‘ममाज बौय’ शब्द का इस्तेमाल सामान्यतया ऐसे पुरुषों को इंगित करने के लिए किया जाता है जिस में आत्मनिर्भरता की कमी होती है और जो युवा होने के बाद भी अपनी मां पर अत्यधिक निर्भर होता है. हालांकि इसे निगेटिव रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है लेकिन बदलते नजरिए ने आज इस शब्द के इस्तेमाल के तरीके में बदलाव ला दिया है. हाल के वर्षों में इस शब्द का इस्तेमाल ऐसे लड़कों या पुरुषों को दर्शाने के लिए किया जाने लगा है जो अपनी मां की सराहना करता है, उस का सम्मान करता है और उन के साथ गहरा लगाव रखता है.
शोधों से पता चलता है कि अपनी मां के साथ मजबूत रिश्ते रखने वाले लड़के और पुरुष मानसिक रूप से स्वस्थ होते हैं, अधिक सहानुभूति भरा स्वभाव रखते हैं और महिलाओं के साथ उन के रिश्ते बेहतर होते हैं. यह भी सच है कि वह अपनी मां के बिना कोई काम नहीं कर सकते.
इस शब्द का पहली बार प्रयोग 1900 के दशक के प्रारंभ में किया गया था. इस का प्रयोग सिगमंड फ्रायड और बेंजामिन स्पाक जैसे सिद्धांतकारों और बाल विकास शोधकर्ताओं ने भी किया है. एथलीट से ले कर बिजनेसमैन तक कई पुरुष गर्व से दावा करते हैं कि वे ममाज बौयज हैं. इस में देखा जाए तो कोई बुराई नहीं है. मुश्किल तब आती है जब इन की शादी होती है.
एक पत्नी अपने पति पर पूरा हक चाहती है और इस प्यार को किसी के साथ बांटना नहीं चाहती. मगर ये पत्नी को आधाअधूरा प्यार और समय दे पाते हैं क्योंकि बाकी समय और प्यार तो मां के नाम होता है. ये हर बात मां से पूछ कर करना चाहते हैं जैसा कि इन्हें शुरू से आदत होती है. मगर यही बात पत्नी को चुभने लगती है. पत्नी ही नहीं अकसर गर्लफ्रेंड्स भी ममाज बौयज को पसंद नहीं करतीं.
मोहित एक 23 साल का नौजवान है और अपने मांबाप के साथ रहता है. वह इकलौता बेटा है इसलिए अपनी मां का ज्यादा ही दुलारा है. बचपन से उस के सारे काम उस की मां करती आ रही है. उस के कपड़े धोने, बैड ठीक करना, चादर बदलना, उस के कपड़ों पर प्रेस करना, उस के जूते साफ करना, उस के कमरे के लिए नए परदे लाना, खाना टेबल पर रख कर जाना, उस के सोने का इंतजाम देखना और यहां तक कि सुबह समय पर उठाना भी. वह एग्जाम देने जाता तो मां उस का बैग भी संभालती. अब औफिस ज्वाइन करने के बाद भी मां ही उस का बैग सही करती है. वह कहीं भी जाता है तो मां को साथ ले जाता है.
एक दिन जब वह अपनी गर्लफ्रैंड के साथ था तो उस की मां का फोन आया यह पूछने के लिए कि उसे दोस्त के बर्थडे पार्टी के लिए किस कलर की शर्ट पहननी है ताकि वह उस शर्ट को धो कर और प्रेस कर तैयार कर दें. मां ने उसे यह भी समझाया कि वह ब्लू शर्ट में स्मार्ट लगता है इसलिए उसे ब्लू शर्ट ही पहननी चाहिए. मोहित ने ब्लू शर्ट के लिए हामी भर दी साथ में यह कहना भी नहीं भूला कि मां आप भी मेरे साथ चलोगी. बर्थ डे अगले ही दिन था.
