दलहनी फसलों में उड़द की एक खास जगह है. शाकाहारी व्यक्तियों के लिए प्रोटीन की जरूरत पूरी करने में दलहनी फसलों का खास योगदान है. दलहनी फसलों में प्रोटीन की मात्रा 15 से 34 फीसदी पाई जाती है. दलहनी फसलों की खेती से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है. इन फसलों की खेती में नाइट्रोजन वाले उर्वरक कम डालने की जरूरत पड़ती है, क्योंकि इन फसलों की जड़ों की गांठों में पाए जाने वाले जीवाणुओं द्वारा वायुमंडल से नाइट्रोजन ले कर इक्ट्ठा किया जाता है. लिहाजा दलहनी फसलों की खेती करने से किसानों को दोहरा मुनाफा मिलता है.

उड़द की खेती आधुनिक विधि से करने में उपज ज्यादा होती है. यदि कोई किसान फसल पकने के समय खड़ी फसल से फलियों की तोड़ाई कर लेता है, तो खेत में बचे हुए खाली पौधों की खेत में ही जुताई कर देने से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ व जीवाणुओं की मात्रा में इजाफा होगा, जिस से कि अगले मौसम में उस खेत में दूसरी फसल को लाभ पहुंचता है. जमीन का चुनाव : उड़द की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी जिस में पानी की रुकावट न हो बढि़या मानी गई है. वैसे किसी भी तरह की मिट्टी में इस की खेती कामयाबी से की जा सकती है.

बोने का सही समय : उड़द की बोआई के लिए मार्च का पहला हफ्ता मुनासिब माना जाता है. लेकिन इस की बोआई अपै्रल तक की जा सकती है. उड़द की बोआई अरहर के साथ मिला कर मिलवां खेती के रूप में की जाती है. अच्छी उपज के लिए समय से बोआई करना मुनासिब रहता है.

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