समीर मनचंदा की पत्नी रागिनी पति के उग्र व्यवहार से काफी परेशान है. उस की शादी को 3 साल हो रहे हैं. शादी के दूसरे माह में ही रागिनी के सामने यह सच उजागर हो गया था कि समीर कभीकभी इतना ज्यादा उग्र हो जाता है कि उस को समझाना या संभालना मुश्किल होता है. वह गुस्से से तमतमाने लगता है, घर की चीजें फेंकने लगता है, किसी पर भी हाथ उठा सकता है. जबकि बाकी दिनों में वह एक आम पति की तरह बहुत जिम्मेदार, शांत और प्यारभरा होता है.

समीर और रागिनी की अरेंज मैरिज हुई थी. रागिनी शादी से पहले समीर से चारपांच बार बाहर मिली थी. दोनों में काफी बातें हुई थीं. तब एक बार भी रागिनी को उस के गुस्से और उग्र व्यवहार का पता नहीं चला. इन मुलाकातों में समीर ने बहुत सधीसुलझी और मन को रिझाने वाली बातें की थीं. रागिनी को पहली ही मुलाकात में समीर बहुत पसंद आया था.

समीर रागिनी की सुंदरता पर फ़िदा था. रागिनी नौकरी करती थी. अच्छा कमाती थी. परिवार भी बहुत संस्कारी, पढ़ालिखा और अमीर था. वहीं समीर का चांदनी चौक में कपड़ों का पारिवारिक बिजनैस था जो बहुत अच्छा चल रहा था. दोनों परिवारों में धन और समाज में मानसम्मान की कोई कमी नहीं थी. इसलिए बिना किसी व्यवधान के दोनों की शादी हो गई. रागिनी ससुराल आ कर बहुत खुश थी.

एक शाम दुकान पर समीर किसी बात पर नाराज हो कर घर लौटा और आते ही उस ने सारा गुस्सा रागिनी पर निकाल दिया. रागिनी उस के इस व्यवहार से चकित थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि उस ने क्या गलती कर दी. तौलिया मांगने की छोटी सी बात पर समीर ने झगड़ा शुरू किया और फिर चीखनेचिल्लाने लगा. रागिनी ने पलट कर सवाल किए तो समीर और ज्यादा भड़क उठा. उस की मां ने उस को डांट कर चुप कराने की कोशिश की तो समीर ने उन को धक्का दे दिया. रागिनी ने किसी तरह उन को संभाला. आधी रात तक समीर रागिनी पर चीखताचिल्लाता रहा और फिर बैडरूम अंदर से बंद कर के सो गया.

रागिनी को समझ ही नहीं आ रहा था कि उस से गलती क्या हुई है? वह उस पर इतनी बुरी तरह क्यों चीखचिल्ला रहा है? समीर का यह रूप उस के लिए बिलकुल नया था. उस के इस रूप को देख कर रागिनी बुरी तरह डर गई थी. उस के सासससुर उस को काफी देर तक समझाते रहे कि समीर की हरकत को दिल पर न ले, वह सुबह तक शांत हो जाएगा. रागिनी रातभर बालकनी में बैठी सुबकती रही.

सुबह उस ने खुद को नौर्मल किया और किचन में जा कर चायनाश्ता तैयार किया. समीर नहाधो कर तैयार हुआ तो रागिनी ने नाश्ता टेबल पर लगा दिया, मगर वह बिना खाए ही दुकान पर चला गया. अगले 3 दिन तक समीर मुंह फुलाए रहा.

इस बीच रागिनी की सास ने उसे समझाया कि जब तक समीर स्वयं बात न करे वह अपनी तरफ से खामोश ही रहे. उन्होंने कहा कि दोतीन दिनों बाद वह ठीक हो जाएगा. ऐसा वह कभीकभी करता है. रागिनी को उन की बात बड़ी अजीब लगी, मगर उस ने सास की बात मान ली और खामोशी से 3 दिन तक घर के कामों में लगी रही और तीसरे दिन सब ठीक हो गया.

तीसरे दिन सुबह समीर ने रागिनी को सौरी कहा और फिर रोनेधोने के बाद दोनों के बीच सुलह हो गई. गुस्से की वजह समीर ने नहीं बताई. बस, यही कहता रहा, “मेरा दिमाग गरम हो गया था, माफ कर दे.”बीते 3 साल में ऐसी घटना कई बार हो चुकी है. समीर वैसे तो रागिनी से बहुत प्यार करता है, उस की हर बात का खयाल रखता है मगर कभीकभी वह बाहर की कोई टैंशन ले कर आता है और गुस्सा रागिनी पर निकालता है. अगर उस को बीच में टोक दो या कोई सवाल करो तो वह और ज्यादा भड़कता है.

