शहरों में बाटीचोखा खाने का प्रचलन कम था. धीरेधीरे बाटीचोखा खाने का प्रचलन बढने लगा. पहले लोग इस को समोसा और पकौड़ी के मुकाबले कम पसंद करते थे. बाद में जब सेहत को ले कर लोग जागरूक होने लगे, तो समोसा पकौड़ी की जगह पर इस को ज्यादा पसंद करने लगे.

बाटी में, जिन लोगों को पसंद नहीं होता है, उस में चिकनाई नहीं लगाई जाती है, इसलिए सेहत की नजर से लोगों ने इस को खाना शुरू किया. समोसा पकौड़ी के मुकाबले यह ताजी होने के कारण भी खूब पसंद की जाने लगी.

"बाटीचोखा" को अब शादीविवाह और दूसरी पार्टियों में भी एक अलग डिश के रूप में खूब पसंद किया जाने लगा है.

सोंधी बाटी तो चटक चोखा

बाटीचोखा के कारीगर विजय साहनी कहते हैं, "बाटीचोखा 2 अलगअलग चीजें होती हैं. बाटी गोलगोल गेहूं के आटे की बनी होती है. इस के अंदर चनेे का बेसन भून कर मसाला मिला कर भरा जाता है.

"इस के बाद इसे आग में पका कर खाने के लायक तैयार किया जाता है. इस के साथ खाने के लिए चोखा दिया जाता है, जो आलू, बैगन और टमाटर से तैयार होता है.

"बाटीचोखा के साथ प्याज और मूली का सलाद भी दिया जाता है. कुछ लोग इस में मक्खन लगा कर खाना पसंद करते हैं, तो कुछ लोग इस को ऐसे ही खाते हैं."

विजय साहनी कहते हैं कि बाटी को तैयार करने के लिए कंडे और लकड़ी की आग को तैयार किया जाता है. इस के लिए लोहे की बड़ी कड़ाही में कंडे और लकड़ी को जला कर राख तैयार की जाती है. इसी में बाटी को डाला जाता है. जब बाटी पूरी तरह से पक जाती है, तो इस को खाने के लिए चोखा के साथ दिया जाता है.

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