Digital Life : सोशल मीडिया मौजूदा दौर का नुक्कड़ भी है और कौफीहाउस भी, जहां आम से ले कर खास लोग तक अपनी बात कहते हैं लेकिन कुछ लोग भड़ास निकालते हैं जो अकसर तर्क और तथ्यहीन होती हैं. लिहाजा, कोई इस प्लेटफौर्म को गंभीरता से नहीं लेता. इस की हैसियत टाइमपास मूंगफली सरीखी होती जा रही है जो मोदीजी की मां को गाली दिए जाने पर भी देखी गई.
‘जीवन चार दिनों का मेला है’ की जगह अब कहना यह चाहिए कि ‘सोशल मीडिया पोस्टों की जिंदगी चार घंटे की होती है.’ एक पोस्ट मरती है तो दूसरी पोस्ट आ धमकती है लेकिन मोक्ष किसी को नहीं मिलता. वे आत्मा की तरह भटकती रहती हैं, बिलकुल इस भ्रम की तरह कि यही शाश्वत है, बाकी सब पोस्टें नश्वर थीं. मोदी की मां को गाली वाले एपिसोड का भी उम्मीद के मुताबिक यही हश्र हुआ.
मां की गाली बातबात पर दी जाती है, इसलिए अघोषित रूप से इसे ‘राष्ट्रीय गाली’ का दर्जा मिला हुआ है. इस मेलेझमेले में लोग यही सोचते रह गए कि क्या वाकई में राहुल गांधी नरेंद्र मोदी की मां को गाली देने जैसा छिछोरा और घटिया काम कर सकते हैं. पक्के से पक्के भक्त ने भी दिमाग से इसे सच नहीं माना क्योंकि इस पर तो कौपीराइट वे खुद के ही मानते हैं. किसी और को यह हक नहीं कि वह औरतों को यों बेइज्जत करे. उन की दिल की शंका को दूर किया उन दिमाग वालों ने जिन की तादाद 5 फीसदी के लगभग है. ये लोग एआई का इस्तेमाल करते हैं. ये वे लोग हैं जो न मोदी का भरोसा करते और न ही राहुल का करते हैं. ये ग्रोक, चैट जीपीटी और मेटा वगैरह को ही अपना बह्मा, विष्णु और महेश मानते हैं. यही उन की गीता, कुरान और बाइबिल हैं. जब इन से उन्होंने इस गाली कांड का सच जानना चाहा तो जवाब कुछ यों मोबाइल स्क्रीन पर नजर आया-
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