मशीनों के इस्तेमाल ने दुनिया को बदल कर रख दिया है. खेती भी इन के असर से अछूती नहीं है. पैदावार बढ़ाने में नए बीज, खाद, पानी व बोआई की तकनीक के साथसाथ मशीनें भी बहुत मददगार साबित हुई हैं. नए दौर में मशीनों के बगैर खेती करना मुश्किल व महंगा है. खेती में मशीनों के इस्तेमाल से फायदे ही फायदे हैं. मशीनों से किसानों का वक्त, मेहनत व धन बचता है. मशीनें, खेती को घाटे से उबार कर फायदेमंद बना सकती हैं. इन से काम जल्दी, ज्यादा व बेहतर होता है. मशीनें किसानों की कूवत बढ़ाती हैं. इन से कम लागत में उम्दा और ज्यादा पैदावार हासिल होती है. उपज उम्दा हो तो उस की कीमत ज्यादा मिलती है. मशीनेें उपज की कीमत बढ़ाने व डब्बाबंदी में भी खूब काम आती हैं. खेती से मुंह मोड़ कर शहरों की ओर भागती नई पीढ़ी को मशीनों से गांवों में ही रोजगार मिल सकता है. कुल मिला कर मशीनें किसानों का नजरिया कारोबारी बना कर खेती व उस से जुड़े कामधंधों के बहुत से मसले सुलझाती हैं.
मुश्किलें कम नहीं हैं
खेती में बोआई, निराई, गुड़ाई, सिंचाई, कटाई, गहाई, छंटाई व ढुलाई वगैरह कामों में मशीनों का इस्तेमाल बढ़ा है. सरकार का इरादा अगले 5 सालों में पैदावार दोगुनी करने का है. ऐसे में खेती में मशीनों का इस्तेमाल तेज करना लाजिम है, लेकिन मुश्किल यह है कि ज्यादातर किसानों की माली हालत खराब है. बहुत से किसान महंगी व बड़ी मशीनें नहीं खरीद पाते. देश के 85 फीसदी किसान छोटे व सीमांत दर्जे के हैं. वे हल, बैल व पाटे का जुगाड़ ही मुश्किल से कर पाते हैं. खुरपी, फावड़े और दरांती से ही खेती करना उन की मजबूरी है, लिहाजा आम किसानों व खेती की मशीनों के बीच में दूरी बरकरार है.
बीच के फासले
खेती की मशीनों का दायरा बहुत बड़ा है. आए दिन मशीनें बन रही हैं. मगर 3 जुलाई, 2015 को जारी आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ 4 फीसदी किसानों के पास खेती की मशीनें हैं. इन में भी पंपसेट, इंजन, थ्रेशर, पावर ट्रिलर, कल्टीवेटर, स्प्रेयर, डस्टर, हैंडहो व सीडड्रिल जैसी छोटी मशीनें ज्यादा हैं. ट्रैक्टर, प्लांटर, डिस्कंप्लाऊ व बड़े कंबाइन हार्वेस्टर जैसी बड़ी मशीनें कम किसानों के पास?हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के माहिरों ने बहुत सी नायाब मशीनें बनाई हैं. इन में गन्ने की बड चिपिंग मशीन, क्यारी बनाने वाली रोटेरी बिजाई मशीन, 3 लाइनों वाली धान रोपाई मशीन, अनार में छिड़काव के लिए अल्ट्रासोनिक सेंसर, बहुफसली थ्रैशर, सेब तोड़ू सीढ़ी, पेड़ी गन्ने के लिए खाद डिबलर, हल्दी राइजोम रोपाई मशीन, हलदी व लहसुन खोदने के औजार, मक्का ज्वार के मिनी हार्वेस्टर व कीटनाशी छिड़काव के लिए सेफ्टी किट वगैरह मशीनें खास हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के माहिरों ने खरपतवार साफ करने वाली पावर मशीन, पावर नैप सैक स्प्रेयर, सौर ऊर्जा चालित फल सब्जियों की रेहड़ी ठंडी करने की मशीन, गांवों के लिए मुफीद सौर पावर चालित फ्रिज, ग्रीन हाउस को ठंडा करने के फैन पैड, उठी क्यारी में गाजर रोपने व खोदने की मशीनें बनाई हैं.
