लेखक -डा. मनोज कुमार पांडेय, डा. एके चतुर्वेदी

भारत की गरम जलवायु में आसानी से उगने वाले और सूखा सहन करने वाले सहजन यानी मोरिंगा ओलिफेरा को हम सालों से देखते आ रहे हैं. पूरी दुनिया में सहजन के उत्पादन में भारत अग्रणी है. बीज और तने की कलम को आसानी से कम पानी में उगाए जाने वाले सहजन में कोई ज्यादा कीट व बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है. केवल बिहार में रोमिल सूंड़ी का प्रकोप कभीकभी देखा जा सकता है और कुछ फलियों में खाने वाले कीट लगते हैं.

हमारे देश में सहजन की खेती पूरी तरह से जैविक होती है. इस की देशी प्रजातियों की कलम को ज्यादातर लोग लगाते हैं, जिस में सालभर में एक बार फल लगता है, लेकिन 2 उन्नतशील प्रजातियां हैं, पीकेएम 1 और पीकेएम 2, जिन्हें बीज से तैयार करते हैं और इन प्रजातियों में साल में 2-3 बार फल व फूल लगते हैं. हाल के शोध से यह पता चला है कि सहजन की पत्तियां पोषक तत्त्वों और दुर्लभ औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं. इस में संतरे से 7 गुना अधिक विटामिन सी, गाजर से चौगुना विटामिन ए, दूध से चौगुना कैल्शियम और दोगुना प्रोटीन, केले से तिगुना पोटैशियम, पालक से तिगुना आयरन मिलता है. इस के अतिरिक्त इस में कौपर, जिंक जैसे अनेक मिनरल्स और विटामिन बी भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.

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सहजन में 46 एंटीऔक्सीडैंट, 36 दर्दनिवारक तत्त्व, 18 एमिनो एसिड और कई तरह के विटामिन भी पाए जाते हैं. साथ ही, त्वचा रोग, पोषण, लिवर, पाचन, सूजन, संधि वात, कैंसर आदि समस्याओं में सहजन काफी लाभदायक है. इस की पत्तियों में एंटीबायोटिक गुण पाए जाते हैं, इसलिए पत्तियों के पेस्ट को घाव भरने के लिए लगाया जाता है. इस के बीज से निकले तेल को आर्थराइटिस दर्द से राहत पाने के लिए और बुखार में लगाते हैं. इस की फलियों में मधुमेह से लड़ने वाले गुण पाए जाते हैं, जबकि इस के छिलके से चर्म रोग का इलाज संभव है. इस के सेवन से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता और जीवाणुहरण क्षमता बढ़ती है. इस एक अकेले पौधे में दुनिया से कुपोषण खत्म करने की क्षमता है.

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