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62 में सेवानिवृत्ति, आरक्षण कमजोर करने की साजिश

भारतीय जनता पार्टी के लिए सब से आसान काम है दलितों व पिछड़ों को बेवकूफ बनाना, वह भी इस तरह कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. दलितों व आदिवासियों को संविधान बनने के समय और शूद्र व पिछड़ों को मंडल आयोग द्वारा मिला संवैधानिक आरक्षण सीधे खत्म करने का जोखिम उठाने से बच रही भाजपा इस थ्योरी पर चल रही है कि आरक्षण को कमजोर कर उस की अहमियत ही खत्म कर दो और ऐसे करो कि आरक्षित तबका भौचक्का, मुंह ताकता रह जाए कि आखिर हो क्या रहा है.

चुनावी साल में फूंकफूंक कर कदम रख रहे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अकसर अपनी छाती ठोंक कर कहते रहते हैं कि जब तक वे हैं, कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता. लेकिन दलितों के हितों

के दावे करते रहने वाले शिवराज सिंह चौहान आरएसएस की आरक्षण खत्म करो की मंशा पूरी करने के लिए जिन नएनए टोटकों का आविष्कार कर रहे हैं, सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की उम्र पहले 58 से 60 व अब 60 से 62 साल कर देना उन में से एक है.

इन दिनों रोज दर्जनों घोषणाएं कर चुनावी तैयारियों में जुटे शिवराज सिंह ने एक अहम फैसला  यह लिया है कि अब राज्य में सरकारी कर्मचारियों के रिटायरमैंट की उम्र 62 साल होगी. यह घोषणा वाकई अहम है जिस से उन्होंने एक तीर से एक ही निशाना साधा है. उन की मंशा हर किसी की समझ में नहीं आ रही कि यह आरक्षण को कमजोर करने की साजिश है और इस का बड़ा असर दलित आदिवासियों व पिछड़े वर्ग के बेरोजगार नौजवानों पर पड़ेगा.

यह है घोषणा

रिटायरमैंट की उम्र बढ़ाने की घोषणा करने की देर थी कि राज्यभर के सरकारी कर्मचारियों में खुशी की लहर दौड़ गई. जगहजगह नारियल फोड़े गए और मंदिरों में प्रसाद चढ़ाया गया. जिन कर्मचारियों को 1 अप्रैल, 2018 को रिटायर होना था उन की नौकरी की मियाद 2 साल और बढ़ गई. वे 2 साल और ब्राह्मणश्रेष्ठों की तरह हलवापूरी खाएंगे और दक्षिणा ले कर जनजनार्दन को तृप्त करेंगे.

कहनेसुनने को तो यह चुनावी घोषणा है जिस के बारे में मीडिया और जानकारों ने तुरंत आंकड़े पेश कर दिए कि इस से क्याक्या प्रभाव पड़ेंगे. लेकिन हकीकत में इस घोषणा के माने कुछ और भी हैं जिस से मायूस आरक्षित वर्ग है जो समझ तो रहा है कि एक और धोखा सामाजिक समरसता के बाद दे दिया गया है, लेकिन वह कर कुछ नहीं पा रहा.

सेवानिवृत्ति की उम्र 62 साल कर देने से राज्य के 4 लाख 35 हजार सरकारी कर्मचारियों को फायदा मिलेगा. अगले 2 साल में राज्य के 33 हजार कर्मचारियों को रिटायर होना था जो अब 2020 तक नौकरी पर रहेंगे. इस फैसले से गलेगले तक कर्ज में डूबे मध्य प्रदेश के सरकारी खजाने के 6,600 करोड़ रुपए बचेंगे. रिटायर्ड कर्मचारियों को भविष्य निधि, बीमा और दूसरा पैसा दिया जाता, वह भी हालफिलहाल बच गया है.

दलील में भी छल

रिटायरमैंट की उम्र बढ़ाने में भी शिवराज सिंह चौहान ने बड़ी चालाकी से दलितों को ही ढाल की तरह इस्तेमाल किया है जिस से उन का दलित हितों का ढिंढोरा डपोर शंख नजर आने लगा है.

यह रही हकीकत

रिटायर होने से बच गए 4 लाख

35 हजार कर्मचारियों में से दलित कितने हैं, इस सवाल का ठीकठाक जवाब किसी के पास नहीं है. वजह, तमाम आंकड़ेबाजी में यह अहम आंकड़ा किसी ने पेश नहीं किया. सामान्य प्रशासन विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बात वाकई हैरान करने वाली है कि आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों की तादाद 10 प्रतिशत के आसपास ही है यानी लगभग 45 हजार दलित और 3 लाख 90 हजार सवर्ण कर्मचारियों को फायदा होगा. पिछड़े तो नाममात्र के होंगे क्योंकि जब ये नौकरियां आती थीं तब तक मंडल आयोग की सिफारिशें लागू नहीं हुई थीं.

इस अधिकारी के मुताबिक, इस आंकड़े में अगर फर्क भी आया तो वह किसी भी सूरत में 2 फीसदी से ज्यादा नहीं होगा यानी फैसले से बड़ा फायदा सामान्य वर्ग के कर्मचारियों को होना तय है.

दरअसल, जो कर्मचारी रिटायर होने से बच गए उन में से अधिकांश की भरती 1980 के बाद हुई थी. नौकरियों में आरक्षण तब भी था पर उस दौर में आरक्षण का फायदा कम ही लोग उठा पा रहे थे. इस का सटीक उदाहरण आज भी आरक्षित वर्ग के खाली पड़े हजारों पद हैं जिन पर भरतियां हुई ही नहीं हैं.

दूसरा, तब पिछड़ा वर्ग आरक्षण के दायरे में नहीं आता था. उस की गिनती सामान्य वर्ग में ही होती थी. तब 10 फीसदी भी पिछड़े सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर पाते थे. दोटूक कहा जाए तो लगभग 75 प्रतिशत ऊंची जाति वालों को इस फैसले का लाभ मिलना है.

उलट इस के, लगभग 50 फीसदी आरक्षित वर्ग के युवा बेरोजगार अब 2 साल तक और सरकारी नौकरियों से वंचित रहेंगे, क्योंकि जब कर्मचारी रिटायर ही नहीं होंगे तो पदों पर भरतियां भी नहीं होंगी.

और बढ़ेंगे दलित बेरोजगार

सवर्णों को तो शिवराज सिंह ने खुश कर दिया लेकिन बेरोजगारों की नाराजगी भी मोल ले ली. राज्य में बेरोजगारों ने बेरोजगार सेना के बैनर तले एकजुट हो कर इस फैसले का विरोध करते हुए इसे बेरोजगारी बढ़ाने वाला बताया जो एक कड़वा सच मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देशभर का है.

यह कम हैरत की बात नहीं कि इस बेरोजगारी की दोहरी मार भी उन दलित युवाओं पर ही ज्यादा पड़ने वाली है जो पढ़ाईलिखाई सरकारी नौकरी मिलने की उम्मीद में करते हैं. उलट इस के, सवर्ण युवा बड़ी तादाद में प्राइवेट सैक्टर में चले जाते हैं.

अधिकतर दलित गरीब होते हैं, इसलिए वे महंगी ऊंची शिक्षा नहीं ले पाते और न ही प्राइवेट सैक्टर में उन्हें आसानी से नौकरी मिलती है. एक दलित युवा निरंजन सिंह का कहना है कि बीई इलैक्ट्रौनिक्स करने के बाद उस ने प्राइवेट सैक्टर में नौकरी हासिल करने की कोशिश की, पर वह नहीं मिली. अब निंरजन भोपाल के अशोका गार्डन स्थित एक रैफ्रीजरेशन कंपनी में मामूली पगार पर काम कर रहा है और इंतजार कर रहा है कि कब सरकारी नौकरी की जगह निकले और वह कोटे से नौकरी पाए. निरंजन का एक डर यह भी है कि अगर 2 वर्षों में कोर्ट से मामला नहीं निबटा तो उस की नौकरी की अधिकतम उम्र निकल जाएगी.

तेजी से पढ़ते दलित बेरोजगारों की तादाद बढ़ने की वजह यह भी है कि राज्य सरकार ने साल 1998 के बाद नियमित नौकरियां देनी ही बंद कर दी हैं. 1998 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने रिटायरमैंट की उम्र 58 से बढ़ा कर 60 साल की थी. उन्हें इस का खासा फायदा भी मिला था. तब सवर्ण कांग्रेस की तरफ झुके थे और दलित भी, क्योंकि 1998 में रिटायर होने वाले दलित कर्मचारियों की संख्या न के बराबर थी, लिहाजा, उन्हें कोई नुकसान इस फैसले में नजर नहीं आया था. दूसरा, 20 साल पहले दलित व पिछड़ा युवा आज की तरह ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था.

बहुजन संघर्ष दल के अध्यक्ष फूलसिंह बरैया कहते हैं, ‘‘अब दलित पढ़लिख रहा है और भाजपा का दोहरा चरित्र भी समझने लगा है.’’ आरक्षण में प्रमोशन को फूलसिंह बरैया एक धोखा व बहाना मानते हुए कहते हैं कि अगर वाकई शिवराज सिंह चौहान दलितों के प्रति इतने संवेदनशील और गंभीर हैं जितना वे खुद को बताते हैं तो अगले

2 वर्षों में रिटायर होने जा रहे कर्मचारियों की ही उम्र बढ़ाते पर चूंकि वे भी आरक्षण कमजोर करो मुहिम की टीम के मैंबर हैं, इसलिए उन्होंने सारी गाज दलितों पर गिरा दी है.

58 साल ही होना चाहिए

राजनीति से परे प्रशासनिक नजरिए से देखें तो भी रिटायरमैंट की उम्र 62 साल किया जाना कोई तुक की बात नहीं है. वजह सिर्फ इतनी नहीं कि सरकार युवाओं को नौकरियां नहीं दे पा रही, बल्कि यह भी है कि 25-30 साल की सरकारी नौकरी में कर्मचारी खासा पैसा बना लेता है.

सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह हर साल 3 बार महंगाई भत्ते और वेतनवृद्धि के जरिए बढ़ती है जो पद और तनख्वाह के हिसाब से औसतन 5 हजार से ले कर 20 हजार रुपए सालाना तक होती है. यह भार आखिरकार आम लोगों को ही ढोना पड़ता है. इस पर भी अगर रिटायरमैंट की उम्र बढ़ा दी जाए तो यह भी बोझ सरकार को नहीं, बल्कि आम लोगों ही उठाना पड़ता है.

दूसरा, 95 फीसदी सरकारी नौकरियों में ऊपरी कमाई भी कर्मचारियों को होती है. रिटायरमैंट की उम्र 58 साल होना इस लिहाज से भी ठीक है कि इस उम्र तक कर्मचारी हर लिहाज से सैटल हो जाता है.

रही बात हालिया फैसले की, तो रिटायरमैंट की उम्र बढ़ाया जाना सिर्फ चुनावी शिगूफा नहीं है बल्कि यह दलितों और पिछड़ों के पेट पर इस तरह लात मारने वाली बात है कि वह चिढ़ न पाए, बस, बेबसी से तिलमिला कर रह जाए.

विदिशा की एक दलित युवती नेहा अहिरवार का मत है कि भाजपा आरक्षण भले ही खत्म न करे, लेकिन उस का महत्त्व कम करने से चूक नहीं रही. अगर 2019 में भी वह सत्ता में आई तो दलितों के पर कतरने और अंगूठा काटने के लिए वह देशभर में शिवराज सिंह का यह फार्मूला लागू कर सकती है जिस के चलते दलित व पिछड़े युवाओं को नौकरी की गुंजाइश ही खत्म हो जाएगी और उन की हिम्मत व आस टूट जाएगी.

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उत्तर कोरिया की सही दिशा

उत्तर कोरिया के सनकी, सिरफिरे, बमबारी में तेजी दिखाने वाले तीसरी पीढ़ी के युवा तानाशाह किम जोंग उन से यह आशा नहीं थी कि पहले वे ट्रेन से बीजिंग जाएंगे और उस के तुरंत बाद दक्षिण कोरिया पहुंच जाएंगे और वह भी बेहद परिपक्वता व गांभीर्य के साथ.

द्वितीय विश्वयुद्घ में कोरिया जापान के अधीन आ गया था पर 1945 में जापान की पराजय के बाद रूस व अमेरिका ने कोरिया को अकारण 2 भागों में बांट दिया था. एक का नेता बने किम इल सुंग और दूसरे के ली बिओम सियोक. दोनों ने कोरिया को एक करने की कोशिश की पर उत्तर कोरिया चीन व रूस समर्थक कोरिया चाहता था जबकि दक्षिण कोरिया अमेरिका समर्थक.

1953 में बंद हुई लड़ाई के बाद दोनों के बीच वाकयुद्ध चालू है और किम इल सुंग की तीसरी पीढ़ी के किम जोंग उन ने भी परंपरा को कायम रखा. उत्तर कोरिया इस बीच गुप्तरूप से दुनियाभर से हथियार खरीदता रहा और आणविक बम भी बनाता रहा. उस की आणविक क्षमता व अब तक की नीति के चलते तीसरा विश्वयुद्ध छिड़ने के खौफ से दुनिया भयभीत रही है.

