ध्वनि प्रदूषण ऐसी समस्या है जो हमें धीरेधीरे नुकसान पहुंचाती है. ध्वनि प्रदूषण की वजह से भारत में हर साल हजारों लोग अपनी सुनने की क्षमता खो देते हैं. हमारे कान एक निश्चित ध्वनि की तीव्रता को ही सुन सकते हैं. ऐसे में तेज ध्वनि कानों को नुकसान पहुंचा सकती है. ज्यादा शोर की वजह से लोगों को रात में नींद भी नहीं आती और इस से उन्हें तनाव व बेचैनी की शिकायत भी हो जाती है. पिछले कुछ सालों में हार्ट पेशेंट की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है. खासकर युवा भी हार्ट अटैक का शिकार हो रहे हैं और इस का एक खास कारण ध्वनि प्रदूषण भी है.

हाल ही में जर्नल सर्कुलेशन रिसर्च में प्रकाशित एक स्टडी में ट्रैफिक नौइस और हार्ट अटैक के बीच संबंध पाया गया है. अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम ने बड़े पैमाने पर आंकड़ों का विश्लेषण किया और पाया कि यातायात के शोर से स्ट्रोक, मधुमेह और दूसरी हार्ट संबंधी बीमारियों के विकास की संभावना बढ़ जाती है.

शोध में पाया गया कि सड़क यातायात के शोर में हर 10 डेसीबल की वृद्धि के साथ हृदय रोग का खतरा 3.2 प्रतिशत बढ़ जाता है.

रात के समय होने वाला यातायात का शोर नींद में खलल डालने का काम करता है. ऐसे में नींद की कमी रक्त वाहिकाओं में तनाव हार्मोन के स्तर को बढ़ा देती है जिस से सूजन, हाई ब्लडप्रैशर और रक्त वाहिका संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.

जरमनी के मेनज विश्वविद्यालय चिकित्सा केंद्र के वरिष्ठ प्रोफैसर और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक थौमस मुंजेल का कहना है कि यह महत्त्वपूर्ण है कि यातायात शोर को अब सबूतों के आधार पर हृदय रोगों के लिए एक जोखिम कारक के रूप में मान्यता दी गई है. ऐसे में ट्रैफिक शोर में कमी के उपायों को करना बहुत ही आवश्यक हो जाता है. बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के कई कारण हो सकते हैं.

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