निर्देशक आशु त्रिखा ने फिल्म में जहां स्टेट ब्यूरोक्रेसी और कोल माफिया की मिलीभगत को दिखाया है वहीं उस ने सभी चालू मसालों को भी डाला है. फिल्म में माओवादी हैं, एक क्रांतिकारी बंगाली नेता है, नौटंकी है, वेश्या के उभार हैं और क्रांतिकारी कविता भी. साथ ही, उस ने एक ऐसे किरदार करुआ (विपिन्नो) की रचना की है जो सिर्फ खून की भाषा समझता है, एक इशारे में आदमी का सिर धड़ से अलग कर देता है और सिर्फ अपने ‘मालिक’ (डौन) का हुक्म मानता है, उस के पैर धो कर वह पानी पीता है. उस के लिए उस का यह ‘मालिक’ ही सबकुछ है. ऐसे किरदार की रचना कर निर्देशक ने आतंक का माहौल क्रिएट किया है.

फिल्म की कहानी आम फिल्मों की तरह एक कोल माफिया डौन सरयूभान सिंह (विनोद खन्ना) और एक ईमानदार कलैक्टर निशीथ कुमार (सुनील शेट्टी) के टकराव की है. राजापुर इलाके में सरयूभान सिंह का राज है. कोयलांचल में जो भी उस के रास्ते में आता है, उसे मार डाला जाता है. करुआ (विपिन्नो) उस का खास आदमी है, जो खूंखार है. कलैक्टर निशीथ कुमार की पोस्ंिटग राजापुर होती है. वह सरयूभान सिंह की आंख की किरकिरी बन जाता है. करुआ निशीथ कुमार की पत्नी को जख्मी कर उस के छोटे बेटे को किडनैप कर लेता है. निशीथ कुमार सरयूभान पर शिकंजा कसता है. परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि बच्चा करुआ के लिए मुसीबत बन जाता है. एक वेश्या करुआ को सीख देती है कि बच्चे को उस की मां को लौटा दे. करुआ का हृदय परिवर्तन होता है. वह सरयूभान को कोयलांचल की आग में समा जाने को राजी कर लेता है और खुद भी भस्म हो जाता है.

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