दुनिया गरम हो रही है और दुनिया भर में साफ पीने योग्य पानी की मांग और उपलब्धता में अंतर निरंतर बढ़ रहा है. यह हर्ष की बात है कि ऐसी विकट स्थिति में भी हम इस तरह की जीवनशैली को अपनाए जा रहे हैं जिस से अरबों लिटर पानी रोज बरबाद हो रहा है. इस में से एक है मीट उद्योग में होने वाला भयंकर पानी का खर्च.
बीफ और पोल्ट्री से भी कहीं ज्यादा पानी सूअर के मांस पर बरबाद होता है. 1 किलोग्राम पोर्क के लिए सूअर के पालने से ले कर खाने की मेज तक पहुंचाने में लगभग 5,988 लिटर पानी की जरूरत होती है. पोर्क के मुकाबले गेहूं और दूसरे अनाजों को 1500 से
2000 लिटर प्रति किलोग्राम, आलू के लिए 387 लिटर तो 1 किलोग्राम टमाटर के लिए 214 लिटर पानी चाहिए. इस के बावजूद भारत में भी पोर्क का इस्तेमाल बढ़ रहा है.
ज्यादा पानी की खपत
2015-16 के मुकाबले 2016-17 में 21% अधिक पोर्क इस्तेमाल हुआ. 11% अधिक पोर्क का आयात किया गया.
भारतीय उत्पादकों ने भी पश्चिमी तकनीक अपनानी शुरू कर दी है जिस में ज्यादा पानी लगने लगा है. अब सूअरों के बाड़ों या फैक्टरियों में लग जाता है पर वे ज्यादा पानी की खपत करते हैं. अब देशी सूअरों की जगह विदेशी सूअरों का आयात किया जा रहा है, क्योंकि वे ज्यादा बड़े होते हैं.
सूअरों को जो खाना दिया जाता है उस में भी ज्यादा पानी लगता है. सूअरों के पीने, नहाने आदि में 75 लिटर पानी की जरूरत होती है. यदि सूअर बीमार है या सूअरी गर्भवती है या फिर गरमी ज्यादा है तो पानी की जरूरत और ज्यादा हो जाती है. सूअरों को काटने से पहले और बाद में पिंजरों को ठंडा व साफ रखने के लिए भी ज्यादा पानी की जरूरत होती है.
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