खराब मौसमी हालात यानी शरीर झुलसा देने वाली गरमी, कम बारिश और रेतीली जमीन के बीच जीवन गुजारने वाले झुंझुनू जिले की चिड़ावा तहसील के लोग अब खुशहाली के रास्ते पर चलने लगे हैं, वरना कुछ अरसा पहले तक हालात काफी खराब थे. यहां का जमीनी पानी फ्लोराइड मिला होने की वजह से पीने लायक नहीं था. लोग इस के इस्तेमाल की वजह से वक्त से पहले ही बूढ़े नजर आते थे. जमीन से लगातार पानी निकालने की वजह से जल स्तर 45 फुट से घट कर 180 फुट पर पहुंच गया था. किसानों को सिंचाई के लिए जरूरत भर का पानी नहीं मिलने की वजह से कृषि उत्पादन लगातार कम होता जा रहा था.
चिड़ावा तहसील इलाके की इस समस्या के हल के लिए रामकृष्ण जयदयाल डालमियां सेवा संस्थान ने जन सहभागिता के आधार पर योजना तैयार की, जिस के तहत जल संरक्षण के लिए किए गए उपायों के बाद एक भी बूंद गांव का पानी बेकार में बह कर नहीं जाता. बारिश के पानी को घरों में बनाए गए पक्के टांकों (कुंडों) में भरा जाता है, जिसे गांव वाले पूरे साल पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं. यह पानी मीठा होता है व फ्लोराइड मुक्त होने की वजह से इस के इस्तेमाल से लोगों को फ्लोरोसिस जैसी बीमारी नहीं होती.
योजना के तहत संस्थान ने बारिश के पानी को जमा करने के लिए सभी पक्के मकानों की छतों को प्लास्टिक के पाइपों से जोड़ा है और पाइपों को पक्के टांकों से जोड़ कर पुनर्भरण कूपों से जोड़ा है. इसी तरह जमीन पर बहने वाले बारिश के पानी को तालाबों तक लाया गया है, जिस से तालाब पानी से लबालब भर जाते हैं. तालाब के लबालब होने से यह पानी जमीन में पहुंच कर जलस्तर को बढ़ा देता है. जलस्तर बढ़ने की जांच के लिए संस्थान ने पीजो मीटर लगा रखा है. तालाब में भरे बारिश के पानी से आसपास की जमीन का जल स्तर
बढ़ जाता है, जिस से किसानों को उन के नलकूपों से सिंचाई के लिए ज्यादा पानी मिलता है. ज्यादा अरसे तक पानी मिलने की वजह से फसल उत्पादन में भी कई गुना इजाफा हुआ, जिस से गांव में खुशहाली दिखाई देने लगी है.
गोविंदपुरा की तरक्की की कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है. करीब 7 साल पहले रामकृष्ण जयदयाल डालमियां संस्थान ने इस गांव की दिक्कतों को जान कर सभी गांव वालों के सहयोग के आधार पर योजना की शुरुआत की थी और गांव के सभी पक्के मकानों को प्लास्टिक के पाइपों से जोड़ कर बारिश का पानी जमा करने के लिए 20000 लीटर कूवत का पक्का कुंड बनवाया था. गांव में इस तरह जनसहभागिता के आधार पर 85 कुंडों को बनवाया गया. इन कुंडों से हर परिवार को साल भर भरपूर मात्रा में पीने का पानी मिल रहा है.
कुंडों के भरने के बाद बहने वाले पानी को पाइप लाइनों से जोड़ कर सूखे कुओं तक ले जाया गया है. इस के साथ ही गांव के रास्तों में बहने वाले बारिश के पानी को भी भूमिगत जल तक पहुंचाने के लिए गांवों में तालाब भी बनवाए गए हैं. इस के अलावा घरों के बाथरूम व रसोई से निकलने वाले गंदे पानी को जमा करने के लिए हर घर में कच्ची कुई बनवाई गई है, जिस में घर का गंदा पानी एक फिल्टरनुमा जाली से छन कर जाता है. इस कुई में जमा गंदा पानी भी भूमिगत जल में मिल कर उस में इजाफा करता है और गंदे पानी से गांवों के रास्तों व सड़कों पर गंदगी नहीं फैलती.
तालाब के किनारे लगाए गए पीजो मीटर से हर महीने के पहले दिन भूमिगत जल स्तर की जांच के आंकड़े संस्थान द्वारा लिए जाते हैं. आकड़ों से पता चलता है कि गोविंदपुरा गांव में पानी बचाने के उपाय शुरू करने के बाद जलस्तर में कोई गिरावट नहीं हुई है. डालमिया संस्थान द्वारा गोविंदपुरा गांव में बनाए गए पुनर्भरण कूपों के पास जलदाय विभाग द्वारा नलकूप लगाए गए हैं. अब नलकूपों से ज्यादा समय तक पानी हासिल किया जा रहा है. इन नलकूपों के पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होने की वजह से गांव के लोग इस पानी का इस्तेमाल केवल नहानेधोने जैसे कामों में ही करते हैं. पीने और खाना पकाने के लिए तो कुंडों का पानी ही इस्तेमाल किया जाता है.
संस्थान ने गोविंदपुरा गांव में शुरू किए गए पानी बचाने के सिस्टम के रखरखाव के लिए भी गांव के लोगों की ग्राम विकास समिति का गठन कर रखा है. इस के लिए संस्थान तकनीकी मार्गदर्शन देता है. गोविंदपुरा गांव की तरह डालमियां संस्थान ने चिड़ावा तहसील के गांवों में इसी तरह का पानी जमा करने का इंतजाम किया है. वहां भी गांवों में बारिश के पानी को जमा करने के लिए टांकों व कूपों को बनाया गया है.