राजेश अग्रवाल, प्रबंध निदेशक, इंसैक्टिसाइड्स (इंडिया) लिमिटेड

कृषि क्षेत्र की सिल्वर लाइनिंग

यह एक ऐसा स्मार्ट युग है, जब हमारे फोन तक हम से ज्यादा स्मार्ट हैं. लेकिन जब बात खेती की आती है, तब ऐसा लगता है मानो हम एक ऐसे युग में ठहर से गए हैं जिसे हम ने कभी महसूस ही नहीं किया. अगर कुछ विकसित हो चुके इलाकों को छोड़ दें तो बाकी हर जगह के किसानों से बात कर के यह पता लगता है कि आज भी सालों पुराने तरीके से काम हो रहा है, अल्पविकसित तकनीकें इस्तेमाल हो रही हैं और किसान बेहद तनाव में हैं जो अपने और अपनी फसलों दोनों के भविष्य को ले कर अनिश्चितता के घेरे में हैं. हालत यह है कि 21वीं सदी में भी किसान अपनी फसलों के लिए बारिश के पानी पर निर्भर हैं. कर्ज, मामूली आमदनी और बढ़ते खर्च जैसी समस्याओं से घिरे इन किसानों ने संभावित निस्तारण स्मार्ट फार्मिंग तकनीक यानी एसएफटी के बारे में शायद कभी सुना भी नहीं होगा. इस तकनीक के बारे में राजेश अग्रवाल से बातचीत हुई, जो इस तरह है :

किसानी की यह पद्धति कितनी स्मार्ट है?

अनुमान के मुताबिक, अमेरिका में तकरीबन 80 फीसदी किसान किसी न किसी प्रकार की स्मार्ट फार्मिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, जबकि यूरोप में यह तादाद 24 फीसदी है, जो बेहद तेजी से आगे बढ़ रही है.

सही माने में ये तकनीकें ही हैं, जो किसानों को अपनी फसलों के बारे में सही फैसले लेने और फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मददगार साबित होती हैं.

ये तकनीकें कितनी कारगर हैं, इस की बानगी संख्याएं खुद ही पेश करती हैं. यहां तक कि विभिन्न बहुपक्षीय संस्थानों द्वारा दुनियाभर के विकासशील देशों में किए गए अध्ययन भी यह सुझाव देते हैं कि खेती के नतीजों में बेहतर सुधार के लिए स्मार्ट फार्मिंग तकनीक एक कारगर उपाय साबित हो सकती है.

जमीनी लैवल पर स्मार्ट फार्मिंग तकनीक जमीन की प्रतिबाधा की दर का आकलन करती है, उस में नमी, पानी सोखने की क्षमता, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम वगैरह की वैल्यू और पोषण के माइग्रेशन संबंधी जानकारियां मुहैया कराती हैं, वहीं फसलों के स्तर पर एक निश्चित स्तर के क्लोरोफिल का आकलन, संवेदनशीलता, पौधों के स्तर पर तापमान और नमी की जानकारी किसानों को यह तय करने में मदद करती है कि फसलों की सही बढ़वार के लिए क्या कदम उठाने की जरूरत है.

जमीन से ऊपर की बात करें, तो मौसम के हालात के बारे में सही जानकारी मुहैया कराने में भी स्मार्ट तकनीकें कारगर हैं जैसे कि वातावरण संबंधी तापमान, नमी, बारिश वगैरह की जानकारी.

स्मार्ट तकनीक के इस्तेमाल का सब से बड़ा फायदा यह है कि इस के डाटा को ऐतिहासिक मकसद के लिए स्टोर भी किया जा सकता है.

मतलब यह कि आज की डिवाइस में रिकौर्ड की गई उन जानकारियों को भविष्य के किसानों के लिए संजो कर रखा जा सकता है, जिन के आधार पर किसान अपनी फसलों के बारे में फैसले ले रहे हैं. इस से ज्यादा परिशुद्ध डाटा जमा करने के साथ किसी क्षेत्र विशेष की प्रकृति के बारे में जानकारी हासिल कर पाना ज्यादा आसान हो जाता है.

ये भी पढ़ें- खुशबूदार फसल धनिया सीड ड्रिल से करें बोआई

क्या भारत स्मार्ट फार्मिंग तकनीक को अपनाने के लिए तैयार है?

भारत में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में खेती की तकरीबन 18 फीसदी हिस्सेदारी है, जिस से गंवई इलाकों की 85 फीसदी आबादी जुड़ी हुई है. यद्यपि, भारत ने साल दर साल खेती के कुल परिणामों में बढ़ोतरी की है, मगर किसानों की तादाद में काफी गिरावट आई है.

‘द इकोनोमिक सर्वे 2018’ कहता है कि साल 2050 तक खेती में कामगारों की तादाद कुल जनबल का महज 25.7 फीसदी रह जाएगी. गंवई इलाकों के खेतिहर परिवारों में अगली पीढ़ी के किसान खेतों में काम करने को तैयार नहीं हो रहे हैं क्योंकि खेती में खर्च बढ़ता जा रहा है, जबकि प्रति व्यक्ति उत्पादकता घट रही है, जमीन के बेहतर प्रबंधन की कमी है और लोग उन कामों की तरफ ज्यादा खिंच रहे हैं जो खेती से जुड़े नहीं हैं, पर वहां कमाई बेहतर है. स्मार्ट तकनीकों को अपनाने के लिए भारत की स्थिति इतनी परिपक्व आज के समय से पहले कभी भी नहीं थी.

हम डिजिटल क्रांति के मध्य में पहुंच चुके हैं, वायरलैस कनैक्टिविटी से पूरी दुनिया के साथ जुड़ चुके हैं. अब वह समय आ चुका है, जब हम अपने किसानों की मदद के लिए डिजिटल कनैक्टिविटी का इस्तेमाल करें. हमें सिस्टमैटिक ढंग से स्मार्ट फार्मिंग तकनीकों के इस्तेमाल की शुरुआत करनी होगी.

स्मार्ट किसान क्या हैं?

हमारे ज्यादातर किसान अपढ़ हैं या प्राइमरी तक ही पढे़ हैं, ऐसे में उन के लिए डिजिटल डिवाइस का इस्तेमाल करना आसान नहीं है. यही वजह है कि वे ट्रांजैक्शन जैसे कामों के लिए सीधा न कह देते हैं और कभीकभार नुकसान भी उठाते हैं. कई बार वे मोबाइल एप्लीकेशन में इस्तेमाल किए गए आइकनों को समझने में नाकाम रहते हैं, जबकि वे आइकन उन की परंपरागत बोलचाल में काफी लोकप्रिय हैं और वे उन का इस्तेमाल करते आ रहे हैं. उन की मौजूदा जानकारी और उपलब्ध फौर्मेट के बीच की यह खाई भी स्मार्ट तकनीकों को अपनाने के मामले में एक बड़ी रुकावट है.

ये भी पढ़ें-  पैगांबरी किस्म है शुगर फ्री

स्मार्ट फार्मिंग तकनीकों का पूरा फायदा उठाने के लिए हमारे किसानों को डिजिटल तालीम देने की जरूरत है. साथ ही, कृषि तकनीक बनाने वाली कंपनियां, जो अपनी सेवाएं मुहैया करा रही हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि किसानों की समझ की सीमाएं क्या हैं और वही आइकन इस्तेमाल करने चाहिए जो किसानों को आसानी से समझ में आ जाएं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...