एक रिटायर्ड सरकारी अफसर के 4 बेटों के बीच कई सालों से बोलचाल नहीं थी. सब का अलगअलग चूल्हा था, किसी का किसी से कोई लेनादेना भी नहीं था. इस के बाद भी सभी भाई एकदूसरे के दुश्मन बने हुए थे. हर कोई एकदूसरे को नीचा दिखाने और बेइज्जत करने का कोई मौका नहीं गंवाता था.

दरअसल, रसोई से शुरू हुआ विवाद धीरेधीरे इतना बढ़ गया कि एक दिन भाइयों में हाथापाई की नौबत आ गई और मामला पुलिस थाने में जा पहुंचा. थाने के चक्कर में फंसने और महल्ले व रिश्तेदारी में फजीहत होने के बाद आखिर सभी भाइयों ने बैठ कर बात की कि वे लोग आपस में क्यों लड़ रहे हैं. बातचीत के दौरान यह बात उभर कर सामने आई कि सब की बीवियों में तनातनी की वजह से भाई एकदूसरे के दुश्मन बन गए हैं. सभी भाइयों के बीच बातचीत शुरू हो गई और सारे गिलेशिकवे खत्म हो गए.

इस मिसाल से यह सबक मिलता है कि सच में बात करने से ही बात बनती है. किसी भी मसले पर अगर शांति के साथ बैठ कर बातचीत की जाए तो कोई न कोई हल निकल ही आता है. समाजविज्ञानी हेमंत राव कहते हैं कि हर समस्या का कोई न कोई समाधान होता है, अगर इस के लिए कोशिश की जाए. पुरानी बातों और विवादों को दरकिनार कर सुलह का रास्ता निकाला जा सकता है. ज्यादातर पारिवारिक झगड़ों में देखा गया है कि झूठे अहं और आपसी बातचीत बंद होने से ही फसाद की जड़ें गहरी होती जाती हैं.

रांची का रहने वाला दिनेश सिंह पारिवारिक झंझट में फंस कर पिछले 5 साल से कोर्ट, वकील और थाने का चक्कर लगा रहा है. दिनेश बताता है कि कोर्ट और थाने के चक्कर में लाखों रुपए बरबाद हो गए और प्राइवेट कंपनी की नौकरी भी छूट गई. छोटेमोटे घरेलू मामलों में अगर दोनों पक्ष जल्दी कोई फैसला चाहें तो हाईकोर्ट के मैडिएशन सैंटर यानी मध्यस्थता केंद्र में जाना चाहिए.

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