लेखक - रेणु लैसी फ्रांसिस

विमला का मन आज सुबह से ही बेचैन था. उन की बेटी अंजू ठीक एक साल बाद उन से मिलने आ रही थी. अंजू इंजीनियर थी, कंपनी की तरफ से एक साल की ट्रेनिंग के लिए जरमनी गई थी. विमला हर थोड़ी देर में अपने पति नितिन से कह रही थी, ‘जल्दी घर से निकल जाओ अंजू को लाने के लिए, रास्ते में ट्रैफिक ज्यादा होता है, तुम समय पर नहीं पहुंच पाओगे तो अंजू परेशान हो जाएगी.’

नितिन उन से हर बार यही कहते, ‘मुझे याद है अंजू आ रही है, लेकिन उस के आने में अभी कई घंटे हैं. मैं अभी से वहां जा कर क्या करूंगा. जैसे ही आने का समय होगा, मैं आधे घंटे पहले पहुंच जाऊंगा.’

नितिन समय से एयरपोर्ट पहुंच गए और अंजू के आने की खबर विमला को दे दी. जब से अंजू की आने की खबर मिली, विमला वहीं गेट पर बैठ गईं. उन्हें एकएक पल मानो एकएक साल जितना लंबा लग रहा था. अंजू को आए तो एक घंटा हो चुका था लेकिन अंजू और नितिन दोनों घर नहीं आए थे. विमला दोनों को फोन लगा रही थी. दोनों के फोन नैटवर्क क्षेत्र से बाहर आ रहे थे. विमला के पड़ोसी भी विमला के साथ थे. सभी परेशान हो रहे थे कि नितिन और अंजू अभी तक क्यों नहीं आए. अचानक विमला के मोबाइल में नितिन का फोन आया कि वे सिटी अस्पताल आ जाएं, उन दोनों का ऐक्सिडैंट हो गया है.

विमला और उन के पड़ोसी सिटी अस्पताल पहुंचे तो देखा अंजू का शव औपरेशन थिएटर से बाहर आ रहा था. डाक्टर साहब नितिन से कह रहे थे, ‘सौरी, हम आप की बेटी को नहीं बचा सके.’ तब नितिन ने कहा, ‘सर, मैं अपनी बेटी की आंखों को दान करना चाहता हूं ताकि मेरी बेटी की आंखें जिंदा रहें. आप किसी बहुत जरूरतमंद को ये आंखें दे दीजिए ताकि वह मेरी बेटी की आंखों से दुनिया देख सके. विमला ने इस बात पर एतराज किया तो नितिन और डाक्टर ने विमला को सम?ाया कि उस व्यक्ति के बारे में सोचो जिस ने हमेशा अपने आसपास अंधेरा ही पाया है. आप उस की जिंदगी में रोशनी दे रही हैं. उस समय तो विमला ने कुछ न कहा लेकिन वे अब भी नाराज ही थीं. अंजू की आंखों को दान क्यों किया इस बात को ले कर.

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