हाई ब्लडप्रैशर या उच्च रक्तचाप की बीमारी आमतौर पर 40 पार के लोगों में या बुजुर्गों में देखी जाती थी. बच्चों में इस का असर नहीं होता था और न ही कभी डाक्टर बच्चों का ब्लडप्रैशर नापते थे. लेकिन अब यह सोच बदल रही है. बच्चों में भी अब हाई ब्लडप्रैशर की समस्या तेजी से बढ़ रही है.
मोटापे के कारण बच्चे हाई ब्लडप्रैशर का शिकार हो रहे हैं. ब्लडप्रैशर अधिक होने की वजह से उन को दिल की बीमारियां भी घेर रही हैं. हृदय की सतहों की मोटाई भी ज्यादा हो रही है. नाड़ियों में बैड कोलैस्ट्रौल जम रहा है जिस से खून का बहाव बाधित हो रहा है. बच्चों में आंखों की रोशनी घट रही है. दिल्ली के एम्स में ऐसे 60 बच्चों की जांच की गई जो मोटापे से पीड़ित थे. इस जांच के बाद सामने आया कि 60 में से 40 फीसदी यानी 24 बच्चे हाई ब्लडप्रैशर के शिकार हैं. इन सभी बच्चों की उम्र 18 वर्ष से कम थी. इन 24 बच्चों में से 68 प्रतिशत बच्चों में ब्लडप्रैशर का असर हार्ट पर भी नजर आया. कुछ बच्चों में और्गन फेल्योर के लक्षण भी देखे गए.
हाई ब्लडप्रैशर एक साइलैंट किलर है. इस का सब से ज्यादा असर हमारे दिल पर पड़ता है. अगर ब्लडप्रैशर को नियंत्रित न रखा गया तो इस से अचानक हार्ट अटैक या ब्रेन हेमरेज होने का खतरा रहता है.
बच्चों में हाई ब्लडप्रैशर 2 टाइप के होते हैं- प्राइमरी हाई ब्लडप्रैशर और सैकंडरी हाई ब्लडप्रैशर. प्राइमरी हाई ब्लडप्रैशर टीनएजर्स और एडल्ट्स में ज्यादा कौमन है. यह अकसर लाइफस्टाइल फैक्टर्स की वजह से होता है, जैसे बहुत ज्यादा नमक और मसालों के सेवन से यह समस्या पैदा होती है. अगर मातापिता में से किसी को हाई ब्लडप्रैशर की समस्या है, तो कई बार बच्चों में भी इस के लक्षण दिखते हैं. यह लक्षण मोटापे की वजह से जल्दी नजर आते हैं.
सैकंडरी हाई ब्लडप्रैशर के सामान्य कारण हैं, किडनी डिसऔर्डर, हाइपरथाइरौडिस्म, हार्मोनल से जुड़ी समस्याएं, हार्ट या ब्लड वेसल्स डिसऔर्डर, नींद से जुड़े डिसऔर्डर, स्ट्रैस लेना अथवा कुछ मैडिसिन के साइड इफैक्ट्स.
कोरोनाकाल में जब बच्चे घरों में बंद हुए तो उन के पास करने को बस दो या तीन काम ही थे – औनलाइन पढ़ाई करना, मोबाइल फोन पर समय बिताना और खाना. उस दौरान चूंकि मातापिता दोनों ही घर पर रहे इसलिए महिलाओं ने और कहींकहीं तो पुरुषों ने भी अपनी पाककला का खूब प्रदर्शन किया. खूब तेल, घी, नमक, मसाले वाला खाना लोगों के घरों में बना और बच्चों ने खूब लुत्फ उठाया. यहां तक कि बर्गर, पीजा, रोल, चाउमीन जैसे बच्चों को लुभाने वाली चीजें भी मांओं ने खूब बना बना कर खिलाईं.
नतीजा यह हुआ कि बच्चों का वजन इस दौरान खूब बढ़ा. खेलकूद और शारीरिक एक्टिविटी न होने से एक्स्ट्रा एनर्जी शरीर में फैट के रूप में जमा होती गई. इस से नाड़ियों में खून का प्रवाह बाधित हुआ और इस की वजह से बच्चों में हाई ब्लडप्रैशर की समस्या पैदा हुई.
