सासबहू का रिश्ता यानी 36 का आंकड़ा. अमूमन इस रिश्ते में हम बहू को ‘बेचारी’ और सास को ‘गले की फांस’ की संज्ञा देते हैं. मगर स्त्री सशक्तीकरण के दौर में आज यह सोच एक मुगालता भर है. आज ऐसी सासों की भी कमी नहीं है जिन की बहुओं ने उन का जीना दूभर कर रखा है.
बेंगलुरु की 60 वर्षीया नीना धूलिया ऐसी ही एक सास हैं जो अपनी बहू की करतूतों से इतनी आजिज आ गईं कि उन्होंने सासों के हित में एक फोरम बना डाला. 6 सितंबर, 2009 को 2 अन्य महिला मित्रों, ममता नायक और साहिरा शिग्गन के साथ मिल कर उन्होंने ‘औल इंडिया मदर इन ला प्रोटैक्शन फोरम’ यानी एआईएमपीएफ की शुरुआत की ताकि सताई हुई सासों को राहत पहुंचाई जा सके.
दोषी बहुओं को सजा दिलाने के प्रयास और सताई हुई सासों के हित में आवाज उठाने के मकसद से 3 महिलाओं द्वारा शुरू किए गए इस फोरम की सदस्य संख्या आज 3 हजार से भी ज्यादा है और बेंगलुरु के अलावा दूसरे शहरों में भी इस की शाखाएं हैं.
यह पहला ऐसा सोशल फोरम है जो मदर इन ला के अधिकारों और हितों की रक्षा करता है. यह नौन फंडेड, नौन प्रोफिटेबल और्गेनाइजेशन है. यह उन कानूनों में सुधार चाहता है जिन की वजह से बहुओं को अपने ससुराल वालों को प्रताडि़त करने और बेवजह संपत्ति हथियाने का मौका मिलता है.
औल इंडिया मदर इन ला प्रोटैक्शन फोरम द्वारा उठाई गई कुछ मांगें ये हैं :
- सास के कैरेक्टर को पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो कर देखना छोड़ें.
- अदालतों, महिला आयोग और दूसरे महिला संगठनों की धारणाओं में परिवर्तन जरूरी है ताकि वे मदर इन ला की शिकायतों पर भी उतना ही
- गौर करें, जितना कि वे बहुओं की शिकायतों पर ध्यान देते हैं.
- सासों को बेवजह बदनाम करना बंद करें. उन्हें एक शांतिपूर्ण और गरिमामय जिंदगी जीने का हक दें.
- पुलिस और अदालतों द्वारा बुजुर्ग महिलाओं के प्रति गलत व्यवहार पर रोक लगे.
- सासों के अधिकारों और जरूरतों की सुरक्षा हो, खासतौर पर जब बात संपत्ति की हो. सास की संपत्ति पर बहुओं को जबरन हक नहीं मिलना चाहिए.
60 वर्षीया, शक्ल से सामान्य, सीधीसादी सी दिखने वाली नीना का बेंगलुरु में अपना घर है. वे अपने बेटे व पति के साथ खुशहाल जिंदगी जी रही थीं. 7 साल पहले बेटे की शादी के साथ उन के जीवन में जैसे भूचाल सा आ गया. बकौल नीना, ‘‘मेरी बहू ने हमारा और हमारे बेटे का जीना मुहाल कर दिया है. उस ने हमें 498ए और घरेलू हिंसा आदि झूठे केसों में फंसा कर इस उम्र में कोर्टकचहरी और थानों के चक्कर लगाने पर मजबूर किया है. कितने अरमानों से हम ने बेटे की शादी की थी पर अफसोस, घर बसने के बजाय उजड़ कर रह गया है. इकलौते बेटे के तलाक के झमेलों की वजह से डिप्रैशन में आ कर पति की पिछले माह मौत हो गई.’’
एआईएमपीएफ की फाउंडर मैंबर, ममता नायक कहती हैं, ‘‘हम ओडिशा के रहने वाले हैं. हम ने अपने बेटे की शादी 2007 में की. शादी के 6 माह बाद ही बहू ने झगड़ा करना शुरू कर दिया. वह हमारे साथ रहना नहीं चाहती थी. उस के घर वाले उसे गलत पाठ पढ़ा रहे थे. एक दिन अचानक वह घर छोड़ कर चली गई और हमारे खिलाफ झूठा केस दर्ज कर दिया.’’ हैल्प एज इंडिया द्वारा हाल में किए गए एक अध्ययन, ‘ऐल्डर एब्यूज ऐंड क्राइम इन इंडिया’ के मुताबिक बुजुर्गों के शोषण में बहुओं का हाथ 63 प्रतिशत तक होता है जबकि 44 से 53 प्रतिशत बेटे इस के लिए जिम्मेदार होते हैं.
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