Health Update : आज के दौर में शिफ्ट में काम करना आम होता जा रहा है- कभी सुबह, कभी रात तो कभी दोपहर की शिफ्ट. हालांकि यह काम की मांग के अनुसार जरूरी हो सकता है, लेकिन इस का असर शरीर की प्राकृतिक कार्यप्रणाली यानी बौडी क्लौक पर पड़ता है. लगातार बदलती दिनचर्या नींद, भोजन, हार्मोन संतुलन और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है.
शोध बताते हैं कि शिफ्ट में काम करने वालों में अवसाद, चिंता और अनिद्रा की समस्या अधिक होती है. रात में काम करने से डीएनए की मरम्मत करने वाले जीन की कार्यक्षमता घटती है, जिस से गंभीर रोगों का खतरा बढ़ता है. मेटाबोलिज्म बिगड़ने के कारण कब्ज, अपच और सिरदर्द आम हो जाते हैं. त्वचा संबंधी समस्याएं जैसे मुहांसे और झुर्रियां भी नींद की कमी और हार्मोन असंतुलन से जुड़ी हैं.
इस के अलावा, लगातार शिफ्ट बदलने से तनाव हार्मोन (जैसे कोर्टिसोल) की मात्रा बढ़ जाती है, जिस से चिड़चिड़ापन, उच्च रक्तचाप और सामाजिक अलगाव जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं. रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर पड़ने लगती है, जिस से व्यक्ति डायबिटीज, हृदय रोग और कैंसर जैसी बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है.
हालांकि, कुछ सरल आदतें अपना कर इस स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है:
- शिफ्ट रोटेशन हर सप्ताह की बजाय कुछ महीनों में करें, ताकि शरीर अनुकूलन कर सके.
- एनर्जी ड्रिंक्स की जगह पानी, हल्की चाय या कौफी लें और पर्याप्त ब्रेक के दौरान हल्का टहलें.
- स्क्रीन से आंखों को हर घंटे कुछ मिनट का विश्राम दें और सीधे बैठने की आदत डालें.
- गहरी नींद के लिए अंधेरे और शांत कमरे में सोएं.
- रात की शिफ्ट में हल्का व प्रोटीनयुक्त भोजन करें, साथ ही फल और नट्स लें.
- रोजाना व्यायाम करें जिस से चिड़चिड़ापन कम हो और एकाग्रता बढ़े.
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