मोहित की गर्लफ्रैंड को यह जान कर बहुत आश्चर्य हुआ कि उस का बौयफ्रैंड अपने सारे काम आज भी अपनी मां से कराता है. मां ही यह फैसला लेती है कि वह किस ओकेजन में कौन से कलर के कपड़े पहने. गर्लफ्रैंड ने हंसते हुए ताना कसा,
“यार जब हम छोटे होते हैं तो हमारा सारा काम हमारी मां करती है. लेकिन समय के साथ जब हम बड़े हो जाते हैं और अपनी जिम्मेदारियां खुद उठाने लायक हो जाते हैं तब हर काम मां से कराने का क्या मतलब? मां ने पिछले 18 – 20 साल तुम्हारे ऊपर लगा दिए. अब तो उन्हें अपनी जिंदगी जीने दो या अब भी उन्हें तुम्हारे ही आगे पीछे घूमना चाहिए? कल को मैं या कोई और लड़की तुम्हारी पत्नी बनेगी तब भी क्या तुम्हारे हर काम में मां की दखल होगी? मां ही हर जगह तुम्हारे साथ जाएगी? तब तुम्हारी पत्नी का क्या होगा? वैसे भी अब तुम अपने हर काम खुद करने के योग्य हो तो फिर मां पर यह निर्भरता क्यों?”
मोहित को बात समझ आ गई थी. उस ने तुरंत फोन उठाया और मां को कौल कर के बोला, “मां आप मेरे शर्ट की टेंशन मत लो. आज मैं अपनी दोस्त के साथ शौपिंग करने जा रहा हूं और हम वहां कल की पार्टी के लिए एक अच्छी शर्ट ले लेंगे. मैं कल उसी के साथ चला जाऊंगा आप बिलकुल भी टेंशन मत लेना.”
दरअसल आजकल एक या दो बच्चे होते हैं जो पेरैंट्स खासकर मां के बहुत लाडले होते हैं. माएं अपना सारा समय बेटे की जरूरतें पूरा करने में लगा देती हैं. यह आदत कुछ ऐसी लग जाती है कि बेटे के बड़े होने के बाद भी वह उसी के कामों में लगी रहती हैं. बहुत से बेटे भी हर काम के लिए मां के आसरे रहते हैं.
मगर युवा पीढ़ी को समझना होगा कि मां ने अपनी जिंदगी के इतने साल जब बेटे के पालनपोषण में लगा दिए तो अब समय है जब उन्हें खुद के लिए जीना चाहिए. इस के लिए बेटे को हर काम खुद करने की आदत डालनी चाहिए ताकि कल को बीवी आए तो उसे यह नहीं लगे कि वह ममाज बौय है और मां के बिना हिल भी नहीं सकता. पत्नी भी कुछ सपने ले कर आती है. ऐसे में सास की हर चीज में जरूरत से ज्यादा दखलंदाजी उस के सपनों पर भारी पड़ सकती है.
पत्नी और मां के बीच सामंजस्य कैसे बैठाएं
शादी के बाद आप के जीवन में आप की पत्नी और मां दोनों का ही महत्व होता है. मां ने आप को जन्म दिया है, पालपोस कर बड़ा किया है. आप को ले कर उन के कुछ ख्वाब है. वहीं दूसरी और पत्नी भी अपना घर परिवार आप के लिए छोड़ कर आई है. वह भी आप से अपने हिस्से का प्यार चाहती है. दोनों के विचार अलग हो सकते हैं. दोनों में जनरेशन गैप भी है. पर एक चीज दोनों में समान है. दोनों ही आप का भला चाहती हैं और आप से प्यार करती हैं. इसलिए जहां तक हो सके आप दोनों को उन का स्पेस दें. दोनों को उन के हिस्से का प्यार व समय दें ताकि आप दोनों को साथ ले कर चल सकें. मां को भी ऐसा न लगे कि बहू के आने के बाद बेटा उन्हें भूल गया है और पत्नी को भी ऐसा ना लगे कि पति तो ममाज बौय है. परिस्थितियों को बेहतर बनाने और ममाज टैग को हटाने के लिए कुछ प्रयास आप को भी करने होंगे.
बेहतर होगा कि आप अपनी मां/सास को दूसरों के साथ इन्वौल्व होने को प्रेरित करें. ऐसा माहौल तैयार करें कि मां आप को छोड़ कर दूसरे कामों और दूसरे लोगों में व्यस्त हो जाए. उन की दोस्ती उन के हमउम्र लोगों से कराएं कुछ इस तरह-
मां को उन की हमउम्र महिलाओं के ग्रुप से मिलवाएं
मां को ऐसी महिलाओं से मिलनेजुलने को प्रेरित करें जो उन के उम्र की हैं. इस उम्र में अकसर महिलाओं की समस्याएं एक सी होती हैं. उन की सोच और सेहत भी एक सी ही होगी. इन महिलाओं के पास घर परिवार और सेहत से जुड़ी बातें करने के लिए बहुत सारे टौपिक्स होते हैं. वे आपस में मिलेंगीजुलेंगी तो उन का मन लगा रहेगा. अपनी समस्याएं डिस्कस कर उन का समाधान भी खोज सकेंगी. सेहत से जुड़ी बातें कर तरहतरह के योगा या फिजिकल एक्टिविटी की क्लासेज से जुड़ने लगेंगी. सहेलियों के साथ मिल कर कोई ग्रुप या क्लासेज ज्वाइन करना आसान भी होता है और आनंद भी आता है.
