सियासत की बिसात पर राजनेताओं की चाल, चरित्र और चेहरे मौका ताड़ कर किस कदर करवट बदलते हैं, यह नरेंद्र मोदी ने साबित कर दिया है. देशवासियों की भावनाओं को बरगला कर उन के वोट हथियाने की खातिर मोदी ने ‘पटेल पूजन’ को हथियार बनाया है. सरदार पटेल की मूर्ति के सहारे प्रधानमंत्री की कुरसी तक पहुंचने का सपना देख रहे मोदी के मिशन की पोल खोल रहे हैं शैलेंद्र सिंह.

जरूरत पड़ने पर कट्टरवादी लोग किस तरह से वैचारिक दुश्मन को भी अपना देवता बना लेते हैं, इस के लिए नरेंद्र मोदी से अच्छा उदाहरण नहीं हो सकता. जिन सरदार पटेल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया था, नरेंद्र मोदी आज उन की छवि का सहारा ले कर आगे बढ़ना चाह रहे हैं. देखा जाए तो यह पहला मौका नहीं है. रामायण की कहानियों में विभीषण जैसे लोगों को मोहरा बनाया गया था. आजादी के बाद छुआछूत और भेदभाव को जिंदा रखने वालों ने भी वोट के लिए अंबेडकर को अपने कार्यक्रमों में जगह देनी शुरू कर दी. कांग्रेस लाख भाजपा की आलोचना कर ले पर वह कम से कम यह नहीं करती जो भाजपा के नरेंद्र मोदी कर रहे हैं.

गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव विकास के नहीं, मूर्ति के सहारे लड़ने की योजना बना रहे हैं. इस के पीछे भजभज मंडली की पुरानी शैली काम कर रही है. 90 के दशक में भजभज मंडली ने अयोध्या में राममंदिर बनाने के लिए गांवगांव से ईंट पूजन के नाम पर चंदा एकत्र किया था. राममंदिर तो बना नहीं, भाजपा ने जरूर सत्ता का स्वाद चखा. अब नरेंद्र मोदी लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति बनाने के नाम पर गांवगांव जा कर लोहादान लेने की योजना बना रहे हैं. एक बार धोखा खा चुकी जनता भजभज मंडली की सचाई को समझ चुकी है, ऐसे में मोदी की मूर्ति राजनीति पहले से ही बेनकाब हो रही है.

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