पिछले कुछ महीनों में या तो डोनाल्ड ट्रंप की धमकियों के कारण या फिर चीन के बेहद कुशल डिप्लोमैट शासक शी जिनपिंग के समझाने पर उत्तर कोरिया ने अपने तेवर ही ढीले नहीं किए, किम ने नया इतिहास भी रच डाला.

वे उत्तर कोरिया व दक्षिण कोरिया की सीमा तक गए और पैदल चल कर दक्षिण कोरिया में पहला कदम रखा, जहां दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन इंतजार कर रहे थे. चौंकाने वाली बात यह रही कि बिगडै़ल किम जोंग उन ने हाथ मिलाने के बाद मून को 9 इंच की सीमा की पटरी पार कर उत्तर कोरिया में आने को कहा. वहां दोनों नेताओं ने हाथ मिलाए, फोटो खिंचवाए.

किम जोंग उन ने शांति संधि पर हस्ताक्षर करने के बाद मून से न केवल हाथ मिलाया, बल्कि उन के गले लग कर उन का अभिवादन भी किया. ये दोनों काम स्क्रिप्टेड नहीं थे यानी पहले से तय नहीं थे, लेकिन बेहद संतोष व आशा वाले हैं.

कोरियाई विभाजन क्या समाप्त होगा, यह कहना तो गलत होगा पर दुनिया एक संभावित खतरे से दूर हो गई है. उत्तर कोरिया बेहद गरीब है, लगभग भारत जैसा, जबकि दक्षिण कोरिया जापान जैसा समृद्ध है. बहरहाल, कई बार सिरफिरे नेता भी इतिहास रच डालते हैं, यह किम जोंग उन ने साबित किया है. किम ने यह भी मान लिया है कि एक भूभाग में रहने वालों को एकदूसरे के दुश्मन होने से समस्या का हल नहीं निकलता, जैसे पश्चिम जरमनी, पूर्व जरमनी या भारत, पाकिस्तान. भारत व पाकिस्तान के भूखे देशवासियों का अरबोंखरबों रुपया हर साल सेना पर खर्च होता है जबकि दोनों जानते हैं कि न एकदूसरे को हरा सकते हैं और न हरा कर कुछ पा ही सकते हैं.

उत्तर कोरिया को इतने साल कम्युनिस्ट धर्म ने अलग रखा. अगर उत्तर कोरिया में लोकतंत्र जल्दी आ जाता तो वह कहीं का कहीं होता. अब 65 साल पीछे रहने के बाद वह दक्षिण कोरिया से हमेशा पिछड़ा रहेगा पर मरे नेताओं को कब्र से निकाल कर तो सजा दी नहीं जा सकती.

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मैं किसी रैट रेस में भागना नहीं चाहती : सोना महापात्रा

ओडिशा के कटक शहर में जन्मी गायिका, संगीतकार, गीतकार और निर्माता सोना महापात्रा एक जानीमानी परफौर्मर हैं. उन्होंने अलबम, संगीत वीडियो, विज्ञापनों के जिंगल्स और 14 भाषाओं में कई फिल्मों के 150 गाने गाए हैं. स्पष्टभाषी और दृढ़प्रतिज्ञ सोना और उन के म्यूजिक डायरैक्टर पति राम संपत ने साथ मिल कर अपना प्रोडक्शन हाउस ‘ओम ग्रोन’ खोला है. उन का शो ‘लाल परी मस्तानी’ रेड एफएम रेडियो का एक आकर्षक शो है. मुंबई के सांताक्रुज इलाके में उन के घर पर उन से मिलना हुआ. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के अंश :

‘लाल परी मस्तानी’ शो से जुड़ने की वजह क्या है?

यह एक रेडियो शो है. जहां गाने बजाए जाते हैं. हर शो में एक थीम महिलाओं की समस्या से जुड़ी हुई होती है और मैं उस पर बातचीत करती हूं. यह एक पुरानी कहानी है जो मुझ से जुड़ी हुई है. मुझे याद आता है एक बार मैं 15 साल पहले दिल्ली गई थी. मैं एक गैस्टहाउस में बैठी थी. वहां कई देशों के ट्रैवलर्स आए हुए थे. वहां एक टूरिस्ट लड़की अफगानिस्तान के बौर्डर साहवान से घूम कर आई थी. उस का कहना था कि वहां पर तालिबानी आतंक के चलते आज गानाबजाना बंद कर दिया गया है. महिलाओं को घर पर रहने को मजबूर कर दिया गया है. सब को बुरका पहना दिया गया है. वहीं एक महिला लाल रंग के कपड़ों में घूमती और गानाबजाना करती है और दरगाह में रहती है.

वहीं से मुझे एक आइडिया आया. मैं ने सोशल मीडिया पर ‘लाल परी मस्तानी’ के नाम से हैंडल भी बनाया है. इस के द्वारा मैं लोगों से जुड़ती हूं, जिस से वे समाज में कुछ अच्छा कर सकें. इस तरह मैं ने ‘लाल परी मस्तानी’ प्रोजैक्ट लौंच किया है, जहां पर मैं हर महीने गाने रिलीज करती हूं और उन के साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा करती हूं. सोशल मीडिया पर पहले मीराबाई, फिर अमीर खुसरो और आगे कबीर को लाऊंगी.

इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद एमबीए किया, लेकिन घर में कला का माहौल मैं ने बचपन से देखा है. मेरा सपना था कि मैं एक अच्छी परफौर्मर बनूं. मुझे औडियंस के साथ जुड़ने की बहुत तमन्ना थी फिर चाहे वह किसी भी रूप में क्यों न हो. स्कूलकालेज में भी कई बार मंच पर गई हूं. मुझ में किसी स्थान की संस्कृति और लोगों के बारे में जानने की बहुत रुचि है. संगीत मेरा पैशन है. मैं ने 9 साल की उम्र से शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू कर दिया था और 3 से 4 गुरुओं से तालीम ली है. लेकिन मुंबई आ कर काम करना आसान नहीं था. मुंबई के बारे में मैं ने बहुतकुछ नकारात्मक बातें सुन रखी थीं. तभी मैं ने उस से हट कर कुछ अलग करने की सोची.

मैं ओडिशा की हूं और कई नई जगहों पर जा चुकी हूं. इसलिए हर जगह के बारे में जानकारी थी. मुंबई आने के बाद मैं ने नौकरी शुरू कर दी. इस के साथसाथ विज्ञापनों के जिंगल्स में काम करने लगी. काम करने से मुझे साथी कर्मियों का मानसिक रूप से बहुत सहयोग मिला. मैं हमेशा से आत्मनिर्भर थी और अब तक वैसी ही हूं.

पहली सफलता कब मिली?

मेरी हमेशा से इच्छा थी कि पहली सफलता मुझे अपने गाने से मिले और ऐसा हुआ भी. मुझे मेरे ही अलबम से कामयाबी मिली. अपनी शर्तों पर मैं ने उसे रिलीज किया था. यहां तक के सफर के बारे में बताएं?

मैं ने कोई फार्मूला नहीं बनाया था. जो जैसे आता गया, मैं करती गई. सब एकसाथ चलता रहा. अलबम बनाने में 2 साल लगे. उस दौरान लोगों से मिली और फिर फिल्मों में गाने गाए. प्रोड्यूसर बनी. ऐसे ही कारवां चलता गया. मेरी कोशिश रहती है कि हर दिन कुछ अच्छा काम करूं. मेरे अंदर जो प्रतिभा है उसे मैं ने बाहर निकालने की कोशिश की है. सिंगिंग, राइटिंग और किसी शो का निर्माण करना, यह सब मेरी मेहनत और लगन से संभव हुआ है. मुझे ये सब पसंद है, इसलिए समय का बंटवारा उसी हिसाब से कर लेती हूं. थकान होती है, पर पैशन की वजह से वह बाहर निकल जाती है.

क्या अब भी आप संघर्षरत हैं?

हां, संघर्ष यह है कि मैं अपनी प्रतिभा को दर्शकों के आगे पूरी तरह से लाना चाहती हूं, लेकिन मैं किसी रैट रेस में भागना नहीं चाहती.

क्या महिला होने की वजह से आगे बढ़ने में संघर्ष अधिक होता है? यह सही है कि आज भी महिलाओं के प्रति लोगों की सोच बदली नहीं है. कई जगहें तो और भी खराब हो चुकी हैं. बौलीवुड में पहले मंगेशकर बहनों के बिना कोई अलबम रिलीज नहीं होता था. अभी अवार्ड शो में केवल पुरुषों को ही संगीत के अवार्ड मिलते हैं, जबकि महिलाओं को बहुत कम.

महिला सिंगर बहुत हैं, लेकिन एकदो का ही नाम सामने आता है. पहले ऐसा नहीं था. इंडस्ट्री में कुछ आजादखयाल के लेखक और संगीतकार हुआ करते थे जो फिल्म द्वारा समाज में कुछ सुधार लाने की सोचते थे. अब फिल्म म्यूजिक में भी महिलाओं की आवाज बहुत कम सुनाई पड़ती है, जो गलत है.

आगे की क्या योजनाएं हैं?

अभी मैं लाल परी मस्तानी शो के अलावा एक फिल्म भी बना रही हूं और स्टेज शो करती हूं्. इन सब में मैं पूरे महीने व्यस्त रहती हूं. मेरी इच्छा बहुत है, पर जिसे हाथ में लिया है उसे अच्छी तरह पूरा करने की कोशिश कर रही हूं.

फिल्मों में गानों का स्तर घट रहा है, इसे कैसे देखती हैं?

पुराने गाने आज भी चलते हैं और अधिक दिनों तक ‘रिमिक्स’ का दौर नहीं चल सकता. नए गानों को लाना ही पड़ेगा.

परिवार का कितना सहयोग रहा?

मेरे पति राम संपत ने मुझे बहुत सहयोग दिया है. उन्होंने मुझे काम करने की पूरी आजादी दी है. हम दोनों एकसाथ बहुत काम करते हैं और एकदूसरे को सहयोग भी देते हैं. कामयाबी का श्रेय मैं अपने परिश्रम और अपने पति राम को देती हूं.

समय मिलता है तो क्या करती हैं?

समय मिलता है तो हर भाषा का लोक संगीत सुनती हूं. लाइट म्यूजिक बहुत सुनती हूं.

नए टैलेंट को इस क्षेत्र में आने के लिए क्या संदेश देंगी?

मुझे बुरा लगता है जब नए बच्चे जल्दी से सिंगर बनने की इच्छा रखते हैं. शौर्टकट कुछ नहीं होता. रिऐलिटी शो में जीतने पर भी आप कुछ अधिक नहीं कर पाते, मेहनत करनी पड़ती है.

सरिता के पाठकों को क्या संदेश देना चाहती हैं?

महिलाएं आत्मनिर्भर बनें. अपनी हर कामयाबी को खुद सैलिब्रेट करें, तभी वे अपने बच्चों को आगे बढ़ा सकती हैं. सहमी, डरी और त्याग करने वाली महिलाएं कभी कुछ नहीं कर पातीं.

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आसाराम : पौराणिक धर्म का आधुनिक बलात्कारी चेहरा

धर्म के नाम पर ढोंग, पाखंड और आडंबर के खेल में 4 दशकों तक जनता को मूर्ख बनाता रहा आसुमल सिरूमलानी उर्फ आसाराम बापू आखिरकार आजीवन सीखचों के पीछे चला गया. अदालत में साढे़ 4 वर्षों तक चली कार्यवाही में आसाराम के झूठ, पाखंड से आवरण हटा कर उसे बलात्कारी सिद्ध कर बेनकाब कर दिया गया.

यह फैसला उस समय आया है जब देश में चारों ओर धर्म, जातीय नफरत की फैली विषैली हवा का माहौल है और समूचा देश बच्चियों व महिलाओं के साथ हो रहे पाश्विक हमलों से आहत,  उद्वेलित है. बच्चियों के यौनशोषण को ले कर धर्मों में तूतू मैंमैं हो रही है. असुरक्षा और अविश्वास के वातावरण के बीच जोधपुर की विशेष अनुसूचित जाति, जनजाति अदालत ने ढोंगी आसाराम को आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने का फैसला सुना कर न्याय के प्रति एक नई आशा जगाई है.

15 अगस्त, 2013 की रात को आसाराम ने जोधपुर स्थित अपने आश्रम में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की लड़की के साथ यौन दुराचार किया. लड़की आसाराम के छिंदवाड़ा स्थित गुरुकुल में पढ़ती थी. उसे कुछ मानसिक परेशानी हुई तो स्कूल के निदेशक शरद चंद्र और वार्डन शिल्पी मिल कर उसे आसाराम के पास जोधपुर ले गए. उस के मातापिता को भी जोधपुर बुला लिया. कहा गया कि लड़की पर ‘बुरी आत्मा’ का फेर है, इस का इलाज किया जाएगा.

