लेखिका-सरोज बाला

इनसान के अंदर कुछ करने की चाह हो तो राह निकल ही जाती है. ऐसे ही एक नौजवान किसान अरुण शर्मा हैं, जो जम्मूकश्मीर में रहते हैं और परंपरागत खेती के साथसाथ मशरूम की उन्नत पैदावार भी कर रहे हैं. अरुण शर्मा जम्मूकश्मीर के कठुआ जिले के खरोट गांव के रहने वाले हैं. उन का बचपन बहुत ही गंभीर हालात में गुजरा है. अरुण शर्मा ने बताया कि जब वे 2 साल के थे, तब उन के पिताजी की एक सड़क हादसे में जान चली गई थी. मां ने आर्थिक समस्याओं को झेलते हुए उन्हें और उन के छोटे भाई को शहर के बेहतरीन स्कूल में शिक्षा दिलवाई, जो अपने समय में बहुत बड़ी बात थी.

डिगरी पूरी करने के बाद दिल्ली, गुड़गांव और चंडीगढ़ जैसे बड़े शहरों की कंपनियों से नौकरी करने के कई अवसर आए, पर घर की जिम्मेदारी अरुण के सिर पर थी, इसलिए दूर कहीं नौकरी करने जा नहीं सकते थे. तभी उन्होंने सोचा कि क्यों न कोई ऐसा काम किया जाए, जिस से घर पर ही रहें और कोई कारोबार करें, जिस से दूसरे लोगों को भी रोजगार मिले. तभी उन्होंने मशरूम की खेती कर के इसे कारोबार के तौर पर बाजार में उतारने का मन बनाया. लेकिन अरुण शर्मा जिस गांव में रहते हैं, वहां आज भी पानी की किल्लत है. इस गांव के बहुत से हिस्से जंगल से जुड़े हैं. कई बार बंदर फसल और फलों की भारी तबाही करते हैं.

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ऐसी तमाम मुश्किलों से जू झते हुए अरुण शर्मा ने हिम्मत नहीं हारी और मशरूम की खेती के लिए किराए का घर लिया, जिस में कंपोस्ट शैड लगाया. पहली बार दोनों भाइयों ने मिल कर फसल लगाने से ले कर उन की देखभाल करने का काम खुद किया. साल 2011 में जब पहली बार उन्हें मशरूम की पैदावार मिली, तो उस से 70,000 रुपए की आमदनी की. अरुण शर्मा मशरूम की खेती के साथसाथ कीटनाशक, कंपोस्ट खाद और मशरूम के बीज भी तैयार करते हैं और दूसरे किसानों को भी बीज और खाद सप्लाई करते हैं. आज उन के साथ कई किसान काम कर रहे हैं.

अब मशरूम की खेती के लिए खुद के 7 कमरों का शैड है और मीन भी है. वे साल में 30 टन की उपज कर रहे हैं. खेती पर खर्च कर और किसानों का वेतन देने के बाद 8,00,000 रुपए का मुनाफा कमा रहे हैं. इन के साथ 100 किसान कठुआ जिले से और 150 किसान और दूसरे शहरों से जुड़े हैं, जो मशरूम की खेती से जुड़ी तकनीक सीख कर खुद के रोजगार स्थापित कर चुके हैं. इन के यहां तैयार की हुई मशरूम कठुआ के सभी हिस्सों में जाती है, जो सांबा, जम्मू के क्षेत्र, ऊधमपुर के क्षेत्रों में और इसी के साथ कटरा, रामनगर, चनैनी जैसे दुर्गम ऊंचाई वाले पहाड़ी स्थानों में भी पहुंचाई जाती है. मशरूम की खेती को किस तरह बेहतर किया जाए, इस के लिए अरुण शर्मा ने साल 2014 में डायरैक्टरेट औफ मशरूम रिसर्च आईसीएआर दिल्ली और विश्व स्तर की मशरूम पैदावार करने वाले संगठन के साथ मिल कर प्रशिक्षण प्राप्त किया. कई कौंफ्रैंस में भाग लिया, जो शहर से सटे हुए पहाड़ी क्षेत्र से जुड़े गांव के युवा के लिए बहुत बड़ी बात थी.

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अरुण शर्मा ने अपना अनुभव सा झा करते हुए बताया, ‘‘साल 2015 में किसान मेला और जिला स्तर व राज्य स्तर के गैरसरकारी विभागों की प्रदर्शनियों में भाग लिया और नौजवानों को मशरूम की खेती करने के लिए प्रेरित किया. प्रशिक्षण कैसे मिलता है, इस सब की जानकारी भी दी. ‘‘मैं ने फरवरी, 2021 की राज्य स्तर की प्रदर्शनी में भाग लिया, जो कठुआ जिले के बरनोटी गांव में लगाई गई थी. इस में कठुआ और जम्मू के सभी विभागों के उच्च अधिकारी शामिल हुए थे.’’ अरुण शर्मा मशरूम ही नहीं, बल्कि इस से बना अचार भी बेचते हैं, जो अपनी यूनिट में ही तैयार करते हैं. अब इन के अचार की लोकप्रियता दूरदूर तक होती जा रही है. अरुण शर्मा बताते हैं कि आज भी सरकार या फिर सरकारी विभाग से उन्हें कोई सहायता नहीं मिली है.

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गांव में खेतीबारी करने में इन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था. इन्होंने अपने दम पर बोरवैल लगवा कर पानी की किल्लत से मुक्ति पाई. इस से इन के आसपास के किसानों को भी राहत मिली. अरुण शर्मा का मानना है कि अगर सरकार उन के काम में आर्थिक सहायता दे तो आगे चल कर किसानों की भलाई के लिए और भी महत्त्वपूर्ण और लाभकारी कदम उठाने में मदद मिलेगी, ताकि कोई भी खेतीकिसानी करने से पीछे न हो. अरुण शर्मा से मशरूम की और ज्यादा जानकारी लेने के लिए किसान इस मोबाइल नंबर 9859101010 पर बात कर सकते हैं.

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