बिहार का मतलब ही भ्रमण करना है. ऐसे में इस राज्य में घुमक्कड़ों के लिए कई मनोहारी पर्यटन स्थल हैं जहां आ कर सैलानी सुंदरता की दुनिया में खो जाते हैं. आधुनिकता के तमाम विकल्पों के साथसाथ इतिहास के अमूल्य तोहफों से वाकिफ कराते बिहार की खूबियां जरा आप भी जानिए.
भारत के पर्यटन मानचित्र में बिहार का अहम मुकाम है. यहां सालभर देशविदेश से पर्यटक आते रहते हैं. गंगा नदी के किनारे और सोन एवं गंडक नदी के संगम पर लंबी पट्टी के रूप में बसा हुआ है बिहार. बिहार की राजधानी पटना है. आजादी के बाद इसे बिहार की राजधानी बनाया गया. तब और अब के पटना में काफी बदलाव आ चुका है. पहले पटना के लोगों को ‘पटनिया’ कहा जाता था, पर बदलते जमाने के पटनावासी अब खुद को ‘पटनाइट्स’ कहलाने पर फख्र महसूस करते हैं.
बुद्घ स्मृति पार्क 
यह पटना का नवीनतम दर्शनीय स्थल है. पटना रेलवे स्टेशन के मुख्य निकासद्वार से बाहर निकलते ही जिस विशाल और चमचमाते स्तूप पर नजर टिक जाती है वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बना नया पर्यटन स्थल बुद्ध स्मृति पार्क है. उस जगह पर बांकीपुर जेल के नाम से पटना का सैंट्रल जेल हुआ करता था. 22 एकड़ जमीन पर 125 करोड़ रुपए की लागत से बने इस पार्क में बना शांति स्तूप 200 फुट ऊंचा है. पार्क का 80 फीसदी हिस्सा खुला छोड़ा गया है जहां रंगबिरंगे फौआरों और स्पैशल लाइटिंग का मनोहारी इंतजाम है. यहां बांकीपुर जेल के वाच टावर और दीवार के एक हिस्से को ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संजो कर रखा गया है. इस में ट्रैडिशनल और मौडर्न शिल्प का संगम देखने को मिलता है. पार्क को बनाने में बोधगया महाबोधि के अलावा जापान, थाईलैंड, म्यांमार, दक्षिण कोरिया और तिब्बत के महाविहारों की भी भागीदारी रही है. बुद्ध स्मृति पार्क में बौद्ध स्तूप, मैडिटेशन सैंटर, पार्क औफ मैमोरी, म्यूजियम और बांकीपुर जेल अवशेष के अलगअलग खंड बनाए गए हैं.
बौद्ध स्तूप
200 फुट ऊंचा स्तूप बौद्ध वास्तुशिल्प का नायाब नमूना है. स्तूप की बाहरी और भीतरी दीवारों पर की गई नक्काशी इतिहास को नए अंदाज में करीब से देखने का मौका देती है. इस स्तूप की सब से बड़ी खासीयत यह है कि पर्यटक इस के भीतर जा सकते हैं, जबकि दूसरी जगहों पर बने स्तूपों में अंदर जाने की व्यवस्था नहीं होती है. इस के अंदर एक बुलेटप्रूफ शीशे का कमरा बनाया गया है, जिस में कई देशों से मंगाए गए बौद्ध अवशेषों को सहेज कर रखा गया है.
म्यूजियम
पार्क के भीतर बनाया गया बुद्ध म्यूजियम सहसा राजगीर के बराबर की गुफाओं की याद दिला देता है. इसे बड़ी ही खूबसूरती से गुफानुमा बनाया गया है जिस में बुद्ध और बौद्ध धर्म से जुड़ी चीजें प्रदर्शन के लिए रखी गई हैं. इसे सिंगापुर के म्यूजियम की तर्ज पर विकसित किया गया है. बुद्ध और बौद्ध धर्म से जुड़ी चीजों को औडियोवीडियो के जरिए प्रदर्शित किया जाता है.
पार्क औफ मैमोरी
यह बुद्ध पार्क का सब से महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. इस के जरिए पर्यटक यह आसानी से जान सकेंगे कि किस तरह से बुद्धिज्म बिहार में पनपा और कब व किस तरह से चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, श्रीलंका समेत कई देशों में फैला. इस के लिए जगहजगह पर चीनी, कोरियाई, थाईलैंडी नाम वाले पगोडा बनाए गए हैं, जहां पर बैठ कर ध्यान लगाया जा सकता है.
