन की नाक हो, तो भी ये वैसे ही, न हो तो भी ये वैसे ही.

‘‘पर… किस की पूजा?’’

‘‘अपने इन भगवान की और किस की? इन के आगे इन दिनों हर अवतार फेल है. जो ठान लेते हैं, बस कर के ही दम लेते हैं.’’

देशभर की उदासी चेहरे पर मलने के बाद उन्होंने फोटो के आगे रखे प्रसाद में से एक केला मेरी ओर बढ़ाया, तो मैं ने केला उन से प्रसाद रूप में ले कर जेब में डालते हुए पूछा, ‘‘पर यह सब चुनाव क्षेत्र के लोगों ने देख लिया, तो उन में क्या मैसेज जाएगा भाई साहब?

‘‘उन्होंने आप को काम करने के लिए वोट दिया है, दिनरात इन की तसवीर के आगे लेटे रहने के लिए नहीं.’’

‘‘भाड़ में जाए काम. यहां तो पार्टी में बने रहने के लाले पड़े हैं. जो मैसेज जाना हो जाए. मुझे अपने को देखना है.

‘‘सोच रहा हूं, अपनी जबान सिलवा लूं. कहीं गलती से भी ऐसावैसा सच जैसा कहीं बक दिया तो… इस देश में तुम किसी जबान सिलने वाले को जानते हो क्या?’’

इतना कह कर उन्होंने हाथ में घंटी पकड़ी और घंटी की ‘टनटन’ के साथ सुर में गाना गाने लगे, मानो पार्टी प्रधान को अपना दुखड़ा सुना रहे हों, ‘तुम्हीं हो फादर, मदर तुम्हीं हो, तुम्हीं हो नियरर, डियरर तुम्हीं हो… जो खिल सकें न वे फूल हम हैं… तुम्हारे चरणों की धूल हम हैं. दया की दृष्टि सदा ही रखना… तुम्हीं हो बिस्तर, चादर तुम्हीं हो… तुम्हीं हो लोटा, गागर तुम्हीं हो…’

लोग क्या कहेंगे : दूसरे की जिंदगी में ताकझांक करने वालों से ऐसे निबटे

पढ़ाई पूरी कर सिल्की को नौकरी शुरू किए बमुश्किल 7-8 महीने ही हुए होंगे कि अगलबगल और रिश्तेदारों ने उस का जीना हराम कर दिया. घरपरिवार या पासपड़ोस में कहीं कोई शादीब्याह या और कोई गैटटुगैदर हो, उसे देखते ही सवालों की बाढ़ आ जाती.

‘‘अरे सिल्की, पढ़ाई पूरी हो गई? कहां जौब कर रही हो? कितना पैकेज मिलता है?’’

‘‘और बताओ क्या चल रहा है आजकल…’’ इस सवाल से सिल्की बहुत घबराती थी, क्योंकि अगला सवाल उसे मालूम होता.

‘‘तब शादी कब कर रही हो? कोई ढूंढ़ रखा है, तो बता दो हमें?’’

खींसें निपोरती कोई भी आंटी, बूआ या मौसी की आत्मीयता प्रदर्शित करते इस प्रश्न से सिल्की को बड़ी कोफ्त होती. फलस्वरूप उस ने धीरेधीरे इन पारिवारिक समारोहों से खुद को काट लिया.

‘‘अरे, जिस की शादी/जन्मदिन/मुंडन में आए हो उस की बातें करो, प्लेट भर खाओ. मेरी जोड़ी क्यों बनाने लगते हो,’’ सिल्की भुनभुनाती.

वही हाल उस की मम्मी का था. जब भी फ्लैट की महिलाओं की मंडली जमती उसे देखते ही सभी जैसे मैरिज ब्यूरो खोल लेतीं, ‘‘मेरा बेटा सिल्की से 3 वर्ष छोटा है यानी सिल्की की उम्र …इतनी हो गई,’’ एक कहती.

