फिल्म ‘‘नीरजा’’ पैन एम एअर फ्लाइट की हेड एअर होस्टेस स्व. नीरजा भानोट की बायोपिक फिल्म है. इस तरह के विषय पर फिल्म का बनना सुखद अहसास देता है. मगर सबसे बड़ा सवाल यही है कि वैवाहिक जीवन की निजी समस्याओं से जूझ रही, निडर, बहादुर, मौत की परवाह किए बगैर फ्लाइट के यात्रियों की देखभाल करने के अपने कर्तब्य पर अडिग रहने वाली तथा छोटे छोटे बच्चों की जिंदगी बचाते हुए अपना 24वां जन्मदिन मनाने से ठीक एक दिन पहले विमान अपहरणकर्ताओं की गोली से मौत की नींद सो जाने वाली नीरजा भानोत के किरदार को सोनम कपूर परदे पर उतारने में कितना सफल हैं? इसका जवाब  दर्शक शायद बेहतर दे सकेंगे.

फिल्म की कहानी नीरजा भानोट की जिंदगी के अंतिम दो साल की है. हिंदुस्तान टाइम्स अखबार के पत्रकार हरीश (योगेंद्र टिक्कू) और गृहिणी रमा (शबाना आजमी) की बेटी नीरजा भानोट (सोनम कपूर) बचपन से ही खुशमिजाज व सांस्कृतिक गतिविधियों में लिप्त रही है. वह एक सफल माडल और एअर होस्टेस है. उसके पिता ने उसकी शादी अच्छे परिवार में की थी. पर नीरजा के पति ने नीरजा को सताया और नीरजा, पति का घर छोड़कर वापस मुंबई अपने माता पिता के पास रहने आ जाती है. वह माडलिंग करने के साथ साथ ‘पैन एम एअरलाइन्स’ में एअर होस्टेस है. इसी दौरान जयदीप (शेखर रावजियानी) से उसकी मुलाकात होती है. 5 सितंबर 1986 को वह ‘‘पैन एम फ्लाइट 73’’ में पहली बार हेड स्टाफ/हेड एअरहोस्टेस के रूप में जाती है. इस फ्लाइट में 361 यात्री व 19 स्टाफ है. जब यह फ्लाइट मुंबई से कराची पहुंचती है तभी एयरपोर्ट पर ही इसमें अपहरणकर्ता घुस जाते हैं. हर यात्री के चेहरे पर मौत का डर छा जाता है. पर नीरजा निडरता के साथ उन अपहरण कर्ताओं से कहती है कि वह अपना काम कर रहे हैं और उसे अपना काम/कर्तव्य निभाने दे. नीरजा अपनी तरफ से हर यात्री को आश्वस्त करने का प्रयास करती रहती है कि सब कुछ ठीक हो जाएगा. किसी को नुकसान नहीं पहुंचेगा. इस बीच रेडियो इंजीनियर इमरान सहित एक दो लोगों को अहरणकर्ता मौत की नींद सुलाकर अपनी मांगों को मानने के लिए दबाव बनाने की कोशिश करते हैं. उधर अठारह घंटे बीत जाने पर भी पाकिस्तान सरकार कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाती है. पर नीरजा कभी हंसती है, कभी रोती है, कभी डरती है, फिर भी निडर होकर अपने कर्तव्य का निर्वाह करती रहती है.

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