इंसान के जीवित रहने के लिए खून की अहमियत सर्वोपरि है. लोग दूसरों की जिंदगी बचाने के लिए खुशी खुशी अपना रक्त दान करते हैं. हर किसी को पता है कि भारत में खून की बिक्री गैरकानूनी है. लोग स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं. मगर कुछ लोगों ने खून का गैरकानूनी व्यापार कर लाखों रूपए से अपनी तिजोरी भरने में लगे हैं. अफसोस की बात यह है कि जिन डाक्टरों को इंसान की जिंदगी बचाने का दायित्व होता है, वही डाक्टर खून के अनैतिक व गैरकानूनी व्यापार का हिस्सा बने हुए हैं. इस अति घृणित व्यापार जैसे संजीदा, गंभीर व संवदेनशील विषयवस्तु पर बनी अति बचकानी फिल्म है ‘‘लाल रंग’’.

फिल्म की कहानी दो दोस्तों करनाल के शंकर (रणदीप हुडा) और हरियाणा के राजेष धीमान (अक्षय ओबेराय) ओर खून के अनैतिक व्यापार के इर्दगिर्द घूमती है. शंकर अपने आप में माफिया, पर गरीबों का मसीहा है. लोग उससे डरते हैं. उसकी पहुंच बड़े-बड़े लोगों तक है. वह एक फोन करके किसी को पुलिस के चंगुल से छुड़ा देता है. वह गरीब रिक्शेवालों को सौ या दो सौ रूपए देकर उनका खून निकालता है और फिर उस खून को पांच हजार में बेचता रहता है. एक कठोर अपराधी के लिबास के नीचे शंकर का कोमल हृदय भी नजर आता है. वह पेशेवर रक्तदाता के जीवन को लेकर चिंतित भी नजर आता है.

शंकर करनाल में अपना एक गैर कानूनी ब्लड बैंक चलाता है. उसके तार दिल्ली तक फैले हुए हैं. शंकर का एक साथी सूरज  दिल्ली में इसी तरह से खून जमा कर शंकर को लाकर देता रहता है. शंकर और राजेष की मुलाकात करनाल के पैथोलॉजी कालेज में होता है, जहां दोनो पैथोलॉजी में डिप्लोमा के विद्यार्थी हैं. शंकर क्लास में जाता ही नही है. पर उसकी उपस्थिति लगती रहती है. कॉलेज की एडमिनिस्ट्रेटर नीलम के संग उसके यौन संबंध भी हैं. कॉलेज से जुड़े डाक्टर व लैब सहायक भी उसकी मुट्ठी में है. शंकर खून के इस अनैतिक व्यापार से राजेश को भी जोड़ लेता है. राजेश अपनी सहपाठी पूनम शर्मा (प्रिया बाजपेयी) से प्यार करता है.

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