‘‘अरे, इस उम्र में तो हमें 2 बच्चे भी हो गए थे,’’ दूसरी गर्व से कहती.

‘‘देखो तुम्हें अब लड़का देखना शुरू कर देना चाहिए,’’ तीसरी समझाने के स्वर में कहती.

‘‘कहीं किसी से कोई चक्कर तो नहीं, किस जाति/धर्म का है? भाई आजकल तो लड़कियां पहले से ही किसी को पटा लेती हैं. अच्छा है न तुम्हें दहेज नहीं देना पड़ेगा,’’ 2 बेटों की मां अनीता बुझे स्वर में कहतीं मानों उन के भोलेभाले बेटों के शिकार के लिए ही लड़कियां पढ़ाईलिखाई कर रही हैं.

‘‘अभी सिल्की का आगे पढ़ने का इरादा है, एकाध साल नौकरी कर वह पढ़ेगी पहले…’’ सिल्की की मां रोंआसे स्वर में कहती.

‘‘देखो, पहले शादी कर दो, फिर पढ़ाई होती रहेगी,’’ फिर एक कहती.

‘‘वक्त पर शादी होना ज्यादा जरूरी है वरना बाद में खोजती रह जाओगी,’’ दूसरी डराने की कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.

‘‘मेरी बेटी होती तो मैं कब के हाथ पीले कर निश्चिंत हो जाती. अपने बेटे की तो मैं 25 वर्ष से पहले जरूर कर दूंगी शादी वरना ये आजकल की लड़कियां बड़ी तेज होती हैं… जाने कौन उसे अपने चंगुल में फंसा ले,’’ 2 बेटों की सुखी मां प्रवचन देती.

सिल्की की मां से सुना नहीं जाता. वहां से जाने के सिवा कोई चारा नहीं बचता. पर संशय का बीज तो दिमाग में अंकुरित होने लगता कि क्या सच में बेटी को ज्यादा पढ़ाना गलत होगा या बड़ी उम्र में शादी करने में वाकई दिक्कत आएगी?

टांग खींचने में आगे

यही वे 4 लोग होते हैं, जिन के डर से या यों कहें इन्हीं 4 लोगों को खुश करने के लिए कितने फैसले लिए जाते हैं. इन्हीं 4 लोगों की बातों पर किसी लड़की का समय से पहले विवाह करा दिया जाता है या नौकरी छुड़ा दी जाती है. ये लोग लड़कों से ज्यादा दूसरों की लड़कियों में रुचि रखते हैं. इन्हीं 4 लोगों को खुश रखने के लिए कभी देर रात आने पर डांट पड़ जाती है, तो कभी किसी ड्रैस को पहनने से मना कर दिया जाता है.

पर क्या वास्तव में ये 4 लोग कभी खुश होते भी हैं? नहीं, कभी नहीं. टांग खींचने में भले अग्रसर रहे हों पर सराहना के बोल इन के मुंह से कम ही फूटते हैं. जैसे हम सिल्की की बात कर रहे थे. कभी कोई रिश्तेदार तो कभी कोई पड़ोसी आए दिन यह चर्चा शुरू कर ही देता, विभिन्न उदाहरणों के साथ जहां उम्र बढ़ जाने से लड़की की शादी नहीं हुई या लड़की ने कोई गलत

कदम उठा लिया. अवसादों में घिरती सिल्की की मम्मी ने आखिर उस के लिए वर ढूंढ़ना शुरू ही कर दिया.

कुछ ही महीनों में शादी निबटा कर उस की मम्मी एक दिन फिर उन्हीं की संगत में बैठी थी कि पीछे से फुसफुसाहट सुनाई दी.

‘‘कितनी बदइंतजामी थी सिल्की की शादी में,’’ एक स्वर.

‘‘मुझे तो स्वीट डिश मिली ही नहीं. यदि व्यवस्था नहीं कर सकते हैं, तो क्यों इतने लोगों को बुला लेते हैं,’’ दूसरी फुसफुसाहट.

