जापानी बटेरपालन

भूमिहीन किसानों, बेरोजगार युवाओं और लघु व सीमांत किसानोें को बाजार की मांग के मुताबिक ऐसी गतिविधियां अपनानी होंगी, जो कम लागत में ज्यादा आमदनी दे सकें. वैसे ग्रामीण अपने गांवों में कृषि के साथसाथ आमदनी बढ़ाने के लिए मुरगीपालन, बतखपालन व टर्कीपालन वगैरह करने लगे हैं, पर बीमारियों, मौसम की मार और बाजार के उतारचढ़ाव के कारण इन में ज्यादा मुनाफा नहीं होता है. यदि इन की बजाय जापानी बटेरपालन का काम किया जाए तो वह ज्यादा फायदेमंद साबित होगा. जापानी बटेरपालन पर कुछ साल पहले उच्चतम न्यायालय ने रोक लगा दी थी, पर अब इसे हटा लिया गया है. जापानी बटेर को मांस व अंडों के लिए पाला जाता है. इस का मांस व अंडे स्वादिष्ठ होने के साथसाथ काफी पौष्टिक होते हैं. यही वजह है कि इन की बिक्री में कोई दिक्कत नहीं आती.

जापानी बटेरपालन के लिए चूजे मथुरा (उत्तर प्रदेश) के पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय सहित देश के तमाम पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों द्वारा अनुदानित दरों पर मुहैया कराए जा रहे हैं. मथुरा का पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय महज 9 रुपए में जापानी बटेर के चूजे मुहैया कराता है.

जापानी बटेर कबूतर के आकार का होता है, जिस का पालन मुरगीपालन की तरह जालीनुमा शेड में किया जाता है. जापानी बटेर उड़ने में तेज होता है, लिहाजा इस के शेड को बंद रखना पड़ता है. यदि शेड खुला रह जाएगा तो ये पक्षी उड़ कर गायब हो सकते हैं. जापानी बटेरपालन के लिए शुरू के 15 दिनों में तापमान पर खास ध्यान रखना पड़ता है. यदि तापमान 35 डिगरी सेल्सियस से अधिक होता है, तो कूलर लगा कर उसे कम करना पड़ता है. करीब 15 दिनों बाद इन चूजों का वजन तेजी से बढ़ना शुरू होता है और इन में रोगरोधक कूवत भी पैदा हो जाती है. जापानी बटेर के चूजों  में टीकाकरण या किसी दवा की जरूरत नहीं होती है. केवल शेड में फफूंदी या नमी का खास ध्यान रखना पड़ता है. मुरगियों के चूजों की तरह जापानी बटेर के चूजों को भी दाना खिलाना पड़ता है. करीब 5 हफ्ते तक 1 चूजे को करीब 1 किलोग्राम दाने की जरूरत होती है, जिस पर 35 से 40 रुपए का खर्च आता है. 5 हफ्ते के बाद चूजा बेचने लायक हो जाता है. इसे आसानी से 70 से 80 रुपए में बेचा जा सकता है. सर्दियों के मौसम में इन की काफी मांग बढ़ जाती है. जापानी बटेर के चूजे वजन से नहीं बेचे जाते. इन्हें प्रति चूजे की दर से बेचा जाता है. जापानी बटेर का मांस लोग काफी पसंद करते हैं. इस का पालन अंडों के लिए भी किया जाता है. मादा जापानी बटेर 2 महीने बाद रोजाना 1 अंडा देना शुरू कर देती है. यह साल भर अंडे देती है. मुरगियों की तरह मादा बटेर कभी कुड़क नहीं होती. जापानी बटेर में नर के मुकाबले मादा का वजन ज्यादा होता है. आमतौर पर बटेरपालन में 4 मादाओं के बीच 1 नर को रखा जाता है. कारोबारी तौर पर जापानी बटेरपालन कम से कम 500 जापानी बटेरों से शुरू करना बेहतर रहता है. राजस्थान के भरतपुर जिले में लुपिन फाउंडेशन संस्था द्वारा कुम्हेर पंचायत समिति के 2 गांवों में जापानी बटेरपालन शुरू कराया गया है. इन गांवों में बटेरपालन के अच्छे नतीजे मिले हैं, जिन्हें देख कर दूसरे गांवों में भी इसे शुरू कराया जा रहा ह . जापानी बटेरपालन शुरू कराने से पहले ग्रामीणों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है. इस ट्रेनिंग में जापानी बटेरपालन के दौरान रखी जाने वाली सावधानियों, बीमारियों की रोकथाम और रखरखाव की जानकारी दी जाती है. 

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