जोधपुर आश्रम में आसाराम ने उसे कुटिया में बंद किया. डेढ़ घंटे तक बंधक बना कर रखा. लड़की के मांबाप को बाहर बैठा कर रखा गया. बलात्कार किए जाने के बाद लड़की अपने मांबाप और भाई के साथ रवाना हुई तो रास्ते में उस ने मांबाप के गुरु यानी आसाराम की काली करतूत का खुलासा किया.

घिनौनी करतूत   

पीड़िता ने अपने बयानों में जो कुछ बताया, अदालत ने 25 अप्रैल, 2018 को दिए अपने फैसले में उसे शामिल किया, ‘‘मैं जोधपुर के मणाई आश्रम में सीढ़ियों के पास बैठी हुई थी तो बापू ने पीछे वाले दरवाजे से इशारा कर के मुझे बुलाया. मैं आ गई तो बापू ने कहा कि जाओ, देख कर आओ कि तुम्हारे मम्मीपापा क्या कर रहे हैं. मैं ने जा कर देखा तो पापा चले गए थे, मम्मी गार्डन के गेट पर बैठी थीं. वापस आ कर मैं ने बापू को बताया कि मम्मी बैठी हैं और पापा चले गए हैं.

‘‘उस दौरान बापू ने पहले से ही रूम की लाइट बंद कर दी थी और वे बेड पर लेटे हुए थे. उन्होंने मुझे बेड पर अपनी साइड में बिठा लिया और फिर मेरा हाथ सहलाने लगे. उन्होंने मुझ से कहा कि पढ़लिख कर क्या करोगी. मैं तुम्हें वक्ता बना देता हूं. तुम समर्पित हो जाओ. हमारे साथ ही रहना. मैं तुम्हारी जिंदगी संवार दूंगा. फिर उठ कर उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया और बदतमीजी करने लगे.

‘‘जब उन्होंने अपने कपड़े उतार लिए, तो मैं चिल्लाई कि आप यह क्या कर रहे हो, तो उन्होंने मेरा मुंह दबा दिया और धमकाया कि जरा सी भी आवाज निकाली तो देखना, मैं क्या करता हूं. तुम्हारे मांबाप को मरवा दूंगा. तुम्हारा खानदान खत्म हो जाएगा.

‘‘फिर वे बदतमीज करने पर उतारू हो गए, कहा कि मेरे प्राइवेट पार्ट को छुओ और…करो.’’

पीडि़ता ने इस आशय के बयान दिए हैं कि आसाराम ने उस के प्राइवेट पार्ट और मुंह पर और सभी जगह किस किया. वह रो रही थी कि उसे छोड़ दो.

पीड़िता ने अपने बयान में आगे बताया कि उस ने आसाराम से कहा, ‘‘हम तो आप को भगवान मानते हैं. आप यह क्या कर रहे हो.’’

करीब सवा घंटे बाद आसाराम ने उसे छोड़ा और कहा कि अपने बाल व कपड़े ठीक कर लो, फिर जाना और किसी से कुछ मत बताना.

अदालत ने अपने फैसले में लिखा है कि पीड़िता इस घटना से शौक्ड रह गई. जिस आदमी को वह भगवान समझती थी उस ने उस के साथ ऐसी घिनौनी हरकत की. उस के कपड़े खोल डाले. वह कुछ सोच नहीं पा रही थी. जब वह कमरे से बाहर आई तो उस की मां गार्डन के गेट पर बैठी हुई थी. वह अपनी माता के साथ रूम में आ गई. उस की माता ने पूछा भी था कि क्या हुआ तो उस ने कहा कि अभी यहां से चलो. बापू अच्छा इंसान नहीं है.

जज ने फैसले में आगे लिखा है कि  इस साक्ष्य से अभियोजन पक्ष आरोपित अपराध की आधारशिला साबित करने में सफल हुआ है. यह तय कानून है कि पीडि़ता का एकमात्र साक्ष्य ही अपराधी को दंडित करने के लिए पर्याप्त है, बस, सावधानी यह रखनी है कि बयान संदेह से परे और विसंगतियों से हीन हो. न्यायाधीश के अनुसार, उक्त साक्ष्य को किसी संपुष्टिकारक साक्ष्य की आवश्यकता नहीं है. न्यायालय ने उपरोक्त साक्ष्य को देखते हुए यह तय किया कि अभियुक्त ने उस पर आरोपित अपराध किया ही होगा.

थाने पहुंचा मामला

लड़की ने मांबाप को सारी बात बताई तो पिता ने कहा कि वह बापू से पूछेगा कि आखिर उस ने ऐसा क्यों किया. लड़की के पिता कर्मवीर सिंह ने आसाराम के सहायक से पूछा कि बापू कहां है. सहायक ने बताया कि उन का 19 अगस्त को दिल्ली में सत्संग है.

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मांबाप लड़की को ले कर दिल्ली आए. वहां आसाराम का सत्संग का पंडाल तो लगा था पर वह नहीं आया. इस पर उन्होंने दिल्ली के कमला मार्केट थाने में एफआईआर दर्ज कराई. पुलिस ने जीरो एफआईआर लिखी. पीडि़ता के बयान लिए और मैडिकल जांच कराई. बाद में जीरो एफआईआर जोधपुर ट्रांसफर कर दी गई. 31 अगस्त को जोधपुर पुलिस ने आसाराम को बड़ी हीलहुज्जत के बाद इंदौर से गिरफ्तार कर लिया.

लड़की के मातापिता आसाराम के अंधभक्त थे. ट्रांसपोर्ट का व्यवसाय करने वाला लड़की का पिता आसाराम को खुलेहाथों दानदक्षिणा देता था. उस ने शाहजहांपुर में आसाराम के लिए एक आश्रम भी बनवा कर दिया था. आसाराम के प्रवचनों में यह परिवार नियमित जाता था.

तरहतरह के हथकंडे

आसाराम ने सजा से बचने के लिए तरहतरह के हथकंडे अपनाए. शुरू में उस ने लड़की को झूठा बताया. कहा गया कि 50 करोड़ रुपए झटकने के लिए साजिश की गई है. साथ ही, लड़की के घर वालों पर समझौते के लिए दबाव बनाया. खुद की बीमारी का बहाना बनाया और स्वास्थ्य के झूठे प्रमाणपत्र पेश किए. सरकार और अदालतों पर दबाव डालने के लिए प्रदर्शन करवाए.

जमानत के लिए आसाराम व उस के अंधभक्तों द्वारा सुप्रीम कोर्ट तक को प्रभावित करने की कोशिशें की गईं. मामले को सांप्रदायिक रंग दिलाने के प्रयास किए गए. नेताओं से कहलवाया गया कि किसी हिंदू संत को ही क्यों फंसाया गया. सोनिया गांधी के इशारे पर फंसाने का आरोप लगाया गया. यहां तक कि आसाराम ने खुद को नपुंसक साबित करने की कोशिश भी की.

आसाराम पर जब बलात्कार का आरोप लगा तो भक्तों की फौज यह सच स्वीकार करने को तैयार नहीं थी. यह अराजकता का ऐसा नमूना है कि उस के जेल जाने और मुकदमा शुरू होते ही तमाम और मामले खुले, मामलों में गवाहों पर जानलेवा हमले भी शुरू हो गए. उन के एक  निजी सहायक और आश्रम के एक विश्वासपात्र रसोइए समेत 3 गवाहों की हत्याएं भी कर दी गईं. कई और हत्याएं हुईं, कई गवाह लापता हुए.

आसाराम को बचाने के लिए दिल्ली से राम जेठमलानी, सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे नामी वकीलों को जोधपुर बुलाया गया. फिर भी उसे छुड़ाया नहीं जा सका. उस की जमानत के लिए 12 बार अर्जी लगाई गईं पर हर बार वे निरस्त कर दी गईं.

संतों की छवि को नुकसान

अपने फैसले में जज मधुसूदन शर्मा ने लिखा है, ‘‘अभियुक्त ने न केवल पीडि़ता का विश्वास तोड़ा, आम लोगों में संतों की छवि को नुकसान भी पहुंचाया. सजा देने का उद्देश्य समाज को सुरक्षित करना है और अभियुक्त को रोकना है. अपराध न केवल पीडि़त, बल्कि उस समाज के विरुद्ध भी है जिस से अपराधी और पीडि़त संबंध रखते हैं. उचित दंड नहीं दिया तो कोर्ट कर्तव्य से पथभ्रष्ट हो जाएगा.ॉ

फैसले में आगे लिखा है, ‘‘अभियुक्त के प्रति अवांछित सहानुभूति न्याय व्यवस्था को अधिक हानि पहुंचाएगी क्योंकि इस से जनता का विधि की व्यवस्था में विश्वास कम होगा. यदि न्यायालय क्षतिग्रस्त व्यक्ति को संरक्षित नहीं करेगा तो क्षतिग्रस्त व्यक्ति स्वयं बदला लेने के मार्ग पर चलेगा.’’

आश्रमों का साम्राज्य

देश में मौजूद आसाराम के 230 से ज्यादा आश्रमों में से कई विवादों में रहे हैं. खासतौर से सरकारी जमीन से ले कर आम लोगों की जमीन हथियाने के मामले सामने आए. गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में तो शासन ने आश्रम से जमीनें छीन ली हैं.

गुजरात के मोटेरा आश्रम में 2008 में 2 मासूम चचेरे भाइयों दीपेश और अभिषेक वाघेला की लाशें नदी की तलहटी में मिली थीं. ये आसाराम के आश्रम में रहते थे. उन के मातापिता ने काला जादू के नाम पर हत्या की आशंका जताई थी. इस साल जनवरी में भी ओडिशा का एक साधक खून से लथपथ हालत में मृत मिला था.

2008 में ही छिंदवाड़ा के गुरुकुल में 2 छात्रों के शव बाथरूम में मिले थे. उस समय इस आश्रम को बंद करने की मांग उठी थी. जिस नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में आसाराम को सजा हुईर् है वह भी इसी गुरुकुल में पढ़ती थी.

70 के दशक में साबरमती तट के छोटे से आश्रम से निकल कर 19 देशों में 400 से अधिक आश्रमों, 4 करोड़ से ज्यादा भक्तों और 10 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक की संपत्ति का स्वामी बना आसाराम ऐसा नाम है जो धर्म की डगर पर सरपट दौड़ता रहा. उस के आगे नतमस्तक बड़ेबड़े राजनेता, उद्योगपति और राजनीतिबाज उस की राह आसान बनाते रहे.

अहमदाबाद के मोटेरा में आसाराम ने एक कुटिया बनाईर् थी. कुछ समय बाद यहां आश्रम बन गया. इस के बाद राज्य सरकार उसे जमीन दान में देती रही.

80 से 90 के दशक के बीच कांग्रेस सरकार ने 14 हजार 500 वर्ग मीटर जमीन दान दी. 1997 से 1999 के बीच भाजपा सरकार उस पर मेहरबान हुई. उसे 23 हजार वर्ग मीटर जमीन और दे दी. इस के बाद 10 एकड़ जमीन दी गई.

इसी तरह मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड की सरकारों ने उसे जमीनें दीं. कई जगह तो जमीनें कब्जा ली गईं. छिंदवाड़ा में 10 एकड़ जमीन पर आश्रम है, यह जमीन किसी महिला की थी, जिस की हत्या के बाद इसे हड़प लिया गया. अहमदाबाद में एक किसान ने आसाराम पर 15 हजार गज जमीन कब्जाने का आरोप लगाया था. दिल्ली के रिज क्षेत्र में कई एकड़ में आश्रम बना कर सरकारी जमीन कब्जा ली गई, जिस का मामला अदालत में है.

इस तरह जमीन के बिना ही आसाराम की कुल संपत्ति करीब 10 हजार करोड़ रुपए आंकी गई. यह बात 2014 में उस के विभिन्न आश्रमों में छापों के दौरान बरामद दस्तावेजों से साबित हुई.

और भी हैं चाणक्य

ये ढोंगी लोगों को त्याग और आत्मसंयम की सीख देते हैं जबकि खुद महंगी गाडि़यों में घूमते हैं. आलीशान आश्रमों में रहने वाले इन ढोंगियों की फेहरिस्त लंबी है. इन में आसाराम, उस का बेटा नारायण साईं, निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह, राधे मां उर्फ सुखविंदर कौर, इच्छाधारी बाबा भीमानंद उर्फ शिवमूर्ति द्विवेदी, स्वामी नित्यानंद, सच्चिदानंद उर्फ सचिन दत्ता शामिल हैं. ये बाबा स्वयं को भगवान बताने से परहेज नहीं करते.

पिछले कईर् सालों से हिंदुत्व को ले कर कारोबारी संतों, ज्योतिषियों और धर्म के तथाकथित संगठनों व राजनीतिबाजों ने हिंदुओं को पूरी तरह से गर्त में धकेल दिया पर हाल के दिनों में अदालतों की सख्ती से इन में से कइयों के ढोंग की पोलें खुली हैं.