‘‘लड़के को देखा मुझे तो बड़ी उम्र का लग रहा था,’’ तीसरी चुगली.

सिल्की की मम्मी सोच रही थी, उस ने बेटी की शादी उन की सलाहानुसार कर दी, सराहना करेंगे उस की. पर यहां तो कोई और ही रिकौर्ड कानों में बज रहा था. अंदर से चिढ़ते हुए पर साक्षात मुसकराते हुई पीछे घूमी. बोली, ‘‘बहनजी, क्या हाल हैं आप के बेटे के? कल उसे बाजार में देखा… कोई लड़की उस की मोटरसाइकिल के पीछे बैठी थी.’’

‘‘अरे …वह… हां… बेटा बता रहा था उस के औफिस की ही कोई लड़की है, जो जबरदस्ती उस के गले पड़ी रहती है,’’ पर बेटे की मां के चेहरे की रंगत इस उड़ती खबर से अवश्य उड़ने लगी थी. अब 4 लोगों के सामने उन की नाक जो कट रही थी. अब बातचीत का रुख सिल्की की शादी से हट दूसरी ओर चला गया.

सिर्फ अफसोस

जहां 4 लोग मिलेंगे वहां 4 बातें होंगी ही. देशविदेश, प्रदेश से होती हुई चर्चा का विषय अपने आसपास ही टिकता है. ज्यादातर उन पर जो मौजूद नहीं होते. फिर दूसरों के मामलों में टांग अड़ाना हमेशा से प्रिय शगल होता है. इन बातों के लिए सिर्फ महिलाओं को ही जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए, पुरुष भी गौसिप करने का सामाजिक दायित्व उतनी ही शिद्दत से निभाते हैं.

हम सिल्की की बात कर रहे हैं. सिल्की की मम्मी को लगा कि उस ने बेटी की शादी कर दी. उसे आगे नहीं पढ़ने दिया. अब 4 लोग उस से खुश रहेंगे और वह मिसाल बन जाएगी 4 लोगों के बीच. पर अफसोस ऐसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि सालडेढ़ साल गुजरते ही वही लोग उसे फिर सवालों के कठघरे में खड़ा करने लगे.

‘‘सिल्की कैसी है? शादी के बाद खुश तो है?’’ एक ने पूछा.

‘‘कितने साल हो गए उस की शादी को? खुशखबरी कब सुना रही है?’’ दूसरी की उत्सुकता का अंत नहीं था.

‘‘अरे, अभी तो नईनई नौकरी जौइन की है उस ने. पहले कुछ दिन पैर जमा ले,’’ सिल्की की मां ने समझाना चाहा.

‘‘सही वक्त पर बच्चे हो जाने चाहिए वरना फिर जिंदगी भर पछताना पड़ेगा. जाने क्याक्या दवाएं ये लोग खा लेती हैं कि बाद में गर्भधारण ही नहीं कर पातीं,’’ 4 बच्चों की अम्मां मुफ्त में अपनी राय बांचने लगी.

फिर तो सिलसिला ही चल पड़ा तरहतरह के उदाहरणों का जहां लड़की को बच्चा होने में दिक्कतें आई थीं. 4 लोग बैठ अपने ज्ञान के पिटारे से मोती लुटाने लगे. अब सिल्की की मां समझ गई कि कोई अंत नहीं इन की समझाइश का. वह भी अब होशियार हो चुकी थी. झट बातों को किसी दूसरी की तरफ मोड़ते हुए अपने प्रश्नों का तीर चला दिया. फिर सारे तीर उधर ही बरसने लगे और इस बीच सिल्की की मां को नानी बनने हेतु बेटी को समझाएं जैसे टिप्स से राहत मिल गई.