अब जबकि कोरोना को गए डेढ़ साल से ऊपर हो रहा है मगर खेल के मैदान में अभी भी बच्चों की संख्या उस तरह नहीं बढ़ी है जैसी कोरोनाकाल से पहले हुआ करती थी. खेल को ले कर बच्चे आलसी हो गए हैं. उन्हें मोबाइल फोन पर गेम खेलने में मजा आता है. शारीरिक एक्टिविटी न होने से बच्चे हाई ब्लडप्रैशर का शिकार हो रहे हैं.
पढ़ाई और कंपीटिशन का स्ट्रैस इन दिनों बच्चों पर हावी है. हर मांबाप की इच्छा है कि उन का बच्चा एग्जाम में 90 प्रतिशत से अधिक नंबर लाए. मांबाप की इच्छाओं का भारी दबाव बच्चे झेल रहे हैं. वे आधा दिन स्कूल में पढ़ते हैं, फिर ट्यूशन में और उस के बाद घर में. अन्य गतिविधियां करने के लिए उन के पास समय नहीं बचता है जिस से वे स्ट्रैस से मुक्त हो सकें. यह स्ट्रैस ब्लडप्रैशर बढ़ाता है.
फास्ट फ़ूड का चलन इस तेजी से भारत में बढ़ा है कि अब भुट्टा, गन्ने आ जूस, बेल का शरबत, भेलपुड़ी जैसी चीजें तो बच्चे चखना ही नहीं चाहते हैं. उन को सिर्फ मेक्डोनाल्ड, पिज्जा हट, सब जैसी जगहों पर फ़ास्ट फ़ूड खाने में आनंद आता है. फास्ट फूड में पड़ने वाला सोडियम साल्ट, अजीनोमोटो, नमक, चीज़, मैदा और बटर शरीर में जा कर जमता है और बच्चों में मोटापा बढ़ता है.
अब तो स्कूलकालेज की कैंटीन से भी देसी चीजें गायब हो चुकी हैं. कढ़ी चावल, राजमा चावल, पूरी सब्जी या वेज थाली की जगह पिज्जा, रोल, समोसे, फिंगर चिप्स, चीज सैंडविच, नूडल्स, चाउमीन, कोल्ड ड्रिंक आदि ने ले ली है. स्कूलकालेज की कैंटीन्स में बच्चे इसी तरह का खाना खा रहे हैं और वजन बढ़ा रहे हैं. खेलकूद, पीटी, व्यायाम जैसी चीजें स्कूली गतिविधियों से बाहर हो चुकी हैं. लिहाजा, बच्चों में किडनी, लिवर, ब्रेन और दिल की बीमारियां बढ़ रही हैं.
बहुत जरूरी है कि हम समय रहते चेत जाएं. फास्ट फूड से बच्चों को अलग करें. इस के साथ ही दिन में कम से कम 2 घंटे उन को खेलने के लिए मैदान में भेजें. हाइपरटैंशन का सब से आसान और सटीक इलाज है हैल्दी लाइफस्टाइल और नियमित दवाएं. हैल्दी डाइट से हाइपरटैंशन को कंट्रोल किया जा सकता है. बच्चों को डेली डाइट में ताजे फल, सब्जियां, साबुत अनाज और लो फैट डेयरी प्रोडक्ट्स दें. नमक और सैचुरेटेड फैट का का इस्तेमाल खाने में कम करें. खुद भी रैगुलर ऐक्सरसाइज करें और बच्चों को भी इस की आदत डलवाएं. इस के साथ ही पूरी नींद लेना बहुत जरूरी है. 8 से 10 घंटे की नींद बच्चे को ऊर्जावान और हैल्दी बनाती है.
लाइफस्टाइल में बदलाव ला कर ही हम अपने बच्चों को ऐसी खतरनाक बीमारियों से बचा सकते हैं. बच्चों का समयसमय पर हैल्थ चैकअप कराना बहुत जरूरी हैं. आंख की रोशनी कम होने की शिकायत बच्चा करे तो सिर्फ चश्मा ही नहीं बनवाएं बल्कि उस के शुगर और बीपी की जांच भी करवाएं. खाने में नमक की मात्रा कम करें और बच्चे का वजन कंट्रोल में रखें. अगर बच्चे में सिरदर्द, दिल की धड़कन बढ़ने या नाक से खून आने जैसे लक्षण दिखें तो फौरन उस का ब्लडप्रैशर चैक करवाएं. ये लक्षण अधिक रक्तचाप या उच्च रक्तचाप का संकट बताते हैं, जिस के लिए तत्काल चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है. इस में लापरवाही न करें.