मां की हमउम्र ऐसी महिलाओं की तलाश के लिए आप व्हाट्सअप ग्रुप्स का सहारा ले सकते हैं. इस के अलावा सुबहसुबह किसी पार्क में मौर्निंग वाक के लिए जाने पर भी ऐसी बहुत सी महिलाएं दिख जाती हैं. बहुत सी महिलाएं तो गलीमहल्ले की ही होती हैं. मां को इन से दोस्ती करने और घर बुलाने को प्रेरित करें. कभीकभी उन्हें किटी पार्टी करने को भी उत्साहित करें.
अपनी पत्नी की सहेलियों की माओं से उन की मीटिंग करवाएं
अपनी मां को पत्नी की मां की सहेलियों से मिलवाएं. इस के लिए अपने घर में अपने दोस्तों के साथसाथ पत्नी की मां की सहेलियों को भी आमंत्रित करें. ताकि आप की मां उन सहेलियों के साथ बिजी हो जाएं और आप अपने युवा दोस्तों के साथ एन्जोय कर सकें. आप हर वीक ऐसा कर सकते हैं. धीरेधीरे आप की मां का अपना सोशल ग्रुप ही इतना बड़ा हो जाएगा कि वह उसी में बिजी रहा करेंगी. आप अपनी मां को अपनी सहेलियों के घर या कहीं बाहर घूमने जाने को भी प्रेरित कर सकते हैं. इस से आप की मां भी अब इस उम्र में आ कर अपनी जिंदगी जी सकेंगी.
उन्हें तरहतरह के शौक पालने और पूरा करने को उत्साहित करें
हो सकता है कि आप की मां को युवावस्था में किसी तरह का शौक मसलन डांसिंग, सिंगिंग, एक्टिंग, टीचिंग, राइटिंग आदि में इंटरेस्ट हो मगर परिवार में व्यस्त हो जाने की वजह से वह उसे पूरा न कर पाई हों. अब आप जब अपने जीवन में व्यवस्थित हो गए हैं तो उन्हें इन शोकों को फिर से अपनाने के लिए प्रेरित करें. आप उन्हें इस तरह के क्लासेस में भेज सकते हैं या ऐसे ग्रुप्स से जोड़ सकते हैं जो इन से सम्बद्ध हों. क्या पता आप की मां इस उम्र में भी कुछ ऐसा कर सकें जिस से आप गौरवान्वित महसूस करें क्यों कि कुछ करने के लिए उम्र मायने नहीं रखता. यह तो बस एक संख्या है. जरूरत तो उत्साह, लगन और रूचि की होती है. उन्हें मैगजीन्स पढ़ने को प्रेरित करें.
कहने का मतलब यह है कि अपनी मां की जिंदगी में फिर से एक स्पार्क और उद्देश्य पैदा करें. उन्हें सोशल और एक्टिव लाइफ जीने का हौसला दीजिए ताकि वे आप के आगे पीछे रह कर अपनी बाकी की जिंदगी में खत्म न करें और आप की पत्नी को भी अपनी शादीशुदा जिंदगी जीने का मौका मिल सके. आप भी सही अर्थों में एक आत्मनिर्भर और जिम्मेदार बेटा और पति बन सकें.
फैशन के प्रति झुकाव
अकसर माएं अपने लुक को ले कर उदासीन हो जाती हैं. मगर आप उन्हें फैशनेबल और स्टाइलिश बनने को प्रेरित कर सकते हैं. इस से मां का ध्यान आप से हट कर अपनी तरफ जाएगा. उन्हें भी कुछ नया खरीदने या सिलवाने की इच्छा होगी तो वे अपना समय इन सब में भी लगाएंगी. एक बार जब वह फैशन की तरफ रुझान पैदा कर लें तो उन का कौन्फिडेंस भी बढ़ेगा और जिंदगी में कुछ बेहतर करने या जिंदगी नए सिरे से एन्जोय करने की ललक भी बढ़ेगी.