अब जब वह होशियार हो चली थी तो 4 लोगों की संगत उसे भाने लगी. 4 लोगों के साथ बैठ वह भी दूसरों को ज्ञान की बातें सिखाने लगी. सच अब उसे उस समय अनुपम सुख का अनुभव महसूस होने लगता जब मुफ्त में बिना मांगे किसी को सलाह देती. 4 लोगों के साथ किसी 5वें को शर्मिंदा करना, उस की खाल खींचना जैसे स्वर्गिक आनंद का रस लेने लगी.

निजी जीवन में दखलअंदाजी

अब सिल्की की मां भी नहीं सोचती कि किसी को बारबार टोकना कि उस की बेटी/बेटे की शादी क्यों नहीं हो रही है से किसी पर क्या प्रभाव पड़ेगा. दूसरों से खुशखबरी सुनने को आतुर उन का मन अब एक क्षण नहीं सोचता कि पता नहीं किस कारण से कोई मां नहीं बन पा रही है. अपने आसपास की छोटी से छोटी बातोें को जान लेने की प्रवृत्ति उसे यह संकोच नहीं करने देती कि वह किसी के निजी जीवन में दखलंदाजी कर रही है. अपने बच्चे भले फेल हो रहे हों पर दूसरों के बच्चों का प्रतियोगी परीक्षा में क्या परिणाम आया, यह उत्सुकता वह 4 लागों के साथ जरूर जाहिर करती. अपनी सास को भले खाना नहीं दे पाती सिल्की की मां पर अनीता की बहू क्यों मायके चली गई उस का प्रिय विषय रहता.

सिल्की की मां धीरेधीरे जान ही नहीं पाई कि वह भी उन 4 लोगों में शामिल हो गई है जिन से लोग बचना चाहते हैं, जिन की बातों को कोई गंभीरता से नहीं लेता और जिन का

काम ही है कुछ न कुछ कहते रहना. बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना टाइप उन के व्यवहार को लोग सिर्फ सुनते हैं पर करते अपने मन की ही हैं.

आपके लुक में निखार लाने के लिए पेश हैं मेकअप टिप्स फौर यंग लुक

किसी खास अवसर पर अपने लुक में और भी निखार लाने के लिए पेश हैं, कुछ ब्यूटी टिप्स, जिन्हें आजमा कर आप भी बन सकती हैं ब्यूटी क्वीन:

प्री मेकअप टिप्स: उम्र चाहे जो भी हो, सीटीएमपी नामक 4 स्टैप्स हर हाल में मेकअप से पहले जरूरी हैं. एक उम्र के बाद त्वचा अधिकतर ड्राई हो जाती है, इसलिए क्लींजिंग के लिए केवल नरिशिंग क्लींजिंग मिल्क या फिर क्लींजिंग क्रीम का इस्तेमाल करें. यह त्वचा को रूखा किए बिना डीप क्लीन करेगी. बढ़ती उम्र की निशानियों में बेहद कौमन समस्या है ओपन पोर्स की. समय के साथ पोर्स बढ़ जाते हैं, जिस के चलते स्किन पर ऐजिंग नजर आने लगती है. इन पोर्स को मिनिमाइज करने के लिए क्लींजिंग के बाद टोनिंग जरूर करें. मौइश्चर की कमी से चेहरे पर रिंकल्स दिखाई दे सकती हैं, इसलिए स्किन पर मौइश्चराइजर जरूर लगाएं. सूर्य की हानिकारक किरणें न केवल त्वचा को झुलसा देती हैं, बल्कि इन से त्वचा में झुर्रियां, ब्राउन स्पौट्स आदि भी दिखाई देने लगते हैं. इसलिए धूप में निकलने से पहले सनस्क्रीन लगा कर स्किन को इन हानिकारक किरणों से प्रोटैक्ट करें.