खेती की मशीनें बनाने का सब से ज्यादा काम केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल में हुआ है. वहां के माहिरों ने बहुत सी उम्दा व किफायती मशीनें और औजार बनाए हैं, लेकिन मुश्किल यह है कि आम किसानों में मशीनों की जानकारी व दिलचस्पी की कमी है. बहुत से किसानों को अब भी पुरानी लीक पर चलने की आदत है. दूसरी ओर खेतीबागबानी के महकमे व रिसर्च स्टेशन भरपूर प्रचार नहीं करते, लिहाजा किसानों को नई मशीनों की जानकारी नहीं होती. ज्यादातर किसान आज भी गेहूं, धान व चारा वगैरह हंसिया से ही काटते हैं. पुराने ढर्रे पर चल कर खेती के काम करने में काफी समय लगता है. अब आसानी से मजदूर भी नहीं मिलते. महंगा कंबाइन हार्वेस्टर खरीदना आम किसानों के बस की बात नहीं है. वैसे भी बड़ी मशीनें छोटे खेतों की बजाय बड़ेबड़े फार्मों के लिए ज्यादा कारगर रहती हैं. ऐसे में किफायती व छोटी मशीनें ज्यादा कारगर साबित होती?हैं. पंपसेट, इंजन, ट्रिलर व स्प्रेयर वगैरह बनाने वाली होंडा सियल कंपनी का ब्रश कटर गेहूं, धान व चारे की फसलें तेजी से काटता है. करीब 22 हजार रुपए कीमत की यह छोटी व हलकी मशीन पेट्रोल की मोटर से चलती है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, बुलंदशहर, नोएडा, आगरा व शिकोहाबाद जिलों में इस के डीलर हैं.
किल्लत
खेती की मशीनों से जुड़ी एक मुश्किल है बिजली की कमी. बहुत सी मशीनें बिजली से चलती हैं, लेकिन गांवों में बिजली कम आती है. मशीनें खेती की कायापलट कर के किसानों को खुशहाल कर सकती हैं, लेकिन भारतीय किसान मशीनी खेती में दूसरे देशों के किसानों से काफी पीछे हैं. वहां के किसान खेती में मशीनों का भरपूर इस्तेमाल करते हैं. साथ ही अमीर मुल्कों में बड़ेबड़े फार्म हैं, जबकि हमारे देश में छोटी जोतों की गिनती ज्यादा है. साल 2004 से 2014 तक भारत में 48,21,976 ट्रैक्टर व 4,17,898 पावर ट्रिलर बिके थे, फिर भी भारत में प्रति 1 हजार हेक्टेयर पर औसतन 16 ट्रैक्टर हैं, जबकि वैश्विक स्तर 20 से भी ज्यादा हैं. हरियाणा, पंजाब वगैरह में खेती की तरक्की का कारण मशीनें भी हैं, जबकि दूसरे राज्यों में मशीनोें की भारी कमी है.
सरकारी स्कीमें
नेशनल मिशन आन एग्रीकल्चर एक्टेंशन टैक्नोलाजी के तहत कृषि यंत्रीकरण पर 1 उपमिशन चल रहा है. खेती में मशीनों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार का खेती महकमा 2 स्कीमें चला रहा है. नई मशीनों की ट्रेनिंग व प्रदर्शन की आउटसोर्सिंग की स्कीम में खेती की मशीनों के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाती है, ताकि किसान नई मशीनें इस्तेमाल करने के तरीके सीख सकें. साल 2013-14 में इस स्कीम पर 21 करोड़ 12 लाख रूपए खर्च किए गए. कटाई के बाद की तकनीक व प्रबंधन की दूसरी स्कीम में उपज के प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन, भंडारण व ढुलाई के लिए नई तकनीकों के इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है, ताकि कटाई के बाद उपज कम से कम खराब हो. इस में पीएचटी उपकरण व ट्रेनिंग की सहूलियतें दी जाती हैं. साल 2013-14 में इस स्कीम पर 18 करोड़ 77 लाख रुपए खर्च हुए. यह बात दीगर है कि करोड़ों रुपए खप जाते हैं, लेकिन प्रचार की कमी से ज्यादातर किसानों को सरकारी स्कीमों की जानकारी नहीं होती.
माली इमदाद
खेती की मशीनें खरीदने पर सरकार किसानों को सिर्फ 50 फीसदी छूट देती है. यह कम व सिर्फ कहने भर की है, क्योंकि इस में कई तरह के पेंच व पाबंदियों के पैबंद हैं. मसलन राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में अब तक 395 अरब रुपए खर्च हुए, लेकिन उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों को इस स्कीम में मानव चालित मशीनों पर सिर्फ 500 रुपए, पशुचालित मशीनों पर 2500 रुपए व पावर चालित मशीन पर 30 हजार रुपए तक की छूट है, जो महंगाई के जमाने में ऊंट के मुंह में जीरे जैसी है. हज पर सब्सिडी, अमीरों को हीरे, सोने पर अरबों की कर रियायत, कारपोरेट सेक्टर को करों में छूट, धार्मिक संस्थाओं को कर में छूट देने से अरबों का घाटा सहने वाली व राजनैतिक दलों को अरबों रुपए आयकर में छोड़ने वाली दरियादिल सरकार को किसानों की छूट बढ़ाने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए. संसद की कैंटीन में खाने की चीजों पर 90 फीसदी तक छूट है. सांसदों को वाहन खरीद पर बिना ब्याज कर्ज मिलता है. किसानों को भी मशीन खरीदने पर 90 फीसदी छूट व बिना ब्याज का कर्ज दिया जाना चाहिए. साथ ही मशीनों के बैंक बनाए जाने चाहिए, जिन से मशीनें किराए पर मिलें. गन्ना, कपास व चावल वगैरह खरीदने वाले मिल मालिक किसानों को मशीनें मुहैया कराएं, ताकि किसानों की मुश्किलें दूर हो सकें.