मैडिटेशन सैंटर
यहां बौद्धकालीन इमारतों की याद दिलाता मैडिटेशन सैंटर बनाया गया है. यह प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय से प्रेरित है. इस में कुल 5 ब्लौक और 60 कमरे हैं. सभी कमरों के सामने के हिस्सों में पारदर्शी शीशे लगाए गए हैं ताकि ध्यान लगाने वाले सामने बौद्ध स्तूप को देख कर ध्यान लगा सकें.
पटना दियारा
पटना और हाजीपुर के बीच गंगा नदी के 2 धाराओं में बंट जाने से गंगा के बीच करीब 4 वर्ग किलोमीटर का दियारा इलाका टापू की शक्ल ले चुका है. इस इलाके में रेत और पानी के बीच समुद्र तट के जैसा नजारा और मजा मिलता है. दियारा को पर्यटन स्पौट के रूप में विकसित कर दियारा पर्यटन का नाम दिया गया है.
पटना के इंजीनियरिंग कालेज घाट (काली घाट) से नाव और स्टीमर के जरिए 5 से 10 मिनट में दियारा तक पहुंचा जा सकता है. नाव से जाने पर प्रति सवारी 10 रुपए और एमवी-गंगा स्टीमर से जाने पर प्रति सवारी 75 रुपए किराया लगता है. स्टीमर से जाने पर आधे घंटे तक गंगा भ्रमण और डौल्फिन देखने का आनंद लिया जा सकता है. रोजाना 2 से 3 हजार लोग दियारा पर्यटन पर मौजमस्ती के लिए पहुंचते हैं. टापू पर बांस और फूस की 5 कलात्मक झोंपडि़यां बनाई गई हैं, जिन में पर्यटकों के बैठने व सुस्ताने का पूरा इंतजाम है. इतना ही नहीं, चाइनीज और साउथ इंडियन फूड के साथसाथ देसी व्यंजन लिट्टीचोखा, चाट, गोलगप्पे का भी मजा ले सकते हैं.
इस के लिए एक फूड प्लाजा भी खोला गया है, जिस के मेन्यू कार्ड में 60 तरह के आइटम हैं. इस के अलावा धमाचौकड़ी मचाने और खेलनेकूदने का भी मुकम्मल इंतजाम है. पर्यटक वौलीबौल, फ्लाइंग डिस्क और रिंग जैसे खेल का आनंद उठा सकते हैं. मकर संक्रांति के मौके पर दियारा में पतंगबाजी के मुकाबले का भी आयोजन किया जाता है.
ईको पार्क
पटना के लोगों और पर्यटकों की तफरीह के लिए बने नएनवेले ईको पार्क में हरियाली और कला का अनोखा संगम देखने को मिलता है. पटना के दर्शनीय स्थलों में नया नगीना है ईको पार्क. पटना की बेली रोड पर पुनाईचक इलाके में अक्तूबर 2011 में ईको पार्क को पर्यटकों के लिए खोला गया. इसे राजधानी वाटिका भी कहा जाता है.
पार्क में बनी झील में नौकाविहार का आनंद लिया जा सकता है. इस में बच्चों के खेलने और मनोरंजन करने का खासा इंतजाम किया गया है, वहीं बड़ों के लिए आधुनिक मशीनों से लैस जिम भी बनाया गया है. 9.18 हेक्टेअर क्षेत्र में फैले इस पार्क में 1,191 मीटर का जौगिंग ट्रैक भी है. पार्क में गुलाब, कमल, डहेलिया, गेंदा, रजनीगंधा आदि फूल पार्क को कलरफुल लुक देते हैं.
सुबह 8 बजे से 10 बजे तक इस में प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं है क्योंकि इस दौरान मौर्निंग वाकर्स और जौगर्स पार्क में आते हैं.
10 बजे दिन के बाद से पार्क में प्रवेश के लिए 5 रुपए का टिकट लगता है. याद रहे गुरुवार को पार्क बंद रहता है.
पटना म्यूजियम
पटना म्यूजियम देशविदेश के पर्यटकों को हमेशा ही लुभाता रहा है. इतिहास से रूबरू होने के साथ इस के पार्क में बैठने का आनंद लिया जा सकता है. पटना रेलवे स्टेशन से आधा किलोमीटर दूर बुद्ध मार्ग पर बने इस म्यूजियम ने प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को संजो कर रखा है.
प्राकृतिक कक्ष में जीवजंतुओं के पुतलों को रखा गया है जबकि वास्तुकला कक्ष में खुदाई में मिली मूर्तियों को रखा गया है, जिन में विश्वप्रसिद्ध यक्षिणी की मूर्ति भी शामिल है. इस के अलावा सिक्का कक्ष, टेराकोटा कक्ष, अष्टधातु कक्ष, आर्ट एवं पेंटिंग कक्ष, आदिवासी कक्ष और डा. राजेंद्र प्रसाद कक्ष भी दुर्लभ ऐतिहासिक चीजों से भरे हुए हैं.