एक दिन जब समीर गुस्से में चिल्लाने लगा तो रागिनी भी उस पर चीख पड़ी. फिर क्या था, समीर किचन से माचिस की डब्बी उठा लाया और बोला कि अभी पूरे घर में आग लगा देता हूं. आखिर रागिनी के सासससुर ने आ कर बीचबचाव किया. पिता के जोरजोर से डांटने और घर छोड़ कर जाने की धमकी देने के बाद समीर थोड़ा शांत हुआ और माचिस जमीन पर फेंक अपने बैडरूम में चला गया.

एक बार बात बढ़ी तो रागिनी गुस्से में घर छोड़ कर अपनी एक सहेली के घर चली गई. मगर उस के सासससुर समाज में अपनी इज्जत का वास्ता दे कर उसे मना कर घर ले आए. रागिनी की हालत ऐसी हो गई थी कि न तो शादी निभाते बन रही थी और न ही तोड़ते. क्योंकि समीर के गुस्से का कोई आधार नहीं होता था. वह बेवजह ही कभी भी भड़क उठता था और कुछ देर में या एकाध दिन के बाद ऐसा नौर्मल हो जाता था जैसे कुछ हुआ ही न हो.

समीर की इस किस्म की उग्रता सामान्य गुस्से को नहीं, बल्कि किसी मानसिक बीमारी को दर्शा रही थी. उस के मांबाप ने कभी उस के इस व्यवहार को गंभीरता से नहीं लिया. मगर रागिनी समझ गई थी कि समीर किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त है. उस ने अपने पति का इलाज कराने की बात सोची लेकिन जब उस ने यह बात अपनी सास से कही तो वे गुस्सा हो गईं, बोलीं, ‘“तुम क्या कहना चाहती हो, क्या मेरा बेटा पागल है? अरे कारोबारी आदमी है, दिमाग पर बिजनैस का टैंशन रहता है, तो कभीकभी गुस्सा आ जाता है. फिर वह तुम से इतना प्यार करता है, घर का इतना खयाल रखता है, तुम को वह पागल नजर आ रहा है?’

रागिनी ने उन्हें समझाना चाहा कि हर मानसिक बीमारी पागलपन नहीं होती, अगर किसी मनोचिकित्सक को दिखा लिया जाए तो उस के व्यवहार में बदलाव आ जाएगा. मगर उस की सास उस की बात सुनने को ही तैयार नहीं हुईं. उन को तो यह बात चुभ गई कि बहू उन के बेटे को पागल कह रही है. हालांकि वे खुद कई सालों से समीर के इस व्यवहार से परेशान थीं मगर वे यह मानने को तैयार नहीं थीं कि वह किसी मानसिक बीमारी से ग्रस्त है. वे कहतीं कि समीर इकलौता है, इसलिए बचपन के लाड़प्यार में ऐसा हो गया है.

करोलबाग, दिल्ली में ‘माइंड क्लीनिक’ की ओनर और जानीमानी साइकियाट्रिस्ट डाक्टर सुगंधा गुप्ता कहती हैं कि भारतीय परिवारों में यह आम बात है कि हम मानसिक स्वास्थ्य के बारे में बात नहीं करना चाहते. मानसिक स्वास्थ्य के बारे में कुछ कहते ही यह सवाल खड़ा कर देते हैं कि क्या हम पागल दिखाई दे रहे हैं? जबकि मानसिक बीमारियां कई तरह की होती हैं और उन का इलाज भी अलगअलग होता है. यह जरूरी नहीं कि जब व्यक्ति पूरी तरह पागल हो जाए तभी उस को मानसिक रोगी करार दिया जाए और उस का इलाज किया जाए.

डा. सुगंधा कहती हैं, ““आज जिस तनाव, आगे निकलने की होड़, परीक्षाओं में ऊंचे नंबर लाने, कंपीटिशन में सफलता पाने की जद्दोजहेद के जिस दौर से युवा और बच्चे निकल रहे हैं, उस से उन का मानसिक स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. मातापिता बच्चे के शारीरिक स्वास्थ्य पर तो ध्यान देते हैं मगर मानसिक स्वास्थ्य की ओर उन का ध्यान नहीं है. वे इस बारे में बात भी नहीं करना चाहते क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य का विषय हमेशा से टैबू रहा है.