कुछ दिनों पहले बाबा राम रहीम के आश्रम में चल रही काली करतूतों का काला चिट्ठा जगजाहिर हुआ था. हरियाणा की 2 लड़कियों ने राम रहीम पर बलात्कार का आरोप लगाया था. बाद में अदालत के आदेश पर उसे जेल भेज दिया गया. उस पर एक पत्रकार की हत्या का मामला भी दर्ज है. गुरमीत राम रहीम का साम्राज्य 700 एकड़ में फैला है.

दिल्ली के रोहिणी में आध्यात्मिक विश्वविद्यालय चलाने वाला कथित बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित शिष्या के साथ दुष्कर्म के आरोप के बाद से फरार है. कहा जाता है कि बाबा 16,800 लड़कियों के साथ यौनसुख पाना चाहता था ताकि ऐसा करने के बाद उसे सिद्धि मिल सके.

आश्रम के अंदर सुरंग में बने कमरे में वह लड़कियों को गुप्त प्रसाद देने के बहाने दुष्कर्म व अश्लील हरकतें करता था.

इस से पहले हरियाणा में सतलोक आश्रम के बाबा रामपाल का साम्राज्य तहसनहस हुआ था. उस पर भी महिलाओं के साथ यौनशोषण, हत्या जैसे कई मामले हैं.

ऐसी तमाम घटनाएं बताती हैं कि  बाबागीरी इस देश में इतना बड़ा धंधा है जहां बिना किसी निवेश के भक्तों की फसल बोई जा सकती है और उसे बारबार काट कर मालामाल हुआ जा सकता है.

अंधभक्त दर अंधभक्त

मजे की बात है कि आसाराम, रामपाल, राम रहीम जैसे बाबाओं की गिरफ्तारी के बाद भी इन के अंधभक्तों की जरा भी कमी नहीं हुई. इन्हीं अंधभक्तों की अंधश्रद्धा का फायदा उठा कर ये ढोंगी बाबा और स्वयंभू संत हर गलत काम को अंजाम देने से नहीं चूकते.

देशभर में कुकुरमुत्तों की तरह फैले बाबाओं ने सामाजिक विभाजन का पूरा फायदा उठाया. 4 वर्णों में बंटी मानसम्मान की मारी हजारों जातियां, उपजातियां ऐसे लोगों के चंगुल में फंसा दी गईं. दलितों, पिछड़ों को ईश्वर, पूजापाठ, मंदिरों से दूर रखा गया. इन बाबाओं ने इन वर्गों के लोगों को बरगलाया और अपने आश्रमों से जोड़ा. शिष्य मूंडे़ गए. उन्हें प्रवचनों में बुलाया गया. इन जातियों को जोड़ कर धूर्त और चालाक लोग गिरोह बना कर स्वयंभू संत,  गुरु हो गए.

अपनी बातों में फंसा कर ये ढोंगी लोगों को  बरगलाते हैं. आसाराम जैसे लोगों की वाकपटुता की वजह से भोलेभाले लोग आसानी से उन की बातों में आ जाते हैं. ये तरहतरह की मोहमाया त्याग, स्वर्गनरक, पापपुण्य, दानदक्षिणा के बहाने बना कर लोगों से पैसे ऐंठते रहते हैं. ये लोगों की कमजोरियों का फायदा उठाने की कला बखूबी जानते हैं. आस्था के नाम पर भक्तों के साथ खिलवाड़ किया जाता है.

ये पाखंडी धर्म की मार्केटिंग की बारीकियां जानते हैं. अखबार, टैलीविजन, इंटरनैट के माध्यम से लोगों के दुखों का उपाय करने के लिए स्वयं का प्रचार करते हैं. अपने दुखपरेशानियों में उलझी जनता इन के झांसे में आसानी से आ जाती है.

आसाराम विरोध करने वालों को चुप कराने की अकसर कोशिश कराता रहा. ‘सरिता’ ‘गृहशोभा’ पत्रिकाओं में आसाराम  के पाखंडों के खिलाफ जब कुछ लिखा जाता था, तो वह अपने अनुयायियों, खासतौर से महिलाओं को भेज कर कार्यालय में हंगामा करवाता था. संपादक व लेखकों को धमकियां दी जाती थीं.

फर्जी बाबाओं का साम्राज्य रातोंरात खड़ा नहीं होता. धीरेधीरे ये जनता के दुखदर्द की नस पकड़ते हैं. धर्र्म के नाम पर ऐश करने वाले ये बाबा जितने दोषी हैं उतने ही इन के भक्त हैं. राम रहीम की गिरफ्तारी के वक्त उस के अंधभक्तों ने पंचकूला में बवाल मचाया था, जिस से कई लोगों की जानें चली गईं. सरकारी कार्यवाही में बाधा डालने की कोशिशें की जाती रहीं. उसी तरह आसाराम की गिरफ्तारी से ले कर सजा सुनाए जाने तक उस के अधंभक्त धमकियां, हत्याएं, तोड़फोड़, धरनेप्रदर्शन करते रहे.

धर्म का धंधा ऐसा धंधा है, जहां बिना किसी प्रयास के बड़ेबड़े राजनीतिबाज और रईसों की फौज न सिर्फ  अनुयायी बनी दिखती है बल्कि आसाराम सरीखे ऐसे फर्जी चरित्र वालों की ढाल बन कर खड़ी भी नजर आती है.

नरेंद्र मोदी का आसाराम बापू के चरणों में सिर झुका कर प्रणाम करता हुआ वीडियो आजकल बहुत चर्चित है. ये घटनाएं साबित करती हैं कि हमारा समाज किस तरह बाबाओं के सामने घुटने टेक कर बैठा हुआ है.

धर्मसंरक्षित यौनशोषण

दरअसल, यौनशोषण धर्र्म द्वारा संरक्षित है. धर्म की किताबों में देवताओं, अवतारों द्वारा स्त्रियों के साथ यौन संबंध बनाने, मौजमस्ती, ऐयाशी करने के किस्से भरे पड़े हैं. समाज की मानसिकता स्पष्ट है कि स्त्री दोयम दर्जे की है, पुरुष की अंकशायिनी बनना ही उस की नियति है. यही उस का धर्म है.

ग्रंथों में बलात्कार की अनगिनत कथाएं हैं. ब्रह्मा द्वारा अपनी पुत्री के साथ सहवास करना, ऋष्यशृंग, ऋषि पराशर द्वारा मछुआरे की बेटी के साथ, वेदव्यास द्वारा अंबिका, अंबालिका और दासी, महात्मा दीर्घतमा द्वारा सुदेष्णा और उन की दासी व अन्य ऋषियोंमुनियों द्वारा दूसरों की स्त्रियों व कन्याओं के साथ यौन संबंध बनाने की कहानियां भरी पड़ी हैं. ऐसे किस्से ढोंगी बाबाओं को ललचाते रहे हैं.

देखिए कुछ उदाहरण-

तत: कालेन महता मेनका परमाअप्सरा:,

पुण्करेषु नरश्रेष्ठ स्नातुं समुपचक्रमे.

तां ददर्श महातेजा मेनका कुशिकात्मज:,

रूपेणाप्रतिभा तत्र विद्युत जलदे यथा.

दृष्टवा कंदर्पवशमो मुनिस्तामिदमब्रवीत्,

अप्सरास्स्वागत तेअस्तु वस चेह ममाश्रमे.

अनुगृहीष्व भद्रं ते मदनेन सुमोहितम्.

(वाल्मीकि रामायण 1/63/4,5,6)

अर्थात बहुत समय बीत जाने पर मेनका नाम की परम सुंदरी अप्सरा पुष्कर में स्नान करने आई. महातेजस्वी विश्वामित्र ने कुशिक की पुत्री मेनका को देखा. अद्वितीय रूप वाली मेनका बादलों में बिजली के समान मालूम पड़ती थी. विश्वामित्र ने कामभावना के वशीभूत हो कर उस से कहा, ‘‘हे अप्सरा, तुम्हारा स्वागत है. तुम यहां आश्रम में रहो. मुझ काम मोहित पर तुम कृपा करो.’’

पराशर ऋषि ने सत्यवती से बलात्कार किया. पराशर सत्यवती के रूपसौंदर्य़ पर आसक्त हो गए और बोले, ‘‘देवी, मैं तुम्हारे साथ सहवास करना चाहता हूं.’’ सत्यवती ने कहा, ‘‘मुनिवर, आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या. हमारा सहवास संभव नहीं है. मैं कुंआरी हूं, मेरे पिता क्या कहेंगे.’’ पराशर मुनि बोले, ‘‘बालिके, तुम चिंता मत करो. प्रसूति होने पर भी तुम कुंआरी ही रहोगी.’’ पराशर ने फिर मांग की तो सत्यवती बोली, ‘‘मेरे शरीर से मछली की दुर्गंध निकलती है.’’ तब उसे आशीर्र्वाद देते हुए पराशर ने कहा कि तुम्हारे शरीर से जो मछली की गंध निकलती है वह सुगंध में परिवर्तित हो जाएगी. इतना कह कर पराशर ने अपने योगबल से चारों ओर घने कोहरे का जाल रच दिया ताकि कोई उन्हें उस हाल में न देखे. इस प्रकार पराशर ने सत्यवती के साथ दैहिक संबंध कायम किया.

इसी तरह वेदव्यास द्वारा अंबिका, अंबालिका और उन की दासी के साथ यौन रिश्ते बनाए गए. इस से धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर पैदा हुए.

लिखा है-

किं तु मातु: स वैगुण्यात् अंध एवं भविष्यति,

तस्य तद् वचनं शृवा माता पुत्रमथाब्रवीत. 10

नांघ: कुरुणां नृपतिरनुरूपस्तपोधन,

ज्ञाति वंशस्य गोप्तारे पितृणां वंशवर्द्धनम्. 11

द्वितीयं कुरुवंशस्य राजानं दातुमर्हसि,

स तथेति प्रतिज्ञाय निश्चक्राम महायशा:. 12

(महा. आदि पर्व, अध्याय 105)

सत्यवती ने व्यास से पुत्र उत्पन्न करने का अनुरोध पांडुवंश की सुरक्षा के लिए किया था. पहला पुत्र अंधा होने की आशंका थी, तो सत्यवती ने कहा कि अंधा बालक कुरुवंश का राजा नहीं हो सकता. ऐसा दूसरा पुत्र दो जो जाति तथा वंश की रक्षा करे. व्यास ने माता की बात मान ली.

ततोनिष्क्रांतमालोक्य सत्या पुत्रमथाब्रवीत,

शशंस स पुनर्मात्रे तस्य बालस्य पांडुताम्. 19

तं माता पुनरेवान्यमेकं पुत्रमयाचत्,

तथेति च महर्षिस्तां मातरं प्रत्यभाषत्. 20

(महा. आदि पर्व अध्याय 105)

दूसरी बार व्यास सहवास कर के निकले तो सत्यवती ने होने वाले बालक के विषय में पूछा. व्यास ने उसे पांडु रंग का बताया तो माता ने एक और बालक के लिए कहा और व्यास मान गए.

तीसरी बार जब व्यास गए तो अंबालिका ने स्वयं न जा कर व्यास के पास अपनी दासी भेज दी. व्यास ने उसे दासी जान कर भी उस से सहवास किया और प्रसन्न हो कर उसे दासीपन से मुक्त कर दिया.

इसी तरह महाभारत में भीष्मसत्यवती संवाद में दीर्घतमा मुनि द्वारा सुदेष्णा और उस की शूद्र दासी के साथ सहवास करने की कथा भी है.

कथा के अनुसार, सुदेष्णा दीर्घतमा धर्मात्मा को अंधा और बूढ़ा समझ कर उन से सहवास करना नहीं चाहती थी और उस ने अपनी शूद्र दासी को उस के पास भेज दिया. दीर्घतमा ने दासी को शूद्र समझते हुए भी कामुकता पूरी की और काक्षीवद् आदि 11 पुत्र उत्पन्न किए.

वाल्मीकि रामायण में कहा गया है-

देवतानां प्रतिज्ञाय गंगामभ्येत्य पावक:,

गर्भ धारय वै दैवि देवतानामिदं प्रियम्

समंततस्य देवीमभ्यषिंचत  पावक:,

तमुवाच ततो गंगा सर्वदेवपुरोगमम्.

शक्ता धारणे देव तेजस्तव समुद्धतम्,

गंगा तं गर्भमतिभास्वरम्.

उत्ससर्ज महातेजा: स्रोतेभ्यो हि तदानद्य,

निक्षिप्त मात्रे गर्भे तु तेजोभिरभिरंजितम.

तं कुमारं ततो जातम्.

अर्थात देवताओं के पास प्रतिज्ञा कर के अग्नि देवता गंगा के पास आया और बोला, ‘‘हे देवी, तुम मुझ से गर्भधारण करो. देवताओं की इच्छा है.’’ तब अग्नि ने उसे गर्भधारण कर दिया. वह उस के तेजोमय गर्भ को धारण करने में कठिनाई अनुभव करने लगी. गंगा ने उस गर्भ को फेंक दिया. उस के फेंकने पर एक तेजस्वी बालक पैदा हुआ.