जैविक उद्यान
पटना का यह चिडि़याघर शहर वालों का पसंदीदा पिकनिक स्पौट है. रेलवे स्टेशन से 4 किलोमीटर और एअरपोर्ट से 2 किलोमीटर की दूरी पर बने चिडि़याघर में विभिन्न प्रजातियों के पशु, पक्षी और औषधीय पौधे हैं जो इस की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं. बच्चों की रेलगाड़ी में सैर करने का लुत्फ बच्चे, बूढ़े और जवान सभी उठाते हैं. उद्यान में विकसित झील में नौकाविहार का भी आनंद लिया जा सकता है. सांपघर और मछलीघर भी पर्यटकों को लुभाते हैं.
कुम्हरार
प्राचीन पटना का भग्नावशेष यहीं मिला था. पटना जंक्शन से 5 किलोमीटर पूरब में पुरानी बाईपास रोड पर स्थित कुम्हरार प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है. यह पिकनिक स्पौट और लवर्स पौइंट के रूप में मशहूर हो चुका है. यहां मौर्यकालीन सभाभवन के अवशेषों के बीच खूबसूरत पार्क बनाया गया है. शहर की भीड़भाड़ से दूर छुट्टियों के दिन, पटना वालों को यहां गुजारना काफी रास आता है.
गोलघर
गंगा नदी के किनारे बना गोलघर ऐतिहासिक और स्थापत्यकला का उत्कृष्ट नमूना है. 1770 के भीषण अकाल के बाद 1786 में अंगरेजों ने इसे अनाज रखने के लिए बनाया था. 29 मीटर ऊंचे इस गोलाकार भवन के ऊपर चढ़ने के लिए 100 से ज्यादा सीढि़यां हैं. इस के शिखर से पटना शहर के खूबसूरत नजारों का लुत्फ उठाया जा सकता है.
इन सब के अलावा जलान म्यूजियम, अगमकुआं, मनेर का मकबरा, सदाकत आश्रम, बिहार विद्यापीठ, गांधी संग्रहालय, तख्त हरमंदिर, शहीद स्मारक, गांधी मैदान तारामंडल, पटनदेवी, पत्थर की मसजिद, पादरी की हवेली आदि भी पटना के नामचीन पर्यटन स्थल हैं.
5वीं सदी ईसापूर्व से ले कर गुप्तकाल और फिर मौर्यकाल तक वैशाली, नालंदा और राजगीर देश की मुख्य गतिविधियों का केंद्र रहे और इस दौरान वहां स्थापत्यकला खूब फलीफूली. बड़े पैमाने पर इमारतें और स्मारक बने जिन की कलात्मकता का डंका आज भी दुनियाभर में बज रहा है. कहा जाता है कि भारतीय कला का इतिहास बिहार से ही शुरू होता है. ईसापूर्व छठी सदी से ही स्थापत्यकला के बेजोड़ नमूने बनने शुरू हो गए थे और इस तरह की गतिविधियों का केंद्र राजगीर रहा.
राजगीर
यहां वेणुवन, मनियार, मठ, पिप्पल नामक पत्थर का महल है, जिसे पहरा देने का भवन या मचान भी कहते हैं. वैभारगिरी पहाड़ी के दक्षिणी छोर पर सोनभद्र गुफा, जरासंध का बैठकखाना, स्वर्ण भंडार, बिंबिसार का कारागार, जीवक आम्रवन और पत्थरों की उम्दा कारीगरी से बनाई गई सप्तपर्णी गुफा की कलात्मकता देखते ही बनती है.
पटना से 109 किलोमीटर दक्षिणपूर्व में और नालंदा से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजगीर हिंदू, बौद्ध और जैनियों का महत्त्वपूर्ण व ऐतिहासिक स्थल है. पहाड़ पर बने विश्व शांति स्तूप स्थापत्यकला के बेहतरीन नमूनों में से एक है. रोप वे (रज्जू मार्ग) के जरिए पर्यटक वहां आसानी से पहुंच सकते हैं.
वायुमार्ग से : पटना एअरपोर्ट से 102 किलोमीटर और गया एअरपोर्ट से 60 किलोमीटर की दूरी पर है.
रेलमार्ग से : हावड़ापटना मुख्य रेलमार्ग पर स्थित बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन सब से नजदीकी स्टेशन है.