फेस मेकअप: मेकअप की परफैक्ट शुरुआत के लिए सब से पहले फेस पर प्राइमर का इस्तेमाल करें. इस के अंदर सिलिकौन होता है, जो चेहरे की फाइन लाइंस व रिंकल्स वाली जगह को भर देता है. चूंकि मेकअप करने के बाद ऐजिंग साइंस ज्यादा दिखाई देते हैं, इसलिए इन्हें मेकअप से पहले फिल करना जरूरी होता है. डीडी यानी डैमेज डिफाइंग क्रीम से चेहरे को स्मूद टैक्स्चर दें. इस क्रीम में शामिल विटामिन और मिनरल्स स्किन को रिंकल्स से बचाते हैं. अगर चेहरे पर मार्क्स या स्कार्स हैं तो उन्हें लिक्विड कंसीलर की मदद से कवर करें और अगर आंखों के नीचे गड्ढे हैं, तो उस जगह पर लाइट डिफ्यूजर पैन का इस्तेमाल करें. यह पैन लाइट को रिफ्लैक्ट करता है, जिस से वह जगह भरी हुई नजर आती है.

आई मेकअप की तरफ आगे बढ़ने से पहले चेहरे पर लूज पाउडर लगा कर फेस मेकअप को फिक्स कर दें. उम्र के इस पड़ाव तक आतेआते चेहरा पहले से पतला हो जाता है. ऐसे में अपने फेस के फीचर्स को हाइड नहीं, बल्कि हाईलाइट करें. इस के लिए चीकबोंस के ऊपर, आईब्रोज के नीचे और ब्रिज औफ द नौज पर हाईलाइटर का इस्तेमाल करें और चीकबोंस पर क्रीम बेस्ड ब्लशऔन ही लगाएं. यह स्किन को हाईड्रेट करेगा साथ ही मेकअप पर ग्लो भी लाएगा.

आई मेकअप: एक उम्र के बाद आईब्रोज झुकने और हलकी होने लगती हैं. ऐसी आंखों को उठाने के लिए आईपैंसिल की मदद से आर्क बना लें. अगर आर्क बना हुआ है, तो उसे पैंसिल से डार्क कर लें. इस से आंखें उठी हुईं और बड़ी नजर आएंगी.

आई मेकअप के लिए शिमर, ग्लिटर और बहुत ज्यादा लाउड शेड्स का इस्तेमाल न करें, क्योंकि इन से रिंकल्स और भी ज्यादा रिफ्लैक्ट होती हैं. आईशैडो के लिए सौफ्ट पेस्टल शेड्स का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस के साथ ही आईज के आउटर कौर्नर्स पर डार्क ब्राउन शेड से कंटूरिंग जरूर करें. इस से आंखें डीप सैट और यंग नजर आएंगी.

त्वचा में कुदरती नमी और लचीलेपन में कमी आने के कारण आंखें पहले से थोड़ी छोटी हो जाती हैं. ऐसे में लिक्विड आईलाइनर के बजाय पैंसिल आईलाइनर या फिर आईलैश जौइनर का इस्तेमाल करना ठीक रहता है. आईलाइनर की एक पतली सी लाइन लगा कर स्मज कर लें. ध्यान रखें कि वह ड्रूपिंग न हो, बल्कि उठी हुई हो. इस ऐज में आंखों पर कलर्ड लाइनर लगाने से बचें. आईलैशेज पर वौल्यूमाइजिंग मसकारे का डबल कोट जरूर लगाएं. इस ऐज तक आतेआते लगभग सभी की आंखें छोटी होने लगती हैं, इसलिए वाटरलाइन पर व्हाइट पैंसिल लगाएं, क्योंकि इस से आंखें बड़ी नजर आती हैं.

लिप मेकअप: होंठों पर ब्राइट शेड की लिपस्टिक लगा कर ज्यादा यंग दिख सकती हैं. यदि होंठ पतले हो गए हैं, तो उन्हें ब्राइट शेड के लिपलाइनर से आउटलाइन करें और लिप प्लंपर का इस्तेमाल करें. ऐसा करने से लिप्स पाउटी नजर आएंगे. इस के बाद लिपलाइनर से मैच करती ब्राइट शेड की लिपस्टिक से लिप्स को फिल करें.