श्रीमद्भागवत पुराण की एक कथा में कहा गया है कि उतथ्य की गर्भवती पत्नी के साथ बृहस्पति ने बलात्कार किया और उस के वीर्य से भरद्वाज नामक पुत्र उत्पन्न हुआ. बाद में यही भरद्वाज एक बार गंगा स्नान को गया तो वहां कपड़े बदल रही घृताचि नामक अप्सरा को देख कर स्खलित हो गया. शरद्वान ऋषि भी जानपदी नाम की अप्सरा को कम कपड़ों में देख कर वीर्यपात कर बैठे जिस से कृप नामक बालक पैदा हुआ.

पुराणों के अनुसार, बहलाफुसला कर या जबरन स्त्रियों के साथ ऋषियों, मुनियों द्वारा संबंध बनाना बलात्कार नहीं माना जाता था. आसाराम, राम रहीम, रामपाल, वीरेंद्र देव दीक्षित जैसे लोग तो इसी धर्म के प्रतीक हैं. यह वही प्रवृत्ति है जो स्त्रियों के प्रति सदियों से पुराणों में चरितार्थ होती आई है. ये लोग आधुनिक चरित्र हैं जिन्हें स्त्रियों के शोषण का धार्मिक हक प्रदान था. पौराणिक काल में राजा ऐसे ऋषियों को भूमि, धनसंपत्ति और कन्याएं दे कर कृतार्थ होते रहे.

आज के बाबा

आधुनिक साधु और बाबा आज अगर बलात्कार के मामलों में लिप्त पाए जाते हैं तो आश्चर्य कैसा? ये लोग धार्मिक किताबों की कथाओं का फायदा उठाते आए हैं. अपने प्रवचनों में और स्त्रियों को बहलाफुसला कर बिस्तर पर लाने के लिए ऐसी कहानियों का भरपूर इस्तेमाल करते हैं. ये खुद को ईश्वर का अवतार बता कर स्त्रियों को राजी करने में कामयाब हो जाते हैं. इसी वजह से कथित चमत्कारी बाबाओं और स्वयंभू भगवानों द्वारा स्त्रियों के शोषण के किस्से हमेशा से प्रकाश में आते रहे हैं.

सोचने की बात है कि हम किस तरह के समाज में रह रहे हैं. हमारे ज्ञान पर हमें शर्मसार होना चाहिए. हमारा ज्ञान लज्जित नहीं हो रहा? तमाम वैज्ञानिक तरक्की के बावजूद विज्ञान की धज्जियां उड़ रही हैं. अज्ञान का अंधकार चारों ओर दिख रहा है.

सवाल है कि क्या आसाराम, राम रहीम, रामपाल के साथ धर्म का यह घिनौना ढोंग आजीवन कैद हो गया है? नहीं, जब तक इस देश में लोग धर्म, साधुसंत, गुरु, प्रवचकों में सुख, समृद्धि, शांति, ऐश्वर्य तलाशते रहेंगे, तब तक नए आसाराम, रामपाल, रामरहीम पैदा होते रहेंगे और लोगों को ठगते रहेंगे, स्त्रियों का यौनशोषण करते रहेंगे.

हाल के दशकों में कितने ऐसे साधु या बाबा हुए जिन्होंने कोई सुधार या जनजागृति का काम किया हो? कहां हैं धर्म की अच्छाइयों का बखान करने वाले नेता और हिंदू धर्र्म के संगठन? जो संगठन और उन के कार्यकर्ता हाथों में भगवा झंडा और सिर और कंधे पर भगवा दुपट्टा डाले धर्म की अलख जगाते सड़कों पर घूमते नजर आते हैं क्या वे पहले हिंदू धर्म की इस भीतरी गंदगी को साफ करने का बीड़ा उठाएंगे?

क्या अब ऐसे तमाम बाबाओं, साधुसंतों, गुरुओं के खिलाफ समाज को उठ खड़े होने का वक्त नहीं आ गया? इन के विरुद्ध क्रांति की आवश्यकता नहीं है? क्या अभी भी समाज को और ठगे जाने की घटनाओं का इंतजार है?

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बर्थडे स्पेशल : मार्क जुकरबर्ग को है कलर ब्लाइंडनेस

पिछले दिनों फेसबुक डाटा लीक की वजह से फेसबुक और मार्क जुकरबर्ग की बहुत किरकिरी हुई. लेकिन, मार्क जुकरबर्ग ने अपनी गलती स्वीकारते हुए फेसबुक में बड़े बदलाव का ऐलान किया. फेसबुक सोशल नेटवर्किंग साइट्स में सबसे बड़ा प्लेटफौर्म है. जिसके दुनिया भर में करीब 2.2 बिलियन डौलर यूजर्स हैं.

फेसबुक संस्थापक जुकरबर्ग ने जब यह प्लेटफौर्म शुरू किया था शायद उन्होंने भी इसके इतने बड़े होने की कल्पना नहीं की होगी. जुकरबर्ग को लेकर काफी बातें मशहूर हैं. लेकिन, उनकी कुछ बाते ऐसी भी हैं, जिन्हें सुनकर शायद विश्वास भी न हो. दुनिया के अमीरों में शामिल जुकरबर्ग बेहद कंजूस हैं और वह कलर ब्लाइंड भी हैं. जी हां, आज उनके जन्मदिन पर हम आपको उनसे जुड़े कुछ ऐसे ही फैक्ट्स की जानकारी दे रहे हैं.

कंजूसजुकरबर्ग

साल 2012 में अपनी शादी के वक्त मार्क जुकरबर्ग कई लोगों की नजर में कंजूस बन गए थे. दरअसल, हुआ यह था कि उन्होंने अपनी पत्नी प्रिसिला चान को केवल 25,000 डौलर की एक रूबी वेडिंग रिंग गिफ्ट की थी, जबकि उस समय उनके पास 19 अरब डौलर से ज्यादा की संपत्ति थी. इसी वजह से सोशल मीडिया पर जुकरबर्ग का खूब मजाक उड़ाया गया और इस गिफ्ट को लेकर लोगों ने उन्हें कंजूस तक करार दिया.

ऐसे शुरू हुई थी लवस्टोरी

जुकरबर्ग और उनकी पत्नी प्रिसिला चान की पहली मुलाकात साल 2003 में बाथरूम की लाइन में इंतजार करते हुए हुई थी, जब वे हार्वर्ड फ्रेटरनिटि पार्टी में गए थे. इसी मुलाकात से उनकी लव स्टोरी शुरू हुई जो शादी तक पहुंची.

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कलर ब्लाइंड

जुकरबर्ग कई इंटरव्यू में बता चुके हैं कि वे कलर ब्लाइंड हैं. उन्हें लाल और हरा रंग देखने में दिक्कत होती है, जबकि नीला रंग अच्छे से दिखाई देता है. इसी वजह से फेसबुक की साइट पर ब्लू कलर का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया गया है.

ठुकरा दी थी माइक्रोसौफ्ट की नौकरी

जुकरबर्ग को हाईस्कूल के दौरान ही माइक्रोसौफ्ट और AOL जैसी नामी कंपनियों से नौकरी औफर हो गई थी. उस वक्त जुकरबर्ग ने ऐसा प्रोग्राम बनाया था, जिसमें आर्टिफिशल इंटेलीजेंस के जरिए यूजर की म्यूजिक सुनने की आदतों का पता लगाया जा सकता था. इसी वजह से उन्हें नौकरी के ये औफर मिले थे, लेकिन उन्होंने स्वीकारने से इनकार कर दिया.

पहनते हैं एक ही तरह के कपड़े

मार्क जुकरबर्ग अधिकतर समय ग्रे कलर की टीशर्ट पहने दिखते हैं. इसे लेकर उनका कहना है कि वे क्या पहनते हैं इससे ज्यादा जरूरी ये बात है कि वो क्या करते हैं. जुकरबर्ग को सुबह-सुबह अपना समय कपड़े ढूंढने में खराब करना बिल्कुल पसंद नहीं है.

साल भर पहनी केवल एक टाई

मार्क जुकरबर्ग ने साल 2009 में पूरे साल केवल एक ही टाई पहनी थी, क्योंकि वे अपने इंवेस्टर्स को दिखाना चाहते थे कि मंदी के बाद भी फेसबुक अपनी तरक्की को लेकर बेहद सीरियस है.

केवल शाकाहारी ही खाते हैं

मार्क जुकरबर्ग पूरी तरह से शाकाहारी हैं. उनका कहना है कि वे नौनवेज खाना केवल तभी शुरू कर सकते हैं, जब वे किसी जानवर को खुद मारने की हिम्मत जुटा पाएंगे. चूंकि उनमें ऐसी हिम्मत नहीं है, इसलिए उन्होंने शाकाहारी बनने का ही निश्चय किया.

चार साल से एक भी ट्विट नहीं

जुकरबर्ग फरवरी 2003 से ट्विटर पर हैं और जनवरी 2018 तक यहां उनके 5 लाख 56 हजार फौलोअर्स भी हो चुके हैं. लेकिन इसके बाद भी अबतक उन्होंने केवल 19 ट्विट ही किए हैं. आखिरी बार उन्होंने 18 जनवरी 2012 में ट्विट किया था.

फेसबुक पर बनी फिल्म नहीं आई पसंद

साल 2010 में फेसबुक की कहानी को लेकर एक फिल्म बनी थी, जिसका नाम था ‘द सोशल नेटवर्क’. जुकरबर्ग इसे देखकर जरा भी खुश नहीं हुए क्योंकि फिल्म में उनकी छवि को इस तरह से दिखाया गया था जैसे उन्होंने फेसबुक का इन्वेंशन सोशल स्टेटस पाने के लिए किया हो.

जुकरबर्ग के डौगी का भी है FB पेज

मार्क जुकरबर्ग के पास हंगेरियन नस्ल का एक डौग भी है जिसका नाम बीस्ट है. इसके नाम पर भी जुकरबर्ग ने एक फेसबुक पेज बना रखा है. जनवरी 2018 तक बीस्ट के फेसबुक पेज को 27 लाख से ज्यादा लोग लाइक कर चुके थे.

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अमेरिका में एंकर बेबी का धंधा

दुनियाभर के देशों की उन गर्भवती महिलाओं के लिए एक अच्छी खबर है जो अपने होने वाले बच्चे को अमेरिकी नागरिक बनाने का सपना देख रही हैं. प्रजनन के अंतिम हफ्तों में प्रशांत महासागर के पश्चिमी छोर पर सैपनटापूसमूह (नौर्दर्न मैरीना आइलैंड्स) पर पर्यटन के नाम पर घूमनेफिरने आएं और अपने नवजात शिशु के साथसाथ उस के अमेरिकी नागरिक होने का सर्टिफिकेट भी लेते जाएं. यह आईलैंड अमेरिकी जमीन है.

यह स्थान इन दिनों चीनी लोगों के लिए बर्थ टूरिज्म का केंद्र बनता जा रहा है. चीनी महानगर शंघाई या गोंजेओ से मात्र 4-5 घंटे की फ्लाइट है और 45 दिन के लिए तो वीजा की भी दरकार नहीं है. यहां बड़े आकर्षक और मनोहारी समुद्रतट हैं, खरीदारी के लिए मौल, कैसिनो और अस्पताल हैं. स्थानीय चामोरो समुदाय के लोगों की अपनी मेलजोल वाली संस्कृति है. वर्ष 2009 में पहली बार अमेरिका की इमिग्रेशन नीति में जब बदलाव हुआ था तब नियमादोष के चलते साल के अंत तक मात्र 9 चीनी पर्यटक गर्भवती महिलाएं आई थीं, जिन की संख्या अब बढ़ कर 472 हो गई है. इस का भंडाफोड़ उस समय हुआ जब एक लास एंजिल्स से गई गायनीकोलौजिस्ट ने अवैध इमिग्रेशन और करों की चोरी में संशय होने की शिकायत पर एफबीआई से शिकायत कर दी थी. एफबीआई कुछ मामलों में जांच कर रही है, पर धंधा बदस्तूर जारी है.

एंकर बेबी के नाम से इस बहुचर्चित कारोबार में पड़ोसी देश कनाडा के बाद चीनी समुदाय ने लास एंजिल्स और इस के आसपास के छोटे नगरों में गहरी जड़ें जमा ली हैं. इस कारोबार में चीनी समुदाय के एक गिरोह ने एक वैबसाइट  भी तैयार की है, जिस के जरिए गर्भवती महिलाओं को प्रजनन के अंतिम सप्ताहों में बर्थ टूरिज्म के लिए कैलिफोर्निया लाया जाता है. हालांकि एंकर बेबी के लिए भारत से भी गर्भवती महिलाएं आती हैं पर उन की संख्या बहुत कम है.