“”जब कोई इस बारे में बात करता है तो लोग उसे टालने की कोशिश करते हैं. किसी व्यक्ति को मनोचिकित्सक यानी साइकियाट्रिस्ट के पास जाने की सलाह दे दी जाए तो उस की प्रतिक्रिया ऐसी होती है, जैसे उसे हम ने पागल घोषित कर दिया हो. ऐसा सिर्फ इसलिए है, क्योंकि हम मानसिक स्वास्थ्य को तवज्जुह नहीं देते और किसी भी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या को पागलपन ही करार देने लगते हैं.””

डा. सुगंधा आगे कहती हैं, ““मानसिक तनाव आज के जीवन का अनचाहा लेकिन अभिन्न हिस्सा बन चुका है. यह हर उम्र के हर पड़ाव में सम्मिलित है. बच्चों में पढाई के बढ़ते कंपीटिशन का तनाव,  युवाओं में दोस्तों,  कैरियर, गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड का तनाव, बड़ों में महंगाई, व्यवसाय, परिवार का पालन, बच्चों की नौकरी और शादी, रोज दफ्तर की भागदौड़ का तनाव और बूढ़ों में बढ़ता अकेलापन, बीमारी,  गिरती सेहत, अपनों की उपेक्षा जैसी बातों से उत्पन्न तनाव गंभीर मानसिक रोगों के कारण बन सकते हैं, इसलिए मानसिक तनाव को सही समय पर संभालना बहुत जरूरी है.

“”आजकल युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ रही है. वे परामर्श लेने में नहीं हिचकिचाते. परंतु बड़े लोगों में अभी भी बहुत हिचकिचाहट और हीनभावना है. उम्मीद है कि समय के साथ विचारधारा में बदलाव आएगा.”

पहले कोविड महामारी में बहुतेरे लोगों ने अपने करीबियों को खो दिया. बच्चों और युवाओं ने अपने पेरैंट्स को खो दिया. किसी की पत्नी तो किसी के पति की मौत हो गई. भावनात्मक और आर्थिक रूप से लोगों को बहुत क्षति पहुंची है. इस के अलावा दुनियाभर में लोगों की नौकरियां चली गईं, व्यवसाय बंद हो गए. इस का लोगों पर बहुत बड़ा मानसिक दबाव पड़ा है. किसीकिसी का दुख तो इतना बड़ा था कि अभी तक भरपाई नहीं हो पाई है. इस के चलते लोग गहरे मानसिक तनाव और मानसिक बीमारियों से जूझ रहे हैं. इसलिए आज मानसिक स्वास्थ्य पर बात करना बहुत जरूरी हो गया है. मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों को इग्नोर करना, मतलब, खुद को और ज्यादा परेशानी की तरफ धकेलना है.

डा. सुगंधा कहती हैं,“ “असल में जब भी मानसिक स्वास्थ्य में कुछ ऊंचनीच महसूस हो, या जब भी एंग्जाइटी का अटैक आए तो दिमाग को शांत और हलका करने की आवश्यकता होती है. मरीज के घरवालों और दोस्तों को यह समझना बहुत जरूरी है कि ऐसी स्थिति में डाक्टर का परामर्श आवश्यक है. आज के समय में ऐसा नहीं कि केवल मानसिक रोग होने पर ही मनोचिकित्सक को दिखाया जाए. अकसर मुश्किल परिस्थितियों का बेहतर तरीके से सामना करने के लिए सलाह लेने के लिए भी लोग मनोचिकित्सक के पास आते हैं. जैसे, किसी का ब्रेकअप हो जाए, तलाक हो जाए या नौकरी छूट जाए तो हताशा और अवसाद से निकलने के लिए लोग डाक्टर से परामर्श लेने आते हैं. विदेशों में तो यह आम बात है क्योंकि सही समय पर सहायता लेने से मानसिक रोग होने का खतरा कम हो जाता है.””

वे एक उदाहरण देती हैं,“ “रश्मि जब इंटरमीडिएट की परीक्षा में फेल हुई तो उस को तनाव के कारण एंग्जाइटी के दौरे पड़ने लगे. वह कभी जोरजोर से रोने लगती थी, कभी बिलकुल निर्विकार हो कर बैठ जाती, किसी से बात नहीं करती थी, कभी अपनी किताबों के कागज फाड़ डालती. उस की मां ने यह बात मुझे बताई. मैं ने उन्हें कुछ दवाएं दीं और उन से कहा कि जब ऐसा हो तो उस को डांटने के बजाय उस से बहुत नम्रता से पेश आएं. यह कोई गंभीर रोग नहीं, बल्कि थोड़े समय का तनाव है जो मस्तिष्क पर हावी हो जाता है. इस को हलका करने की जरूरत है

“”एक दिन रश्मि बारिश में जाकर जमीन पर लेट गई. उस वक़्त उस की मां ने न तो उसे डांटा और न कुछ बोलीं, बल्कि खुद उस के पास जा कर उस का हाथ पकड़ कर उस के साथ ही बारिश में वे भी लेट गईं. कुछ समय बाद रश्मि नौर्मल हो गई. उस की मां ने उस की मानसिक हालत को समझा और उस से उबरने में उस का सहयोग किया. अब रश्मि अपनी सारी बातें, परेशानियां अपनी मां से शेयर करती है. ऐसा करने से वह मानसिक रूप से पूरी तरह हलकी और स्वस्थ रहती है.”

