दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को समझने में नेताजी सुभाष चंद्र बोस चूक गए थे, फिर भी पूर्वी भारत में एक आम धारणा है कि अगर नेताजी जीवित होते तो देश की तसवीर कुछ और होती. यही बात पश्चिम भारत में सरदार वल्लभभाई पटेल के लिए भी कही जाती रही है. बहरहाल, नेताजी की गुमशुदगी और उन की मृत्यु के रहस्य से परदा उठाने की मांग हमेशा से की जाती रही है. इसी कड़ी में पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने नेताजी से संबंधित 64 फाइलों को सार्वजनिक कर के केंद्र पर अन्य 120 या 180 गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने का दबाव बना दिया है.

गोपनीय फाइलों में नए तथ्य

सार्वजनिक की गई 64 फाइलों के लगभग साढ़े 12 हजार पृष्ठों में क्या है, यह बड़ा सवाल है. इन का अध्ययन करना कोई खेल नहीं. जाहिर है फाइलों के अध्ययन में लंबा समय लगेगा. हालांकि इन के आधार पर बगैर जांचेपरखे किसी नतीजे पर पहुंचना उचित भी नहीं होगा. कई बार किसी खास मकसद या मामले को मनचाहा मोड़ देने के लिए भी रिपोर्ट तैयार की जाती है या कराई जाती है. इसीलिए ऐसे गोपनीय दस्तावेजों के अध्ययन के मामले में विशेष सावधानी बरतने व तथ्यों को अच्छी तरह खंगालने की जरूरत होती है. इन फाइलों में साल 1945 की और यहां तक कि 1953 की भी कुछ फाइलें हैं. ज्यादातर फाइलों में नेताजी के लिए एस सी बोस यानी सुभाष चंद्र बोस लिखा हुआ है. इन में से एक पूरी फाइल बंगाल कैमिकल्स के आचार्य प्रफुल्ल राय पर है. दरअसल, अंगरेजों को शक था कि नेताजी आचार्य प्रफुल्ल राय के साथ मिल कर सशस्त्र लड़ाई के लिए बम बनाने का काम कर रहे थे. सार्वजनिक हुई फाइलों में 1939 में किसानों का सम्मेलन और 1940 में छात्र आंदोलन पर अलग से फाइलें हैं. 1 फाइल में 15 मई, 1940 में अविभाजित 24 परगना जिले में युवा सम्मेलन में नेताजी द्वारा बंगला में दिए गए भाषण का विवरण है, जहां विश्व राजनीति के साथ नेताजी ने बंगाल के युवा समाज को देश की आजादी की लड़ाई में शामिल होने का आह्वान किया था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...