पियु रिसर्च सैंटर के अनुसार, अमेरिका में जन्म लेने वाले 12 बच्चों में से 1 बच्चा एंकर बेबी होता है. इन में साल 2013 में कुल 36 हजार बच्चे एंकर बेबी थे, जो वैध रूप से बर्थ टूरिज्म के कारण हुए थे. लेकिन अमेरिका में ऐसे लाखों हिस्पैनिक पेरैंट्स हैं जो पंजीकृत नहीं हैं और उन के प्रतिवर्ष 3 लाख बच्चे पैदा होते हैं. इन का अमेरिकी नागरिक के रूप में पंजीकरण होता है. टैक्सास प्रशासन ने वर्ष 2015 में नवजात शिशुओं को सर्टिफिकेट देने में असमर्थता जताई थी, लेकिन यह फैसला अवैधानिक करार दिया गया. कनैडियन नागरिक अमेरिकी महिलाओं को सरोगेसी मदर के रूप में अपना रहे हैं. इस का खर्च बड़ा है.

इस धंधे में मोटी कमाई करने वाले चीनी बिचौलिए ट्रांसलेटर कहे जाते हैं. ये गर्भवती महिला से बतौर पैकेज 50 हजार से 80 हजार डौलर लेते हैं. इस पैकेज में एक महिला के चीन के किसी नगर से अमेरिका आनेजाने, अस्पताल में शिशु के जन्म आदि पर व्यय और समीप में किसी अपार्टमैंट में ठहरने के लिए आधी धनराशि पेशगी ले ली जाती है. यही ट्रांसलेटर नवजात शिशु के लिए पासपोर्ट की भी व्यवस्था करता है. अमूमन एक सामान्य अस्पताल में नौर्मल डिलीवरी के लिए 7,500 डौलर तथा सिजैरियन के लिए 10, 500 डौलर फीस चुकानी पड़ती है, जबकि दवाओं का व्यय अलग है.

पियू रिसर्च सैंटर की रिपोर्ट पर भरोसा करें, तो वर्ष 2013 में 2 लाख 75 हजार महिलाएं पर्यटक के रूप में अमेरिका आई थीं. इन में हजारों गर्भवती थीं. यूएस इमिग्रेशन ऐंड कस्टम एनफोर्समैंट ने लास एंजिल्स, अरवाईंन, सेंटा क्लारा आदि नगरों में 40 स्थानों पर छापे मारे थे. इन छापों के दौरान इस धंधे में लिप्त कौंट्रैक्टर के रूप में काम करने वाले ट्रांसलेटर अमेरिकी इमिग्रेशन नियमों और टैक्स में अनियमितता तथा वीजा अवधि के बिना अनुमति समयावधि से अधिक ठहरने आदि के आरोपी पाए गए थे. इन में कुछ पर केस भी चल रहे हैं.

यह आश्चर्य की बात है कि जो चीन अमेरिका सा लगने लगा है और लगातार तेजी से अपने नागरिकों की दशा सुधार रहा है, वहां भी लोग अमेरिकी नागरिकता पाने के लिए बेचैन रहते हैं.

ध्यान रहे, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान के दौरान एंकर बेबी कारोबार में अनियमितता के सवाल पर संविधान के 14वें संशोधन में बदलाव किए जाने का आश्वासन दिया था. यही नहीं, ट्रंप ने चुनाव अभियान में मैक्सिको सीमा पर दीवार खड़ी करने का भी आश्वासन दिया था, लेकिन अभी तक दोनों पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो सकी है.

संविधान के अनुसार, अमेरिकी जमीन पर जन्म लेने वाले बच्चे को अमेरिकी नागरिकता प्रदान की जाती है. इस के लिए जन्म प्रमाणपत्र दिया जाता है. यही बच्चा आगे चल कर 18 साल की उम्र के बाद अपने माता और पिता को वैधानिक तौर पर ग्रीनकार्ड के रूप में अमेरिका का स्थायी निवासी बना कर अमेरिका ले आता है.

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अकेलेपन से जूझते हम

भारत में 2020 तक 20 प्रतिशत भारतीय मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे होंगे, ऐसा विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट से स्पष्ट हुआ है. हर वर्ष 2 लाख लोग आत्महत्या करते हैं जोकि विश्व में होने वाली आत्महत्याओं का 25 प्रतिशत है. देश में अकेलापन और आर्थिक व मानसिक असुरक्षा बुजुर्गों के दुख के प्रमुख कारण हैं.

7 अगस्त, 2017 को मुंबई के ओशिवारा में अपनी मां से मिलने पहुंचे ऋतुराज साहनी को बंद फ्लैट से अपनी मां आशा साहनी का कंकाल मात्र ही मिला. अमेरिका में बसे बेटे ने आखिरी बार, अपनी मां से फोन पर बात अप्रैल 2016 में की थी. पुलिस को फ्लैट से सुसाइड नोट मिला, ‘‘मेरी मौत के लिए किसी को दोषी न ठहराया जाए.’’ आखिरी बार की बातचीत में महिला ने अपने पुत्र से कहा था, ‘मैं घर में बहुत अकेलापन महसूस करती हूं और ओल्डएज होम जाना चाहती हूं.’ आशाजी के नाम पर सोसायटी में करीब 5 से 6 करोड़ रुपए के 2 फ्लैट हैं.

संदर्भ यही है कि महिला अपने अकेलेपन से ऊब गई थी और मौत को ही अंतिम विकल्प मान कर इस दुनिया से चली गई. मगर अफसोस इस बात का है कि उस के पासपड़ोस के लोगों ने एक बार भी उस विषय में चर्चा नहीं की. क्या उस के घर अखबार वाला या कामवाली बाई कोई भी नहीं आती थी? क्या अपने पुत्र के सिवा किसी अन्य से बातचीत नहीं होती थी? क्या पूरी मुंबई या भारत में उस से संपर्क रखने वाले, उस के सुखदुख के साथी, पड़ोसी, मित्र या रिश्तेदार नहीं बचे थे? ऐसा कैसे हो सकता है जबकि उस की उम्र मात्र 63 वर्ष थी.

यह घटना सामाजिक जीवन के तानेबाने की जटिलता को सुलझाती दिखाई देती है.

समाज और बुजुर्ग

हम समाज से हैं और समाज हम से है. व्यक्ति परिवार, पड़ोस, विद्यालय, समुदाय, राज्य, धर्म आदि विभिन्न लोगों से जुड़ा रहता है. इन सब के बावजूद हम अकेले कैसे पड़ जाते हैं, यह विचारणीय है.

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सही कहावत है, बचपन खेल कर खोया, जवानी नींद भर सोया, बुढ़ापा देख कर रोया. बचपन और जवानी का समय, विभिन्न प्रकार की गतिविधियों, जिम्मेदारियों के बीच कब गुजर जाता है, पता नहीं चलता. लेकिन वृद्धावस्था की समस्याओं की व्यापकता, गंभीरता और जटिलता वर्तमान समय की प्रमुख समस्या के रूप में सामने आ रही है. जैसेजैसे लोगों के रहनसहन के स्तर में उन्नति हुई है, वैसे ही वृद्ध व्यक्तियों की अधिक समय तक जीवित रहने की संभावना भी बढ़ती जा रही है. सो, वृद्ध व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि हो रही है.

समाज की यह परंपरा रही है कि वृद्धों के पुत्र व अन्य संबंधी उन की देखभाल करते हैं. इस के बावजूद, कई परिवारों में वृद्धों को पर्याप्त व आवश्यक देखभाल और सहायता नहीं मिल पाती. इस कारण वे दुखी व शारीरिकमानसिक बीमारियों से त्रस्त रहते हैं. वृद्धों की दुखदाई परिस्थिति के लिए परिवार का परस्पर मतभेद, कमजोर आर्थिक स्थिति, साधनों का अभाव और संतानों का विदेश जा कर बस जाना प्रमुख कारण हैं.

क्या न करें : रेमंड के मालिक विजयपत सिंघानिया का कहना है कि उन का पुत्र उन्हें कौड़ीकौड़ी के लिए तरसा रहा है और वे करोड़ों की जायदाद बेटे के नाम करने के बाद मुंबई की ग्रैंड पराडी सोसायटी में किराए के मकान में रह रहे हैं. जब अरबों की जायदाद पा कर भी किसी संतान में लालच आ सकता है तो मामूली हैसियत वाले परिवारों की बात ही क्या? अपने जीतेजी प्रौपर्टी अपनी संतानों के हवाले बिलकुल नहीं करनी चाहिए.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ बुजुर्ग ही अकेलेपन के शिकार हो मानसिक अवसाद से घिर जाते हैं बल्कि युवा भी जब समाज से कटते हैं तो वे भी मानसिक रोगी बन जाते हैं और आत्महत्या कर लेते हैं या अपने को घर में कैद कर रहने लगते हैं. ऐसे कई युवकयुवतियों को घर से पुलिसबल द्वारा जबरन अस्पताल में भरती कराने की खबरें भी समयसमय पर सुर्खियां बनती रहती हैं.

क्या करें : अपनी आर्थिक सुरक्षा बरकरार रखनी चाहिए.

अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए मौसमी फल, सब्जी व स्वास्थ्यवर्धक आहार लेना चाहिए. पड़ोसी, रिश्तेदार व मित्रों के संपर्क में रहना चाहिए. सभी की यथासंभव आर्थिक, मानसिक या शारीरिक स्तर की मदद जरूर करनी चाहिए. जब आप आगे बढ़ कर दूसरों के सुखदुख में काम आएंगे तभी आप दूसरों की नजरों में आ पाएंगे.

अकेलेपन को अपना साथी न बना कर नियमित रूप से अपनी सोसायटी, महल्ले के क्लब या पार्क में जाएं. लोगों के संपर्क में रह कर उन के सुखदुख जानें. इस तरह के संपर्क आप को जीवन के सकारात्मक रुख की ओर ले जाते हैं.

यदि आर्थिक रूप से समर्थ हैं तो ड्राइवर, कामवाली, घरेलू नौकर की समयसमय पर आर्थिक मदद अवश्य करें. यदि धनाभाव है तो कमजोर तबके के बच्चों की पढ़ाई में निशुल्क या कम पैसे से ट्यूशन दे कर अपना समय व्यतीत करें व अकेलापन भी दूर करें.

यदि आप संयुक्त परिवार में हैं तो घर के सभी सदस्यों को साथ ले कर चलें. किसी भी प्रकार का भेदभाव पारिवारिक संबंधों की कड़वाहट का कारण बन सकता है. अगर आप अकेले ही वृद्धावस्था का सफर काट रहे हैं और आप की संतानें दूसरे शहरों या विदेशों में बसी हैं तो आप को अपने बच्चों से संपर्क में रहने से ज्यादा, अपने पड़ोसियों के संपर्क में रहना जरूरी है. आप की किसी भी परेशानी में बच्चों के पहुंचने से पहले पड़ोसी स्थिति संभाल लेंगे. यह तभी संभव है जब आप पड़ोसियों से मधुर संबंध रखेंगे. आप अपनी सोसायटी, महल्ले के बुजुर्ग लोगों का एक अलग ग्रुप बना कर अपना समय बहुत ही अच्छे ढंग से बिता सकते हैं. बारीबारी से चायपानी का प्रोग्राम, साथ घूमने का प्रोग्राम, लूडो, कैरम, शतरंज जैसे खेल साथ में खेलने का प्रस्ताव भी समय को रोचक बनाता है.

सब का संगसाथ

महिमाजी पूरे महल्ले के बच्चों को अपने घर पर बुला कर रमी खेलती मिल जाएंगी. आतेजाते को पुकारेंगी, ‘‘ए लली, थोड़ी देर रमी खेलो न.’’ सब जानते हैं कि वे ताश खेलने की काफी शौकीन हैं. जो भी फुरसत में रहता है, उन के पास जा कर ताश खेल लेता है. किसी दिन उन की आवाज न सुनाई दे तो लोग खुद ही उन का हालचाल पूछने लगते हैं.

सुनयनाजी भजन, सोहर, बन्नाबन्नी सभी लोकगीत बहुत सुरीले स्वर में गाती हैं. हर घर के तीजत्योहार या किसी भी प्रोग्राम में उन की उपस्थिति अनिवार्य है. उन के लिए हर घर से निमंत्रण आता है.

महेशजी ने व्यायाम में महारत हासिल की हुई है. वे पार्क में नियमित रूप से लोगों को योग के टिप्स देते मिल जाते हैं. यदि वे पार्क में न दिखें, तो लोग उन का हालचाल लेने उन के घर पहुंच जाते हैं.

विनयजी को गप मारने की आदत है. अपने दरवाजे पर बैठेबैठे वे हर आनेजाने वाले की कुशलता पूछ लेते हैं. जिस दिन वे न दिखाई दें, उस दिन लोग उन के घर ही चल देते हैं.

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प्रकाशजी एक बडे़ से बंगले के मालिक हैं. अपने बच्चों के विदेश प्रवास और पत्नी की मृत्यु के बाद अकेलेपन को दूर करने का उन्होंने एक नायाब तरीका ढूंढ़ा. उन्होंने अपने बंगले के आधे हिस्से में असहाय, निराश्रित वृद्धजन के लिए द्वार खोल दिए, जिस में रहनेखाने की सुविधा के बदले श्रमदान को अधिक महत्त्व दिया. वहां पर दिनभर किसी भी कार्य में दिया योगदान ही आप को वहां की सुविधा का लाभार्थी बनाता है, जैसे साफसफाई, खाना बनाना या बगीचे का रखरखाव. इस प्रकार वे अपनी उम्र के लोगों से जुड़े हुए हैं और वहीं वे उन का सहारा भी बन गए हैं.

सार यह है यदि आप दूसरों से किसी भी रूप से जुड़े रहते हैं तो दूसरे भी आप की उपस्थिति के आदी हो जाते हैं. आप की अनुपस्थिति को वे महसूस करते हैं और आप के पास दौड़े चले आते हैं. इसलिए खुद को पड़ोस से काट कर नहीं, जोड़ कर रखिए. फिर आप अकेले हों या दुकेले, परिवार के साथ या बगैर, जवां या अधेड़ या फिर वृद्ध ही क्यों न हों, आप को अकेलापन नहीं सताएगा. सब का संगसाथ जीने की राह आसान बनाएगा.

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पानी की दुश्मन : दुनियाभर में गहराता जा रहा है जल संकट

दशकों से दुनिया को इस बात की जानकारी है कि जल पर लगातार जलवायु का, तथाकथित विकास का और जीवनशैली का संकट मंडरा रहा है. इस के बावजूद इस जानकारी व समझदारी का कोई सार्थक या सकारात्मक नतीजा नहीं निकल पा रहा है. दरअसल, हम सब जल बचाने, उस के प्रति संवेदनशील होने का उपदेश दूसरे को तो देते हैं लेकिन खुद को इस सब से परे समझते हैं. इसी होशियारी का यह नतीजा है कि सबकुछ जानने, समझने के बावजूद हर गुजरते दिन के साथ ही धरती का जल संकट गहराता जा रहा है.

घर में नईनई बहू आई थी, गांव में बरसात को छोड़ कर पूरे साल पानी की किल्लत रहती थी. अधेड़ सास बड़ी दूर से ढोढो कर पानी लाती, लेकिन बारबार कहने के बावजूद बहू पानी खर्चने में जरा भी नहीं हिचकचाती. सास ने बहुत समझाया, यहां की रीत बताई, पर बहू हर दूसरे दिन बालों में शैंपू करती, कपड़े साबुन, डिटर्जेंट पाउडर से धोती. पानी की टोकाटोकी को ले कर सास के साथ ताने से ले कर नोकझोंक और लड़ाई तक की नौबत आ गई. बहू ने भी जिद में अपनी आदत नहीं बदली. पानी पर कलह का पानी जब नाक से ऊपर चला गया तो एक दिन बहू ने थोड़े से पानी के साथ जहर खा लिया. बिहार के एक गांव की यह सच्ची घटना मीडिया में थोड़ी सी जगह पा सकी और घंटे दो घंटे की चर्चा, बस.

असल में पानी की बरबादी को ले कर हमारी नई कसबाई व शहरी जीवनशैली जिद्दी और आत्महंता प्रवृत्ति वाली है. ‘जल ही जीवन है,’ ‘जल है तो कल है,’ ‘कल के लिए आज बचाएं जल,’ जैसे न जाने कितने स्लोगन, नारों, जुमलों की बरसात रोज होती है, लेकिन हम हैं तो चिकने घड़े ही. नतीजा, पर उपदेश कुशल बहुतेरे. पानी की परवा करना हमारी आदत नहीं बन पाती.

टीवी पर उभरती वह तसवीर अंदर तक झकझोर देती है, एक आदमी जोहड़ के सडे़, मटमैले हरे पानी को पीने के लिए कटोरा भरता है. दूसरी तसवीर अरबों के खेल मेले आईपीएल के लिए बेतहाशा पानी बहा कर तैयार किए जा रहे क्रिकेट स्टेडियम और इस कृत्य के विरोध की है. ब्रेक में एक विज्ञापन दिखता है, जिस में लोग झमाझम बरसात के दौरान बालटी, बोतल तो क्या, छाते में भी पानी इकट्ठा कर रहे हैं. संदेश साफ है, जल बेशकीमती है. यह दुर्लभ होने वाला है. समय से पहले सचेत हों, इसे बचाएं.

हैरानी यह है कि यह सब देखते हुए भी बहुत से लोग नल को खुला छोड़ कर शेविंग कर रहे होते हैं या नल के बहते पानी के नीचे सब्जी धो रहे होते हैं. अगर वे किसी पानी वाले इलाके में रहते हैं तो यह सब देखते हुए भी उन्हें जल संकट का कोई एहसास नहीं होता. वे या तो अनजान बने रहते हैं जैसे यह सब किसी और ग्रह पर हो रहा है या फिर रस्मअदायगी वाले अफसोस के बाद वे सोच लेते हैं कि  यह सबकुछ उन के साथ नहीं होने वाला.

इन में से बहुत से लोगों के सामने ही सरकारी नलों, प्याऊ, छबील, सार्वजनिक हैंडपंपों का विलोपीकरण हुआ है. बोतलबंद पानी बिकने लगा और आज इस का अरबों का व्यापार हो गया. गांव तक में वाटर कंटेनर बिकने लगे हैं. देश में बीते 4 दशकों में पानी की खपत चार गुना ज्यादा हो गई. आज एशिया के जो 27 शहर पानी की किल्लत से सब से ज्यादा ग्रस्त हैं उन में ऊपरी 4 नाम चेन्नई, दिल्ली, कोलकाता और मुंबई हैं.

हम हैं जिम्मेदार

अंधाधुंध पानी खर्चते हुए कभी हम ने सोचा कि पानी का परिदृश्य इस कदर क्यों बदला? कमी हमारी थी या पानी की? पानी के मामले में अमेरिका और चीन के बाद हमारा ही नंबर है. दुनिया का केवल 4 प्रतिशत ताजा जल अपने देश में है और संसार की 16 प्रतिशत से ज्यादा की आबादी यहीं रहती है, फिर भी हम जलधनाढ्य गिने जाते हैं. कारण, यहां के अनगिनत जलस्रोत, प्राचीन जल संस्कृति और पानी की स्वस्थ परंपरा है.

ऋ ग्वेद के अध्वर्यु सूक्त में, अध्वर्यु को राष्ट्र के योजनाकार के रूप में जिन 10 कर्तव्यों का निर्देश दिया गया है उन में दूसरा कर्तव्य वर्षाजल का संरक्षण है. देवताओं को जलदान के लिए रामेश्वरम से गंगोतरी तक की यात्रा, कांवड़ उठाने का कठिन प्रण, जगहजगह जलाभिषेक. पूजापाठ हो या शौच निबटान अथवा किसी भी तीजत्योहार में पानी का समुचित इस्तेमाल. नहानस्नान में समूचे संसार में हमारा कोई सानी नहीं.

पानी के मामले में एक तो हमारी जीवनशैली पहले ही खुलेहाथ वाली थी तिस पर हम ने पाश्चात्य जीवनशैली का अंधानुकरण कर लिया. बीते 2-3 दशकों से हम ने पानी की परवा करनी ही छोड़ दी है. बाजार ने धावा बोला तो हम उस के प्रवाह में बह गए. जल को प्रकृति का उपहार मानने वाले उसे बिकाऊ उत्पाद साबित करने वालों के सामने हार गए.

आज हम जरूरत से कई गुना ज्यादा कपड़े रखते हैं. धोबी जो एक तालाब में बरसों से हजारों कपड़े धो डालता था, हफ्ते में आता था, सप्ताहभर के कपड़े इकट्ठे धुलते थे. अब रोज कपड़े धोते हैं. कम पानी खर्चने वाले रीठेमजीठे का इस्तेमाल अब कहां? साबुन, डिटर्जेंट, वाशिंग पाउडर और मशीन, शैंपू पहले से चौगुना पानी खा जाते हैं. शौच और स्नान में हम पहले से दस गुना पानी बरबाद करने लगे हैं. शावर, फ्लश, बाथटब आम हो गए हैं.

तमाम मशीनों, उत्पादों, गैजेट्स का दखल बढ़ गया. हम पहले से कई गुना ज्यादा डीजलपैट्रोल फूंकने लगे हैं. बर्गर, चिकन, पास्ता और चिप्स जैसे ढेरों फास्टफूड खाने लगे हैं. देश में हर दिन 10 करोड़ से ज्यादा पानी की बोतलें बिकती हैं. कोल्डड्रिंक की 6 करोड़ बोतलें हम गटक जाते हैं बिना यह जाने कि कोल्डड्रिंक की एक केन तैयार करने में 20 लिटर पानी लगता है और ठंडा पेय पीने के बाद शरीर को लगभग 9 गुना अतिरिक्त पानी की आवश्यकता पड़ती है.

बरतन, फर्नीचर, साफसफाई के सरंजाम, कागज का अतिशय इस्तेमाल, ऊर्जा व्यय सबकुछ बढ़ा और इस ने परोक्ष तौर पर पानी की खपत पर असर डाला. विकास जीवन का अंग है पर इस की कीमत पानी से चुकाना हमें सस्ता लग रहा था, सो, हम इस के प्रति लापरवाह रहे. तब जबकि हम पानी के संतुलित उपयोग को बहुत पहले से जानते थे. रेगिस्तानी इलाकों में महज राख और रेत से जूठे बरतन साफ करते देखे जा सकते हैं. पानी की दिक्कत वाली जगहों पर लोग बरतन जूठा नहीं करते, न अंजुली से पानी पीते हैं बल्कि पानी सीधा मुंह में डालते हैं. एक लोटे से पूरा घर पानी पी लेता है. एक बरतन में सामूहिक भोजन करते हैं. जहां पानी सामान्य है, वहां 2 हाथों और जहां पानी भरपूर है, वहां 1 हाथ की अंजुली से पानी पीने की परंपरा है.

गांवों में कुएं समाप्तप्राय हैं और पानी के लिए हैं नल, हैंडपंप या फिर कोई मशीनी उपाय. शहरों में सार्वजनिक बंबे लुप्त हो चुके हैं. उत्तर प्रदेश के मेरठ जैसे शहर में 30 हजार से ज्यादा तालाब थे. हजारों तालाब वाले सभी शहरों में ये दहाई में भी नहीं बचे. नई जीवनशैली ने बाजार के साथ मिल कर इन्हें विकास से पाट डाला. गांवगांव में पक्के मकान बने और जहां चाहा वहां जमीन की छाती भेद कर भूजल का दोहन शुरू कर दिया. लोटे, बालटी, ढेंकली, रहट से निकलने वाला पानी अनवरत मोटी धार वाले पाइप से निकलने लगा.

पानी बिना अतिरिक्त श्रम के सुलभ हुआ तो अंधाधुंध दुरुपयोग शुरू हो गया, क्योंकि लोगों को कुएं से पानी निकालने के लिए मेहनत नहीं करनी थी, न सार्वजनिक जलस्रोत, बंबे, नल की सीमाएं थी. घरघर नल लगे तो इफरात से पानी खर्च होने लगा. अमेरिका में 1990 के बाद ऐसा ही हुआ था. वहां तब प्रति परिवार जल खपत औसतन 10 घनमीटर थी जो वर्ष 2000 तक 200 घनमीटर तक पहुंच गई. भारत में प्रतिव्यक्ति ताजा पानी की जो उपलब्धता 1955 में थी वह 1990 में घट कर आधी रह गई.

आबादी बढ़ने की मौजूदा रफ्तार को देखते हुए 2020 में पानी की उपलब्धता प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 40 लिटर से भी कम रह जाने का अनुमान है. देश में हर व्यक्ति को मौजूदा जीवनशैली में रोजमर्रा के लिए कम से कम 100 लिटर पानी चाहिए. हम कृषिप्रधान देश कहे जाते हैं और बाढ़सुखाड़ से मरने के बावजूद हम ने सिंचाई व्यवस्था के आधुनिकीकरण की कभी परवा नहीं की. हमारी कृषिदक्षता महज 35 फीसदी है जो विश्व की औसत 70 फीसदी की आधी है. इस के चलते हम कुल उपलब्ध पानी के आधे का उपयोग और उस पानी के आधे हिस्से को कच्ची नाली, वाष्पीकरण और दूसरे कुप्रबंधन में बरबाद कर देने पर कोई अफसोस नहीं करते.

कुल मिला कर सवाल यह है कि जन जागरूकता के लिए करोड़ों खर्च करने के बावजूद न पानी की बरबादी में कमी आ रही है न भूजल स्तर बढ़ रहा है. तमाम प्रचार और जल संकट की भयावह तसवीरें देखने के बाद, दुखभरी कहानियां सुनने के बावजूद हमारे कानों पर जूं तक नहीं रेंगती और योजनाओंअभियानों को आपेक्षिक सफलता नहीं मिलती तो

उस की एक ही वजह है कि हम ने जल को जीवन से नहीं जोड़ा है. पानी की किफायतदारी, जलबुद्धिमत्ता हम से अभी दूर है. हमारी नई जीवनशैली जल संकट की जननी है.

