अकसर किसान इस बात को ले कर परेशान रहते हैं कि नहरों का पानी सही तरीके से और पूरी मात्रा में उन के खेतों तक नहीं पहुंच पाता है. इस के लिए सरकार पर आरोप लगा कर किसान खुद हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं. वे अपनी मेहनत और पूंजी को बरबाद होता देखते रहते हैं. किसानों के लिए जरूरी है कि वे नहरों के पानी का सही इस्तेमाल करने के तरीके से खुद वाकिफ हों. नहर जल प्रबंधन सीख कर किसान अपने खेतों तक भरपूर पानी पहुंचा सकते हैं.

कृषि वैज्ञानिक वेद नारायण बताते हैं कि नहरों में छोड़े गए पानी का कुछ हिस्सा जमीन सोख लेती है और कुछ नहरों की दोनों तरफ की जमीन पर फैल जाता है. जब पानी नहर से सहायक नहर या आउटलेट वगैरह से गुजरता हुआ खेत तक पहुंचता है, तब तक उस का एकतिहाई हिस्सा ही बचता है. यही पानी खेतों को मिलता है और बाकी बरबाद हो जाता है. किसान अगर नहर के पानी का प्रबंधन सीख लें, तो वे अपनी मेहनत और पूंजी से कई गुना ज्यादा फसल उपजा सकते हैं.

क्यों होता है ऐसा

नहर या आउटलेट में पानी का बहाव इसलिए कम हो जाता है, क्योंकि उस के मुहाने पर खरपतवार उग आते हैं, जिस से वहां काफी सिल्ट जमा हो जाती है. अकसर यह देखा गया है कि उपवितरणी पर लगे फाटक को हटा देने से पानी बेकाबू हो जाता है. साथ ही आउटलेट पर पानी को काबू करने का कोई तरीका नहीं होता है. किसान बालू से भरे बोरों, मिट्टी व घास आदि से आउटलेट को बंद करने की कोशिश करते हैं, पर पानी का रिसाव नहीं रुकता है. टूटे हुए आउटलेटों की मरम्मत करने का काम हमेशा नहीं किया जाता है.

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