“मन और मस्तिष्क आपस में जुड़े हुए हैं. मस्तिष्क या दिमाग हमारे शरीर का मास्टरमाइंड हैं जैसे कि कंप्यूटर का सीपीयू. अगर ऊपर से और्डर या कमांड देने वाला हिस्सा ठीक न हो तो पूरा सिस्टम ही गड़बड़ हो जाएगा. तो जिस तरह हम लिवर, किडनी, घुटने में तकलीफ होने पर डाक्टर को दिखाते हैं, वैसे ही मन परेशान होने पर मनोचिकित्सक को दिखाने में भी झिझकना नहीं चाहिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कहता है कि स्वस्थ होने के लिए शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों ही आवश्यक हैं.

“लोगों को समझना चाहिए कि दिमाग पर बोझ के चलते ही अटैक आता है. उस बोझ को हलका करेंगे तो मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो जाएगा. दिमाग के बोझ को हलका करना आसान भी है और जरूरी भी. जिन लोगों को इस तरह का अटैक पड़ता है उन्हें खुद इस समस्या से निकलने की कोशिश करनी होगी. इस के लिए कुछ टिप्स ये हैं जो डा. सुगंधा ने सुझाए हैं-

*चुप न रहें, बात करें.

*बात करने से मन हलका होगा, दबाव कम होगा और आप जीवन में आगे बढ़ेंगे.

*निष्पक्ष व्यक्ति से बात करने से परिस्थितियों को एक अलग नजरिए से देखने का विचार आएगा.

*अकसर किसी का साथ मिल जाने पर मुश्किल से जूझने की हिम्मत भी मिलती है.

*जब भी आप के परिवार, दोस्तों, दफ्तर के साथियों में से किसी को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी कोई समस्या हो, जब भी वे मानसिक रूप से टूटे हुए नजर आएं और उन्हें कुछ न सूझे तो उन पर चिल्लाने या यों ही अकेला छोड़ देने या उन पर दबाव डालने के बजाय उन का सहयोग करें. इस से उन का मानसिक दबाव कम होगा और वे जल्दी स्वस्थ होंगे.

डाक्टर कहती हैं कि यदि किसी को एंग्जाइटी, फियर या पैनिक अटैक आता हो तो वह उस से निकलने के लिए निम्न कुछ कार्य कर सकता है-

–  अपने दोस्तों, परिवारजनों, डाक्टर और काउंसलर से अपनी फीलिंग्स के बारे में बात करें.

–  ऐसी ऐक्सरसाइज करें जो मन को शांत करे.

–  रनिंग, वाकिंग और स्विमिंग जैसी कुछ ऐक्सरसाइज करें, जिस से शरीर को ऊर्जा और मन को ऐसी स्थिति से निबटने में मदद मिले.

–  अगर आप को नींद न आने में समस्या है तो कोई ऐसा तरीका ढूंढें जिस से आप को अच्छी गहरी नींद आए. मसलन, सोते वक्त कोई किताब पढ़ें, हलका म्यूजिक सुनें, या गरम दूध पिएं अथवा गुनगुने पानी से स्नान करें. ये कुछ तरीके हैं जो अच्छी नींद लाने में कारगर हैं. मानसिक स्वास्थ्य के लिए गहरी नींद लेना जरूरी है.

–  फास्ट फूड के बजाय कुछ अच्छा, स्वास्थ्यवर्धक खाना खाएं और अपने एनर्जी लैवल को बनाए रखें.

–  अच्छे और सच्चे दोस्तों से मदद लें, वे आप की समस्या को समझ कर आप को इस मानसिक समस्या से बाहर निकलने में मदद करेंगे.

–  किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहें. सिगरेट, शराब, तंबाकू, ड्रग्स जैसे नशीले पदार्थ शरीर से पहले मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं. ये भले ही कुछ समय के लिए तनाव कम करते प्रतीत हों परंतु लंबे समय में ये बहुत बड़ा नुकसान करते हैं और मनुष्य को सामान्य जीवन नहीं जीने देते.

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