जब तक हम में यह समझने वाली जलजागृति नहीं आएगी और हम अपनी जीवनशैली में आपेक्षिक बदलाव कर उस पर अमल नहीं करते, जलसंग्रह और संरक्षण के सारे प्रयास बेमानी हैं. पानी के उपभोग में प्रभावी अंतर लाना कठिन नहीं है, जीवनशैली में कुछ छोटेमोटे बदलावों के साथ हम जल, ऊर्जा, धन और धरती बचा सकते हैं.

ऐसे बचा सकते हैं जीवन जल

–    किचन में खाना बनाने के लिए जरूरत के हिसाब से कड़ाही या पैन चुनें, बड़े बरतन में अधिकतर जरूरत से ज्यादा पानी इस्तेमाल हो जाता है.

–    फ्रिज से निकाली ठंडी चीजों को सामान्य तापमान पर लाने के लिए चलते नल का इस्तेमाल न करें, बल्कि किसी बरतन में पानी भर कर उस में रखें.

–    हाथ से आइसक्यूब गिर जाए तो उसे डस्टबिन में नहीं, गमले में डालें

–    चीजें कम पानी में उबालें, आलू वगैरह के लिए उन का बस डूब जाना ही बहुत है. उबले वाले पानी को ठंडा कर पौधों में डालें.

–    फल, सब्जी चलते नल के नीचे रगड़ कर धोने के बजाय टब में पानी ले कर धोएं और दालचावल इत्यादि का धोवन गमले में डालें.

–    बाथरूम में बाथटब से नहाना पानी की बरबादी है. इस्तेमाल ही करना है तो बाथटब को आधा भरें, शावर भी कम देर के लिए चलाएं, शावर ऐसा लगाएं जो कम पानी फेंके. बेहतर है बालटी और मग से नहाएं.

–    कपड़े हर दिन न धोएं. वाशिंग मशीन तभी इस्तेमाल करें जब उस के लिए पर्याप्त कपड़े इकट्ठे हों. मशीन में वाशिंग पाउडर कम डालें.

–    रंगीन कपड़े ठंडे पानी से धोएं. बेवजह पानी गरम करना वाटर फुटप्रिंट बढ़ा देगा.

–    ब्रश, शेविंग, हाथ धोने से पहले साबुन लगाते समय नल बंद रखें. इस दौरान 15 लिटर पानी बरबाद हो सकता है.

–    फ्लश के सिस्टम टैंक में पानीभरी बड़ी बोतल डाल दें.

–    लौन में पौधों को पानी अलसुबह या देर शाम को दें. अपने बगीचे में स्थानीय पौधे लगाएं, ये कम पानी लेते हैं.

–    पौधों के थाले में थोड़ी सड़ीगली सब्जियां बिखरा दें या सूखी पत्तियों से ढक दें. नमी देर तक बनी रहेगी और पानी भी कम लगेगा.

–    कार बालटी, मग, स्पंज से धोएं. पाइप प्रयोग करें तो उस में पिस्टल नोजेल लगाएं ताकि पानी के प्रवाह को रोका और शुरू किया जा सके.

–    शाकाहारी बनें, स्थानीय बाजार से ही फलसब्जीअनाज खरीदें. जितनी दूर से ये सब आएगा उतना ही वाटर फुटप्रिंट बढ़ेगा.

–    पानी का बिल हर महीने चैक करें, खर्च की समीक्षा करें. रात में मीटर को देखें लीकेज तो नहीं हो रहा. रिसाव तुरंत ठीक कराएं. अगर एक बूंद पानी प्रति सैकंड टपका तो हर महीने 800 लिटर से ज्यादा पानी व्यर्थ हो सकता है.

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किरकिरा न हो जाए ग्रुप टूर का मजा

व्यक्तिगत ट्रिप की तुलना में पैकेज्ड टूर कई मामलों में काफी सुविधाजनक होता है. पैकेज्ड टूर में सबकुछ टूर औपरेटर द्वारा मैनेज कर देने और गाइड उपलब्ध करवा देने से आसानी होती है और व्यक्तिगत ट्रैवल की तुलना में यह सस्ता भी पड़ता है. लेकिन किसी टूर औपरेटर के जरिए पर्यटन पर जाने से पहले कुछ बातें जान लें तो आप यात्रा में होने वाले कड़वे अनुभवों, कुढ़न या तनाव से बच जाएंगे और टूर का मजा किरकिरा नहीं होगा.

भ्रामक धारणा-1 :  मैं ने ट्रैवल इंश्योरैंस ले लिया, मेरे सभी बैगेज की सुरक्षा की पूरी टैंशन खत्म.

असलियत :  किसी अच्छी ट्रैवल इंश्योरैंस पौलिसी में मैडिकल, ऐक्सिडैंट कवर के अलावा ट्रिप की रद्दगी, फ्लाइट की देरी और बैगेज लौस कवर रहता है, लेकिन सारा बैगेज नहीं. इस में एयरलाइन चैक्डइन बैगेज का ही लौस कवर होता है, एयरपोर्ट से बाहर का नहीं यानी होटल या टूर बस से बैगेज खो जाने पर आप को यह कवरेज नहीं मिलेगा. हां, आप टूर औपरेटर की मदद से स्थानीय पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करा सकते हैं. एयरपोर्ट पर सामान खोने की सूचना भी संबंधित एयरलाइंस को तुरंत देनी होगी और इस का लिखित प्रमाण आप को रखना होगा. इस विषय में अपने इंश्योरैंस एजेंट से जानकारी लेनी लाभकारी साबित हो सकती है.

भ्रामक धारण-2 :  भ्रमण संबंधी जो शैड्यूल ब्रोशर में है, वही फाइनल है.

असलियत :  ज्यादातर टूर औपरेटर नियम और शर्तों के तहत लिख देते हैं कि उन के नियंत्रण से बाहर ट्रैफिक समस्या, मौसम की गड़बड़ी, स्थानीय त्योहार, स्पोर्ट्स, हड़ताल, होटल बंद होना, होटल में या फ्लाइट में ओवरबुकिंग होना, ट्रेन या विमान का मार्ग बदलना आदि व अन्य कारणों से तय कार्यक्रम में कोई भी तबदीली संभव है. इसलिए टूर औपरेटर द्वारा हमेशा टूर पैकेज, ट्रैवल प्लान, साइटसीइंग आदि में अचानक या शौर्ट नोटिस पर बदलाव संभव है. इसलिए पेमैंट देने और औफर डौक्यूमैंट पर दस्तखत करने से पहले सबकुछ अच्छी तरह पढ़ लें और छोटेमोटे बदलावों के लिए तैयार रहें.

भ्रामक धारणा-3 :  ट्रिप खत्म होने दो, तब इस की कम्प्लेन कर के सबक सिखाएंगे.

असलियत :  आप ने आनंदपूर्वक छुट्टी बिताने के लिए मुंहमांगी कीमत दी है, फिर सेवा में कमी की कोई शिकायत टूर खत्म होने के बाद क्यों करेंगे. बीत गई, सो बात गई. टूर खत्म होने पर शिकायत करने से भी क्या फायदा? आप टूर के किसी भी चरण में अगर दिक्कत महसूस करते हैं, तो उसी वक्त टूर कंपनी को शिकायत करें क्योंकि वे स्थानीय होटल वालों और स्थानीय वैंडर्स के भरोसे टूर आयोजित करते हैं. आप की पुख्ता शिकायत मिलने पर वे उसी वक्त उन्हें टाइट कर के आप को बेहतर सेवाएं दिलवाएंगे. हां, मौखिक शिकायत के साथसाथ लिखित शिकायत भी जरूर दें. अपनी शिकायत स्पष्ट, सटीक और सही शब्दों में लिखें, गोलमोल नहीं.

भ्रामक धारणा-4 :  10-15 मिनट इधरउधर तो चलता है, यार.

असलियत : हम भारतीय 10-15 मिनट की कोई कीमत नहीं समझते. टूर में भी हम यही मान कर चलते हैं कि बरात की बस की तरह यहां भी हमारे आए बिना बस नहीं चलेगी. लेकिन यकीन मानिए, आप को यहां काफी मुसीबतें झेलनी पड़ सकती हैं. किसी भी गु्रप टूर में समय की पाबंदी होती है और यहां देरी करने की कोई गुंजाइश नहीं. अगर आप एकदो मिनट से ज्यादा की देरी करते हैं और तय समय पर किसी पर्यटन स्थल, होटल या शौपिंग मौल से अपनी बस तक नहीं पहुंचते हैं, तो गाड़ी छूट जाएगी. फिर अनजानी जगह आप को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है.

भ्रामक धारणा-5 :  मैं ने फीस दे दी, अब वीजा का पेपरवर्क करने का जिम्मा टूर औपरेटर का है.

असलियत :  टूर औपरेटर वीजा आवेदन शुल्क के साथसाथ खुद की सर्विस फीस भी लेते हैं. वे आप के लिए आवेदन जरूर करते हैं, लेकिन इस पर उन का कोई बस नहीं चलता कि आप को वीजा समय पर मिल ही जाए. अगर आप का आवेदन रद्द हो जाता है, तो आप की फीस जब्त कर ली जाएगी. टूर औपरेटर से इस की वापसी की उम्मीद करना बेकार है.

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टी-20 की वजह से टेस्ट मैच हो जाएंगे खत्म : ब्रैंडन मैकुलम

न्यूजीलैंड के पूर्व विस्फोटक सलामी बल्लेबाज ब्रैंडन मैकुलम का मानना है कि टी-20 की बढ़ती लोकप्रियता के कारण टेस्ट क्रिकेट जीवित नहीं रह पाएगा. 36 साल के मैकुलम ने वर्ष 2016 के शुरुआत में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया था. न्यूजीलैंड के लिए 101 टेस्ट, 260 वनडे और 71 टी-20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेलने वाले मैकुलम मौजूदा समय में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) सहित दुनियाभर के टी-20 लीगों में खेल रहे हैं.

मैकुलम ने क्रिकेट मंथली को दिए एक साक्षात्कार में कहा, “मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले समय में टेस्ट क्रिकेट नहीं बच पाएगा क्योंकि कितनी टीमें हैं, जो इसे खेल सकती हैं.” मैकुलम ने कहा कि उन्होंने हमेशा से टेस्ट क्रिकेट का सम्मान किया और उनके लिए यह खेल का सबसे अच्छा था.

उन्होंने कहा, “मैं भी एक यथार्थवादी हूं और लोग टी-20 देख रहे हैं. सिर्फ खेल ही नहीं बल्कि टीवी समाज भी बदल रहा है क्योंकि लोगों के पास टेस्ट क्रिकेट को देखने के लिए चार या पांच दिन नहीं हैं. वे दिन का पहला सत्र और पांचवें दिन आखिरी सत्र ही देखना चाहते हैं.”

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टी20 क्रिकेट के बादशाह हैं मैकुलम

मैकुलम ने टी-20 क्रिकेट में अब तक कुल 9000 से भी अधिक रन बनाए हैं और सर्वाधिक रनों के मामले में वह वेस्टइंडीज के क्रिस गेल के बाद दूसरे नंबर पर हैं. मौजूदा समय में वह आईपीएल में बेंगलुरु के लिए खेल रहे हैं. मैकुलम ने आईपीएल के सभी 11 सत्रों में हिस्सा लिया है. दो करोड़ की बेस प्राइस वाले ब्रेंडन मैकुलम को इस साल की आईपीएल नीलामी में बेंगलुरु ने 3.60 करोड़ में खरीदा था.

इस आईपीएल में मैकुलम का बल्ला उस तरह से नहीं चल रहा है जिसके लिए वह मशहूर है. यह भी एक मजेदार तथ्य ही है कि मैकुलम उसी टीम के लिए खेल रहे हैं जिसके खिलाफ उन्होंने आईपीएल के ही पहले मैच में सबसे रिकौर्ड 158 रनों की पारी खेली थी.  कभी अपनी टीमों में सबसे खास खिलाड़ी माने जाने वाले मैकुलम को इस सीजन में केवल छह मैचों में खेलने का मौका मिला है जिसमें उन्होंने केवल छह छक्के और 16 चौके लगाते हुए 147.77 के स्ट्राइक रेट और 21.16 औसत के साथ केवल 127 रन ही बनाए हैं. उनका सर्वाधिक स्कोर 43 रहा है. ऑरेंज कैप की दौड़ में वे इस समय 40वें स्थान पर हैं.

भारत में मैकुलम की लोकप्रियता कम नहीं है

इस आईपीएल के शुरु होने से पहले जनवरी में एक औन लाइन वोटिंग कार्यक्रम आयोजित किया गया था जिसमें चेन्नई के 26 और राजस्थान के 46 फीसदी प्रशंसक चाहते थे कि न्यूजीलैंड के मैक्कलम उनकी टीम के लिए खेलें. भारत में मैकुलम की काफी लोकप्रियता है यह बात कई मौकों पर साबित होती रहती है.

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