सड़क मार्ग से : पटना के मीठापुर बस अड्डे से हरेक घंटे पर गया के लिए बस चलती है.
नालंदा
शिक्षा और ज्ञानविज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र के रूप में नालंदा मशहूर था. नालंदा महाविहार या विश्वविद्यालय में दुनिया भर से छात्र पढ़ने आते थे. सम्राट अशोक ने यहां मठ की स्थापना की थी. जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर ने यहां काफी समय गुजारा. प्रसिद्ध बौद्ध सारिपुत्र का जन्म यहीं हुआ था. महाविहार के सामने विशाल स्तूप आज भी मौजूद है. यहां बुद्ध काल की बनी हुई धातु, पत्थर और मिट्टी की मूर्तियां मिली हैं.
नालंदा में 14 हेक्टेअर क्षेत्र में हुई खुदाई में विशाल सीढि़यां, धातु गलाने का बरतन, बुद्ध की अभयमुद्रा वाली मूर्ति, मठ, आश्रम, लैक्चर हौल, होस्टल, सभाकक्ष, प्राचीन बौद्ध पांडुलिपियां, चीनी यात्री ह्वेनसांग की खोपड़ी भी मिली है.
सड़क मार्ग से : नालंदा पटना से 90 किलोमीटर की दूरी पर है. पटना के मीठापुर बस अड्डे से हर समय नालंदा के लिए बस मिल जाती है.
वायुमार्ग से : पटना का जयप्रकाशनारायण इंटरनैशनल एअरपोर्ट सब से नजदीक है.
रेलमार्ग से : हावड़ापटना मुख्य रेलमार्ग पर स्थित बख्तियारपुर रेलवे स्टेशन सब से नजदीकी स्टेशन है.
बोधगया
ईसा से 500 साल पहले बोधगया में ही गौतम बुद्ध को पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था. गया शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बोधगया निरंजन नदी के किनारे बसा हुआ है.  इस के आसपास कई तिब्बती मठ हैं. जापान, चीन, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड द्वारा यहां बनाए गए विशाल बौद्ध स्तूप पर्यटकों को लुभाते हैं.
बिहार में सब से ज्यादा विदेशी पर्यटक बोधगया ही आते हैं. गया शहर में भी कई पर्यटन स्थल हैं. पटना से 94 किलोमीटर की दूरी पर गया फल्गु नदी के किनारे बसा हुआ है. बराबर की गुफाओं में मौर्यकालीन स्थापत्यकला का बेहतरीन नमूना देखने को मिलता है.
सड़क मार्ग से : बोधगया पटना एअरपोर्ट से 109 किलोमीटर की दूरी पर है. गया एअरपोर्ट से इस की दूरी
8 किलोमीटर है.  दिल्लीहावड़ा रेलमार्ग पर गया रेलवे स्टेशन नजदीकी रेलवे स्टेशन है.
वैशाली
इस को विश्व का सब से पुराना गणतंत्र होने का गौरव प्राप्त है. प्राचीन वैशाली के अवशेष वैशाली जिला के बसाढ़ नामक गांव में पाए गए हैं.
यहां कई ऐतिहासिक और कलात्मक इमारतें हैं. राजा विशाल का किला, अशोक स्तंभ, बौद्ध स्तूप समेत कई इमारतें अपने बुलंद दिनों की गवाह बनी आज भी सीना ताने खड़ी हैं. वैशाली के कोल्हुआ गांव में स्थित अशोक स्तंभ को स्थानीय लोग ‘भीमसेन की लाठी’ भी कहते हैं. स्तंभ के ऊपर उत्तर की ओर मुंह किए हुए समूचे सिंह की मूर्ति बनी हुई है. यह अशोक स्तंभ आज भी भारतीय लोकतंत्र का प्रतीक चिह्न बना हुआ है.
स्तंभ से 50 फुट की दूरी पर एक तालाब है जिस के पास गोलाकार बौद्ध स्तूप बना हुआ है, जिस के ऊपर के भवन में बुद्ध की मूर्ति है. वैशाली की कला काफी उच्चकोटि की थी और विश्वविख्यात नर्तकी आम्रपाली ने यहीं अपनी कला का जौहर दिखा कर दुनियाभर के कलाप्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया था.
सड़क मार्ग से : वैशाली से पटना एअरपोर्ट से 60 किलोमीटर और पटना रेलवे स्टेशन से 54 किलोमीटर की दूरी पर है.
नजदीकी रेलवे स्टेशन हाजीपुर और मुजफ्फरपुर हैं.
गया एअरपोर्ट सेवैशाली की दूरी तकरीबन169 किलोमीटर है.

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