– भारती तनेजा, डाइरैक्टर औफ एल्प्स ब्यूटी क्लीनिक ऐंड ऐकैडमी

अनाथालयों का सच : देश में बहुत बुरी है अनाथालयों की हालत

अनाथालयों की हालत देश में बहुत बुरी है. एक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि अनाथ बच्चे सरकारी अनाथालयों में ही खतरे में रहते हैं. उन से मारपीट तो होती ही है, उन्हें देशीविदेशी ग्राहकों के सैक्स के लिए भी भेजा जाता है और अनाथालयों के संचालक सरकारी ग्रांट का भी फायदा उठाते हैं और इस तरह की ऊपरी आमदनी का भी.

सरकारी अफसरों की लापरवाही और मिलीभगत के शिकार अनाथालय ही नहीं, बल्कि अनाथ, बेबस, भोले, बेगुनाह बच्चे होते हैं और वे इस तरह अपना बचपन बिताते हैं कि उन के पास अपराधी बनने के अलावा कोई और रास्ता ही नहीं बचता. उन्हें बेचा भी जाता है और गोद देने के नाम पर मोटी वसूली भी की जाती है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सारे पहलुओं पर तो नहीं आदेश दिया है. इस मामले में यह भी साफ हुआ है कि सरकारी विभागों का निकम्मापन इतना है कि वे तय की गई ग्रांट भी इस्तेमाल नहीं करते और 2013-14 में 65 करोड़ रुपए खर्च किए बिना रह गए. जहां जितना खर्च हुआ, उस में से कितना बच्चों के लिए गया, कितना जेबों में, यह दूसरी बात है.

सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्देश दिए हैं, पर यह कहीं नहीं कहा कि अगर इन निर्देशों का पालन नहीं किया गया तो कौन सजा पाएगा. सरकारी कानूनों में नागरिक को हर गलती के लिए जुर्माना भरना पड़ता है या फिर लंबी अदालती लड़ाई के बाद छुटकारा मिलता है. कई बार जेल भी हो जाती है.

असल में अनाथ बच्चों के बारे में समाज का रूखा बरताव इस सोच के कारण है कि वे अपने पिछले जन्मों का फल भुगत रहे हैं. पुनर्जन्म में भरोसा रखने वाले भारतीय समझते हैं कि अगर मातापिता नहीं हैं, तो यह बच्चे का दोष है और उसे भुगतना होगा. इस के लिए दूसरों को परेशान होने की क्या जरूरत है.

सुप्रीम कोर्ट ने भी कहीं भी इस सोच पर कोई टिप्पणी नहीं की है. अगर इस मूल बात को समझा जाए कि अनाथ बच्चे सरकार और समाज की जिम्मेदारी हैं, क्योंकि उन के मातापिता के न रहने पर वही उन की जगह लेंगे, तो बात दूसरी होती. अब सरकार और समाज एक दया के रूप में टुकड़े अनाथों को फेंकते हैं, जैसे जानवरों को फेंके जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देशों में तरहतरह की कमेटियां तो बनवाई हैं, पर अगर वे कमेटियां वर्षों से कुछ नहीं कर पाईं, तो बच्चे क्या करेंगे?

सुप्रीम कोर्ट के पास यह मामला एक समाचार के सहारे 2007 में आया था, पर फैसला सुनातेसुनाते 2017 हो गया. बच्चे 10 साल वैसे ही रहे, जैसे 2007 में थे. यह कैसा न्याय है? देश का कानूनी ढांचा भी सरकारी ढांचे की तरह लचर है और समाज तो उस से भी गयागुजरा है. अनाथ बच्चों के लिए लोग अपने सप्ताह के 2 घंटे भी लगाने को तैयार नहीं होते. अनाथालयों में अगर सेवा करने वाले युवा ही मिल जाएं, तो उन का कायापलट हो जाए. फेसबुक और ह्वाट्सअप पर घंटों लगाने वाले कुछ घंटों से बहुतकुछ कर सकते हैं, पर यहां तो डारडार पर निकम्मापन है, भाग्य है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें