माहवारी के दिनों में इस्तेमाल किए जाने वाले सैनेटरी पैड का इस्तेमाल दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. इस के बाद भी गांवदेहात में इस का इस्तेमाल कम ही हो रहा है जिस से वहां की लड़कियों और औरतों को सेहत से जुड़ी तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इस संबंध में डाक्टर सुनीता चंद्रा से बात की गई. पेश हैं, उसी बातचीत के खास अंश:
गांव देहात में लड़कियों और औरतों में सैनेटरी पैड का कितना इस्तेमाल बढ़ा है?
पिछले कुछ साल से गांवों में सेहत के लिए काम करने वाले लोगों ने सैनेटरी पैड के इस्तेमाल को ले कर जागरूकता फैलाने का काम शुरू किया है. इस से लड़कियों और नई शादीशुदा औरतों में सैनेटरी पैड का इस्तेमाल करने की आदत बढ़ी है. इस के बावजूद वहां 70 से 85 फीसदी औरतें और लड़कियां इस का इस्तेमाल नहीं कर रही हैं.
आज भी गांवदेहात में रहने वाली ज्यादातर लड़कियां और औरतें माहवारी के दिनों में सैनेटरी पैड की जगह पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं. वे सैनेटरी पैड की जगह पुराने कपड़े क्यों इस्तेमाल करती हैं?
पुराना कपड़ा घर में ही मिल जाता है और सस्ता पड़ता है. कई बार तो जब खून का बहाव ज्यादा होता है तो वे कपड़े के अंदर और कई कपड़े भर लेती हैं. कई बार जब नए कपड़े नहीं मिलते हैं तो वे पहले इस्तेमाल किए गए कपड़ों को धो कर दोबारा इस्तेमाल कर लेती हैं. कई बार तो वे कपड़े के अंदर चूल्हे की राख या बालू भर कर अंग पर बांध लेती हैं.
इस की वजह से वे कई तरह की बीमारियों की शिकार हो जाती हैं.