दो साल पहले मैंने एक इंटरव्यू में शबाना आजमी से यह सवाल पूछा था कि क्या उन्होंने कभी अपने कॅरियर में इस हकीकत का सामना किया है कि वो अपनी टैलेंट को लेकर गलतफहमी का शिकार थीं? इस सवाल पर हंसते हुए उन्होंने एक ऐसा किस्सा सुनाया, जिसमें हर किसी के लिए सीख है. शबाना आजमी के मुताबिक श्याम बेनेगल ने उन्हें साल 1975 मंे फिल्म निशांत के लिए कास्ट किया था, जिसमें मुझे एक ग्रामीण महिला का रोल निभाना था. हमारी शूटिंग हैदराबाद के पास ग्रामीण इलाके में होनी थी, श्याम बेनेगल मुझसे कहते थे, मैं आसपास के किसी गांव वाली महिला से मिलूं, उसको चलते फिरते देखूं और समझूं कि ग्रामीण महिलाओं की भाव भंगिमाएं कैसी होती हैं? लेकिन मुझे लगता था कि मैं एफटीआईआई की मोस्ट टैलेंटेड छात्र रही हूं और पढ़ाई के दौरान ही कई देसी विदेशी फिल्मों में काम करके खूब नाम कमाया है, इसलिए मुझे एक आम ग्रामीण औरत का अभिनय करने में क्या मुश्किल होगी? इसलिए मैंने श्याम की बातों पर ध्यान नहीं दिया.

दो दिन बाद शूटिंग शुरु हुई, लेकिन बात बन नहीं रही थी तो श्याम बेनेगल ने शूटिंग रोक दी और मुझे सख्त निर्देश दिया कि मुझसे जो कुछ कहा जायेगा, मैं वैसा ही करूंगी. रात में जब हम सब लोग डिनर करने के लिए इकट्ठा हुए तो हम सब डायनिंग टेबल पर बैठे थे, तभी श्याम बेनेगल ने मुझसे कहा कि तुम दूर जमीन में उकडू बैठकर खाना खाओगी. मुझे पहले अपमान सा लगा, लेकिन मैंने जल्द समझ लिया कि इसमें कुछ मेरी ही भलाई होगी. दो दिन तक यही सिलसिला चला. मुझे सूती धोती और रबर की चप्पलें हर समय पहनने का आदेश था साथ ही खाना भी वैसे ही जमीन में बैठकर खाना था. एक हफ्ते बाद हमारी शूटिंग हो रही थी और बहुत सारे लोग शूटिंग देखने के लिए वहां आ गये. वो लोग श्याम बेनेगल से पूछने लगे तुम्हारी हीरोइन कहां है? श्याम बेनेगल के चेहरे में हल्की सी मुस्कुराहट आयी, उन्होंने दोपहर को लंच के टाइम मुझसे कहा, अब तुम आकर हमारे साथ टेबल में खाना खा सकती हो. क्योंकि अब तुमने अपने आपको आम गांव की महिला साबित कर दिया है, क्योंकि आम लोग तुम्हें हीरोइन नहीं गांव की कोई कामवाली मान रहे थे.

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